राष्ट्रपिता जोतीराव फुले ने कहा था कि बहुजन समाज के होशियार -होनहार बच्चों की शिक्षा में सहायता करो। राजर्षि छ्त्रपति शाहू महाराज व बड़ौदा नरेश श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड अपने अंतिम समय तक यही कार्य कर रहे थे । राष्ट्रपिता जोतिराव फुले के अपूर्ण कार्य अर्थात सभी ब्रह्ममणेत्तर लोगों की शिक्षा हेतु 08 सितम्बर 1917 को अनिवार्य शिक्षा का कानून राजर्षि छ्त्रपति शाहू महाराज ने बनाया व 30 सितम्बर 1917 से इसपर अमल भी शुरू करवाया। छत्रपति शाहू महाराज के निर्णय का तिलक व अन्य सभी ब्राह्मणो ने कडा विरोध किया। किन्तु छत्रपति शाहू महाराज शिक्षा का महत्व जानते थे। शिक्षित मनुष्य विचार व तर्क करता है। उसे सही-गलत की परख करना आ जाता है। उसे न्याय व अन्याय ,भला-बुरा ,हित-अहित की समझ आ जाती है। शिक्षित मनुष्य जानकारी-आंकड़े एकत्रित कर सकता है। जानकारी का वर्गीकरण कर सकता है। वर्गिकरण का विश्लेषण कर सकता है। विश्लेषण कर निष्कर्ष निकाल सकता है। निष्कर्ष निकाल कर निर्णय ले सकता है। असंगठित लोगों को संगठित कर सकता है। चिर-निद्रित लोगों को जागृत कर सकता है। दिशाहीन लोगों को दिशा दे सकता है। नेतृत्वहीन लोगों को नेतृत्व दे सकता है। मतलब समाज का उद्धार कर सकता है। यह सब शिक्षा द्वारा हो सकता है इसे राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज ने राष्ट्रपिता जोतीराव फुले से जाना था। इसीलिए उन्होने सबसे अधिक ज़ोर शिक्षा पर देने का निश्चय किया व कोल्हापुर को छात्रावासों से पाट दिया।अकेले कोल्हापुर में ही 22 छात्रावास थे। उस काल में महाराष्ट्र ,कर्नाटक ,गुजरात व सिंध सभी मुंबई प्रांत में शामिल थे। इन सभी इलाकों में अंग्रेज़ सरकार ने जितनी राशि का प्रावधान शिक्षा के लिए किया था उससे कहीं अधिक कोल्हापुर रियासत की आमदनी से वे खर्च किया करते थे। यह राशि एक लाख रुपये से अधिक की थी। महाराज की मृत्यु के कई सालों उपरांत सन 1930 में अंग्रेज़ सरकार ने सारे मुंबई प्रांत के लिए 01 लाख रुपये खर्च मंजूर किया। आज स्वतंत्र भारत में बजट का मात्र 1.66 % शिक्षा पर खर्च किया जाता है। शिक्षा पर यदि सबसे अधिक बजट होता है तो अन्य बातों के लिए अधिक बजट रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। किसी विद्वान ने कहा है “The person who opens the schools, closes the jails” . ब्राह्मणेत्तर लोगों के लिए शिक्षा पर सर्वाधिक बजट रखने वाला एकमात्र राज्य कोल्हापुर है व एकमात्र राजा राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज हैं।
डॉ आंबेडकर जी ने कहा था -
“जिसे अपने दुःखों से मुक्ति चाहिए उसे लड़ना होगा और जिसे लड़ना है उसे पहले पढ़ना होगा क्योंकि ज्ञान के बिना लड़ने गए तो हार निश्चित है|”
पढ़ाई भी दो प्रकार की होती है एक वो जिससे आप शिक्षित होते है जैसे स्कूल या कॉलेज की शिक्षा और दूसरी अपने इतिहास की|
डॉ आंबेडकर जी यह भी ने कहा था कि
“जो कौम अपना इतिहास नहीं
जानती वह अपना भविष्य नहीं सुधार
सकती”
अपने इतिहास की जानकारी न
होने की ही वजह से भारत को विश्वगुरु विश्वविजेता बनाने वाले बौद्ध लोग आज खुद को शूद्र (नीच) समझकर शोषण सह रहे हैं, जब भी लड़ते हैं तो हारते हैं | अपने आसपास देखो, यहाँ कम पढ़े गुलाम और मजदूर मानसिकता के शूद्र हैं जिनमें से कुछ तो समझने को ही तैयार नहीं दूसरे वह हैं जो केवल स्कूल या कॉलेज की शिक्षा तक सीमित रहने वाले | दूसरे वाले जाने अनजाने में मनुवादियों की कठपुतली बन रहे हैं,
चाहे वो नौकरी हो या शादी या राजनीति या धर्म आदि में |
इस पर डॉ आंबेडकर जी ने कहा है “मेरी नज़र में शिक्षित वही है जो अपने दुश्मन को पहचानता है”|
आपका दुश्मन हर बार रूपऔर नाम बदल कर आपको नोचता रहता है
आप हरबार धोखा खा जाते हो, कभी
देवता के नाम पर कभी धर्म के नाम पर कभी कानून के नाम पर कभी पाप पुण्य के नाम पर तो कभी देश के नाम पर, एक बार इसकी जड़ ही समझ लीजिये, कोई भी आपको नहीं समझा सकता न आपको आज़ादी दिला सकता है जब तक आप खुद समझकर आज़ाद न होना चाहें,
इसीलिए गौतम बुद्ध ने कहा है “अप्प दीपो भव:” अपना दीपक खुद बनो | अर्थात खुद जानो परखो फिर मानो और आगे बढो !
डॉ आंबेडकर और गौतम बुद्ध की तस्वीर की पूजा करने से आपको कुछ नहीं मिलेगा चाहे दिनरात एक कर दो, अगर मिलेगा तो उनकी शिक्षा से, जो इतनी जबरदस्त है की डर के मारे
मनुवादी इस का प्रचार नहीं होने देते |
इनकी एक एक बात आँखे खोलने वाली है, बस इनसे घृणा छोड़ो, अपने जागने की चाहत और समझ विकसित करो, कल्याण निश्चित है
🙏जय भीम🙏
🏛 उदार ज्योतिबा 3 जुलाई, 1851 और पहले मां सावित्री बाई फुले * दलितों / अछूत बेटी * (लड़कियों) स्कूल पुणे (Chipplunkarwada) की स्थापना की पर अच्छे आसार महाराष्ट्र में था ...
⛩वैसे पहले ही माता सावीत्री बाई फुले 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना कर चुकी थी।
📚एक वर्ष में सावित्रीबाई और महामना फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में।
डॉ आंबेडकर जी ने कहा था -
“जिसे अपने दुःखों से मुक्ति चाहिए उसे लड़ना होगा और जिसे लड़ना है उसे पहले पढ़ना होगा क्योंकि ज्ञान के बिना लड़ने गए तो हार निश्चित है|”
पढ़ाई भी दो प्रकार की होती है एक वो जिससे आप शिक्षित होते है जैसे स्कूल या कॉलेज की शिक्षा और दूसरी अपने इतिहास की|
डॉ आंबेडकर जी यह भी ने कहा था कि
“जो कौम अपना इतिहास नहीं
जानती वह अपना भविष्य नहीं सुधार
सकती”
अपने इतिहास की जानकारी न
होने की ही वजह से भारत को विश्वगुरु विश्वविजेता बनाने वाले बौद्ध लोग आज खुद को शूद्र (नीच) समझकर शोषण सह रहे हैं, जब भी लड़ते हैं तो हारते हैं | अपने आसपास देखो, यहाँ कम पढ़े गुलाम और मजदूर मानसिकता के शूद्र हैं जिनमें से कुछ तो समझने को ही तैयार नहीं दूसरे वह हैं जो केवल स्कूल या कॉलेज की शिक्षा तक सीमित रहने वाले | दूसरे वाले जाने अनजाने में मनुवादियों की कठपुतली बन रहे हैं,
चाहे वो नौकरी हो या शादी या राजनीति या धर्म आदि में |
इस पर डॉ आंबेडकर जी ने कहा है “मेरी नज़र में शिक्षित वही है जो अपने दुश्मन को पहचानता है”|
आपका दुश्मन हर बार रूपऔर नाम बदल कर आपको नोचता रहता है
आप हरबार धोखा खा जाते हो, कभी
देवता के नाम पर कभी धर्म के नाम पर कभी कानून के नाम पर कभी पाप पुण्य के नाम पर तो कभी देश के नाम पर, एक बार इसकी जड़ ही समझ लीजिये, कोई भी आपको नहीं समझा सकता न आपको आज़ादी दिला सकता है जब तक आप खुद समझकर आज़ाद न होना चाहें,
इसीलिए गौतम बुद्ध ने कहा है “अप्प दीपो भव:” अपना दीपक खुद बनो | अर्थात खुद जानो परखो फिर मानो और आगे बढो !
डॉ आंबेडकर और गौतम बुद्ध की तस्वीर की पूजा करने से आपको कुछ नहीं मिलेगा चाहे दिनरात एक कर दो, अगर मिलेगा तो उनकी शिक्षा से, जो इतनी जबरदस्त है की डर के मारे
मनुवादी इस का प्रचार नहीं होने देते |
इनकी एक एक बात आँखे खोलने वाली है, बस इनसे घृणा छोड़ो, अपने जागने की चाहत और समझ विकसित करो, कल्याण निश्चित है
🙏जय भीम🙏
🏛 उदार ज्योतिबा 3 जुलाई, 1851 और पहले मां सावित्री बाई फुले * दलितों / अछूत बेटी * (लड़कियों) स्कूल पुणे (Chipplunkarwada) की स्थापना की पर अच्छे आसार महाराष्ट्र में था ...
⛩वैसे पहले ही माता सावीत्री बाई फुले 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना कर चुकी थी।
📚एक वर्ष में सावित्रीबाई और महामना फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में।
*क्या हमारा समाज के बुद्धिजीवी वर्ग और नेता बाबासाहेब के विचारों और सिद्धांतों के विरूद्ध तो नहीं।।*
ReplyDeleteआज, कल की कार्यसूची sangathanoeem दलित वंचित समाज भी सिर्फ बाबा साहेब अम्बेडकर की सालगिरह भीमराव, आरक्षण और सुख सुविधाओं के लिए मांग है बढ़ी हुई मांग बनी हुई है जश्न मनाने के लिए। पर, मानव गरिमा के साथ समाज का निर्माण करने के लिए आग्रह करता हूं मानव अधिकार केंद्र मंच dalitoem, सामाजिक दबाव कहीं पीछे छोड़ दिया गया है। यह दुखद है। आज देश में कुछ संघ लेने कि उनके नाम करने के लिए बड़े व्यक्तिगत मूल्य के अपने सामाजिक समूह को बाबा साहेब के नाम अब तक प्रसार करने के लिए उनके विचारों बन गए और उनके केवल काम बस के सामने बाबा की प्रतिमा है का पालन करता है तस्वीर khicavana और फिर इसे बढ़ावा देने के लिए !!
ऐसे मित्र बाबा साहेब के अनुयायी नही बल्कि दुश्मन हैं !! जितनी जल्दी हो सके इस समस्या पर विचार कर इसे दूर करना होगा । पिछले 50-60 वर्षो से समाज की बढ़ी हुई ताकत को एक बार पुनः बटोरकर एकजुट करके बाबासाहब के सपनां का भारत जिसमेें न कोई उॅचा-नीचा हो, न कोई भूखा-नंगा हो न कोई अशिक्षित हो, न कोई भेद- भाव हो वाला जातिविहीन समाज बनाने के लिए लग जाना होगा अन्यथा इतिहास हमेें एक नकारा और गैर- जिम्मेदार पीढ़ी के रुप मेें याद करेगी!!