Monday, 28 August 2017

स्कूल में पानी नहीं पी सकते

[मध्य प्रदेश के दस जिलों के अध्ययन में सामने आयी हकीकत, स्कूल में पानी नहीं पी सकते 92 फीसदी दलित बच्चे!
- Bhim Dastak] is good,have a look at it! http://bhimdastak.com/india/reality-in-the-study-of-madhya-pradesh-ten-districts/
*भोपाल।* आजादी के 69 साल बाद भी देश के दलित बच्चे भेदभाव का देश झेलने को मजबूर हैं। चाइल्ड राइट औब्ज़र्वेटरी एवं मप्र दलित अभियान संघ द्वारा किया गया हालिया सर्वे इस भयावह सच्चाई को बयां करता है। सर्वे के अनुसार 92 फीसदी दलित बच्चे स्कूल में खुद पानी लेकर नहीं पी सकते, क्योंकि उन्हें स्कूल के हैंडपंप और टंकी छूने की मनाही है। 57 फीसदी बच्चों का कहना है कि वे तभी पानी पी पाते हैं, जब गैरदलित बच्चे उन्हें ऊपर से पानी पिलाते हैं। 28 फीसदी बच्चों के माता-पिता का कहना था कि प्यास लगने पर उनके बच्चे घर आकर पानी पीते हैं, जबकि 15 फीसदी बच्चों को स्कूल में प्यासा रहना पड़ता है।
*कक्षा में आगे नहीं बैठने दिया जाता* :- सर्वे के अनुसार, 93 फीसदी बच्चों को कक्षा में आगे की लाइन में बैठने नहीं दिया जाता है। इसके अनुसार, 79 फीसदी बच्चे पीछे की लाइन में, जबकि 14 फीसदी बच्चे बीच की लाइन में बैठते हैं।
*गैरदलित शिक्षकों का व्यव्हार ठीक नही*ं :- 88 फीसदी बच्चों के अनुसार, उन्हें शिक्षकों के भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। 23 फीसदी बच्चों का कहना है कि गैरदलित की तुलना में शिक्षक उनसे ज्यादा सख्ती से पेश आते हैं। 42 फीसदी बच्चों ने कहा, शिक्षक उन्हें जातिसूचक नामों से पुकारते हैं।
इसी प्रकार 44 फीसदी बच्चों ने कहा कि गैरदलित बच्चें भी उनके साथ भेदभाव करते हैं। 82 फीसदी बच्चों के अनुसार मध्यान्ह भोजन के लिए उन्हें अलग लाइन में बिठाया जाता है।
*छुआछूत ने ले ली जान* :- हाल ही में दमोह जिले के खमरिया कलां गांव के स्कूल में पढ़ने वाले 8 साल के बच्चे की बावड़ी में गिरने से मौत हो गयी। बताया जाता है कि शिक्षक दलित बच्चों को स्कूल के हैंडपंप से पानी नहीं पीने देते थे। इस कारण से अभिषेक भाई और दोस्तों के साथ बावड़ी में पानी पीने गया था।
*ऐसे हुआ सर्वे* :-संघ द्वारा प्रदेश के पांच प्रमुख क्षेत्र बघेलखण्ड, बुंदेलखंड, चम्बल, महाकौशल और निमाड़ के 10 जिलों के 30 गांवों के 412 दलित परिवारों का सर्वेक्षण किया गया। इस दौरान इन गांवों के दलित सरपंच, शिक्षक, अधिकारी और कर्मचारियों से बात की गयी।
*सर्वे के निष्कर्ष* :- सर्वे में शामिल सभी गांवों में दलितों के साथ छुआछूत का प्रचलन है। यानि कोई भी गांव जाति आधारित छुआछूत से मुक्त नहीं है। मप्र में कुल मिलकर 70 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है।
80 फीसदी गांवों में दलितों के मंदिर में प्रवेश पर रोक है। गांवों में नाई दलितों की कटिंग नहीं बनाते।

50 फीसदी गांवों में दलित बच्चों के आधुनिक नाम रखने पर गैर दलित उनकी पिटाई कर देते हैं।
बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा 52 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है। चम्बल में 49, निमाड़ में 41, बघेलखण्ड में 38 और महाकौशल में 17 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है।

स्कूलों में होने वाले उपेक्षित व्यव्हार और भेदभाव के चलते कई प्रतिभाशाली दलित बच्चे बीच में ही पढाई छोड़ देते हैं। आंकड़े बताते हैं कि पढाई में होशियार होने के बाद भी दलित बच्चों को स्कूल में सबसे पीछे बैठने को मजबूर किया जाता है।


फेसबुक ,व्हाट्सएप ,ट्विटर ...... इत्यादि सभी सोशल साइट्स पर जहा कहीं भी जाता हु ,सारे 3% विदेशी ब्राह्मणों का एक ही मकसद देखता हु ,की 85% OBC SC ST ,मुसलमानों को अपना दुश्मन मान ले ,पर जब मै 3% विदेशी ब्राह्मणों से अपने यह सवाल पूछता हु तो कोई ब्राह्मण मेरे सवाल का जवाब देने सामने नहीं आता ,
सवाल नं 1) क्या जातप्रथा (caste system) ,& वर्णप्रथा में पिछड़ी जातियों को मुसलमानों ने बाटा या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 2)क्या धर्म के नाम पर 33 करोड़ काल्पनिक देवी-देवताओं का निर्माण कर पथ्थरो की मूर्तियों के नामपर मुसलमान हमको ठग रहे है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?
सवाल नं 3) क्या हमारे संवैधानिक ''रिजर्वेशन'' का विरोध मुसलमान कर रहे है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?
सवाल नं 4)क्या हमारे महापुरुषों (रविदास कबीर तुकाराम फुले शाहूज महाराज बाबासाहब कांशीराम पेरियार इत्यादि )को षड्यंत्र से मारने का सफल या असफल प्रयास मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 5)हमारी महान हरप्पा मोहनजोदाड़ो की सिंध सभ्यता पर हमला मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी आर्य ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 6) mandal कमीसन को दबाने के लिए रथ यात्रा मुसलमानों ने निकाली या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 7)क्या सदियों से SC ST के लोगो के साथ अछूतपन का व्यवहार मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवान नं 8) आज भारत पर न्यायपालिका कार्यपालिका मीडिया विधायिका पर मुसलमानों का कब्ज्जा है या 3% विदेशी ब्राह्मणों का ?
सवान नं 9)क्या privatisation ,globalisation के नाम पर देश को निजी उद्योगपतियों के हाथो मुसलमान बेच रहे है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?
सवाल नं 10)क्या शुद्र कहकर शिजाजी महाराज का राज्याभिषेक मुसलमानों ने नकारा या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 11)क्या शिवाजी महाराज का राज्यतिलक बाए पैर के अंगूठे से कर उस महाप्रतापी राजा का अपमान मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 12)सम्राट अशोक के पुत्र की ह्त्या मुसलमानों ने की या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 13)हर गाव हर घर में पिछड़ी जातियों को आपस में लड़ाने का काम मुसलमान करते है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?
सवाल नं 15) बौद्ध जैन सिख लिंगायत जैसे स्वतंत्र धर्मो को ब्राह्मण धर्म (हिन्दू धर्म) की शाखा कहकर प्रचारित कर उनका स्वतंत्र अस्तित्व मुसलमान ख़त्म कर रहे है की ब्राह्मण ?
सवाल तो हजारो है पर आज बस इतना ही ।
मुसलमानों ने हमारे लिए क्या किया इसकी भी जानकारी आपको देता हूँ ,
भारतीय इतिहास की कुछ शानदार घटनाये  :---
.(1) महात्मा ज्योतिबा फूले को अपना स्कूल बनाने के लिये जमीन उस्मान शेख नाम के एक मुसलमान ने दी थी ।
.(2) उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख ने सावित्री बाई फूले का साथ देकर उनके स्कूल में  पढा़ने का काम किया था ।
.(3) बाबासाहेब आंबेडकर  ने जब चावदार तालाब का आंदोलन चलाया और सभा करने के लिये बाबासाहेब को कोई हिन्दु जगह नहीं दे रहा था ।
तब  मुसलमान भाइयों ने आगे आकर अपनी जगह दी थी और बाबासाहेब से कहा था कि  " आप हमारी जगह मे अपनी सभा कर सकते हो "
.(4) गोलमेज परिषद मे जब गांधी जी ने बाबासाहेब का विरोध किया था और रात के बारह बजे गांधी जी ने मुसलमानों को बुलाकर कहा था कि आप बाबासाहेब का विरोध करो तो मैं आपकी सभी मांगे पूरी करुंगा ।
तब मुसलमान भाई आगार खांन साहब ने गांधी जी को मना कर दिया था और कहा था कि हम बाबासाहेब का विरोध किसी भी हाल मे नहीं करेंगे ।
.(5) मौलाना हसरत मोहानी ने बाबा साहब को रमजा़न के पवित्र माह में अपने घर रोजा़ इफ्तार की दावत दी थी ।
जबकि पंडित मदनमोहन मालवीय ने तो बाबा साहब को एक गिलास पानी तक नहीं दिया था ।
.(6) जब सारे हिन्दुओं (गांधी और नेहरू) ने मिलकर बाबासाहेब के लिये संविधान सभा के सारे दरवाजे और खिड़किया भी बंध कर दी थीं ।
तब पश्छिम बंगाल के मुसलमानों व चांडालों ने बाबासाहेब को वोट देकर चुनाव जिताकर संविधान सभा मे  भेजा था ।
.इसीलिए SC, ST और OBC समाज के लोगों को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि मुस्लिम नेताओं ने  बाबा साहेब आंबेडकर का अक्सर साथ दिया था ।
जबकि गांधी और तिलक हमेशा ही बाबा साहेब आंबेडकर के रास्ते में मुश्किलें पैदा करते रहे थे ।
अभी भी SC, ST और OBC के आरक्षण के खिलाफ संघी ही आंदोलन चलाते हैं, मुस्लिम नही ।


दोस्तों अब वक्त आ गया मनुवादियों को इनकी ही भाषा में जबाब देने  का
मनुवादियों से टकराओ
हिन्दू मुस्लिम एकता बनाओ
sc/st/obc होश में आओ




बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड़ से करार के अनुसार सन 1917 के सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में बाबासाहब अम्बेडकर अपने अग्रज बंधु के साथ बड़ौदा गए, हालाकि सयाजी राव ने डा.अम्बेडकर को स्थानक से लाने की व्यवस्था का आदेश पहले ही जारी कर दिया था, परंतु एक अस्पृश्य को लाने के लिए कोई तैयार नही हुआ, फलस्वरूप बाबासाहब स्वतः ही अपनी व्यवस्था कर पहुंच गए बड़ौदा में बाबासाहब को रहनें और खाने की व्यवस्था स्वतः ही करनी थी, परंतु यह
बात बड़ौदा में जंगल की आग की तरह पहले ही फैल गयी
थी कि मुम्बई से एक महार युवक बड़ौदा के सचिवालय में नौकरी करने आ रहा है, फलस्वरूप किसी भी हिन्दू
रेस्टोरेंट या धर्मशाला में विद्वान डा.अम्बेडकर को रहने का सहारा नहीं मिला,आखिर उन्होंने अपना नाम बदलकर बताया तब उन्हें एक पारसी धर्मशाला में जगह मिली बड़ौदा नरेश गायकवाड़ को डा.अम्बेडकर को वित्तमंत्री बनाने की प्रबल इच्छा थी पर अनुभव न होने की वजह से बाबासाहब नें सेना के सचिव पद को ही स्वीकार किया.सचिवालय में डा.अम्बेडकर को अस्पृश्य होने के कारण बहुत बेइज्जती का सामना करना
पड़ा उन्हें पीने के लिए पानी तक नहीं मिलता था चपरासियों द्वारा भी फाइलें दूर से ही फेंकी जाती थी, उनके आने और जाने के पहले फर्श पर पड़ी चटाइयां हटा दी जाती थीं, इस
अमानुषीय अत्याचारों के बाद भी वे अपनी अधूरी पड़ी शिक्षा
पूरी करने में हमेसा अग्रसर रहते थे पर उन्हें पढ़ाई के लिए ग्रंथालय में तभी जाने की अनुमति मिलती थी जब वहां
खाली समय में दूसरा और कोई नही होता था, यह किसी महान विद्वान के साथ अमानवीय अपमान की एक पराकाष्ठा ही थी,
जिसका मूल कारण था भारत में व्याप्त मनुवादी वर्ण व्यवस्था के जातिवादी आतंक के काले कानून का कहर. एक दिन मनुवादी वर्ण व्यवस्था के आतंक नें सारी हद ही तोड़ दी बाबासाहब जिस पारसी धर्मशाला में रहते थे वहां एक दिन
पारसियों का क्रोध से आग बबूलाबड़ा झुंड हाथ में लाठियां
लेकर आ पहुंचा,झुंड के एक व्यक्ति ने बाबासाहब से पूंछा तुम कौन हो बाबासाहब नें तुरंत जवाब दिया मैं एक हिन्दू हूँ,
जवाब सुनकर उस व्यक्ति ने आगबबूला होकर कहा तुम कौन हो यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ, तुमने हमारे अतिथि गृह को पूरा भ्रष्ट कर दिया तुम यहाँ से अभी तुरंत निकल जाओ,
बाबासाहब नें अपनी सारी शक्ति इकट्ठा करके उनसे
अनुरोध पूर्वक कहा अभी रात है मुझे आप केवल आठ घंटे की
और मोहलत दीजिये सुबह मैं आपका यह आवास स्वयं ही
खाली कर दूंगा, उस भीड़ ने तनिक भी देर नहीं लगाई और बाबासाहब का सारा सामान कमरे से बाहर सड़क पर फेंक दिया, तब बाबासाहब नें बहुत प्रयास किया पर
रातभर के लिए भी उन्हें वहां कोई हिन्दू या मुसलमान आश्रय देने के लिए तैयार नहीं हुआ.आखिर भूंखे प्यासे बाबासाहब रात में ही शहर से बाहर निकलने पर मजबूर हुए, और उन्होंने एक बाग में पेंड़ के नीचे रोते हुए सारी रात बिताई, ऊपर खुला आसमान और नीचे खुली जमीन आज दुनियाँ के सबसे बड़े
विद्वान का यही एक एकलौता सहारा था,बाबासाहब ने वही पेड़ के नीचे रोते हुए संकल्प लिया कि “मैं अपने दबे कुचले अस्पृश्य समूचे समाज को इस घिनौने दलदल से निकालने के
लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दूंगा”, आज बड़ौदा की वही
जमीन बाबासाहब के“संकल्प भूमि ” के नाम से जानी जाती
है जहां पर समूचे देश के अम्बेडकरवादी इकट्ठा होकर उनके संकल्प को दोहराने का सतत प्रयास जारी रखते हैं.सुबह होने पर बाबासाहब पुनः बम्बई वापस आ गए.आज भारत के समूचे बहुजन समाज ने बाबासाहब के उसी पेंड़ के नीचे किये गए संकल्प का पूरा फायदा उठाया पढ़े लिखे ऊंचे ऊंचे ओहदे पर
पहुंचे और अपनें लिए ऊंची ऊंची बड़ी बड़ी बिल्डिंगें बनायीं
पर बाबासाहब के लिए कही कोई रंचमात्र भी जगह शेष
नही छोड़ी इससे बड़ा दुःखद अन्याय भला किसी विद्वान
महापुरुष के लिए और क्या हो सकता है.

                  (एस चंद्रा बौद्ध).

Friday, 25 August 2017

लोककल्याण अब धर्म कल्याण

*■ लोकतंत्र में लोककल्याण अब धर्म कल्याण बनता जा रहा है... 

बड़े सामाजिक बदलाव की जरूरत...■*
                    ✍🏻 अशोक बौद्ध
*● आज भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धार्मिक कट्टरपंथी अपने अड़ियलपन के कारण अभी भी अपनी विधवाओं को सती करना चाहते हैं। लड़कियों की भ्रूण हत्याओं का विरोध नहीं करते।* *जब कभी समाज सुधार की बात होती है तो भगवाधारी हजारों की संख्या में 'धर्म ख़तरे में है' का नारा देकर सड़कों पर आ जाते हैं। आखिर यह स्थिति मोदी, योगी के राज्य में और भी विकराल रूप धारण करती जा रही है। "ऐसे धर्म ने और उसके बिचौलियों ने खासकर महिलाओं व बहुजन समाज का जीना हराम कर दिया है। आज देश के किसी भी कोने में दलित, आदिवासी, ओबीसी, अल्पसंख्यक अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहा। देश की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा अपने आपको भयभीत व डरा हुआ समझ रहा है। ऐसे में सामाजिक, आर्थिक विकास, प्रगति और शांति के मायने बहुजन समाज ने खो दिये है।* *अगर हमें समतामूलक समाज की स्थापना करनी है तो ऐसी क्रूरता से बाहर निकलना ही पड़ेगा। तभी यह देश सामाजिक न्याय के पुरोधा, महानायकों के सपनों का भारत कहलायेगा। हम अपने घरों में पूजा करें, नमाज़ अदा करें कौन मना कर रहा है, पर सार्वजनिक रूप से इनको ज्यादा बढ़ावा न दिया जाए। आज सरकार सिर्फ एक ही धर्म के लोगों को व एक ही धर्म को बढ़ावा दे रही है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरासर गलत है। अंधविश्वास, पाखंडवाद की लोकतंत्र में कोई जगह नहीं होनी चाहिये, क्योंकि ये देश धर्मनिरपेक्ष है। धर्म, आस्था का अर्थ दूसरों को नुकसान पहचान तो बिल्कुल नहीं होता। किसी एक समुदाय की आस्था पूरे देश के संकट का कारण नहीं बन सकती। किसी भी शिक्षा संस्थान में प्रवेश या सरकारी, गैर सरकारी सेवा के लिए आवेदन या नौकरी के लिए धर्म आड़े नहीं आना चाहिए। पासपोर्ट और व्यक्तिगत दस्तावेजों में 'धर्म और जाति' के कॉलम को तुरंत खत्म कर दिया जाना चाहिए। जाति व धर्म  के बारे में घोषणा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।*
*भारत सही मायनों में धर्मनिरपेक्ष देश नहीं बनेगा तब तक हम आधुनिक, वैज्ञानिक युग में प्रवेश नहीं कर सकते। गांव, क्षेत्र, जिला, प्रदेश, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर मानव समाज को धर्म से ऊपर उठकर क़ानून व संविधान को अंगीकृत कर शक्तिशाली, प्रगतिशील, मजबूत भारत बनाने में अपनी अपनी महती भूमिका निभानी चाहिए, तभी हम आने वाली पीढ़ियों के दिलों पर राज्य कर सकेंगे, अन्यथा आपके कट्टरता वाले धर्म पर आने वाली पीढ़ियां सवालों की बौछारें खड़ा करेंगी और धर्म से बाहर निकल कर इंसान बनने में रुचि लेंगी।*


*📝 लेखक:-*
🔹 *सामाजिक कार्यकर्ता हैं*
*संपर्क- 9810726588*


*~महान हस्तियाँ~ शैतानो का सच* :

💀💀💀💀💀💀💀💀💀

[ कुछ प्रसिध्द मनुवादी लोग जिन्हें हम विज्ञापन, उनकी नाटकीयता व अज्ञान के कारण नायक मानते हैं, उन लोगों के नाम के साथ उनका कार्य ]

[1] *मोहनदास करमचंद गांधी*: गुजराती बनिया, कलयुग का मनु, मीठी छुरी, पाखंड़ी, छली, ऊपर से उदार, अन्दर घोर जातिवादी, साम्प्रदायिक, बाबासाहब व मूलनिवासीयों का पक्का विरोधी !

[2] *जवाहर लाल नेहरू* : कश्मीरी ब्राह्मण, गांधी का चहेता चेला, सत्ता लोलुपता के कारण कारण विभाजन करवाया, रसिक, ऊपर से उदार, अन्दर से दृढ़ मनुवादी, ब्राह्मणी वर्चस्व की नींव रखी !

[3] *बाल गंगाधर तिलक* : चितपावन ब्राह्मण, मूलनिवासीयों का पक्का व खुला विरोधी, घोर जातिवादी व साम्प्रदायिक, मनुवादी वर्चस्व व पेशवा ब्राह्मणशाही का सपना देखता था !

[4] *रवीन्द्रनाथ टैगोर* : बंगाली ब्राह्मण, रंगा सियार, छिपा मनुवादी, अंग्रेजों का चाटुकार कवि, जार्ज पंचम का स्तुतिगान  'जन गण मन'  लिखा, मनुवादी शैतानों ने इसे राष्ट्रगान बना दिया !

[5] *लजपत राय* : पंजाबी बनिया, उदारता का नाटक, अछूतों का विरोधी, मनुवाद समर्थक, मनुस्मृति का प्रशंसक, हिन्दू महासभाईयों का गहरा मित्र, बगुला भगत, जनेव बांटकर मूर्ख बनाया !

[6] *वल्लभ भाई पटेल* : दृढ़ पिछड़े नेता, गांधी, नेहरू के चंगुल में, खुद को पिछड़ा न मानते, प्रधानमंत्री पद से वंचित हुए, पिछड़ों के आरक्षण, बाबासाहब तथा महार - बुध्दिष्ट व मुस्लिम के घोर विरोधी !

[7] *विनोबा भावे*: चितपावन ब्राह्मण, गांधी का पक्का शिष्य, गांधी के बाद गांधीवादी छल को आगे बढ़ाया, इसने भूदान का नाटक करके सरकार द्वारा वास्तविक भू-सुधार को रोका !

[8] *राम मोहन राय* : बंगाली ब्राह्मण, अंग्रेजों का सहयोगी, ब्रह्म समाज बनाकर समाज को मूर्ख बनाया, उसे सती-प्रथा व विधवा विवाह तो दिखा पर जाति-प्रथा व छुआछूत नहीं दिखा !

[9] *बंकिमचन्द्र चटर्जी*: बंगाली ब्राह्मण, साहित्यकार-कवि, घोर जातिवादी व साम्प्रदायिक, अंग्रेजभक्त, देश-भक्ति एवं मुस्लिम विरोध फैलाकर शूद्रों ध्यान भटकाने का प्रयास किया !

[10] *अरविन्द घोष* : बंगाली ब्राह्मण, उच्च आधुनिक शिक्षा प्राप्त मनुवादी, मनुवाद पर आध्यात्मिकता-दर्शन-तर्क-साहित्य का मुलम्मा चढ़ाया व इसने  'ब्राह्मण'  महामानव बताया है !

[11] *एनी बीसेन्ट*: आईरिश शैतान उपासक फ्रीमसेन, मनुवाद-जातिवाद में गहरी आस्था, थीयोसॉफिकल सोसायटी एवं कांग्रेस में सक्रिय, अंग्रेजों-मनुवादियों में गहरा भाईचारा बनवाया !

[12] *मदनमोहन मालवीय* : उत्तर भारतीय ब्राह्मण, चतुर किन्तु बहुत ही संकीर्ण, छुआछूत व जातिवाद में आस्था, अंग्रेजों का चहेता चाटुकार, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का संस्थापक !

[13] *दयानन्द सरस्वती* : सरयूपारी ब्राह्मण, जातिवाद-छुआछूत व वेदों का समर्थक, 'आर्य समाज'  बनाकर व 'सत्यार्थ प्रकाश'  लिखकर मनुवादी को जिंदा किया, जनेव बांटकर खूब मूर्ख बनाया !

[14] *गोलवलकर* : चितपावन ब्राह्मण, फुले-शाहु - अम्बेडकरी आन्दोलन का विरोधी, मुस्लिम शत्रू, मुस्लिम भय उत्पन्न कर मूलनिवासीयों में मनुवादी वर्चस्व को बनाए रखने का प्रयास किया !

[15] *वी. ड़ी. सावरकर*: चितपावन ब्राह्मण, कट्टर व खुला मनुवादी, मनुवाद को जीवित करने के लिए हिन्दू महासभा बनाई, गांधी हत्या में आरोपित किन्तु सबूत अभाव से बच गया !

[16] *के. बी. हेडगेवार*: चितपावन ब्राह्मण, बहुत चतुर - चालाक, महाराष्ट्र के फुले-शाहु-अम्बेडकरी आन्दोलन को समाप्त करने के लिए मुस्लिम भय दिखाकर विषवृक्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बनाया !


      इन सारे ब्राह्मण पुरूषों ने केवल ब्राह्मणों के हित के लिए काम [कार्य] किया, बहुजनों के लिए नहीं ?



      मनुवाद पर, 🐅 अम्बेडकरवाद का वार पे वार.......
"अक्ल के अंधे"
"मनुवादी"*********

🔻...जिस धर्म में पिता अपनी पुत्री से बलत्कार करे, बाद में उसे रखैल बनाएे, फीर भी "भगवान ब्रम्हा" कहलाये !
🔻... जिस धर्म में जो कोई अपनी स्त्री को जुआ में दॉव पर लगा कर हार जाये, वो फिर भी "धर्मराज" कहलाये !
🔻...जिस धर्म में बेटा अपनी निर्दोष माँ को फ़र्सा से हत्या कर दे वो तुच्छ "भगवान" का अवतार और परशुराम कहलाये|
🔻....जिस धर्म में एक हीं माता - पिता से जन्में संतान पुत्र "सवर्ण"और पुत्री "शुद्र" हो जाए, माता, बहन, पुत्री, पत्नी शुद्र और ताड़न की अधिकारी हो जाये !! फिर भी ऐसा पाखंडी धर्म का पाखंड उसके दुष्ट अनुयायियों को समझ में न आये!
🔻...जिस धर्म में मलभक्षी सुअर को भगवान का अवतार कहा जाये, किन्तु एक "मानव" ("शुद्र") को उस सूअर से भी "नीच" समझा जाये ! फिर भी ऐसा पाखंडी धर्म का पाखंड उसके दुष्ट अनुयायियों को समझ में न आये !
🔻...जिस धर्म में इंसान की बनायी हुई मुर्ति पर कुत्ता सुअर और चूहे अपना मल- मूत्र विसर्जन करते रहे, फिर भी वो पवित्र रहे | और यदि उसी मंदिर मे एक शूद्र दलित चला जाये तो मंदिर और भगवान दोनो अपवित्र हो जाये ! अर्थात जिस मंदिर की मूर्ति पर कुत्ते टांग उठा कर अपने मुत्र के द्वारा मूत्राभिषेक कर दे, फिर भी वह पत्थर की मुर्ति पवित्र है, किंतु शुद्र मानव की मात्रछाया से ये मेरुपर्वत व नित्यानंद के असंवैधानिक संतान, विदेशी आर्य ,मनुवादी, ब्रहमणवादी व देशद्रोही अशुद्ध एवं अपवित्र हो जांय ! और पवित्र होने के लिये गाय का मुत्र पीयें ! फिर भी ऐसा पाखंडी धर्म का पाखंड उसके दुष्टअनुयायियों को समझ में न आये !

🔻... जिस धर्म में एक बंदर तथाकथित भगवान होकर पृथ्वी पर रहते हुए भी उससे कई गुना बड़ा 'सूर्य' को कोई फ़ल समझते हुये निगलने या खाने को सोचे और वह बंदर भगवान हनुमान कहाये ! फिर भी ऐसा पाखंडी धर्म का पाखंड उसके अज्ञानी एवं मानसिक गुलाम अनुयायियों को समझ में न आये !
🔻...जिस धर्म में दो भगवान विष्णु और शंकर सम्लैंगिक संभोग करने लगे और तीसरा बेटी को भी ना छोड़े फीर भी वो भगवान त्रिदेव कहलाएे ! थु है ऐसे धर्म पर, शर्म करो मनुवादीयों......
🐗🐗🐗🐗🐗🐗🐗
वर्ण-व्यवस्था का भंडाफोड
चलो
चारो वर्ण का
पोस्टमोर्टम करे
🔵 ब्राह्मण  🔵
🐗 ब्राह्मण शब्द को तोड़कर देखें तो
बराह+मन=ब्राह्मण
बराह का मतलब सूअर होता है ( विष्णु ने दश अवतार धारण किया उसमें एक अवतार बराह का था ) यानि कि सूअर की तरह गंदगी से लथपथ और गंदगी का सेवन करने बाला मन मतलब जिसके दिमाग में सिर्फ गंदगी भरी पडी है...वो है ब्राह्मण )
🔵 क्षत्रिय  🔵
🐕 छाती+तिरिया=क्षत्रिय
छाती का मतलब वक्ष-स्थल
और तिरिया का मतलब स्त्री यानि की पराई बहु-बेटियो के सीने की सुंदरता पर मुग्ध होकर उनकी अस्मत लूट लेने बाला
( मतलब बहन बेटीयाँ की ईज्जत पे डाका डालने वाला )

🔵 वैश्य  🔵
वैश्य का मतलब
देह-व्यापारी....
ये सदियों पहले खुद कि बेहन बेटीयों की हीं देह-व्यापार करते थे....
फिर गुलामों का व्यापार किया और आज अपने ईमान का व्यापार कर रहे हैं
( मतलब जिसका कोई ईमान नही.... )
🔵 शूद्र  🔵
🐅 जब शूद्र शब्द को तोड़कर देखते हेैं तो हमारा गौरवशाली इतिहास हमारी आँखों के सामने
"दूध का दूध और
पानी का पानी" की तरह शुद्ध रूप में दिखाई देने लगता है।
शू=शूरवीर
द्र=द्रविड़
यानि शूरवीर द्रविड़
मतलब भारत देश के शांतिप्रिय जीवन व्यतीत करने बाले
दया के सागर

अन्याय के खिलाफ आर्यों से 1500 वर्षों तक वीरता के साथ लड़कर वीरगति को प्राप्त होने वाले उस वंश के संतान हेैं हम मुझे गर्व है कि हम हीं इस देश के मूलनिवासी है


कुछ दिन पहले एक धार्मिक प्राणी, हमारे पास रात गुज़ारने आया, वह थोड़ा बीमार था..
लेकिन धार्मिक स्कूल में पढ़ा था तो दिमाग़ी तौर पे बहुत बीमार था.
मैं रात को दूसरे लड़कों को जीव विज्ञान के बारे में कुछ बता रहा था,
धार्मिक प्राणी बोला, "ये सब झूठ है, साइंस की बातों के पीछे लगकर ज़िंदगी बर्बाद मत करो, साइंस-वाइंस कुछ नहीं होती "

मैंने उसकी दवा उठाकर अपनी जेब में डाली,  उसका मोबाइल ऑफ़ करके अपनी जेब में डाला.. और रूम की लाइट और पंखा बंद कर दिया.
धार्मिक प्राणी बोला, "ये क्या कर रहे हैं ?"
मैंने कहा, "ये दवाई, मोबाइल, पंखा, बल्ब ये सब साइंस के आविष्कार हैं.. अब अंधेरे में बैठकर मच्छर मार और बोल कि साइंस कुछ नहीं होती "
धार्मिक प्राणी खिसयानी हंसी हंसने लगा.
मैंने लाइट ऑन की और उससे कहा, "साइंस से जुड़ी हर चीज़ का सिर्फ़ दस दिन त्याग करके दिखा दे, उसके बाद बोलना कि साइंस कुछ नहीं होती "
वह प्राणी बिना कुछ बोले चुपचाप सो गया.
------------------
ऐसे धार्मिक प्राणियों की कमी नहीं है, जो साइंस की हर चीज़ इस्तेमाल करते हैं और साइंस के विरुद्ध भी बोलते हैं.
साइंस के जिन अविष्कारों ने हमारे जीवन और दुनिया को बेहतर बनाया है, वे सब अविष्कार उन्होंने किये, जिन्होंने धार्मिक कर्मकांडों में समय बर्बाद नहीं किया.

आज कोई भी धार्मिक प्राणी साइंस से संबंधित चीज़ों के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता, लेकिन ये एहसान फ़रामोश साइंसदानों का एहसान नहीं मानते.. ये उस काल्पनिक शक्ति का एहसान मानते हैं, जिसने मानव के विकास में बाधा डाली है.. जिसने मानवता को टुकड़ों में बांटा है.

साइंसदान, अक्सर नास्तिक होते हैं... लेकिन जाहिल प्राणी कहेंगें," साइंसदानों को अक्ल तो हमारे God ने ही दी है"
लेकिन ऐसे मूर्ख इतना नहीं सोचते कि उनके God ने सारी अक्ल नास्तिकों को क्यों दे दी, धार्मिक प्राणियों को मन्दबुद्धि क्यों बनाया ?

पिछले 150 साल में, जिन अविष्कारों ने दुनिया बदल दी, वे ज़्यादातर नास्तिकों ने किये या उन आस्तिकों ने किये जो पूजा-पाठ, इबादत नहीं करते थे.

अंधविश्वास और कट्टरता से भरे धर्म वालों ने ऐसा कोई अविष्कार नहीं किया, जिससे दुनिया का कुछ भला होता.

इन्होंने अलग किस्म के आविष्कार किये, ऊपरवाला ख़ुश कैसे होता है ? .. ऊपरवाला नाराज़ क्यों होता है ?..स्वर्ग में कैसे जायें ? ..नरक से कैसे बचें ? स्वर्ग में क्या-क्या मिलेगा ?.. नरक में क्या-क्या सज़ा है ?..हलाल क्या है, हराम क्या है ?..बुरे ग्रहों को कैसे टालें ? .. मुरादें कैसे पूरी होती है ?.. पाप कैसे धुलते हैं ?.. ऊपरवाला किस्मत लिखता है.. वो सब देखता है.. वो हमारे पाप-पुण्य का हिसाब लिखता है.. जीवन-मरण उसके हाथ में है.. उसकी मर्ज़ी बगैर पत्ता नहीं हिलता.. ऊपरवाला खाने को देता है.. वो तारीफ़ का भूखा है.. वो पैसे लेकर काम करता है.. 
पित्तरों की तृप्त कैसे करें ? मंत्रों द्वारा संकट निवारण.. हज़ारों किस्म के शुभ-अशुभ.. हज़ारों किस्म के शगुन-अपशगुन.. धागे-ताबीज़.. भूत-प्रेत.. पुनर्जन्म.. टोने-टोटके.. राहु-केतु.. शनि ग्रह.. ज्योतिष.. वास्तु-शास्त्र...पंचक. मोक्ष.. हस्तरेखा..मस्तक रेखा..मुठकरणी.. वशीकरण.. जन्मकुंडली..काला जादू.. तंत्र-मन्त्र-यंत्र.. झाड़फूंक.. वगैरह.. वगैरह..
इस किस्म के इनके हज़ारों अविष्कार हैं..
------------------
इन्सान को उसके विकसित दिमाग़ ने ही इन्सान बनाया है, नहीं तो वह चिंपैंजी की नस्ल का एक जीव ही है,
जो इन्सान अपना दिमाग़ प्रयोग नहीं करते, वे इन्सान जैसे दिखने वाले जीव होते हैं.. वे इन्सान नहीं होते..

अपने दिमाग़ का बेहतर इस्तेमाल कीजिये..अंदर जो अंधविश्वासों का कचरा भरा है, उसको जला दीजिये.. अंधेरा मिट जायेगा.. आपके अंदर रौशनी हो जायेगी...
पहले खुद जागो फिर दूसरों को जगाओ अन्धविश्वास को दूर भगाओ



IBN7 पर डिबेट में आज एंकर सुमित अवस्थी ने दलित
चिंतक चन्द्रभान प्रसाद जी से प्रश्न किया कि
दलित उत्पीड़न कब खत्म होगा ?
चन्द्रभान जी - आरएसएस के राकेश सिन्हा और
सम्बित पात्रा जब मृत गौ माता की लाश कंधे पर
उठा कर ले जाएंगे उस दिन दलित उत्पीड़न अपने आप खत्म हो जाएगा।
यह सुनके सन्न रह गए सुमीत अवस्थी ने उसी टाईम
डिबेट को ख़त्म कर दिया। बहुत बहुत खूब चन्द्रभान
जी।
NEWS 24 चैनल पर बहस में चंद्रभान प्रसाद जी ने
कहा कि दलित अब मरे जानवर उठाने और गंदगी साफ करने का काम छोड़ रहा है गाय को जो
माता मानते हैं वो उसे कंधो पर उठाकर ले जायें और
अपनी माँ का अंतिम संस्कार करें तब इनको समझ
आयेगा।
बीजेपी के संबित पात्रा वीएचपी के तिवारी

जी और आरएसएस के राकेश सिन्हा के मुंह बंद हो गये जो देखने लायक थे फिर वहीं डिबेट भी खत्म कर दी

भारतीय लोकतंत्र की बोली लग जाएगी

अति महत्वपूर्ण लेख! कृपया समय निकालकर जरूर पढ़ें!!  

                         यदि 50 करोड़ में एक MP और 10 करोड़ में एक MLA बिकाऊ बना दिया जाए तो सिर्फ़ 34,000 करोड़ में भारतीय लोकतंत्र की बोली लग जाएगी…! कैसे? तो ज़रा इसका हिसाब भी समझ लीजिए। देश में 4120 निर्वाचित विधायक हैं और 543 लोकसभा सदस्य। अब यदि सभी राज्यों और लोकसभा में बहुमत चाहिए तो 2060 विधायकों और 272 सांसदों का उपरोक्त भाव ने कुल मोल होगा – 34200 करोड़ रुपये! इस तरह…
[(4120/2)10]+[(543/2)50]
=20600+13600=34200
यानी, ज़्यादा से ज़्यादा 35 हज़ार करोड़ रुपये! अब ज़रा इस रक़म की तुलना उस 9000 करोड़ रुपये की चपत से करके देखिए जिसे लगाकर मोदी-शाह-जेटली का दोस्त विजय माल्या इंग्लैंड में गुलछर्रे उड़ा रहा है। या, ब्याज समेत इतनी ही रक़म की देनदारी सुब्रत राय में मामले में भी बैठ सकती है। दूसरे शब्दों में, 8 लाख करोड़ रुपये से ऊपर का बैंकों का NPA है। यानी भारतीय लोकतंत्र का सौदा बैंकों के कुल NPA के क़रीब 4.4% में ही हो सकता है। अडानी जैसे मोदी-भक्तों के लिए ये रक़म हाथ के मैल जितनी है। उन्हें इसे मुहैया करवाने में एक पल भी नहीं लगेगा…!
अच्छी तरह से जान लीजिए कि अभी देश पर संघ की सत्ता का युग है। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह (मोशा) की हैसियत संघ के मुखौटे से अधिक नहीं है। इनका नया एजेंडा विपक्ष के विधायक और सांसद को ख़रीदकर भारतीय लोकतंत्र और संविधान को पूरी तरह से संघ का ग़ुलाम बनाना ही है! पूरी तेज़ी से यही काम चल रहा है। अफ़ीम चाटकर बैठी जनता के लिए इस मिशन को नाम दिया गया है ‘काँग्रेस मुक्त भारत’, लेकिन इसका असली लक्ष्य है विपक्ष विहीन भारत…! SP, BSP, JDU, Congress के बाद जल्द ही तृणमूल, BJD, TRS और AIADMK के विधायकों और सांसदों को भी ख़रीद लिया जाएगा!

2019 के आम चुनाव के लिए TINA (There is no alternative) Factor की अफ़वाह को असल-सत्य बनाकर वैसे ही पेश किया जा रहा है, जैसे 1995 में सारी दुनिया में गणेश जी को एक साथ दूध पिलाया गया था! जो लोग इस तरह के झाँसे में नहीं आएँगे, उन्हें चुनाव से पहले और बाद में वैसे ही ख़रीद लिया जाएगा, जैसा हमने अभी-अभी अरुणाचल, गोवा, बिहार और उत्तर प्रदेश में देखा है!
इसीलिए अपने इर्द-गिर्द बैठे उन लोगों की बातों पर ग़ौर कीजिए जो आपको इस बात पर ख़ुश होने के लिए कह रहे हैं कि ‘देखा, काँग्रेस कैसे उजड़ रही है? यहाँ तक कि जो पार्टियाँ काँग्रेस का साथ दे रही हैं, उनके विधायक भी उन्हें छोड़कर भाग रहे हैं! अरे, डूबते जहाज़ पर कौन रहना चाहेगा? काँग्रेस और उसके दोस्तों से उनके लोग ही नहीं सम्भल रहे, क्योंकि उनका अपने-अपने पार्टी नेतृत्व पर भरोसा ही नहीं रहा! वग़ैरह-वग़ैरह…।’
लेकिन अफ़सोस कि सच ऐसा नहीं है। बल्कि इससे लाख गुना ज़्यादा वीभत्स, विकृत और भयावह है! मुँह माँगे दाम के आगे भी अगर हम नहीं झुके तो वो हमारी कनपटी पर भी CBI, ED, Income Tax जैसी किसी भी पिस्तौल को रखकर, हमें भी वैसा ही करने के लिए मज़बूर करेंगे, जैसा वो चाहेंगे!
यदि आपको ये बातें कपोल-कल्पना लगे तो जान लीजिए कि इन लोगों को नियम-क़ायदों, क़ानून-संविधान, हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग-संसद किसी की परवाह नहीं है! गोरक्षकों के रूप में दिख रहे इनके उन्मादी चेहरे क्या ये नहीं बताते कि इन्हें किसी भी चीज़ का डर या लिहाज़ नहीं है। इनके सारे मुद्दों और चिन्तन में सिर्फ़ ‘ज़बरन’ तत्व की भरमार है।
अनुच्छेद 370 को ख़त्म करो, क्योंकि हम कह रहे हैं! अनुच्छेद 35A को ख़त्म करो, क्योंकि हम कह रहे हैं! तीन तलाक़ को ख़त्म करो, क्योंकि हम कह रहे हैं! समान नागरिक संहिता को लागू करो, क्योंकि हम कह रहे हैं! इतिहास में वो परिवर्तन करो जो हम कह रहे हैं। लिखो कि टीपू, देशद्रोही था! लिखो कि अकबर ने महाराणा के क़दमों में गिरकर रहम की भीख़ माँगी थी, क्योंकि हम कह रहे हैं! सारे विपक्षी नेताओं को भ्रष्ट समझो, क्योंकि हम कह रहे हैं! उन पर छापों का सर्ज़िकल हमला करो, क्योंकि हम कह रहे हैं! राम मन्दिर फ़ौरन बनाओ, क्योंकि हम कह रहे हैं! स्वीकार करो कि बंगाल में महिलाओं के साथ 15 दिनों में बलात्कार हो जाता है, क्योंकि हम कह रहे हैं! मानो कि बंगाल में क़ानून-व्यवस्था का राज ख़त्म हो गया है, क्योंकि हम कह रहे हैं! यक़ीन करो कि कश्मीर में शान्ति और ख़ुशहाली बढ़ रही है, क्योंकि हम कह रहे हैं! यक़ीन करो कि दुनिया में भारतीय अर्थव्यवस्था का डंका बज रहा है, क्योंकि हम कह रहे हैं! ख़बरदार, जो किसी ने नोटबन्दी, GST, बेरोज़गारी, धार्मिक उन्माद में इज़ाफ़े की आलोचना की तो उसकी ज़ुबान खींच ली जाएगी। क्योंकि मोशा राज में ये सब कुछ ईश-निन्दा और देशद्रोह के समान है, क्योंकि हम कह रहे हैं!
ऐसी असंख्य बातें हैं। ये तभी मुमकिन है, जब आपको पता हो कि सब कुछ बिकाऊ है! आपको तो सिर्फ़ गाँठ में रुपये रखकर बाज़ार में निकल जाना है और जिस सामान पर जी आ जाए, उसकी बोली लगा देना है! क्योंकि आपने सैकड़ों धन्ना सेठों को अपनी अंटी में दबा रखा है! वो भी आपको सर्वशक्तिमान मानकर आपके ग़ुलाम हो चुके हैं। धन्ना सेठों को भी पता है कि अगर उन्होंने आपकी ग़ुलामी से ना-नुकुर किया तो आप उन्हें नेस्तनाबूद कर देंगे! धन्ना सेठों में भी जो दबंग और दूरदर्शी हैं उन्होंने मोशा राज की क़ीमत लगाकर इसे अपना लठैत बनाकर पाल लिया है।

इसीलिए, लोकतंत्र में विधायकों-सांसदों और यहाँ तक कि पार्टियों की ख़रीद-फ़रोख़्त या दलबदल को अति-अनिष्टकारी मानिये! क्या सांसदों-विधायकों की औक़ात इस देश में अपनी-अपनी पार्टी के ऐसे कर्मचारियों की तरह हो सकती है जो आज एक कम्पनी से इस्तीफ़ा दे और कल दूसरी कम्पनी का मुलाज़िम बन जाए?
क्या नेताओं को ऐसा होना चाहिए कि अगर आज टाटा का कर्मचारी है तो कल से रिलायंस का हो जाए और परसों बिरला चाहें तो ज़्यादा रुपये देकर उसे अपने पास बुला लें, अपना कारिन्दा बना लें! राजनीति में ऐसा काम कोई भी करे, किसी के लिए भी किया जाए, ये है तो हर तरह से महाविनाशकारी ही! यहाँ एक Jio यदि मुफ़्तख़ोरी करवाकर सारे टेलीकॉम बाज़ार को तहस-नहस कर सकता है तो सोचिए कि नेताओं की मंडी में उनकी नीलामी का क्या-क्या हश्र हो सकता है? अभी यही काम धड़ल्ले से हो रहा है!
गुजरात के घटनाक्रम को मामूली समझना भयंकर भूल होगी! बिहार में जनता ने जिस NDA को नकार दिया था, उसे नये चुनाव के बग़ैर नीतीश कुमार कैसे जनादेशधारी बना सकते हैं? ये घोर अन्धेर है। याद रखिए, मुद्दा ये नहीं है कि लालू, बढ़िया हैं घटिया? भ्रष्ट हैं या नहीं? मुद्दा ये है कि चुनाव पूर्व बने जिस गठबन्धन को जनादेश मिला था, यदि वो चलने लायक नहीं बचा तो आपको फिर से जनादेश लेना चाहिए।
नीतीश को बिहार ने जिस खेमे का मुख्यमंत्री चुना था, उसमें NDA नहीं था। 2015 के चुनाव में NDA और महागठबन्धन के बीच सीधी टक्कर हुई थी। इसमें हारने वाला NDA किसी भी जोड़-तोड़ से सत्तासीन कैसे हो सकता है? ये तो बाक़ायदा जनादेश का अपमान है, संविधान की हत्या है! क्या जनता पर चुनाव का बोझ नहीं थोपने की आड़ में जनादेश और संविधान की धज़्ज़ियाँ उड़ायी जा सकती हैं? संविधान के संरक्षक सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। उसे किसी याचिका की ज़रूरत ही क्यों होनी चाहिए!
क्या राजनीति में बड़े से बड़े नेता के बयान की कोई गरिमा, कोई प्रतिष्ठा नहीं होनी चाहिए? कल आपने जो कहा था क्या आज आप उसका बिल्कुल उल्टा करने लगेंगे? और, क्या जनता को चुपचाप पाँच साल तक सिर्फ़ और सिर्फ़ तमाशा ही देखना पड़ेगा? ये अतिवाद की दशा है, जो देर-सबेर हमें अराजकता और गृह युद्ध के दलदल में ढकेलकर ही मानेगी। नैतिकता और लोकलाज़ विहीन राजनीति का अपनी सीमाओं को तोड़कर बाहर निकल जाना, देश के लिए किसी परमाणु हमले से भी ज़्यादा विनाशकारी और भयावह है! संघ के इशारे पर नरेन्द्र मोदी और अमित शाह (मोशा) जो नंगा-नाच खेल रहे हैं, उसके मायने समझिए! वर्ना, वो दिन दूर नहीं जब आपकी औलादें मौजूदा भारतवर्ष में साँसें नहीं ले रही होंगी! भारत माता की जय के नारे भी उनके मुँह से नहीं निकल पाएँगे! क्या वर्तमान में आप देख नहीं रहे हैं कि भारत की मीडिया बिकाऊ व गोदी मीडिया हो गई है??? ऐसा लग रहा है कि जैसे मीडिया ने अपने सारे पत्रकारों को कवरेज करने के लिए सीमाओं पर ही खड़ा कर रखा हो। देश में लोगों पर अत्यंत वीभत्स अत्याचारों पर भी मीडिया का उदासीन रूख बता रहा है कि आने वाला वक्त देश का अत्यंत खतरनाक वक्त होगा।हिन्दू राष्ट्र की आड़ में एक वर्ग विशेष का राष्ट्र बनाया जा रहा है। एक विचारधारा विशेष का संगठन व पार्टी तय कर रहे हैं कि देश में कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही? जो लोग कभी भारतीय ध्वज व भारतीय संविधान को जलाने की बात करते थे, वो आज राष्ट्रभक्ति के प्रमाण-पत्र बाँट रहे हैं । देश के मुश्किल दौर में क्या आप देश के साथ हैं? क्या आपके रहते आपके बच्चों के भविष्य पर देशद्रोही ताकतें कब्जा कर लेंगी?  क्या आप बस मूकदर्शक बनें रहेंगे? आज जागने का वक्त है, अगर देर कर दी तो फिर सिवाय रोने के और कुछ भी हाथ नहीं होगा। याद रखिए, जब संविधान ही नहीं बचेगा तो भारत कहाँ होगा?    जगमोहन बौद्ध, एक जागरूक नागरिक, मोबाइल :-  9254797006.


2035 का सीन 🇪🇺
🇪🇺ब्राह्मण ठाकुर वैश्य 50% हो गए है। आज केंद्र सरकार के चुनाव का रिजल्ट आया है भाजपा के द्वारा लगातार 5वीं बार आरएसएस का एक गुंडा प्रधानमन्त्री बन गया है ।
🇪🇺हरिजन एक्ट को खत्म कर दिया गया अब दलितों को मारने पीटने पर कोई कानून का डर नही है ।
🇪🇺छहः महीने पहले पूर्व मुख्यमंत्री मायावती राजनीति से सन्यास ले चुकी हैं ।लालू यादव भी नही रहे मुलायम भी नही हैं 🇪🇺
🇪🇺आज हर जगह आरएसएस के नेतृत्व में पूर्ण हिन्दू सरकार है हिन्दुस्तान को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दिया गया है और संविधान खत्म कर दिया गया है तथा वर्ण व्यवस्था लागू कर दी गई है और आरक्षण भी खत्म कर दिया गया है जो की उनका मुख्य चुनावी वादा था।🇪🇺
🇪🇺पुरे भारत में दलित और पिछड़े एक भी चुनाव नही जीत पा रहे हैं क्यों की आरक्षण खत्म हो चूका है , सामूहिक नरसंहार में कल ही 35 हजार  दलित और यादव मारे गए हैं ।
🇪🇺 देश में जगह जगह बौद्ध मंदिर और अम्बेडकर की मूर्तियों को तोड़ा जा रहा है देश भर में मन्दिरो का निर्माण जोरो शोरो से चल रहा है।आप की जमीन मंदिर के नाम पर छीन ली जा रही है और आप को शुद्र नीच कह कर मार दिया जाता है ।🇪🇺
🇪🇺इधर आरएसएस बजरंग दल और सहयोगी संगठनों ने मिलकर भारत पर हमला कर दिया है आरएसएस ने पाकिस्तान से हाथ मिला लिया है सेना उधर बोर्डर पर मर रही है इधर देश में भयंकर गृह युद्ध चल रहा है।🇪🇺
🇪🇺 कानून व्यवस्था पूरी तरह से बाभन ठाकुर और बनियों के हाथ में है बहुजन जगह जगह सड़क पर काटे जा रहे है !🇪🇺मरने वाले लोगो को याद आ रहा है कि 2015 में वो मायावती को इसलिए गालीयां दे रहे थे कि वो सच बोलतीं है
 🇪🇺बहुजन लड़कियो को सड़क पर नंगा करके 50 -50 लोग तब तक बलात्कार कर रहे है जब तक की वो सड़क पर ही नही मर जाए। सारी बैंके बड़े बड़े शोरूम बाजार सब लुटे जा रहे है। सारे मकान बंगलो में से बहुजनों को निकाल कर फेंका जा रहा है।🇪🇺
🇪🇺झोपड़ पट्टी छाप ब्राह्मण बंगलो में घुस कर कब्जा कर रहे है और बड़े बड़े घर की बहुजन लड़कियो को रखेल बनाया जा रहा है या बाजारों में बोली लगा कर बेचा जा रहा है।🇪🇺
🇪🇺आज तक जिन बहुजन "नेताओ" ने बहुजनो को सेक्युलर बनाए रखा था उनमे से कई ने ब्राह्मणवाद को अपना लिया और रामदास आठवले , रामबिलास पासवान ,उदित राज जैसे कई नेता अपनी हजारो करोड़ की दौलत लेकर विदेशो में बस गए।🇪🇺
🇪🇺पर मिडिल क्लास और गरीब बहुजन इन नरपिशाचों के बीच यहाँ खाया जा रहा है।उनकी बीवी लडकिया रोड पर बलात्कार कर के मारी जा रही है या रखैल बनाई जा रही है और लड़को को रंडी समलैंगिक बनाया जा रहा है।🇪🇺
🇪🇺 कैसा लगा?आप काँप गये ना पढ़ कर ही ?🇪🇺
🇪🇺ये सिर्फ कल्पना नही है ...🇪🇺
🇪🇺 ये सब चीजे नेपाल में होती आज भी होती है नेपाल में बचे बहुजनो से पुछ लीजिए कि नेपाली राजपूतो और पंडितो, के द्वारा बहुजनो की बहन बेटियो घरो के साथ क्या क्या होता है ??🇪🇺
🇪🇺मुर्ख मत बनो!तुमको माया के रूप में एक महान नेता मिली है...!!!उनको काम करने दो..उन्हें धोखा मत दो ।🇪🇺
🇪🇺भरा नही जो भावो से,
बहती जिसमे रसधार नहीं
बहुजन नही वो गद्दार है,
जिसको बसपा स्वीकार नही !!🇪🇺
🇪🇺जनहित का ये message सिर्फ आप सब के पढने के लिए नहीं है.🇪🇺🇪🇺🇪🇺
 🇪🇺 ब्राह्मण ,राजपूत आदि ने हमारे बौद्ध पूर्वजों अत्याचार पर किये, हमे गन्दी गालियॉ दी मंदिरो में घुसने नही दिया ।
🇪🇺1.मैं नहीं भूला उस वर्ण व्यवस्था की उस किताब को जो हमे नीच अछूत बनाती है । "ढोल गंवार शुद्र पशु नारी " ये सब ताड़न के अधिकारी " ये शब्द आज भी मेरे कानों में गूँजता है ।
🇪🇺2. मैं नहीं भूला उस जालिम ब्राह्मणवाद को, जिसने हमारे पूर्वजो को वेद मन्त्र पढ़ने पर तडपा तडपा कर मारा था।
🇪🇺3.मैं नहीं भूला उन जिहादी विदेशी आर्यो को, जिसने एक एक दिन में लाखो बौद्धो का नरसंहार किया था।
🇪🇺4.मैं नहीं भूला उस जल्लाद शुंग को, जिसने 14 वर्ष की एक बौद्ध बालिका के साथ अपने महल में जबरन बलात्कार किया था।
🇪🇺5. मैं नहीं भूला उस बर्बर शंकराचार्य को जिसने सम्पूर्ण भारत के 84हजार बौद्ध मंदिर नष्ट किये...!!!
🇪🇺6.मैं नहीं भूला उस शैतान मनु को जिसने कमर में झाड़ू और गले में हांडी बंधवाई थी ।
🇪🇺7.मैं नहीं भूला उस धूर्त शशांक को, जिसने बौद्धो को शुद्र बनना  कबूल ना करने पर शुद्रो/बौद्धो की लड़कियों को नग्न कर सैनिको के सामने फेंक दिया था।
🇪🇺8.मैं नहीं भूला उस निर्दयी राम को जिसने निर्दोष शुद्र ऋषि शम्बूक की सर काट कर हत्या की ।
🇪🇺9.मैं नहीं भूला उस क्रूर कुमारिल भट्ट को ,जिसने बौद्ध गुरु धम्मपाल को गर्म लोहे की सलाखो और आग  से तब तक जलाया जब तक उसकी हड्डियां ना दिखने लगी...!!!
🇪🇺10.मैं नहीं भूल पाया वह वक्त जब हमारे पूर्वजों को खटिया पर बैठने तक नही दिया जाता था ।
🇪🇺11. मैं नहीं भूला उस नापाक द्रोणाचार्य को जिसने एकलव्य का अंगूठा काट दिया ।
🇪🇺12.मैं नहीं भूला उस वहशी दरिंदी स्मृति ईरानी को जिसने रोहित बेमुला की जान ली..!!!
13- मैं नही भूल सकता उन मनुवादियों को जिन्होंने नालंदा विश्विद्यालय में बख्तियार खिलजी के साथ मिल कर आग लगवा दी और 1 लाख भिक्षुओ को जिंदा जलवा दिया ।

🇪🇺हम बहुजनो पर हुए अत्याचारो को बताने के लिए शब्द और पन्ने कम हैं, यदि इस पोस्ट को पढ़कर मेरी तरह आपका खून भी खौला हो,तो अपने मित्रों के साथ शेयर ज़रूर करें।🇪🇺

समुद्र मंथन

समुद्र मंथन दुनीया के सबसे बडे चुतीया पा.. मेसे एक,
 तो आवो मित्रो जानते है कैसे हुआ था समुद्र मंथन??


दैत्यराज बलि का राज्य तीनों लोकों पर था। इन्द्र सहित देवतागण उससे भयभीत रहते थे। इस स्थिति के निवारण का उपाय केवल विष्णु ही बता सकते थे, अतः ब्रह्मा जी के साथ समस्त देवताभगवान विष्णु के पास पहुचे ! उन्होंने भगवान विष्णु को अपनी विपदा सुनाई। सब सुन कर विष्णु बोले तुम दैत्यों से मित्रता कर लो और क्षीर सागर को मथंन कर उसमें से अमृत निकाल कर पान कर लो।

दैत्यों की सहायता से यह कार्य सुगमता से हो जायेगा। इस कार्य के लिये उनकी हरशर्त मान लो और अन्त में अपना काम निकाल लो !! अमृत पीकर तुम अमर हो जाओगे और तुममें दैत्यों को मारने का सामर्थ्य आ जायेगा।

 दैत्यराज बलि ने देवराज इन्द्र से समझौता कर लिया और समुद्र मंथन के लिये तैयार हो गये। मन्दराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकी नाग को नेती बनाया गया। स्वयं भगवान श्री विष्णु कच्छप अवतार लेकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर रखकर उसका आधार बन गये !!

समुद्र मंथन आरम्भ हुआ और समुद्र मंथन से निम्न चिजे निकली !!


1:- सबसे पहले जल का हलाहल विष निकला, विष को शंकर भगवान के द्वारा पान कर लिया गया उनका गला निला फड़ गया ।

2:- दूसरा रत्न कामधेनु गाय निकली जिसे ऋषियों ने रख लिया।

3:- फिर उच्चैःश्रवा घोड़ा निकला जिसे दैत्यराज बलि ने रख लिया।

4:- उसके बाद ऐरावत हाथी निकला जिसे देवराज इन्द्र ने ग्रहण किया।

5:- ऐरावत के पश्चात् कौस्तुभमणि समुद्र से निकली उसे विष्णु भगवान ने रख लिया !!

6:- फिर कल्पद्रुम निकला और रम्भा नामक अप्सरा निकली। इन दोनों को देवलोक में रख लिया गया।

7:- फिर समु्द्र को मथने से लक्ष्मी जी निकलीं। लक्ष्मी जी ने स्वयं ही भगवान विष्णु कोवर लिया।

8:- फिर एक के पश्चात एक चन्द्रमा, पारिजात वृक्ष तथा शंख निकले और अन्त में धन्वन्तरि वैद्य अमृत का घट लेकर प्रकट हुये। मित्रो आप खुद समझ सकते हो कि ये कितनी बडी बकवास है, पुरी तरह काल्पनिक और अवैग्यानिक है।। कितनी अजीब बात हे कि जब भगवान को भी कुछ चाहीये होती तो उन्हे भी महनत करना पडी ।।

वैसे तो समुर्द का मंथन करना कि एक महा गप है ।। फिर भी कुछ बेचारे लोग न चाहते हुए भी इसगप्पे को सच मानते है, इस पर स्वभाविक रुप से मेरे मन मे जो संकाये पैदा हो रही है वो कुछइस प्रकार है ।।

1:- सबसे पहले कि स्मुद्र का मंथन किया जा रहा है तो क्या यह समुद्र के किनारे प किया गया या फिर बिच गहराई मे, किनारे पर तो होगा नही तो बिच गहाराई मे किया गया तो देवता तो ठिक लेकीन सभी राक्षसो को भी पानी पर चलना आता था क्या ??


2:- समुद्र का मंथन करने से विष निकला ???? समुद्र का मंथन करने से अगर नमक निकलने की बात कही गयी होती तो बात कुछ हजम भी हो जाती, और शंकर भगवान ने विष पिया तो उनका गला निला पड गया, इसका मतलब विष बहुत जहरीला था, भगवान अगर और अधीक मात्रा मे पि लेते तो न जाने क्या अनर्थ हो जाता ।।

3:- कामधेनु गाय उच्चैःश्रवा घोड़ा और् एरावत हाथी समुद्र से निकले ये क्या मजाक है, अगर किसी मछली के निकलने की बात होती तो एक बार समझ आता, बेचारे मछुआरो कि जिन्दगी बीत जाती है समुद्र मे जाल फेंकते हुए उन्हे तो आज तक मछली और केकड़ो के अलावा कुछ नही मिला समुद्र से ???

4:- लक्ष्मी जी भी समुद्र मंथन से निकली, तो जवान होने तक लक्ष्मी जी समुद्र मे क्या कर रही थी, समुद से निकलने के बाद का उनके जिवन का लेखा झोखा है लेकीन उनके स्मुद्र के अंदर व्यतीत किये जिवन का लेखा जोखा क्यो नही है??? समुद्र से निकलते हि विष्णू ने लक्ष्मी से शादी करली तो कही एसा तो नही कि य सब लक्ष्मी को समुद्र से निकालने कि विष्णू की चाल तो नही थी????

5:- फिर चंद्र्मा भी समुद्र मंथन से निकला, मित्रो इस बात ने तो गप्पो की हद पार कर दि,चंद्रमा जितना बड़ा ग्रह जो आकार मे प्रथ्वी का एक चौथाई है, वो समुद्र से कैसे निकल सकताहै ???

6:- आखीरी मे समुद्र से अंम्रत का घडा लेकर धन्वंतरी देव निकले, धंनतरी भी तो देवता हि थे तो जब देवताओ को अंम्रत पीना हि था तो सिधा धन्वतरी देव से कह देते वो खुद अंम्रत लेकर आजाते उसके लिये ये सब झमेला करने की क्या जरुरत थी??? या फिर देवताओ के बिच इतना संमर्क भी नही था ???

मित्रो अगर आप चाहते है हमारा यह पेज कभी बंद ना गिरे तो मित्रो पेज के पोस्ट ज्यादा से ज्यादा लाईक शेअर करीये.. मित्रो आपका साथ ही मेरा ऊत्चाह है..


 विदेशी ब्राम्हण बहुजनो से 11 रुपये और 21 रुपये का ही दक्षिणा क्यों लेते है?क्या राज है ?
और#डॉबाबासाहेबआंबेडकर जी ने 22 प्रतिज्ञा ही क्यों दिया अपने अनुयायियों को?
बहुजन गरीब व्यक्ति जब किसी से सहायता मांगता है तब उसे भीख और भिकारी कहा जाता है और ब्राम्हण जब बहुजनो से से पैसे लेता है तब उसे वह दक्षिणा कहता है भिक क्यों नहीं ?
दक्षिण शब्द से दक्षिणा शब्द बना। मौर्य साम्राज्य को विदेशी ब्राम्हणो ने खत्म किया और दक्षिण भारत में जब वे हमले के लिए गए तब उन्हें हराया गया ।बाद में षड्यंत्र से जीत लिया।मगर बहुत समय लगा। फिर भी ब्राम्हण दक्षिण दो यानि दक्षिणा दो यह अभी तक कहता है!!
11 आंकड़े को ब्राम्हणो इतना महत्व क्यों दिया?क्या राज है इसके पीछे?
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी ने सही कहा था कि बौद्ध धर्म बनाम वैदिक धर्म यही भारत का वास्तविक इतिहास है।अर्थात क्रांति और प्रतिक्रांति यह भारत का इतिहास है। मौर्य,बुध्द ने त्याग ,सिद्धान्त के आधार पर क्रांति की विदेशी ब्राम्हणो ने धोका, षड्यंत्र से प्रतिकान्ति की।आज भी वहीँ चल रहा है ।
बुद्ध धर्म में 10 आंकड़ा बहुत मायने रखता है । 3 रत्न (त्रिरत्न),4 आर्य सत्य ,5 शील यानि पंचशील,आर्य अष्टांगिक मार्ग (8 श्रेष्ठ मार्ग), 10 शील यानि दसशील,10 पारमिता यानि दस पारमिता ।यह 10 आंकड़े आंकड़े नही है सिद्धान्त है।इसलिए तथागत की जो भी प्राचीन मूर्तिया है उसमें उंगलियों के साथ की मुद्राएं है।वह 10 आंकड़े सिद्धान्त है।यानि वह बुद्धिज्म है।
रामायण,महाभारत मौर्योत्तर कालीन रचना है।पुष्यमित्र शुंग ही राम है और राम नाम का कोई व्यक्ति पैदा ही नहीं हुआ है । पुष्यमित्र शुंग ने सम्राट अशोक के परपोत सम्राट बृहदत मौर्य की मौर्य साम्राज्य में घुसकर षड्यंत्र करके धारदार तलवार से टुकड़े टुकड़े करके हत्या की थी ।
दशहरा यानि दसरा यह तौहार इसलिए प्रचार में लाया क्यों की कुछ बाते प्रतिक होती है ।रावण 10 मुह वाला क्यों बताया?10 आंकड़ा ही क्यों?11 क्यों नहीं?10 संबंध यह बुद्धिज्म से था ।वह लोगो के दिमाग से मिटाना जरुरी था इसलिए ब्राम्हणो ने 11 आंकड़ा योजनापूर्वक लाया और उसे मान्यत्या देने के लिए रावण पात्र सामने लाया। और पुष्यमित्र शुंग जो ब्राम्हण है उसे राम नाम से स्थापित किया।राम भी काल्पनिक है और रावण भी काल्पनिक है मगर मौर्य साम्राज्य का ख्तामा करने के लिए सब खेल खेला गया ।और धीरे धीरे समाज का ब्रेनवाश किया गया।इसके लिए ब्राम्हणो ने तर्क ,बुद्धि,विवेक का सहारा नहीं लिया।बल्कि ब्राम्हण अपने धर्म ग्रन्थ में कहते है कि जो तर्क करेगा,ब्राम्हणो को सवाल करेगा वह सीधा नर्क में जायेगा!!!ब्राम्हणी धर्म तर्क के सामने टिक नहीं पाते यह उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है !!!!
दूसरी बात इस षड्यंत्र को छुपाने के लिए 11 आंकड़े को ब्राम्हणो ने पवित्र घोषित किया ताकि बुद्धिज्म को उसके नीचे दबाया जा सके।इसीलिए डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने इस बात को जानते हुए दशहरे के दिन बुद्ध धर्म को अपनाया,बुद्धिज्म को भारत में पुनर्जीवित किया!!!
21 आंकड़े को ब्राम्हण क्यों महत्व देते है।जैसे 11 के पीछे ब्राम्हणो के हिंसा का राज छुपा है वैसे ही 21 पीछे ब्राम्हणो के आतंकवादी होने का इलाज छुपा हुआ है !!!
21 आंकड़े संबंध यह आतंकवादी मोहन भागवत का आदर्श परशुराम से संबंध है !
विदेशी ब्राम्हणो ने नाग राजाओ के साथ बार बार युद्ध किये।21 बार ब्राम्हण हारे।वे कभी जिते नहीं।अगर जितते तो 21 बार और लढाई लढते क्यों? परशुराम की कहानी यह बताती है कि प्राचीन शासक नाग लोक ब्राम्हणवाद के सामने घुटने टेकनेवाले नहीं है यह जानकर नाग लोगो का मनोबल गिराने के लिए और उन्हें शूद्र घोषित करने के लिए 21 बार निक्षत्रिय यह बनावट कहानी बनायीं।मगर यह बात सच है कि ब्राम्हणी धर्म यह कोई महान या बहुत बड़ी विचाधारा या तत्वज्ञान का धर्म है बल्कि यह ब्राम्हणी धर्म आतंकवाद की जननी है !!! वैदिक धर्म हिंसा की शिक्षा देता है ।
इतना ही नहीं धावडशिकर नामक जो पेशवा ब्राम्हणो का गुरु और सावकार था उसने ही महाबलेश्वर में परशुराम का मंदिर बनवाया।
क्यों की इसके पीछे भी ब्राम्हणो का अपराधबोध है ।एक तो ब्राम्हणो को इस बात का डर था कि छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या पेशवा ब्राम्हणो ने की है ।अगर वे लोग जग जाए तो एक ब्राम्हण को बख्शेंगे नहीं!!दूसरी बात छत्रपति शिवाजी महाराज ने जब राज्याभिषेक के लिए आग्रह किया यानि ब्राम्हणो के वर्चस्व को ललकारा यह बात ब्राम्हण नहीं भूले।यहाँ तक कोल्हापुर के शाहू छत्रपति महाराज को भी पूना का ब्राम्हण बाल गंगाधर तिलक ने राजोपाध्ये ब्राम्हण को आगे करके शूद्र कहकर अपमानित किया था । यह इस बात का प्रमाण है कि नाग लोक -छत्रपति शिवाजी महाराज,छत्रपति संभाजी महाराज,संत तुकाराम महाराज यह विदेशी ब्राम्हणो से लढ़ रहे थे ।यह लढाई आज भी जारी है ।भले ही ओबीसी या पूरा बहुजन समाज वैदिक आतंकवादी ब्राम्हणो का गुलाम हो फिर भी बहुजन समाज ने अभी तक घुटने टेके नही है।ब्राम्हणो के 4 प्रमुख देव है जैसे की ब्रम्ह, विष्णु,इंद्र और परशुराम!इन चारों के बहुजन समाज ना ही मंदिर बनाता है और ना ही उनकी पूजा करता है ।ब्रम्ह ,इंद्र,विष्णु यह अनैतिक है ।ब्रम्ह ने अपने बेटी सरस्वती से व्यभिचार किया !!इंद्र के बारे में ब्राम्हणो ने लिखा है कि वह रात दिन सुरा यानि शराब और अप्सराओं को नचाता है अनैतिक क्रीड़ा करता है ।धर्मानंद कोसंबी के मुताबिक हिंदी संस्कृति और अहिंसा किताब में लिखा है कि अति काम क्रीड़ा करने से इंद्र का गुप्तांग टूट गया।इसलिए सारा इंद्रलोक यानि सारे देवता परेशान हो गए और उन्होंने रायमशवरे से एक तरकीब ढूंढ निकाला की बकरे का लिंग इंद्र लगाया जाए। ऐसे अनैतिक,दुराचारी प्रतीक ब्राम्हणो के थे।आज भी बहुजन समाज उन आतंकवादी,नीतिमत्ता शून्य,दुराचारी प्रतिको को अपनाता नहीं है ।यानि पूरा बहुजन समाज ब्राम्हणी धर्म का पालन नहीं करता है ।बस उन्हें सही मार्गदर्शन करने की जरुरत है ।
जब 14 ओक्टूबर (उस दिन दशहरे का दिन था)1956 को नाग भूमि यानि प्राचीन नाग लोगो का केंद्र नागपुर में बुद्ध धम्म अपनाया तब उन्होंने फिर से नाग लोग बनाम विदेशी ब्राम्हणो की लढाई शुरू कर दी ।इसीलिए उन्होंने नागपुर में धम्मदीक्षा देते हुए 22 प्रतिज्ञाएं दी। 22 प्रतिज्ञा ही दीक्षा है बुद्धिज्म की!!
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने 22 ही आंकड़ा क्यों रखा?
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर 11 और 21 इन आंकड़े के पीछे के षड्यंत्र को जानते थे । डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी ने फिर से क्रांति का आरम्भ किया ।इसलिए विदेशी ब्राम्हणो ने हिंसा का सहारा लेकर फिर से डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी की हत्या की ।आज तक उनके हत्या का जाँच आयोग डीआइजी सक्सेना आयोग संसद के पटल पर नहीं लाया गया 60 साल गुजर गए।
साथियो,डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने ढाई हजार साल पुरानी गुलामी को अपने एक ही जीवन में खत्म की ।कुछ लोग इन क्रांति को पेशवा ब्राम्हणो से समझौता करके खत्म करना चाहते है ।
आप किनके साथ है ?
क्रांति के साथ या प्रतिक्रांति के साथ?
बस् यही मुझे जानना है ।
क्यों की डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के सपने को साकार देने के लिए है ।
जय भीम,जय मूलनिवासी।
#प्रोफ़ेसर विलास खरात
#राष्ट्रीयप्रभारी राष्ट्रिय मायनोरिटी मोर्चा।

#जॉइनबुद्धिस्टइंटरनैशनलनेटवर्क

शुद्धिकरण के लिए क्या तरीके अपनाएंगे?

दलितों के साथ रहने वाले ग़ैर-दलित छात्र जब वापस घर लौटते हैं तो उनके मां-बाप शुद्धिकरण के लिए क्या तरीके अपनाएंगे?

ढाई साल पहले गुजरात पुलिस से रिटायर्ड दलित आईपीएस अफ़सर राजन प्रियदर्शी ने ‘दलितों पर अत्याचार’ विषय पर पीएचडी के दौरान ग़ैर-दलित छात्रों को प्रश्नपत्र में यही सवाल पूछा.
बच्चों ने बताया कि मां-बाप उन्हें गाय छूने को कहेंगे जिससे वो पवित्र हो जाएंगे. गंगाजल छिड़कने पर शुद्धता आएगी. मुसलमान को छूने से भी अशुद्धियाँ दूर होंगी. उनसे सूरज की ओर लगातार देखने को कहा जाएगा जिससे शरीर शुद्ध होगा.
गैर-दलितों की सोच
राजन प्रियदर्शी कहते हैं, “इस प्रश्नपत्र में जवाब से पता चला कि ग़ैर-दलित, दलितों के साथ खाने को तो दूर उन्हें पड़ोसी बनाने को भी तैयार नहीं थे.”

आईजी के पोस्ट तक पहुंचने वाले प्रियदर्शी अपने गांव में उच्च जातियों के दबाव के कारण अपना घर तक नहीं बना पाए. मज़बूरन वो अहमदबाद के एक दलित-बहुल इलाक़े में रह रहे हैं.
वो कहते हैं, “गुजरात में कोई दलित अपनी मनपसंद जगह में नहीं रह सकता.”
गुजरात में दलितों की संख्या केवल सात फ़ीसद है और जाति आधार पर विभाजित गुजराती समाज में दलित सबसे नीचे हैं.
गुजरात के 1589 गावों में रिसर्च
कुछ समय पहले रॉबर्ट एफ़ केनेडी फ़ॉर जस्टिस एंड ह्यूमन राइट्स ने स्थानीय नवसर्जन ट्रस्ट के साथ दलितों के हालात पर गुजरात के 1589 गांवों का अध्ययन किया. इसमें पता चला कि दलितों के साथ 98 तरह से छुआछूत किया जाता है.

पाया गया कि 98.1 फ़ीसद गांवों में दलित ग़ैर-दलित के यहां मकान किराए पर नहीं ले सकता. 97.6 फ़ीसद गांवों में दलित ग़ैर-दलित के बर्तन को नहीं छू सकता. 67 फ़ीसद गांवों में दलित पंचायत सदस्यों के लिए अलग ‘दलित कप’ हैं.
56 फ़ीसद गांवों के चाय ढाबों में दलितों और ग़ैर-दलितों के अलग-अलग कप हैं. और हां दलित की ज़िम्मेदारी है कि वो अपने कप को धोकर ग़ैर-दलितों के कप से दूर रखें. 53 फ़ीसद गांवों में दलित बच्चों को अलग बिठाया जाता है, उनसे कहा जाता है कि वो अपना पानी घर से लाएं.
नवसर्जन की मंजुला प्रदीप बताती हैं, “पहले बसों में दलितों को ग़ैर दलित को सीटें देनी पड़ती थीं. वो कुएं से ख़ुद पानी नहीं भर सकते थे. उन्हें ऊपर से पानी दिया जाता था. दलितों के लिए अलग प्लेट हैं जिसे रक़ाबी कहते हैं. शोध में पाया गया कि 77 फ़ीसद गांवों में मैला ढोने की व्यवस्था है.”
दलितों को देते हैं मृतक की चारपाई

वो बताती हैं ग़ैर दलित की मौत पर कफ़न वाल्मीकि समुदाय के व्यक्ति को दिया जाता है. जिस चारपाई में व्यक्ति की मौत हुई है, वो दलित को दे दी जाती है. दलित बच्चों से ही टायलेट की सफ़ाई करवाई जाती है.
इन सबसे परेशान होकर दलित शहर जाते हैं. लेकिन वहां उन्हें मकान नहीं दिया जाता. अहमदाबाद में दलितों के अलग मोहल्ले हैं, जैसे बापूनगर, अमराईवाड़ी, वेजलनगर. अमीर दलित अपनी सोसाइटी में रहते हैं.
गांवों के मुख्य गरबे में दलित शामिल नहीं हो सकते. उनके श्मशान तक अलग हैं. कारण -दलित के जलने से निकलने वाले धुएं से पवित्रता नष्ट होगी. श्मशान न होने के कारण दलितों को अपने मृतकों को दफ़नाना भी पड़ता है.

दलित श्मशान
गांधीनगर से 50 किलोमीटर दूर बाउली गांव में ऐसा ही एक दलित श्मशान है. ऊपर टीन की चादर. चार लोहे के लंबे खंबे. कांक्रीट की ज़मीन. ज़मीन पर राख का निशान. जैसे थोड़े वक्त पहले ही कोई मानव शरीर राख हुआ हो. चारों ओर से छोटी दीवार का घेरा. गांव के एक कोने में दलितों के मकान है. अमीर पटेल इलाकों से उलट यहां न सड़क है, न शौचालय. चारों ओर गड्ढे, गड्ढों में मैला पानी, जो पानी के पाइप के पानी से मिलकर लोगों के घरों तक पहुंचता है.
स्थानीय निवासी पोपट बताते हैं, “यहां के पटेल, ठाकुर, कहते हैं कि तुम नीच कौम के हो, इसलिए तुम अपने श्मशान में शरीर जलाओ.”
11 साल के मयूर ने बताया, “मंदिर की प्रतिष्ठा के वक्त वो प्लास्टिक की प्लेट में खाते हैं, हमें कागज़ पर खाना दिया जाता है. वो हमें दुतकारते हैं. इसलिए हम उधर नहीं जाते. जब हम बैठते हैं तो हमें उठा दिया जाता है. कहा जाता है कि तुम हमारे साथ नहीं बैठ सकते. मेरे दिमाग में आता है कि मैं ये गांव छोड़कर चला जाऊं. वो हमें ठेड़े (गुजराती में नीची जाति) कहकर चिढ़ाते हैं.”

गुजरात में हर वर्ष दलित उत्पीड़न के हज़ार से ज़्यादा मामले दर्ज होते हैं. इनमें मौखिक क्रूरता से लेकर बलात्कार तक के मामले शामिल हैं. 2014 में 100 से ज़्यादा गांवों में दलितों की सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात करनी पड़ी थी. आज ऐसे 14 गांव हैं.
अहमदाबाद के करीब 150 किलोमीटर दूर नंदाली गांव के एक खेत में मैं मजदूर बाबूभाई सेलमा से मिला. क़रीब एक हज़ार लोगों वाले इस गांव में केवल 20 दलित रहते हैं.
सेलमा के मुताबिक़ उन्हें स्थानीय राजपूत जुझार सिंह ने किसी बात पर कथित रूप से एक थप्पड़ मारा. जब वो मामला पुलिस के पास ले गए तो गांव में दलितों का सामूहिक बहिष्कार कर दिया गया. रात 10 बजे गांव के बाहर स्थित उनके झोपड़े के बाहर सभी दलित इकट्ठे हुए. उनके साथ थे गुजरात पुलिस के विपुल चौधरी.
गांव में स्थित नंदी माता के मंदिर में दलित प्रवेश नहीं कर सकते. माचिस खरीदने के लिए भी दलितों को तीन किलोमीटर दूर खैरालू गांव जाना पड़ता है. राजपूतों की ज़मीन पर वो काम नहीं कर सकते इसलिए भूखों मरने की नौबत आ गई है.

जुझार सिंह मामले को फ़र्जी बताते हैं. लेकिन बेहिचक कहते हैं, “हम दलित के घर नहीं खाते, सारा गुजरात नहीं खाता. केजरीवाल खाता है. राहुल गांधी खाता है. हम नहीं.”
राम मंदिर आंदोलन में साथ, राम मंदिर में नहीं
गुजरात में वर्ण व्यवस्था और जाति बेहद महत्वपूर्ण है. राम मंदिर बनाने बहुत से दलित और आदिवासी भी अ
योध्या गए थे. लेकिन जब वही दलित वापस अपने गांव आए तो उन्हें राम मंदिर में घुसने तक नहीं दिया गया. शहरों में जाति-आधारित इमारतें हैं लेकिन गांवों में स्थिति बदतर है. उच्च जाति वाला अपने से नीची जाति के लोगों को नीची निगाह से देखता है.
एक वक्त था जब लोग पूछते थे, तुम्हारा दूध क्या है. दलित संख्या में कम हैं. उनके पास ज़मीन नहीं है. आर्थिक कारणों और भेदभाव से दलित बच्चे बड़ी संख्या में प्राइमरी स्कूल से आगे नहीं पढ़ पाते. इस कारण वो आरक्षण के फ़ायदे से भी महरूम हैं. छूत-अछूत की समस्या सौराष्ट्र में सबसे विकट है.
समाजशास्त्री गौरांग जानी बताते हैं कि सौराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों में सामंती सोच वाले राजाओं का राज था. राजा तो चले गए लेकिन सोच जीवित रही.
वो कहते हैं, “गुजरात में कोई नॉलेज ट्रेडिशन नहीं है. गांधीवादी सोच को किनारे रख दिया गया है. यहां कोई वाम आंदोलन नहीं हुआ. इस खालीपन में हिंदुत्ववादियों को जगह मिली. हिंदू एकता के नाम पर राजनीतिक दल हिंदुओं को साथ तो ले आए लेकिन दलितों की ज़िंदगी बदलने की कोशिश नहीं की गई. पहले साथ रहना एक पाठशाला जैसा था. अब जाति आधारित आवासीय इमारतों के कारण पुराना बंधन टूट गया है.”
भूमंडलीकरण के दौर में जब सभी वर्ग आगे की ओर बढ़ रहे हैं, तो दलित युवा ख़ुद की हालत देखते हैं और पूछ रहे हैं, आख़िर विकास के दौर में उनका विकास क्यों नहीं हो रहा है. अगर पटेल सरकार पर हावी हो सकते हैं तो दलित क्यों नहीं. आरक्षण विरोध प्रदर्शन और कई दंगे देख चुके गुजरात में दलित के लिए सबसे बड़ी चुनौती लोगों की मानसिकता बदलने की है.

बीबीसी हिंदी वेबसाइट पर विनित खरे की रिपोर्ट
http://www.bbc.com/…/20…/07/160725_gujarat_dalit_part_one_tk


मेरे दलितो अगर आपने ये नही पढ़ा तो समजो आपने ज़िंदगी कुछ नही पढ़ा
ईस लिये ये जरुर पढ़ो ओर जानो--->
30 crore Sc/St PeoplesOf India,•
आरक्षण का विरोध कौन कर रहे हैं :-
1. आरक्षण का विरोध मुसलमान नहीं कर रहे हैं।
2. आरक्षण का विरोध सिख नहीं कर रहे हैं।
3.आरक्षण का विरोध ईसाई नहीं कर रहे हैं।आरक्षण का विरोध तो छुआछूत फैलाने वालेकर रहे हैं।
भेदभाव फैलाने वाले कर रहे हैं।जात-पात का अंतर
करने वाले कर रहे हैं। साम्प्रदायिकता फैलाने वाले कर रहे हैं।आरक्षण का विरोध क्यों कर रहे हैं क्योंकि उनके अंदर लालच है और ऊँच--नीच की भावना है।वो मनुवादी हैं । मनुवाद खत्म होगा तो मानवतावाद का
जन्म होगा और हम हैं मानवतावादी।अंग्
रेजों ने भारत पर 150 वर्षों तक राज किया ब्राह्मणों ने उनको भगाने का हथियार बन्द आंदोलन क्यों
चलाया? जबकि भारत पर सबसेपहले हमला मुस्लिम शासक मीर काशीम
ने 712ई. किया! उसके बाद महमूद गजनबी, मोहम्मद गौरी,चन्गेज खान ने
हमला किये और फिर कुतुबद्दीन एबक, गुलाम वंश, तुग्लक वंश, खिल्जी वंश,

लोदी वंश फिर मुगल आदि वन्शजों ने भारत पर राज किया और खूब
अत्याचार किये लेकिन ब्राम्हणों ने कोई क्रांति या आंदोलन नहीं
चलाया! फिर अन्ग्रेजों के खिलाफ़ ही क्यो क्रांति कर दीजानिये
क्रांति और आंदोलन की वजh
1- अंग्रेजो ने 1795 में अधिनयम 11 द्वारा
शुद्रों को भी सम्पत्ति रखने का कानून बनाया।
2- 1773 में ईस्ट इंडिया
कम्पनी ने रेगुलेटिंग एक्ट पास किया जिसमें न्याय व्यवस्था समानता पर
आधारित थी।6 मई 1775 को इसी कानून द्वारा बंगाल के सामन्त
ब्राह्मण नन्द कुमार देव को फांसी हुई थी।3- 1804 अधिनीयम 3 द्वारा
कन्या हत्या पर रोक अंग्रेजों ने लगाई (लडकियों के पैदा होते ही तालु में
अफीम चिपकाकर, माँ के स्तन पर धतूरे का लेप लगाकर, एवम् गढ्ढा
बनाकर उसमें दूध डालकर डुबो कर मारा जाता था)4- 1813 में ब्रिटिश
सरकार ने कानून बनाकर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियों और
धर्मों के लोगों को अधिकार दिया।5- 1813 में अंग्रेजों ने दास प्रथा
का अंत कानून बनाकर किया।6- 1817 में समान नागरिक संहिता कानून
बनाया(1817 के पहले सजा का प्रावधान वर्ण के आधार पर था।
ब्राह्मण को कोई सजा नहीं होती थी ओर शुद्र को कठोर दंड दिया
जाता था। अंग्रेजो ने सजा का प्रावधान समान कर दिया।)7- 1819 में
अधिनियम 7 द्वारा ब्राह्मणों द्वारा शुद्र स्त्रियों के शुद्धिकरण पर
रोक लगाई। (शुद्रों की शादी होने पर दुल्हन को अपने यानि दूल्हे के घर न
जाकर कम से कम तीन रात ब्राह्मण के घर शारीरिक सेवा देनीपड़ती
थी।)8- 1830 नरबलि प्रथा पर रोक ( देवी -देवता को प्रसन्न करने के
लिए ब्राह्मण शुद्रों, स्त्री व पुरुष दोनों को मन्दिर में सिर पटकपटक कर
चढ़ा देता था।)9- 1833 अधिनियम 87 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव
पर रोक अर्थात योग्यता ही सेवा का आधार स्वीकार किया गया
तथा कम्पनी के अधीन किसी भारतीय नागरिक को जन्म स्थान, धर्म,
जाति या रंग के आधार पर पद से वंचित नही रखा जा सकता है।10-1834
में पहला भारतीय विधि आयोग का गठन हुआ। कानून बनाने की व्यवस्था

जाति, वर्ण, धर्म और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर करना आयोग का
प्रमुख उद्देश्य था।11-1835 प्रथम पुत्र को गंगा दान पर रोक (ब्राह्मणों
ने नियम बनाया की शुद्रों के घरयदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो तो उसे
गंगा में फेंक देना चाहिये।पहला पुत्र ह्रष्ट-पृष्ट एवं स्वस्थ पैदा होता है।
यह बच्चा ब्राह्मणों से लड़ न जाय इसलिए पैदा होते हीगंगा को दान
करवा देते थे।12- 7 मार्च 1835 को लार्ड मैकाले ने शिक्षा नीति
राज्य का विषय बनाया और उच्च शिक्षा कोअंग्रेजी भाषा का
माध्यम बनाया गया।13- 1835 को कानून बनाकर अंग्रेजों ने शुद्रों को
कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।14- दिसम्बर 1829 के नियम 17
द्वारा विधवाओंको जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अंत
किया।15- देवदासी प्रथा पर रोक लगाई।ब्राह्मणोंके कहने से शुद्र
अपनी लडकियों को मन्दिर कीसेवा के लिए दान देते थे। मन्दिर के
पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। बच्चा पैदा होने पर उसे फेंक देते
थे।और उस बच्चे को हरिजन नाम देते थे। 1921 को जातिवार जनगणना के


आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 4 करोड़ 23 लाख थी
जिसमें 2 लाख देवदासियां मन्दिरों में पड़ी थी। यह प्रथाअभी भी
दक्षिण भारत के मन्दिरों में चल रही है।16- 1837 अधिनियम द्वारा
ठगी प्रथा का अंत किया।17- 1849 में कलकत्ता में एक बालिका
विद्यालय जे ई डी बेटन ने स्थापित किया।18- 1854 में अंग्रेजों ने 3
विश्वविद्यालय कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में स्थापित किये। 1902 में
विश्वविद्यालय आयोग नियुक्त किया गया।19- 6 अक्टूबर 1860 को
अंग्रेजों ने इंडियन पीनल कोड बनाया। लार्ड मैकाले ने सदियों से जकड़े
शुद्रों की जंजीरों को काट दिया ओर भारत में जाति, वर्ण और धर्म के
बिना एक समानक्रिमिनल लॉ ला़गू कर दिया।20- 1863 अंग्रेजों ने
कानून बनाकर चरक पूजापर रोक लगा दिया (आलिशान भवन एवं पुल
निर्माण पर शुद्रों को पकड़कर जिन्दा चुनवादिया जाता था इस पूजा
में मान्यता थी की भवन और पुल ज्यादा दिनों तक टिकाऊ रहेगें।21-
1867 में बहु विवाह प्रथा पर पुरे देश में प्रतिबन्ध लगाने के उद्देश्य से बंगाल
सरकार ने एक कमेटी गठित किया ।22- 1871 में अंग्रेजों ने भारत में
जातिवारगणना प्रारम्भ की।अजीब दोगलापन है, लोगो को आरक्षण
से चिड़ है लेकिन अपनी जाति के उच्च होने पर गर्व है !सब्जी खरीदते समय
जाति नहीं देखी जाती मगर उसी सब्जी को खिलाते समय जाति देखी
जाती हैं।। फसल कटाई पर जाति नहीं देखते मगर उसकीबनी रोटियां
खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।। मकान बनबाने के लिए जाति नहीं
देखते मगर जब मकान बन जाये तो उसमे बैठाने के लिए जाति देखते हैं।।
मंदिर बनबाने के लिए जाति नहीं देखते मगर उसमें जाने के लिए जाति
देखते हैं।। स्कूल या कॉलेज बनबाने के लिए जाति नहीं देखते लेकिन पढ़ाई
के वक़्त जाति देखी जाती हैं।। कपङे खरीदते समय जाति नहीं देखते मगर
उन्हीं कपड़ों को पहनकर उनसे दूर भागते हैं।। साथियों ये भारत देश हैं,, जहाँ

कुछ मूर्ख लोग कहते हैं कि जाति व्यवस्था खत्म हो गई है। बुद्धिजीवियों
का सामाजिक दायित्व..."इंसान जीता है,पैसे कमाता है,खाना
खाता है और अंततः मर जाता हैं। जीता इसलिए है ताकि कमा सके...
कमाता इसलिए है ताकि खा सके... खाताइसलिए है ताकि जिन्दा रह
सके... लेकिन फिर भी एक दिन मर ही जाता है... अगर सिर्फ मरने के डर से
कमाकर खाते हो तो अभी मर जाओ,मामला खत्म,मेहनत बच जायेगी।
मरना तो सबको एक दिन हैं ही, नहीं तो समाज के लिए जियो, ज़िन्दगी
का एक उद्देश्य बनाओं, गुलामी की जंजीरो मेंजकड़े समाज को आज़ाद
कराओं। अपना और अपने बच्चों का भरण पोषण तो एक जानवर भी कर
लेता हैं। मेरी नज़र में इंसान वही है जो समाज की भी चिंता करे और
समाज के लिये कार्य भी करे। नहीं तो डूब मरे ,अगर जिंदगी सिर्फ खुद के

लिये ही जी रहे हैं तो"..................