Thursday 2 March 2017

ईवीएम की गड़बड़ी

सारा मामला राष्ट्रवाद बनाम मार्क्सवाद पर आकर टिक गया, ब्राह्मणवादी मिडिया के साथ-साथ नारीवादी भी सक्रिय हो गए। कैम्पेन चल रहा, मार्च निकल रहे,पूरा सोशल मीडिया पटा पड़ा है, इन ध्रुवों के बीच।
 इन सब के बीच में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे हवा हो गए मसलन महाराष्ट्र में हुई ईवीएम की गड़बड़ी के जो उत्तरप्रदेश में भी हो रही है उस पर से सबका ध्यान हटा लिया गया। ऐसे ही पंजाब-गोवा के चुनाव बाद सुरक्षित की गई ईवीएम मशीनों में भी कोई गड़बड़ी हो सकती है,इस सम्भावना से पूरी तरह इंकार तो नहीं किया जा सकता। लहर और हवा बनाने के लिए कोई किस हद तक जा सकता है, इसका अनुमान लगाना इतना कठिन है क्या। इस बीच में महत्वपूर्ण ख़बर जिसे बहुत चालाकी से दबा दिया गया वो थी ध्रुव सक्सेना और बीजेपी-संघ से जुड़े लोग जिनके तार आईएसआई से जुड़े हुए थे, क्या कार्यवाही हुई किस-किस को पता। यही अभी कोई मुस्लिम पकड़ाता तो क्या होता??.......सब बुक्का फाड़ के विलाप कर रहे होते, सबकी देशभक्ति चरम पर होती, सारे मुस्लिमों को कटघरे में खड़े कर रहे होते, पाकिस्तान भेजने की धमकी दे रहे होते। इसी बीच रवीश कुमार के बड़े भाई ब्रजेश पांडे के एक नाबालिग दलित लड़की के साथ यौन शोषण की घटना को भी मीडिया में कवरेज़ नहीं दिया, और ना I support ravish kumar वालों ने कुछ चूं-चपाट भी की। मिर्चपुर या भगाना कांड पर चुप्पी क्यों होती है, सोचने से ज्यादा समझने का विषय है। इन सब के बीच में जेएनयू में पर्सेंटेज को वेटेज़ देने के मुद्दे पर खानापूर्ति विरोध होकर सारे मार्क्सवादी चुप हो गए, कुलपति अड़ गए और मुहर लग चुकी की वही व्यवस्था होगी जो हमने निर्धारित की है। दलित-वंचितों-आदिवासियों-ग़रीबो-अल्पसंख्यकों के पैरोकार बनने वाले गहरी नींद में सोते रहे क्योंकि उन्हें नुकसान कौन सा होना है। नजीब कहाँ है? कुछ पता है? रोहिथ वेमुला केस का क्या हुआ पता है? डेल्टा मेघवाल- जोशुआ याद है क्या? आईआईएमसी से निष्काषित दलित-बहुजन कार्मिकों का कुछ हाक-हवाल है क्या? ऊना कांड की प्रोग्रेस रिपोर्ट पता लगी?
गुरमेहर के साथ जो हुआ वो बहुत ही निंदनीय है, रामजस कॉलेज की बर्बर घटना पर हम सब बहुत दुखी हुए हैं और विरोध में पूरी मजबूती से आपके साथ खड़े हैं, पर यही दुःख दलित महिलाओं के साथ होने वाली बर्बरता पर पता नहीं कहाँ चला जाता है। फ़र्ज़ कीजिये गुरमेहर अगर मेहर(मुस्लिम) होती तो या कोई गुलकिया(दलित-आदिवासी)होती तो, तब भी सब ऐसे ही साथ खड़े होते?? सवर्ण नारीवादी महिलाएं जिस तरह से गुरमेहर के साथ खड़ी हुई वैसी किसी दलित महिला के मामले में खड़ी होते देखी है किसी ने? इन्हें मायावती के नाम भर से इन्हें जहरीला साँप काटने लगता, पर सोनिया गाँधी या स्मृति ईरानी के नाम पर सारा नारीवाद उमड़ आना है।
 छोटे-छोटे गांवों से आने वाले छात्रों के लिए जेएनयू कभी सपना हुआ करता था, अब पूछ कर देखियेगा किसी पढ़े-लिखे ग्रामीण से कि क्या अब भी उसकी वही छवि है जो पहले थी। पहले जेएनयू डिस्ट्रॉय किया गया और अब डीयू। देश की यूनिवर्सिटी बर्बाद हो रही जिसमें ग़रीब-वंचित पढ़ने-बढ़ने का ख़्वाब देखते हैं। पूछ कर देखिये छोटी-छोटी जगह से दिल्ली आने वाली छात्राओं( लड़कों को छूट या प्रिविलेज़ मिल ही रही है) को उनके घर के लोग ही अब दिल्ली नहीं रखना चाहते और यह पीढ़ी संघर्ष नहीं है, डर है। अपने बच्चों को ऑक्सफोर्ड-कैलिफोर्निया युनिवेर्सिटी में पढ़ाने वाले लोगों से यहाँ की यूनिवर्सिटी में पढ़ने वालों से क्या। सब उलझे रहे और महत्वपूर्ण मुद्दे हवा हो गए, और नगरीय निकायों की जीत भुनाई जा रही।
 सवर्ण लोग देशभक्ति-देशद्रोह खेल रहे और कठपुतली ब्राह्मणवादी मीडिया जीत-हार बता रही। ऐसे ही पिछले साल जेएनयू में हुआ था, और उस सब के बाद छोटे-छोटे गांव से लेकर शहरों में आरएसएस मजबूत हुआ नतीजा सामने आ रहा। अब यह समझिये आरएसएस किसका और किन-किन को फायदा होना है बताने की जरुरत है क्या? एक बना-बनाया गेम का पांसा फेंका गया और सब फंस कर उसी गेम को जीत-हार बता रहे जो गेम ही उनका नहीं है। कौन सी जातियाँ मजबूत हो रही इस खेल में, कहाँ ठहर रहे आप?? आप किनके लिए किस चक्की में पीस रहे यह समझने के लिए इन सब घटनाओं को रिलेट कीजिये।     

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