Tuesday, 5 September 2017

गणेश पूजन

*➖गणेश पूजन पर विशेष ➖*
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*गणपती का रहस्य और ब्राह्मणीकरण*
*:::::::::::: कृपया पढें ::::::::::::::::::*
बुद्ध का मतलब ही *अष्टविनायक* है।
*पोस्ट जरा बड़ी है लेकिन आँखे खोलकर पढ़े...*
✅लोकशाही व्यवस्था में देश का प्रमुख *"राष्ट्रपति"* होता है, उसी प्रकार प्राचीन भारत में गण व्यवस्था होती थी और उस गण व्यवस्था का प्रमुख *"गणपति"* होता था।
~ *"गणपति बाप्पा मोरया"* अर्थात ~ मौर्य राजाओ में गणपती *"चन्द्रगुप्त मोरया"* ~
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*मूलनिवासीयों के राजाओं का कार्यकाल ई.पू.*
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1~चन्द्रगुप्त मौर्य 323~299 ई.पू.
2~बिन्दुसार 299~274 ई.पू.
3~सम्राट अशोक 274~138 ई.पू.
4~कृंणाल मौर्य। 238~231 ई.पू.
5~दशरथ मौर्य 231~223 ई.पू.
6~सम्प्रति मौर्य 223~215 ई.पू.
7~शाली शुक्त 215~203 ई.पू.
8~देव वर्मा मौर्य 203~196 ई.पू.
9~सत्यधनु मौर्य 196~190 ई.पू.
10~बृहद्रथ मौर्य 190~184 ई.पू.
✅ इस मौर्य शासन से पहले प्राचीन भारत में एक राज घराने में *"सिद्धार्थ गौतम"* नामक राजकुमार का जन्म हुआ था। वही आगे चल कर *"शाक्य गण"* का प्रमुख हुआ।
कालांतर में सिद्धार्थ ने बुद्धत्व प्राप्त किया।
✏अब सच्चे गणपति और काल्पनिक गणपति के बीच में का फर्क समझ लेते है...
✅कूछ चालाक ब्राहमणों ने सच्चे गणपति को काल्पनिक गणपति बनाया। शाक्य गण का प्रमुख इस नाते से लोग "बुद्ध "को गण का पति अर्थात गणपति कहने लगे थे।
उसी प्रकार-
✅जब बुद्ध लोगों को धर्म का सन्देश देते थे तब उनके संदेशों में दो शब्दों का मुलभुत रूप से उल्लेख होता था, वे शब्द है,
1~ चित्त और 2 -मल्ल
✅ चित्त यानि शरीर (मन) और मल्ल यानि मल (अशुद्धी) तुम्हारे शरीर व मन से मल निकाल देने पर तुम शुद्ध हो जाओगे और दुःख से मुक्त हो जाओगे। ऐसा बुद्ध कहते थे।
इसी संकल्पना को विकृत कर, ब्राह्मणों ने काल्पनिक पार्वती के शरीर से मल निकालकर एक बालक (अर्थात गणपति) के जन्म की कहानी को प्रस्तुत कर दी।
✅ गौतम बुद्ध नागवंशी थे। पाली भाषा में "नाग "का अर्थ " हाथी "होता है। अर्थात बुद्ध हाथी वंश के थे।
इसलिए इस नए जन्मे बालक (सिद्धार्थ) को हाथी के स्वरुप में बताया गया है।
~ अर्थात, हाथी बुद्ध के जन्म का प्रतीक है और हाथी बौद्ध धर्म का भी प्रतीक है। इस सत्य को छुपाने के लिए, ब्राहमणों ने काल्पनिक पार्वती के काल्पनिक पुत्र को हाथी की गर्दन लगाई, किसी अन्य प्राणी जैसे शेर, बैल, घोडा, चूहा की गर्दन नहीं लगाईं......!!!
**** *अष्टविनायक का सत्य* ****
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✅जगत में दुःख है, यह बात दुनिया में सबसे पहले बताने वाला बुद्ध ही था और दुःख को दूर कर सुखी होने के लिए अष्टांगिक मार्ग भी बुद्ध ने ही बताया।
*"अष्टांगिक"* मार्ग का अवलम्ब करने से दुःख नष्ट होता है। यह बुद्ध ने सिद्ध कर दिखाया। यह आठ नियम या सिद्धांत विनय से सम्बंधित है।
इसलिए, बुद्ध को 'विनायक' कहा गया और *"आठ मार्गो"* पर विनयशील होने से *"अष्टविनायक "* भी बुद्ध को ही कहा गया।
✅अर्थात, अष्टांगिक मार्ग से अष्टविनायक होकर दुःख को नष्ट कर सुख की प्राप्ति करवाने वाला बुद्ध था। इसलिए, बुद्ध को लोग 'सुखकर्ता और दुखहर्ता' कहने लगे।
✅इस सत्य को दबाने के लिए ब्राहमणों ने काल्पनिक गणपति को अष्टविनायक भी कहा और सुखकर्ता दुखहर्ता भी कहा।
इसका मतलब यह है की, गणपति दूसरा तीसरा कोई नहीं है,
बल्कि, तथागत बुद्ध ही गणपति है। ब्राहमणों ने बुद्ध अस्तित्व को नष्ट करने के लिए काल्पनिक गणपति का निर्माण किया।
बौद्ध-ग्रंथों का ब्राह्मणीकरण करते समय ,उन्होंने कई गलतियां की, जिससे ब्राह्मणों की बदमाशी उजागर होती है।
*वे गलतियां इस प्रकार है
✅शिव शंकर जब देवों का देव है, तो उन्हें गणपति का सर धड से अलग करते समय उन्हें, यह पता क्यों नहीं चला कि वह उसका ही पुत्र है?
✅जब गणपति देव था, तो उसे यह कैसे पता नहीं चला की, जिसे वह रोक रहा है वह उसका ही बाप है?
✅शंकर को यह कैसे पता नहीं चला की, बिना उसकी अनुपस्थिति में उसकी बीवी गर्भवती कैसे हो गयी, जब्कि वह नौकरों की सुरक्षा में थी।
✅अगर पार्वती शरीर के मैल से बालक बना सकती है, तो वह उसी मैल से बालक का सिर क्यों नही बना पाई? खैर ये कहें की पार्वती नहा कर आई थी।
✅लेकिन, जीवन मृत्यु का शाप वरदान देने वाले शंकर की शक्ति कहाँ गई थी ? शंकर ने एक निष्पाप हाथी की जान क्यों ली ?
✅सोचे की क्या किसी छोटे से (बालक) की गर्दन में हाथी का सिर फिट कैसे बैठ गया ?
अफसोस है कि परशुराम ने गणेश का दांत भी तौड दिया, मगर सभी जौडना भूल गये!
आगे कृतयुग में गणपति का वाहन सिंह था और उसके १० हाथ थे।
त्रेतायुग में उसका वाहन मोर था और छ: हाथ थे।
द्वापरयुग मेंउसका वाहन मूषक अर्थात चूहा था और चार हाथ थे।
अगर अलग अलग युग में वह हाथ और शरीर कम ज्यादा कर सकता था।
तो, उसने खुद के सिर का निर्माण क्यों नहीं किया ?

✅प्राणी हत्या से जन्मे गणपति को सुखकर्ता, दुखहर्ता कैसे कहा जा सकता है ?
जब्कि विघटन गणेश व शिव के बीच हो गया था।

✅ *"शिव पुराण"* के अनुसार पार्वती ने बनाए मैल के गोले पर गंगा का पानी गिराया और गणेश  का जन्म हो गया ।
गणेश =गण+ईश यानी गण व मालकिन का अंश, गण के ईश्वर से गणपति कर दिया.....

*ब्रम्हवैवर्त पुराण ने तो हद ही कर दिया है !!!👇*

✅पार्वती वह मैल का गोला ब्रह्मदेव के पास ले जाती है और उसे जिन्दा करने के लिए विनती करती है, तब उस पर ब्रह्मदेव अपने वीर्य का छिडकाव करता है और उस गोले का सर्वप्रथम  "मलेश" नाम का  गणपति बनता है।
फिर मल+ईश= मल,गन्दगी के ईश्वर कहलाता है।

✅अब प्रश्न यह है कि, गणपती शंकर का पुत्र था या ब्रह्मदेव का...? या दोनों का?

✅गणपति विवाहित है, ऋद्धी और सिद्धी दो पत्नियाँ  थीं। यह ब्रह्मदेव की दोनों लड़कियां उसकी दो पत्नियाँ है। अर्थात, ब्रह्मदेव के वीर्य से जन्म लेने पर गणपती ने अपनी ही बहनों के साथ शादी क्यों की ..?

✅ *"सौगन्धि का परिणय"* इस संगीत सूत्र के तीसरे अध्याय में गणपति का उल्लेख कामवासना(sex) के असुरों में से छठवां असुर जैसा उल्लेख किया है।

✅चन्द्रगुप्त मोर्य के मोर्य वंश का गणपति हुआ था। इसलिए ब्राहमणों ने *"गणपति बाप्पा मोरया"*  की घोषणाएँ कर दी ......
मोरया शब्द के बारे में ब्राह्मणों के इतिहास में कोई उत्तर नहीं है...
कर्नाटक में चन्द्रगुप्त मोर्य ने जैन धर्म का प्रचार किया था। इसलिए उस क्षेत्र में कई लोग खुद के नाम के साथ  मोरया नाम लगाते हैं ।
महाराष्ट्र में मोरे सरनेम भी मोर्य वंश का ही अपभ्रंश है।
संत तुकाराम  मोरे थे..

इस सत्य को छुपाने के लिए ब्राह्मणों ने यह अफवाह फैलाई की १४ वीं सदी में, एक मोरया नामक गोसवि हुआ और उसके नाम पर से मोरया शब्द गणपती से जुड़ गया! ब्राह्मण लोग भी झूठ पर झूठ की सीमा लांघ देते हैं!!

✅संत तुकाराम महाराज , शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज की हत्या करने के बाद ब्राह्मणों ने शिवशाही को पेशवाई में बदल डाला और बौद्ध गुफाओं और विहारो की जगह पर कब्जा क़र, वहां पर काल्पनिक देवी देवता को बिठाना शुरू किया ।
कार्ला की बुद्ध गुफा में बुद्ध माता महामाया को ब्राह्मणी *"एकविरा देवी"* का स्वरुप दिया,
जुन्नर के लेन्याद्रि बुद्ध गुफा में गणेश को बिठाकर उसे काल्पनिक अष्टविनायक गणपती का प्रमुख स्थल बता दिया, शेलारवाडी, पुणे की लेणी में शिवलिंग बिठाकर, कब्जा कर लिया ..आदि
इसके प्रमाण हैं..

✅सत्य इतिहास यह है कि, संपूर्ण प्राचीन भारत बौद्धमय था। अशोक सम्राट ने बुद्ध के बाद सारे भारत को बौद्धमय बनाया था। लेकिन ब्राम्हण समाज ने अशोक के वंश को ख़त्म कर बौद्ध धर्म में मनुवादी ब्राह्मणों ने मनगढ़ंत विचार और इतिहास की मिलावट की और 33 कोटि देवताओं को अवतरित कर दिया और एक दूसरे का अवतार घोषित कर दिया।

✅भारत महाद्वीप  में वास्तव में शाक्य गण के गणपति हुए हैं और, उसी गणपति शब्द का ब्राह्मणों ने ब्राह्मणीकरण करके, समाज में झूठे गणेश में  गणपती को जन्म दे दिया हैं।

✅ इस झूठे काल्पनिक गणेश उर्फ गणपती के नाम पर सम्पूर्ण समाज को अन्धश्रद्धा में डूबो दिया और त्यौहार उत्सव के नाम पर ब्राह्मणों ने समाज से धन दौलत लूटना व अवतरित देवी देवताओं के मन्दिरों के नाम पर जगह-जगह भूमि पर कब्जे करना शुरु कर दिया।

✅शिवाजी महाराज महाराष्ट्र के कूर्मि अर्थात मराठा (शुद्र) मूलनिवासी राजा थे । शिवाजी महाराज की हत्या ब्राह्मणों ने ज़हर दे कर  की। जिसका बदला संभाजी महाराज ने अनेक ब्राह्मणों को हाथी के पैर के नीचे कूचलवा कर, मरवा  दिया था। इससे आहत होकर ब्राह्मणों ने छल-कपट  से संभाजी महाराज को औरंगज़ेब के हाथों में पकड़वा दिया और पूना शहर के चौराहे पर  मनुस्मृति के मुताबिक जीभ-सर कटवा कर उन्हें मार डाला। उस दिन ब्राह्मणों ने उनके पेशवा राज्य में, उत्सव के रूप में शक्कर बाटकर, उस दिन को *"गुढीपाडवा त्यौहार"* का नाम दिया ।

इस तरह ब्राह्मणों ने शिवाजी और संभाजी महाराज दोनों का क़त्ल किया और मराठा वंश को खत्म कर स्वयं पेशवा ब्राह्मण शासन करने लगे।

🌹शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद महात्मा ज्योतिराव फुले ने रायगढ़ में उनकी समाधि ढूंढ़ निकाली थी और जून 1869 में शिवाजी महाराज के शान में *"पेवाडा "* लिखा। महात्मा ज्योतिराव फूले ने 1874 में महाराष्ट्र के बहुजनो के लिए पहली बार शिवाजी जयंती (शिव जयंती) मनाई। बहुजनों को जागृत करने के लिए फुले जी ने *"शिवजयंती उत्सव"* को, हर साल दस दिन तक मनाना चालू किया।
✅महाराष्ट्र में महात्मा ज्योतिराव फूले द्वारा बहुजन शुद्रो~अतिशुद्रों (sc~st~obc) में "शिव जयंती "के प्रभाव और जागृति के कारण ब्राह्मण डरने लगे। इसलिए, रत्नागिरी (महाराष्ट्र) के बाल गंगाधर तिलक नामक कट्टर ब्राह्मण ने *"शिव जयंती"* से बहुजनों में बढ़ती जागृति और प्रभाव को ख़त्म करने के लिए, विरोध स्वरूप  गंगाधर-तिलक ने सन् 1893-94 में गणपति महोत्सव का सार्वजानिक आयोजन किया ।

👉क्या 1893~94 से पहले महाराष्ट्र में गणोंत्सव मनाया जाता था.....??? उत्तर - बिलकुल नहीं!!!
~~ इसका कोई भी प्रमाण इतिहास में  उपलब्ध नहीं है .....!!!!

👉ब्राह्मणों के मुताबिक भगवान् शंकर का ठिकाना हिमालय मे उत्तर भारत के आसपास है, तो उन्होंने *गणेश (शंकर पुत्र)* को महाराष्ट्र में ज्यादा प्रचलित क्यों कारवाया....
उत्तर भारत में क्यों नहीं .......?

➡इसका मुख्य कारण यह है कि, शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज की हत्या ब्राह्मणों ने की थी। इस बात का ब्राह्मणों को डर था की, अगर इस तथ्य का पता मूलनिवासियो को चलेंगा तो ब्राह्मणों का अंत निश्चित् है ।
इसलिए, ब्राह्मणों ने महाराष्ट्र में महात्मा ज्योतिबा फूले के शिव जयंती उत्सव से जागृत हो रहेे मूलनिवासी शुद्रो को शिवाजी व संभाजी महाराज की हत्या ब्राह्मणों द्वारा हुई है, यह पता ना चले, इसके लिए, उनका ध्यान डाइवर्ट करने के हेतु उन्होंने *"शिव जयंती"* महोत्सव के विरोध में गणपति महोत्सव को महाराष्ट्रा में सार्वजनिक कर दिया ।

इसी तरह भारत के विभिन्न धर्मों, ग्रंथों व देवी देवताओं  का, मनुवादी ब्राह्मणों ने मनघडंत  ब्राह्मणीकरण कर दिया। भारत के अन्य धर्मों,  समुदायों के देवता, महात्माओं को विष्णु व शिव का अवतार और संत, ऋषि मुनियों को ब्राह्मण की औलाद बताकर प्रचार-प्रसार किया। जिस किसी व्यक्ति ने इनके ब्राह्मणीकरण का विरोध किया उन्हें संत तुकाराम, स्वामी दयानंद, कुलबर्गी, रैदास आदि की तरह मरवा दिया गया।


हर मूलनिवासियों के त्यौहारों में  मनघडंत कथाएँ बनाकर, मनुवादी ब्राह्मणों ने काल्पनिक व अवतारवादी देवी देवता व त्यौहार घूसेड दिये।  सामाजिक रुप से अमर्यादित,घृणित व अपमानित रिश्ते-नाते,  लोग व कुकृत्यों को ,मनुवादियों ने देवी देवता के नाम पर महिमा-मंडन कर पूजनीय बना दिया

जब शिव पार्वती के पुत्र गणेश का सर कटा  तो वह मर गया ठीक उसी प्रकार जब हथनी के बच्चे का सर काटा तो वह भी मर गया |जब दोनो मर गये तो हाथी का सर जोड़ने पर जिंदा कैसे हो गये जबकी प्राण किसी मे नही है ? वह प्राण किसका था ? वह प्राण किसके पास था ?? वह प्राण कहाँ और कैसे रखा था ? जब दो  मरे हुए को जोड़कर जिंदा किया जा सकता है तो गणेश के वास्तविक रूप को ही क्यो नही जोड़ा गया ?  बिल्कुल सीधा व सधारण सा प्रश्न है  , जिसका जवाब न किसी ने दिया और न ही दिया जाना सम्भव है | अगर ये सवाल पढ़कर आप लोगो बुरा लगा तो हाथ जोड़कर माफी माँगता हूँ , परन्तु आप एक बार ईष्या , द्वेश, जलन, को छोड़कर ईमानदारी से विचार करना और अपनी अन्तरात्मा से जवाब माँगना !! सच्चाई की झलक जरूर दिखाई देगी जबकी पुराण तो गप्प और झूठ के आधार पर लिखा गया है | इसलिए तो कहता हूँ पुराण मे विज्ञान , ना बाबा ना! पुराण मे तो केवल मानने वाली बात है वैज्ञानिक नही। कुछ अन्य विचारनीय प्रश्न :-

१. हाथी का रूधिर वर्ग ( ब्लड ग्रुप ) मानव से कैसे संयोग कर सकता है ??
२. हाथी की माँसपेशियो के साथ मनुष्य का संयोग कैसे हो सकता है ??
३. किस विज्ञान से हाथी के मस्तक के साथ मनुष्य के धड़ का संयोग सम्भव है ??
४. हाथी के चर्म की मोटाई ज्यादा और मनुष्य का सधारण फिर संयोग कैसा ??

ये शायद पाखंडी हिन्दू धर्म के ठेकेदारों और पंडित का विज्ञान हो सकता है  केवल पाखंडी पंडित के विज्ञान मे ही कुछ भी सम्भव है | क्योकी वहाँ मानने वाली बात है और अगर आप इसपर सवाल कर दे तो आपको मुस्लमान की उपाधी मिलती है जैसे कुरान पर सवाल करने वालो पर मुस्लमान गुमराह या काफिर की उपाधी देते है | इन सवालो को कम से कम दस हिन्दू धर्म के ठेकेदारों और पंडितो से पूछा पर जवाब किसी के पास नही | सभी का एक ही जवाब था यह सब श्रद्धा की बाते है | हमारे पूर्वजो ने माना है और पूजा है |

 (गनेश) वह किसी शिव पार्वती का बेटा नही , उसके हाथ पैर नही , उसका पसंदीदा भोजन लड्डू नही, चूहे की सवारी नही | ए सब अंधविश्वास पाखंड आडंबर हैं और मनगढ कहानी है



मैल से बालक पैदा हुआ , फिर गर्दन कटी , फिर हाथी की नई खोपड़ी जुड़ी . . .फिर उस गणेश ने खूब शरारत की . . .खेला कूदा , चूहे की सवारी भी की . . .और कुछ सालों बाद जवान भी हुआ . . . .फिर धूमधाम से उसकी शादी भी हुई . . . . . . .
उसके बाद . . . . . .उसके बाद . . . ...फिर उसके बाद . . .!!! ! ! ! !!
अरे फिर उसके बाद क्या हुआ ??????????
अरे जब बच्चा बड़ा हुआ . . .फिर जवान हुआ . . .तो बूढा भी हुआ ही होगा . . . .उसके बच्चे उसके नाती पोते भी हुए ही होंगे . . . . .अरे तो फिर गणेश का क्या हुआ . . . .?????
और ये जितने भी भारतीये भगवान  हैं उनका क्या हुआ ?????आज कल कर क्या रहे हैं वे सब ??????......
सीधी सी बात . . .लेखक ने जहां तक कथा कहानी लिखी . . .वहीं तक हमें पढने को मिली . . . .लिखाई बंद . . .कहानी अंत . . . .काल्पनिक कहानियों का कैसा परिवार कैसी पूरी कहानियां . . . .एक बच्चा पैदा हुआ . . .उसे हवन पूजन करवा कर Shaktiman बनाया गया . . . .
वो शैतानों को मारता था,, कपाला जैकाल किल्विश को मारता था,, जनता को खतरे से बचाता था . . .फिर उसकी शादी गीता विश्वास से हो गई . . . . . . . .....अरे फिर उसके बाद क्या हुआ . . . . . .???????
shaktiman बूढा हुआ कि नहीं ?????
उसके बच्चे पोते नाती हुए कि नहीं . . . . .?????
अरे मूर्खों . . . . Director ने कहानी यहीं पर बंदकर दी . . .script खत्म कहानी भी खत्म . . . .
Shaktiman कोई वास्तविक पात्र थोड़ी था जो उसकी आगे की कहानी लिखी जाती . . . . ....
यही हाल भारत के शिव गणेश पार्वती विश्नू ब्राह्म्मा नामक काल्पनिक पात्रों का भी है . . ..
इसमे मेरे मंन मे कुछ सवाल है।
1 इतना मैंल पार्वती पर कहा से आया।
2 गनेश की मृत्यु कब ओर कहा हुई
3 इसको पानी मे ही क्यों डुबाया जाता है ओर जब भी डूबता है तो 10_20 को क्यों लेकर डूबता है ये। क्या ऐसा भी कोई भगवान होता है जो भक्तो को मरवाता है।
4 ये कोनसी जगाहा रहता था।
5 इसने चुहे पे कितने देश की सवारी की या भारत देश मे ही कहा कहा घूम लीया।
6
इसको हाथी का मुह कैसे लगा उस हाथी का blood group क्या था
7 इसको भारत के बाहर कोई भी क्यों नही जानता।
कोईभी सवाल का जवाब दे सकता है।
अगर नही दे सकता तो तो इसको भी गप्प समज के जल प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण को बचाये तथा अपना कीमती वक्त बचाकर पढ़ाई या अपना काम करे
शौजन्य अंधविस्वास की कैद रिटर्न


*भारत दुनियां का एकमात्र ऐसा देश हैं जहाँ.....*


*कन्या दान होती हैं*

*मृत लोगो को भोजन खिलाया जाता हैं*

*जानवर को माँ कहाँ जाता हैं और उसी माँ का दूध बेचा जाता हैं और यदि ये माँ दूध न देवे तो इस माँ को ही बेच देते हैं इसके लाल*
*जानवर का पेशाब पिया जाता हैं*
*प्यासे को पानी पिलाने से पहले उसकी जाति पूछी जाती हैं*
*जानवरो के रूप में भगवान अवतार लेते रहे हैं*
*महामानवों को राक्षस की उपाधि दी जाती हैं*
*जिसकी पूजा करते हैं उसके दर्शन होने पर कत्ल करते हैं*
*माँ बाप के लिए वृद्ध आश्रम खोले जाते हैं और जानवरों को माँ बाप बनाकर पुज्वाया जाता हैं*
*ज्यादातर भगवान माँ के पेट से जन्म न लेकर जानवरो से पैदा हुए*
*यहाँ 33 करोड़ देवी देवता विराजमान हैं*
*लड़के को शादी के नाम पर बेचा जाता हैं लड़की पक्ष भुगतान करता हैं*
*अनपढ़ लोगो से ज्ञान लिया जाता हैं।।*
*इत्यादि ।*
*भारत ही ऐसा देश है जहाँ*
*मुसलमानों को हमेशा अपनी देशभक्ति का सबूत देना पड़ता है,*
*शूद्र को अपनी क़ाबलियत का,*
*और औरतो को अपने चरित्र का*


*- डॉ बी आर आम्बेडकर*


 *तीज*

कल मेरी पत्नी एवं उनकी सहेली तीज पर *हरितालिका तीज* व्रत कथा कह रही थी, मैं बगल में कम्प्यूटर पर काम करते हुये  सुन रहा था।
        पार्वती जी शिव जी से पूछती है कि आप जैसे वर हमें कई जन्म तक कैसे मिल सकता है तो शिव जी कहते हैं, तुम्हारी शादी तो विष्णु से तय हो चुकि थी, पर तुम अपने दोस्त के साथ यही व्रत आज के ही दिन की थी इसीलिए मैं तुम्हारा पति बन पाया।
         अब सभी औरतों के लिये इंस्पिरेशन, शिव जी एवं पार्वती के माध्यम से ब्राह्मणिक लूट एवं डर सुनिए।
     आज के दिन तीज करने से महिलाएं अखण्ड स्वभाग्यवती, कई जन्मों तक शिव जैसे वर एवं स्वर्ग प्राप्त करेगी।
           नहीं करने नरकगामी, पानी पीने पर मच्छली, फल खाने पर बन्दर, सो जाने पर अजगर, पति से झुठ बोलने पर मुर्गा, अनाज खाने पर सुअर, मांस खाने पर पिशाचिन, मक्खी इत्यादि का डर पैदा किया गया है।
           इसके बाद अब ब्राह्मणों को बांस के दौरी या पीतल बर्तन में भर कर अन्न, वस्त्र इत्यादि दान करें। न करने पर नरक गामी।
          यानि पूरा खेल *पुनर्जन्म* वो भी किसी भी जीव में, *स्वर्ग -नरक* एवं हर जन्म में वही *शिव जी जैसे रोमियो, राँझा, मजनू, महिवाल, फरहात पति* मिलने के आकांक्षा में होता है।
          हमें जानना चाहिये आज अन्न एवं पीतल का महत्व भले ही घट गया है, पर 40 साल पहले साधारण परिवार में दोनो शाम भोजन एवं पीतल का बर्तन पाना कठिन होता था, क्योंकि मिट्टी बर्तन में ही खाना बनता था। उटेंसिल के लिये बर्तन भी अंग्रेजों के बाद ही शुरू हुई थी।
          अब समझ आ गयी होगी कोई 18वीं सदी में पीतल उटेंसिल के बाद हीं ब्राह्मणों द्वारा किताब लिखी गयी। जिसमें भोजन एवं वस्त्र जो आम जन के लिये काफी कठिन थी, पर ब्राह्मणों को देना अनिवार्य बना दी गयी। नहीँ तो नरक एवं सुअर में अगला जन्म कन्फर्म।
            अब आज की बात:
        सुबह इन पतिव्रताओं की सहेली इंतजार में थी कि पंडित जी कब आयेंगे मिष्टान, कपड़े एवं पीतल वर्तन में अन्न लेने के लिये। मैंने मना किया ऐसा करने को। पर, कई औरतें खुद जाकर मन्दिर में दान कर चुकि थी।
       जब रास्ते से गुजर रहा था तो गोला रोड, पटना के शिव मंदिर पर नजर पड़ी, वहाँ मन्दिर का चबूतरा फल, पिरकिया, अनरसा, चावल, दाल, धोती कुर्ता से लदा था। आगे बढ़ने पर ऐसा हीं दृश्य कई मंदिरों में दिखी। वहाँ एक एक ब्राह्मण पुजारी के पास कई बोड़ें समान थे जो ढोने के लिये टेम्पू खोज रहे थे। ब्राह्मण बोल रहे थे अच्छा हुआ घर घर जाना नहीं पड़ता अब तो यहाँ ही महिलाएं सब समान पहुंचा देती हैं।
        यही धर्म का बिजिनेस है। यहाँ पढ़ कर भी लोग बाढ़ ग्रस्त को नहीं, नक्कारा ब्राह्मण को पेट भरने के लिये मन्दिरों में समान पहुचाने के लिये मारामारी हो रही है।
   यही है ब्राह्मणों द्वारा अपने बच्चों के लिये धर्म का जन्म जन्मांतर तक का व्यापार जो पुनर्जन्म का डर के द्वारा सुनिश्चित की गई है।

     डॉ निराला

3 comments:

  1. बुद्ध जब करीब चालीस वर्ष के थे तो उन्हेँ बुद्धत्व की घटना घटी । जब वह अस्सी वर्ष के थे तब उनकी मृत्यु हुई , तो वह चालीस वर्ष और जिए । जिस दिन वह शरीर छोड़ रहे थे आनंद रोने लगा और बोला , ' हमारा क्या होगा ? आपके बिना हम अंधकार मेँ गिर जाएंगे । आप जा रहे हैँ और हम अभी संबुद्ध भी नहीँ हुए । हमारी अपनी ज्योति अभी जली नहीँ और आप जा रहे हैँ । हमेँ छोड़कर न जाएं ! '
    .
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    कहते हैँ कि बुद्ध ने कहा , ' क्या कह रहे हो आनंद ? मैँ तो चालीस वर्ष पहले ही मर गया था । यह अस्तित्व तो केवल आभास - अस्तित्व था , छाया मात्र था । किसी तरह चल रहा था , लेकिन उसमेँ बल नहीँ था । यह तो अतीत का ही आवेग था ।'
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    यदि तुम एक साइकिल को पैडल मार रहे हो , फिर रूक जाओ और पैडल न मारो , तुम साइकिल को कोई सहयोग नहीँ दे रहे , फिर भी आवेग के कारण , अतीत मेँ तुमने जो ऊर्जा दी है उसके कारण वह कुछ समय तक चलती रहेगी ।
    .
    .
    जिस क्षण कोई बुद्धत्व को उपलब्ध होता है , उसका सहयोग समाप्त हो जाता है । अब शरीर अपने ढंग से चलेगा । उसके पास अपना आवेग है । कई जन्मोँ से उसे आवेग दिया गया है । उसका अपना जीवन - काल है जो पूरा होगा । लेकिन अब , क्योँ कि शरीर के साथ कोई आंतरिक बल नहीँ है तो वह साधारण लोगोँ से अधिक बीमार हो सकता है ।
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    श्री रामकृष्ण कैँसर से मरे । महर्षि रमण कैँसर से मरे । महावीर पेट के दर्द से मरे , अल्सर जैसा कुछ था , कई वर्षोँ तक वह पीड़ित रहे । शिष्योँ को तो बड़ा धक्का लगा , लेकिन अपने अज्ञान के कारण वे समझ नहीँ पाए ।
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    एक बात और समझने जैसी है । जब कोई व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाता है तो यह उसका अंतिम जन्म होता है । तो सारे अतीत के कर्म और पूरा लेन - देन इसी जन्म मेँ पूरा होना है । पीड़ा -- यदि उसे कोई पीड़ा होनी है -- बहुत सघन हो जाएगी । तुम्हारे लिए कोई जल्दी नहीँ है , तुम्हारी पीड़ा तो कई जन्मोँ पर फैल जाएगी । लेकिन एक रमण के लिए तो यह अंतिम जन्म है । जो भी अतीत से आया है उसे पूरा होना है । हर चीज़ मेँ , हर कर्म मेँ एक सघनता होगी । यह जीवन एक प्रगाढ़ जीवन हो जाएगा ।
    .
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    जब कोई व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाता है , सब लेन - देन पूरा करना होता है : दुकान बंद करने का समय आ गया । लाखोँ जन्मोँ की यात्रा है और सारे हिसाब - किताब साफ करने हैँ , क्योँ कि और कोई अवसर नहीँ मिलेगा । बुद्धत्व के बाद बुद्ध पुरूष एक दूसरे ही समय मेँ जीता है और उसे जो भी होता है वह गुणात्मक रूप से भिन्न होता है । लेकिन वह " साक्षी " बना रहता है ।
    .

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  2. *मुझे गणेश चतुर्थी की शुभकामना देने वाले पुरुषों के घर गणेश जैसा ही पुत्र पैदा हो और स्त्रियों को गणेश जैसा पति मिले!!*

    क्यों कैसा लगा ??

    बुद्धि का इस्तेमाल करें :-
    👉क्या मैल या हल्दी से डायरेक्ट 10 - 15 वर्ष के बच्चे पैदा हो सकते हैं ??
    👉त्रिलौकि नाथ को ये कैसे पता नहीँ चला जिससे वो युद्ध करने जा रहे हैं वो उनकी पत्नी दुआरा उनकी अनुपस्थिति में बनाया गया उनका पुत्र है i
    👉जब परशुराम के पिता जम्दग्नि अपनी पत्नी रेणुका की परशुराम द्वारा काटी गरदन पुन:- जोड़ सकते हैं तो भगवान शंकर उसी गर्दन को पुन: क्यों नहीँ जोड़ पाये ! हाथी का ही क्यों लगाया ??
    👉या माता पार्वती ने मैल से एक ऐसी दूसरी गर्दन या एक प्राणी क्यों नहीँ बनाया जिसकी गर्दन उस बालक गणेश के धड़ पर बैठ जाती !
    👉एक निर्दोष हथिनी को पुत्र विहीन क्यों किया ! और उस निर्दोष हाथी के बच्चे को किस बात का दंड दिया ??
    👉जब हर इंसान का हर इंसान को बिना ब्लड ग्रुप जांचे ब्लड नहीँ चढ़ सकता ! तो
    उस सर्जरी में एक हाथी का ब्लड एक इंसान से कैसे मैच कर गया !

    ये ऐसे प्रश्न हैं जिनका किसी धर्मगुरु के पास कोई जवाब नहीँ है ; सिवाय हमें बेवकूफ बनाने के ?

    आज के समय गणेश जी की उत्पत्ति के वृतांत को विश्व पंचायत *संयुक्त राष्ट्र संघ* के पटल पर रखा जाये तो क्या आप जानते हैं की विश्व के विद्वानो में हमारे मानसिक स्तर को कहाँ रखा जायेगा ??

    वैसे आपको बता दूँ ; मैं भी हिंदू हूँ !
    पर हर बात को आँख बँद करके मान लेने वाला नहीँ हूँ !
    तर्क लगाना सीखें!

    सहमत हैं तो आगे अवश्य भेजें !
    वरना डिलीट तो करोगे ही !

    *हमारे देश में कभी धर्म के नाम पर:-*

    👇

    👉स्त्रियों को पति की चिता के साथ जिंदा जला दिया जाता था !
    👉स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था !
    👉स्त्रियों को शनि या हनुमान मंदिरों में जाने की मनाही थी !
    👉स्त्रियों को अंतिम संस्कार में मुखाग्नि देने की मनाही थी !
    👉स्त्रियों को देवदासी बनाकर उनका शारीरिक शोषण किया जाता था !
    👉एक देश में एक विशेष वर्ग को शिक्षा से दूर रखा गया था !
    👉नरबलि दी जाती थी !
    👉समुद यात्रा करना पाप था !
    👉और भी बहुत कुछ जो मेरी जानकारी में नहीँ है ! वो सब धर्म के नाम पर होता था !

    इन सबके विरूद्द आवाज़ उठाने वालों को भी कभी विरोध झेलना पड़ा था !
    गालियाँ भी खायी होंगी
    अपमान भी सहा होगा !
    परंतु परिणाम आपके सामने है ! जीत सत्य की हुईं है !

    आज आपको कल्पनिक देवी देवताओं के चक्कर में मूर्ख बनाया जा रहा है ! सरकारें वोट बेंक खिसकने के डर से कुछ नहीँ बोलती ! उनका सीधा सा फंडा है -- मूर्खों को मूर्ख ही रहने दो ! अगर तर्क करना सीख गये तो आज धर्म पर सवाल करेंगे ; कल हम पर !
    बजाने दो सालों को घंटा !

    इस धर्म की कुरीतियों के विरूद्द आवाज़ उठाकर हमारे पूर्वज आज यहाँ तक लाये हैं !

    धर्म हमारा है ; तो इसमे सुधार के लिये आवाज़ भी हमें ही उठानी होगी ! सत्य से डर कैसा !
    धर्म गुरु ; और पन्डे पुजारी तो इसे बढावा देंगे ही ! इसमे उनका स्वार्थ जो है !
    अत:-
    आपसे विनम्र निवेदन है की आशाराम परमानन्द और राम रहीम जैसों के अनुयाइयों की तरह अंध भक्त न बने रहें ! गणेश की काल्पनिक उत्पत्ति पर प्रश्न करें !

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  3. जय भीम जय मूलनिवासी

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