भारत का संबिधान
संविधान का मतलब विचारधारा जिसपर पूरा देश का कार्य भार व वहॉ के लोग एक नियम पर चले।देश बिचार पर नहीं चलता कारन बिचार अलग अलग मनुष्य का अलग अलग हो सकता है।परंतु बिचारधारा एक होती है।जो पूर्वजो के द्वारा बनाये हुए होते है।जो किसी भी देश का अपना होता है।
आज भारत के संबिधान को लेकर वैदिक ब्राह्मण (यूरेशियन शुद्र)हिन्दू संगठन बनाकर जोर जोर से चिल्लाता है कि भारत का संविधान में भारत के लिए कुछ नहीं है।यह दूसरे देश का काँपी राईट है।इसे बदल देनी चाहिए।
समीक्षा होनी चाहिए।उसके सामर्थन में भारतीय मूलनिवासी जो आरएसएस का झोला,डंडा व झंडा टांगने बाले मजदुर है सामर्थन करता है। नन्द वंश के लोग तो दो कदम आगे बढ़कर चिल्लाता है कि संविधान हमारे लिए क्या किया है।हम जय भीम क्यों कहे। तो सुनो आज जो मुह फाड़कर बोल रहे हो व चिल्ला रहे हो वह बाबा साहब जी के संविधान की देंन है।रही बात कॉपी राईट की तो वो भी समझ लेना चाहिए।भारतीय मूलनिवासी के लिए संविधान सर्व प्रथम अर्हत महाथेर बिनयधर उपाली नाई जी ने तथागत भगवान बुद्ध के द्वारा बनाये गाये संघ को समर्पित किये थे।जो सरल सुन्दर व प्रकृति धर्म के अनुरूप था। उसी संविधान को भारत के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट महापद्म नन्द जी ने अपने केंद्रीय शासन प्रणाली में लागू किये थे।उसी संविधान को देबानप्रिय चक्रवर्ती सम्राट अशोक जो नाई वंश के थे,पुरे विश्व को समर्पित किये थे।जिसके कारण भारत विश्व गुरु से नवाजा गया था।भारत जब गुलाम वैदिक ब्राह्मण(यूरेशियाई शुद्र)से हो गया तब भारत में मनु का संविधान लागू कर भारत के संविधान को जला दिया।भारतीय लोग कुत्ते से भी बदतर जिंदगी जीने लगे।भारत के इतिहास को मुगलो से मिलकर जला दिया।भारत में अपने मनु के संविधान को आज भी लागू करने के लिए ब्याकुल है।जब भारत में मूलनिवासी का संविधान का नामो निशान नहीं रहने दिया।जिससे भारतीय मूलनिवासी कंफ्यूज्ड होकर अपने को वैदिक आर्य समझने लगे।
अब संविधान कोई उपन्यास तो है नहीं जो मन में आया लिख दिया पुरे भारतीय मूलनिवासियों को लेकर चलनां था।वैदिक ब्राह्मण को छोड़ कर।बाबा साहब ने सम्राट अशोक द्वारा दिए गए बिचारधारा पर जो देश चल रहा था।उस संविधान को अलग अलग देशो से लेकर भारतीय मूलनिवासी के लिए संविधान लिखे।ये वही संविधान है।जो अर्हत महाथेर उपाली नाई जी ने संघ को दिए थे।अब अपने वंश पर गर्व करते हो तो अपने वंशजो द्वारा बनाया हुआ देश जो एक विशाल देश था । ये यूरेशियन शुद्रो के कायरता के बजह से छोटा हो गया है।फिर भी जो कुछ भी बचा है बचा लो।उसी तरह संविधान भी अपने पुरखों के द्वारा बनाया गया है।इसे सुरक्षा कर अपने भविष्य को बचा लो ।नहीं तो आपके व आपके परिवार जो संविधान के बजह से मन सम्मान की जिंदगी जी रहा है।वैदिक लोग रहने नहीं देगा।आगे आपकी मर्जी।जय भीम । जय नन्द जय भारत।
1. भारत के संविधान को बिदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण आरएसएस संगठन से रक्षा करना।
2.भारतीय मूलनिवासी के छोटे छोटे संघ मिलाकर कॉमन मिनिमम प्रोग्राम व पंचशील ध्वज के नीचे काम करना।
3.महासांघ का पंचशील ध्वज गुरु के सामान है।इससे जुड़ने बाले संगठन का भी ध्वज एक माना जायेगा।
4. भारतीय मूलनिवासी का धर्म व विचारधारा प्रकृति धर्म के अनुरूप है।दूसरे
दूसरे धर्म के बारे में महासांघ बिचार नहीं करती है।
5.वैदिक ब्राह्मण धर्म ने महिलाये पर बहुत अत्याचार हुआ है।इसलिए प्रकृति धर्म के अनुसार महिलाए का मान सम्मान स्वाभिमान के लिए बिचार होनी चाहिए।महिलाए को गांव गांव स्वं सहायता समूह बनाकर शसक्त होने पर विचार होनी चाहिए।
6.भारतीय मूलनिवासी के गांव के प्रत्येक जाती को मिलकर संगठन बनाना चाहिए।
भारतीय मुलनिवासि सेवा महासांघ से निवेदन है कि जितने भी भातीय मूलनिवासी अलग अलग संगठन बनाकर समाज का सेवा कर रहे है।इससे मूलनिवासी का संपूर्ण भलाई नहीं हो सकती है।सभी मिलकर क्रांति करना होगा तभी भविष्य सुन्दर बनेगा।
ब्राहमण बणिया की मेरिट कैसे बनती है ?
1950 से 2017 तक कुछ नही बदला। योग्यजन पर आज भी अयोग्य राज कर रहे हे
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अछूतानंद दास- 'चमार' को भी दूसरों की तरह, इंटरव्यू में अंक दिए जाते तो वह topper होता ।
आईये देखते हैं कैसे --
1950 में संघ लोक सेवा आयोग( UPSC ) दिल्ली, ने स्वतंत्र भारत में प्रथम I.A.S.परीक्षा आयोजित की इसमें एन. कृष्णन प्रथम व अनिरुध गुप्ता का 22वां और अछूतानंद दास ‘चमार’ का सबसे अंतिम 48वां स्थान आया ।
इसके साथ ही बंगाल का अछूतानंद दास ‘चमार’पहला I.A.S.बना। लिखित परीक्षा में अछूतानंद दास’ चमार ने 613 अंक लेकर प्रथम स्थान लिया, एन. कृष्णन ने 602 और ए. गुप्ता को 449 अंक मिले।
300 marks interview जातिवादियो द्वारा लिया गया । जातिवादियो ने अछूतानंद दास को केवल 110 अंक ही दिए व् एन. कृष्णन को 260 अंक और ए. गुप्ता को 265 अंक दिये ।
सामान्य ज्ञान की 100 अंकों की लिखितपरीक्षा में अछूतानंद दास ने 79अंक लेकर टॉप किया.व् एन. कृष्णन ने 69अंक और ए. गुप्ता केवल 40अंक ही प्राप्त कर सका।
यदि इंटरव्यू जातिवादियो द्वारा नही लिया जाता या फिर इंटरव्यू होता ही ना तो अछूतानंद दास स्वतंत्र भारत की पहली I.A.S.परीक्षा का टाँपर होता ।
एन. कृष्णन का 48 वां स्थान और अनिरुध गुप्ता कभी भी I.A.S. न बनता ।
इस तरह, एन. कृष्णन को कुल = 931 अंक ; ए. गुप्ता को कुल = 754 अंक तथा अछूतानंद दास को कुल = 802 अंक प्राप्त हुए ।
इमानदारी से यह देखो कि, यदि 'अछूतानंद दास'चमार' को भी दूसरों की तरह इंटरव्यू में 250अंक दिए जाते तो उसे ( 613+250+79 = 942 ) 942अंक मिलते तो वह ही टापर होता तथा कथित 'मेरिट' कैसे बनती है ? उसका यह केवल एक उदाहरण मात्र है
"तुम अगर बिछड़े रहो तो चंद कतरे ही फकत !!
तुम अगर मिल जाओ तो बिफरा हुआ तूफान हो!!
पुरे देश की नोकरशाही पर इन्होंने जबरिया कब्जा जमा रखा हे।जिसे हमसब को मिलजुलकर अब हटाना ही होगा ।
जय नन्द।जय भीम।जय मूलनिवासी।जय भारत।
राजनीतिक:- धर्म,जाति, व्यक्ति आधारित पार्टिया ही मूल समस्याओं का हल नही है…
भारतीय संविधान में 6 मूलभूत अधिकार
भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण संविधान है । इस संविधान में 6 मूलभूत अधिकार हैं । और 395 धारायें हैं । उनमें से 12 से 35 तक के धाराएँ मूलभूत अधिकार हैं ।
1947 में भारत की तथाकथित आजादी के बाद ऐसा एक महत्वपूर्ण संविधान जो 1950 की 26 जनरी में लागु हुआ, ऐसा एक संविधान जिस में ऐसे 6 मूलभूत अधिकार हैं इस के लिए दुनिया के बहुत सारे देशों ने खुशी जताई ।संविधान के 6 मूलभूत अधिकार यह हैं ।
(1)समता का अधिकार ।
(2) स्वतंत्रता का अधिकार ।
(3) धर्म का स्वतंत्रता का अधिकार ।
(4) संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
(5) शोषण के विरुद्ध अधिकार ।
(6) संविधानिक उपचारों का अधिकार
ऊपर बताया गया 6 मूलभूत अधिकारों के बारे में एक नजर डाला जाए तो हम देख सकते हैं—
(1) " समता का अधिकार ।" दुनिया के बड़े बड़े विद्वान लोग कहते हैं कि -"आदमी जन्म के आधार पर बिल्कुल बराबर है ।"
दुनिया में यह बात बेबुनियाद साबित हुई है कि, किसी का खून पाक है पवित्र है , और किसी का खून नापाक है । यह बात सरासर झूट और ढोंग-पाखंडी है । फिर भी यह बात भारत में चलती है । प्राचीन काल में कुछ स्वार्थी और बदमाश लोग अपनी ताकत के बल पर ऐसी झूठी बात का प्रचार किया था कि ब्राह्मणों का खून पवित्र है । शूद्रे का खून अपवित्र है ।यह समता का सिद्धान्त का विरोध करनेवाली सोच है । जन्म के आधार पर ऊँच-नीच, भेद-भाव, वर्णव्यस्था, जात-पात यह सारी चीजें दुनिया के किसी देश में नहीं है । 'Logic' के आधार पर यह सिद्धान्त गलत है, यह तर्कसंगत नहीं है । भारत का संविधान इस भेदभाव को मिटा कर समता का सिद्धान्त को लागु किया है ।
(2) " स्वतंत्रता का अधिकार "— स्वतंत्रता, आजादी हर इनसान की मूलभूत अधिकार है । दार्शनिक रूशो ने कहा है - " हर इनसान आजाद होकर ही जन्म लेता है मगर आज हर जगह पर वह जंजीर से बंधे हुए गुलाम बना हुआ है ।" आजाद का मतलब है, मैं दूसरा किसी का कब्जा में नहीं हूं । 1947 से पहले हमलोग अंग्रेजों के गुलाम थे । दुनिया में गुलामों पर तरह तरह का जुलम अत्याचार होता है । अगर हम आजाद हो गये तो हम पर अब जुलम नहीं होगा । लेकिन हकीकत यह है कि हम पर जुलम - अत्याचार चल रहा है ।
(3) धर्म का स्वतंत्रता का अधिकार । इसका मतलब यह है कि आजाद भारत में प्रत्येक व्यक्ति अपना अपना धर्म पालन कर सकता है, अपना अपना धर्म का प्रचार कर सकता है । हिन्दु हो या मुसलमान हो या और किसी भी धर्म के माननेवाले हो, हर आदमी निर्भय हो कर अपना धर्म का पालन कर सकता है । धर्म के बारे में सरकार किसी तरह का पक्षपात नहीं कर सकती है । धर्म के नाम पर किसी आदमी पर जुलम नहीं हो सकता ।
(4) संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार- इसका मतलब यह है कि, देश के तमाम नागरिकों को सरकारी खर्चा से शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी । संविधान का 45 नं धारा में कहा गया है— " राज्य, इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक, नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा ।" लेकिन हकीकत यह है कि देश के करीब आधा जनसंख्या अनपढ़ है । एक बात समझना जरूरी है कि ( ऊच्च शिक्षा, higher educated ) पढ़े लिखे लोग और साक्षर लोग दोनों में बहुत बड़ा अन्तर है । हमारी सरकार तमाम लोगों को साक्षर ही नहीं बना पाये है । वह कैसे सब लोगों को higher educated बना पायेगी ? अगर हम सिर्फ साक्षर होंगे और हायर एडुकेटेड नहीं होंगे तो हम उन पढ़ेलिखे ( higher educated ) ब्राह्मणों के पीछे पीछे चलने लायक जरूर होंगे मगर अपने दिमाग से सोचने और सिद्धांत लेने के लायक नहीं हो सकते । जैसा अब चल रहा है ।
(5) शोषण के विरुद्ध अधिकार । इसका मतलब यह है कि - आजाद भारत में कोई भी किसी नागरिक को शोषण नहीं करेगा, अगर किसी ने किसी को शोषण किया है तो वह गैर कानूनी होगी । सरकार की जिम्मेदारी होगी कि अगर किसी ने किसी को शोषण किया हो या शोषण कर रहा हो तो सरकार ऐसा कानून बनाएगी कि शोषण करनेवाले को सख्त सजा जरूर मिलेगी । लेकिन हम देख सकते हैं कि हमारे देश में सामाजिक तौर पर, धर्म के नाम पर या राजनीति के नाम पर बहुत जोरदार शोषण चल रहा है । हर चीज की कीमत बहुत ही बड़ रही है ।
(6) सांविधानिक उपचारों का अधिकार । यानी देश और समाज में जितनी समस्यायें पैदा होगी तमाम समस्याओं को कानून के अनुसार हल करना होगा । जनता और सरकार दोनों मिलकर ही सारी समस्याओं को निपटने की कोशिश करनी होगी । अगर जरूरत पड़े तो समाधान करने के लिए न्यायालय तक भी जाना पड़ेगा । देश में लोकतन्त्र है इसलिए जनता को और ज्यादा सचेत होने की जरूरत है ।
ऊपर जो बताया गया है कि, 1947 से हमारा भारत आजाद है और हमारा संविधान में जनता के लिए 6 मूलभूत अधिकार लिखा हुआ है । फिर भी आजादी का 68 साल बाद भी हमारे Sc, St, Obc, & Minorities 85% मूलनिवासी लोगों को हक अधिकार नहीं मिला । 6 मूलभूत अधिकारों में से 1 भी अधिकार हमें पूरा के पूरा नहीं मिला । हमारा संविधान प्रणेताओं ने ऐसी आशा की थी कि आजादी के बाह थोड़े ही दिनों के अन्दर हमारे देशवासी को हक व अधिकार जरूर मिलेगा । लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।
( a ) आज भी हमारा भारत में जात-पात, वर्णव्यवस्था, जाति व्यवस्था वर्तमान है,। मतलब समता नहीं आया है ।
(b) आज तक हमारा देश के गरीब, लाचार, अनपढ़ लोग मालदार लोगों के इशारे पर चलते हैं और चुनाव में उनके रूपये के बदले में मालदार लोगों के उम्मीदवारों को विजयी बना देते हैं । मतलब देश में स्वतंत्रता नहीं है ।
(c) धर्म के बारे में क्या कहा जाए ? क्यौं कि 1992 में सरकार, पुलिस, प्रशासन के सामने ही 500 साल की पुरानी बाबरी मसजिद को तोड़ दी गयी । हिंदु - मुसलिम के नाम पर फसाद भड़काया जाता है और बहुत सारे इनसान का खून बहाया जाता है ।
(d) शिक्षा का हाल बहुत ही बदहाल है । जनसंख्या का आधा हिस्सा अनपढ़ है । मतलब higher educated नहीं हैं । लोग अनपठ़ है इसलिए तो देश में Logic से ज्यादा ब्राह्मणों का Magic चलता है ।
(e) शोषण तो बिजनेस मैन करते हैं, और गैर सरकारी
या सरकारी हर जगह शोषण बहुत जोरशोर से कर रहे हैं ।
(f) देश में बिधायिका है, कार्यपालिका है, न्यायपालिका है और मिडिया है । आजाद भारत में लोकतन्त्र के 4 पीलार रहते हुए हमारा किसी समस्या का समाधान नहीं हो रहा है । सरकार है लेकिन हमारे लिए कोई काम नहीं कर रही है ।
अब हम क्या करें ? हम लोगों को दुबारा सोचना होगा- कि देश हमारा है, हम इसम देश के मूलनिवासी हैं, देश में हमारी संख्या 85% है, फिर भी हमारी स्थिति बहुत बद्तर एव असमता मय है। हम भारत में मनुवाद से आज़ादी चाहते हैं, समता का भाव समाज की रग-रग में चाहते हैं। कहने को तो हम धर्म निर्पेक्ष हैं, परंतु व्यवहारिकता में असहिष्णु ही प्रकट नजर आते हैं।
जय भीम। जय नन्द।जय मूलनिवासी।जय भारत।नमो बुद्धाय
संविधान का मतलब विचारधारा जिसपर पूरा देश का कार्य भार व वहॉ के लोग एक नियम पर चले।देश बिचार पर नहीं चलता कारन बिचार अलग अलग मनुष्य का अलग अलग हो सकता है।परंतु बिचारधारा एक होती है।जो पूर्वजो के द्वारा बनाये हुए होते है।जो किसी भी देश का अपना होता है।
आज भारत के संबिधान को लेकर वैदिक ब्राह्मण (यूरेशियन शुद्र)हिन्दू संगठन बनाकर जोर जोर से चिल्लाता है कि भारत का संविधान में भारत के लिए कुछ नहीं है।यह दूसरे देश का काँपी राईट है।इसे बदल देनी चाहिए।
समीक्षा होनी चाहिए।उसके सामर्थन में भारतीय मूलनिवासी जो आरएसएस का झोला,डंडा व झंडा टांगने बाले मजदुर है सामर्थन करता है। नन्द वंश के लोग तो दो कदम आगे बढ़कर चिल्लाता है कि संविधान हमारे लिए क्या किया है।हम जय भीम क्यों कहे। तो सुनो आज जो मुह फाड़कर बोल रहे हो व चिल्ला रहे हो वह बाबा साहब जी के संविधान की देंन है।रही बात कॉपी राईट की तो वो भी समझ लेना चाहिए।भारतीय मूलनिवासी के लिए संविधान सर्व प्रथम अर्हत महाथेर बिनयधर उपाली नाई जी ने तथागत भगवान बुद्ध के द्वारा बनाये गाये संघ को समर्पित किये थे।जो सरल सुन्दर व प्रकृति धर्म के अनुरूप था। उसी संविधान को भारत के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट महापद्म नन्द जी ने अपने केंद्रीय शासन प्रणाली में लागू किये थे।उसी संविधान को देबानप्रिय चक्रवर्ती सम्राट अशोक जो नाई वंश के थे,पुरे विश्व को समर्पित किये थे।जिसके कारण भारत विश्व गुरु से नवाजा गया था।भारत जब गुलाम वैदिक ब्राह्मण(यूरेशियाई शुद्र)से हो गया तब भारत में मनु का संविधान लागू कर भारत के संविधान को जला दिया।भारतीय लोग कुत्ते से भी बदतर जिंदगी जीने लगे।भारत के इतिहास को मुगलो से मिलकर जला दिया।भारत में अपने मनु के संविधान को आज भी लागू करने के लिए ब्याकुल है।जब भारत में मूलनिवासी का संविधान का नामो निशान नहीं रहने दिया।जिससे भारतीय मूलनिवासी कंफ्यूज्ड होकर अपने को वैदिक आर्य समझने लगे।
अब संविधान कोई उपन्यास तो है नहीं जो मन में आया लिख दिया पुरे भारतीय मूलनिवासियों को लेकर चलनां था।वैदिक ब्राह्मण को छोड़ कर।बाबा साहब ने सम्राट अशोक द्वारा दिए गए बिचारधारा पर जो देश चल रहा था।उस संविधान को अलग अलग देशो से लेकर भारतीय मूलनिवासी के लिए संविधान लिखे।ये वही संविधान है।जो अर्हत महाथेर उपाली नाई जी ने संघ को दिए थे।अब अपने वंश पर गर्व करते हो तो अपने वंशजो द्वारा बनाया हुआ देश जो एक विशाल देश था । ये यूरेशियन शुद्रो के कायरता के बजह से छोटा हो गया है।फिर भी जो कुछ भी बचा है बचा लो।उसी तरह संविधान भी अपने पुरखों के द्वारा बनाया गया है।इसे सुरक्षा कर अपने भविष्य को बचा लो ।नहीं तो आपके व आपके परिवार जो संविधान के बजह से मन सम्मान की जिंदगी जी रहा है।वैदिक लोग रहने नहीं देगा।आगे आपकी मर्जी।जय भीम । जय नन्द जय भारत।
1. भारत के संविधान को बिदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मण आरएसएस संगठन से रक्षा करना।
2.भारतीय मूलनिवासी के छोटे छोटे संघ मिलाकर कॉमन मिनिमम प्रोग्राम व पंचशील ध्वज के नीचे काम करना।
3.महासांघ का पंचशील ध्वज गुरु के सामान है।इससे जुड़ने बाले संगठन का भी ध्वज एक माना जायेगा।
4. भारतीय मूलनिवासी का धर्म व विचारधारा प्रकृति धर्म के अनुरूप है।दूसरे
दूसरे धर्म के बारे में महासांघ बिचार नहीं करती है।
5.वैदिक ब्राह्मण धर्म ने महिलाये पर बहुत अत्याचार हुआ है।इसलिए प्रकृति धर्म के अनुसार महिलाए का मान सम्मान स्वाभिमान के लिए बिचार होनी चाहिए।महिलाए को गांव गांव स्वं सहायता समूह बनाकर शसक्त होने पर विचार होनी चाहिए।
6.भारतीय मूलनिवासी के गांव के प्रत्येक जाती को मिलकर संगठन बनाना चाहिए।
भारतीय मुलनिवासि सेवा महासांघ से निवेदन है कि जितने भी भातीय मूलनिवासी अलग अलग संगठन बनाकर समाज का सेवा कर रहे है।इससे मूलनिवासी का संपूर्ण भलाई नहीं हो सकती है।सभी मिलकर क्रांति करना होगा तभी भविष्य सुन्दर बनेगा।
ब्राहमण बणिया की मेरिट कैसे बनती है ?
1950 से 2017 तक कुछ नही बदला। योग्यजन पर आज भी अयोग्य राज कर रहे हे
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अछूतानंद दास- 'चमार' को भी दूसरों की तरह, इंटरव्यू में अंक दिए जाते तो वह topper होता ।
आईये देखते हैं कैसे --
1950 में संघ लोक सेवा आयोग( UPSC ) दिल्ली, ने स्वतंत्र भारत में प्रथम I.A.S.परीक्षा आयोजित की इसमें एन. कृष्णन प्रथम व अनिरुध गुप्ता का 22वां और अछूतानंद दास ‘चमार’ का सबसे अंतिम 48वां स्थान आया ।
इसके साथ ही बंगाल का अछूतानंद दास ‘चमार’पहला I.A.S.बना। लिखित परीक्षा में अछूतानंद दास’ चमार ने 613 अंक लेकर प्रथम स्थान लिया, एन. कृष्णन ने 602 और ए. गुप्ता को 449 अंक मिले।
300 marks interview जातिवादियो द्वारा लिया गया । जातिवादियो ने अछूतानंद दास को केवल 110 अंक ही दिए व् एन. कृष्णन को 260 अंक और ए. गुप्ता को 265 अंक दिये ।
सामान्य ज्ञान की 100 अंकों की लिखितपरीक्षा में अछूतानंद दास ने 79अंक लेकर टॉप किया.व् एन. कृष्णन ने 69अंक और ए. गुप्ता केवल 40अंक ही प्राप्त कर सका।
यदि इंटरव्यू जातिवादियो द्वारा नही लिया जाता या फिर इंटरव्यू होता ही ना तो अछूतानंद दास स्वतंत्र भारत की पहली I.A.S.परीक्षा का टाँपर होता ।
एन. कृष्णन का 48 वां स्थान और अनिरुध गुप्ता कभी भी I.A.S. न बनता ।
इस तरह, एन. कृष्णन को कुल = 931 अंक ; ए. गुप्ता को कुल = 754 अंक तथा अछूतानंद दास को कुल = 802 अंक प्राप्त हुए ।
इमानदारी से यह देखो कि, यदि 'अछूतानंद दास'चमार' को भी दूसरों की तरह इंटरव्यू में 250अंक दिए जाते तो उसे ( 613+250+79 = 942 ) 942अंक मिलते तो वह ही टापर होता तथा कथित 'मेरिट' कैसे बनती है ? उसका यह केवल एक उदाहरण मात्र है
"तुम अगर बिछड़े रहो तो चंद कतरे ही फकत !!
तुम अगर मिल जाओ तो बिफरा हुआ तूफान हो!!
पुरे देश की नोकरशाही पर इन्होंने जबरिया कब्जा जमा रखा हे।जिसे हमसब को मिलजुलकर अब हटाना ही होगा ।
जय नन्द।जय भीम।जय मूलनिवासी।जय भारत।
राजनीतिक:- धर्म,जाति, व्यक्ति आधारित पार्टिया ही मूल समस्याओं का हल नही है…
भारतीय संविधान में 6 मूलभूत अधिकार
भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण संविधान है । इस संविधान में 6 मूलभूत अधिकार हैं । और 395 धारायें हैं । उनमें से 12 से 35 तक के धाराएँ मूलभूत अधिकार हैं ।
1947 में भारत की तथाकथित आजादी के बाद ऐसा एक महत्वपूर्ण संविधान जो 1950 की 26 जनरी में लागु हुआ, ऐसा एक संविधान जिस में ऐसे 6 मूलभूत अधिकार हैं इस के लिए दुनिया के बहुत सारे देशों ने खुशी जताई ।संविधान के 6 मूलभूत अधिकार यह हैं ।
(1)समता का अधिकार ।
(2) स्वतंत्रता का अधिकार ।
(3) धर्म का स्वतंत्रता का अधिकार ।
(4) संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
(5) शोषण के विरुद्ध अधिकार ।
(6) संविधानिक उपचारों का अधिकार
ऊपर बताया गया 6 मूलभूत अधिकारों के बारे में एक नजर डाला जाए तो हम देख सकते हैं—
(1) " समता का अधिकार ।" दुनिया के बड़े बड़े विद्वान लोग कहते हैं कि -"आदमी जन्म के आधार पर बिल्कुल बराबर है ।"
दुनिया में यह बात बेबुनियाद साबित हुई है कि, किसी का खून पाक है पवित्र है , और किसी का खून नापाक है । यह बात सरासर झूट और ढोंग-पाखंडी है । फिर भी यह बात भारत में चलती है । प्राचीन काल में कुछ स्वार्थी और बदमाश लोग अपनी ताकत के बल पर ऐसी झूठी बात का प्रचार किया था कि ब्राह्मणों का खून पवित्र है । शूद्रे का खून अपवित्र है ।यह समता का सिद्धान्त का विरोध करनेवाली सोच है । जन्म के आधार पर ऊँच-नीच, भेद-भाव, वर्णव्यस्था, जात-पात यह सारी चीजें दुनिया के किसी देश में नहीं है । 'Logic' के आधार पर यह सिद्धान्त गलत है, यह तर्कसंगत नहीं है । भारत का संविधान इस भेदभाव को मिटा कर समता का सिद्धान्त को लागु किया है ।
(2) " स्वतंत्रता का अधिकार "— स्वतंत्रता, आजादी हर इनसान की मूलभूत अधिकार है । दार्शनिक रूशो ने कहा है - " हर इनसान आजाद होकर ही जन्म लेता है मगर आज हर जगह पर वह जंजीर से बंधे हुए गुलाम बना हुआ है ।" आजाद का मतलब है, मैं दूसरा किसी का कब्जा में नहीं हूं । 1947 से पहले हमलोग अंग्रेजों के गुलाम थे । दुनिया में गुलामों पर तरह तरह का जुलम अत्याचार होता है । अगर हम आजाद हो गये तो हम पर अब जुलम नहीं होगा । लेकिन हकीकत यह है कि हम पर जुलम - अत्याचार चल रहा है ।
(3) धर्म का स्वतंत्रता का अधिकार । इसका मतलब यह है कि आजाद भारत में प्रत्येक व्यक्ति अपना अपना धर्म पालन कर सकता है, अपना अपना धर्म का प्रचार कर सकता है । हिन्दु हो या मुसलमान हो या और किसी भी धर्म के माननेवाले हो, हर आदमी निर्भय हो कर अपना धर्म का पालन कर सकता है । धर्म के बारे में सरकार किसी तरह का पक्षपात नहीं कर सकती है । धर्म के नाम पर किसी आदमी पर जुलम नहीं हो सकता ।
(4) संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार- इसका मतलब यह है कि, देश के तमाम नागरिकों को सरकारी खर्चा से शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी । संविधान का 45 नं धारा में कहा गया है— " राज्य, इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक, नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा ।" लेकिन हकीकत यह है कि देश के करीब आधा जनसंख्या अनपढ़ है । एक बात समझना जरूरी है कि ( ऊच्च शिक्षा, higher educated ) पढ़े लिखे लोग और साक्षर लोग दोनों में बहुत बड़ा अन्तर है । हमारी सरकार तमाम लोगों को साक्षर ही नहीं बना पाये है । वह कैसे सब लोगों को higher educated बना पायेगी ? अगर हम सिर्फ साक्षर होंगे और हायर एडुकेटेड नहीं होंगे तो हम उन पढ़ेलिखे ( higher educated ) ब्राह्मणों के पीछे पीछे चलने लायक जरूर होंगे मगर अपने दिमाग से सोचने और सिद्धांत लेने के लायक नहीं हो सकते । जैसा अब चल रहा है ।
(5) शोषण के विरुद्ध अधिकार । इसका मतलब यह है कि - आजाद भारत में कोई भी किसी नागरिक को शोषण नहीं करेगा, अगर किसी ने किसी को शोषण किया है तो वह गैर कानूनी होगी । सरकार की जिम्मेदारी होगी कि अगर किसी ने किसी को शोषण किया हो या शोषण कर रहा हो तो सरकार ऐसा कानून बनाएगी कि शोषण करनेवाले को सख्त सजा जरूर मिलेगी । लेकिन हम देख सकते हैं कि हमारे देश में सामाजिक तौर पर, धर्म के नाम पर या राजनीति के नाम पर बहुत जोरदार शोषण चल रहा है । हर चीज की कीमत बहुत ही बड़ रही है ।
(6) सांविधानिक उपचारों का अधिकार । यानी देश और समाज में जितनी समस्यायें पैदा होगी तमाम समस्याओं को कानून के अनुसार हल करना होगा । जनता और सरकार दोनों मिलकर ही सारी समस्याओं को निपटने की कोशिश करनी होगी । अगर जरूरत पड़े तो समाधान करने के लिए न्यायालय तक भी जाना पड़ेगा । देश में लोकतन्त्र है इसलिए जनता को और ज्यादा सचेत होने की जरूरत है ।
ऊपर जो बताया गया है कि, 1947 से हमारा भारत आजाद है और हमारा संविधान में जनता के लिए 6 मूलभूत अधिकार लिखा हुआ है । फिर भी आजादी का 68 साल बाद भी हमारे Sc, St, Obc, & Minorities 85% मूलनिवासी लोगों को हक अधिकार नहीं मिला । 6 मूलभूत अधिकारों में से 1 भी अधिकार हमें पूरा के पूरा नहीं मिला । हमारा संविधान प्रणेताओं ने ऐसी आशा की थी कि आजादी के बाह थोड़े ही दिनों के अन्दर हमारे देशवासी को हक व अधिकार जरूर मिलेगा । लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।
( a ) आज भी हमारा भारत में जात-पात, वर्णव्यवस्था, जाति व्यवस्था वर्तमान है,। मतलब समता नहीं आया है ।
(b) आज तक हमारा देश के गरीब, लाचार, अनपढ़ लोग मालदार लोगों के इशारे पर चलते हैं और चुनाव में उनके रूपये के बदले में मालदार लोगों के उम्मीदवारों को विजयी बना देते हैं । मतलब देश में स्वतंत्रता नहीं है ।
(c) धर्म के बारे में क्या कहा जाए ? क्यौं कि 1992 में सरकार, पुलिस, प्रशासन के सामने ही 500 साल की पुरानी बाबरी मसजिद को तोड़ दी गयी । हिंदु - मुसलिम के नाम पर फसाद भड़काया जाता है और बहुत सारे इनसान का खून बहाया जाता है ।
(d) शिक्षा का हाल बहुत ही बदहाल है । जनसंख्या का आधा हिस्सा अनपढ़ है । मतलब higher educated नहीं हैं । लोग अनपठ़ है इसलिए तो देश में Logic से ज्यादा ब्राह्मणों का Magic चलता है ।
(e) शोषण तो बिजनेस मैन करते हैं, और गैर सरकारी
या सरकारी हर जगह शोषण बहुत जोरशोर से कर रहे हैं ।
(f) देश में बिधायिका है, कार्यपालिका है, न्यायपालिका है और मिडिया है । आजाद भारत में लोकतन्त्र के 4 पीलार रहते हुए हमारा किसी समस्या का समाधान नहीं हो रहा है । सरकार है लेकिन हमारे लिए कोई काम नहीं कर रही है ।
अब हम क्या करें ? हम लोगों को दुबारा सोचना होगा- कि देश हमारा है, हम इसम देश के मूलनिवासी हैं, देश में हमारी संख्या 85% है, फिर भी हमारी स्थिति बहुत बद्तर एव असमता मय है। हम भारत में मनुवाद से आज़ादी चाहते हैं, समता का भाव समाज की रग-रग में चाहते हैं। कहने को तो हम धर्म निर्पेक्ष हैं, परंतु व्यवहारिकता में असहिष्णु ही प्रकट नजर आते हैं।
जय भीम। जय नन्द।जय मूलनिवासी।जय भारत।नमो बुद्धाय
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