Wednesday, 6 September 2017

ललई सिंह यादव

*मा0ललई सिंह यादव जी 107वीं जन्म तिथि पर आप सभी बहुजन मूलनिवासी समाज के सभी साथियों को बहुत - बहुत बधाइयां ब मंगलकामनाये।*


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जीवन परिचय-
महाप्राण कर्मवीर पेरियार ललई सिंह यादव का जन्म एक सितम्बर 1911 को ग्राम कठारा रेलवे स्टेशन-झींझक, जिला कानपुर देहात के एक समाज सुधारक सामान्य कृषक परिवार में हुआ था। पिता चौ. गुज्जू सिंह यादव एक कर्मठ आर्य समाजी थे। इनकी माता श्रीमती मूलादेवी, उस क्षेत्र के जनप्रिय नेता चौ0 साधो सिंह यादव निवासी ग्रा. मकर दादुर रेलवे स्टेशन रूरा, जिला कानपुर की साध्वी पुत्री थी। इनके मामा चौ0 नारायण सिंह यादव धार्मिक और समाज सेवी कृषक थे।धार्मिक होने पर भी यह परिवार अंधविश्वास व रूढियों के पीछे दौड़ने वाला नहीं था। 
मा0 ललई सिंह यादव ने सन् 1928 में हिन्दी के साथ उर्दू लेकर मिडिल पास किया। सन् 1929 से 1931 तक फाॅरेस्ट गार्ड रहे। 1931 में ही इनका विवाह श्रीमती दुलारी देवी पुत्री चौ. सरदार सिंह यादव ग्रा. जरैला निकट रेलवे स्टेशन रूरा जिला कानपुर के साथ हुआ। 1933 में शशस्त्र पुलिस कम्पनी जिला मुरैना (म.प्र.) में कान्स्टेबिल पद पर भर्ती हुए। नौकरी से समय बचा कर विभिन्न शिक्षायें प्राप्त की। 
सन् 1946 ईस्वी में नान गजेटेड मुलाजिमान पुलिस एण्ड आर्मी संघ ग्वालियर कायम कर के उसके अध्यक्ष चुने गए। ‘सोल्जर आॅफ दी वार’ ढंग पर हिन्दी में ‘‘सिपाही की तबाही’ किताब लिखी, जिसने कर्मचारियों को क्रांति के पथ पर विशेष अग्रसर किया। इन्होंने आजाद हिन्द फौज की तरह ग्वालियर राज्य की आजादी के लिए जनता तथा सरकारी मुलाजिमान को संगठित करके पुलिस और फौज में हड़ताल कराई जवानों से कहा कि

बलिदान न सिंह का होते सुना,
बकरे बलि बेदी पर लाए गये।
विषधारी को दूध पिलाया गया,
केंचुए कटिया में फंसाए गये।
न काटे टेढ़े पादप गये,
सीधों पर आरे चलाए गये।
बलवान का बाल न बांका भया
बलहीन सदा तड़पाये गये। 
हमें रोटी कपड़ा मकान चाहिए,
दिनांक 29.03.47 ईस्वी को ग्वालियर स्टेट्स स्वतंत्रता संग्राम के सिलसिले में पुलिस व आर्मी में हड़ताल कराने के आरोप में धारा 131 भारतीय दण्ड विधान (सैनिक विद्रोह) के अंतर्गत साथियों सहित राज-बन्दी बने। दिनांक 06.11.1947 ईस्वी को स्पेशल क्रिमिनल सेशन जज ग्वालियर ने 5 वर्ष सश्रम कारावास तथा पाँच रूपये अर्थ दण्ड का सर्वाधिक दण्ड अध्यक्ष हाई कमाण्डर ग्वालियर नेशनल आर्मी होने के कारण दी। दिनांक 12.01.1948 ईस्वी को सिविल साथियों सहित बंधन मुक्त हुये। 
उसी समय यह स्वाध्याय में जुटे गये। एक के बाद एक इन्होंने श्रृति स्मृति, पुराण और विविध रामायणें भी पढ़ी। हिन्दू शास्त्रों में व्याप्त घोर अंधविश्वास, विश्वासघात और पाखण्ड से वह तिलमिला उठे। स्थान-स्थान पर ब्राह्मण महिमा का बखान तथा दबे पिछड़े शोषित समाज की मानसिक दासता के षड़यन्त्र से वह व्यथित हो उठे। ऐसी स्थिति में इन्होंने यह धर्म छोड़ने का मन भी बना लिया। अब वह इस निष्कर्ष पर पहुंच गये थे कि समाज के ठेकेदारों द्वारा जानबूझ कर सोची समझी चाल और षड़यन्त्र से शूद्रों के दो वर्ग बना दिये गये है। एक सछूत-शूद्र, दूसरा अछूत-शूद्र, शूद्र तो शूद्र ही है। चाहे कितना सम्पन्न ही क्यों न हो। 
उनका कहना था कि सामाजिक विषमता का मूल, वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था, श्रृति, स्मृति और पुराणों से ही पोषित है। सामाजिक विषमता का विनाश सामाजिक सुधार से नहीं अपितु इस व्यवस्था से अलगाव में ही समाहित है। अब तक इन्हें यह स्पष्ट हो गया था कि विचारों के प्रचार प्रसार का सबसे सबल माध्यम लघु साहित्य ही है। इन्होंने यह कार्य अपने हांथों में लिया सन् 1925 में इनकी माताश्री, 1939 में पत्नी, 1946 में पुत्री शकुन्तला (11 वर्ष) और सन् 1953 में पिता श्री चार महाभूतों में विलीन हो गये। वे अपने पिता जी के इकलौते पुत्र थे। पहली स्त्री के मरने के बाद दूसरा विवाह कर सकते थे किन्तु क्रान्तिकारी विचारधारा होने के कारण इन्होंने दूसरा विवाह नहीं किया और कहा कि अगली शादी स्वतन्त्रता की लड़ाई में बाधक होगी। 


साहित्य प्रकाशन की ओर भी इनका विशेष ध्यान गया। दक्षिण भारत के महान क्रान्तिकारी पेरियार ई. वी. रामस्वामी नायकर के उस समय उत्तर भारत में कई दौरे हुए। वह इनके सम्पर्क में आये। जब पैरियार रामास्वामी नायकर से सम्पर्क हुआ तो इन्होंने उनके द्वारा लिखित ‘‘रामायण ए टू रीडि़ंग’’ (अंग्रेजी में) में विशेष अभिरूचि दिखाई। साथ ही दोनों में इस पुस्तक के प्रचार प्रसार की, सम्पूर्ण भारत विशेषकर उत्तर भारत में लाने पर भी विशेष चर्चा हुई। उत्तर भारत में इस पुस्तक के हिन्दी में प्रकाशन की अनुमति पैरियार रामास्वामी नायकर ने ललईसिंह यादव को सन् 01-07-1968 को दे दी। 
इस पुस्तक के 'सच्ची रामायण'' हिन्दी में 01-07-1969 को प्रकाशन से सम्पूर्ण उत्तर पूर्व तथा पश्चिम् भारत में एक तहलका सा मच गया। पुस्तक प्रकाशन को अभी एक वर्ष ही बीत पाया था कि उ.प्र. सरकार द्वारा 08-12-69 को पुस्तक जब्ती का आदेश प्रसारित हो गया कि यह पुस्तक भारत के कुछ नागरिक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर चोट पहुंचाने तथा उनके धर्म एवं धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने के लक्ष्य से लिखी गयी है। उपरोक्त आज्ञा के विरूद्ध प्रकाशक ललई सिंह यादव ने हाई कोर्ट आफ जुडीकेचर इलाहाबाद में क्रिमिनल मिसलेनियस एप्लीकेशन 28-02-70 को प्रस्तुत की। माननीय तीन जजों की स्पेशल फुल बैंच इस केस को सुनने के लिए बनाई गई। कोर्ट ने अपीलाॅट (ललईसिंह यादव) की ओर से निःशुल्क एडवोकेट श्री बनवारी लाल यादव और सरकार की ओर से गवर्नमेन्ट एडवोकेट तथा उनके सहयोगी श्री पी.सी. चतुर्वेदी एडवोकेट व श्री आसिफ अंसारी एडवोकेट की बहस दिनांक 26, 27 व 28 अक्टूबर 1970 को लगातार तीन दिन सुनी। दिनांक 19-01-71 को माननीय जस्टिस श्री ए. के. कीर्ति, जस्टिस के. एन. श्रीवास्तव तथा जस्टिस हरी स्वरूप ने बहुमत का निर्णय दिया कि -
1. गवर्नमेन्ट आॅफ उ.प्र. की पुस्तक ‘सच्ची रामायण’ की जप्ती की आज्ञा निरस्त की जाती है।
2. जप्तशुदा पुस्तकें ‘सच्ची रामायण’ अपीलांट ललईसिंह यादव को वापिस दी जाये। 
3. गर्वन्र्मेन्ट आॅफ उ.प्र. की ओर से अपीलांट ललई सिंह यादव को तीन सौ रूपये खर्चे के दिलावें जावें। 
ललईसिंह यादव द्वारा प्रकाशित ‘सच्ची रामायण’ का प्रकरण अभी चल ही रहा था कि उ.प्र. सरकार की 10 मार्च 1970 की स्पेशल आज्ञा द्वारा  "सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें" नामक पुस्तक जिसमें डाॅ. अम्बेडकर के कुछ भाषण थे तथा "जाति भेद का उच्छेद"नामक पुस्तक 12 सितम्बर 1970 को चौ. चरण सिंह की सरकार द्वारा जब्त कर ली गयी। इसके लिए भी ललई सिंह यादव ने श्री बनवारी लाल यादव एडवोकेट, के सहयोग से मुकदमें की पैरवी की। मुकदमें की जीत से ही 14 मई 1971 को उ.प्र. सरकार की इन पुस्तकों की जब्ती की कार्यवाही निरस्त कराई गयी और तभी उपरोक्त पुस्तके जनता को भी सुलभ हो सकी। इसी प्रकार ललई सिंह यादव द्वारा लिखित पुस्तक ‘आर्यो का नैतिक पोल प्रकाश’ के विरूद्ध 1973 में मुकदमा चला दिया। यह मुकदमा उनके जीवन पर्यन्त चलता रहा।सच्ची रामायण के मामले में
हाई कोर्ट में हारने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में अपील दायर कर दी वहां भी अपीलांट उत्तर प्रदेश सरकार क्रिमिनल मिसलेनियस अपील नम्बर 291/1971 ई. निर्णय सुप्रीम कोर्ट आॅफ इण्डिया, नई दिल्ली दि. 16-9-1976 ई. के अनुसार अपीलांट की हार हुई अर्थात् रिस्पांडेण्ट श्री ललई सिंह यादव की जीत हुई। (सच्ची रामायण की जीत हुई) फुलबैंच में माननीय सर्वश्री जस्टिस पी. एन. भगवती जस्टिस वी. आर. कृष्णा अय्यर तथा जस्टिस मुर्तजा फाजिल अली थे। 
चै. ललईसिंह, पैरियार ललई सिंह बन गये
महान क्रान्तिकारी पैरियार ई. व्ही. रामास्वामी नायकर जो गड़रिया (पाल-बघेल) जाति के थे, के संघर्षमय जीवन का लम्बा इतिहास है। 20 दिसम्बर 1973 की सुबह वे चार महाभूतों में समाहित हो गये। इनके जीवन काल से ही इनका जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाने लगा था इनकी मृत्यु के पश्चात् एक विशाल सभा में चै. ललईसिंह यादव को भी भाषण के लिए बुलाया गया। निर्वाण प्राप्त रामास्वामी नायकर की श्रद्धांजलि सभा में दिये गये इनके भाषण पर दक्षिण भारतीय मुग्ध हो गये। इनके भाषण की समाप्ति पर तीन नारे लगाये गये अब हमारा अगला पैरियार-इसी पर आवाज आई पैरियार ललई सिंह, पैरियार ललई सिंह।
इस घटना के बाद से ही इनके नाम के पूर्व पैरियार शब्द का शुभारम्भ हुआ। दक्षिण भारत में पैरियार शब्द जाति वादी नहीं अपितु स्वच्छ निष्पक्ष-निर्भीक अथवा सागर के अर्थों में प्रयोग किया जाने वाला सम्मान सूचक शब्द है। साहित्य प्रकाशन के लिए उन्होंने एक के बाद एक तीन प्रेस खरीदे। शोषित पिछड़े समाज में स्वाभिमान व सम्मान को जगाने तथा उनमें व्याप्त अज्ञान, अंधविश्वास, जातिवाद तथा ब्राह्मणवादी परम्पराओं को ध्वस्त करने के उद्देश्य से वह लघु साहित्य के प्रकाशन की धुन में अपनी उनसठ बीघे सरसब्ज-जमीन कौडि़यों के भाव बेच प्रकाशन के कार्य में आजीवन जुटे रहे। 

जागो मूलनिवासी।

6 comments:

  1. अंबेडकर को चुराना नामुमकिन है

    अंबेडकर को चुराने का षड्यंत्र बहुत बरसों से चल रहा है। अंबेडकर के व्यक्तित्व और कृतित्व में सनातनी तत्वों का प्रक्षेपण करने का काम बहुत सोच समझकर और फूंक-फूंककर किया जा रहा है लेकिन एक बड़ी दिक्कत आ रही है।पहले की तरह शूद्र और दलित अब अनपढ़ नहीं रहा गए हैं। इस देश के दुर्भाग्य से अब गरीबों और मजलूमों ने पढ़ना लिखना सीख लिया है और अपने महापुरुषों को बचाने का ढंग भी सीख लिया है।

    इतिहास के जिस शून्य में गौतम बुद्ध को चुरा लिया गया था, अब वही काम अंबेडकर के साथ नहीं होगा। कबीर भी सुरक्षित बाहर निकाले जा चुके हैं और अंबेडकर तो इतने बोल्ड और स्पष्ट हैं कि कोई मूर्ख ही होगा जो उन्हें ‘डाइजेस्ट’ करने की सोचेगा। उनकी बाईस प्रतिज्ञाएँ और बौद्ध धर्म का स्वीकार इतने बोल्ड कदम हैं कि इनको किसी भी तरह कुनकुना नहीं बनाया जा सकता।

    इस देश की संस्कृति के ठेकेदार बहुत हैरान और परेशान हैं। सदियों से कुल मिलाकर उनका एक ही काम रहा है, जो भी श्रेष्ठ विचारक या स्वप्नदर्शी होता है पहले उसे और उसके लोगों को हर संभव तकलीफ देंगे। उसे काट छांटकर अपने छोटे से दड़बे में घुसेड़ने का प्रयास करेंगे। फिर जब नहीं कर पाएंगे तो उसे ही अपना महापुरुष घोषित कर देंगे। यही तो अवतारवाद है।

    इन ठेकेदारों की किस्मत अच्छी है कि कबीर ने कोई नया धर्म नहीं चलाया नहीं तो उन्हें ग्यारहवां अवतार घोषित करने के लिए एक और पुराण लिखना पड़ता। कबीर को नवधा भक्ति और वैष्णव भक्ति के दलदल में घसीटकर ख़त्म कर दिया गया है। जबरदस्ती रामानंद को उनका गुरु बताकर उनके पर कतरे गए हैं। जिस आदमी को कबीर का गुरु बताया जाता है उनकी खुद की उपलब्धि क्या है? उनके नाम पर दो चार किताबें आज तक नहीं दिखाई दी हैं।

    जबकि कबीर और रैदास अछूत होते हुए भी इतिहास और साहित्य का दलदल चीर कर बार बार उभरते रहे हैं। रामानंद ने क्या लिखा और क्या कहा है किसी को नहीं पता।

    अब समय बदल गया है अब महापुरुष नहीं चुराए जा सकते। क्योंकि उनका पूरा कृतित्व अब सुरक्षित रूप में उपलब्ध है। अब अंबेडकर की आग पर राख नहीं डाली जा सकती। उन्हें अपनाना है तो उनकी ही तरह अंगारे चबाने की काबिलियत हासिल करनी होगी। अगर आप ये नहीं कर सकते तो अपनी तोता मैना की कहानियों से अपना समाज चलाते रहिये जैसे पूरे इतिहास में चलाते आए हैं।

    भगाणा के दलितों ने थक हारकर हिन्दू धर्म से उम्मीदें रखना छोड़ दी हैं। सौ परिवारों ने इस्लाम अपना लिया है। यह घटना बहुत सूचक है एक बड़ा संकेत छुपा है इस निराशा में। लेकिन फिर भी इस देश के धर्म और संस्कृति के ठेकेदारों को अक्ल नहीं आएगी ये आप लिखकर रख लीजिए। वे इस समाज की कालकोठरी की दीवारों को तोड़ने के बजाए उसपर रंगाई पुताई करके उसे और आकर्षक और मजबूत बनाने की कोशिश करेंगे।

    हजारों साल की गुलामी और अपमान से उन्होंने कुछ नहीं सीखा। विश्वगुरु का अहंकार उसके दिमाग पर एक चट्टान की तरह बैठ गया है।

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  2. रावण और अशोक का संबंध कही अशोक को ही रावण बना कर पेश तो नही कीया बचपन से एक प्रश्न मन में था कि लंका में बनी अशोक वाटिका में क्या कभी सम्राट अशोक रहते थे? या यह वाटिका अशोक ने बनवाई थी?सीता जिसमें रह रही थी उस वाटिका को हनुमान ने क्यों नष्ट कर दिया? खैर ये बच्चे के मन में उठे छोटे-छोटे बेकार प्रश्न हो सकते हैं. सोशल मीडिया पर एक प्रकरण पढ़ा जिसमें तार्किक दृष्टि से मुझे एक नई बात का पता चला. इसमें बड़ा प्रश्न निहित है कि ‘रामायण’ (जिसे इतिहास से भी पहले का अतिप्राचीन ग्रंथ कहा जाता है) पहले लिखी गई या इतिहास में लिखे बुद्ध पहले हुए.

    इस बारे में फेसबुक पर रामायण में से ही एक उद्धरण दिया है जो इस प्रकार है- यथा हि चोरः स तथा ही बुद्ध स्तथागतं नास्तीक मंत्र विद्धि तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानाम् स नास्तीके नाभि मुखो बुद्धः स्यातम्। अयोध्याकांड सर्ग 110 श्लोक 34 अर्थात जैसे चोर दंडनीय होता है इसी प्रकार बुद्ध भी दंडनीय है. तथागत और नास्तिक (चार्वाक) को भी यहाँ इसी कोटि में समझना चाहिए. इसलिए नास्तिक को दंड दिलाया जा सके तो उसे चोर के समान ही दंड दिलाया जाय. परन्तु जो वश के बाहर हो उस नास्तिकसे ब्राह्मण कभी वार्तालाप न करे! (श्लोक 34, सर्ग 110, वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड.)” इस श्लोक में बुद्ध-तथागत का उल्लेख होना हैरान करता है और इसके आधार पर मैं इस तर्क को अकाट्य मानता हूँ कि बुद्ध पहले हुए और रामायण की रचना बाद में की गई.

    इसी संदर्भ में फेसबुक पर क्षेत्रीय शक्यपुत्र की एक अन्य पोस्ट देखी जो इस कहानी को अन्य तरीके से कहती है. फिर भी इस बातका ध्यान रखना होगा कि पुरानी कथा-कहानियाँ कई तरीके से सुनी-सुनाई जाती रही हैं. अतः लिखी बात का अर्थ भी हर व्यक्ति को अलग तरीके से संप्रेषित होता है. (हालाँकि शक्य पुत्र की यह पोस्ट रामायण की कथा में खोज-खुदाई करती है और अशोक के संदर्भ में कुछ समानताओं और विसंगतियों को ढूँढ लाती है, लेकिन इस पोस्ट में अपनी भी कुछ विसंगतियाँ हो सकती हैं.) ब्लॉग की दृष्टि से इसका थोड़ा सा संपादन मैंने किया है. रावण के कार्यकाल में अशोक वाटिका कहाँ से आती है? कहीं साहित्यकारों ने चक्रवर्ती सम्राट अशोक को रावण के रूप में प्रदर्शित तो नहीं किया?

    क्योंकि, रावण की कुछ विशेषताएँ थीं जो कि सम्राट अशोक से मिलती जुलती हैं, महान विद्वान, वीर योद्धा, शूर सिपाही, बहुत बड़ा संत, अपने संबंधियों व प्रजा का दयालुता पूर्वक पालनकर्ता, शक्तिशाली पुरुष, वरदानी पुरुष, इतना ही नहीं बल्कि रावण एक बौद्ध राजा था ऐसा श्रीलंका स्थित कुछ विद्वान भिख्खुओंका कहना है. आज भी रावण को श्रीलंका में पूजनीय माना जाता है. श्रीलंका में रावण के विहारों में कुछ मूर्तियाँ और कुछ शिल्पकलाएँ पाई जाती हैं जिनमें रावण धम्म का प्रचार करते हुए स्पष्ट नजर आते हैं. इतिहास को एक बार देखा जाए तो श्रीलंका में बौद्ध धम्म को फैलाने वाले और कोई नहीं वे सम्राट अशोक ही थे. रावण ऋषियों से घृणा करते थे. क्यों? क्योंकि वे यज्ञ के नाम पर छल-कपट पूर्ण स्वधर्म नियमानुसार गूँगे पशुओं को आग में बलि दे कर हृदय विदारक अपराध करते थे. तो इसी से यह साफ होता है कि रामायण एक काल्पनिक एवं ब्राह्मणों द्वारा रची हुई नकली कथा है.

    अगर रावण यज्ञ में चल रहे पशुओं की बलि सह नहीं सकते थे तो क्या वे जटायु नामक पशु को मार सकते हैं? रामायण में एक और कथा कही गयी है कि रावण ने सभी देवी-देवताओं को बंदी किया था. यह कथा भी सम्राट अशोक की कथा से मिलती जुलती है. क्योंकि सम्राट अशोक ने भी धम्म में घुसे हुए कुछ नकली लोगों को बंदी बनाकर उन्हें धम्म से हटा दिया था. अगर आप एक बार रामायण पढ़ें तो उसमें आपको दिखाई देगा कि इस नकली एवं काल्पनिक ग्रंथ के लेखक ने खुद रावण की प्रशंसा की है. वह लिखता है कि रावण एक सज्जन पुरुष था. वह सुंदर और उत्साही था. किंतु जब रावण ब्राह्मणों को यज्ञ करते हुए और सोमरस पीते हुए देखते थे तो उन्हें कड़ा दंड देते थे.

    इसलिए मुझे तो लगता है कि सम्राट अशोक का विद्रूपीकरण करके ही पाखंडियों ने रावण को ऐसा प्रदर्शित किया है. क्योंकि इतिहास तो यही कहता है कि धर्मांध लोगों द्वारा दशहरा माना जाता है. दशहरा का और दस पारमिता का कही कोई संबंध तो नहीं?

    क्योंकि इसी दिन सम्राट अशोक ने शस्त्र का त्याग कर बुद्ध का धम्म अपनाया था. जिसे आज हम धम्मचक्र प्रवर्तन दिन और अशोक विजयादशमी कहते हैं.

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  3. सारे 3% विदेशी ब्राह्मणों का एक ही मकसद देखता हु ,की 85% OBC SC ST ,मुसलमानों को अपना दुश्मन मान ले व आपस मे लडते रहे।

    पर जब मै 3% विदेशी ब्राह्मणों से यह सवाल पूछता हु तो कोई ब्राह्मण मेरे सवाल का जवाब देने सामने नहीं आता ।

    * क्या जातिप्रथा (caste system) ,& वर्णप्रथा में पिछड़ी जातियों को मुसलमानों ने बाटा या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?

    * क्या धर्म के नाम पर 33 करोड़ काल्पनिक देवी-देवताओं का निर्माण कर पत्थरो की मूर्तियों के नामपर मुसलमान हमको ठग रहे है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?

    * क्या हमारे संवैधानिक ''रिजर्वेशन'' का विरोध मुसलमान कर रहे है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?

    * क्या हमारे महापुरुषों (रविदास , कबीर , तुकाराम , फुले , शाहू जी महाराज , बाबासाहब , कांशीराम , पेरियार इत्यादि ) को षड्यंत्र से मारने का सफल या असफल प्रयास मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?

    * हमारी महान हडप्पा मोहनजोदाड़ो की सिंधू सभ्यता पर हमला मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी आर्य ब्राह्मणों ने ?

    * मंडल कमीशन को दबाने के लिए रथयात्रा मुसलमानों ने निकाली या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?

    * क्या सदियों से SC ST के लोगो के साथ अछूतपन का व्यवहार मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?

    * आज भारत पर न्यायपालिका कार्यपालिका मीडिया विधायिका पर मुसलमानों का कब्ज्जा है या 3% विदेशी ब्राह्मणों का ?

    * क्या privatisation globalisation के नाम पर देश को निजी उद्योगपतियों के हाथो मुसलमान बेच रहे है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?

    * सेज के नाम पर मूलनिवासियो की कीमती जमीन विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनीयों को कोडियों के दाम मुस्लिम दे रहे हे या विदेशी ब्राम्हण ?

    * जल परियोजनाओ. राष्ट्रिय उध्यान
    सडक परियोजना
    खनिज परियोजना आदि के नाम पर मूलनिवासियों (sc/st/obc) को उनकी पूर्वजो की भूमि से जबरन बे-दखल (गोली मारकर) मूस्लिम करते है या ३% विदेशी यूरेशियन ?

    * क्या शुद्र कहकर शिजाजी महाराज का राज्याभिषेक मुसलमानों ने नकारा या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?

    * क्या शिवाजी महाराज का राज्यतिलक बाए पैर के अंगूठे से कर उस महाप्रतापी राजा का अपमान मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?

    * सम्राट अशोक के पुत्र की ह्त्या मुसलमानों ने की या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?

    * हर गाव हर घर में पिछड़ी जातियों को आपस में लड़ाने का काम मुसलमान करते है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?

    * बौद्ध , जैन , सिख , लिंगायत , गोड जैसे स्वतंत्र धर्मो को ब्राह्मण धर्म (हिन्दू धर्म) की शाखा कहकर प्रचारित कर उनका स्वतंत्र अस्तित्व मुसलमान ख़त्म कर रहे है की ब्राह्मण ?

    सवाल तो हजारो है पर आज बस इतना ही ।
    मुसलमानों ने हमारे लिए क्या किया इसकी भी जानकारी आपको देता हूँ ,
    भारतीय इतिहास की कुछ शानदार घटनाये :---

    * महात्मा ज्योतिबा फूले को अपना स्कूल बनाने के लिये जमीन उस्मान शेख नाम के एक मुसलमान ने दी थी ।

    * उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख ने सावित्री बाई फूले का साथ देकर उनके स्कूल में पढाने का काम किया था ।

    * बाबासाहेब आंबेडकर ने जब चावदार तालाब का आंदोलन चलाया और सभा करने के लिये बाबासाहेब को कोई हिन्दु जगह नहीं दे रहा था , तब मुसलमान भाइयों ने आगे आकर अपनी जगह दी थी और बाबासाहेब से कहा था कि " आप हमारी जगह मे अपनी सभा कर सकते हो "

    * गोलमेज परिषद मे जब गांधी जी ने बाबासाहेब का विरोध किया था और रात के बारह बजे गांधी जी ने मुसलमानों को बुलाकर कहा था कि आप बाबासाहेब का विरोध करो तो मैं आपकी सभी मांगे पूरी करुंगा ।
    तब मुसलमान भाई आगार खांन साहब ने गांधी जी को मना कर दिया था और कहा था कि हम बाबासाहेब का विरोध किसी भी हाल मे नहीं करेंगे ।

    * मौलाना हसरत मोहानी ने बाबा साहब को रमजान के पवित्र माह में अपने घर रोजा इफ्तार की दावत दी थी ।
    जबकि पंडित मदनमोहन मालवीय ने तो बाबा साहब को एक गिलास पानी तक नहीं दिया था ।

    * जब सारे हिन्दुओं (गांधी और नेहरू) ने मिलकर बाबासाहेब के लिये संविधान सभा के सारे दरवाजे और खिड़किया भी बंद कर दी थीं ।
    तब पश्छिम बंगाल के मुसलमानों व चांडालों ने बाबासाहेब को वोट देकर चुनाव जिताकर संविधान सभा मे भेजा था ।
    .इसीलिए SC, ST और OBC समाज के लोगों को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि मुस्लिम नेताओं ने बाबा साहेब आंबेडकर का अक्सर साथ दिया था ।
    जबकि गांधी और तिलक हमेशा ही बाबा साहेब आंबेडकर के रास्ते में मुश्किलें पैदा करते रहे थे ।
    अभी भी SC, ST और OBC के प्रतिनिधित्व/ आरक्षण के खिलाफ संघी ही आंदोलन चलाते हैं, मुस्लिम नही ।

    विस्थापितों मे पंडितो को देहली के पाश ईलाको मे बसाया गया वही मूलनिवासि sc/st/obc समाज के विस्थापितों को जंगलो पहाडो रेतिले क्षेत्र मे बसाकर उनको तील तील मरने पर मजबुर करने वाले ३% विदेशी यूरेशियन है या मूस्लिम ?

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  4. ​रामायण की बखिया उधेड़ने वाले नायक पेरियार| Periyar E.V Ramasami and Lalai singh story| Dalit Dastak
    https://www.youtube.com/watch?v=gwxubwe3UeM&feature=youtu.be

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  5. • ब्राह्मण हमे अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है | और स्वयं आरामदायक जीवन जी रहा है, तथा तुम्हे अछूत कहकर निंदा करता है | देवता की प्रार्थना करने के लिए दलाली करता है | मै इस दलाली की निदा करता हूँ| और आपको भी सावधान करता हू की ऐसे ब्राहमणों का विस्वास मत करो |

    • ब्राहमणों के पैरों में क्यों गिरना ? क्या ये मंदिर है ? क्या ये त्यौहार है ? नही , ये सब कुछ भी नही है | हमें बुद्धिमान व्यक्ति कि तरह व्यवहार करना चाहिए यही प्रार्थना का सार है |

    • ब्राहमणों ने हमें शास्त्रों ओर पुराणों की सहायता से गुलाम बनाया है | और अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मंदिर, ईश्वर,और देवि -देवताओं की रचना की |

    • सभी मनुष्य समान रूप से पैदा हुए है , तों फिर अकेले ब्राह्मण उच्च व अन्यों को नीच कैसे ठहराया जा सकता है?

    • आप ब्राह्मणों के जल में फसे हो. ब्राह्मण आपको मंदिरों में घुसने नही देते ! और आप इन मंदिरों में अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई लूटाते हो ! क्या कभी ब्राहमणों ने इन मंदिरों, तालाबो या अन्य परोपकारी संस्थाओं के लिए एक रुपया भी दान दिया ?

    • हमारे देश को आजादी तभी मिल गई समझाना चाहिए जब ग्रामीण लोग, देवता ,अधर्म, जाति और अंधविस्वास से छुटकारा पा जायेंगे |

    • आज विदेशी लोग दूसरे ग्रहों पर सन्देश और अंतरिक्ष यान भेज रहे है और हम ब्राहमणों के द्वारा श्राद्धो में परलोक में बसे अपने पूर्वजो को चावल ओर खीर भेज रहे है | क्या ये बुद्धिमानी है ?

    • नास्तिकता मनुष्य के लिए कोई सरल स्तिथि नहीं है, कोई भी मुर्ख अपने आप को आस्तिक कह सकता है, ईश्वर की सत्ता स्वीकारने में किसी बुद्धिमत्ता की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन नास्तिकता के लिए बड़े साहस और दृढ विश्वास की जरुरत पड़ती है, यह स्तिथि उन्ही लोगो के लिए संभव है जिनके पास तर्क तथा बुद्धि की शक्ति हो।

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    1. इसे पढ़ने से लोगों में जागरूकता आएंगी

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