Wednesday, 22 March 2017

मीडिया क्यों बदनाम

मीडिया क्यों बदनाम हो रहा है और क्यों गाली खा रहा है..जानिए




देश में आज मीडिया पूरी तरह बदनाम हो रहा है या हो चूका है लेकिन जनता को यह जानना जरुरी है कि यह सब क्यों हो रहा है...
चलिए, हम एक छोटी सी कोशिश करते है आपको बताने कि.....
जरुरी नहीं है कि आप इसे माने लेकिन इस पर एक बार विचार जरूर करे......

देश में 2 तरह के मीडिया का अधिक चलन है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (न्यूज़ चेनल) और प्रिंट मीडिया (समाचार पत्र). पहले तो आप यह तय कर ले कि किस प्रकार के मीडिया में क्या बताया जा रहा है. पहले हम आपको इलेक्ट्रॉनिक मीडिया  कि सच्चाई बताया जा रही है.
1. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बड़े 18  चैनल जिनको आप देखते है मुकेश अम्बानी द्वारा ख़रीदे जा चुके है, इसलिए आपको बीजेपी ओर पीएम मोदी के समर्थन के ही समाचार दिखाए जाते है यहाँ तक की कई भाजपा नेता भी मीडिया से पूरी तरह बाहर है.

2. कुछ न्यूज़  चैनल के मालिक भाजपा कि ओर से राज्यसभा में सांसद है पीएम मोदी और भाजपा के फायदे और समर्थन के ही समाचार दिखाते है.

3. कुछ न्यूज़ चैनलो ने सच्चाई दिखानी चाही तो उनके प्रसारण पर ही रोक लगाने की कार्यवाही की गई. और कुछ को लाइसेंस ही निरस्त करने की धमकी दी गई. जिसके बाद उन्होंने अपने घुटने सरकार के सामने टेक दिए.


4. इन सबके अलावा अगर  चैनल थोड़ी बहुत भी सच्चाई दिखाता है तो उसके विज्ञापन बंद कर दिए जाते है या फिर कम टीआरपी का सार्टिफेकेट जारी कर दिया जाता है जिससे उक्त चैनल को आर्थिक नुकसान होता है.

5. एक  चैनल के मालिक पीएम मोदी के मीडिया सलाहकार भी है.

6. मोदी भक्ति के चलते ज़ी न्यूज़ से कई पत्रकारों चैनल को अलविदा कह दिया है.
अब बारी आती है प्रिंट मीडिया (समाचार पत्र) कि

1. देश के सभी बड़े समाचार पत्र मजीठिया वेज बोर्ड में फसे हुए है जिसके अनुसार हर समाचार पत्र के ऊपर (800 से 3900 करोड़ रुपये) की देनदारी है यह रकम समाचार पत्रो को अपने कर्मचारियों को देना है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है. सरकार ने बड़े समाचार पत्रो पर दवाब बनाया हुआ है. जिस कारण वो पीएम और बीजेपी के समर्थन में समाचार छापना मजबूरी है. मजीठिया के चलते दिल्ली से प्रकाशित देश का बड़ा हिंदी अखबार हिंदुस्तान को मुकेश अम्बानी द्वारा 5000 हजार करोड़ में ख़रीदा जा चूका है. इसके बाद कई और समाचार पत्रो को भी बड़े कारोबारी द्वारा जल्द ही ख़रीदा जायेगा.


2. राजस्थान से प्रकाशित बड़े हिंदी अखबार राजस्थान पत्रिका ने कुछ कोशिश की तो केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने उनके विज्ञापन पर रोक लगा दी. जिसको लेकर राजस्थान पत्रिका ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की.

3. देश के सभी समाचार पत्रो पर केंद्र सरकार ने सख्ती दिखाते हुए कई कड़े नियम लाद दिए जिससे 9000 समाचार पत्रो में से केबल 2000 समाचार पत्र ही बचे है, बाकी या तो बंद हो चुके है या फिर आर्थिक संकट का दंश झेल रहे है.

4. देश भर के समाचार पत्रो से अब तक 2 लाख लोगो का रोजगार समाप्त हो चूका है. और भी करीब 1 लाख लोगो की नोकरियो पर तलवार लटक रही है. छोटे समाचार पत्रो को मैनेज करना मोदी सरकार के लिए टेडी खीर थी इसलिए उन्होंने सूचना प्रसारण के माध्यम से एक बार में छोटे समाचार पत्रो या तो ख़त्म कर दिया या फिर दबा दिया.

5.. केंद्र सरकार ने अपने समर्थक बड़े समाचार पत्रो को प्रीमियम दर पर कई गुना विज्ञापन प्रदान कर रही है और देश के 6000 समाचार पत्रो को पिछले 6 माह में केवल एक विज्ञापन दिया गया है.

ये तो केवल कुछ बाते ही है जो आपके समक्ष प्रदर्शित की गई है. इससे भी आगे बहुत कुछ है. मीडिया पर इस तरह का दबाब इमरजेंसी के समय भी नहीं था. अगर समाचार पत्र समाप्त हो गए तो आम आदमी की पहुँच इस चौथे स्तम्भ से भी दूर होती जायगी. जनता केबल वही पढेगी, वही देखेगी जो सरकार और बड़े उद्योग घराने दिखाना चाहेंगे. तय आपको करना है की आप क्या चाहते है. दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश का मीडिया चंगुल में फंस गया है. जो पिछले 70 सालो में स्वतंत्र भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ.   

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