Tuesday 14 March 2017

BSP और SP की हार

उत्तर प्रदेश में BSP और SP की हार का एक दलित के द्वारा निष्पक्ष विश्लेषण
चुनाव आयोग से प्राप्त आँकड़े
Parties Votes % seats
BSP 1 करोड़ 92 लाख 22.2 % 19
SP 1 करोड़ 89 लाख 21.8 % 47
BJP 3 करोड़ 44 लाख 39.7 % 312
यदि SP और BSP के कुल वोटों को जोड़ दिया जाय तो
BSP + SP = 3 करोड़ 81 लाख
दोनों पार्टियों की सीटों की संख्या = 66
BJP कुल 3 करोड़ 44 लाख वोट पाकर 312 सीटों पर विजय प्राप्त की है ।
BSP का DM ( Dalit और Muslim ) की सोसल इंजीनियरिंग फेल हो गयी ।
SP का भी MY ( Muslims और Yadav ) का यू पी में फेल हुआ ।
मायावती के टिकट का दाम 2019 में बहुत कम हो जायेगा । मायावती केवल चमारों , जाटवों और बाल्मीकी जाति को ही दलित मानती है । यू पी में दलित के अन्तर्गत 65 जातियाँ आती हैं । खटिक , धोबी , पासवान , दुसाध , खरवार , गौंड़ , नट , मुसहर , डोमों आदि भाजपा में शामिल होकर कमल पर वोट दिए ।
मायावती हार की हताशा से EVM को बासपा की हार का कारण मान रही है । उसे सच्चाई को स्वीकार करके हार मान लेना चाहिए ।
चुनावी समझौता तो सपा और बासपा में होना चाहिए था । और दोनों 350 सीटों पर विजय प्राप्त करते लेकिन मायावती के अहंकार ने समझौता नहीं होने दिया । लालू यादव और अखिलेश चुनावी समझौता चाहते थे लेकिन मायावती को दलित और मुस्लिम वोट पर अधिक भरोसा था ।
मायावती के मुस्लिम उम्मीदवार को दलित भी दिल खोल कर वोट नहीं देता है । दलित भी हिन्दू है और वह हिन्दू को वोट देता है ।
सुझाव - SP और BSP को अभी से 2019 के लिए 40 - 40 लोक सभा सीटों पर चुनावी समझौता कर लेना चाहिए लेकिन प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा इन्हें समझौता नहीं करने देगी ।
यह हार मायावती और अखिलेश की नहीं हुई है । यह हार 3 करोड़ 81 लाख यादवों , चमारों , जाटवों और मुस्लिम मतदातों की हुई है । इन दोनों के परिवार स्वर्ग भोग रहे है ।
मोदी और अमित शाह के सामने मायावती और अखिलेश की सोसल इंजीनियरिंग फेल हो गयी ।इन्हें फिर से पढाई करना होगा । मायावती के टिकट पर हारने वाले अधिक वह सवर्ण जाति के उम्मीदवार थे जिन्हें BJP ने टिकट नहीं दिया ।
सत्ता पाने की होड़ में मायावती कांशी राम के विचारों से दूर चली गयी । अकेले मायावती अपने बल सत्ता में नहीं आ सकती । मुलायम परिवार का भी दुर्दिन आने वाला है ।
पुलिस थानों में यादव ही थानाध्यक्ष होता था । यादव किसी गैर यादव को मारता पीटता था तो FIR भी नहीं होता था । देखना अब क्या होता है ।
मायावती , मुलायम और अखिलेश अपनी महत्वाकांक्षा के लिए किसी की बलि चढ़ा सकते हैं । समय माँग कर रहा है कि इनकों एक हो जाना चाहिए ।
राजनेताओं को जनता अपनी भाषा में अच्छे समझा देती है । भाजपा वास्तव में अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनाना चाहती है । भाजपा ने भारत में सत्ता पाने के लिए बाबरी मस्जिद को तोड़ने का फैसला लिया था । भाजपा मुसलमानों का विरोधी नहीं है । चुनावी रणनीति की बाध्यता के कारण भाजपा मुसलमानों का विरोध करती है । इसके विरोध के पीछे सामाजिक मनोविज्ञान यह है कि हिन्दू मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो जायेगा और इस रणनीति में भाजपा अब तक सफल रही है । कुछ भाजपा के नेता अपनी नेतागीरी चमकाने के लिए मुसलमानों के विरुद्ध असंसदीय भाषा का प्रयोग करते हैं जो उचित नहीं है । भारत सभी जातियों और धर्मों का देश है । भारत की सभ्यता , संस्कृति और महानता इसी में छिपी है । चुनाव समाप्त हो गया है और परिणाम घोषित हो गये हैं और चाय की दुकान पर चुनाव पर बहस कर मार पीट और दुश्मनी नहीं करना चाहिए । जीतने वाला हर व्यक्ति भारत का नागरिक है और संविधान की शपथ लेता है और उसे अपने चुनावी वादों को जरूर पूरा करना चाहिए ।
SP और BSP एक हो जायेंगी या दोनों मिट जायेगी ।
चमार , जाटव और यादव इस हार के बाद सत्ता के हासिए पर चले गये हैं । मायावती और मुलायम और अखिलेश को समझ आए या न आए गाँव में चमारों और यादवों को हार का कारण समझ आ रहा है ।
सपा और बसपा एक सामाजिक आन्दोलन के रूप में आगे बढ़े लेकिन आज सत्ता और सुख के केन्द्र बन गये हैं
सपा ने लोहिया को छोड़ दिया और मायावती ने डा अम्बेडकर को छोड़ दिया । परिणाम आप के सामने है ।
यदि इस लेख से किसी को दुःख होता है तो मैं इसके लिए क्षमा चाहता हूँ ।
इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं । लेखक किसी पार्टी का न सदस्य है न समर्थक है । वह एक स्वतंत्र विचारक है ।

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