Wednesday 27 September 2017

!!!दीपावली पर षढयंत्र!!!

!!!दीपावली पर षढयंत्र!!!
 
एक लाख का इनाम यदि कोई ब्राह्मण सिद्ध कर दे कि दशहरे के दिन रावण मारा गया था और राम दीपावली को अयोध्या वापिस आया था ।
एक बार भंते सुमेधानंद दीपावली के समय पर बाजार में एक दुकान पर बैठे हुए थे । बाजार में  दुकानों पर बहुत भीड़ थी । भंते जी ने उस दुकानदार से पूछा कि दुकानों पर आज इतनी  भीड़ क्यों है । दुकानदार ने बताया कि भंते जी कल दीपावली है , इसलिए दुकानों पर भीड़ अधिक है । भंते जी ने उस दुकानदार से पूछा कि ये दीवाली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है ? दुकानदार ने वहाँ बैठे पंडित को इशारा करते हुए कहा कि हे भंते जी ये पण्डित जी बतायेंगे । उस ब्राह्मण ने भंते जी को बताया कि दीवाली के दिन भगवान राम वनवास से वापिस आये थे , उस ख़ुशी में दीवाली का त्यौहार मनाया जाता है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आप मनगढ़ंत कहानियों से भारत के आस्थावादी लोगों को खूब मूर्ख बनाते हैं ।
ब्राह्मण - हे भंते ! कैसे ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! कभी तुम राम के नाम पर दीपावली की मनगढ़ंत कहानी रचते हैं , कभी तुम सबरी के राम द्वारा झूठे बेर खाने का पाखण्ड रचते हैं , कभी सोने की लंका का पाखण्ड रच कर लोगों को मूर्ख बनाते हैं ।
ब्राह्मण - हे भंते ! इसमें क्या गलत है , राम दीपावली के दिन ही वनवास से वापिस आये थे ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपकी किसी भी रामायण में लिखा है कि राम दीपावली के दिन वन से वापिस आये थे ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा किसी भी रामायण में नही लिखा है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपकी किसी भी रामायण में लिखा है कि राम ने सबरी के झूठे बेर खाये थे ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा किसी भी रामायण में नही लिखा है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आप लोग फिर मनगढ़ंत बातों से लोगों को दिग्भ्रमित क्यों करते हैं ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ये आस्था का सवाल है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आस्था के पाखण्डों से लोगों को मूर्ख बनाना अधर्म नही है । आपको अपने ग्रंथों के सम्बंध में ज्ञान है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! अच्छा ज्ञान है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! राम का जन्म तुम कब मनाते हैं ।
ब्राह्मण - हे भंते ! राम का जन्म चैत्र माह में नवमीं को मनाते हैं।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! वनवास के समय राम की आयु 17 वर्ष की थी , क्या आपको पता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! मुझे मालूम नही है , परन्तु आपको कैसे पता ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! राम वनवास के समय  कौशल्या ने राम से कहा कि बेटा तेरे जन्म से आजतक इन सत्तरह वर्षों में कैकेयी से मैंने बहुत दुःख झेले हैं , यदि तुम न होते तो मैं मर जाती । वाल्मीकि रामायण
ब्राह्मण - हे भंते ! इससे क्या सिद्ध होता ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! राम को चौदह वर्ष का वनवास हुआ था और चौदह वर्ष के बाद अपने जन्म दिन चैत्र नवमीं के बाद ही वन से वापिस लौटे थे ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ये कैसे प्रमाणित होता है कि राम चैत्र माह के बाद अर्थात मई माह में वन से वापिस आये थे ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! पंचवटी से सीता का अपहरण कितने वर्ष बाद हुआ था ?
ब्राह्मण - हे भंते ! वनवास के 13 वर्ष बाद और वन से आने से एक वर्ष पूर्व ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आप कैसे जानते हैं ?
ब्राह्मण - हे भंते ! जब सीता रावण के साथ जा रही थी , तब सीता ने रावण को कहा था कि मुझे वन में रहते 13 वर्ष हो गए हैं ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! ऐसा कौनसी रामायण में लिखा है ?
ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा वाल्मीकि रामायण में लिखा है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! सीता का अपहरण चैत्र महीने के बाद ग्रीष्म ऋतु में हुआ था ।
ब्राह्मण - हे भंते ! यह कहाँ लिखा है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जब राम और लक्ष्मण सीता की खोज करते हुए सुग्रीव के पास पहुँचे तो उस समय ग्रीष्म ऋतु का समय था ।
ब्राह्मण - हे भंते ! यह कैसे प्रमाणित होता है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! यह आपकी तुलसीकृत रामायण से प्रमाणित होता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा तुलसीकृत रामायण में कहाँ लिखा है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! यह किष्किन्धाकाण्ड के पृष्ठ संख्या - 597 पर लिखा है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! इस सम्बंध में क्या लिखा है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! तुलसीदास ने लिखा है -
गत ग्रीषम बरषा रितु आई । रहिहुँ निकट सैल पर छाई ।। अर्थात - हे सुग्रीव ! ग्रीष्म ऋतु बीतकर वर्षा ऋतु आ गयी । अतः मैं पास के पर्वत पर ही रहूँगा ।
ब्राह्मण - हे भंते ! फिर हनुमान सीता की खोज में लंका कब गए थे ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! हनुमान सीता की खोज में अक्टूबर अर्थात कार्तिक महीने के आरम्भ में लंका गया था ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ये कैसे ज्ञात हुआ ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! तुम अपने आपको बड़े बुद्धिमान समझते हैं और आपको अपने ग्रंथों के सम्बंध में कुछ भी ज्ञान नही है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! कैसे ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! तुलसीकृत रामायण के किष्किन्धाकाण्ड के पृष्ठ संख्या - 602 पर साफ साफ लिखा है कि-
बरषा गत निर्मल रितु आई । सुधि न तात सीता की पाई ।। अर्थात - हे लक्ष्मण ! वर्षा ऋतु बीत गई , निर्मल शरद ऋतु आ गयी , परन्तु अभी तक सुग्रीव ने सीता की खबर की कोई व्यवस्था नही की है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! बिल्कुल सत्य है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! सीता की खोज में हनुमान कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा को लंका में पहुंचा था ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा कहाँ लिखा है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! ऐसा वाल्मीकि रामायण के पृष्ठ संख्या - 527 सुन्दरकाण्ड दूसरा सर्ग के श्लोक - 57 में लिखा है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! इसका तात्पर्य है कि दीपावली पर राम का वन से आना एक पाखण्ड है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आप बिल्कुल सही पकड़े हैं । हनुमान सीता की खोज खबर लेकर एक महीने बाद आधे आश्विन में वापिस लौटा था अर्थात 15 नवम्बर के आस पास ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ये कैसे प्रमाणित होता है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! यह तुलसीकृत रामायण के पृष्ठ - 605 पर चौपाई 4 में लिखा है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! इसके बाद राम को लंका पर फतह करने में कितना समय लगा ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपकी रामायण के अनुसार राम रावण युद्ध 6 महीने चला था ।
ब्राह्मण - हे भंते ! वन से राम अयोध्या वापिस कब लौटे ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! राम चैत्र महीने के बाद वन से वापिस लौटे थे ।
ब्राह्मण - हे भंते ! उस समय बहुत गर्मी होगी ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जब राम अयोध्या वापिस लौट रहे थे तो भरत ने मजदूरों को आदेश दिया था कि सम्पूर्ण रास्ते और उसकी आस पास की जमीन पर बर्फ के समान ठण्डा पानी छिड़क कर भूमि को बिल्कुल ठण्डा कर दो ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा आदेश कहाँ लिखा है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! ऐसा आदेश वाल्मीकि रामायण के पृष्ठ संख्या - 873 युद्धकाण्ड के श्लोक 7 में है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! उस रास्ते से राम को अयोध्या पैदल लाते समय  छाते की भी आवश्यकता हुई होगी ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जब राम पैदल पैदल अयोध्या आ रहे थे , तब कुछ नौकर राम के ऊपर सफेद रंग का छाता लेकर चल रहे थे और कुछ हाथ के पंखे से हवा करते हुए चल रहे थे ।
ब्राह्मण - हे भंते ! रामायण में ऐसा वर्णन कौनसी जगह है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! ऐसा वर्णन वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड के पृष्ठ संख्या - 873 के श्लोक 19 में है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! इसका तात्पर्य है कि राम वैशाख अर्थात मई महीने में वापिस आये थे ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जब राम अयोध्या वापिस आये , तब गगन में इतनी धूल छा गई कि गगन से धूल की वर्षा होने लगी ।
ब्राह्मण - हे भंते ! इससे क्या तात्पर्य है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! इससे सिद्ध होता है कि उस समय ग्रीष्म ऋतु थी ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा कहाँ लिखा है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! ऐसा वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड के पृष्ठ संख्या 874 के श्लोक 29 में लिखा है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में सभी वृक्ष फल फूलों से लदे रहते हैं ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जब राम की सेना राम के साथ अयोध्या की तरफ बढ़ रही थी , उस समय सभी मीठे फलदार वृक्ष फल फलों से आच्छादित थे ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ऐसा कहाँ लिखा है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! ऐसा वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड में पृष्ठ संख्या - 874 के श्लोक संख्या - 26 में लिखा है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! इससे क्या सिद्ध होता है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! इन सभी कथनों से सिद्ध होता है कि जब राम अयोध्या वापिस आये , उस समय वैशाख का महीना था ।
ब्राह्मण - हे भंते ! जब राम वैशाख में आये तो दीपावली का त्यौहार राम के वन से वापिस आने की ख़ुशी में क्यों मनाया जाता है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! बुद्धिस्ट लोगों के त्यौहारों को नष्ट करने के लिए आप लोगों ने उनके सभी त्यौहारों का हरण कर लिया ।
ब्राह्मण - हे भंते ! दीपावली का त्यौहार बुद्धिस्ट लोगों द्वारा क्यों मनाया जाता है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! तथागत बुद्ध ने उपदेश के रूप में 84 हजार गाथाएं गायी थी , उन गाथाओं को सम्यक रूप देने के लिए सम्राट अशोक ने पूरे देश में 84 हजार स्तूप बनवाये थे ।
ब्राह्मण - हे भंते ! इससे दीपावली का क्या सम्बंध है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! कार्तिक की अमावस्या की रात देश के समस्त 84 हजार स्तूपों पर एक ही समय पर सभी बौद्ध भिक्षुओं द्वारा दीपदान किया था।
ब्राह्मण - हे भंते ! सम्राट अशोक द्वारा ये ही दिन क्यों चुना था ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! बौद्ध भिक्षुओं का वर्षावास शरद पूर्णिमा को समाप्त होता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! इसका क्या तात्पर्य है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! उस समय वर्षावास समाप्त होने के उपरांत सभी बौद्ध भिक्षु अपनी व्यस्तता से स्वतंत्र हो गए थे ।
ब्राह्मण - हे भंते ! सभी बौद्ध भिक्षु अमावस्या की अँधेरी रात में सभी स्तूपों पर एक साथ दीपदान कर सकें , इसलिए सम्राट अशोक ने अमावस्या का ये दिन चुना था ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपने बिल्कुल सत्य कहा है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! शरद पूर्णिमा मनाने का क्या तात्पर्य है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! वर्षावास समाप्त होने पर बौद्ध उपासकों द्वारा बौद्ध भिक्षुओं को खाने के लिए अपने निवास पर आमन्त्रित कर उनका स्वागत खीर से किया जाता था , उस दिन से शरद पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! हम लोग शरद पूर्णिमा के दिन सुन्दरकाण्ड करते हैं ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आप लोगों द्वारा बुद्धिस्टों के सभी त्यौहारों का हरण करके अपनी भगवान रूपी दुकानदारी में बदल दिया ।
ब्राह्मण - हे भंते ! आपने सौ आना सिद्ध कर दिया कि दीपावली और शरद पूर्णिमा बुद्धिस्टों के त्यौहार हैं , इन पर हम लोगों द्वारा अवैध कब्जा कर रखा है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आप लोगों द्वारा बुद्धिस्टों के त्यौहारों का दुरूपयोग करके पाप कर्म किया है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! इन पाप कर्मों से मुक्ति कैसे मिलेगी ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आप देश की सम्पूर्ण जनता के साथ इस दीपावली को भगवान बुद्ध , सम्राट अशोक और बाबा साहेब अम्बेडकर की सम्पूर्ण विधि विधान के साथ वंदना करके मनाने से आपको अपने पाप कर्मों से मुक्ति मिलेगी ।
ब्राह्मण - हे भंते ! अब मैं हर दीपावली को भगवान बुद्ध , सम्राट अशोक और बाबा साहेब की वंदना के साथ ही मनाऊंगा ।
श्रमण
 - हे बुद्धिमान ब्राह्मण ! आपका कल्याण हो ।
भारतीय समाज को मूर्ख बनाने वाली रामायण कथा ।

1 comment:

  1. लूटतंत्र है गरुण पुराण-

    गरुण पुराण एक प्रतिष्ठित और मान्य धार्मिक पुस्तक है । इस पुराण में को मृत्यु के उपरांत ब्राह्मण द्वारा विधिवत करवाने का धार्मिक प्रवधान तो है ही पितृपक्ष में भी ब्राह्मण द्वारा इसको सुनने और इसके द्वारा विधित कर्मकांड करवाने का काफी प्रचलन है।मान्यता यह है कि इसका विधिवत पाठ करवाने से पूर्वजो को नरक पर करने और नर्क की यातनाओं से मुक्ति मिलती है।

    इस पुराण में विभिन्न प्रकार के नरको का व्योरा दिया गया है की व्यक्ति को किस किस नर्क में कौन कौन सी और कैसी कैसी भयानक यातनाये दी जाएँगी ।

    गरुण पुराण में लिखा है -
    कचित पत्तयन्धकूपे ....... संतप्तकर्दमें( अध्याय 2,श्लोक नंबर 9, 10)

    अर्थात- वह वन कौओ , उल्लुओ, वटो, गिद्धों, सरथो, मच्छरों से भरा हुआ है। उसमे चारो ओर दावाग्नि व्याप्त है। असिपत्र के पत्तो से वह जीव उस वैन में छिन्न भिन्न हो जाता है । कंही पर वह अंधे कुंए में गिर पड़ता है, कंही विकट पर्वत से गिरता है, कंही तलवारो की धार पर चलता है तो कंही कीलों के ऊपर चलता है। कंही पर घने अन्धकार में गिर पड़ता है कंही भय उत्पन्न करने वाले पानी में गिर पड़ता है । कंही जोंको से भरी हुई कीचड़ में गिरता है । तो कंही संतृप्त कर्दम नामक नरक में गिर पड़ता है ।

    ये भयानक नर्क क्यों इंसान को भुगतने पड़ते हैं इसका कारण इसी पुराण में बताया गया है -

    " न पूजिता विप्रगणा......... त्वया कृतम् (श्लोक, 36-37)

    अर्थात - ब्राह्मणों की पूजा, गंगाजल का पान, साधुओ की सेवा की और न कभी गौ , ब्राह्मणो की जीविका के लिए वृति के लिए कुछ धन खर्च किया अत: हे जीवात्मा तुम अपने किये कर्मो को भोगो।"

    पहले व्यक्ति को नरको से डराया जाता है , फिर जब व्यक्ति भयभीत हो जाता है तो उसको उन नरको को भोगने का कारण बताया जाता है की उसने ब्राह्मण की सेवा नहीं की इसलिए उसे ये नर्क भुगतने पड़ेंगे ।
    अब भयभीत व्यति उन नरको में न जाए और सजा न भुगते इसके लिए वह उपाय पूछता है तो उसे उपाय बताया जाता है -

    "अत्यल्पफलदानि स्युरन्यदानानि...... गावस्त्रिविधाचैव पातकात( अध्याय 8, श्लोक 52-57)

    अर्थात- हे गरुण ! भूमिदान बिना और दान अत्यत अल्पफल देने वाले हैं।पृथ्वी दिन प्रतिदिन बढ़ता है । इससे भूमि दान अवश्य करें । जो भूमी का स्वामी होकर ब्राह्मण को दान नहीं देता. वह जन्म जन्मान्तर में ग्राम में कुटि न मिलकर दरिद्र होता । जो स्वामी का अभिमान रख वास करने के लिए कुछ भी पृथ्वी दान नहीं करता वह शेषजी जब तक भूमि धारण करेंगे तब तक नरक का वास करेगा । इसलिए भूमि का स्वामी होक पृथ्वी दान अवश्य करें । और जो पुरुष हैं ( पहले से भूमि प्राप्त कर चुके हैं ) उनको गोदान करें । अंत समय में रुद्रधेनु, ऋण धेनु, मोक्ष धेनु आदि गोदान करें। वैतरणी धेनु सविधि दें। हे गरुण! ये गोदान मनुष्य के कायिक, वाचिक, मानसिक पात्रिविधि रहित करता है।

    इस प्रकार गरुण पुराण में पहले विभिन्न भयानक नरको से आम हिन्दुओ को भयभीत किया गया है , फिर कारण बतया गया है की ये नर्क क्यों भुगतने पड़ेंगे और फिर दान रूपी उपाय बताया गया है । दान में सभी वस्तुए देने का विधान है तकिये से लेके शैय्या,लोहे से लेके सवर्ण तक तथा गाय से लेके भूमि तक ।
    गया में श्राद्ध / पिंडदान करने से और वँहा ब्राह्मणो को दान देने से मृतक की सीधा स्वर्ग का टिकट कटवाती है ।
    ऐसा नहीं है की केवल अनपढ़ व्यक्ति ही गरुण पुराण पर विशवास रख के अपना धन आदि बर्बाद करते हैं बल्कि उच्च शिक्षित लोग भी करोडो की संख्या में इस पुराण से प्रभावित हो जाते है और अपना धन और समय दोनों बर्बाद करते हैं।

    अब समय है ऐसे अंधविश्वासों और खुली लूट पर लोग विचार करें और स्वयं को और अपने संबंधियो को इससे मुक्त करें ।

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