Wednesday, 1 March 2017

प्रमोशन में आरक्षण

 प्रमोशन में आरक्षण: सुप्रीम कोर्ट का फैसला, प्रमोट हुए कर्मचारियों को रिवर्ट करो

SUNDAY, FEBRUARY 26, 2017

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नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को एक फैसला सुनाया है जिसमें उसने प्रमोशन में मिलने वाले रिजर्वेशन कोटे को खत्म कर दिया है। जिसका सबसे बुरा असर कर्नाटक के दस हजार सरकारी कर्मचारियों पर पड़ेगा जहां इस आधार पर उनका डिमोशन किया जाएगा। इस फैसले के बाद से अब उन्हे नौकरी में प्रमोशन के लिए आरक्षण नहीं मिल पाएगा। बता दें कि कांग्रेस ने देश भर में अपनी राज्य सरकारों के माध्यम से प्रमोशन में आरक्षण लागू किया था परंतु ज्यादातर राज्यों में सरकारें यह केस हार चुकीं हैं।



कोर्ट के इस फैसले पर बात करते हुए कर्नाटक राज्य के कर्मचारी संघ के अध्यक्ष बी पी मंजे गौड़ा ने बताया कि कर्नाटक में कुल 65 डिपार्टमेंट की 18 प्रतिशत पोस्ट SC-ST लोगों के लिए आरक्षित थी। जिसमें कुल 5.15 लाख सरकारी कर्मचारियों में से 1-2 प्रतिशत ही ऐसे कर्मचारी हैं जिन्हें प्रमोशन में आरक्षण का लाभ मिला होगा। इस फैसले के तहत राज्य के लगभग 7,000-10,000 अफसरों और कर्मचारियों को निचली रैंक पर लाया जाएगा लेकिन एसोशिएशन ने दलित लोगों के लिए खड़े होने से इंकार कर दिया है।


कानून और संसदीय मामलों के मंत्री टी बी जयचंद्र ने बताया कि सरकार अभी अकाउंटेंट जनरल से बात कर रही है कि इस मामले में क्या किया जा सकता है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 फरवरी को फैसला सुनाया था कि 1978 से अभी तक जिन एससी/एसटी कर्मचारियों को मिला प्रमोशन आरक्षण के आधार पर था उसको खत्म कर दिया गया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कर्मचारियों को डिमोट करने के लिए तीन महीने का वक्त भी दिया था।


कर्नाटक कांग्रेस के एक वरिष्ठ मंत्री ने इस फैसले पर चिंता जताते हुए कहा है कि यह बेहद संवेदनशील मामला है। उन्होंने कहा है कि कोर्ट का यह आदेश पूर्णतः दलित विरोधी है और यदि हम दलितों के साथ खड़े नहीं हुए तो हम पर दलित-विरोधी होने का आरोप लग जाएगा। जिससे आगामी विधानसभा चुनाव खतरे में पड़ सकता है। हांलाकि मामले पर अभी आखिरी फैसला नहीं लिया गया है। 


इस देश की न्यायपालिका मूलनिवासी (एससी, एसटी, ओबीसी एवं अल्पसंख्यकों)  की दुश्मन बन गई है । जो कुछ भी हक और अधिकार सरकार से लड़कर मूलनिवासी लेता है उसको न्याय पालिका छीन लेती है । मंडल कमीशन के द्वारा ओबीसी को 27% आरक्षण 1990 में दिया गया परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने अपने 16/11/1992 के आदेश के द्वारा क्रीमी लेयर का प्रावधान कर एक तरह से उसे छीन लिया, उसी आदेश के साथ एससी, एसटी को प्रोन्नति में दी जानेवाली आरक्षण पर रोक लगा दिया ।2006 में समीक्षा के दौरान दिया फिर भी इतने अधिक शर्त लगा दिया कि शर्त में उलझाकर सरकारें आरक्षण (प्रोन्नति में)  दें ही नहीं सकती ।हाल में गुजरात उच्च न्यायालय नेे अपने आदेश के द्वारा मंडल कमीशन द्वारा प्रदत इस अधिकार को छीन लिया है कि आरक्षित वर्ग के जो प्रतियोगी सामान्य वर्ग की अरहत्ता धारण करते हैं तो उनकी गणना सामान्य वर्ग को प्राप्त 50% में की जाएगी। उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि अब जिस वर्ग के लिए आवेदन किया गया है उसी वर्ग में आपकी गणना की जाएगी और उसी का लाभ आरक्षित वर्ग ले सकता है । इससे ये स्पष्ट होता है कि 50.5%सीट 15% सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया और 85% के लिए 49.5%।

शासक वर्ग मूलनिवासियों के अधिकारों को समाप्त करने के लिए न्यायालय का सहारा ले रहा है। मूलनिवासी बहुजनों को सावधान हो जाना चाहिए।         

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