Tuesday 14 March 2017

चुनाव में हुआ बड़ा घोटाला

चुनाव में हुआ बड़ा घोटाला

अयोध्या विधान सभा में कुल वोटर 316722 है । जिनमें से कुल 60 प्रतिशत वोटिंग हुई थी , जो की 190033 होते हैं।  लेकिन इलेक्शन कमीशन के आंकड़ों के अनुसार सभी प्रत्याशियों के वोट मिलकर कुल 217488 वोट पड़े हैं जो की 68.66 प्रतिशत हो रहा है । अब देखने वाली बात ये है कि ये 27455 यानी 8 प्रतिशत अतिरिक्त वोट कहाँ से पैदा हो गये ।।
हमने अभी सिर्फ दो विधान सभा अयोध्या और रुदौली के आंकड़ों को जांचा है, रुदौली में भी इसी तरह 18463 वोट ज़्यादा दिख रहा है ।।
अभी बाकी 401 विधान सभा में भी ऐसी ही घपले बाज़ी होने की सम्भावना है ।।
इस बात की जानकारी सब तक पहुचाएं जिससे सुप्रीम कोर्ट तक ये बात पहुच सके ।।
: मौलाना तौसीफ़ रज़ा, फ़ैज़ाबाद 


ईवीएम घोटाला: आख़िर मेरठ से क्यों हार गई बीजेपी
उत्तर प्रदेश में मोदी जीते हैं या ईवीएम... इसका राज शायद इस भयंकर मोदी तूफान में भी भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी की मेरठ से हुई करारी हार और गोवा विधानसभा चुनाव में वहां के मुख्यमंत्री, 6 मंत्री समेत भाजपा की दुर्गति में ही कहीं छिपा हुआ है।

बेहद कम ही लोग जानते हैं कि इस बार समूचे गोवा की सभी विधानसभा सीटों और उत्तर प्रदेश के चुनाव में वाजपेयी की हारी हुई सीट समेत चुनिंदा विधानसभा सीटें ऐसी भी हैं, जिनमें वोटिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली संदेहास्पद ईवीएम के उलट सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में बहुत ही चाक चौबंद व्यवस्था के साथ वोटिंग करवाई गयी है।

एक दशक से ऊपर के वक्त से ईवीएम में गड़बड़ियों की बढ़ती शिकायतों और भारी हंगामे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को मजबूर किया था कि इस बार फिलहाल वह गोवा की 40 सीटों में पूरी तरह से और यूपी में चुनिंदा 20 सीटों पर ईवीएम के साथ-साथ वीवीपीएटी (वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) की तकनीकी व्यवस्था मतदान में करे। ताकि इसके नतीजे देख कर भविष्य में समूचे देश में ऐसी व्यवस्था लागू करवाई जाए।

वीवीपीएटी ऐसी व्यवस्था है, जिसमें साधारण ईवीएम की तुलना में किसी तरह की छेड़छाड़ या हैकिंग संभव नहीं है।
केंद्र ने मजबूरन ऐसा ही किया तो नतीजे भी वैसे नहीं रहे, जैसे परंपरागत ईवीएम वाले क्षेत्रों में देखने को मिले। गोवा के वीवीपीएटी वाले विधानसभा क्षेत्रों की चाकचौबंद मतदान व्यवस्था में तो मोदी का जादू जरा भी नहीं चला और यूपी में आये मोदी के तूफ़ान के विपरीत वहां भाजपा बुरी तरह से धराशाई हो गयी।

भाजपा की पराजय का आलम यह है कि न सिर्फ पिछली बार की तुलना में उसकी सीटें 21 से घटकर 13 पहुँच गयी हैं बल्कि उसके मुख्यमंत्री समेत 6 मंत्री भी चुनाव हार गए हैं। वहां कांग्रेस सबसे बड़ा दल बनकर उभरी है।

वह भी तब जबकि इसी विधानसभा चुनाव में परम्परागत ईवीएम वाले क्षेत्रों में मोदी की ऐसी सुनामी आयी, जैसी कि आजादी के बाद किसी नेता की नहीं आयी और उत्तर प्रदेश में तो ऐसे नतीजे आये, जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

तो ऐसे में अगर मायावती के माथे पर शिकन है और वह यह सवाल पूछ रही हैं कि कहीं ईवीएम के जरिये कोई महाघोटाला तो नहीं किया गया, तो इसमें किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए।

जाहिर सी बात है कि मायावती ही नहीं, समूची दुनिया भी यह जानकर हैरत में है कि मोदी ने उत्तर प्रदेश में अपने तूफान में पूरे प्रदेश के जाति धर्म के समीकरण ध्वस्त करके नया इतिहास ही रच दिया है।

जबकि प्रदेश की उन चुनिंदा 20 सीटों में जहाँ जहाँ ईवीएम के साथ साथ वीवीपीएटी की यह नयी चाक चौबंद मतदान व्यवस्था की गयी थी, उनमें से कई जगह मोदी का जादू नहीं चल सका और नतीजे गोवा जैसे ही देखने को मिले। यहाँ तक कि इन्हीं में से एक सीट पर भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी भी इस मोदी सुनामी में अपनी मेरठ सीट गँवा बैठे।

ऐसे में यह सवाल उठना तो लाजिमी ही है कि आखिर पूरे प्रदेश भर में अगर जनता ने जाति-धर्म से ऊपर उठकर मोदी पर सम्मोहित होकर भाजपा को राज्य में नया इतिहास बनाने का मौका दिया है तो फिर वाजपेयी के साथ मेरठ की जनता ने ऐसा भेदभाव क्यों किया?

यह बात कुछ हजम नहीं होती कि प्रदेश भर के लोगों ने मोदी को देख कर वोट डाले, उम्मीदवार को नहीं लेकिन हाल फिलहाल में ही प्रदेश अध्यक्ष रहे वाजपेयी के मामले में लोगों ने मोदी को न देख उम्मीदवार को देखा।

यही नहीं, विकिपीडिया में मौजूद जानकारी के मुताबिक जिन 20 सीटों पर यह चाक चौबंद व्यवस्था अपनायी गयी है, उसमें से भाजपा मुरादाबाद ग्रामीण, कानपुर में आर्य नगर और सहारनपुर शहर भी हार गयी है। यानी कि कुल 20 सीटों में से 16 वह जीती है तो 4 पर उसे हार भी मिली है।

वैसे तो देखने में यह आंकड़ा संदेहास्पद नहीं लग रहा क्योंकि 20 में से केवल 4 सीट हारने पर भाजपा समर्थक यह कह सकते हैं कि मोदी तूफान में इसमें से भी ज्यादातर तो भाजपा ने जीती ही हैं। लेकिन संदेह इसलिए हो रहा है क्योंकि इन 20 सीटों में जिन सीटों पर भाजपा जीती है, उनमें से अधिकांश पर पहले भी वही जीतती आयी है।

इसका अर्थ यह हुआ कि यूपी में जानबूझ कर उन्हीं 20 सीटों पर चाक चौबंद मतदान व्यवस्था लागू की गयी थी, जिनमें से अधिकांश पर भाजपा का ही प्रभाव रहा है और भाजपा के पक्ष में यदि कोई आंधी-तूफान-सुनामी या लहर न भी हो तो भी भाजपा इन्हें सकारात्मक माहौल में आसानी से जीत सकती है... तो भी वाजपेयी हार गए!!! और इनमें से भी कुल 4 सीटें ऐसी भी निकल आईं, जिनमें मोदी के तूफान का कतई असर भी नहीं हुआ!!!

अब ऐसे में जहाँ जहाँ केवल परंपरागत ईवीएम हैं, वहां वहां आये मोदी तूफान को लेकर सवाल तो उठेंगे ही। दरअसल, ईवीएम पर मायावती के जरिये पहली बार सवाल नहीं उठाया गया है। बल्कि अमेरिका समेत दुनिया के कई देश ईवीएम से मतदान को लेकर घबराते और कतराते तो रहे ही हैं, भारत में तो तक़रीबन हर चुनाव में ही इस पर उँगलियाँ उठती आयी हैं।

अभी हाल ही में महाराष्ट्र में हुए चुनावों में भी भाजपा पर ही ईवीएम से नतीजे प्रभावित करने का आरोप और हंगामा इतना गहरा गया है कि वहां अन्य दलों ने इसको लेकर न सिर्फ आंदोलन खड़ा कर दिया है बल्कि वह अदालत में भी जाँच की गुहार लगा चुके हैं।

अन्य दलों ने इसके लिए एक एक्सपर्ट कमेटी भी बनायी है, जो मतदान के आंकड़ों को जुटा कर उनका गंभीरता से विश्लेषण कर रही है ताकि इससे जाँच में मदद मिल सके।
हालाँकि भाजपा से पहले कांग्रेस पर भी ईवीएम से छेड़छाड़ को लेकर कई गंभीर आरोप लग चुके हैं। यह आरोप बाकायदा ईवीएम में सार्वजनिक तौर पर हैकर्स और तकनीकी विशेषज्ञों की मदद से प्रदर्शन करके भी दिखाए गए हैं।

जब यह मामला बहुत ज्यादा गहराया और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी गंभीरता को समझा, तब जाकर सरकार को ईवीएम घोटाले पर रोकथाम के लिए चाकचौबंद व्यवस्था बनाने के निर्देश दिए  गए। इसके बाद सभी दलों के सहयोग से तकनीकी विशेषज्ञों की मदद लेकर ईवीएम के साथ साथ वीवीपीएटी (वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) नामक तकनीकी व्यवस्था करने का भी निर्देश दिया गया ताकि ईवीएम के जरिये किसी भी तरह का मतदान घोटाला नहीं किया जा सके।
इसी नयी व्यवस्था को देशभर में लागू करने के लिए कई बरसों से कवायद की जा रही है। इसी के तहत इस बार के चुनावों में गोवा में यह पूरी तरह से और उत्तर प्रदेश में आंशिक तौर पर लागू की गयी थी ताकि इसमें आने वाली कठिनाईयों और व्यावहारिक परेशानियों को दूर किया जा सके।  

 इसे माइक्रोकंट्रोलर कहते हैं, ज्यादातर डिवाइस जो गणना  के लिए या रोबोटिक  सिस्टम , या  किसी भी रिमोट सेंसिंग डिवाइस हो वहां  ज्यादातर समय इसकी ही वेराइटी USE होती है!
जिसमे कंप्यूटर से लिखी एक खाश भाषा में प्रोग्राम यानि की हमें कैसे काम करवाना है उसका उपयोग किया जाता है ! दिशा निर्देश लिख कर डाला जाता है !
EVM  को MANUFACTURE करते समय उसमे  ऐसे प्रोग्राम यानि दिशा निर्देश डालना कोई बड़ी बात नही है !

कुछ काल्पनिक है पर पढ़े जरूर !

मान लीजिए तीन  महीने बाद  चुनाव है, और इसी तीन महीने के पहले सारी मशीन बना दी गयी और अगले तीन महीने तक सारी मशीनों का परिक्षण होना है की सही काम कर रही की नही !
हमने डिफ़ॉल्ट प्रोग्राम के तौर पर
1 No  बटन पर हाथी
2 No  पर कमल
3 No  पर साइकिल
......................
...................
सेट कर दिया और हमने ऐसा प्रोग्राम सेट किया की तीन महीने तक ये डिफ़ॉल्ट रूप में काम करता रहे जैसे जिस बटन पर प्रेस किया जाए उसी को वोट जाए, इस दौरान मशीन पूरी सुरक्षा से राखी गयी होगी और परिक्षण एकदम सही सही आएगा !

तीन महीने या निर्धारित तिथि के बाद हमने ऐसा प्रोग्राम डाला हुआ है की ये उपरोक्त प्रोग्राम टूट जाएगा तथा
1 नम्बर बटन दबाने पर एक वोट पड़े हाथी को
2  नंबर बटन दबाने पर 2  या 3  या सुविधानुसार वोट पड़े कमल को
3  नंबर बटन दबाने के बाद 1  वोट साइकिल को पड़े !

तीसरा प्रोग्राम कुछ ऐसा सेट हो की फिर जब चुनाव खत्म हो जाए  तो 2  नंबर प्रोग्राम टूट जाए और डिफ़ॉल्ट में बदल जाए जिससे अगर कभी आरोप लगाया जाए की EVM  घोटाला हुआ है तो उसे न पकड़ा जाय  जब तक बड़े लेवल के टेक्निकल हाथ न डाले माइक्रोकंट्रोलर की आंतरिक जांच न की जाए !
प्रोग्राम लिखने के और भी तरीके हो सकते है ये बस एक उदाहरण है !
आप सब ने जापान चीन अमेरिका में बड़े बड़े मानव रोबोट देखे है ये सारे मशीन प्रोग्राम पर ही काम करते हैं आप जितना जटिल और बेहतरीन प्रोग्राम लिख सकते है उतना बेहतर अपने उपयोग लायक रोबोट बना सकते !
कोई अतिशयोक्ति नही की EVM  एक रोबोट है!

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