Wednesday 22 March 2017

सपा हारी क्यों?

हमारे मित्र श्री चंद्रभूषण सिंह यादव जी का बेबाक विश्लेषण पढ़िए जो उन्होंने समाजवादी पार्टी का पदाधिकारी रहते हुए किया है। हमे भी सोचना चाहिए
2017 यूपी असेम्बली इलेक्शन-
                                "सपा हारी क्यों?"...
                                                -( पार्ट-1)
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       यूपी में असेम्बली इलेक्शन 2017 का परिणाम भले ही अनापेक्षित लग रहा हो पर ऐसा होना ही था।मैं तो 2012 के असेम्बली इलेक्शन के बाद हुए नगर निगम/नगर पालिका /नगर पंचायत तथा 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही लगातार कोशिश में था कि समाजवादी पार्टी अपनी मूल लाइन पर आ जाये पर यहां तो हम सब पर विकास और काम बोलता है का भूत चढ़ा हुवा था।वैसे यूपी में जितना विकास और काम विगत पांच वर्ष में हुवा है उतना देश के किसी अन्य सूबे में शायद ही हुवा हो लेकिन वोट केवल विकास के नाम पर नही मिलता है यह हम सबने न माना,न जाना, न स्वीकारा।डा लोहिया कहते थे कि जनता के सामने ताज़ी जलेबियाँ लेकर चुनाव में जाना चाहिए।हमेशा मुद्दे वे कारगर होते हैं जो जनता को तत्काल रिएक्ट करें।
        समाजवादी पार्टी के रणनीतिकार 2012 इलेक्शन जीतने के बाद लगातार गलतियां कर रहे थे।पार्टी न किसी की राय मानने को तैयार थी न किसी को पांच साल में सुनने की फुर्सत थी।पूरी सरकार काम पर भिंडी थी और काम की भी।हमारे मुख्यमंत्री ने न केवल काम बढ़िया किया बल्कि बेदाग रहकर पूरी सहृदयता और शिष्टता से आम जन का दिल जीता लेकिन वोट जुटाने के लिए यह काफी नही होता है, इसे हमारे नेतृत्व ने नही समझा।
        लगातार टीवी चैनलों पर आ रहा है कि मोदी के करिश्माई नेतृत्व ने 1991 के रामलहर को पीछे छोड़ दिया।1991 के रामलहर में भारतीय जनता पार्टी जो नही कर सकी वह मोदी लहर में 2017 में हो गया।मैं 1991 और 2017 के इलेक्शन कम्पेन का साक्षात् गवाह हूँ।1991 में मैं देवरिया/कुशीनगर संयुक्त जनपद (तब केवल देवरिया था) के युवा जनता दल का जिलाध्यक्ष था।मण्डल और कमण्डल की लड़ाई पूरे शबाब पर थी।कोई ऐसा चौक-चौराहा नही था जहां संघ और भाजपा के लोग हिंदुत्व का अफीम घोलने में कोई कोर-कसर छोड़े हों।वीपी सिंह जी मण्डल कमीशन लागू कर सवर्ण जातियों के लिए खलनायक बन चुके थे।मण्डल का जबर्दस्त विरोध तो जयश्रीराम का उद्घोष यूपी ही नही वरन देश को उद्वेलित किये हुए था।
       कार्ल मार्क्स ने कहा है कि "धर्म अफीम है",जिसे भी धर्म का अफीम खिला दीजिये वही बौरा जाएगा।1991 में रामरथ,राम मंदिर निर्माण और कमण्डल को अकेले मण्डल ने 2017 जैसा लहर नही बनने दिया था जबकि वीपी सिंह जी और मुलायम सिंह यादव जी अलग-अलग चुनाव लड़े थे।यूपी में सरकार भले ही भाजपा की बन गयी थी लेकिन 325 एमएलए नही जीत सके थे।73 सांसद भी नही जीत सके थे।मैं स्पष्ट कर दूँ इसका केवल एक कारण था वह था कमण्डल के मुकाबले मण्डल का पूरी मजबूती से खड़े रहना।
       मुझे यह कहने में थोड़ी भी झिझक नही है कि हिंदुत्व का मुकाबला काम,विकास,तरक्की,कन्या विद्याधन,समाजवादी पेंशन,लैपटॉप,स्मार्टफोन,दवाई/पढ़ाई/सिचाई/कर्ज माफी,102/108 मुफ्त ऐम्बुलेंस,1090 वीमेन पावर लाइन,100 यूपी डायल,एक्सप्रेस वे,मेट्रो,सायकिल हाइवे,लायन सफारी,लोहिया आवास,लोहिया/जनेश्वर मिश्र गांव,रीवर फ्रंट,किसान/ब्यापारी/श्रमिक दुर्घटना बीमा आदि से नही हो सकता है क्योंकि अफीम का काट अफीम ही होगा।लोहा ही लोहे को काटेगा।हिंदुत्व का जबाब आरक्षण/प्रतिनिधित्व/भागीदारी/वंचित हितपोषण/मण्डल है जिसे समाजवादी पार्टी ने अपनी पांच साल की सरकार में बड़ी बेदर्दी से रौंद डाला था और खुद को मण्डल/पिछड़ा निरपेक्ष दिखने और अभिजात्य समाज का दुलरुवा बनने का कोई प्रयास नही छोड़ा है।
       समाजवादी पार्टी ने सत्ता में आने के बाद अभिजात्य वर्ग को मंत्रिमंडल में रखने,टिकट देने,पदाधिकारी बनाने और मंत्री पद के ओहदों से नवाजने से लेकर उनकी राय पर चलने का जो कार्य किया वह पिछडो को काफी मर्माहत किया।लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष श्री अनिल यादव जी और सचिव श्री अनिल यादव जी (PCS) ने पीसीएस परीक्षाओं में त्रिस्तरीय आरक्षण लागू किया जिसपर समाजवादी पार्टी को अपने पुरखों की विरासत मानकर इसे प्रोटेक्शन देना चाहिए था लेकिन इस त्रिस्तरीय आरक्षण को समाजवादी पार्टी ने न केवल वापस ले लिया बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे पिछड़े वर्ग के छात्रों को इलाहाबाद से लखनऊ तक आरक्षण विरोधियों से तो पिटवाया ही, सरकार की पुलिस से भी पिटवाया।यही नही मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी ने पिछड़े वर्ग के मेधावी और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों को अपने आवास पर बुलाकर अपमानित कर "जाओ जो करना हो कर लेना" कहते हुए भगा दिया।इलाहाबाद और लखनऊ में ये पिछड़े छात्र जो अधिकारी बनने के दहलीज पर खड़े थे मार खाये,मुकदमो में फँसाये गये पर समाजवादी पार्टी जिसकी आत्मा आरक्षण है,जिसने 1952 में यही नारा लगाके खुद की जमीन बनायी कि "सोशलिस्टों ने बांधी गांठ,पिछड़े पावें सौ में साठ",खुद को 2012 में इस विचारधारा से अलग कर लिया।रंजना बाजपेयी जी के दबाव में जो अब भाजपा से अपने लड़के को चुनाव लड़वाई हैं और सपा से निष्कासित हो चुकी है तथा रेवती रमन सिंह जी  के सुझाव पर अभिजात्य वर्गो का दुलारा बनने के लिए त्रिस्तरीय आरक्षण वापस लेकर खुद के पैर में पहली कुल्हाड़ी समाजवादी पार्टी ने मार ली।इस त्रिस्तरीय ओवर लैपिंग आरक्षण की संवैधानिकता को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्वीकार कर भाजपा शासन में स्वीकृति दे दी है जिसका पिछड़े वर्ग के पिछडो की पार्टी समाजवादी पार्टी ने यूपी में अपने शासन में पूरी बेदर्दी से कत्ल कर डाला।यह ओवरलैपिंग त्रिस्तरीय आरक्षण का विरोध समस्त पढ़े-लिखे पिछड़ों में बहुत ही शिद्दत के साथ महसूस किया गया भले ही समाजवादी पार्टी ने इसे सत्ता के शिखर पर बैठे होने के नाते न समझा हो।
       पीसीएस में त्रिस्तरीय आरक्षण के विरोध ने समाजवादी पार्टी के पिछड़ा विरोधी कार्याचरण को पिछडो में दर्शाया ही ,हद तो तब हो गयी जब भाजपा और कांग्रेस जैसी सवर्ण समर्थक मानी जाने वाली पार्टियों ने खुलेआम पदोन्नति में आरक्षण के विरोध का साहस नही किया जबकि सवर्णों का दुलारा बनने के लिए समाजवादी पार्टी ने संसद में पदोन्नति आरक्षण बिल फाड़ डाला तो 2014 के लोकसभा इलेक्शन में गला फाड़के इसका विरोध किया।यह अलग बात है कि इंजीनियर एम नागराज के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि पदोन्नति में आरक्षण तब तक न दिया जाय जब तक यह  सिद्ध न हो जाय कि पदोन्नति दिए जाने वाले विभाग में प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है,पिछड़ापन कैसा है,प्रोन्नति के फलस्वरूप प्रशासनिक दक्षता पर कोई प्रतिकूल असर तो नही पड़ेगा?मायावती जी ने अपने शासन काल में सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय और शर्त को क्रियान्वित करने की बजाय पुनः सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी जिसे खारिज होना ही था।मायावती जी की  इस चूक के कारण यूपी के दलित पदावनत हो गए लेकिन समाजवादी पार्टी ने पदोन्नति के बिल को फाड़कर खुद को पदोन्नति में आरक्षण का विरोधी सिद्ध कर लिया।समाजवादी पार्टी के इस कदम से भी जहां दलित समाजवादी पार्टी को अपना वैचारिक दुश्मन मान बैठा वहीं पिछड़ा यह सोचने लगा कि मण्डल कमीशन की दूसरी संस्तुति तो यही थी कि "पदोन्नति में आरक्षण को ग्राह्य बनाया जाय",जिसका समाजवादी पार्टी घनघोर विरोध कर रही है।2012 के इलेक्शन में अनुसूचित जाति के चमार/जाटव को छोड़कर धोबी,पासी,खटिक, धरिकार,गोंड,दुसाध आदि ने समाजवादी पार्टी को वोट दिया था लेकिन समाजवादी पार्टी द्वारा प्रोन्नति में विरोध करने के बाद ये अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के लोग 2014 और अब 2017 में भाजपा को वोट कर गए हैं।
       मायावती जी ने समस्त सरकारी ठेकों में अनुसूचित जातियों को आरक्षण दिया था लेकिन समाजवादी पार्टी ने सरकार में आते ही इसे खत्म कर दिया जबकि मण्डल कमीशन ने यह संस्तुति कर रखी है कि ठेकों में पिछड़ों को आरक्षण दिया जाय।सपा सरकार को पिछड़ों को मायावती जी के पूर्व के निर्णय को नजीर मानते हुए सभी सरकारी ठेकों में 27 प्रतिशत आरक्षण दे देना चाहिए था लेकिन सपा ने ऐसा करने की बजाय दलितों का ठेकों में आरक्षण खत्म कर अभिजात्य समाज को एक बार फिर खुश करने की नाकाम कोशिश कर अपनों को दर्द दे डाला।
         पूरे पांच साल के शासन काल में समाजवादी पार्टी ने मण्डल कमीशन पर ही सर्वाधिक हथौड़ा चलाया जो पिछडो के दिल को बिलबिलाता रहा।आरक्षण गरीबी दूर करने का फार्मूला नही है।यह समुचित प्रतिनिधित्व देने का उपक्रम है।आरक्षण जाति और धर्म पर नही दिया जाता है।मण्डल कमीशन ने जो पिछड़े वर्ग का आधार दिया है वह संविधान के मुताबिक सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर है जिसमे हिदू वर्ग का लगभग 62.5%(गैर एस सी/एस टी,ब्राह्मण,क्षत्रिय,कायस्थ,भूमिहार,मारवाड़ी) तो मुस्लिम का शेख,सैयद,पठान को छोड़कर सभी 85% पसमांदा को रखा गया है जो मण्डल कमीशन द्वारा जिला-जिला घूम के अध्ययन करने के बाद कि इन तबको में 5%से कम शिक्षा और नौकरी है तथा ये सामाजिक तौर पर अपमानित हैं,इस पिछड़े वर्ग में स्थान पाए हैं।संविधान इन्ही पिछडो को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की वकालत करता है जिसे मण्डल कमीशन ने दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग के रूप में संवैधानिक स्वरूप दिया है।यूपी में समाजवादी पार्टी ने इस संवैधानिक स्वरूप को धार्मिक आधार  देकर जहां बैठे-बिठाये भाजपा को कम्युनल एजेंडा दे दिया वही हिन्दू पिछडो को खुद से नाराज कर भाजपा की तरफ स्वयं धकेल दिया।समाजवादी पार्टी ने लैपटॉप,कन्या विद्या धन,समाजवादी पेंशन,लोहिया आवास,लोहिया व जनेश्वर मिश्र गांव आदि चयन में 22.5% अनुसूचित जाति/जनजाति को आरक्षण देने के बाद 20% मुस्लिम तबको को आरक्षण देकर समस्त पिछडो को गोल कर दिया।इस अल्पसंख्यक आरक्षण ने भाजपा को हिन्दू कार्ड खेलने का मजबूत आधार थमा दिया।यदि इन समस्त योजनाओं में पिछडो को 27%आरक्षण दिया गया होता तो हिंदुओ का 62.5% तबका तो मुस्लिमो का 85% तबका अपने आप इन योजनाओं का लाभ पा गया होता।ऐसा करने से भाजपा को हिन्दू पिछडो में हिन्दू-मुस्लिम के भेदभाव को प्रचारित करने और हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण का अवसर नही मिला होता।
        पिछडो की छात्रबृत्ति,इलाज व लड़की शादी अनुदान लगभग खत्म सा कर दिया गया था।खुद सदन में सम्बंधित विभाग के मंत्री ने लिखित जबाब दिया था कि पिछडो की लड़कियों के शादी के अनुदान,पिछडो की  छात्रबृत्ति और इलाज हेतु बजट नही है जिस नाते ये योजनाएं बन्द हैं।चुनाव आने पर सरकार ने आखिरी वर्ष में इन स्कीमों हेतु कुछ बजट दिया था लेकिन बीते वर्षो में ये स्कीमें ठंडे बस्ते में रहीं जो पिछड़ों को अंदर-अंदर सालती रहीं।
          समाजवादी सरकार की पूरी फोकस खुद को पिछड़ा और आरक्षण निरपेक्ष बनाये रखने तथा विकास परक सरकार दिखाने में रहा।सरकार ने खुद को पिछडो से इतना बिलग कर लिया जितना कथित मनुवादी दल भाजपा भी नही कर सकती।
          भाजपा ने खुद की मनुवादी केंचुल को उतारके यह दिखाने की पूरी कोशिश जारी रखी कि वह पिछड़ा और दलित हितैषी है।उसने भीम ऐप से लेकर बुद्ध धम्म यात्रा निकाला।पिछड़े/दलित नेताओ को फोकस किया तो वही समाजवादी पार्टी पिछडो से ऐसे तौबा की कि उसने अपने 32 पेज के चुनाव घोषणा पत्र में पिछड़ा शब्द फटकने भी नही दिया।देश का संविधान पिछडो के कल्याणार्थ अलग क्लॉज रखता है, सरकार पिछडा वर्ग कल्याण मंत्रालय बनाये हुए है लेकिन पिछडो की पार्टी ने अपने पिछले सरकार में पिछड़ों के लिए न कुछ किया, न उसने आगे आने वाली सरकार में कुछ करने का वायदा किया।
           इलेक्शन कम्पेन के दौरान सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जी ने कहीं भी पिछड़ा शब्द अपनी जुबान पर आने नही दिया।सपा ने जहाँ पिछड़ो से अछूत जैसा बर्ताव किया वही भाजपा ने 403 विधानसभाओं में किसी मुसलमान को टिकट न देकर तथा प्रत्येक मामलों में पिछडो को आगे करके एक तीर से कई निशाने कर डाले।भाजपा ने मुसलमानों को टिकट न देकर,श्मशान/कब्रिस्तान,ईद/दिवाली में बिजली की बात कर अपने हिंदुत्व एजेंडे को बहुत ही सलीके से बहुसंख्यक हिन्दू(इन्क्लूड पिछड़ा/दलित) समुदाय में परोस दिया और समाजवादी पार्टी को हिंदूद्रोही सिद्ध कर डाला वहीं सपा हिंदुत्व में सेंध नही लगा सकी।सिवाय 60% अहीरों के समाजवादी पार्टी के पास हिन्दू वर्ग का कोई थोक समर्थन इस चुनाव में नही रहा।
        दौरान चुनाव आरक्षण पर संघ नेताओ के विवादास्पद बयानों को सपा इशू नही बना सकी तो वही सपा संरक्षक श्री मुलायम सिंह यादव जी की दूसरी पतोहू श्रीमती अर्पणा यादव जी ने आ बैल मुझे मार की कहावत चरितार्थ करते हुए बरखा दत्त जी को अपना इंटरव्यू देते हुए आर्थिक आधार पर आरक्षण की दमदार वकालत कर डाली जिसे कहने की हिम्मत भाजपा और कांग्रेस को भी नही है।समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार और मुलायम सिंह यादव जी की बहू श्रीमती अर्पणा यादव जी के इस आरक्षण विरोधी बयान पर सपा मुखिया श्री अखिलेश यादव जी की सफाई न आने से भी पिछड़ों में दौरान चुनाव जबर्दस्त नाराजगी उभरी और सम्भवतः इस आरक्षण विरोध ने अर्पणा जी की लुटिया डुबो दी और वे चुनाव में करारी शिकस्त पा गयीं।
          2012 में यूपी में अखिलेश यादव जी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद हुए नगर निगमो,नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में करारी शिकस्त मिली थी।इस पर पार्टी ने समीक्षा नही की।प्रायः शहरों में बड़ी जातियों और अभिजात्य वर्गो का आधिपत्य व निवास होता है जिन्हें सपा/बसपा पसन्द नही हैं।अच्छी-अच्छी योजनाओं के बावजूद शहरी निकायों में सपा की हार सपा के तारणहारों को समझ नही आयी।2014 के लोकसभा इलेक्शन में 80 में 73 सीटों पर 43% मत अर्जित कर सपा/बसपा को क्लीन स्वीप होने पर भी अपने लाईन-लेंथ गड़बड़ाने की चूक समझ नही आयी और ये वही पुरानी गलती और काम व सर्वसमाज का राग अलापते रहे।इन पिछड़े/दलित नेताओ को यह समझ नही आया कि नगर निकाय में अभिजात्य जातियां उन्हें किनारे कर चुकी हैं तो लोकसभा में उनके अपने नोनिया,राजभर,कुर्मी,कोइरी,मल्लाह,शाक्य,सैनी,कुम्भकार,बढ़ई,पासी,धोबी,दुसाध,गोंड,बाल्मीकि आदि अर्थात गैर यादव-गैर चमार उनसे किनारा कर भाजपा जैसी मनुवादी पार्टी के पाले में जा चुके हैं।
           यूपी के असेम्बली इलेक्शन में सपा/बसपा द्वारा न चेतने और अपनी पुरानी गलती दुहराने के कारण 2014 फिर दुहरा दिया गया है और भाजपा ने एक बार फिर बहुतायत गैर यादव/गैर चमार को छोड़कर अन्य समस्त  हिंदुओ का 42% मत लेकर 403 में 325 के ऐतिहासिक नम्बर को हासिल कर लिया है।
         सपा को पिछड़ा निरपेक्ष बनने में आनन्द था तो बसपा को सर्वजन बनने की छटपटाहट थी।इसी का लाभ उठाते हुए भाजपा ने अपने हिंदुत्व का ऐसा तुक्का मारा है कि ये पिछड़ा निरपेक्ष व सर्वजन वाले बिन पानी डूब गए हैं।बहुत साफ है जब अपनी पूंजी न होगी तो उधार से उद्धार न होगा।समाजवादी पार्टी ने अपनी पिछडो की मूल पूंजी खो दी जो हिंदुत्व का मजबूत काट था, तो पराजित होना ही है।समाजवादी पार्टी की प्राणवायु है पिछड़ा,हिंदुत्व का काट है मण्डल,अल्पसंख्यको का कवच है बैकवर्ड और जब यही न होगा तो न समाजवादी पार्टी होगी और न अल्पसंख्यक हितरक्षा हो सकेगी।
         2017 का यह यूपी इलेक्शन हो सकता है समाजवादियों और बहुजनवादियो को संभलने और सबक लेने का सबब बने और 2019 में नये तेवर और कलेवर से हिंदुत्व को मण्डल,आरक्षण,पिछड़े,वंचित की एकजुटता से पटखनी मिले वरना तो मनुवाद और जयश्रीराम का युग लाने वाले हमी पिछड़े "हनुमान" बनेंगे और अपनी सोने की लंका जलाएंगे।


 सपा कोर्ट जाने की तैयारी में..

🚫 4 जिलों के बैलट पेपर में मिले सपा को 70 फीसदी वोट, पूरे प्रदेश की समीक्षा जारी

🚫 सपा से जुड़े सूत्रों ने बताया कि बीजेपी जैसी साम्प्रदायिक पार्टी को अगर इतने बड़े पैमाने पर 325 सीटें मिली हैं, तो इसमें ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी ही जिम्मेदार हैं।

🚫 उन्होंने बताया कि बैलट पेपर से एक ट्रेंड मालूम होता है, जिसमें सपा को 60 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिल रहे हैं।

🚫 कर्मचारी व अन्य व्यक्ति जो बैलट पेपर से वोट करता है, उसमें हरदोई की सवायदपुर में बैलट पेपर से मिले वोटों में सपा को 381, बसपा को 260, बीजेपी को 182, हरदोई प्राॅपर में सपा 858, बसपा 715, बीजेपी 370, बिलग्राम में भी यही स्थिति है। वहीं, सांडी में कांग्रेस 400, बीएसपी 243 और बीजेपी 150 रही है।

🚫 अब इन बैलट पेपर वोटरों को गिनें तो पूरी तरह से सपा पूर्ण बहुमत से भी आगे जा रही है। अभी तो ये कुछ ही सीटें हैं, हमने पूरे प्रदेश से बैलट पेपर वोटों को मंगाया है।

🚫 हम उसपर समीक्षा करने के बाद पूरे सबूतों और समीक्षा के साथ सुप्रीम कोर्ट जांएगे।

🚫 ईवीएम मशीन में हुई गड़बड़ी की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के जज की अध्यक्षता में इसकी जांच हो, उसके लिए अपनी बात कोर्ट में रखेंगे।
बताया जा रहा है EVM में टाइमिंग साफ्टवेयर का प्रयोग हुआ है जो निर्धारित टाईम पर बीजेपी के पक्ष में अधिकतर वोट सेव करने लगती है।
Copy past at Congress group 🙏

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