Wednesday 1 March 2017

महापुरुषों के प्रति आखिर गद्दारी क्यों...?


*1951 के पहले हमें हमारे ही देश में हमें कभी कहीं कोई भी किसी भी तरह का कोई अधिकार नहीं प्राप्त था और तब तक ब्राम्हणों का कोई भी देवी देवता या भगवान किसी भी तरह की किसी की कोई मदद भी करने नहीं आया था पर संवैधानिक अधिकारों के बाद इन कूड़े कचरे के ढेर काल्पनिक देवी देवता और भगवानों का इन मानसिक विकृत गद्दार गुलामों के यहाँ औचित्य क्या..?,
अपने ही इतिहास और महापुरुषों के प्रति आखिर गद्दारी क्यों...?  *
      बेशक आज देश के मात्र कुछ प्रतिसत बहुजनों में संवैधानिक अधिकारों के तहत कुछ भौतिक संसाधन जरूर बढ़े हों पर अपने ही प्रति गद्दारी और गुलामी में भी बेतहासा वृद्धि हुई है,अगर हम मात्र 30 से 40 वर्ष पूर्व के हालात पर नजर डालें तो पता चलता है कि कहने को तो यह देश तब भी संविधान से चलता था पर असल में हमारे संवैधानिक अधिकारों का मनुवादियों द्वारा पूर्णतया हनन किया जा रहा था,हमें तब भी कोई ज्यादा अधिकार नही मिल पाये थे सरकारी सेवाओं में भी प्रतिनिधित्व (आरक्षण )के नाम पर भी मिलता था "not eligible for this post" और संस्थानों में पड़े हमारे खाली स्थान संवैधानिक कानून को धता बताते हुए सवर्णो द्वारा डंके की चोट पर भरे जाते थे,पर 80 के अंत और 90 के दशक में महामानव मान्यवर कांशीराम नें सरकार को संवैधानिक अधिकार देने के लिए पूरे देश में आंदोलन चलाया और हमे हमारे अधिकार देने के लिए सरकार को भी बाध्य कर दिया फलस्वरूप बहुजनों का छोटे से पड़े पदों पर पहुंचना प्रारम्भ होने लगा और लोगों की स्थिति में सुधार नजर आने लगा ,लेकिन याद रहे यहाँ तक इस हालत में ब्राम्हणों के किसी देवता या भगवानों ने कभी किसी भी बहुजन की कभी कोई मदद नहीं की थी.जो भी मिलना चालू हुआ वह सब संविधान की वजह से.
    पर जैसे ही शूद्रों को संवैधानिक अधिकारों द्वारा भौतिक संसाधन प्राप्त होने लगे इन हरामखोड़ो ने अपने ही इतिहास महापुरुषों और संविधान के प्रति गद्दारी और गुलामी चालू कर दी जिनके मकान बनें उनमें ब्राम्हणी देवी देवताओं और भगवानों के लिए देवालय बनने लगे और जिनके पास मकान उपलब्ध नहीं थे उन्होंने इन्ही ब्राम्हणों द्वारा निर्मित देवी देवताओं और भगवानों के मुर्दाघरों (मंदिरों)में मत्था टेककर मरना और मानसिक गुलाम तथा आर्थिक कंगाल होना शुरू कर दिया स्थिति का फायदा उठाकर काफी हद तक ब्राम्हणों द्वारा लूटने के लिए तथाकथित मंदिरों के दरवाजे भी इन मानसिक विकृत गद्दार  गुलामों के लिए खोल दिए गए,और तब तक इन महामूर्ख,धूर्त,गद्दार,और गुलामों ने यह भी जानना मुनासिब नहीं समझा कि अब तक की उनकी दरिद्रता और गुलामी तथा पतन का कारण यही ब्राम्हणों के काल्पनिक देवी देवता और भगवान थे और उन्हें आजादी दिलाने वाले महापुरुष छत्रपति शिवाजी,ज्योतिबा फुले,छत्रपति साहू महराज,सावित्री बाई फुले,बोधिसत्व बाबासाहब डॉ भीमराव अंबेडकर और महामानव मान्यवर कांशीराम जैसे महापुरुष थे.
    इस तरह इन मानसिक विकृत गद्दार गुलामों के यहाँ पहले भी महापुरुषों के लिए कहीं कभी कोई जगह नही थी और आज भी नहीं थी,सायद इसी का फायदा ब्राम्हणों ने उठाया और इनके एक एक कर संवैधानिक अधिकार काटने शुरू कर दिए जिसका नुकसान इनकी ही आनेवाली संतानों के साथ समूचे समाज को भी भुगतना पड़ेगा,इन मुफ्तखोरों को अधिकार मुफ्त में भीख में मिले थे मुफ्त में ही गँवा दिए लानत है ऐसे गद्दार गुलामों पर,इससे ज्यादा गद्दारी गुलामी और मानसिक विकृति का सबूत भला और क्या दिया जा सकता है...
          जागे हो तो होश में आओ,अपने इतिहास,महापुरुष और अधिकारों को मुफ्त में मिट्टी में मत मिलाओ...
                    "मिशन अम्बेडकर"       

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