Thursday 2 March 2017

मोदी का अंबानी सफ़रनामा-

मोदी का अंबानी सफ़रनामा-
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बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर आपका ध्यान खींच रहा हूँ । 02 मिनट से अधिक का समय नही लगेगा, पढ़ जरूर लीजिएगा
क्योकि बात वोट की नही देशहित से जुड़ी है।
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      प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिलायंस "JIO "  के विज्ञापन में दिखने के क्या मायने है ..देश का जनमानस यह धीरे-धीरे समझने लगा है । इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया के बनाए तिलिस्म के भरोसे नरेंद्र मोदी और भाजपा की यह एक सोची-समझी रणनीति थी कि इस देश की जनता को जब चाहे मूर्ख बनाया जा सकता है और इसी अतिआत्मविश्वास  (over confidence) में नरेंद्र मोदी भारी गलती कर गए और अपने महिमामंडन के नशे में ये यह तक भूल गए कि उनकी प्राथमिकता लगातार घाटे में जा रहे BSNL को संभालना है ...न कि रिलायंस की 4G सिम बेचना ।

अंबानी और अडानी जैसे फिरकापरस्त उद्योगपतियों के पैसे पर अपनी राजनीति चमका कर खुद को भारत माँ का लाल बताने वाले देश के धुरंधर प्रधानमंत्री एक के बाद एक हर क्षेत्र, हर दिशा में वर्षों से कार्यरत सरकारी ढांचों और उपक्रमों को ध्वस्त कर अपनी भारत माँ को चंद उद्योगपतियों के हाथों बेचने पर आमादा है ।

टेलीकॉम सेक्टर के जानकार ये भी संभावना जताते हैं कि जल्द ही BSNL स्वयं के लिए स्पेक्ट्रम लेने की बजाय इसी रिलायंस के स्पेक्ट्रम से शेयरिंग प्राप्त करेगा । यानि कि अब BSNL का ब्रॉडबैंड और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं रिलायंस से उधार लेकर चलेगीं ।

लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते है कि टेलीकॉम सेक्टर पहला ऐसा सेक्टर नहीं है जिसमें मोदी सरकार ने रिलायंस के प्रति अपनी गहरी स्वामिभक्ति का परिचय दिया हो । आपको बताते चलूं कि ऐसी कई करतूतें मोदी सरकार पिछले दो साल में एक बार नहीं कई बार कर चुकी है चाहे वो डिफेन्स में FDI लागू होने पर सरकार की तरफ से लाइज़निंग करने के लिए रिलायंस को नियुक्त करना हो या फिर मोदी के PM बनने के 4 महीने के भीतर ही रिलायंस के देश भर में बंद पड़े 19 हज़ार से ज़्यादा पेट्रोल पम्प्स का खुल जाना हो ।

ऐसा ही एक जिन्दा उदाहरण आपको मिलेगा ONGC के मामले में ।

पिछले वित्तीय वर्ष में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत सरकार के एक अति  महत्वपूर्ण उपक्रम तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ONGC) को दो बड़े झटके देते हुए उसे इस दयनीय हाल में ला दिया है जहाँ से शायद आने वाले दस सालों के अंदर ONGC का नामोनिशान ही मिट जाएगा ।

 पहले झटके के तौर पर PM मोदी ने ONGC में निजी निवेश को मंज़ूरी दे दी और इसमें निवेश किया उनके आका मुकेश अंबानी ने ।

इसमें गौर करने वाली बात यह है कि ONGC भारत सरकार के लिए एक constant profit making body था, यानि उसकी वित्तीय स्थिति में ऐसी कहीं भी कोई समस्या नहीं जिसके चलते निजी निवेश से धन जुटाने की ज़रूरत पड़े । देखते ही देखते एक पुराने और लगातार लाभ देने वाले सरकार के इस उपक्रम से बिना कुछ किए कराए भारी मुनाफा कमाने लगी रिलायंस ! और बहाना ये बनाया गया कि इससे सरकारी खजाने को एकमुश्त 1600 करोड़ रूपए मिले ।

मित्रो यह 1600 करोड़ वो रकम है जिसका एक चौथाई यानि 400 करोड़ तो PM मोदी की एक साल की सुरक्षा में खर्च हो जाता है यानि सरकार का खजाना अचानक से कुबेर का खजाना हो गया हो ऐसी भी कोई बात नहीं थी ।

PM मोदी यहीं नहीं रुके, इस मंज़ूरी के बाद उन्होंने ONGC को और बड़ा तगड़ा झटका दिया और ONGC के सबसे बड़े सप्लाई हेड्स या फिर साधारण भाषा में यूं कहे कि सबसे बड़े ग्राहक में से एक भारतीय रेलवे को डीज़ल सप्लाई करने का काम ONGC से छीनकर मोदी ने अपने आका मुकेश अम्बानी की कंपनी "रिलायंस पेट्रोलियम " को दे दिया । अब ONGC दो तरह से पीटा जा रहा है, पहला जो काम उसके पास है उसमें से कमाए हुए पैसे में भी मुकेश अंबानी का हिस्सा दे और पुराने ग्राहकों को भी एक-एक करके रिलायन्स को सौंपा जा रहा है और ज़ाहिर है इसमें ONGC को तो कोई हिस्सा मिलना नहीं है ।

अब रही बात कि ये सारी जानकरियाँ सार्वजानिक क्यों नहीं होती ।

इस समय देश में हिंदी और गैरहिन्दी भाषी लगभग 90 से ज़्यादा चैनल्स है जिन्हें 24 hour broadcast की अनुमति प्राप्त है । ये 90 से ज़्यादा चैनल्स आज से तीन साल पहले तक  39 अलग-अलग मीडिया ग्रुप्स द्वारा संचालित किए जाते थे । आपको ये जानकर यह आश्चर्य होगा कि चैनल्स की संख्या वही है लेकिन संचालन करने वाले ग्रुप्स 39 से सिर्फ 21 रह गए है ।

ऐसा इसलिए क्योंकि इन तीन सालों में network18 नामक एक मीडिया ग्रुप ने 18 ग्रुप्स को खरीद कर अधिगृहित कर लिया । और इस network18 ग्रुप के मालिक का नाम है " मुकेश अंबानी"

यानि जो न्यूज़ चैनल्स पर हर शाम आपको गाय, गोबर, गौमूत्र, लवजिहाद, ISIS, पाकिस्तान, चीन और मंदिर मस्जिद दिखाया जाता है जिसे देखकर आपका खून खौल उठता है वो कोई जोश नहीं बल्कि एक तरह का ड्रग्स है जो आपकी भावनात्मक नसों में घोला जा रहा है ताकि आप के अन्दर  अपने ही देश को लूटने वाले चंद गद्दार तथाकथित राष्ट्रवादियों और उद्योगपतियों  को देखने और देखकर प्रतिकार करने की क्षमता देश के लोगों में न रह पाए ।

यूँ समझ लीजिए ईस्ट इंडिया कंपनी-II का जन्म इस बार भारत के अंदर ही हुआ है और इसे सुरक्षा देने वाली "खाकी चड्डी" पहनी पुलिस तो है ही ।

नोट : अगर मेरी बात पर विश्वास नही हो रहा है, तो किसी ONGC और रेलवे में ऊंचे पद पर जाब करने वाले से पूंछ लीजिएगा,यकीन हो जाएगा।

देशहित में इस विषय को अधिक से अधिक अपने साथियों तक पहुचाएं
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संकलन:-

ललित कुमार
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारत बचाओ आंदोलन
07694009442


अभी तक यह हुआ है

1998 में भारत में बीजेपी की अल्पमत सरकार बनी।

1999 में अटल बिहारी वाजपेयी बस लेकर लाहौर जाते हैं। प्यार की पींगें बढ़ाते हैं।

उधर पाकिस्तानी सेना कारगिल में घुसपैठ की तैयारी करती रहती है जिसका पता भारत की काबिल इंटेलिजेंस को बिलकुल भी नहीं लगता।

कारगिल की जंग शुरू होती है और भारत में इलेक्शन की सरगर्मी भी।

कारगिल की लड़ाई मई से जुलाई 1999 तक खिंचती है और देश में चुनावी माहौल मजबूत होता है। अटल बिहारी की छवि एक दमदार नेता की बनती है।

भारत के 527 जवान इस जंग में मारे जाते हैं। अटल बिहारी में नेतृत्व में बीजेपी इलेक्शन जीत जाती है।

पाकिस्तान में तख्ता पलट होता है। फौजी जनरल मुशर्रफ राष्ट्रपति बन जाता है और अटल बिहारी वाजपेयी उसको बधाई संदेश भेजते हैं और भारत आने का न्योता देते हैं।

मुशर्रफ भारत आता है, ताजमहल देखता है और लौट जाता है। बीजेपी की सरकार 5 साल पूरे करती है।

फिर खुलासा होता है कि कारगिल जंग के दौरान मारे गए जवानों के लिए जो ताबूत खरीदे गए थे उनमें बीजेपी सरकार में शामिल कुछ लोगों ने घपला किया है।

कुछ साल बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने के दावों के साथ फिर से मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनती है। 

मोदी नवाज शरीफ का जन्मदिन मनाने पहुँचते हैं। बिरयानी खिलाते हैं।

बीजेपी के कार्यकर्ता आईएसआई के लिए जासूसी करते हुए पकड़े जाते हैं।

एबीवीपी के गुंडे एक कॉलेज में हंगामा करते हैं, छात्रों और अध्यापकों को पीटते हैं।

कारगिल में शहीद हुए जवान की बेटी इसका विरोध करती है। एबीवीपी के लोग उसको रेप की धमकियां देते हैं। 

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