संक्रात इस त्यौहार का सच्चा इतिहास
जानलेना का कष्ट करे।
प्राचिन काल में संक्रात और किंक्रात नामक दो ब्राम्हण बहने थी। इन दो कन्याओं के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में ब्राम्हणोने राजा शंकसुर को (बली राजा का नाति) आमेत्रित किया। दोनो बहने गायन एवं नृत्य कला में बहुत कुशल थी। नृत्यगृह में प्रवेश करते ही नूपूर के मंद हलकी आवाज मे तबले के धून और ताल पर नाच रहे थे। राजा के साथ में सभी नृत्य सभा में बैठे लोग मंत्रमुग्ध हो गये थे। नृत्य कक्ष में पहले से दो भाले लाकर रखे थे,नृत्य में खोये हुये देखकर राजा को संक्रांत और किंक्रात इन दोनो लडकीयों ने कोने में रखे हुये भाले को उठाकर दान पट्टे कि तरह घुमाते हुये उन भाले से राजा के इर्दगिर्द घुमते हुये एक ने पेट में और दुसरी ने पीठ से भाला घुसाकर मार डाला और उसका टिका स्वंय के माथे पर लगा दिया। इस वजह से महिलाओ द्वारा माथे पर लाल टिका लगाने की प्रथा प्रारंभ हो गई। वह माथेपर का टिका जो है वह शंकासुर का रक्त चिन्ह है। इस प्रकार से नागो के पूर्वज ब्राम्हणो द्वारा साजिश रचकर हत्या किये एवं उस निमित्य उन्होने आनंदोत्स मनाया जाता है।
बहुतायत लोगोको राक्षस,असुर,दास यह कोईतोभी दूसरे अलग लोग लगते है एवं वे ईश्वर के दुश्मन है, लोगो को तकलिफ देते है ऐसा ब्राम्हण इतिहासकारोंने इतिहास में लिखकर रखा है और वही बहुजन समाज के शिक्षित लोगोने पढकर उसका स्वीकार किया है। सत्य क्या असत्य क्या इसकी सीधी समिक्षा,चिकित्साएवं तर्क करने का प्रयास नही किया गया। आज हम टी.वी.पर दिखाये जाने वाले सिरीयल धारावाहिक रोज देखते है। उसमें देवी देवता इनके जैसे राक्षस,असुरो का वध करते हुये दिखाया जाता है और तब हम तालियां बजाने का काम करते है। सच्चाई यदि पता किया जाये तो राक्षस यह नागवंशीयो कि एक प्रजाती है जो कि समाज की रक्षा करने का कार्य करती थी। सच्चा इतिहास यदि पढ़ा जाय तो समझ मे आ जायेगा जितने भी हिन्दूओ के त्यौहार है वह हमारे पूर्वजो की हत्या करके मनाया गया आनंदोत्सव है। उसके पिदे का कभी भी विचार नही करते और ब्राम्हण त्यौहारो में आनंद मनाने का कार्य करते है।शंकासुर यह बली राजा का नाति था जो कि वह नागवंशी है। यदि आपको जाचना है तो अपनी जन्म कुंडली निकाले तो उसमें अपना वर्ण शुद्र,गण राक्षस,योनी अंत्यज आणि वंश नाग होगा आप अवश्य देखे।
जयभिम नमो बुध्दाय
जानलेना का कष्ट करे।
प्राचिन काल में संक्रात और किंक्रात नामक दो ब्राम्हण बहने थी। इन दो कन्याओं के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में ब्राम्हणोने राजा शंकसुर को (बली राजा का नाति) आमेत्रित किया। दोनो बहने गायन एवं नृत्य कला में बहुत कुशल थी। नृत्यगृह में प्रवेश करते ही नूपूर के मंद हलकी आवाज मे तबले के धून और ताल पर नाच रहे थे। राजा के साथ में सभी नृत्य सभा में बैठे लोग मंत्रमुग्ध हो गये थे। नृत्य कक्ष में पहले से दो भाले लाकर रखे थे,नृत्य में खोये हुये देखकर राजा को संक्रांत और किंक्रात इन दोनो लडकीयों ने कोने में रखे हुये भाले को उठाकर दान पट्टे कि तरह घुमाते हुये उन भाले से राजा के इर्दगिर्द घुमते हुये एक ने पेट में और दुसरी ने पीठ से भाला घुसाकर मार डाला और उसका टिका स्वंय के माथे पर लगा दिया। इस वजह से महिलाओ द्वारा माथे पर लाल टिका लगाने की प्रथा प्रारंभ हो गई। वह माथेपर का टिका जो है वह शंकासुर का रक्त चिन्ह है। इस प्रकार से नागो के पूर्वज ब्राम्हणो द्वारा साजिश रचकर हत्या किये एवं उस निमित्य उन्होने आनंदोत्स मनाया जाता है।
बहुतायत लोगोको राक्षस,असुर,दास यह कोईतोभी दूसरे अलग लोग लगते है एवं वे ईश्वर के दुश्मन है, लोगो को तकलिफ देते है ऐसा ब्राम्हण इतिहासकारोंने इतिहास में लिखकर रखा है और वही बहुजन समाज के शिक्षित लोगोने पढकर उसका स्वीकार किया है। सत्य क्या असत्य क्या इसकी सीधी समिक्षा,चिकित्साएवं तर्क करने का प्रयास नही किया गया। आज हम टी.वी.पर दिखाये जाने वाले सिरीयल धारावाहिक रोज देखते है। उसमें देवी देवता इनके जैसे राक्षस,असुरो का वध करते हुये दिखाया जाता है और तब हम तालियां बजाने का काम करते है। सच्चाई यदि पता किया जाये तो राक्षस यह नागवंशीयो कि एक प्रजाती है जो कि समाज की रक्षा करने का कार्य करती थी। सच्चा इतिहास यदि पढ़ा जाय तो समझ मे आ जायेगा जितने भी हिन्दूओ के त्यौहार है वह हमारे पूर्वजो की हत्या करके मनाया गया आनंदोत्सव है। उसके पिदे का कभी भी विचार नही करते और ब्राम्हण त्यौहारो में आनंद मनाने का कार्य करते है।शंकासुर यह बली राजा का नाति था जो कि वह नागवंशी है। यदि आपको जाचना है तो अपनी जन्म कुंडली निकाले तो उसमें अपना वर्ण शुद्र,गण राक्षस,योनी अंत्यज आणि वंश नाग होगा आप अवश्य देखे।
जयभिम नमो बुध्दाय
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