आज जो बिहार कृषि विश्वविधालय में नियुक्ति का मामला इतना तूल पकड़ रहा है और जो भी मीडिया में दिखाया जा रहा है, वह हम सब बिहार वासियों के लिए काफी चिंता का विषय है l ये मामला माननीय रिटायर्ड जज मोहम्मद महफूज़ आलम के उस रिपोर्ट के बाद तेजी से उभर कर आया है, जिसे उन्होंने माननीय राज्यपाल, बिहार को सौंपा है l 2012 में हुई नियुक्ति के इसी रिपोर्ट को आधार बना के लोगो और मीडिया ने इसे फर्ज़ीवाड़ा का नाम दिया है l
शिक्षा और नियुक्तियों के मामले में हमारे राज्य की जो आज राष्ट्रीय स्तर पर जो स्थिति बन गयी है वह काफी हास्यादपद है l बिहार ही नहीं यहाँ से बाहर राज्यों के लोग खुली या दबी जुबां से अब ये बोल रहे है की हमारे राज्य में सिर्फ फर्ज़ीवाड़ा ही है l जबकि ये कतई ही सच नहीं है l पूरा हिंदुस्तान इस बात का गवाह है की बिहार के लोग हर क्षेत्र में अव्वल रहे है, चाहे वह रेलवे हो, या बैंक हो, या प्रशासनिक सेवा हो या शिक्षा हो, हम किसी से काम नहीं है l
चलिए बात करते है सहायक अध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक (आगे से सिर्फ शिक्षक/वैज्ञानिक) की जो आज इस दंश को झेल रहे है की उनकी नियुक्ति एक फर्ज़ीवाड़ा थी l
क्या था नियुक्ति का पैमाना ?
मैं आप सभी से पूछना चाहता हूँ की आप इस बात से अवगत है की २०१२ में हुई नियुक्ति का न्यूनतम Eligibility Criteria क्या था? क्या वैसे वैज्ञानिक जिनका acedamic में कम अंक थे, वे चयन के लायक ही नहीं थे या उनके प्रमाण पत्र ही फ़र्ज़ी थे l UGC के अनुसार सहायक अध्यापक की नियुक्ति के लिए न्यूनतम Eligibility क्राइटेरिया संबंधित विषय में ५५% अंक होने चाहिए और NET उत्तीर्ण होना चाहिए l जिन्होंने भी UGC रेगुलेशन्स, 2009 के पूर्व अपनी PhD पास की है उनके लिए NET /SLET /SET की पात्रता मान्य नहीं है l चुकि बिहार कृषि विश्वविधालय, जो अपने मातृ कृषि विश्वविधालय, राजेंद्र कृषि विश्वविधालय से अलग हुआ था उसका अधिनियम के अनुसार नियुक्ति की प्रक्रिया अपनाई गयी l इसके अनुसार वैसे अभ्यर्थी जिनका NET नहीं है उनका भी चयन किया जा सकता है परंतु उन्हें नियुक्ति के 5 साल के भीतर उन्हें NET उत्तीर्ण कर लेना था अन्यथा उनकी नियुक्ति रद्द कर दी जाती. विभिन्य संकायों के लिए पुरे देश भर से लोगो ने आवेदन किया l उस वक़्त ऐसे कई मेधावी लोगो का चयन किया गया जिनका अकादमिक अंक थोड़े कम थे लेकिन उनमे टैलेंट कूट कूट के भरा था l चुकि ये पद शिक्षण और शोध के लिए था, यहाँ पे चयन में काफी विविधता रखी गयी. विश्वविधालय के काम के अनुसार ऐसे अभ्यथियों का चयन किया गया जो इस विश्वविधालय को अपने अपने क्षेत्र में आगे ले जा सके l
इस दौरान कुछ ऐसे लोगो का भी चयन हुआ जिन्होंने अच्छे संस्थान से अपनी पढाई की पर बहुत अच्छे अंक नहीं लाएं थे l क्या वे अभ्यर्थी जिन्होंने 55-70% अंक प्राप्त किये, वे योग्य नहीं हैं या वे वैज्ञानिक बनने के काबिल नहीं है, ऐसा कहाँ लिखा है?
अगर उच्च अंक ही एक मात्र मान्यता है तो प्राइवेट संस्थान की तो चांदी ही चांदी हो जाएगी जहाँ एक औसत छात्र को भी 90% अंक दे दिया जाता है l और शिक्षा एक विकराल व्यवसाय बन जायेगा और सिर्फ और सिर्फ प्राइवेट संस्थान के ही लोग सहायक प्राध्यापक बनेंगे नाकि किसी अच्छे संस्थान से पढ़ा हुआ एक मेधावी छात्र जिसका अंक उनके वनिस्पत काफी कम हो l
इस बात पे भी गौर कीजिये की क्या पीएचडी किया हुआ अभ्यर्थी ही सिर्फ सहायक प्राध्यापक बनने के काबिल है या एमएससी+नेट किया हुआ अभ्यर्थी भी बन सकता है l अगर पीएचडी ही मुख्य योग्यता है तो UGC को तो अपने नियमों में ही बदलाव कर देना चाहिए l
अगर किसी भी नियुक्त वैज्ञानिक का सर्टिफिकेट फ़र्ज़ी है तो आज के आज ही उनपर कारवाई होनी चाहिए l पर देखने की बात ये है की नियुक्ति के दिन विश्वविधालय वैज्ञानिक के सभी original certificates रख लेती है और वेरिफिकेशन के बाद ही उसे लौटती है. ऐसे में certificates के फ़र्ज़ी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता l
आज बिहार कृषि विश्वविधालय में देश के हर बड़े संस्थान से पढ़े हुए छात्र अपनी सेवाएं दे रहे है. उदहारण अनुसार यहाँ IARI , BHU , TNAU , UAS , DHARWAD; UAS , BANGALORE ; GBPUAT , Pantnagar ; IGKV , BCKV , CSIR , PALAMPUR से पढ़े हुए छात्र यहाँ अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे है और इस विश्वविधालय को नए आयाम तक पहुचाने में अपना योगदान दे रहे हैं l
सोचिये ज़रा ARS में कितने ही वैज्ञानिक सिर्फ MSc किये हुए है और राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहर रहे है हैl क्या वे फ़र्ज़ी है या उन्होंने क़ाबलियत के दम पर ये मुकाम हासिल किया है??
क्या है बिहार कृषि विश्वविधालय में नियुक्त शिक्षकों का योगदान
यहाँ के वैज्ञानिक सिर्फ शिक्षण में ही नहीं बल्कि शोध कार्यों में भी अव्वल रहे है l इस विश्वविधालय में करीब 300 शोध परियोजनाओं का संचालन किया जा रहा है, जिसका लगभग सारा दारोमदार 2012 या उसके बाद नियुक्त किये गए इन वैज्ञानिकों पर ही है l ये वही वैज्ञानिक है जिनके पास RKVY, Govt. of Bihar, Institutional, National (ICAR, DBT, DST), International (CGIAR, CIMMYT, ICARDA, Bill and Milinda Gates Foundation) द्वारा अनुमोदित शोध कार्यक्रम है. आप ही बताएं क्या ये सब भी फ़र्ज़ी है?
इन वैज्ञानिकों में धन, गेहूं, मक्का, मखाना आदि में कई नए प्रभेदों को विस्किट किया है जिससे आज किसान काफी लाभान्वित हो रहे है l मसूर, मूंग, चना, तीसी के नए प्रभेद जो भविस्य में आने वाले है, वह इनके की कड़े परिश्रम का परिणाम है l आज विश्वविधालय राष्ट्रीय पटल पर अपना डंक पीट रहा है वह इन्ही वैज्ञनिकों की मेहनत का परिणाम है l
किसी भी विश्वविधालय की उचाई मापने का पैमाना वह के छात्र की सफलता, कार्यान्वित योजनाएं और उनकी सफलता है. यहाँ के छात्र JRF, NET , jaisi राष्ट्रीय परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुए है जिसका श्रेय इन्ही वैज्ञानिकों को जाता है l इस विश्वविधालय में 50 करोड़ से भी ज़्यादा के बाहरी शोध परियोजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है उसका श्रेय भी इन्ही वैज्ञानिकों को जाता है l
बिहार कृषि विश्वविधालय ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उच्च गुणवत्ता शिक्षा और शोध कार्यों के लिए 2 पुरस्कार प्राप्त किया है, इसका श्रेय भी इन्ही वैज्ञानिकों और शिक्षकों को जाता है जिहोने पिछले 5 सालों में अपनी मेहनत से विश्वविधालय का नाम रौशन किया है l कुलपति महोदय भी इस बात को कई बार बोल चुके है और उन्होंने एक अभिवादन भी किया है l
आप खुद ही सोच सकते है की इन्ही वैज्ञानिकों सह शिक्षकों की बदौलत विश्वविधालय ने सिर्फ ४ सालों में ICAR से Accrediation प्राप्त कर लिया है l फिर भी रिपोर्ट और मीडिया कहती है की हम सब फ़र्ज़ी है..
कहाँ है फर्ज़ीवाड़ा
१. हम जातिगत राजनीति से कभी भी ऊपर उठ नहीं पाए है, और हर जगह जात पात ही की बातें करते है. पर बिहार कृषि विश्वविधालय के युवा वैज्ञानिक राजनीति से ऊपर उठके सिर्फ विकास की बातें करते है, जो कुछ लोगों को हजम नहीं हो पाया है. ये वही लोग है जो इसे फर्ज़ीवाड़ा का नाम दे रहे है
२. हमारे राज्य में उच्च गुणवत्ता शिक्षा की काफी कमी हैl एक वक़्त था जब 12 बजे लेट नहीं और 3 बजे भेट नहीं के कथनी पे यह के लोग काम करते थेl 2010 के बाद ऐसे लोगो पर आफत सी आ गयीl आज के युवा वैज्ञानिक 24 घंटे काम रहे है ये शिक्षक यहाँ ही गुणवत्ता को आगे ले जाने का प्रयास कर रहे है जो कुछ लोगों को फर्ज़ीवाड़ा लगता हैl
३. यहाँ देश के हर कोने से वैज्ञानिक अपनी सेवाएं दे रहे है और राजनीती से ऊपर उठ कर अपना शिक्षण और शोध कार्य कर रहे है. ये ना तो उच्च अधिकारियों की चमचागिरी करते है ना ही किसी के आगे पीछे l चुकि ये अपने कम पे ध्यान देते है जो कुछ लोगो को फर्ज़ीवाड़ा लगता हैl
४. यहाँ के वैज्ञानिकों ने National (ICAR, DBT, DST), International (CGIAR, CIMMYT, ICARDA, Bill and Milinda Gates Foundation) जगहों पर अपना परचम लहराया है और अपने आप को हर क्षेत्र में अपने को साबित किया है जो कुछ लोगों को ज़रा भी नहीं सुहाता है. और वही लोग फर्ज़ीवाड़ा का नाम दे रहे है l
2012 या उसके बाद निक्युत हुए कई वैज्ञानिकों ने ARS की परीक्षा उत्तीर्ण की है और आज वह अपनी सेवाएं ICAR को दे रहे हैl इतना ही नहीं कई वैज्ञनिक बड़े विश्वविधालय में अपनी सेवाएं दे रहे है. क्या वहां भी वह फर्ज़ीवाड़ा से गए है?
हम पूछना चाहते है उन अभियर्थियों से जिनका चयन यहां पे 2012 में नहीं हुआ. क्या वे अभी तक बेरोजगार बैठे है. अगर हाँ तो क्यों? जब वह academically इतने मजबूत थे तो क्यों नहीं नेशनल या इंटरनेशनल संस्थानों में उनका चयन नहीं हुआ? क्या उनके लिए बिहार कृषि विश्वविधालय ही अंतिम पड़ाव था या उन्हें अपनी क़ाबलियत पर भरोसा नहीं है?
और हाँ, अगर UNITY IN DIVERSITY के कथन को चिर्तार्थ करना, टैलेंट होना या कृषि विकास के लिए तत्पर रहना फर्ज़ीवाड़ा है तो हाँ हम फ़र्ज़ी हैl हमें नहीं जातिगत राजनीति करनी ना हीं किसी की चमचागिरी करनी l क्योंकि हमें अपने क़ाबलियत पे पूरा भरोसा है l
हम वैज्ञानिक भले ही काफी यातनाओं या आरोपों का सामना कर रहे है, परंतु हम हर परिस्थिति में अडिग है और बेहतर से बेहतर करने का प्रयास कर रहे है. हम हर परिस्थितियों का सामना हसते हसते करने को सज्ज़ हैl इन वजहों से हम यहाँ के छात्रों की शिक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे l हम हर परिस्थिति में उन्हें अपने 100% देंगे. और लोगों से अनुरोध है की इन सब के बीच यहाँ की शिक्षा और उपलब्धियों को बदनाम ना किया जाये l
अगर वैसे अभ्यर्थी जिनका चयन नहीं हुआ और वह इससे फर्ज़ीवाड़ा का नाम दे रहे है तो उन्हें हम खुली चुनौती देते है की Scientific मंच पर आके वह हमसे debate करें और खुद को सिद्ध करें
हमें भी ये लगता है की जांच के दौरान काफी साक्ष्य छुपाये गए और हमारे पक्ष को कमजोर किया गया. जब जस्टिस की इन्क्वारी चल रही थी तब काफी अभियर्थियों के या तो दस्तावेज नहीं दिए गए या काफी चीजों को manipulate करके दिया गया. जिससे जांच कार्य काफी प्रभावित हुआ. और आज हम गंभीर आरोपों का सामना कर रहे है. कोई तो घर का ही व्यक्ति है जो अपने निजी लाभ के लिए ये सब साज़िश रच रहा है.
हम सारे वैज्ञानिक माननीय राज्यपाल, माननीय मुख्यमंत्री, माननीय कृषि मंत्री, माननीय शिक्षा मंत्री, माननीय कुलपति के अनुरोध करते है की इसे राजनीति से परे रखा जाये और इस मामले को यथा शीघ्र निरस्त किया जाये l
शिक्षा और नियुक्तियों के मामले में हमारे राज्य की जो आज राष्ट्रीय स्तर पर जो स्थिति बन गयी है वह काफी हास्यादपद है l बिहार ही नहीं यहाँ से बाहर राज्यों के लोग खुली या दबी जुबां से अब ये बोल रहे है की हमारे राज्य में सिर्फ फर्ज़ीवाड़ा ही है l जबकि ये कतई ही सच नहीं है l पूरा हिंदुस्तान इस बात का गवाह है की बिहार के लोग हर क्षेत्र में अव्वल रहे है, चाहे वह रेलवे हो, या बैंक हो, या प्रशासनिक सेवा हो या शिक्षा हो, हम किसी से काम नहीं है l
चलिए बात करते है सहायक अध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक (आगे से सिर्फ शिक्षक/वैज्ञानिक) की जो आज इस दंश को झेल रहे है की उनकी नियुक्ति एक फर्ज़ीवाड़ा थी l
क्या था नियुक्ति का पैमाना ?
मैं आप सभी से पूछना चाहता हूँ की आप इस बात से अवगत है की २०१२ में हुई नियुक्ति का न्यूनतम Eligibility Criteria क्या था? क्या वैसे वैज्ञानिक जिनका acedamic में कम अंक थे, वे चयन के लायक ही नहीं थे या उनके प्रमाण पत्र ही फ़र्ज़ी थे l UGC के अनुसार सहायक अध्यापक की नियुक्ति के लिए न्यूनतम Eligibility क्राइटेरिया संबंधित विषय में ५५% अंक होने चाहिए और NET उत्तीर्ण होना चाहिए l जिन्होंने भी UGC रेगुलेशन्स, 2009 के पूर्व अपनी PhD पास की है उनके लिए NET /SLET /SET की पात्रता मान्य नहीं है l चुकि बिहार कृषि विश्वविधालय, जो अपने मातृ कृषि विश्वविधालय, राजेंद्र कृषि विश्वविधालय से अलग हुआ था उसका अधिनियम के अनुसार नियुक्ति की प्रक्रिया अपनाई गयी l इसके अनुसार वैसे अभ्यर्थी जिनका NET नहीं है उनका भी चयन किया जा सकता है परंतु उन्हें नियुक्ति के 5 साल के भीतर उन्हें NET उत्तीर्ण कर लेना था अन्यथा उनकी नियुक्ति रद्द कर दी जाती. विभिन्य संकायों के लिए पुरे देश भर से लोगो ने आवेदन किया l उस वक़्त ऐसे कई मेधावी लोगो का चयन किया गया जिनका अकादमिक अंक थोड़े कम थे लेकिन उनमे टैलेंट कूट कूट के भरा था l चुकि ये पद शिक्षण और शोध के लिए था, यहाँ पे चयन में काफी विविधता रखी गयी. विश्वविधालय के काम के अनुसार ऐसे अभ्यथियों का चयन किया गया जो इस विश्वविधालय को अपने अपने क्षेत्र में आगे ले जा सके l
इस दौरान कुछ ऐसे लोगो का भी चयन हुआ जिन्होंने अच्छे संस्थान से अपनी पढाई की पर बहुत अच्छे अंक नहीं लाएं थे l क्या वे अभ्यर्थी जिन्होंने 55-70% अंक प्राप्त किये, वे योग्य नहीं हैं या वे वैज्ञानिक बनने के काबिल नहीं है, ऐसा कहाँ लिखा है?
अगर उच्च अंक ही एक मात्र मान्यता है तो प्राइवेट संस्थान की तो चांदी ही चांदी हो जाएगी जहाँ एक औसत छात्र को भी 90% अंक दे दिया जाता है l और शिक्षा एक विकराल व्यवसाय बन जायेगा और सिर्फ और सिर्फ प्राइवेट संस्थान के ही लोग सहायक प्राध्यापक बनेंगे नाकि किसी अच्छे संस्थान से पढ़ा हुआ एक मेधावी छात्र जिसका अंक उनके वनिस्पत काफी कम हो l
इस बात पे भी गौर कीजिये की क्या पीएचडी किया हुआ अभ्यर्थी ही सिर्फ सहायक प्राध्यापक बनने के काबिल है या एमएससी+नेट किया हुआ अभ्यर्थी भी बन सकता है l अगर पीएचडी ही मुख्य योग्यता है तो UGC को तो अपने नियमों में ही बदलाव कर देना चाहिए l
अगर किसी भी नियुक्त वैज्ञानिक का सर्टिफिकेट फ़र्ज़ी है तो आज के आज ही उनपर कारवाई होनी चाहिए l पर देखने की बात ये है की नियुक्ति के दिन विश्वविधालय वैज्ञानिक के सभी original certificates रख लेती है और वेरिफिकेशन के बाद ही उसे लौटती है. ऐसे में certificates के फ़र्ज़ी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता l
आज बिहार कृषि विश्वविधालय में देश के हर बड़े संस्थान से पढ़े हुए छात्र अपनी सेवाएं दे रहे है. उदहारण अनुसार यहाँ IARI , BHU , TNAU , UAS , DHARWAD; UAS , BANGALORE ; GBPUAT , Pantnagar ; IGKV , BCKV , CSIR , PALAMPUR से पढ़े हुए छात्र यहाँ अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे है और इस विश्वविधालय को नए आयाम तक पहुचाने में अपना योगदान दे रहे हैं l
सोचिये ज़रा ARS में कितने ही वैज्ञानिक सिर्फ MSc किये हुए है और राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहर रहे है हैl क्या वे फ़र्ज़ी है या उन्होंने क़ाबलियत के दम पर ये मुकाम हासिल किया है??
क्या है बिहार कृषि विश्वविधालय में नियुक्त शिक्षकों का योगदान
यहाँ के वैज्ञानिक सिर्फ शिक्षण में ही नहीं बल्कि शोध कार्यों में भी अव्वल रहे है l इस विश्वविधालय में करीब 300 शोध परियोजनाओं का संचालन किया जा रहा है, जिसका लगभग सारा दारोमदार 2012 या उसके बाद नियुक्त किये गए इन वैज्ञानिकों पर ही है l ये वही वैज्ञानिक है जिनके पास RKVY, Govt. of Bihar, Institutional, National (ICAR, DBT, DST), International (CGIAR, CIMMYT, ICARDA, Bill and Milinda Gates Foundation) द्वारा अनुमोदित शोध कार्यक्रम है. आप ही बताएं क्या ये सब भी फ़र्ज़ी है?
इन वैज्ञानिकों में धन, गेहूं, मक्का, मखाना आदि में कई नए प्रभेदों को विस्किट किया है जिससे आज किसान काफी लाभान्वित हो रहे है l मसूर, मूंग, चना, तीसी के नए प्रभेद जो भविस्य में आने वाले है, वह इनके की कड़े परिश्रम का परिणाम है l आज विश्वविधालय राष्ट्रीय पटल पर अपना डंक पीट रहा है वह इन्ही वैज्ञनिकों की मेहनत का परिणाम है l
किसी भी विश्वविधालय की उचाई मापने का पैमाना वह के छात्र की सफलता, कार्यान्वित योजनाएं और उनकी सफलता है. यहाँ के छात्र JRF, NET , jaisi राष्ट्रीय परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुए है जिसका श्रेय इन्ही वैज्ञानिकों को जाता है l इस विश्वविधालय में 50 करोड़ से भी ज़्यादा के बाहरी शोध परियोजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है उसका श्रेय भी इन्ही वैज्ञानिकों को जाता है l
बिहार कृषि विश्वविधालय ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उच्च गुणवत्ता शिक्षा और शोध कार्यों के लिए 2 पुरस्कार प्राप्त किया है, इसका श्रेय भी इन्ही वैज्ञानिकों और शिक्षकों को जाता है जिहोने पिछले 5 सालों में अपनी मेहनत से विश्वविधालय का नाम रौशन किया है l कुलपति महोदय भी इस बात को कई बार बोल चुके है और उन्होंने एक अभिवादन भी किया है l
आप खुद ही सोच सकते है की इन्ही वैज्ञानिकों सह शिक्षकों की बदौलत विश्वविधालय ने सिर्फ ४ सालों में ICAR से Accrediation प्राप्त कर लिया है l फिर भी रिपोर्ट और मीडिया कहती है की हम सब फ़र्ज़ी है..
कहाँ है फर्ज़ीवाड़ा
१. हम जातिगत राजनीति से कभी भी ऊपर उठ नहीं पाए है, और हर जगह जात पात ही की बातें करते है. पर बिहार कृषि विश्वविधालय के युवा वैज्ञानिक राजनीति से ऊपर उठके सिर्फ विकास की बातें करते है, जो कुछ लोगों को हजम नहीं हो पाया है. ये वही लोग है जो इसे फर्ज़ीवाड़ा का नाम दे रहे है
२. हमारे राज्य में उच्च गुणवत्ता शिक्षा की काफी कमी हैl एक वक़्त था जब 12 बजे लेट नहीं और 3 बजे भेट नहीं के कथनी पे यह के लोग काम करते थेl 2010 के बाद ऐसे लोगो पर आफत सी आ गयीl आज के युवा वैज्ञानिक 24 घंटे काम रहे है ये शिक्षक यहाँ ही गुणवत्ता को आगे ले जाने का प्रयास कर रहे है जो कुछ लोगों को फर्ज़ीवाड़ा लगता हैl
३. यहाँ देश के हर कोने से वैज्ञानिक अपनी सेवाएं दे रहे है और राजनीती से ऊपर उठ कर अपना शिक्षण और शोध कार्य कर रहे है. ये ना तो उच्च अधिकारियों की चमचागिरी करते है ना ही किसी के आगे पीछे l चुकि ये अपने कम पे ध्यान देते है जो कुछ लोगो को फर्ज़ीवाड़ा लगता हैl
४. यहाँ के वैज्ञानिकों ने National (ICAR, DBT, DST), International (CGIAR, CIMMYT, ICARDA, Bill and Milinda Gates Foundation) जगहों पर अपना परचम लहराया है और अपने आप को हर क्षेत्र में अपने को साबित किया है जो कुछ लोगों को ज़रा भी नहीं सुहाता है. और वही लोग फर्ज़ीवाड़ा का नाम दे रहे है l
2012 या उसके बाद निक्युत हुए कई वैज्ञानिकों ने ARS की परीक्षा उत्तीर्ण की है और आज वह अपनी सेवाएं ICAR को दे रहे हैl इतना ही नहीं कई वैज्ञनिक बड़े विश्वविधालय में अपनी सेवाएं दे रहे है. क्या वहां भी वह फर्ज़ीवाड़ा से गए है?
हम पूछना चाहते है उन अभियर्थियों से जिनका चयन यहां पे 2012 में नहीं हुआ. क्या वे अभी तक बेरोजगार बैठे है. अगर हाँ तो क्यों? जब वह academically इतने मजबूत थे तो क्यों नहीं नेशनल या इंटरनेशनल संस्थानों में उनका चयन नहीं हुआ? क्या उनके लिए बिहार कृषि विश्वविधालय ही अंतिम पड़ाव था या उन्हें अपनी क़ाबलियत पर भरोसा नहीं है?
और हाँ, अगर UNITY IN DIVERSITY के कथन को चिर्तार्थ करना, टैलेंट होना या कृषि विकास के लिए तत्पर रहना फर्ज़ीवाड़ा है तो हाँ हम फ़र्ज़ी हैl हमें नहीं जातिगत राजनीति करनी ना हीं किसी की चमचागिरी करनी l क्योंकि हमें अपने क़ाबलियत पे पूरा भरोसा है l
हम वैज्ञानिक भले ही काफी यातनाओं या आरोपों का सामना कर रहे है, परंतु हम हर परिस्थिति में अडिग है और बेहतर से बेहतर करने का प्रयास कर रहे है. हम हर परिस्थितियों का सामना हसते हसते करने को सज्ज़ हैl इन वजहों से हम यहाँ के छात्रों की शिक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे l हम हर परिस्थिति में उन्हें अपने 100% देंगे. और लोगों से अनुरोध है की इन सब के बीच यहाँ की शिक्षा और उपलब्धियों को बदनाम ना किया जाये l
अगर वैसे अभ्यर्थी जिनका चयन नहीं हुआ और वह इससे फर्ज़ीवाड़ा का नाम दे रहे है तो उन्हें हम खुली चुनौती देते है की Scientific मंच पर आके वह हमसे debate करें और खुद को सिद्ध करें
हमें भी ये लगता है की जांच के दौरान काफी साक्ष्य छुपाये गए और हमारे पक्ष को कमजोर किया गया. जब जस्टिस की इन्क्वारी चल रही थी तब काफी अभियर्थियों के या तो दस्तावेज नहीं दिए गए या काफी चीजों को manipulate करके दिया गया. जिससे जांच कार्य काफी प्रभावित हुआ. और आज हम गंभीर आरोपों का सामना कर रहे है. कोई तो घर का ही व्यक्ति है जो अपने निजी लाभ के लिए ये सब साज़िश रच रहा है.
हम सारे वैज्ञानिक माननीय राज्यपाल, माननीय मुख्यमंत्री, माननीय कृषि मंत्री, माननीय शिक्षा मंत्री, माननीय कुलपति के अनुरोध करते है की इसे राजनीति से परे रखा जाये और इस मामले को यथा शीघ्र निरस्त किया जाये l
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