Thursday 7 September 2017

नोटबन्दी देश का सबसे बड़ा घोटाला

बीबीसी मे एक लेख पब्लिश हुआ है उसका शीर्षक मुझे बहुत दिलचस्प लगा ,
 उसका शीर्षक है
 'नोटबंदी के फ़ेल होने पर देश में गुस्सा क्यों नहीं?"


लेखक जस्टिन रोलेट दक्षिण एशिया के संवाददाता है वह लिखते हैं
"एक वक़्त ऐसा लगा था कि दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के सभी 1.2 अरब लोग बैंकों के बाहर लाइन में खड़े हैं.
लेकिन यह सिर्फ असुविधा का मुद्दा नहीं था, यह उससे कहीं ज़्यादा था जिससे सभी प्रभावित थे. नोटबंदी की वजह से कई बिजनेस ठप पड़ गए, कई ज़िंदगियां तबाह हो गईं. बहुत से लोगों के पास खाने तक के लिए पैसे नहीं थे. नोटबंदी की घोषणा होने के बाद अपनी नौकरी खोने वाले सैकड़ों ख़नन मजदूरों में से एक ने बीबीसी को बताया, ''हमने कभी नहीं सोचा था कि हमें इस तरह बेसहारा कर दिया जाएगा.''
''हमने कभी ये उम्मीद नहीं की कि हमारे बच्चे भूखे रहेंगे.''
लेखक आश्चर्य करता है कि आज वह सब भूल गए, आज जब नोटबन्दी का रिजल्ट आया है तो कोई यह पूछने को तैयार नही है,
जिन न्यूज़ चेनलो ने कनॉट प्लेस की एटीएम की लंबी लाइनों लगे लोगो के इंटरव्यू लिए थे कि मोदी जी ने बहुत अच्छा किया इससे सारा काला धन बाहर आ जाएगा वह आज कुछ और दिखाने में व्यस्त है
मित्र बता रहे हैं कि हरियाणा के गुरमीत सिंह प्रकरण से न्यूज़ चैनलों की टीआरपी बढ गयी हैं, अब जब बाबा ओर हनिप्रीत से ही चैनलो की टीआरपी बढ़ जाती हैं तो चैनल नोटबन्दी के आंकड़ों ओर जीडीपी की गिरावट का विश्लेषण जैसे बोरिंग विषय क्यो दिखाने लगे
व्हाट्सएप की यूनिवर्सिटी से भक्तों को नया माल सप्लाई हो गया है कि इससे 6 प्रतिशत नकली नोट खत्म हो गए है, अब यह आंकड़ा भी ऐसा ही है जैसे भक्तों के भगवान लाल किले से बोल गए थे कि 3 लाख करोड़ काला धन नोटबन्दी से खत्म हो गया हैं

इस देश की जनता को भूलने की बीमारी है और सत्ताधारी दल यह जानता है, नोटबन्दी से भी बड़ा जीएसटी का फितूर खड़ा कर दिया है और लोग सब इसमें बिजी हो गए
अरुण जेटली वित्तमंत्री तो बोल रहे हैं कि नोटबन्दी का उद्देश्य काला धन खत्म करना था ही नही यह तो कैशलेस इकनॉमी को बढ़ाने के लिए उठाया गया कदम था , यह कुछ वैसी ही बात है कि आप ने जहाँ किक मार दी वही पर गोलपोस्ट उठा कर रख दिया और बोल पड़े कि हुर्रे हमने गोल मार दिए



5.7% जीडीपी - गहराते संकट की आहट
अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी की दर 5.7% रही जो सवा 3 साल में सबसे कम है| मैन्युफैक्चरिंग वृद्धि दर सिर्फ 1.2% है (पर क्रय प्रबंधकों का इंडेक्स पिछले दो महीने से गिरावट दिखा रहा है!) 8 कोर सेक्टर 2.4% पर हैं, कृषि भी पहले से नीचे 2.3% है| अगर इस वृद्धि को पुराने गणना सूत्र से देखा जाये तो यह 3.5% ही है| यह हालत कम पेट्रोलियम कीमतों और दो अच्छे मानसूनों के बावजूद है|
पर यह संकट आगे और भी गहराने वाला है| क्यों?
1. नया पूँजी निवेश और घटकर 1.3% रह गया है क्योंकि बेरोजगारी, घटती आमदनी और महँगाई की मार से कराहते लोग खरीदारी में असमर्थ हैं, स्थापित उत्पादन क्षमता भी बाजार माँग से ज्यादा है| यह मुनाफा आधारित पूँजीवादी उत्पादन व्यवस्था द्वारा मजदूर वर्ग के शोषण का अनिवार्य परिणाम है|
2. असली बात यह कि यह वृद्धि भी सिर्फ बढे सरकारी खर्च पर आधारित है| गैर सरकारी जीडीपी दर सिर्फ 4.25% है जो पुराने सूत्र से 2% ही होगी!
3. जुलाई तक का वित्तीय घाटा 50 ख़रब रूपया है जो पूरे साल के बजट अनुमान का 92% है अर्थात अर्थव्यवस्था को चकाचक दिखाने के लिए सरकार ने पूरे साल के खर्च का अधिकाँश पहले 4 महीनों में ही कर दिया है जबकि सारे दावों के बावजूद टैक्स/गैर टैक्स आमदनी नहीं बढ़ी है| बढ़ता बजट घाटा कर्ज लेकर पूरा किया जायेगा जिससे महँगाई और मुद्रास्फीति बढ़ेगी| रिजर्व बैंक को यह मालूम है इसीलिए ब्याज दरों पर सरकार और उसमें मतभेद है|
4. सवाल यह भी कि सरकार खर्च कर कहाँ रही है क्योंकि शिक्षा, स्वास्थ्य, नागरिक सेवाओं पर तो खर्च कम हो रहा है और स्कूल, अस्पताल, सफाई व्यवस्थाएं सभी चरमरा रही हैं| खर्च हो रहा है हथियारों, फ़ौज, पुलिस, सरकारी महकमे पर जिसके ठेके कुछ चहेते पूँजीपतियों को मिल रहे हैं जिनकी संपत्ति इस संकट में भी बढ़ती जा रही है|
यहाँ यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि यह गहन संकट सिर्फ नोटबंदी की असफलता का नतीजा नहीं है जैसा कि कुछ बीजेपी विरोधी पर खुद भी पूँजीवादी विशेषज्ञ/राजनीतिक कह रहे हैं| यह तो पूँजीवादी व्यवस्था का अनिवार्य लाक्षणिक संकट है और नवउदारवादी नीतियों द्वारा कल्याणकारी राज्य की नौटंकी की समाप्ति से यह जनसँख्या के और बड़े हिस्से को अपनी चपेट में ले रहा है| यह नोटबंदी के पहले ही मौजूद था, नोटबंदी द्वारा इस संकट का कोई समाधान मुमकिन ही नहीं था; लेकिन इसने संकट के असर को और घातक बना दिया है| लेकिन इसके बगैर भी इससे बचने का कोई रास्ता नहीं था|
हालाँकि बढ़ती जीडीपी वृद्धि दर आम लोगों की जिंदगी में कोई बड़ी खुशहाली नहीं लाती क्योंकि उसका फायदा बड़े पूंजीपति घरानों को ही होता है, पर गिरती दर की आफत तो उनकी जिंदगी पर ही कहर बनकर टूटती है क्योंकि उन्हीं सरमायेदारों के हितों की हिफ़ाजतों के लिए इसका बोझ उनके ऊपर ही डाला जाता है| मेहनतकश जनता की घटती क्रय क्षमता, बढ़ती बेरोजगारी, छोटे किसानों की घटती आमदनी, निम्न मध्य वर्ग के टूटते सुनहरे सपने आर्थिक-राजनीतिक संकट को और भयंकर रूप देने वाले हैं, असंतोष और बढ़ने वाला है, लेकिन उसे सशक्त प्रतिरोध में बदलने की मजबूत ताकतें मौजूद नहीं हैं क्योंकि वर्तमान चुनावी विपक्ष गाल बजाने के अतिरिक्त कुछ करने को न तैयार है, न सक्षम है| नोटबंदी की तरह ही आगे भी ये जबानी जमा खर्च के सिवा कुछ न करेंगे|
मेक इन इंडिया से नोटबंदी तक के असफल प्रहसनों के बाद अब आशंका यही है कि फासीवादी ताकतें इस संकट से निपटने के लिए धर्म-जाति आधारित सामुदायिक वैमनस्य को और भड़काएंगी क्योंकि फ़िलहाल तो उनके पास आर्थिक संकट से निपटने का कोई और रास्ता मौजूद नहीं|

यह किसी नई त्रासद नौटंकी के लिए तैयार होने का वक्त है|

5 comments:

  1. *केंद्रीय मंत्रियों की असली।वजह भ्रष्ट्राचार*है?

    https://youtu.be/NjTYNxFTpsI

    ReplyDelete
  2. *नोटबन्दी देश का सबसे बड़ा घोटाला प्रेसवार्ता में हुआ खुलासा लेकिन मीडिया ने नहीं दिखाया* https://youtu.be/Hca_7UI6DGQ

    ReplyDelete
  3. *स्वच्छ भारत अभियान की सच्चाई देख आपकी आँखे खुली की खुली रह जायेगी, एक बार यह रिपोर्ट अवश्य देखिये और इसे इतना शेयर,फॉरवर्ड करिये की प्राधानमंत्री तक पहुँच जाये* https://youtu.be/iMH3KhJH7ag

    ReplyDelete
  4. तेल कंपनी और सरकार की सरेआम लूट, 19340 करोड़ का घोटाला-खामोश जनता और मीडिया

    16 जून 2017 से सरकार ने निर्णय लिया कि तेल कीमतें रोजाना बढ़ेंगी और घटेंगी, ये सरकार का एक और मास्टर स्ट्रोक था जनता की स्मृति को भ्रमित कर उसकी जेब से और पैसा ऐंठने का, ये पिछले तीन महीने में जनता के साथ तेल कंपनी और सरकार द्वारा मिलकर किया गया घोटाला है जिसमें 19340 करोड़ का चूना जनता की जेब को लगाया गया है। जनता के समक्ष तथ्यात्मक विश्लेषण प्रस्तुत है।
    2 जुलाई 2017 को भारतीय बाज़ार में प्रति बैरल क्रूड (डॉलर कीमत संतुलन के पश्चात) का भाव 3101 रु था, और खुदरा बेचान मूल्य पेट्रोल का 65.76 रु ( औसत मूल्य बी पी सी एल और आई ओ सी) और डीजल का 57.16 रु प्रति लीटर था।
    1 सिंतबर 2017 को भारतीय बाज़ार में प्रति बैरल क्रूड का भाव 3006 रु था, और पेट्रोल का खुदरा बेचान मूल्य 71.93 रु और डीजल का बेचान मूल्य 61.08 रु था।
    यहां अगर तथ्य को विश्लेषित किया जाए तो स्पष्ट है कि इन तीन महीनों में भारतीय बाज़ार में क्रूड के दाम में 95 रु की कमीं आयी है वहीं पेट्रोल और डीजल के दाम में क्रमश: 6 रु 17 पैसे और 3 रु 92 पैसे की वृद्धि की गई है।
    अगर 2015 के पेट्रोल डीजल उपभोग की मात्रा को आधार बनाया जाए,तो भारतीय जनता 66 करोड़ 12 लाख लीटर तेल प्रति दिन इस्तेमाल करती है, अगर इन तीन माह की पेट्रोल डीजल की औसत वृद्धि निकाली जाए तो ये 3 रु 25 पैसे आंकलित होती है मतलब ये की 214 करोड़ रु प्रति दिन का घोटाला वर्तमान केंद्र सरकार ने तेल कंपनी के साथ मिलकर किया है इन 90 दिन में सरकार ने जो लूट और घोटाला किया है वह अपने आप में अभूतपूर्व है।
    वर्तमान केंद्र सरकार पहले ही पेट्रोल और डीजल पर एक्सआइज़ ड्यूटी और कस्टम ड्यूटी में 2015 और 2016 में 9 बार तक वृद्धि करके,अमानवीय रूप से 1 लाख 20 हज़ार करोड़ रु अतिरिक्त वसूल चुकी है बावजूद इसके जनता की गाढ़ी कमाई लूटने में सरकार ने कोई परहेज नहीं किया।
    वास्तव में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में भारतीय बाजार में वृद्धि और अंतराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतों में कमीं ने वर्तमान केंद्र सरकार (मोदी जेटली समेत को),अपनी कुत्सित आर्थिक नीतियों के लिए ऐशगाह दी है जिस पर सवार होकर मोदी जी और जेटली जी नोटबन्दी जैसे कौतुक कर रहे हैं इस पर दुनियाभर के अर्थशास्त्री सन्न हैं और मोदी जेटली प्रसन्न हैं।नोटबन्दी से देश की अर्थव्यवस्था को तात्कालिक नुकसान 1 लाख 50 हज़ार करोड़ रु का हुआ है और अपने पिछले 38 महीने के कार्यकाल में इतना ही पैसा मोदी सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों में वृद्धि द्वारा जनता से घोटाला करके हड़पा है।

    ReplyDelete
  5. नोटबंदी से फ़ायदा:
    1. 16,000 करोड़ रुपये काला धन हो सकता है
    (चुकी 1% नोट बैंक में नहीं आया)

    नोटबंदी से घाटा:
    1. 8,000 करोड़ रुपये नोट छापने में खर्च हुए
    2. 48,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त वेतन देने पड़े
    3. अर्थव्यवस्था को 5,00,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ
    4. कम से कम 15 लाख लोग बेरोज़गार हुए
    5. हज़ारो छोटे उद्योग बंद हुए
    6. GDP 7.1 से घाट कर 5.7% हुआ

    मोदी जी ने कहा था कि अगर नोटबंदी फेल हुआ तो देश जो सज़ा देना चाहे, वो भुगतने के लिए तैयार हैं. तो मोदी जी, आप कौन से चौराहे पर हैं?? अगर चौराहे पर नहीं हैं तो कम से कम आप PM पद से इस्तीफ़ा दे दीजिए. आपने नोटबंदी करके देश को बर्बाद कर दिया है.

    ReplyDelete