Tuesday 14 March 2017

तुलसी की रामायण

संविधान के अनुच्छेद 45 में 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक-बालिकाओं की शिक्षा अनिवार्य और मुफ्त करने की बात लिखी गयी है।
लेकिन तुलसी की रामायण, इसका विरोध करने की वकालत करती है।

1- अधम जाति में विद्या पाए,
    भयहु यथाअहि दूध पिलाए।

अर्थात जिस प्रकार से सांप को दूध पिलाने से वह और विषैला (जहरीला) हो जाता है, वैसे ही शूद्रों (नीच जाति ) को शिक्षा देने से वे और खतरनाक हो जाते हैं।

संविधान जाति और लिंग के आधार पर भेद करने की मनाही करता है तथा दंड का प्रावधान देता है।
लेकिन तुलसी की रामायण (राम चरित मानस) जाति के आधार पर ऊंच नीच मानने की वकालत करती है।

देखें : पेज 986, दोहा 99 (3), उ. का.
2- जे वर्णाधम तेली कुम्हारा,
   स्वपच किरात कौल कलवारा।

अर्थात तेली, कुम्हार, सफाई कर्मचारी,आदिवासी, कौल, कलवार आदि अत्यंत नीच वर्ण के लोग हैं।

यह संविधान की धारा 14, 15 का उल्लंघन है। संविधान सब की बराबरी की बात करता है।

तथा तुलसी की रामायण जाति के आधार पर ऊंच-नीच की बात करती है, जो संविधान का खुला उल्लंघन है।

देखें : पेज 1029, दोहा 129 छंद (1), उत्तर कांड

3- अभीर (अहीर) यवन किरात
खलस्वपचादि अति अधरूप जे।
अर्थात अहीर (यादव), यवन (बाहर से आये हुए लोग जैसे इसाई और मुसलमान आदि) आदिवासी, दुष्ट, सफाई कर्मचारी आदिअत्यंत पापी हैं, नीच हैं। तुलसी दास कृत रामायण
(रामचरितमानस) में तुलसी ने छुआछूत की वकालत की है, जबकि यह कानूनन अपराध है।

देखें: पेज 338, दोहा 12(2)अयोध्या कांड।

4-कपटी कायर कुमति कुजाती,        लोक,वेदबाहर सब भांति।
तुलसी ने रामायण में मंथरा नामक दासी(आया) को नीच जाति वाली कहकर अपमानित किया जो संविधान का खुला उल्लंघन है।

देखें : पेज 338, दोहा 12(2) अ. का.

5- लोक वेद सबही विधि नीचा,
   जासु छांटछुई लेईह सींचा।
केवट (निषाद, मल्लाह) समाज, वेद शास्त्र दोनों से नीच है, अगर उसकी छाया भी छू जाए तो नहाना चाहिए।

तुलसी ने केवट को कुजात कहा है, जो संविधान का खुला उल्लंघन है। देखें :
पेज 498 दोहा 195 (1), अ.का.

6- करई विचार कुबुद्धि कुजाती,
    होहिअकाज कवन विधि राती।
अर्थात वह दुर्बुद्धि नीच जाति वाली विचार करने लगी है कि किस प्रकार रात ही रात में यह काम बिगड़ जाए।

7- काने, खोरे, कुबड़ें, कुटिल, कूचाली, कुमतिजानतिय विशेष पुनि चेरी कहि, भरतु मातुमुस्कान।
भारत की माता कैकई से तुलसी ने physically और mentally challenged लोगों के साथ-साथ स्त्री और खासकर नौकरानी को नीच और धोखेबाज कहलवाया है,‘कानों, लंगड़ों, और कुबड़ों को नीच और धोखेबाज जानना चाहिए, उन में स्त्री और खास कर नौकरानी को… इतना कह कर भरत की माता मुस्कराने लगी। ये संविधान का उल्लंघन है।
देखें : पेज 339,दोहा 14, अ. का.
8--तुलसी ने निषाद के मुंह से उसकी जाति को चोर, पापी, नीच कहलवाया है।
हम जड़ जीव, जीव धन खाती, कुटिल कुचली कुमति कुजाती,
यह हमार अति बाद सेवकाई,
लेही न बासन,बासन चोराई।
अर्थात हमारी तो यही बड़ी सेवा है कि हम आपके कपड़े और बर्तन नहीं चुरा लेते (यानि हम तथा हमारी पूरी जाति चोर है, हम लोग जड़ जीव हैं, जीवों की हिंसा करने वाले हैं)।
जब संविधान सबको बराबर का हक देता है, तो रामायण को गैरबराबरी एवं जाति के आधार पर ऊंच-नीच फैलाने वाली व्यवस्था के कारण उसे तुरंत जब्त कर लेना चाहिए, नहीं तो इतने सालों से जो रामायण समाज को भ्रष्ट करती चली आ रही है। इसकी पराकाष्ठा अत्यंत भयानक हो सकती है। यह व्यवस्था समाज में विकृत मानसिकता के लोग उत्पन्न कर रहे है तथा देश को अराजकता की तरफ ले जा रही है। देश के कर्णधार, सामाजिक चिंतकों,विशेष कर युवा वर्ग को तुरंत इसका संज्ञान लेकर न्यायोचित कदम उठाना चाहिए, नहीं तो मनुवादी संविधान को न मानकर अराजकता की स्थिति पैदा कर सकते हैं। जैसा कि बाबरी मस्जिद गिराकर, सिख नरसंहार करवा कर, ईसाइयों और मुसलमानों का कत्लेआम (ग्राहम स्टेंस की हत्या तथा गुजरात दंगा) कर मानवता को तार-तार पहले ही कर चुके हैं। साथ ही सत्ता का दुरुपयोग कर ये दुबारा देश को गुलामी में डाल सकते हैं, और गृह युद्ध छेड़कर देश को खंड खंड करवा सकते हैं।
तुलसीदास एक जातिवादी, स्त्रीविरोधी कट्टर व्यक्ति था।

जागो    

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