बसपा-बामसेफ-डीएसफोर-बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर के संस्थापक
मान्यवर कांशीरामजी का स्मृति दिन (9 अक्टूबर 2006) है.
इस दुखःद दिन पर समस्त बहुजन समाज परिवार द्वारा
मान्यवर कांशीरामजी के पावन स्मृती को विनम्र अभिवादन...
(1) कांशीरामजी के अंतिम संस्कार के समय बौद्ध भिक्ष क्यों रोये..
(2) कांशीरामजी का अंतिम संस्कार बौद्ध रीती रिवाज से हुआ..
(3) कांशीरामजी के चिता को बहन मायावतीजी ने अग्नी देकर (एक महिला होकर) हिंदू धर्म के रीतीरिवाज पर कुठाराघात किया..
(4) कांशीरामजी की अंतिम इच्छा थी की.. उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रिति रीवाज से होना चाहिए.. जबकी कांशारीमजी का पारिवारिक धर्म सिख था, और उनके देह को अग्नी मायावती ही देंगी..
(5) मान्यवर कांशीरामजी बौद्ध धम्म के सच्चे अनुयायी थे...
(निर्वाण बोधी)
9 अक्टूबर 2006 को निगम बोध घाट पर जब बहुजनों के मसीहा एवं 21 वी सदी के जननायक मान्यवर कांशीरामजी का पार्थिव देह को जब लाया गया था तो वहां का माहोल बिल्कुल वैसा ही था जैसा कि एक महापुरुष के परिनिर्वाण पर होता है. पुरे दिल्ली में बस अड्डे से लेकर लाल किले के पीछे तक और समुचे निगम बोध घाट में फैला विशाल जन समूह. गमगीन चेहरे और "तुने सोती कौम जगाई"के नारे लगाते उनके अनुयायी. लेकिन उस समय वहा एक आश्चर्यकारक यह बात थी की मान्यवर कांशीरामजी का अंतिम संस्कार भिक्खुगण बौद्ध रीती से कर रहे थे. और भी ज्यादा चौकांने वाली बात यह थी कि संसार, परिवार से अलग रहने वाले कितने ही चीवरधारी भिक्खु उनके अंतिम संस्कार में देखे गये. इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह थी कि भिक्खुओं तक की आंखों में भी आंसू थे. ये सब देखकर ऐसा प्रतित होता था कि, जिस मान्यवर कांशीरामजी को अपने जीवन के अंतिम क्षणों में चाहकर भी बौद्ध धम्म की दीक्षा लेने का अवसर नहीं मिला उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रीति से कैसे हुआ. जबकि मान्यवर कांशीरामजी का पारिवारिक धर्म तो सिख धर्म था, जबकी कांशीरामजी के परिवारजन सिख रीती से संस्कार क्रिया की मांग कर रहे थे. उनकी शवयात्रा में चीवरधारी भिक्खु शामिल थे और भिक्खुओं की आंखों में भी आंसू क्यों. और तो ओर कांशीरामजी के चिता को बहन मायावती ने अग्नी देकर (एक महिला होकर) हिंदू धर्म के रीतीरिवाज पर भी कुठाराघात किया..
लेकिन उनके बहुजन मिशन की सामाजिक पृष्ठभूमी ऐसी रही कि भारत के कोने कोने में जहां पर भी उनका संगठन पहुंचा, विचारधारा पहुंची, फुले-शाहू-डॉ.आंबेडकर पहुंचे.. जहां सुखा पड़ा था.. वहां पर बोधिवृक्ष हरा-भरा हुआ. कम लोग ही समझ पाते हैं कि कांशीरामजी द्वारा स्थापित आंदोलन, एक सामाजिक आंदोलन भी है. जिस भी दलित ने हाथी पर मोहर मारी उसके घर से देखते ही देखते हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां, स्केच, प्रतिमा आदि कुड़ेदान के हवाले हो गये.
बहुजन शब्द का प्रयोग सबसे पहले बुद्ध ने जनसमुदाय के लिए किया -"चरथ भिक्खवे चारिकं, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय लाकानुकम्पाय" (अर्थात- भिक्खुओं, बहुजन के हित के लिए, बहुजन के सुख के लिए, लोक पर दया करने के लिए.. विचरण करो) इसी के आधार पर 14 अप्रैल 1984 को मान्यवर कांशीरामजी ने बहुजन शब्द पर आधारीत बहुजन समाज पार्टी बनायी...हाथी इस चुनाव निशान को बौद्ध धर्म का प्रतीक बाबासाहब डॉ. आंबेडकरजी के बाद स्वयं कांशीरामजी ने चुनाव चिन्ह हाथी चुना.. लेकिन परम्परावादी बौद्ध उनके इशारे को कभी भी न समझ पाए. यही हाथी बौद्ध धर्म में बुद्ध के जन्म का प्रतिक माना जाता है. ऐसा कहा जाता है की, सम्राट अशोक के काल तक भी जब बुद्ध मूर्ति अस्तित्त्व में नहीं आई थी तो उनकी पूजा हाथी की प्रतिमा के प्रतिक रुप में ही प्रचलित थी. हाथी बौद्ध धर्म में अतिमांगलिक प्राणी माना जाता है. इतिहास के अनुसार सिद्धार्थ गौतम की माता महामाया ने गर्भ धारण करने वाले दिन सपने में एक सफेद हाथी को अपने गर्भ में प्रवेश करते हुए देखा था. स्वप्नशस्त्रियों ने इस स्वप्न का अर्थ यह बताया था कि पैदा होने वाला बालक गृहस्थ रहा, तो महान चक्रवर्ती सम्राट बनेगा और यदि गृहत्याग करेगा, तो सम्यकसंबुद्ध बनेगा.. यह कथा बरहुत स्तूप (दुसरी शती ई.पू.) में "मायादेवी का स्वप्न" नामक दृश्य में चित्रित की गई है.
मान्यवर कांशीरामजी ने अपना अधिकारी का पद और नौकरी तथा अपना पुरा परिवार "डॉ. आंबेडकर जयंती" और "बुद्ध जयंती" की छुट्टियो को बहाल करने के सवाल पर छोड़ दिया.. ऐसा कदम वही शक्स उठा सकता है जिसकी रग-रग और सांस में तथागत बुद्ध बसे हो.. यदि कांशीरामजी को बुद्ध के धार्मिक एव सामाजिक चिंतन ने प्रभावित न किया होता तो वे बामसेफ, डीएसफोर की तरह बौद्ध धम्म के प्रसार व प्रचार के लिए बुद्धीस्ट रिसर्च सेंटर की स्थापना क्यों करते. 1982 में कांशीरामजी द्वारा व्यापक पैमाने पर चलाए गये "शराब विरोधी आंदोलन" पंचशील के पांचवे शील - (सुरामेरयमज्जपमादठ्ठाना वेरमणी, सिक्खापदं समादियामी.) में की शिक्षा घर-घर तक पहुंचाने का ही सदकार्य था. अपने गहन चिन्तन-मनन के आधर पर मान्यवर कांशीरामजी ने यह पाया कि बाबासाहब के दोनों सपने - दलितों को भारत का हुक्मरान बनाना तथा भारत देश को बौद्धमय बनाना वास्तव में क दुसरे से पुरक है. उन्होंने पाया की बौद्ध प्रतीकों पर आधारित राजनितिक आंदोलन छेड़ने और उसे सफल बनाने पर बाबासाहेब के देख उपरकोत्त दोनों सपने साकार हो सकते है. क्योंकी शासकों का धर्म ही अन्ततः जनता का धर्म बन जाता है. वे अक्सर कहा करते थे - "बौद्धमय भारत की दिशा में ही हमारा आंदोलन है", "मै सम्राट अशोक का भारत देखना चाहता हू.."
"बहुजन समाज दिवस" के मौके पर मुंबई में शिवाजी पार्क पर 15 मार्च 2003 मे उपस्थित जनमूह को संबोधीत करते हुए कहा की..
"अगर मनुवादी समाज व्यवस्था को हटाकर मानवतावादी समाज व्यवस्था क निर्माण करना है तो हमें बौद्ध धर्म अपनाना होगा. इसलिए बाबासाहब आंबेडकर ने आपके इसी नागपुर में कहा था कि भारत देश को मैं बौद्धमय देश बना सकू. लेकिन दुख की बात है कि बाबासाहब को बुद्धिस्ट बने हुए 45 साल बीत गये है. और पांच साल के बाद उस धर्म परिवर्तन की गोल्डन जुबली होगी और पांच साल के अन्दर कोई जनगणना नहीं होगी. जनगणना तो 2001 के बाद 2011 में होगी, लेकिन 2001 की जनगणना के आधार पर बाबासाहब आंबेडकर का अधुरा सपना भू पुरा नहीं हुआ, आधा भी पुरा नहीं हुआ. अभी तक 2001 की जनगणनना के आधार पर एक करोड़ भी बुद्धीस्ट भारत में नहीं है. इसलिए मैंने फैसला किया है कि 2006 में जब बाबासाहब डॉ. आंबेडकर के धर्म परवर्वतन के 50 साल पुरे होंगे तो हम लोग उत्तर प्रदेश में चमार समाज के लोगों को सलाह देंगे की आप लोग बौद्ध धर्म अपनाए. और मुझे पुरा भरोसा है कि मेरी सलाह को मानकर सिर्फ उत्तर प्रदेश में 2 करोड़ से ज्यादा चमार समाज के लोग बौद्ध धर्म अपनाएंगे. इसलिए बाबासाहब का जो दुसरा काम आज तक भी अधुरा रहा है, उसको भी हम लोग आगे बढ़ायेंगे...
मान्यवर काशीरामजी कहते थे, "पहले तो बौद्ध धर्म की खास-खास और बुनियादी बातों की जानकारी ले रहा हू, जिससे बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के पूर्व उसके बारे में कुछ जान सकू. दुसरा मेरा बसे बड़ा उद्देश राजनितिक सत्ता प्राप्त करना है. जब में केन्द्र में सत्ता पर अधिकार कर लूंगा, उसके उपरान्त बौद्ध धर्म की दीक्षा लूंगा. उस समय मेरे साथ करोड़ों लोग स्वतः ही बौद्ध होते चले जाएंगे. उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि राजनितिक सत्ता हाथ में आने के बाद छोटी-मोटी बातें स्वतः ही होती चली जातीहै. जिस प्रकार सम्राट अशोक के द्वारा बौद्ध धम्म को अधिक बढावा देने के कारण लाखों लोग बौद्ध हो गये थे.."
कांशीरामजी आगे कहते है...
१. यदि बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाना है तो जाति को बौद्ध धर्म से दूर रखना जरुरी है. 2. बहुजन समाज का निर्माण किए बिना हम बौद्धमय भारत का निर्माण नहीं कर सकते. 3.हम शासक बनकर ही भारत को बौद्धमय बना सकते. 4. मेरे सपनों का भारत सम्राट अशोक का भारत है.
13 सितम्बर 2003 को ही उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ ओर वे चलने, फिरने तथा बोलने में अक्षम हो गये थे. और 3 साल बाद 9 अक्टूबर 2006को परिनिर्वाण को प्राप्त हो गये. अंतिम दिनों में वह कह गये थे और लिखा भी था की, "मेरा अंतिम संस्कार बौद्ध रीतीसे करना." इस प्रकार यदि हम मान्यवर कांशीरामजी की कार्य शैली को समझते हुए उनके बताए हुए रास्त पर चलेंगे तो हमारी आनेवाली पिढ़िया इस देश की हुक्मरान भी बनेंगी और हमारे महान पुरखों का बौद्ध धऱ्म भी फैलेगा, बाबासाहब का अधुरा मिशन भी पुरा होगा.. इससे साबित होता है की.. कांशीरामजी अपने अंतिम समय तक बौद्ध धम्म के सच्चे अनुयायी थे...
जयभीम, नमो बुद्धाय..
मान्यवर कांशीराम साहब के जीवन पर्यंत संघर्ष का मुख्य मकसद था सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन लाना. उनका मकसद था एक ऐसा समाज बनाना जो समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व पर आधारित हो. अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए वे सत्ता को एक साधन मानते थे
मान्यवर कांशीराम साहेब का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ ज़िले मे हुआ था. उनकी माता का नाम बिशन कौर व पिता का नाम हरि सिंह था, जो रविदासी समाज से सम्बंधित थे. कांशीराम जी ने पंजाब यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त करने के बाद पहले हाइ एनर्जी मेटीरियल्स रिसर्च लॅबोरेटरी मे काम किया और फिर रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन पुणे से जुड़े. जिस समय वह डी0 आर0 डी0 ओ0 मे कार्यरत थे, उस दौरान अम्बेडकर जन्म दिवस के अवकाश को खत्म करने के विरोध आन्दोलन मे सम्मिलित हुए. सन 1978 मे उन्होने बाँसेफ (BAMSEF-बॅक्वर्ड माइनोरिटी कम्यूनिटी एम्पलोईस फेडरेशन) नाम से गैर राजनीतिक संगठन का गठन किया और दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हितों की लड़ाई लड़ी. बाद मे उन्होने DS4 नामक सामाजिक संगठन का गठन किया. वह दलितों और पिछड़ों को एकजुट करने के लिये प्रयासरत रहे.
सन 1984 मे उन्होने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की. कांशीराम जी होशियारपुर और इटावा से लोक सभा सांसद रहे. आज़ाद भारत के लोकतंत्र मे भी शक्तिहीन और मात्र वोट की भूमिका निभाने वाले बिखरे बहुजन समाज को एकजुट करके उसे राजनीतिक शक्ति बनाने के सफल प्रयास के लिये उन्हे दलित चाणक्य भी कहा जाता है. बहुजन समाज पार्टी की स्थापना करके उसे राष्ट्रीय पार्टी बनाने से लेकर अनेक बार उत्तर प्रदेश मे सरकार बनाने तक का सफर भारतीय लोकतंत्र की सफलता को ही बयान करता है.
खराब स्वास्थ्य के चलते 9 अक्टोबर, 2006 को उनका देहावसान हो गया
बाबा साहेब के प्रयासों द्वारा प्रदत्त संवैधानिक शक्तियों को जमीनी हकीकत मे बदलने वाले कांशीराम जी का इस देश के बहिष्कृत, शोषित, वंचित और सामाजिक आर्थिक तौर पर हाशिये पर धकेले गये लोगों के दिलो मे जो स्थान है, वह किसी भगवान से कम नहीं. अत्यंत दूरदर्शी सोच के स्वामी और दलितों को राजनीतिक शक्ति दिलाने वाले राजनेता के तौर पर दलित शोषित समाज हमेशा उनका ऋणी रहेगा और आज उनके जन्म दिवस पर उनको कोटि कोटि नमन करते हुए उनके दिखाये मार्ग पर आगे बढते रहने के लिये संकल्प लेता है.
मान्यवर कांशीरामजी का स्मृति दिन (9 अक्टूबर 2006) है.
इस दुखःद दिन पर समस्त बहुजन समाज परिवार द्वारा
मान्यवर कांशीरामजी के पावन स्मृती को विनम्र अभिवादन...
(1) कांशीरामजी के अंतिम संस्कार के समय बौद्ध भिक्ष क्यों रोये..
(2) कांशीरामजी का अंतिम संस्कार बौद्ध रीती रिवाज से हुआ..
(3) कांशीरामजी के चिता को बहन मायावतीजी ने अग्नी देकर (एक महिला होकर) हिंदू धर्म के रीतीरिवाज पर कुठाराघात किया..
(4) कांशीरामजी की अंतिम इच्छा थी की.. उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रिति रीवाज से होना चाहिए.. जबकी कांशारीमजी का पारिवारिक धर्म सिख था, और उनके देह को अग्नी मायावती ही देंगी..
(5) मान्यवर कांशीरामजी बौद्ध धम्म के सच्चे अनुयायी थे...
(निर्वाण बोधी)
9 अक्टूबर 2006 को निगम बोध घाट पर जब बहुजनों के मसीहा एवं 21 वी सदी के जननायक मान्यवर कांशीरामजी का पार्थिव देह को जब लाया गया था तो वहां का माहोल बिल्कुल वैसा ही था जैसा कि एक महापुरुष के परिनिर्वाण पर होता है. पुरे दिल्ली में बस अड्डे से लेकर लाल किले के पीछे तक और समुचे निगम बोध घाट में फैला विशाल जन समूह. गमगीन चेहरे और "तुने सोती कौम जगाई"के नारे लगाते उनके अनुयायी. लेकिन उस समय वहा एक आश्चर्यकारक यह बात थी की मान्यवर कांशीरामजी का अंतिम संस्कार भिक्खुगण बौद्ध रीती से कर रहे थे. और भी ज्यादा चौकांने वाली बात यह थी कि संसार, परिवार से अलग रहने वाले कितने ही चीवरधारी भिक्खु उनके अंतिम संस्कार में देखे गये. इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह थी कि भिक्खुओं तक की आंखों में भी आंसू थे. ये सब देखकर ऐसा प्रतित होता था कि, जिस मान्यवर कांशीरामजी को अपने जीवन के अंतिम क्षणों में चाहकर भी बौद्ध धम्म की दीक्षा लेने का अवसर नहीं मिला उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रीति से कैसे हुआ. जबकि मान्यवर कांशीरामजी का पारिवारिक धर्म तो सिख धर्म था, जबकी कांशीरामजी के परिवारजन सिख रीती से संस्कार क्रिया की मांग कर रहे थे. उनकी शवयात्रा में चीवरधारी भिक्खु शामिल थे और भिक्खुओं की आंखों में भी आंसू क्यों. और तो ओर कांशीरामजी के चिता को बहन मायावती ने अग्नी देकर (एक महिला होकर) हिंदू धर्म के रीतीरिवाज पर भी कुठाराघात किया..
लेकिन उनके बहुजन मिशन की सामाजिक पृष्ठभूमी ऐसी रही कि भारत के कोने कोने में जहां पर भी उनका संगठन पहुंचा, विचारधारा पहुंची, फुले-शाहू-डॉ.आंबेडकर पहुंचे.. जहां सुखा पड़ा था.. वहां पर बोधिवृक्ष हरा-भरा हुआ. कम लोग ही समझ पाते हैं कि कांशीरामजी द्वारा स्थापित आंदोलन, एक सामाजिक आंदोलन भी है. जिस भी दलित ने हाथी पर मोहर मारी उसके घर से देखते ही देखते हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां, स्केच, प्रतिमा आदि कुड़ेदान के हवाले हो गये.
बहुजन शब्द का प्रयोग सबसे पहले बुद्ध ने जनसमुदाय के लिए किया -"चरथ भिक्खवे चारिकं, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय लाकानुकम्पाय" (अर्थात- भिक्खुओं, बहुजन के हित के लिए, बहुजन के सुख के लिए, लोक पर दया करने के लिए.. विचरण करो) इसी के आधार पर 14 अप्रैल 1984 को मान्यवर कांशीरामजी ने बहुजन शब्द पर आधारीत बहुजन समाज पार्टी बनायी...हाथी इस चुनाव निशान को बौद्ध धर्म का प्रतीक बाबासाहब डॉ. आंबेडकरजी के बाद स्वयं कांशीरामजी ने चुनाव चिन्ह हाथी चुना.. लेकिन परम्परावादी बौद्ध उनके इशारे को कभी भी न समझ पाए. यही हाथी बौद्ध धर्म में बुद्ध के जन्म का प्रतिक माना जाता है. ऐसा कहा जाता है की, सम्राट अशोक के काल तक भी जब बुद्ध मूर्ति अस्तित्त्व में नहीं आई थी तो उनकी पूजा हाथी की प्रतिमा के प्रतिक रुप में ही प्रचलित थी. हाथी बौद्ध धर्म में अतिमांगलिक प्राणी माना जाता है. इतिहास के अनुसार सिद्धार्थ गौतम की माता महामाया ने गर्भ धारण करने वाले दिन सपने में एक सफेद हाथी को अपने गर्भ में प्रवेश करते हुए देखा था. स्वप्नशस्त्रियों ने इस स्वप्न का अर्थ यह बताया था कि पैदा होने वाला बालक गृहस्थ रहा, तो महान चक्रवर्ती सम्राट बनेगा और यदि गृहत्याग करेगा, तो सम्यकसंबुद्ध बनेगा.. यह कथा बरहुत स्तूप (दुसरी शती ई.पू.) में "मायादेवी का स्वप्न" नामक दृश्य में चित्रित की गई है.
मान्यवर कांशीरामजी ने अपना अधिकारी का पद और नौकरी तथा अपना पुरा परिवार "डॉ. आंबेडकर जयंती" और "बुद्ध जयंती" की छुट्टियो को बहाल करने के सवाल पर छोड़ दिया.. ऐसा कदम वही शक्स उठा सकता है जिसकी रग-रग और सांस में तथागत बुद्ध बसे हो.. यदि कांशीरामजी को बुद्ध के धार्मिक एव सामाजिक चिंतन ने प्रभावित न किया होता तो वे बामसेफ, डीएसफोर की तरह बौद्ध धम्म के प्रसार व प्रचार के लिए बुद्धीस्ट रिसर्च सेंटर की स्थापना क्यों करते. 1982 में कांशीरामजी द्वारा व्यापक पैमाने पर चलाए गये "शराब विरोधी आंदोलन" पंचशील के पांचवे शील - (सुरामेरयमज्जपमादठ्ठाना वेरमणी, सिक्खापदं समादियामी.) में की शिक्षा घर-घर तक पहुंचाने का ही सदकार्य था. अपने गहन चिन्तन-मनन के आधर पर मान्यवर कांशीरामजी ने यह पाया कि बाबासाहब के दोनों सपने - दलितों को भारत का हुक्मरान बनाना तथा भारत देश को बौद्धमय बनाना वास्तव में क दुसरे से पुरक है. उन्होंने पाया की बौद्ध प्रतीकों पर आधारित राजनितिक आंदोलन छेड़ने और उसे सफल बनाने पर बाबासाहेब के देख उपरकोत्त दोनों सपने साकार हो सकते है. क्योंकी शासकों का धर्म ही अन्ततः जनता का धर्म बन जाता है. वे अक्सर कहा करते थे - "बौद्धमय भारत की दिशा में ही हमारा आंदोलन है", "मै सम्राट अशोक का भारत देखना चाहता हू.."
"बहुजन समाज दिवस" के मौके पर मुंबई में शिवाजी पार्क पर 15 मार्च 2003 मे उपस्थित जनमूह को संबोधीत करते हुए कहा की..
"अगर मनुवादी समाज व्यवस्था को हटाकर मानवतावादी समाज व्यवस्था क निर्माण करना है तो हमें बौद्ध धर्म अपनाना होगा. इसलिए बाबासाहब आंबेडकर ने आपके इसी नागपुर में कहा था कि भारत देश को मैं बौद्धमय देश बना सकू. लेकिन दुख की बात है कि बाबासाहब को बुद्धिस्ट बने हुए 45 साल बीत गये है. और पांच साल के बाद उस धर्म परिवर्तन की गोल्डन जुबली होगी और पांच साल के अन्दर कोई जनगणना नहीं होगी. जनगणना तो 2001 के बाद 2011 में होगी, लेकिन 2001 की जनगणना के आधार पर बाबासाहब आंबेडकर का अधुरा सपना भू पुरा नहीं हुआ, आधा भी पुरा नहीं हुआ. अभी तक 2001 की जनगणनना के आधार पर एक करोड़ भी बुद्धीस्ट भारत में नहीं है. इसलिए मैंने फैसला किया है कि 2006 में जब बाबासाहब डॉ. आंबेडकर के धर्म परवर्वतन के 50 साल पुरे होंगे तो हम लोग उत्तर प्रदेश में चमार समाज के लोगों को सलाह देंगे की आप लोग बौद्ध धर्म अपनाए. और मुझे पुरा भरोसा है कि मेरी सलाह को मानकर सिर्फ उत्तर प्रदेश में 2 करोड़ से ज्यादा चमार समाज के लोग बौद्ध धर्म अपनाएंगे. इसलिए बाबासाहब का जो दुसरा काम आज तक भी अधुरा रहा है, उसको भी हम लोग आगे बढ़ायेंगे...
मान्यवर काशीरामजी कहते थे, "पहले तो बौद्ध धर्म की खास-खास और बुनियादी बातों की जानकारी ले रहा हू, जिससे बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के पूर्व उसके बारे में कुछ जान सकू. दुसरा मेरा बसे बड़ा उद्देश राजनितिक सत्ता प्राप्त करना है. जब में केन्द्र में सत्ता पर अधिकार कर लूंगा, उसके उपरान्त बौद्ध धर्म की दीक्षा लूंगा. उस समय मेरे साथ करोड़ों लोग स्वतः ही बौद्ध होते चले जाएंगे. उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि राजनितिक सत्ता हाथ में आने के बाद छोटी-मोटी बातें स्वतः ही होती चली जातीहै. जिस प्रकार सम्राट अशोक के द्वारा बौद्ध धम्म को अधिक बढावा देने के कारण लाखों लोग बौद्ध हो गये थे.."
कांशीरामजी आगे कहते है...
१. यदि बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाना है तो जाति को बौद्ध धर्म से दूर रखना जरुरी है. 2. बहुजन समाज का निर्माण किए बिना हम बौद्धमय भारत का निर्माण नहीं कर सकते. 3.हम शासक बनकर ही भारत को बौद्धमय बना सकते. 4. मेरे सपनों का भारत सम्राट अशोक का भारत है.
13 सितम्बर 2003 को ही उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ ओर वे चलने, फिरने तथा बोलने में अक्षम हो गये थे. और 3 साल बाद 9 अक्टूबर 2006को परिनिर्वाण को प्राप्त हो गये. अंतिम दिनों में वह कह गये थे और लिखा भी था की, "मेरा अंतिम संस्कार बौद्ध रीतीसे करना." इस प्रकार यदि हम मान्यवर कांशीरामजी की कार्य शैली को समझते हुए उनके बताए हुए रास्त पर चलेंगे तो हमारी आनेवाली पिढ़िया इस देश की हुक्मरान भी बनेंगी और हमारे महान पुरखों का बौद्ध धऱ्म भी फैलेगा, बाबासाहब का अधुरा मिशन भी पुरा होगा.. इससे साबित होता है की.. कांशीरामजी अपने अंतिम समय तक बौद्ध धम्म के सच्चे अनुयायी थे...
जयभीम, नमो बुद्धाय..
मान्यवर कांशीराम साहब के जीवन पर्यंत संघर्ष का मुख्य मकसद था सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन लाना. उनका मकसद था एक ऐसा समाज बनाना जो समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व पर आधारित हो. अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए वे सत्ता को एक साधन मानते थे
मान्यवर कांशीराम साहेब का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ ज़िले मे हुआ था. उनकी माता का नाम बिशन कौर व पिता का नाम हरि सिंह था, जो रविदासी समाज से सम्बंधित थे. कांशीराम जी ने पंजाब यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त करने के बाद पहले हाइ एनर्जी मेटीरियल्स रिसर्च लॅबोरेटरी मे काम किया और फिर रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन पुणे से जुड़े. जिस समय वह डी0 आर0 डी0 ओ0 मे कार्यरत थे, उस दौरान अम्बेडकर जन्म दिवस के अवकाश को खत्म करने के विरोध आन्दोलन मे सम्मिलित हुए. सन 1978 मे उन्होने बाँसेफ (BAMSEF-बॅक्वर्ड माइनोरिटी कम्यूनिटी एम्पलोईस फेडरेशन) नाम से गैर राजनीतिक संगठन का गठन किया और दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हितों की लड़ाई लड़ी. बाद मे उन्होने DS4 नामक सामाजिक संगठन का गठन किया. वह दलितों और पिछड़ों को एकजुट करने के लिये प्रयासरत रहे.
सन 1984 मे उन्होने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की. कांशीराम जी होशियारपुर और इटावा से लोक सभा सांसद रहे. आज़ाद भारत के लोकतंत्र मे भी शक्तिहीन और मात्र वोट की भूमिका निभाने वाले बिखरे बहुजन समाज को एकजुट करके उसे राजनीतिक शक्ति बनाने के सफल प्रयास के लिये उन्हे दलित चाणक्य भी कहा जाता है. बहुजन समाज पार्टी की स्थापना करके उसे राष्ट्रीय पार्टी बनाने से लेकर अनेक बार उत्तर प्रदेश मे सरकार बनाने तक का सफर भारतीय लोकतंत्र की सफलता को ही बयान करता है.
खराब स्वास्थ्य के चलते 9 अक्टोबर, 2006 को उनका देहावसान हो गया
बाबा साहेब के प्रयासों द्वारा प्रदत्त संवैधानिक शक्तियों को जमीनी हकीकत मे बदलने वाले कांशीराम जी का इस देश के बहिष्कृत, शोषित, वंचित और सामाजिक आर्थिक तौर पर हाशिये पर धकेले गये लोगों के दिलो मे जो स्थान है, वह किसी भगवान से कम नहीं. अत्यंत दूरदर्शी सोच के स्वामी और दलितों को राजनीतिक शक्ति दिलाने वाले राजनेता के तौर पर दलित शोषित समाज हमेशा उनका ऋणी रहेगा और आज उनके जन्म दिवस पर उनको कोटि कोटि नमन करते हुए उनके दिखाये मार्ग पर आगे बढते रहने के लिये संकल्प लेता है.
यह मेरी जिंदगी का बहुत ही आनन्ददायक दिन है क्योंकि डॉ। ऑडुडवा ने मुझे अपने जादूगर और प्रेम जादू के साथ अपने पूर्व पति को वापस लाने में मदद करके मेरे लिए योगदान दिया है। मैं 6 साल से शादी कर रहा था और यह इतना भयानक था क्योंकि मेरे पति ने कभी मुझ पर भरोसा नहीं किया और वह वास्तव में मुझे धोखा दे रहा था और तलाक की मांग कर रहा था, मैं उससे इतना प्यार करता हूं और हमारे पास 2 बच्चे एक साथ होते हैं, मैं अपने बच्चों से प्रेम करता हूं और मैं चाहता हूं उन्हें रहने और उनके दोनों माता-पिता के साथ रहने के लिए, मुझे तलाक की रोकथाम करने और रिश्ते में प्यार और विश्वास वापस लाने के लिए इतनी सख्त जरूरत थी।
ReplyDeleteइसलिए जब मैं ब्लॉग पोस्ट पर डॉ। ओडुदेवा ईमेल पर आया तो उन्होंने टिप्पणी की कि उन्होंने इतने सारे लोगों को अपनी पूर्व वापस लेने और संबंध सुधारने में मदद करने के लिए कैसे मदद की है। और लोगों को अपने रिश्ते में खुश रहने के लिए।
मैंने अपनी स्थिति समझा दी और फिर मेरी मदद की, लेकिन मेरी सबसे बड़ी आश्चर्य से उसने मुझे बताया कि वह मेरे मामले में मेरी मदद करेंगे और मैं अब जश्न मना रहा हूं क्योंकि मेरे पति पूरी तरह अच्छे के लिए बदलते हैं। वह हमेशा मेरे और हमारे प्यारे बच्चों के साथ रहना चाहते हैं और मेरे वर्तमान के बिना कुछ भी नहीं कर सकते हैं, अब वह मुझे अब पहले से ज्यादा प्यार करता है।
मैं वास्तव में मेरी शादी का आनंद ले रहा हूं, जो एक महान उत्सव है मैं इंटरनेट पर गवाही देना जारी रखूंगा क्योंकि डॉ। ओडुडुवा वास्तव में एक वास्तविक वर्तनी ढलाईकार है। क्या आपको संपर्क डॉक्टर ODUDUWA महान की मदद की ज़रूरत है ..
अब आज संपर्क करें ODUDUWA VIA EMAIL: dr.oduduwaspellcaster@gmail.com या Whatsapp no .: +2348109844548
डॉडोडवा भी ऐसी समस्याओं को हल कर सकते हैं जैसेः रोकथाम, दुःस्वप्न की ज़रूरत के लिए, पूर्व में वापस लाने, अदालत के खिलाफ मुकदमा चलाने, सुगमता और सुराग, काले जादू का ताकत, ताकत और ताकत का जादू आदि।