Wednesday, 22 March 2017

बसपा-बामसेफ-डीएसफोर-बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर के संस्थापक

बसपा-बामसेफ-डीएसफोर-बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर के संस्थापक


मान्यवर कांशीरामजी का स्मृति दिन (9 अक्टूबर 2006) है.

इस दुखःद दिन पर समस्त बहुजन समाज परिवार द्वारा
मान्यवर कांशीरामजी के पावन स्मृती को विनम्र अभिवादन...

(1) कांशीरामजी के अंतिम संस्कार के समय बौद्ध भिक्ष क्यों रोये..
(2) कांशीरामजी का अंतिम संस्कार बौद्ध रीती रिवाज से हुआ..
(3) कांशीरामजी के चिता को बहन मायावतीजी ने अग्नी देकर (एक महिला होकर) हिंदू धर्म के रीतीरिवाज पर कुठाराघात किया..
(4) कांशीरामजी की अंतिम इच्छा थी की.. उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रिति रीवाज से होना चाहिए.. जबकी कांशारीमजी का पारिवारिक धर्म सिख था, और उनके देह को अग्नी मायावती ही देंगी..
(5) मान्यवर कांशीरामजी बौद्ध धम्म के सच्चे अनुयायी थे...

(निर्वाण बोधी)
9 अक्टूबर 2006 को निगम बोध घाट पर जब बहुजनों के मसीहा एवं 21 वी सदी के जननायक मान्यवर कांशीरामजी का पार्थिव देह को जब लाया गया था तो वहां का माहोल बिल्कुल वैसा ही था जैसा कि एक महापुरुष के परिनिर्वाण पर होता है. पुरे दिल्ली में बस अड्डे से लेकर लाल किले के पीछे तक और समुचे निगम बोध घाट में फैला विशाल जन समूह. गमगीन चेहरे और "तुने सोती कौम जगाई"के नारे लगाते उनके अनुयायी. लेकिन उस समय वहा एक आश्चर्यकारक यह बात थी की मान्यवर कांशीरामजी का अंतिम संस्कार भिक्खुगण बौद्ध रीती से कर रहे थे. और भी ज्यादा चौकांने वाली बात यह थी कि संसार, परिवार से अलग रहने वाले कितने ही चीवरधारी भिक्खु उनके अंतिम संस्कार में देखे गये. इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह थी कि भिक्खुओं तक की आंखों में भी आंसू थे. ये सब देखकर ऐसा प्रतित होता था कि, जिस मान्यवर कांशीरामजी को अपने जीवन के अंतिम क्षणों में चाहकर भी बौद्ध धम्म की दीक्षा लेने का अवसर नहीं मिला उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रीति से कैसे हुआ. जबकि मान्यवर कांशीरामजी का पारिवारिक धर्म तो सिख धर्म था, जबकी कांशीरामजी के परिवारजन सिख रीती से संस्कार क्रिया की मांग कर रहे थे. उनकी शवयात्रा में चीवरधारी भिक्खु शामिल थे और भिक्खुओं की आंखों में भी आंसू क्यों. और तो ओर कांशीरामजी के चिता को बहन मायावती ने अग्नी देकर (एक महिला होकर) हिंदू धर्म के रीतीरिवाज पर भी कुठाराघात किया..


लेकिन उनके बहुजन मिशन की सामाजिक पृष्ठभूमी ऐसी रही कि भारत के कोने कोने में जहां पर भी उनका संगठन पहुंचा, विचारधारा पहुंची, फुले-शाहू-डॉ.आंबेडकर पहुंचे.. जहां सुखा पड़ा था.. वहां पर बोधिवृक्ष हरा-भरा हुआ. कम लोग ही समझ पाते हैं कि कांशीरामजी द्वारा स्थापित आंदोलन, एक सामाजिक आंदोलन भी है. जिस भी दलित ने हाथी पर मोहर मारी उसके घर से देखते ही देखते हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां, स्केच, प्रतिमा आदि कुड़ेदान के हवाले हो गये.

बहुजन शब्द का प्रयोग सबसे पहले बुद्ध ने जनसमुदाय के लिए किया -"चरथ भिक्खवे चारिकं, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय लाकानुकम्पाय" (अर्थात- भिक्खुओं, बहुजन के हित के लिए, बहुजन के सुख के लिए, लोक पर दया करने के लिए.. विचरण करो) इसी के आधार पर 14 अप्रैल 1984 को मान्यवर कांशीरामजी ने बहुजन शब्द पर आधारीत बहुजन समाज पार्टी बनायी...हाथी इस चुनाव निशान को बौद्ध धर्म का प्रतीक बाबासाहब डॉ. आंबेडकरजी के बाद स्वयं कांशीरामजी ने चुनाव चिन्ह हाथी चुना.. लेकिन परम्परावादी बौद्ध उनके इशारे को कभी भी न समझ पाए. यही हाथी बौद्ध धर्म में बुद्ध के जन्म का प्रतिक माना जाता है. ऐसा कहा जाता है की, सम्राट अशोक के काल तक भी जब बुद्ध मूर्ति अस्तित्त्व में नहीं आई थी तो उनकी पूजा हाथी की प्रतिमा के प्रतिक रुप में ही प्रचलित थी. हाथी बौद्ध धर्म में अतिमांगलिक प्राणी माना जाता है. इतिहास के अनुसार सिद्धार्थ गौतम की माता महामाया ने गर्भ धारण करने वाले दिन सपने में एक सफेद हाथी को अपने गर्भ में प्रवेश करते हुए देखा था. स्वप्नशस्त्रियों ने इस स्वप्न का अर्थ यह बताया था कि पैदा होने वाला बालक गृहस्थ रहा, तो महान चक्रवर्ती सम्राट बनेगा और यदि गृहत्याग करेगा, तो सम्यकसंबुद्ध बनेगा.. यह कथा बरहुत स्तूप (दुसरी शती ई.पू.) में "मायादेवी का स्वप्न" नामक दृश्य में चित्रित की गई है.


मान्यवर कांशीरामजी ने अपना अधिकारी का पद और नौकरी तथा अपना पुरा परिवार "डॉ. आंबेडकर जयंती" और "बुद्ध जयंती" की छुट्टियो को बहाल करने के सवाल पर छोड़ दिया.. ऐसा कदम वही शक्स उठा सकता है जिसकी रग-रग और सांस में तथागत बुद्ध बसे हो.. यदि कांशीरामजी को बुद्ध के धार्मिक एव सामाजिक चिंतन ने प्रभावित न किया होता तो वे  बामसेफ, डीएसफोर की तरह बौद्ध धम्म के प्रसार व प्रचार के लिए बुद्धीस्ट रिसर्च सेंटर की स्थापना क्यों करते.  1982 में कांशीरामजी द्वारा व्यापक पैमाने पर चलाए गये "शराब विरोधी आंदोलन" पंचशील के पांचवे शील - (सुरामेरयमज्जपमादठ्ठाना वेरमणी, सिक्खापदं समादियामी.) में की शिक्षा घर-घर तक पहुंचाने का ही सदकार्य था. अपने गहन चिन्तन-मनन के आधर पर मान्यवर कांशीरामजी ने यह पाया कि बाबासाहब के दोनों सपने - दलितों को भारत का हुक्मरान बनाना तथा भारत देश को बौद्धमय बनाना वास्तव में क दुसरे से पुरक है. उन्होंने पाया की बौद्ध प्रतीकों पर आधारित राजनितिक आंदोलन छेड़ने और उसे सफल बनाने पर बाबासाहेब के देख उपरकोत्त दोनों सपने साकार हो सकते है. क्योंकी शासकों का धर्म ही अन्ततः जनता का धर्म बन जाता है. वे अक्सर कहा करते थे - "बौद्धमय भारत की दिशा में ही हमारा आंदोलन है", "मै सम्राट अशोक का भारत देखना चाहता हू.."

"बहुजन समाज दिवस" के मौके पर मुंबई में शिवाजी पार्क पर 15 मार्च 2003 मे उपस्थित जनमूह को संबोधीत करते हुए कहा की..


"अगर मनुवादी समाज व्यवस्था को हटाकर मानवतावादी समाज व्यवस्था क निर्माण करना है तो हमें बौद्ध धर्म अपनाना होगा. इसलिए बाबासाहब आंबेडकर ने आपके इसी नागपुर में कहा था कि भारत देश को मैं बौद्धमय देश बना सकू. लेकिन दुख की बात है कि बाबासाहब  को बुद्धिस्ट बने हुए 45 साल बीत गये है. और पांच साल के बाद उस धर्म परिवर्तन की गोल्डन जुबली होगी और पांच साल के अन्दर कोई जनगणना नहीं होगी. जनगणना तो 2001 के बाद 2011 में होगी, लेकिन 2001 की जनगणना के आधार पर बाबासाहब आंबेडकर का अधुरा सपना भू पुरा नहीं हुआ, आधा भी पुरा नहीं हुआ. अभी तक 2001 की जनगणनना के आधार पर एक करोड़ भी बुद्धीस्ट भारत में नहीं है. इसलिए मैंने फैसला किया है कि 2006 में जब बाबासाहब डॉ. आंबेडकर के धर्म परवर्वतन के 50 साल पुरे होंगे तो हम लोग उत्तर प्रदेश में चमार समाज के लोगों को सलाह देंगे की आप लोग बौद्ध धर्म अपनाए. और मुझे पुरा भरोसा है कि मेरी सलाह को मानकर सिर्फ उत्तर प्रदेश में 2 करोड़ से ज्यादा चमार समाज के लोग बौद्ध धर्म अपनाएंगे. इसलिए बाबासाहब का जो दुसरा काम आज तक भी अधुरा रहा है, उसको भी हम लोग आगे बढ़ायेंगे...

मान्यवर काशीरामजी कहते थे, "पहले तो बौद्ध धर्म की खास-खास और बुनियादी बातों की जानकारी ले रहा हू, जिससे बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के पूर्व उसके बारे में कुछ जान सकू. दुसरा मेरा बसे बड़ा उद्देश राजनितिक सत्ता प्राप्त करना है. जब में केन्द्र में सत्ता पर अधिकार कर लूंगा, उसके उपरान्त बौद्ध धर्म की दीक्षा लूंगा. उस समय मेरे साथ करोड़ों लोग स्वतः ही बौद्ध होते चले जाएंगे. उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि राजनितिक सत्ता हाथ में आने के बाद छोटी-मोटी बातें स्वतः ही होती चली जातीहै. जिस प्रकार सम्राट अशोक के द्वारा बौद्ध धम्म को अधिक बढावा देने के कारण लाखों लोग बौद्ध हो गये थे.."


कांशीरामजी आगे कहते है...
१. यदि बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाना है तो जाति को बौद्ध धर्म से दूर रखना जरुरी है. 2. बहुजन समाज का निर्माण किए बिना हम बौद्धमय भारत का निर्माण नहीं कर सकते. 3.हम शासक बनकर ही भारत को बौद्धमय बना सकते. 4. मेरे सपनों का भारत सम्राट अशोक का भारत है.

13 सितम्बर 2003 को ही उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ ओर वे चलने, फिरने तथा बोलने में अक्षम हो गये थे.  और 3 साल बाद 9 अक्टूबर 2006को परिनिर्वाण को प्राप्त हो गये. अंतिम दिनों में वह कह गये थे और लिखा भी था की,  "मेरा अंतिम संस्कार बौद्ध रीतीसे करना." इस प्रकार यदि हम मान्यवर कांशीरामजी की कार्य शैली को समझते हुए उनके बताए हुए रास्त पर चलेंगे तो हमारी आनेवाली पिढ़िया इस देश की हुक्मरान भी बनेंगी और हमारे महान पुरखों का बौद्ध धऱ्म भी फैलेगा, बाबासाहब का अधुरा मिशन भी पुरा होगा.. इससे साबित होता है की.. कांशीरामजी अपने अंतिम समय तक बौद्ध धम्म के सच्चे अनुयायी थे...
जयभीम, नमो बुद्धाय..    
   



मान्यवर कांशीराम साहब के जीवन पर्यंत संघर्ष का मुख्य मकसद था सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन लाना. उनका मकसद था एक ऐसा समाज बनाना जो समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व पर आधारित हो. अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए वे सत्ता को एक साधन मानते थे

मान्यवर कांशीराम साहेब का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ ज़िले मे हुआ था. उनकी माता का नाम बिशन कौर व पिता का नाम हरि सिंह था, जो रविदासी समाज से सम्बंधित थे. कांशीराम जी ने पंजाब यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त करने के बाद पहले हाइ एनर्जी मेटीरियल्स रिसर्च लॅबोरेटरी मे काम किया और फिर रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन पुणे से जुड़े. जिस समय वह डी0 आर0 डी0 ओ0 मे कार्यरत थे, उस दौरान अम्बेडकर जन्म दिवस के अवकाश को खत्म करने के विरोध आन्दोलन मे सम्मिलित हुए. सन 1978 मे उन्होने बाँसेफ (BAMSEF-बॅक्वर्ड  माइनोरिटी कम्यूनिटी एम्पलोईस फेडरेशन) नाम से गैर राजनीतिक संगठन का गठन किया और दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हितों की लड़ाई लड़ी. बाद मे उन्होने DS4 नामक सामाजिक संगठन का गठन किया. वह दलितों और पिछड़ों को एकजुट करने के लिये प्रयासरत रहे.

सन 1984 मे उन्होने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की. कांशीराम जी होशियारपुर और इटावा से लोक सभा सांसद रहे. आज़ाद भारत के लोकतंत्र मे भी शक्तिहीन और मात्र वोट की भूमिका निभाने वाले बिखरे बहुजन समाज को एकजुट करके उसे राजनीतिक शक्ति बनाने के सफल प्रयास के लिये उन्हे दलित चाणक्य भी कहा जाता है. बहुजन समाज पार्टी की स्थापना करके उसे राष्‍ट्रीय पार्टी बनाने से लेकर अनेक बार उत्तर प्रदेश मे सरकार बनाने तक का सफर भारतीय लोकतंत्र की सफलता को ही बयान करता है.


खराब स्वास्थ्य के चलते 9 अक्टोबर, 2006 को उनका देहावसान हो गया

बाबा साहेब के प्रयासों द्वारा प्रदत्त संवैधानिक शक्तियों को जमीनी हकीकत मे बदलने वाले कांशीराम जी का इस देश के बहिष्कृत, शोषित, वंचित और सामाजिक आर्थिक तौर पर हाशिये पर धकेले गये लोगों के दिलो मे जो स्थान है, वह किसी भगवान से कम नहीं. अत्यंत दूरदर्शी सोच के स्वामी और दलितों को राजनीतिक शक्ति दिलाने वाले राजनेता के तौर पर दलित शोषित समाज हमेशा उनका ऋणी रहेगा और आज उनके जन्म दिवस पर उनको कोटि कोटि नमन करते हुए उनके दिखाये मार्ग पर आगे बढते रहने के लिये संकल्प लेता है.

मनुस्मृति:- हिंदुओं के शोषण के जाल है

मनुस्मृति जैसा शास्त्र हर होली पर जलाया जाना चाहिए-ओशो
रावण को क्यों जलाते हो.. ? बुद्ध ने कहा कोई ब्रह्मा नहीं है, हिंदुओं के शोषण के जाल है ये शास्त्र- ओशो
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        यह आकस्मिक नहीं है कि तुम्हारे तथाकथित महात्मा और संत जितने अहंकारी होते हैं उतना कोई और नहीं।

राजनेताओं को भी मात दे देते हैं, सम्राटों को भी मात दे देते हैं। तुम्हारे तथाकथित ब्राह्मण, पंडित जितने अहंकारी होते हैं उतना कोई और नहीं।

यह देश तो अच्छी तरह परिचित है।

         पांच हजार साल हो गये, इस देश पर ब्राह्मण अपने अहंकार के कारण छाती पर चढ़ा हुआ है। और ब्राह्मण ने शास्त्र रचे हैं, उसके अहंकार से निकले शास्त्र हैं।

          *मनुस्मृति जैसा शास्त्र लिखा है, जिसको हर होली पर जलाया जाना चाहिए। रावण को जलाकर क्या करोगे?
पुतला बनाओ और जलाओ! अपना ही पुतला बनाते हो और जलाते हो, नाहक मेहनत कर रहे हो!*

            अब रावण को जलाना बंद करो। रावण की जगह मनुस्मृति जलाओ, क्योंकि मनुस्मृति ब्राह्मण के अहंकार की उदघोषणा है, हिंदू के अहंकार की उदघोषणा है। हिंदू की सारी मूढ़ता मनुस्मृति पर आधारित है।

          मनुस्मृति कहती है कि ब्राह्मण सर्वोच्च है। ब्राह्मण मुख से पैदा हुआ। क्षत्रिय बाहुओं से पैदा हुए। वैश्य जंघाओं से पैदा हुए।

         शूद्र पैरों से पैदा हुए। इसलिए शूद्रों की वही गति है जो जूतियों की। इससे ज्यादा उनकी कोई हैसियत नहीं है।और वैश्य भी कुछ ऊंचा नहीं, क्योंकि नाभि के नीचे का जो शरीर है वह निम्न है।इसलिए वैश्य शूद्र से जरा ही ऊंचा है,
          ख्याल रखना इस भ्रांति में मत पड़ना कि वैश्य कुछ ऊंचा है। मनुस्मृति की उदघोषणा के अनुसार वैश्य भी बस।शूद्र से इंच भर ही बड़ा है, जंघाओं से पैदा होता है।

        शरीर को भी बांट दिया हिस्सों में। जो अविभाज्य है उसको भी विभाजित कर दिया। जो जो अंग कमर के नीचे हैं वे निम्न हैं और जो कमर के ऊपर हैं वे उच्च। क्षत्रिय बाहुओं से पैदा हुए। वे जरा ऊंचे वैश्यों से।

         मगर ब्राह्मण मुख से पैदा हुए--ब्रह्मा के मुख से पैदा हुए। वैश्य चाहे तो शूद्र की लड़की से विवाह कर सकता है,
शूद्र नहीं कर सकता। क्षत्रिय चाहे तो वैश्य और शूद्र की लड़की से विवाह कर सकता है, लेकिन वैश्य क्षत्रिय की लड़की से विवाह नहीं कर सकता। और ब्राह्मण चाहे तो किसी की लड़की से विवाह करे, ब्राह्मण की लड़की से कोई विवाह नहीं कर सकता।

        सौ शूद्र भी मार डालो तो कोई पाप नहीं और अगर एक ब्राह्मण को भी मार डालो तो जन्मों जन्मों  तक नर्कों में सड़ोगे।ब्राह्मण ही लिखेंगे शास्त्र तो स्वभावतः अपने अहंकार  की प्रतिष्ठा करेंगे, अपने अहंकार को बचाएंगे।
और बुद्ध ने कहा कि ब्राह्मण कोई जन्म से नहीं होता, न कहीं कोई ब्रह्मा है जिसके मुंह से ब्राह्मण पैदा हुए।यह सब ब्राह्मणों की ईजाद, ये सब पंडित पुरोहित की चालबाजियां, ये बेईमानियां, ये शोषण के ढंग। शूद्र को वेद सुनने का भी अधिकार नहीं। एक शूद्र के कान में राम तक ने सीसा पिघलवा कर डलवा दिया, क्योंकि यह खबर दी गयी उनको कि उस शूद्र ने किसी ब्राह्मण के द्वारा वेद पढ़ा जा रहा था उसको छुप कर सुन लिया है।और राम को तुम मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हो,संकोच भी नहीं, शर्म भी नहीं! तो फिर अब जो शूद्र जलाए  जाते हैं गांवों में, वह सब धार्मिक कृत्य है! राम तक कर सकते हैं, तो साधारण जनों का क्या कहना!

           स्त्रियों को कोई अधिकार नहीं। स्त्रियों को कोई मनुष्य होने का हक नहीं। स्त्रियां वस्तुएं जैसी हैं। स्त्री को तो पति के साथ मर जाना चाहिए, सती हो जाना चाहिए। यही उसका एक मात्र उपयोग है--पति के लिए जीए, पति के लिए मरे।' पुरुषों ने शास्त्र लिखे तो पुरुषों ने अपने अहंकार की रक्षा कर ली।

          स्त्री के अहंकार को बचाने वाला तो कोई शास्त्र नहीं। महात्माओं ने शास्त्र लिखे तो अपने अहंकार की  व्यवस्था कर ली उन्होंने कि महात्माओं की सेवा करो, इसमें पुण्य है। महात्माओं के पैर दबाओ, इसमें पुण्य है। इससे स्वर्ग मिलेगा।

         बुद्ध ने इस सब की जड़ काट दी। कहा: ब्राह्मण होता है कोई ब्रह्म को जानने से। और ब्रह्म है तुम्हारा स्वभाव। और स्वभाव का पता तब चलता है जब मैं बिलकुल मिट जाता है। आत्मा को भी मत अपने पकड़ कर रखना, नहीं तो उतने में भी अहंकार बच रहेगा।

       बुद्ध को हम क्षमा नहीं कर पाए,  क्योंकि बुद्ध  ने बाहर  के ईश्वर को भी इनकार कर दिया और भीतर की आत्मा को भी इनकार कर दिया। अहंकार को कहीं भी बचने की कोई जगह न दी, कोई शरण न दी। अहंकार को जिस तरह से बुद्ध ने काटा, पृथ्वी पर  किसी व्यक्ति ने कभी नहीं काटा था।

         इसलिए बुद्ध की जो अनुकंपा है वह बेजोड़ है,उसका कोई जवाब नहीं बुद्ध बस अपने उदाहरण स्वयं हैं।लेकिन हमने उखाड़ फेंका बुद्ध को इस देश से। यह धार्मिक देश है! धार्मिक नहीं है, अहंकारी है।
इसलिए उखाड़ फेंका बुद्ध को, क्योंकि बुद्ध ने हमारे अहंकार पर ऐसी चोटें कीं कि हम कैसे बर्दाश्त करते। हमने बदला लिया।
      अहंकार का अर्थ है: मैं अलग हूं अस्तित्व से। अस्तित्व से माया है, मैं सत्य हूं! यह वृक्ष, ये पशु-पक्षी, ये आकाश, ये चांद तारे--ये माया हैं, मैं सत्य हूं और मजा यह है कि ये सब सत्य हैं और मैं माया है। लेकिन मैं को माया कहने में हमारे प्राण छटपटाते हैं। हालांकि इस मैं के कारण ही हम दुख झेलते हैं। हमारी मूढ़ता बड़ी सघन है! हम यह भी नहीं देखते कि हमारे दुख का कारण क्या है।
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ओशो पुस्तक: "ज्यूँ मछली बिन नीर"
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07:48 मिनट ओशो वीडियो यूट्यूब लिंक👇

https://youtu.be/v970wdZ2O5Q

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1) 🤑🌶🍒 निम्बू-मिर्च खाने के लिये है.. कही टाँगने के लिए नहीं है....

2) 😱🐈 बिल्लियाँ जंगली या पालतू जानवर है, बिल्ली के रास्ता काटने से कुछ गलत नहीं होता.. बल्कि चूहों से होनेवाले नुक्सान को बचाया जा सकता है.....
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3) 🗣💨 छींकना एक नैसर्गिक क्रिया है , छींकने से कुछ अनहोनी नहीं होती ना हि किसी काम में बाधा आती है- छींकने से शरीर की सुप्त पेशियां सक्रीय हो जाती है...

4) 💀🌳 भूत पेड़ों पर नहीं रहते - पेड़ों पर पक्षीरहते है.....

5) 🔬🔭 चमत्कार जैसी कोई चीज नहीं होती - हर घटना के पिछे वैज्ञानिक कारण होता है.....

6) ⛄☃ भोपा, बाबा जैसे लोग झुठे होते है- जिन्हें शारारिक मेहनत नहीं करनी ये वही लोग है.....

7) ⛈🌪👺🔥 जादू टोणा, या किसी ने कराया ऐसा कुछ नहीं होता, ये दुर्बल लोगोंके मानसिक विकार है....
जादू-टोणा करके आपके ग्रहो की दिशा बदलने वाले बाबा, हवा और मेघों की दिशा बदलकर बारिश नहीं ला सकते...?⛈☁🌒💫

8 ) 🌏🐠 वास्तुशास्त्र भ्रामक है. सिर्फ दिशाओ का डर दिखाकर लूट...
वास्तविक तो पृथ्वी ही खुद हर क्षण अपनी दिशा बदलती है....  अगर कुबेर जी उत्तर दिशा में है तो एक ही स्थान या दिशा में अमीर और गरीब दोनों क्यों पाये जाते है?..... .

9) 👼🐓🐐🍇🍎 मन्नत,पूजा, बलि, टिप या चढ़ावे से भगवान प्रसन्न होकर फल देते है, तो क्या भगवान् रिश्वतखोर है?.....    आध्यात्म मोक्ष के लिए है, धन कमाने के लिए नहीं.....

बसपा प्रमुख को चिट्ठी

बसपा प्रमुख को चिट्ठी

Written by Ashok Das

आदरणीय मायावती जी,
सादर जय भीम।
 उत्तर प्रदेश में बसपा हार गई है. हारी ही नहीं बल्कि बुरी तरह हार गई है. इतनी बुरी तरह; जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी. जल्दी ही यह भी साफ हो जाएगा कि वह कहां कितने वोटों से हारी और कहां किस नंबर पर रही. लेकिन बसपा का इस तरह हार जाना भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे लाखों-करोड़ों अम्बेडकरवादियों तक को निराश कर गया है. हालांकि इस हार के बाद आपने ईवीएम की गड़बड़ी की तरफ इशारा करते हुए यह मांग की है कि पुरानी बैलेट प्रणाली के तहत चुनाव कराया जाए. मैं इसको लेकर आपका समर्थन करता हूं. संभव है कि बहुजन समाज पार्टी के विरोधी इस बात के लिए आप पर तंज कसें लेकिन उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि पूर्व में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी ऐसी ही मांग कर चुके हैं.

लेकिन आपके द्वारा ईवीएम में गड़बड़ी से इतर अगर यूपी चुनाव में बसपा की हार की समीक्षा की जाए तो एकबारगी समझ में नहीं आता कि चूक कहां हुई, क्योंकि जिस तरह की ग्राउंड रिपोर्ट थी उसमें बसपा की इतनी करारी हार की संभावना बिल्कुल नहीं थी. हां, आपको इस बारे में जरूर जानकारी होगी. इस हार के बाद क्या आपको नहीं लगता कि अब समय आ गया है कि बहुजन समाज पार्टी को भी अपनी चुनावी रणनीति बदलनी चाहिए. सीधी सी बात यह है कि वक्त बदल रहा है. इस बदलते वक्त में वोटर भी बदल रहा है और मुद्दे भी. क्या ऐसे में बसपा को भी चुनाव लड़ने का अपना तरीका नहीं बदलना चाहिए?

बहुजन समाज पार्टी जिस अम्बेडकरवादी विचारधारा की उपज है, आज भी समाज का एक बड़ा हिस्सा उससे अंजान है. यूपी के वोटरों में भी बहुसंख्यक लोगों को जो अनुसूचित जाति वर्ग से ताल्लुक नहीं रखते हैं इस विचारधारा से बहुत लगाव नहीं है. ऐसे में विचारधारा से इतर किन मुद्दों को सामने रखकर वोटरों को जोड़ा जाए बसपा को इस बारे में सोचना होगा. मीडिया के जिस रूख को लेकर आप और आपकी पार्टी के समर्थक लगातार मीडिया पर आरोप मढ़ते रहते हैं, पार्टी को उस बारे में भी सोचना चाहिए. मसलन यूपी जितने बड़े चुनाव के दौरान भी मीडिया से दूर रहना और अखबारों और चैनलों को इंटरव्यू नहीं देने से पार्टी को कितना नुकसान हुआ, आपको इस बारे में भी सोचना चाहिए. क्योंकि आज के वक्त में मीडिया की ताकत को नकारा नहीं जा सकता. ऐसा क्यों नहीं हो पाता कि आप मीडिया के सवालों का खुलकर सामना करें और अपना पक्ष रखें. एक सहज सवाल जनता के बीच से यह भी उठता है कि कई बार सत्ता में रहने के बावजूद बसपा आखिरकार अपना मीडिया खड़ा क्यों नहीं करती है और उसे किसने रोका है? जबकि बाबासाहेब से लेकर कांशीराम जी ने तमाम अभाव के बावजूद समाचार पत्रों (मीडिया) के महत्व को स्वीकार किया और उसे चलाया भी.

 उत्तर प्रदेश में जब सभी पार्टी के नेता लगातार रोड शो कर जनता से ज्यादा से ज्यादा जुड़ने की कोशिश में जुटे थे आखिर आप इससे दूर क्यों रहीं? संभव है कि बहुजन समाज पार्टी में आस्था रखने वाले लोग अपने नेता यानि आपसे भी ऐसी उम्मीद कर रहे होंगे कि आप भी सड़क पर उतरें और ऐसा नहीं होने से उन्हें निराशा हुई होगी. जब यह दिख रहा था कि बाकी तमाम दल और नेता चुनाव में जीत हासिल करने के लिए अपना सबकुछ झोंक रहे हैं तब आप महज परंपरागत चुनावी रैलियों तक ही सीमित क्यों रही?

पता नहीं आप सोशल मीडिया को कितना देखती हैं, लेकिन आपसे एक बात कहना चाहूंगा कि वहां पर अम्बेडकरवादी विचारधारा में विश्वास रखने वाले लाखों युवा आपके लिए पागल हैं. क्या आपने इन युवाओं के लिए पार्टी में कोई जगह तलाशने की कोशिश की? जब तमाम पार्टियां युवा मोर्चा के बल पर अपनी पार्टी की जीत का आधार और भविष्य का नेता तैयार कर रही हैं, ऐसे में बहुजन समाज पार्टी में इन युवाओं के लिए जगह क्यों नहीं है? मैं इस बात से वाकिफ हूं कि तमाम युवा पार्टी में विभिन्न पदों पर सक्रिय हैं लेकिन 18 साल से 30 साल के वे युवा एक वोटर के अलावा पार्टी से खुद को कैसे जोड़े रखें और संवाद करें आपने इसकी गुंजाइश क्यों नहीं रखी. क्या युवा मोर्चा और इसी तरह के अन्य मोर्चों का सीधे तौर पर गठन करने में देर नहीं हो रही है?

क्या पता आपकी पार्टी को बहुजन बुद्धिजीवियों से क्या दिक्कत है, कोई दिखता ही नहीं है? न राज्यसभा में, न विधान परिषद में और न ही पार्टी संगठन में. न तो बतौर प्रवक्ता, न बतौर संगठनकर्ता और न ही बतौर रणनीतिकार. हालांकि मेरा यह मतलब नहीं है कि बाकी के लोग विद्वान नहीं हैं, लेकिन जिस तरह तमाम दलों ने चुनावी कार्यकर्ताओं से इतर विभिन्न क्षेत्रों मसलन मीडिया, विश्वविद्यालय, रंगकर्मी, लेखन आदि में सक्रिय लोगों को पार्टी से जोड़ कर रखा है, आप ऐसा करने में क्यों हिचकती हैं यह पार्टी से सहानुभूति रखने वाले हर व्यक्ति के लिए अबूझ पहेली बना हुआ है. उत्तर प्रदेश की चुनावी बेला में जब आप लगातार प्रेस रिलीज जारी कर अपनी बात रख रही थीं, कई बार ऐसा हुआ कि आपकी प्रतिक्रिया तब आई जब वो मुद्दा ठंडा हो चुका था. मुख्यमंत्री रहते आपने जो काम किए थे वह बेमिसाल थे, लेकिन आपके नेता और आपकी पार्टी मजबूती से इसे भी जनता को नहीं बता पाएं. अगर आपने कुछ बुद्धिजीवियों को पार्टी से जोड़ा होता तो आपको अपनी बात कहने में जरूर मदद मिली होती.

राजनीति भाषणों का खेल है. आप काम करें ना करें, आप कितना अच्छा बोलते हैं यह राजनीति की पहली शर्त है. इस कसौटी पर बहुजन समाज पार्टी काफी पीछे दिखती है. बसपा के नेता न तो टीवी पर अपनी बात रखते दिखते हैं और न ही समाचार पत्रों में कॉलम लिखते हैं. इस पर काम करने की बहुत जरूरत है. और हां, “मीडिया हमारी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश करता है” ऐसे तर्क अब पुराने हो चुके हैं. इसलिए ये सब कहने से अब काम नहीं चलने वाला है.

एक आखिरी बात. जब मान्यवर कांशीराम थे, एक वक्त ऐसा था जब बसपा दिल्ली, उत्तराखंड, पंजाब, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि राज्यों में भी बढ़ती हुई दिख रही थी और अंदाजा लगाया जा रहा था कि आने वाले एक-दो दशकों में बसपा इन राज्यों में परचम लहरा सकती है. आज इन राज्यों में बसपा बढ़ना तो दूर खत्म होने के कगार पर है. और जिस उत्तर प्रदेश के लिए आपने इन सारे राज्यों को परे धकेल दिया था वह भी आपके हाथ से निकल गया है. क्या आप ईमानदारी से आत्मचिंतन करने और खुद में एवं पार्टी में बदलाव को तैयार हैं या फिर सिर्फ ईवीएम को कोस कर अपना दायित्व पूरा कर लेंगी??

सादर
अशोक दास
संपादक
(दलित दस्तक)  


 उत्तर प्रदेश में मोदी जीते हैं या ईवीएम... इसका राज शायद इस भयंकर मोदी तूफान में भी भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी की मेरठ से हुई करारी हार और गोवा विधानसभा चुनाव में वहां के मुख्यमंत्री, 6 मंत्री समेत भाजपा की दुर्गति में ही कहीं छिपा हुआ है।

बेहद कम ही लोग जानते हैं कि इस बार समूचे गोवा की सभी विधानसभा सीटों और उत्तर प्रदेश के चुनाव में वाजपेयी की हारी हुई सीट समेत चुनिंदा विधानसभा सीटें ऐसी भी हैं, जिनमें वोटिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली संदेहास्पद ईवीएम के उलट सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में बहुत ही चाक चौबंद व्यवस्था के साथ वोटिंग करवाई गयी है।

एक दशक से ऊपर के वक्त से ईवीएम में गड़बड़ियों की बढ़ती शिकायतों और भारी हंगामे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को मजबूर किया था कि इस बार फिलहाल वह गोवा की 40 सीटों में पूरी तरह से और यूपी में चुनिंदा 20 सीटों पर ईवीएम के साथ-साथ वीवीपीएटी (वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) की तकनीकी व्यवस्था मतदान में करे। ताकि इसके नतीजे देख कर भविष्य में समूचे देश में ऐसी व्यवस्था लागू करवाई जाए।

वीवीपीएटी ऐसी व्यवस्था है, जिसमें साधारण ईवीएम की तुलना में किसी तरह की छेड़छाड़ या हैकिंग संभव नहीं है।

केंद्र ने मजबूरन ऐसा ही किया तो नतीजे भी वैसे नहीं रहे, जैसे परंपरागत ईवीएम वाले क्षेत्रों में देखने को मिले। गोवा के वीवीपीएटी वाले विधानसभा क्षेत्रों की चाकचौबंद मतदान व्यवस्था में तो मोदी का जादू जरा भी नहीं चला और यूपी में आये मोदी के तूफ़ान के विपरीत वहां भाजपा बुरी तरह से धराशाई हो गयी।

भाजपा की पराजय का आलम यह है कि न सिर्फ पिछली बार की तुलना में उसकी सीटें 21 से घटकर 13 पहुँच गयी हैं बल्कि उसके मुख्यमंत्री समेत 6 मंत्री भी चुनाव हार गए हैं। वहां कांग्रेस सबसे बड़ा दल बनकर उभरी है।

वह भी तब जबकि इसी विधानसभा चुनाव में परम्परागत ईवीएम वाले क्षेत्रों में मोदी की ऐसी सुनामी आयी, जैसी कि आजादी के बाद किसी नेता की नहीं आयी और उत्तर प्रदेश में तो ऐसे नतीजे आये, जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

तो ऐसे में अगर मायावती के माथे पर शिकन है और वह यह सवाल पूछ रही हैं कि कहीं ईवीएम के जरिये कोई महाघोटाला तो नहीं किया गया, तो इसमें किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए।

जाहिर सी बात है कि मायावती ही नहीं, समूची दुनिया भी यह जानकर हैरत में है कि मोदी ने उत्तर प्रदेश में अपने तूफान में पूरे प्रदेश के जाति धर्म के समीकरण ध्वस्त करके नया इतिहास ही रच दिया है।

जबकि प्रदेश की उन चुनिंदा 20 सीटों में जहाँ जहाँ ईवीएम के साथ साथ वीवीपीएटी की यह नयी चाक चौबंद मतदान व्यवस्था की गयी थी, उनमें से कई जगह मोदी का जादू नहीं चल सका और नतीजे गोवा जैसे ही देखने को मिले। यहाँ तक कि इन्हीं में से एक सीट पर भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी भी इस मोदी सुनामी में अपनी मेरठ सीट गँवा बैठे।

ऐसे में यह सवाल उठना तो लाजिमी ही है कि आखिर पूरे प्रदेश भर में अगर जनता ने जाति-धर्म से ऊपर उठकर मोदी पर सम्मोहित होकर भाजपा को राज्य में नया इतिहास बनाने का मौका दिया है तो फिर वाजपेयी के साथ मेरठ की जनता ने ऐसा भेदभाव क्यों किया?

यह बात कुछ हजम नहीं होती कि प्रदेश भर के लोगों ने मोदी को देख कर वोट डाले, उम्मीदवार को नहीं लेकिन हाल फिलहाल में ही प्रदेश अध्यक्ष रहे वाजपेयी के मामले में लोगों ने मोदी को न देख उम्मीदवार को देखा।

यही नहीं, विकिपीडिया में मौजूद जानकारी के मुताबिक जिन 20 सीटों पर यह चाक चौबंद व्यवस्था अपनायी गयी है, उसमें से भाजपा मुरादाबाद ग्रामीण, कानपुर में आर्य नगर और सहारनपुर शहर भी हार गयी है। यानी कि कुल 20 सीटों में से 16 वह जीती है तो 4 पर उसे हार भी मिली है।

वैसे तो देखने में यह आंकड़ा संदेहास्पद नहीं लग रहा क्योंकि 20 में से केवल 4 सीट हारने पर भाजपा समर्थक यह कह सकते हैं कि मोदी तूफान में इसमें से भी ज्यादातर तो भाजपा ने जीती ही हैं। लेकिन संदेह इसलिए हो रहा है क्योंकि इन 20 सीटों में जिन सीटों पर भाजपा जीती है, उनमें से अधिकांश पर पहले भी वही जीतती आयी है।

इसका अर्थ यह हुआ कि यूपी में जानबूझ कर उन्हीं 20 सीटों पर चाक चौबंद मतदान व्यवस्था लागू की गयी थी, जिनमें से अधिकांश पर भाजपा का ही प्रभाव रहा है और भाजपा के पक्ष में यदि कोई आंधी-तूफान-सुनामी या लहर न भी हो तो भी भाजपा इन्हें सकारात्मक माहौल में आसानी से जीत सकती है... तो भी वाजपेयी हार गए!!! और इनमें से भी कुल 4 सीटें ऐसी भी निकल आईं, जिनमें मोदी के तूफान का कतई असर भी नहीं हुआ!!!

अब ऐसे में जहाँ जहाँ केवल परंपरागत ईवीएम हैं, वहां वहां आये मोदी तूफान को लेकर सवाल तो उठेंगे ही। दरअसल, ईवीएम पर मायावती के जरिये पहली बार सवाल नहीं उठाया गया है। बल्कि अमेरिका समेत दुनिया के कई देश ईवीएम से मतदान को लेकर घबराते और कतराते तो रहे ही हैं, भारत में तो तक़रीबन हर चुनाव में ही इस पर उँगलियाँ उठती आयी हैं।

लोकतंत्र की हत्या

ये लोकतंत्र की हत्या नहीं तो क्या है ?

😂😂😂😂😂😂😂😂😂
यूपी चुनाव में
☄बसपा का मत प्रतिशत रहा 22.2%
☄सपा गठबंधन का मत प्रतिशत रहा 28%
☄भाजपा का मत प्रतिशत रहा 40.7%
☄अन्य का मत प्रतिशत रहा 2.9%
☄कुल मत प्रतिशत रहा 93.8%
☄यूपी में वोटिंग प्रतिशत रहा 61%
☄अब चुनाव आयोग ये बताये कि 32.8% मत अलग से कैसे आये ?
☄Total vote percent in UP 61%
☄ total % of vote of all parties coming to 93.8%, Is this democracy ❓❓
अखिल भारतीय ओबीसी महासभा
😂😂😂😂😂😂😂😂😂
शेयर करो जिससे देशवासियो को पता चले कि देश के लोग सरकार नीतियो को पसंद कर रहे हैं या EVM घोटाला चल रहा है।      

इन देशों में बैन कर दी गई है ईवीएम-


* नीदरलैंड ने पारदर्शिता ना होने के कारण ईवीएम बैन कर दी थी.

* आयरलैंड ने 51 मिलियन पाउंड खर्च करने के बाद 3 साल की रिसर्च कर भी सुरक्षा और पारदर्शिता का कारण देकर ईवीएम को बैन कर दिया था.

* जर्मनी ने ईवोटिंग को असंवैधानिक कहा था क्योंकि इसमें पारदर्शिता नहीं है.

* इटली ने इसलिए ईवोटिंग को खारिज कर दिया था क्योंकि इनके नतीजों को आसानी से बदला जा सकता है.

* यूएस- कैलिफोर्निया और अन्य राज्यों ने ईवीएम को बिना पेपर ट्रेल के बैन कर दिया था.

* सीआईए के सिक्योरिटी एक्सपर्ट मिस्टर स्टीगल के अनुसार वेनेज्यूएला, मैसिडोनिया और यूक्रेन में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीने कई तरह की गड़बड़ियों के कारण इस्तेमाल होनी बंद हो गई थीं.

* इंग्लैंड और फ्रांस ने तो इनका उपयोग ही नहीं किया.

सुब्रमनियन स्वामी ने भी एक MIT प्रोफेसर के साथ मिलकर ये दिखाया था कि ईवीएम मशीनों को कितनी आसानी से छेड़ा जा सकता है और नतीजे भी बदले जा सकते हैं.  


  सहारनपुर नगर में भी VVPAT का प्रयोग हुआ, चुनाव नतीजे में BJP के सीटिंग विधायक राजीव गुंबर बुरी तरह हारे।

कानपुर की आर्य नगर सीट पर VVPAT मशीन लगी थी, जहाँ पर BJP के 5 बार के विधायक सलिल बिशनोई हार गये।

मेरठ में BJP के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और 4 बार के विधायक लक्ष्मी कान्त बाजपेयी भी चुनाव हार गए.......इस सीट पर भी VVPAT मशीन का प्रयोग किया गया था।

आजमगढ मे 10 विधान सीटो मे केवल सदर-347 सीट पर VVPAT मशीन से चुनाव हुआ वहाँ भी BJP चुनाव हार गयी।

मोदी की हवा की हवा तो VVPAT ने निकाल दी...

सवाल ये नहीं कि BJP को बहुमत मिला तो EVM में धांधली के आरोप लगने शुरू हो गए। सवाल ये है कि चुनाव आयोग ने BJP के जीतने की प्रबल संभावना वाली सीटों पर VVPAT लगाई, फिर मोदी की लोकप्रियता के बावजूद BJP VVPAT प्रयोग लायी गई सीटों पर हार कैसे गई?

*चुनाव अगर धांधली करके ही जीते जाने है तो चुनाव करवाये ही क्यों जा रहे है, अडानी अम्बानी को देश का राजा घोषित कर दो और चुनाव की नौटंकी बंद कर दो।


ऐतिहासिक बौद्ध धर्मं में परिवर्तन

डा बी.आर. अम्बेडकर ने दीक्षा भूमि, नागपुर, भारत में ऐतिहासिक बौद्ध धर्मं में परिवर्तन के अवसर पर,15 अक्टूबर 1956 को अपने अनुयायियों के लिए 22 प्रतिज्ञाएँ निर्धारित कीं.800000 लोगों का बौद्ध धर्म में रूपांतरण ऐतिहासिक था क्योंकि यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक रूपांतरण था.उन्होंने इन शपथों को निर्धारित किया ताकि हिंदू धर्म के बंधनों को पूरी तरह पृथक किया जा सके.ये 22 प्रतिज्ञाएँ हिंदू मान्यताओं और पद्धतियों की जड़ों पर गहरा आघात करती हैं. ये एक सेतु के रूप में बौद्ध धर्मं की हिन्दू धर्म में व्याप्त भ्रम और विरोधाभासों से रक्षा करने में सहायक हो सकती हैं.इन प्रतिज्ञाओं से हिन्दू धर्म,जिसमें केवल हिंदुओं की ऊंची जातियों के संवर्धन के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया, में व्याप्त अंधविश्वासों, व्यर्थ और अर्थहीन रस्मों, से धर्मान्तरित होते समय स्वतंत्र रहा जा सकता है. प्रसिद्ध 22 प्रतिज्ञाएँ निम्न हैं:


1)मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
2)मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
3)मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.
4)मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ
5)मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ
6)मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूँगा.
7)मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा
8)मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा
9)मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ
10)मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा
11)मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुशरण करूँगा
12)मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा.
13)मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूँगा तथा उनकी रक्षा करूँगा.
14)मैं चोरी नहीं करूँगा.
15)मैं झूठ नहीं बोलूँगा
16)मैं कामुक पापों को नहीं करूँगा.
17)मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा.
18)मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूँगा.
19)मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ
20)मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है.
21)मुझे विश्वास है कि मैं फिर से जन्म ले रहा हूँ (इस धर्म परिवर्तन के द्वारा).
22)मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके (धर्म परिवर्तन के) बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा.

मीडिया क्यों बदनाम

मीडिया क्यों बदनाम हो रहा है और क्यों गाली खा रहा है..जानिए




देश में आज मीडिया पूरी तरह बदनाम हो रहा है या हो चूका है लेकिन जनता को यह जानना जरुरी है कि यह सब क्यों हो रहा है...
चलिए, हम एक छोटी सी कोशिश करते है आपको बताने कि.....
जरुरी नहीं है कि आप इसे माने लेकिन इस पर एक बार विचार जरूर करे......

देश में 2 तरह के मीडिया का अधिक चलन है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (न्यूज़ चेनल) और प्रिंट मीडिया (समाचार पत्र). पहले तो आप यह तय कर ले कि किस प्रकार के मीडिया में क्या बताया जा रहा है. पहले हम आपको इलेक्ट्रॉनिक मीडिया  कि सच्चाई बताया जा रही है.
1. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बड़े 18  चैनल जिनको आप देखते है मुकेश अम्बानी द्वारा ख़रीदे जा चुके है, इसलिए आपको बीजेपी ओर पीएम मोदी के समर्थन के ही समाचार दिखाए जाते है यहाँ तक की कई भाजपा नेता भी मीडिया से पूरी तरह बाहर है.

2. कुछ न्यूज़  चैनल के मालिक भाजपा कि ओर से राज्यसभा में सांसद है पीएम मोदी और भाजपा के फायदे और समर्थन के ही समाचार दिखाते है.

3. कुछ न्यूज़ चैनलो ने सच्चाई दिखानी चाही तो उनके प्रसारण पर ही रोक लगाने की कार्यवाही की गई. और कुछ को लाइसेंस ही निरस्त करने की धमकी दी गई. जिसके बाद उन्होंने अपने घुटने सरकार के सामने टेक दिए.


4. इन सबके अलावा अगर  चैनल थोड़ी बहुत भी सच्चाई दिखाता है तो उसके विज्ञापन बंद कर दिए जाते है या फिर कम टीआरपी का सार्टिफेकेट जारी कर दिया जाता है जिससे उक्त चैनल को आर्थिक नुकसान होता है.

5. एक  चैनल के मालिक पीएम मोदी के मीडिया सलाहकार भी है.

6. मोदी भक्ति के चलते ज़ी न्यूज़ से कई पत्रकारों चैनल को अलविदा कह दिया है.
अब बारी आती है प्रिंट मीडिया (समाचार पत्र) कि

1. देश के सभी बड़े समाचार पत्र मजीठिया वेज बोर्ड में फसे हुए है जिसके अनुसार हर समाचार पत्र के ऊपर (800 से 3900 करोड़ रुपये) की देनदारी है यह रकम समाचार पत्रो को अपने कर्मचारियों को देना है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है. सरकार ने बड़े समाचार पत्रो पर दवाब बनाया हुआ है. जिस कारण वो पीएम और बीजेपी के समर्थन में समाचार छापना मजबूरी है. मजीठिया के चलते दिल्ली से प्रकाशित देश का बड़ा हिंदी अखबार हिंदुस्तान को मुकेश अम्बानी द्वारा 5000 हजार करोड़ में ख़रीदा जा चूका है. इसके बाद कई और समाचार पत्रो को भी बड़े कारोबारी द्वारा जल्द ही ख़रीदा जायेगा.


2. राजस्थान से प्रकाशित बड़े हिंदी अखबार राजस्थान पत्रिका ने कुछ कोशिश की तो केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने उनके विज्ञापन पर रोक लगा दी. जिसको लेकर राजस्थान पत्रिका ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की.

3. देश के सभी समाचार पत्रो पर केंद्र सरकार ने सख्ती दिखाते हुए कई कड़े नियम लाद दिए जिससे 9000 समाचार पत्रो में से केबल 2000 समाचार पत्र ही बचे है, बाकी या तो बंद हो चुके है या फिर आर्थिक संकट का दंश झेल रहे है.

4. देश भर के समाचार पत्रो से अब तक 2 लाख लोगो का रोजगार समाप्त हो चूका है. और भी करीब 1 लाख लोगो की नोकरियो पर तलवार लटक रही है. छोटे समाचार पत्रो को मैनेज करना मोदी सरकार के लिए टेडी खीर थी इसलिए उन्होंने सूचना प्रसारण के माध्यम से एक बार में छोटे समाचार पत्रो या तो ख़त्म कर दिया या फिर दबा दिया.

5.. केंद्र सरकार ने अपने समर्थक बड़े समाचार पत्रो को प्रीमियम दर पर कई गुना विज्ञापन प्रदान कर रही है और देश के 6000 समाचार पत्रो को पिछले 6 माह में केवल एक विज्ञापन दिया गया है.

ये तो केवल कुछ बाते ही है जो आपके समक्ष प्रदर्शित की गई है. इससे भी आगे बहुत कुछ है. मीडिया पर इस तरह का दबाब इमरजेंसी के समय भी नहीं था. अगर समाचार पत्र समाप्त हो गए तो आम आदमी की पहुँच इस चौथे स्तम्भ से भी दूर होती जायगी. जनता केबल वही पढेगी, वही देखेगी जो सरकार और बड़े उद्योग घराने दिखाना चाहेंगे. तय आपको करना है की आप क्या चाहते है. दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश का मीडिया चंगुल में फंस गया है. जो पिछले 70 सालो में स्वतंत्र भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ.   

हिन्दू और मुसलमान

हिन्दू और मुसलमान.  दोनो सुनें , थोडा धीरज से और थोडा ध्यान से पढ़े ?

* 250 वर्ष का इतिहास खंगालने पर पता चलता है , कि आधुनिक विश्व मतलब 1800 के बाद , जो दुनिया मे तरक़्क़ी हुई , उसमें पश्चिमी मुल्को यानी सिर्फ *यहूदी और ईसाई लोगो का ही हाथ है ! हिन्दू और मुस्लिम का इस विकास मे 1% का भी योगदान नही है !
* आप देखिये के 1800 से लेकर 1940 तक *हिंदू और मुसलमान सिर्फ बादशाहत या गद्दी के लिये लड़ते रहे !
अगर आप दुनिया के 100 बड़े वैज्ञानिको के नाम लिखें , तो बस एक या दो नाम हिन्दू और मुसलमान के मिलेंगे !
* पूरी दुनिया मे *61 इस्लामी मुल्क है , जिनकी जनसंख्या 1.50 अरब के करीब है और कुल 435 यूनिवर्सिटी है !
दूसरी तरफ हिन्दू की जनसंख्या 1.26 अरब के क़रीब है और 385 यूनिवर्सिटी है !
जबकि अमेरिका मे 3 हज़ार से अधिक और जापान मे 900 से अधिक यूनिवर्सिटी है !
ईसाई दुनिया के 45% नौजवान यूनिवर्सिटी तक पहुंचते हैं ! वहीं मुसलमान नौजवान 2% और हिन्दू नौजवान 8 % तक यूनिवर्सिटी तक पहुंचते हैं !
दुनिया के 200 बड़ी यूनिवर्सिटी मे से 54 अमेरिका , 24 इंग्लेंड , 17 ऑस्ट्रेलिया , 10 चीन , 10 जापान ,  10 हॉलॅंड , 9 फ़्राँस , 8 जर्मनी , 2 भारत और 1 इस्लामी मुल्क में हैं !
** अब हम आर्थिक रूप से देखते है !
अमेरिका का जी. डी. पी 14.9 ट्रिलियन डॉलर है !
जबकि पूरे इस्लामिक मुल्क का कुल जी. डी. पी 3.5 ट्रिलियन डॉलर है ! वहीं भारत का 1.87 ट्रिलियन डॉलर है !
दुनिया मे इस समय 38,000 मल्टिनॅशनल कम्पनियाँ हैं ! इनमे से 32000 कम्पनियाँ सिर्फ अमेरिका और युरोप में हैं !
अब तक दुनिया के 15,000 बड़े अविष्कारों मे 6103 अविष्कार अकेले अमेरिका में और 8410 अविष्कार ईसाइयों या यहूदियों ने किये हैं !
दुनिया के 50 अमीरो में 20 अमेरिका , 5 इंग्लेंड , 3 चीन , 2 मक्सिको , 2 भारत और 1 अरब मुल्क से हैं !
* अब आपको बताते है , कि हम *हिन्दू और मुसलमान जनहित , परोपकार या समाज सेवा मे भी ईसाईयों और यहूदियों से पीछे हैं !  रेडक्रॉस दुनिया का सब से बड़ा मानवीय संगठन है , इस के बारे मे बताने की जरूरत नहीं है !
* बिल गेट्स ने *10 बिलियन डॉलर से बिल- मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की बुनियाद रखी , जो कि पूरे विश्व के 8 करोड़ बच्चो की सेहत का ख्याल रखती है !
जबकि हम जानते है , कि भारत में कई अरबपति हैं !
मुकेश अंबानी अपना घर बनाने मे 4000 करोड़ खर्च कर सकते हैं और अरब का अमीर शहज़ादा अपने स्पेशल जहाज पर 500 मिलियन डॉलर खर्च कर सकते हैं ! मगर मानवीय सहायता के लिये दोनों ही आगे नही आ सकते हैं !
* यह भी जान लीजिये की *ओलंपिक खेलों में अमेरिका ही सब से अधिक गोल्ड जीतता है ,  हम खेलो में भी आगे नहीं !
* *हम अपने अतीत पर गर्व तो कर सकते हे , किन्तु व्यवहार से स्वार्थी ही है ! आपस में लड़ने पर अधिक विश्वास रखते हैं !
* *मानसिक रूप में आज भी हम विदेशी व्यक्ति से अधिक प्रवाभित हैं ! अपनी संस्कृति को छोड़ कर , विदेशी संस्कृति अधिक अपनाते हैं !
*" बस हर हर महादेव और अल्लाह हो , अकबर के नारे लगाने मे , हम सबसे आगे हैं ! अब जरा सोचिये , कि हमें किस तरफ अधिक ध्यान देने की जरुरत है ! क्यों ना हम भी दुनिया में मजबूत स्थान और भागीदारी पाने के लिए प्रयास करें , बजाय विवाद उत्पन्न करने के और हर समय हिन्दु - मुस्लिम करने के , खुद कि और देश की ऊन्नती पे ध्यान दे ! सभी जागरूक और विवेकशील संचालकों के लिए।

गाय माता

जय भीम जय भारत दोस्तों
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🐄गाय एक जानवर है उसको हरामखोरों ने माता बना दिया।माता भी बना लिया और ,दूध देना बन्द कर दे तो घर से निकाल भी देते है।सड़को पर प्लास्टिक खाने को छोड़ देते है।

🌬चेचक बीमारी का नाम था उसको भी हरामखोरों ने माता बना दिया।चेचक माता को तो गोली खिला खिला कर WHO ने भारत से भगा ही दिया।बेचारी चेचक माता।

🌞छठ पर्व का नाम था उसको भी छठ माता बना दिया हराम खोरों ने(यह माता बनाने का मनुवादियों का ताजा रिसर्च था)।अभी नए नए माताओ का रिसर्च जारी भी है।आगे देखिये कौन कौन सी माताएं आती है,चेचक माता,दीपावली माता,होली माता,हैजा माता,दस्त माता वगैरा वगैरा।
🇮🇳भारत अपने देश का नाम है ।भारत पुरुष वाचक शब्द है।पुरुष अपना नाम भारत रखते है।अगर हरामखोर दोगले मनुवादियों के अनुशार यह नाम भरत के नाम पर पड़ा है तो वह भी पुरुष ही था।अपने देश में जिस बच्चे के पिता का नाम भारत है वो "भारत माता की जय "कैसे बोल सकता है?

वैसे तो मनुवादी इस देश को हिंदुस्तान ,हिंदुस्तान चिल्लाते है।और जब माता बनाना होता है तो देश का नाम भारत हो जाता है।क्या नौटंकी है?

देश को भी हरामखोरों ने माता बना दिया।भारत माता का फोटो भी बना दिया जिसका शक्ल भारत के बहुसंख्यक मूलनिवासी असली मेहनती महिलाओं से मैच ही नही करता है।भारत माता का फोटो विदेश से आयी एयरकंडीशन में बैठी चन्द विदेशियों से ही मैच करता है।उसके हाथ में तिरंगा झंडा भी नही होता।उसको RSS का भगवा  झंडा पकड़ा दिया।

और जो भारत की असली माताएं है वो अधिकतर कुपोषित, शोषित,लाचार,पुरुषों की दासी है।

इन असली भारत माताओं को कभी डायन कह के निर्वस्त्र किया अपमानित किया,मार दिया।
जबरन वेश्या (देवदासी) बना दिया।
जबरन आग में झोंक के सती बना दिया।

विधवा होने पर बाल मुड़वा दिया,हीन,अशुभ,अपमानित,दोयम,कुरूप, बना दिया।

मोबाईल नही रख सकती,जीन्स नही पहन सकती,पुरुषों के सामने बैठ नही सकती,बोल नही सकती,हंस नही सकती,चिल्ला नही सकती,निर्णय नही ले सकती,पंचायत में पंच नही बन सकती,पंचायत में बराबर से बैठ नही सकती,बराबर से बोल नही सकती,दिन ढलने के बाद बाहर नही रह सकती,घूमने, मूवी देखने ,पढ़ने नही जा सकती,अपने पसन्द से शादी नही कर सकती।यह है भारत माताओं की असली स्थिति।

दोगले,हरामखोर,मनुवादीयों तुम किस घटिया किताब से सीखते हो इतनी नीचता?

फोटो वाली भारत की रक्षा करने का नौटंकी करने वाले मनुवादी,असली भारत माता की रक्षा के लिए कितने आंदोलन चलाये हो अबतक??
जय भीम जय भारत दोस्तों
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जानो समझो फिर मानों

जागो और जगाओ अंधविश्वास पाखंड मनुवाद ब्राह्मण वाद भगाओ समाज को जागरूक करो शिक्षित करो संगठित करो 



डिअर गाय्ज़…. मने मेरे प्यारे पुत्रों,
मैं आप सब के नाम एक खुला खत लिख रही हूँ। चौंक गए? चौंकने की कोई जरूरत नहीं है। आज जब मैं राष्ट्रीय विमर्श का केंद्र-बिंदु बन चुकी हूँ तो सोचा वो वक़्त आन पहुंचा है जब मैं भी अपने मन की बात कर लूँ।
आप सब को तो पता ही है कि मैं घास-भूसा खाती रही हूँ, गोबर करती हूँ, उस गोबर से उपले थापे जाते हैं, उपलों से किसी गरीब का चूल्हा जलता है, उसपे दो वक़्त की रोटी बनती है और उनका पेट भरता है। पर आप सब ये जानकर फूले नहीं समायेंगे कि आजकल मैं भ्रष्टाचार, बलात्कार, सुखाड़, कमरतोड़ महंगाई, रुपये में गिरावट, किसानों की आत्महत्या जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे खाती हूँ। और तो और गोबर करने के लिए मैंने कुछ बुद्धि के विंध्याचल चिन्हित कर रखे हैं। वे अपने श्रीमुख से लगभग नित्य प्रति नियम से गोबर करते हैं, और फिर उस गोबर को लोगों के दिमाग में ठूंसा जाता है। उससे राजनीतिक कुनबे का चूल्हा जलता है, उसपे राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती हैं और उससे उनका वोट वाला बैंक भरता है।
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि मेरी पूँछ में इतनी शक्ति है कि कोई पार्टी अथवा नेता उसे पकड़ ले तो मैं उसकी चुनावी वैतरणी भी पार लगाने का माद्दा रखती हूँ। गौमूत्र तो अब इतना पवित्र हो गया है कि फिनाइल की जगह इसे छिड़का जा रहा है। वो दिन दूर नहीं जब गंगा में भी चंद बूँद गौमूत्र डालने से ही इसकी सफाई हो जायेगी। स्विस बैंकों में पड़े काला धन पर गौमूत्र छिड़क देने से ही ये सफेद हो जाएगा और काला धन धारकों को दो घूँट गौमूत्र पिला देने से उनका हृदय-परिवर्तन हो जाएगा। वो घड़ी लगभग आ ही गयी है जब नासा वाले मंगल समेत तमाम ग्रहों पर पानी और जीवन की जगह गौ और गौमूत्र तलाशना आरंभ करेंगे।
ये लिखते हुए मुझे अत्यंत हर्ष हो रहा है कि 2013 के मुज्जफरनगर महामहोत्सव में शरीक ‘संगीत’कार साहब जैसे लोग मीट प्रोसेसिंग कंपनी के डायरेक्टर होते हुए भी गोरक्षा आंदोलन की मुखर आवाज बनते हैं। आखिर बंदा जिसकी कमाई खाता है उसके गुण गाता तो है! आजकल बीफ कंपनियों के करोड़ों रुपये के चंदे से पार्टी चलाने वाले लोग गौ रक्षा के लिए प्रतिपल समर्पित रहते हैं।  ये बात जानकर मेरा तो इंसानियत पे भरोसा ही दुगुना हो गया। ये मेरे लिए गौरव का विषय ही है कि विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के लोग अब रामलला को रिमेम्बर करने की बजाय गौमाता का गरिमा-गायन कर रहे हैं।
मेरे लिए इससे ज्यादा संतोष की बात क्या हो सकती है कि मेरे मातृभक्त सपूत गौ-हत्या की अफवाह तक पर इंसान की जान लेने को उतारू हों। मुझे फक्र है कि कल तक लोग मेरे नाम पर सिर्फ चारा खाते आये थे, किन्तु अब मेरे नाम पे भाईचारा भी खा रहे हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो मेरे ‘अच्छे दिन’ चल रहे हैं। यूपी से यूएन और ऊना से हरियाणा तक हर ओर बस मेरे नाम का ही शोर है।
आपको बताऊँ कि समय के साथ हमारी बिरादरी भी मॉडर्न हो गयी है। भरोसा न हो तो जरा नज़रें घुमाकर देखो कि कैसे गौशालों से उठकर ट्रैफिक सिग्नलों और चारागाहों से ऊबकर म्युनिसिपेलिटी के कचरा घरों के पास अब यह चौपाया जानवर पाया जाता है। इसलिए वक़्त आ गया है कि आपलोग मेरी चिंता करने की बजाय रोजगार के अन्य अवसर तलाशें। मेरी आप सब से प्रार्थना है कि वैदिक काल के मकड़जाल में फंसकर धर्मधुरंधर शाकाल न बनें। जब मैं अपने गोबर से परमाणु बम तक को बेअसर करने की क्षमता रखती हूँ, तो फिर मेरी रक्षा के लिए आपलोग क्यों अपनी सींग घुसेड़ते रहते हो ? अरे जब मंगोल,अफगान, तुर्क, तातार, तुग़लक़, ग़ुलाम, लोदी, मुग़ल,अंग्रेज़ इत्यादि का सदियों लंबा अत्याचार मेरा वजूद नहीं मिटा पाया, तो ये सिकुलर सरकार पिंक रेवोल्यूशन को पीक पर पहुंचाकर या बीफ खाने वाले को मंत्री बनाकर मेरी बिरादरी का क्या बिगाड़ लेगी ?
मैं आप सब को भरोसा दिलाना चाहती हूँ कि उन मुट्ठी भर चिरकुटों की बीफ पार्टी वगैरह करने से मेरा नामोनिशान नहीं मिटने वाला। आप लोग निश्चिन्त रहें,  मेरे अस्तित्व पे कोई खतरा नहीं मंडरा रहा है। अतः मेरी रक्षा के लिए फोटोशॉप-विद्या तथा अफवाह-उद्योग का उपयोग न करने की कृपा करें। ऐसा नहीं है कि आप सब ये करते हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता है। बस आपकी परवाह करती हूँ। आखिर माँ हूँ न। ये नाशपीटे निकम्मे ठुल्ले खामखा मेरे प्राणों से प्रिय बेटे-बेटियों पर फर्जी एफआईआर ठोक देते हैं। फिर फ़ालतू का गोइंग टू जेल एंड चक्की पीसिंग एंड पीसिंग एंड ऑल ! अभी गुजरात में देखा न… गौरक्षा वालों ने दलितों की पीठ पर जरा बैटिंग प्रैक्टिस क्या की पूरी की पूरी क्रिकेट टीम को उठाकर जेल में डाल दिया।
आपकी इतनी ही श्रद्धा है तो #SelfieWithDaughter की तर्ज पर#SelfieWithMotherCow जैसे पॉजिटिव कैंपेन चलायें। वो क्या है न मुझे भी नेगेटिविटी से थोड़ी एलर्जी सी हो गयी है। वैसे भी जब इस तरह के अभियान से बेटी बचायी जा सकती है तो मैं क्यों नहीं ? इसलिए आपसे गुज़ारिश है कि अब से हर इतवार अपनी-अपनी गाय माता के साथ सेल्फी खींचिए और बेझिझक ट्वीटीए। घर में गाय की जगह कुत्ता पालते हों तो फोटोशॉप विद्या इस्तेमाल में लाएं और उसी को गाय बनायें। बाकी मैंने तो मेरी तरह “मैं-मैं” करने वाला ब्रांड एम्बेस्डर बना ही रखा है।

"मनुस्मुर्ति" में नारी

"मनुस्मुर्ति" में नारी के लिए क्या कहा हैं यह देखिये-


 १- पुत्री,पत्नी,माता या कन्या,युवा,व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए. -मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक.

 २- पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद(गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं. किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५

 ३- संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी "दास" हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति,पूत्र, या पिता हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६.

 ४- ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं....तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं-"ढोर,चमार और नारी, ताडन के अधिकारी."
 - मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९*

 ५- असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८.

 ६- स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यग्यकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती.(इसी लिए कहा जाता है-"नारी नर्क का द्वार") - मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७ *.

 ७- यग्यकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियो से किसी ब्राह्मण भी ने भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो ने किए हुए सभी यग्य कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६ .

 ८- - मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो , स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली - अध्याय-२ श्लोक-२१४ .

 ९ - स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं. अध्याय-२ श्लोक-२१४

 १० - स्त्री एकांत का दुरुप्योग करने वाली. अध्याय-२ श्लोक-२१५.

 ११. - स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपताको नही देखती. अध्याय-९ श्लोक-११४.

 १२- स्त्री चंचल और हदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं. अध्याय-२ श्लोक-११५.

 १३.- केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्षाखोर,दुराचारी हैं . अध्याय-९ श्लोक-१७.

 १४.- सुखी संसार के लिए स्त्रीओ को कैसे रहना चाहिए? इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं-
 (१) स्त्रीओ को जीवन भर पति की आग्या का पालन करना चाहिए- मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-११५.

 (२). पति सदाचारहीन हो,अन्य स्त्रीओ में आसक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसे देव की तरह पूजना चाहिए.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४.

क्या ये किसी मानवता और समानता का सोच है ?
क्या ये संविधान सम्मत है?
क्या ये अनुकरणीय है ?
😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪
डॉ बी एल भारतीय  

 https://samaybuddha.wordpress.com/manusmriti-free-download/


 बच्चे पैदा करने के अजीबो गरीब तरीके जानिए ब्राह्मण कैसे बच्चों को पैदा करवाने की Technology बताते है 
जो संसार में कही किसी देश में नहीं पायी जाती...... 
ब्रह्मा ने ब्राह्मण को अपने मुँह से पैदा किया, 
छत्रिय को भुजाओ से, वैश्य को जाँघो से और, 
शुद्र को अपने पैरों से, 
राम लक्षमण भरत शत्रुघ्न उनकी माताओ के द्वारा खीर खाने से पैदा हुए, राजा जनक का एक नग्न स्त्री को देखकर वीर्य टपक गया जो धरती में गिरा अगले दिन सीता एक बलीहारे के खेत में पायी गयी, 
हनुमान के पसीने से एक मादा मगरमच्छ pregnant हो गयी और उसने मगरधवज को जनम दिया, 
हनुमान को पवन ने हनुमान की माता अंजनी को गर्भवती किया हनुमान हवा में पैदा हो गए , "यानि बैटिंग किसी और की छक्का कोई और मार गया"
 कमल से ब्रह्मा पैदा हुए, फिर ब्रह्मा ने अपनी पार्शव ( पसलिया ) रगड़ी तो दाई पसलियों से विष्णु और बाई से शिव पैदा किया, 
इसी कड़ी में शिव ने अपने माथे का पसीना पोछकर जमीन की तरफ झटका तो विष्णु और अपनी जाँघ रगड़ी तो ब्रह्मा पैदा हुए, "पता नहीं किसने किसको पैदा किया" और ब्राह्मण क्या साबित करना चाहते है????? 
पार्वती ने मिट्टी से गणेश की निर्माण किया, विष्णु की नाक से सूअर का जन्म हुआ, पांडवो की माता जंगल में गयी तो पाँच पांडवो का जन्म हुआ, असुरो के अतिक्रमण की वजह से त्रिदेवो ब्रह्मा विष्णु महेश की बोहे तन गयी और तीनो देवो के मुख से एक तेज निकला जो एक हो गया और वैष्णवी (दुर्गा ) का जन्म हुआ ??? 
आखिर ये है क्या ?!ये क्या संस्कृति है ?? ऐसी गप्प टल्लो को क्यों थोपा गया ?? 
मकसद साफ था केवल इन गप्पों को लिखने वाला श्रेष्ठ था बाकि सब मानसिक गुलाम ।

लेकिन अब तो !! " "जागो जागो" जिन पाखंडियों की पाखंडी व्यवस्था ने तुम्हें सदियों तक जानवर बना रखा, धिक्कार है तुम पर अगर ऐसी गंदी व्यवस्था को आज भी मान रहे हो तो।पढ़े लिखे होने का परिचय दीजिये.... मैंने भी बस कॉपी पेस्ट किया है। बताओ इसमें कितनी सच्चाई है? कड़वा ज़रूर लगेगा       


ब्राम्हण पंडित ने #मनुस्मुर्ति" में क्या कहा हैं
यह देखिये-

१- पुत्री,पत्नी,माता या कन्या,युवा,व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए. -मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक.


२- पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद(गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं. किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५


३- संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी "दास" हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति,पूत्र, या पिता हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६.


४- ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं....तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं-"ढोर,चमार और नारी, ताडन के अधिकारी."

- मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९

५- असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८.


६- स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यग्यकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती.(इसी लिए कहा जाता है-"नारी नर्क का द्वार") - मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७ .


७- यग्यकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियो से किसी ब्राह्मण भी ने भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो ने किए हुए सभी यग्य कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६ .


८- - मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो , स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली - अध्याय-२ श्लोक-२१४ .


९ - स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं. अध्याय-२ श्लोक-२१४


१० - स्त्री एकांत का दुरुप्योग करने वाली. अध्याय-२ श्लोक-२१५.


११. - स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपताको नही देखती. अध्याय-९ श्लोक-११४.


१२- स्त्री चंचल और हदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं. अध्याय-२ श्लोक-११५.


१३.- केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्षाखोर,दुराचारी हैं . अध्याय-९ श्लोक-१७.


१४.- सुखी संसार के लिए स्त्रीओ को कैसे रहना चाहिए? इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं-

(१). स्त्रीओ को जीवन भर पति की आग्या का पालन करना चाहिए. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-११५.

(२). पति सदाचारहीन हो,अन्य स्त्रीओ में आसक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसे देव की तरह पूजना चाहिए.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४.


जो इस प्रकार के उपर के ये प्रावधान वाले पाशविक रीति-नीति के विधान वाले पोस्टर क्यो नही छपवाये?


(१) वर्णानुसार करने के कार्यः -

- महातेजस्वी ब्रह्मा ने स्रुष्टी की रचना के लिए ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र को भिन्न-भिन्न कर्म करने को तै किया हैं -

- पढ्ना,पढाना,यग्य करना-कराना,दान लेना यह सब ब्राह्मण को कर्म करना हैं. अध्यायः१:श्लोक:८७


- प्रजा रक्षण , दान देना, यग्य करना, पढ्ना...यह सब क्षत्रिय को करने के कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:८९


- पशु-पालन , दान देना,यग्य करना, पढ्ना,सुद(ब्याज) लेना यह वैश्य को करने का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९०.


- द्वेष-भावना रहित, आंनदित होकर उपर्युक्त तीनो-वर्गो की नि:स्वार्थ सेवा करना, यह शूद्र का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९१.


(२) प्रत्येक वर्ण की व्यक्तिओके नाम कैसे हो?:-


- ब्राह्मण का नाम मंगलसूचक - उदा. शर्मा या शंकर

- क्षत्रिय का नाम शक्ति सूचक - उदा. सिंह
- वैश्य का नाम धनवाचक पुष्टियुक्त - उदा. शाह
- शूद्र का नाम निंदित या दास शब्द युक्त - उदा. मणिदास,देवीदास
- अध्यायः२:श्लोक:३१-३२.

(३) आचमन के लिए लेनेवाला जल:-


- ब्राह्मण को ह्रदय तक पहुचे उतना.

- क्षत्रिय को कंठ तक पहुचे उतना.
- वैश्य को मुहं में फ़ैले उतना.
- शूद्र को होठ भीग जाये उतना, आचमन लेना चाहिए.
- अध्यायः२:श्लोक:६२.

(४) व्यक्ति सामने मिले तो क्या पूछे?:-

- ब्राह्मण को कुशल विषयक पूछे.
- क्षत्रिय को स्वाश्थ्य विषयक पूछे.
- वैश्य को क्षेम विषयक पूछे.
- शूद्र को आरोग्य विषयक पूछे.
- अध्यायः२:श्लोक:१२७.
(५) वर्ण की श्रेष्ठा का अंकन :-
- ब्राह्मण को विद्या से.
- क्षत्रिय को बल से.
- वैश्य को धन से.
- शूद्र को जन्म से ही श्रेष्ठ मानना.(यानी वह जन्म से ही शूद्र हैं)
- अध्यायः२:श्लोक:१५५.

(६) विवाह के लिए कन्या का चयन:-

- ब्राह्मण सभी चार वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- क्षत्रिय - ब्राह्मण कन्या को छोडकर सभी तीनो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- वैश्य - वैश्य की और शूद्र की ऎसे दो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- शूद्र को शूद्र वर्ण की ही कन्याये विवाह के लिए पंसद कर सकता हैं.- (अध्यायः३:श्लोक:१३) यानी शूद्र को ही वर्ण से बाहर अन्य वर्ण की कन्या से विवाह नही कर सकता.

(७) अतिथि विषयक:-

- ब्राह्मण के घर केवल ब्राह्मण ही अतिथि गीना जाता हैं,(और वर्ण की व्यक्ति नही)
- क्षत्रिय के घर ब्राह्मण और क्षत्रिय ही ऎसे दो ही अतिथि गीने जाते थे.
- वैश्य के घर ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य तीनो द्विज अतिथि हो सकते हैं, लेकिन ...
- शूद्र के घर केवल शूद्र ही अतिथि कहेलवाता हैं - (अध्यायः३:श्लोक:११०) और कोइ वर्ण का आ नही सकता...

(८) पके हुए अन्न का स्वरुप:-

- ब्राह्मण के घर का अन्न अम्रुतमय.
- क्षत्रिय के घर का अन्न पय(दुग्ध) रुप.
- वैश्य के घर का अन्न जो है यानी अन्नरुप में.
- शूद्र के घर का अन्न रक्तस्वरुप हैं यानी वह खाने योग्य ही नही हैं.
(अध्यायः४:श्लोक:१४)

(९) शब को कौन से द्वार से ले जाए? :-

- ब्राह्मण के शव को नगर के पूर्व द्वार से ले जाए.
- क्षत्रिय के शव को नगर के उतर द्वार से ले जाए.
- वैश्य के शव को पश्र्चिम द्वार से ले जाए.
- शूद्र के शव को दक्षिण द्वार से ले जाए.
(अध्यायः५:श्लोक:९२)

(१०) किस के सौगंध लेने चाहिए?:-

- ब्राह्मण को सत्य के.
- क्षत्रिय वाहन के.
- वैश्य को गाय, व्यापार या सुवर्ण के.
- शूद्र को अपने पापो के सोगन्ध दिलवाने चाहिए.
(अध्यायः८:श्लोक:११३)

(११) महिलाओ के साथ गैरकानूनी संभोग करने हेतू:-

- ब्राह्मण अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो सिर पे मुंडन करे.
- क्षत्रिय अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो १००० भी दंड करे.
- वैश्य अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये और १ साल के लिए कैद और बाद में देश निष्कासित.
- शूद्र अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये , उसका लिंग काट लिआ जाये.
- शूद्र अगर द्विज-जाती के साथ अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसका एक अंग काटके उसकी हत्या कर दे.
(अध्यायः८:श्लोक:३७४,३७५,३७९)

(१२) हत्या के अपराध में कोन सी कार्यवाही हो?:-

- ब्राह्मण की हत्या यानी ब्रह्महत्या महापाप.(ब्रह्महत्या करने वालो को उसके पाप से कभी मुक्ति नही मिलती)
- क्षत्रिय की हत्या करने से ब्रह्महत्या का चौथे हिस्से का पाप लगता हैं.
- वैश्य की हत्या करने से ब्रह्महत्या का आठ्वे हिस्से का पाप. लगता हैं.

- शूद्र की हत्या करने से ब्रह्महत्या का सोलह्वे हिस्से का पाप लगता हैं.(यानी शूद्र की जिन्द्गी बहोत सस्ती हैं)

- (अध्यायः११:श्लोक:१२६)
#स्त्री का सम्मान #मनुस्मर्ति के अनुसार,,,
.मनुस्मृति: (अध्याय-९ मंत्र-३)
स्त्री सदा किसी न किसी के अधीन रहती है, क्योंकि वह स्वतन्त्रता (अज़ादी) के योग्य नहीं है।

मनुस्मृति: (अध्याय-९ मंत्र-११)

स्त्री को घर के सारे कार्य सुपुर्द कर देने चाहिये, जिससे कि वह घर से बाहर ही नहीं निकल सके।

मनुस्मृति: (अध्याय-९ मंत्र-१५)

स्त्रियाँ स्वभाव से ही पर-पुरुषों पर रीझने वाली, चंचल और अस्थिर अनुराग वाली होती हैं।

मनुस्मृति: (अध्याय-९ मंत्र-४५)

पति चाहे स्त्री को बेच दे या उसका परित्याग (तलाक) कर दे, किन्तु वह उसकी पत्नी ही कहलायेगी। प्रजापति द्वारा स्थापित यही हिन्दु धर्म है।

मनुस्मृति: (अध्याय-९ मंत्र-७७)


जो स्त्री अपने नापुंसक, आलसी, नशा करने वाले अथवा रोगग्रस्त तथा पर-स्त्रीयों से संबन्ध रखने वाले पति की भी आज्ञा का पालन नहीं करे, उसे वस्त्राभूषण उतार कर (अर्थात्‌ निर्वस्त्र/nude करके) तीन माह के लिये अलग कर देना चाहिये।     

ब्राहमणों की हठधर्मिता

😣ब्राहमणों की हठधर्मिता ने पूरे पूर्वी बंगाल (बंग्‍लादेश) को मुसलमान बना डाला 👌

 आज मैं आपको पूर्वी बंगाल अर्थात वर्तमान बंग्‍लादेश से हिन्दूओं के धर्मांतरित होने की जानकारी देता हूं।

बंगाल के एक प्रसिद्ध राजा हुए हैं जिनका नाम कालाचंद राय था। उनकी इस्‍लामी बर्बरता के लिए लोग उन्‍हें काला पहाड़ पुकारने लगे थे और इतिहास में वह इसी नाम से जाने जाते हैं। काला पहाड़ की बर्बरता का कारण घोर जातिवादी मानसिकता से भरे कुछ ब्राह्मणों की हठधर्मिता थी जिसका बदला उसने पूरे पूर्वी बंगाल को मुसलमान बनाकर लिया।

कालाचंद राय एक बंगाली ब्राहण युवक था। पूर्वी बंगाल के उस वक्‍त के मुस्लिम शासक की बेटी से उसे प्‍यार हो गया। बादशाह की बेटी ने उससे शादी की इच्‍छा जाहिर की। वह उससे इस कदर प्‍यार करती थी कि उसने इस्‍लाम छोड़कर हिंदू विधि से उससे शादी की इच्‍छा जाहिर की। ब्राहमणों को जब पता चला कि कालाचंद राय एक मुस्लिम राजकुमारी से शादी कर उसे हिंदू बनाना चाहता है तो ब्राहमण समाज ने इसका विरोध किया। उसने युवती के हिंदू धर्म में आने का न केवल विरोध किया बल्कि कालाचंद राय को ही जाति बहिष्‍कार की धमकी दे डाली। कालाचंद राय गुस्‍से से आग बबुला हो गया और उसने इस्‍लाम स्‍वीकारते हुए उस युवती से निकाह कर उसके पिता के सिंहासन का उत्‍तराधिकारी हो गया। राजा बनने से पूर्व ही उसने तलवार के बल पर ब्राहमणाों को मुसलमान बनाना शुरू किया। पूरे पूर्वी बंगाल में उसने इतना कत्‍लेआम मचाया कि लोग तलवार के डर से मुसलमान होते चले गए। इतिहास में इसका जिक्र है कि पूरे पूर्वी बंगाल को इस अकेले व्‍यक्ति ने तलवार के बल पर इस्‍लाम में धर्मांतरित कर दिया और यह केवल उन मूर्ख, जातिवादी, अहंकारी व हठधर्मी ब्राहमणों को सबक सिखाने के उददेश्‍य से किया गया था।

 पूर्वी बंगाल किसी सूफीवाद या अपनी स्‍वेच्‍छा से मुसलमान नहीं बना था बल्कि बदले में जलते एक युवक ने तलवार के जोर पर पूरी कौम को ही मुसलमान बना दिया था। स्‍वेच्‍छा से केवल काला पहाड ने इस्‍लाम अपनाया था। भारत विभाजन से पूर्व 1946 में पूर्वी बंगाल में डेढ करोड हिंदू थे, आज वे हिंदू कहां गए? 1946 में कौन से सूफीवाद की लहर चली थी कि डेढ करोड हिंदू पूर्वी बंगाल से गायब हो गए। जघन्‍य हत्‍या से या तो उनका नामोनिशान मिट गया या वे मुसलमान हो गये या कुछेक भाग कर भारत में आ गए। कहां गए वे हिंदू?

काला पहाड़ के संदर्भ में पुस्‍तकें :

1) संस्‍कृति के चार अध्‍याय:: रामधारी सिंह दिनकर।
2) पाकिस्‍तान का आदि और अंत:: बलराज मधोक।

सनातन धर्म को सबसे ज्यादा हानि ब्राहमणों द्वारा ही हुई हैं जो अपने आपको शुद्ध ओर उच्चकोटि के मानव गिनाते हैं लेकिन इनके कर्म जानवरों से भी गए गुजरे होते हैं।लौंडियाबाजी, मुफ्त की दारु, मांस- मछली खाने में सबसे आगे रहते हैं और मुल्लो की पिटाई के डर से ये खुद ही अपने मूत्रेन्द्रिय का शिरोछेद करके आत्म समर्पण कर देते हैं। कश्मीरी मुल्ले इसके सबसे बड़े सबूत हैं। और तो और जब कोई जबरन मुसलमान बनाया गया व्यक्ति हिन्दू धर्म में वापिस आना चाहता हैं तो ये सबसे बड़ी दीवार बनकर  रुकावट पैदा करते हैं।

ब्राहमणों की दलाल प्रवृत्ति के कारण हिन्दू धर्म का सबसे अधिक नुकसान हुआ है। कश्मीरी मुसलमानो को भी घर वापसी के लिए रोकने वाले ये "जय परशुराम" वाले ही थे। आज भी ब्राह्मणों की ये हठधर्मि गई नहीं है। पिछली साल पार्वती ख़ान बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने आई थी और इन ब्राह्मणों ने उसे मंदिर मे यह कह कर नही घुसने दिया कि वे एक मुस्लिम से शादी करने के बाद अछूत हो गई है और उसके मंदिर मे घुसने से मंदिर अपवित्र हो जाएगा|
बदलिया जी
#बोल 85
#जय मूलनिवासी