Wednesday 27 September 2017

आत्मा का अस्तित्व एक पाखण्ड

आत्मा का अस्तित्व एक पाखण्ड ।
एक बार भंते सुमेधानंद एक व्यक्ति के मृत्यु शोक में बैठे हुए थे और भी काफी लोग वहाँ विराजमान थे । उनमें एक ब्राह्मण भी वहाँ बैठा हुआ था । वहाँ उपस्थित लोगों में ब्राह्मण कह रहा था , बेटा आत्मा तो अजर अमर है , वह एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है , जैसे हम पुराने कपड़े को उतार कर फेंक देते हैं और नया कपड़ा पहन लेते हैं , उसी प्रकार आत्मा मात्र शरीर बदलती है , इसलिए शोक करना व्यर्थ है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपने या आपके किसी पूर्वज ने आत्मा को देखा है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! आत्मा इतनी सूक्ष्म है कि उसको न तो पानी से धो सकते हैं और न ही तलवार से काट सकते हैं ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! कार्बन डेटिंग द्वारा डीएनए जांच से पुष्टि हुई है कि आज से लगभग 400 करोड़ वर्ष एक कोशीय जीव की रचना से सम्पूर्ण सजीव जगत की रचना हुई है ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! ये पुष्टि कैसे होती है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! डीएनए की जांच से ये पुष्टि हुई है । एक कोशीय जीव बाद में डीएनए के रूप में परिवर्तित हो गया ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! उस समय भगवान ने आत्मा की रचना की होगी , जिससे उस एक कोशीय जीव की रचना हुई होगी ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! लेकिन हम डीएनए जांच से पुनर्जन्म की पुष्टि कर सकते हैं ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! वह कैसे कर सकते हैं ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जो मनुष्य ये कहता है कि मेरा जन्म उस मनुष्य से हुआ है तो पुनर्जन्म वाले व्यक्ति का डीएनए उसके पूर्व परिवार से मिलने पर ही ये पुष्टि हो सकती है कि उसका पुनर्जन्म हुआ है । यदि उनका डीएनए आपस में नही मिलता है तो इससे पुष्टि होती है कि मनुष्य का पुनर्जन्म एक बकबास है ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! ये सत्य है , लेकिन जिस प्रकार हवा बिजली दिखाई नही देते हैं , उसी प्रकार आत्मा दिखाई नही देती है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! हवा को हम श्वसन क्रिया द्वारा प्रमाणित कर सकते हैं और बिजली को हम उसके तार को छूकर पता कर सकते हैं , लेकिन आत्मा का पता कैसे चलेगा ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! इसका मतलब है कि आत्मा का कोई अस्तित्व नही होता है । तो फिर जीव की उत्पत्ति कैसे होती है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! सम्पूर्ण सौरमण्डल में अणु और परमाणुओं से निर्मित वस्तु का ही अस्तित्व होता है |
ब्राह्मण - हे भंते ! बिल्कुल सत्य है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! उस अस्तित्व को मनुष्य की पाँचों इन्द्रियों में से किसी भी इंद्री द्वारा महसूस किया जा सकता है |
ब्राह्मण - हे भंते ! सत्य है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! वर्तमान में परखनली के माध्यम से बच्चों की उत्पत्ति की जाती है और प्रक्रिया से पूर्व उस परखनली को पूरी तरह पैक कर दिया जाता है ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! सत्य है , वर्तमान में परखनली से बच्चों की उत्पत्ति की जाती है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! उस परखनली को इस प्रकार पैक किया जाता है कि न तो बाहर का वातावरण अंदर प्रवेश कर सकता है और न ही अंदर का वातावरण बाहर आता है तो उस परखनली में आत्मा के प्रवेश किये बिना ही जीव की उत्पत्ति होती है ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! सत्य है , लेकिन बिना आत्मा के उस परखनली में जीव की उत्पत्ति कैसे होती है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! मीथेन , अमोनिया और जलीय ऊष्मा के संयोग से जिस प्रकार जीवों की रचना होती है , उसी प्रकार शुक्राणु , रज और जलीय ऊष्मा से जीव की उत्पत्ति होती है ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! वह कैसे होती है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! वर्षात के पानी में अमोनिया , मीथेन उपस्थित रहते हैं , जो जल के माध्यम से ऊर्जा उत्पन्न करते हैं । उनके संयोग से एक कोशीय और उसके बाद डीएनए की रचना होती है और डीएनए से सेल की रचना होती है और धीरे धीरे सेल से सेल की रचना होती चली जाती है और सम्पूर्ण जीव बन जाता है । इस पानी को एक डिब्बे में भर कर पैक करके रख दो और बिना आत्मा की कृपा के तीनों पदार्थ और उनकी ऊर्जा के मिश्रण से उस बन्द डिब्बे में जीवाणु की उत्पत्ति हो जाती है , इसलिए जीवन की उत्पत्ति के लिए किसी आत्मा की जरूरत नही होती है ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! सत्य है । इससे ये ही प्रमाणित होता है कि आत्मा नही होती है । लेकिन आत्मा के बिना मनुष्य कोई भी कार्य नही कर सकता है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! सम्पूर्ण दुनिया में पदार्थ तीन अवस्थाओं में पाया जाता है । गैस , तरल और ठोस और इन सभी पदार्थों की संरचना परमाणु से होती है और पदार्थों की क्रियाओं के कारण से ही ऊर्जा उत्पन्न होती है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! बराबर सत्य है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जीव – जन्तु और पेड़ – पौधे एक पानी के बुलबुले की तरह पैदा होते हैं और नष्ट हो जाते हैं |
ब्राह्मण - हे भंते ! सत्य है ।
श्रमण - हे भंते ! सचेतन प्राणी कुछ भौतिक तत्वों और कुछ मानसिक तत्वों से बना होता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! वह कैसे ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! भौतिक पदार्थों से शरीर में अस्थि, माँस , माँस – पेशियाँ और चर्म की उत्पत्ति होती है और मानसिक तत्वों से चेतना भाग निर्मित होता है , जिससे एक सचेतन प्राणी की रचना होती है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! सचेतन प्राणी की रचना कैसे होती है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! अनुभूति , संज्ञा और संस्कार से सचेतन प्राणी की रचना होती है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! अनुभूति से सचेतन प्राणी की रचना कैसे होती है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! कानों से ध्वनि की , आँखों से दृष्टि की , नाक से गंध की , जीभ से स्वाद की और त्वचा से स्पर्श की अनुभूति होती है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! संज्ञा से सचेतन प्राणी की रचना कैसे होती है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! संज्ञा से प्राणी की जाति का पता चलता है और यह पता चलता है कि प्राणी नर है या मादा ।
ब्राह्मण - हे भंते ! संस्कार से सचेतन प्राणी की रचना कैसे होती है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! संस्कार के अनुसार बालक वंश परम्परा से अपने माता – पिता के गुण उत्पन्न करता है |
ब्राह्मण - हे भंते ! सचेतन प्राणी का संचालन कौन करता है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! सचेतन प्राणी का संचालन चित्त द्वारा किया जाता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! सचेतन प्राणी का संचालन चित्त द्वारा कैसे किया जाता है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! भौतिक तत्व , मानसिक तत्व और चित्त के एक ही समय और एक ही स्थान पर क्रियाशील होने से सचेतन प्राणी का चित्त द्वारा संचालन किया जाता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! चित्त कैसे उत्पन्न होता है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जिस प्रकार चुम्बक से चुम्बकीय क्षेत्र की उत्पति होती है , उसी प्रकार मनुष्य के जन्म के समय चित्त की उत्पत्ति होती है । जिस प्रकार चुम्बक से चुम्बकीय क्षेत्र खत्म हो जाता है , उसी प्रकार मृत्यु के साथ चित्त खत्म हो जाता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! चित्त का संचालन कौन करता है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! चित्त का संचालन प्राकृतिक रूप से होता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! चित्त का संचालन प्राकृतिक रूप से कैसे होता है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! प्रकृति के हर पदार्थ के अणु गतिशील होते हैं । जिस प्रकार चुम्बक के अणुओं को एक लय में लाकर चुम्बकीय शक्ति उत्पन्न की जाती है , उसी प्रकार भौतिक और मानसिक तत्वों के एक लय में आने से चित्त की शक्ति उत्पन्न होती है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! सत्य है , शरीर में आत्मा का कोई कार्य नही होता है , परन्तु लोग कहते हैं कि मृत देह से आत्मा फुर्र करके निकल जाती है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! किसी ने आत्मा को मृत देह से निकलते देखा है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! आत्मा के निकलने के वैज्ञानिक सबूत हैं कि आत्मा बंद शीशे को तोड़ कर भी निकल जाती है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपकी अवधारणा के अनुसार आत्मा चौरासी लाख यौनियों से गुजरती है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! सत्य है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! वही आत्मा कीड़े मकौड़ों में भी होती है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! होती है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! एक पारदर्शी प्लास्टिक की थैली लो और उसमें कुछ केंचुए , छींगर और कॉकरोज रखकर कुछ जहरीला पदार्थ डालकर उस थैली को पैक कर दो । अब बताओ कि थैली के कीड़े मकौड़े मरे ।
ब्राह्मण - हे भंते ! कीड़े मकौड़े सभी मर गए ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! अब कीड़े मकौड़ों से आत्मा को निकल कर थैली के टुकड़े टुकड़े करने चाहिए , क्या किये ?
ब्राह्मण - हे भंते ! नही किये ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! इससे सिद्ध होता है कि आत्मा नही होती है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! सत्य है , परन्तु लोगों की अवधारणा है कि अकाल मृत्यु के कारण आत्मा भटकती रहती है 
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपने या आपके किसी बुजुर्ग ने आत्मा को भटकते हुए देखा है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! नही देखा ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपकी अवधारणा है कि सभी सजीव वस्तुओं में आत्मा होती है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! सत्य है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जब  पेड़ – पौधों , जीव – जन्तुओं एवं कीड़े – मकौडों की अकाल मृत्यु होती है तो उनकी आत्मा की शान्ति के लिए आप अनुष्ठान करवाते हैं |
ब्राह्मण - हे भंते ! नही करवाते , लेकिन वे पेड़ पौधे और जानवर होते हैं , उनकी आत्मा के अनुष्ठान की क्या आवश्यकता है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आत्मा तो वही है , जो आप में है । उनकी भी अकाल मृत्यु पर आत्मा भटकनी चाहिए ।
ब्राह्मण - हे भंते !  सत्य है , प्रतिदिन हजारों पेड़ काटे जाते हैं और लाखों जीव जन्तु मरते हैं , लेकिन उनकी आत्मा को भटकते हुए आजतक नही देखा गया है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आप लोगों की दुकानदारी के लिए यह एक पाखण्ड है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! सत्य है , धर्म के ठेकेदारों की दुकानदारी आत्मा के ही नाम पर चलती है । परन्तु ये बताइये , आत्मा के बिना मनुष्य जीवित कैसे रहता है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! तीनों पदार्थ और उनसे उत्पन्न होने वाली ऊर्जा से मनुष्य जीवित रहता है ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! तीनों पदार्थ और ऊर्जा मनुष्य में ही रहते हैं , लेकिन जब आत्मा बाहर निकलती है , तभी मनुष्य मरता है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपका कहना है कि आत्मा रहने पर ही मनुष्य जिंदा रहता है।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! जब तक आत्मा शरीर में है , तभी तक मनुष्य शरीर जिंदा रहता है ।
  श्रमण - हे ब्राह्मण ! एक जिंदे मनुष्य को एक हवा रहित काँच के बॉक्स में बंद कर देते हैं , तो मनुष्य मरेगा कि जिंदा रहेगा ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! वह मनुष्य दम घुटने से मर जायेगा ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! अभी तुम कह रहे थे कि आत्मा के रहने तक मनुष्य जिंदा रहता है । लेकिन आत्मा तो उसी मनुष्य में मौजूद है , फिर वह मनुष्य क्यों मरेगा ?
ब्राह्मण - हे भन्ते ! सत्य है , उसमें आत्मा है , लेकिन वायु के बिना वह मर जायेगा ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! अब बताइये कि शरीर के संचालन के लिए महाशक्ति आत्मा है या वायु है ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! सत्य है , मनुष्य शरीर के संचालन के लिए वायु ही महाशक्ति है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! इसी प्रकार आत्मा सहित एक जीवित व्यक्ति को अन्न , जल और ऊर्जा से वंचित कर दिया जाए तो वह व्यक्ति जिंदा रहेगा या मरेगा ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! वह व्यक्ति मर जायेगा ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! मनुष्य संचालन के लिए महाशक्ति अन्न , जल और ऊर्जा हैं या आत्मा ।
ब्राह्मण - हे भन्ते ! सत्य है मनुष्य शरीर को संचालित करने वाली महाशक्ति अन्न , जल और ऊर्जा ही हैं ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपका कहना है कि जब तक आत्मा रहती है , तभी तक मनुष्य जीवित रहता है । आत्मा के निकलने पर मनुष्य जीवित नही रह सकता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! सत्य है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपका मतलब है कि आत्मा नहीं मरती है ?
ब्राह्मण - हे भंते ! लोगों की ऐसी धारणा है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आप लोग कहते हैं कि आत्मा कभी मरती नहीं , आत्मा अमर है। तो ये बताइये आत्मा शरीर छोड़ती है या शरीर आत्मा को ।
ब्राह्मण - हे भंते ! आत्मा शरीर को छोड़ती है।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आत्मा शरीर क्यों छोड़ती है ?
ब्राह्मण - हे भंते ! जीवन ख़त्म होने के बाद छोड़ती है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपका कहना है कि जिस शरीर में आत्मा रहती है , वही शरीर जिन्दा रहता है और जिस शरीर में आत्मा नही होती है वह शरीर मृत होता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! सत्य है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! परन्तु आपका कहना है कि शरीर के मृत होने पर आत्मा शरीर को छोड़ देती है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! सत्य है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपकी दोनों बात सत्य नही हो सकती । एक तरफ आपका मत है कि आत्मा बिना शरीर जिन्दा नही रह सकता और दूसरी तरफ मत है कि शरीर के मरने पर आत्मा शरीर से निकल जाती है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! सत्य है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आत्मा बाद में निकलती है तो फिर शरीर मरता क्यों है ? आत्मा के निकलने तक शरीर को जिन्दा रहना चाहिए ।
ब्राह्मण - हे भंते ! सत्य है । ये दोनों बात एक साथ नही हो सकती , इसका तात्पर्य है कि आत्मा का सचेतन शरीर पर कोई प्रभाव नही पड़ता है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! सत्य यह है कि मनुष्य के जन्म के समय चित्त का जन्म होता है और मृत्यु के समय चित्त समाप्त होता है । चित्त से ही सचेतन प्राणी का संचालन होता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ये सब सत्य है , लेकिन लोगों की धारणा है कि मनुष्य के अंदर कोई प्राण होते हैं ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जिस प्रकार दीपक , बाती , तेल अर्थात ऊर्जा से प्रज्वलित दीपक की रचना होती है , उसी प्रकार प्राणी , मानसिक तत्व और ऊर्जा से चित्त अर्थात सचेतन प्राणी की रचना होती है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! फिर शरीर का संचालन कैसे होता है ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जिस प्रकार प्रज्वलित दीपक से चारों तरफ प्रकाश का संचालन होता है , उसी प्रकार चेतना से प्राणी शरीर का संचालन होता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! मनुष्य के अंदर प्राण नष्ट कैसे होते हैं ?
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जिस प्रकार दीपक , बाती और ऊर्जा का किसी भी प्रकार से एक दूसरे से सम्पर्क टूट जाता है तो प्रज्वलित दीपक बुझ जाता है , उसी प्रकार प्राणी , मानसिक तत्व और ऊर्जा का एक दूसरे से किसी भी माध्यम से सम्पर्क समाप्त हो जाता है तो सचेतन शरीर नष्ट हो जाता है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! इसका तात्पर्य है कि जब तक दीपक , बाती और ऊर्जा का मिलन है , तभी तक प्रज्वलित दीपक है , उसी प्रकार जब तक शरीर , मानसिक तत्व और ऊर्जा का मिलन है , तभी तक सचेतन प्राणी है । तीनों के बिखरने से जिस प्रकार प्रज्वलित दीपक बुझ जाता है , उसी प्रकार सचेतन प्राणी भी नष्ट हो जाता है ।
श्रमण - हे बुद्धिमान ब्राह्मण ! आपने सत्य को जान लिया , आपका कल्याण हो ।
सुमेध जग्रवाल

2 comments:

  1. श्राद्ध-पक्ष
    धर्म के धंधे का सबसे हास्यास्पद और विकृत रूप देखना है तो पितृ पक्ष श्राद्ध और इसके कर्मकांडों को देखिये. इससे बढ़िया केस स्टडी दुनिया के किसी कोने में आपको नही मिलेगी. ऐसी भयानक रूप से मूर्खतापूर्ण और विरोधाभासी चीज सिर्फ विश्वगुरु के पास ही मिल सकती है.
    एक तरफ तो ये माना जाता है कि पुनर्जन्म होता है, मतलब कि घर के बुजुर्ग मरने के बाद अगले जन्म में कहीं पैदा हो गए होंगे.
    दूसरी तरफ ये भी मानेंगे कि वे अंतरिक्ष में लटक रहे हैं और खीर पूड़ी के लिए तडप रहे हैं......
    अब सोचिये पुनर्जन्म अगर होता है तो अंतरिक्ष में लटकने के लिए वे उपलब्ध ही नहीं हैं. किसी स्कूल में नर्सरी में पढ़ रहे होंगे.
    अगर अन्तरिक्ष में लटकना सत्य है तो पुनर्जन्म गलत हुआ.
    लेकिन हमारे पोंगा पंडित दोनों हाथ में लड्डू चाहते हैं इसलिए मरने के पहले अगले जन्म को सुधारने के नाम पर भी उस व्यक्ति से कर्मकांड करवाएंगे और मरने के बाद उसके बच्चों को पितरों का डर दिखाकर उनसे भी खीर पूड़ी का इन्तेजाम जारी रखेंगे......!
    अब मजा ये कि कोई कहने पूछने वाला भी नहीं कि महाराज इन दोनों बातों में कोई एक ही सत्य हो सकती है ...
    उसपर दावा ये कि ऐसा करने से सुख समृद्धि आयेगी.
    लेकिन इतिहास गवाह है कि ये सब हजारों साल तक करने के बावजूद यह देश गरीब और गुलाम बना रहा है .....
    बावजूद इसके हर घर में हर परिवार में श्राद्ध का ढोंग बहुत गंभीरता से निभाया जाता है .... और वो भी पढ़े लिखे और शिक्षित परिवारों में ....
    ये सच में एक चमत्कार है.
    परम सद्गुरु..............

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 12 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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