Tuesday 26 September 2017

राष्ट्र क्या है? क्या भारत राष्ट्र है?

*राष्ट्र क्या है? क्या भारत राष्ट्र है?*
 
          राष्ट्र तो सुनने में लगता है कि एक फीजिकल एन्टिटीज है। जिसका एक भूभाग, अपनी सरकार, पॉपुलेशन एवं ऑटोनोमि है। पर, इसे राज्य या देश कहते हैं, न कि राष्ट्र।
                   जिस तरह से हार्डवेयर एवं ब्रेन tangible फीजिकल एन्टिटीज है, वहीँ सॉफ्टवेयर एवं mind (दिमाग) ननफिजिकल इसका प्रोग्राम है। *उसी तरह राज्य एक फिजिकल एन्टिटीज है, पर नेशन/राष्ट्र intangible सेंटिमेंटल एवं इमोशनल बाइंडिंग फोर्स है* जो उस देश के लोगों को एक साथ सामंजस्य, समरसता में रहने को प्रोत्साहित करता है। यह वही इम्पैथेटिक, नैतिक सेंटीमेंटल अटैचमेंट है, जैसे माँ और उसके बच्चे में होता है। इसी तरह इनविजिबल सेंटिमेंटल फोर्स को राष्ट्र कहते हैं।
               राष्ट्र की परिकल्पना 19 वीं सदी में  फ्रांस में लोगों में रेस एवं अमीरी गरीबी का फैले नफरत को खत्म कर एकीकृत फ्रांस में सेंटिमेंटल अटैचमेंट बढ़ा कर अपने टेरिटोरी एवं लोगों को बचाने के लिये मर मिटने के लिये उतेजना भरने का कंसेप्ट दिया गया।
               एकीकृत फ्रांस को एक फिमेल अलिगोरी यानि देवी का रूप दी गयी। बाद में दुनिया के कई देशों में ये पॉपुलर हुआ जिसे अनेकों देश अलग अलग फिमेल रूप देकर एक राष्ट्र के रूप में अंगीकार कर इमोशनल फीलिंग दिया।
                 जैसे इस्लाम में धर्म रक्षा करने के लिये जेहाद नाम दिया है, वहीं हिन्दू में सनातन खतरे का आहवान कर लोगों को मर मिटने का psychofansijm/पागलपन विकसित कर दी गयी।
           वास्तव में धर्म, जाति एवं कम्युनिटी के नाम पर सेंटिमेंटल अटैचमेंट तो बहुत पुराना है, पर राष्ट्र के नाम इमोशनल बाइंडिंग तो बिल्कुल नया कन्सेप्ट है। इसमें पीपल्स टेरिटोरियल इंटिग्रिटी ही सबकुछ है।
                 राष्ट्र बनने के लिये डीसईन्टीग्रेटिंग या नफरत फैलाने वाले फोर्स जैसे धर्म, जाति, गरीबी, अमीरी, छूत, अछूत, अध्यात्मवाद, क्षेत्रवाद, बंशवाद इत्यादि को बिल्कुल खत्म कर दी जाती है।
                जिस तरह एक मकान में सभी ईट का बराबर योगदान है, उसी तरह एक देश को राष्ट्र बनने में प्रत्येक नागरिक का उतना ही योगदान है।
                  अगर उस देश के कोई धर्म या जाति को सर्वोच्चता दे पूजनीय बनायी जाती है तो उस मकान रूपी देश के सॉफ्टकॉपि राष्ट्र के बनने में बाधा उत्पन्न कर उस राष्ट्र रूपी इनविजिबल इमारत को ध्वस्त करने का प्रयास है।
       कई धर्म, अनेकों भासाई  एवं क्षेत्र वाले स्विट्जरलैंड, बेल्जियम, अमेरिका एवं फिलीपींस राष्ट्र है। तो एक हीं क्षेत्र एवं कम्यूनिटी के वावजूद आपसी नफरत के कारण ताइवान, साइप्रस, श्रीलंका, मिडल ईस्ट के कई देश राष्ट्र नहीं हैं। 
               आज भारत के परिपेक्ष्य में जाति के नाम पर किसी खास जाति के उस देश का आधा जज, 90% मीडिया हाउस, कॉरपोरेट एवं 99% धार्मिक व्यवसायी हैं, जो धर्म का उन्माद द्वारा नफरत फैलाते हैं।
       मेजोरिटी पॉपुलेशन नॉनवेजिटेरियण हैं, पर किसी खास धर्म को टारगेट कर गाय, गोबर, गंगा के नाम नफरत फैला गुनहगार बनाया जाता है। यहाँ राष्ट्र का सेंटिमेंटल अटैचमेंट के बजाय इमोशनल नफ़रत फैलाया जाता है। तो क्या भारत ऐसी स्थिति में राष्ट्र बन पाएगा? आप खुद निर्णय करें।
          
*हमें भारत को नेशन बनाने के लिये गाँधीवाद नहीं अम्बेडकरवाद-मंडलवाद चाहिए।*
                आज भारत राष्ट्र (nation) बनने की दिशा बदलकर गैरराष्ट्र  (denation) बनने की ओर बढ़ चली है। चुकि सरकारी मशीनरी द्वारा अम्बेडकर वाद को तो पहले ही त्याग कर गाँधीज्म को तब्बजो दे रामराज की कल्पना की गई थी।
          यानि पुष्यमित्र शुंग (राम), जो लाखों मूलनिवासी बौद्दिष्टों को हत्या किया। पिछड़े एवं दलितों को पढ़ने पर पाबन्दी लगाई जिसका उदाहरण शंबूक बध है।
              शुद्रों एवं महिलाओं को पीटने का कानूनी अधिकार देता है, महिलाओं को शंका के आधार पर डिवोर्स का अधिकार देता है।
              इसी हिंसा, नफरत एवं गैरबराबरी पर रामराज टिकी हुई है। यानि गांधी का रामराज तुलसीदास के घृणित ब्रेनचाइल्ड रामायण पर निहित है, न कि अम्बेडकर जी के लिखे संविधान पर।
                 यही कारण है कि ब्रिटिश दबाव में अंबेडकर के संविधान को तो अंगीकार किया गया, पर अम्बेडकरवाद को नहीं।
           बिना अम्बेडकरवाद को अपनाए, अम्बेडकर के संविधान को सही तरह अंगीकार नहीं कर, गांधीवाद  यानि रामवाद को फैलाया गया।
              अभिप्राय हिंसक राम, जो मूलनिवासी बौद्ध को राक्षस घोषित कर, रावण जैसे विलन पेश कर नफरत का बेस बनाया। हिंसा को बध नाम दिया गया, फिमेल को बदचलन एवं मेजोरिटी मूलनिवासी को शुद्र घोषित कर नफरत फैलाया गया।
                इसी गाँधीज्म को आगे बढ़ा कर कर्मकांडीय व्यवस्था द्वारा ब्राह्मणवाद फैला कर सभी संवैधानिक एवं धार्मिक संस्थानों पर ब्राह्मणों को स्थापित कर दिया गया।
                 इसी गांधीवाद को और विकृत रूप दे आरएसएस द्वारा नफरत फैला कर, धार्मिक उन्माद एवं लोकतांत्रिकरन को denationalization कर nation बनने की प्रवाह को  उल्टा बहा दिया है।
          राष्ट्रवाद का मतलब होता है सभी डिफरेंस को भूलाकर एक सेकुलर एवं सामंजस्य पूर्ण समाज स्थापित करना।
              यहाँ धर्म, जाति एवं जाति के सर्वोच्चत्ता तथा हैटर्ड का कोई स्थान नहीं है, जो अम्बेडकर विचार धारा बताती है।
             अगर भारत को राष्ट्र बनाना है तो गाँधीवाद त्याग कर अम्बेडकरवाद-मण्डलवाद को अपनाना होगा।
                *डॉ निराला*

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