लालू प्रसाद यादव जी विपक्षी पार्टियो को एक करने के लिए रैली कर रहे है जिसमे सपा, तुणमूल सहित कई विपक्षी पार्टी हिस्सा ले रही है, बसपा का कोई प्रतिनिधि जायेगा या नही इसके बारे में अभी पक्का नही पता है. अब फेसबुक पर, ट्विटर पर, व्हाट्सअप्प पर दलित चिंतक, लेखक दिन रात मायावती की बुराई करने में लगे हुए है. कह रहे है की लालू प्रसाद यादव व शरद यादव का खुलकर मायावती साथ नही देकर दलितों को गुमराह कर ही है. अरे भाई आपके लालू प्रसाद यादव व शरद यादव जी तब कन्हा था;
1.जब समाजवादी पार्टी दलित महापुरषो के नाम से बनी योजनाओ को खत्म कर रही थी. दलित महापूरषो के नाम से बने स्थलों के नाम चेंज कर रही थी.
2.जब समाजवादी पार्टी मान्यवर कांशीराम के नाम से बनी योजनाओ का नाम बदल रही थी व सरकारी सहायता को धीमी कर रही थी.
3.जब समाजवादी पार्टी प्रमोशन में आरक्षण बिल फाड़ रही थी. बिल फाड़ने की हिम्मत भाजपा की नही हुई लेकिन समाजवादी पार्टी यह कारनामा कर गयी.
4.जब समाजवादी पार्टी दलितों के हितो के लिए योजना बनाने की बात तो दूर की है पहले से ही चली आ रही योजनाओ को बंद या धीमा कर रही थी.
5.जब समाजवादी पार्टी दलितों को सबसे ज्यादा नुकसान देने वाला "भूमि सुधार अधिनियम" पारित कर रही थी. पहले दलितों को भूमिहीन होने से रोकने के लिए यह व्यवस्था थी की एक सीमा तक जमीन दलित केवल दलित को ही बेचेगा लेकिन इस नये अधिनियम में अब दलित की जमीन कोई भी खरीद सकता है. इसका नुकसान यह है की जबरदस्ती, दारू, धमका कर दंबग अब आसानी से दलितों को जमीन से महरूम कर देंगे. कुछ दिनों में दलितो के पास जो कुछ जमीन थी वो भी नहीं बचने की.
उपर बताई गयी यह सिर्फ कुछ बाते है. पोस्ट लम्बी हो जाएगी अगर पूरी\ लिखना शुरू किया तो इसलिए आगे आप खुद जोड़ सकते है. अब मायावती ने जो शीटो के बंटवारे की बात कही है वो तरिफ के काबिल इसलिए है क्युकी;
1. यह लोग कब पलटी मार जाए कुछ पता नही है. देखा क्या मायावती जी से गठबंधन की घोषणा करवाकर शीटो के बंटवारे में धोखा दे दे. और मायावती ने कुछ ऐसा नही कहा जो की इम्पोसिबल हो. अरे भाई जब गठबंधन करना ही है तो पहले शीट निर्धारित करने में क्या दिक्कत है.
2.बहुजन एकता नाम की टोकरी पिछड़े वर्ग ने दलितों के सर पर रख रखी है और जब दलित हितो की बात आती है तो आँखे दिखाते है.. इसका प्रमाण है की जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब समाजवादी पार्टी का यादव वोटर रोजाना दलितों को गरिया रहा था. समाजवादी पार्टी दुआरा दलितों के अहित के लिए की गयी किसी भी घोषणा पर "भांगड़ा डांस" कर रहा था. आज काफी यादव बुद्धिजीवी कह रहे है की "मायावती ने बहुजन एकता को नुकसान पहुचाया है" जबकि अखिलेश के समय यह लोग दलित विरोधी कार्यो पर "वाह-वाह" कर रहे थे.
3.बहुजन समाज पार्टी को गठबंधन में दिक्कत यह भी है की जब भी वो कोंग्रेस के साथ गठबंधन करती है तो जिन शीट पर कोंग्रेस खड़ी होती है उस पर दलित वोट उसे मिल जाता है लेकिन जो शीट बसपा के कोटे में आती है उस पर कोंग्रेसी बसपा को वोट करने की जगह भाजपा को कर देता है.
अब जो दलित बुद्धिजीवी, लेखक, चिंतक दिन रात अपना समय मायावती विरोध में लगा रहे है उन्हें यह समझ लेना चाहिए की;
1.आपके लालू प्रसाद यादव व शरद यादव को अगर बहुजन की इतनी ही चिंता है तो "दलित प्रधानमन्त्री" की घोषणा कियु नही कर देते. दलित अभी भी इनसे संख्या में काफी ज्यादा है.
2.जब इन्द्रजीत गुजराल को प्रधानमन्त्री बनाया जा रहा था तब आपके इन्ही साथियो ने दलित प्रधानमन्त्री नहीं बनाया जबकि उस समय राम विलास पासवान रेस में सबसे आगे थे.
3.इसलिए पूर्व के अनुभवो के आधार पर दलितों को अपनी जरूरत महसूस करवानी है. जनता पार्टी से लेकर तीसरे मोर्चे के अंतर्गत दलित प्रधानमन्त्री ही इसलिए नही बनाया गया है क्युकी दलित एक पक्ष के तौर पर अपने को पेश नही कर पाए. केवल मायावती ही दलितों को भारतीय राजनीती में एक पक्ष बनाने में कामयाब हुई है.
4.मायावती अगर व्यक्तिगत हित रखती तो हर सरकार में अपने वोट प्रतिशत के अनुसार केबिनेट मंत्री बन सकती है और साथ में अपनी पार्टी के दो या तीन को भी आसानी से मंत्री बनवा सकती है. लेकिन रामविलास पासवान, अठावले की तरह फिर चुपचाप दलित विरोधी कार्य होते हुए भी देखना पड़ता. इसलिए दलितों को एक पक्ष बनकर सत्ता में आने में फायदा है.
5.सत्ता की इतनी जल्दी दिखानी अपने सर पर पत्थर मारने के बराबर है. अरे भाई हद से हद क्या होगा दलित आरक्षण, अधिकार ही तो खत्म होंगे. हो जाने दीजिये, अभी भी कौन से सही उदेश्य में मिल रहे है. बल्कि इससे यह लाभ होगा की दलितों की सभी उपजातियो को अक्ल आयेगी जिसके बाद एक छतरी के नीचे जमा होंगे. अभी थोडा थोडा करके जो मिल रहा है उससे दलितों में एकता नही हो पा रही है. जब सभी कुछ छीन जायेगा तभी सभी कुछ पाने की इच्छा उत्पन्न होगी और तभी एकता होगी.
इसलिए स्वयघोषित बुद्धिजीवी, चिंतको, लेखको, और आजकल बाबा साहब के नाम पर गाने व नाचने वाले कविओ को यह समझ लेना चाहिए की "बाबा साहब ने जो यह स्लोगन की इस देश के शासक बनना है" तब तक पूरा नही होगा जब तक अपने को एक पक्ष के तौर पर भारतीय राजनीती में प्रस्तुत नही करेंगे. मायावती ने सफलतापुर्वक अपने आप को भारतीय राजनीती में एक पक्ष के तौर पर प्रस्तुत करा है. राजनीती में जीत-हार तो चलती ही रहती है. क्या फर्क पड़ेगा अगर अगले 20 साल भी एक भी शीट नही आयेगी. कम से कम एक पक्ष तो समझा जायेगा. अभी भी कौन सा रामविलास पासवान व अट्ठावले के मंत्री बन्ने से दलितों को लाभ हो रहा है. इसलिए सत्ता के लिए इतने उतावले मत बनिए. और अगर बन ही रहे है तो मायावती की जगह अपना आधार बनाए. किसने रोका है.
C/P. An Excellent Analysis.
*जानें मायावती ने राजद की पटना रैली में शामिल होने के लिए रखीं शर्तें*
पटना में 27 अगस्त को प्रस्तावित राष्ट्रीय जनता दल की रैली में शामिल होने से पूरी तरह किनारा कर बसपा प्रमुख मायावती ने विपक्षी एकता के प्रयासों को तगड़ा झटका दिया है। *आज गुरुवार* को पत्रकार वार्ता में मायावती ने स्पष्ट किया कि सीटों का सम्मानजनक बंटवारा न होने तक बसपा किसी स्थानीय या राष्ट्रीय दल के साथ मंच साझा नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि बसपा सेक्युलर ताकतों की एकजुटता की प्रबल पक्षधर रही है लेकिन, पिछले चुनावी अनुभव अच्छे नहीं रहे। टिकटों के बंटवारे के वक्त पीठ में छुरा भोंकने वाले दलों के कारनामे जनता को भी मायूस करने वाले रहे हैं।
पटना रैली से तीन दिन पहले मायावती ने गुरुवार दोपहर बाद अचानक पत्रकार वार्ता बुलाकर बसपा का रुख स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि पटना रैली में बसपा के शामिल कराने को राजद नेतृत्व द्वारा विशेष कोशिश की जाती रही है। रैली में बसपा के शामिल होने के सवाल पर सबकी निगाह लगी है। इसको लेकर तमाम भ्रांतियां फैलायी जा रही हैं। मायावती ने बताया कि इस बारे में राजद नेतृत्व को साफतौर पर बता दिया गया था कि बसपा अपने सिद्धांत, नीति और अलग कार्यशैली वाली पार्टी है। बाबा साहब का मिशन पूरा करने के लिए संघर्षरत रहती है।
1.जब समाजवादी पार्टी दलित महापुरषो के नाम से बनी योजनाओ को खत्म कर रही थी. दलित महापूरषो के नाम से बने स्थलों के नाम चेंज कर रही थी.
2.जब समाजवादी पार्टी मान्यवर कांशीराम के नाम से बनी योजनाओ का नाम बदल रही थी व सरकारी सहायता को धीमी कर रही थी.
3.जब समाजवादी पार्टी प्रमोशन में आरक्षण बिल फाड़ रही थी. बिल फाड़ने की हिम्मत भाजपा की नही हुई लेकिन समाजवादी पार्टी यह कारनामा कर गयी.
4.जब समाजवादी पार्टी दलितों के हितो के लिए योजना बनाने की बात तो दूर की है पहले से ही चली आ रही योजनाओ को बंद या धीमा कर रही थी.
5.जब समाजवादी पार्टी दलितों को सबसे ज्यादा नुकसान देने वाला "भूमि सुधार अधिनियम" पारित कर रही थी. पहले दलितों को भूमिहीन होने से रोकने के लिए यह व्यवस्था थी की एक सीमा तक जमीन दलित केवल दलित को ही बेचेगा लेकिन इस नये अधिनियम में अब दलित की जमीन कोई भी खरीद सकता है. इसका नुकसान यह है की जबरदस्ती, दारू, धमका कर दंबग अब आसानी से दलितों को जमीन से महरूम कर देंगे. कुछ दिनों में दलितो के पास जो कुछ जमीन थी वो भी नहीं बचने की.
उपर बताई गयी यह सिर्फ कुछ बाते है. पोस्ट लम्बी हो जाएगी अगर पूरी\ लिखना शुरू किया तो इसलिए आगे आप खुद जोड़ सकते है. अब मायावती ने जो शीटो के बंटवारे की बात कही है वो तरिफ के काबिल इसलिए है क्युकी;
1. यह लोग कब पलटी मार जाए कुछ पता नही है. देखा क्या मायावती जी से गठबंधन की घोषणा करवाकर शीटो के बंटवारे में धोखा दे दे. और मायावती ने कुछ ऐसा नही कहा जो की इम्पोसिबल हो. अरे भाई जब गठबंधन करना ही है तो पहले शीट निर्धारित करने में क्या दिक्कत है.
2.बहुजन एकता नाम की टोकरी पिछड़े वर्ग ने दलितों के सर पर रख रखी है और जब दलित हितो की बात आती है तो आँखे दिखाते है.. इसका प्रमाण है की जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब समाजवादी पार्टी का यादव वोटर रोजाना दलितों को गरिया रहा था. समाजवादी पार्टी दुआरा दलितों के अहित के लिए की गयी किसी भी घोषणा पर "भांगड़ा डांस" कर रहा था. आज काफी यादव बुद्धिजीवी कह रहे है की "मायावती ने बहुजन एकता को नुकसान पहुचाया है" जबकि अखिलेश के समय यह लोग दलित विरोधी कार्यो पर "वाह-वाह" कर रहे थे.
3.बहुजन समाज पार्टी को गठबंधन में दिक्कत यह भी है की जब भी वो कोंग्रेस के साथ गठबंधन करती है तो जिन शीट पर कोंग्रेस खड़ी होती है उस पर दलित वोट उसे मिल जाता है लेकिन जो शीट बसपा के कोटे में आती है उस पर कोंग्रेसी बसपा को वोट करने की जगह भाजपा को कर देता है.
अब जो दलित बुद्धिजीवी, लेखक, चिंतक दिन रात अपना समय मायावती विरोध में लगा रहे है उन्हें यह समझ लेना चाहिए की;
1.आपके लालू प्रसाद यादव व शरद यादव को अगर बहुजन की इतनी ही चिंता है तो "दलित प्रधानमन्त्री" की घोषणा कियु नही कर देते. दलित अभी भी इनसे संख्या में काफी ज्यादा है.
2.जब इन्द्रजीत गुजराल को प्रधानमन्त्री बनाया जा रहा था तब आपके इन्ही साथियो ने दलित प्रधानमन्त्री नहीं बनाया जबकि उस समय राम विलास पासवान रेस में सबसे आगे थे.
3.इसलिए पूर्व के अनुभवो के आधार पर दलितों को अपनी जरूरत महसूस करवानी है. जनता पार्टी से लेकर तीसरे मोर्चे के अंतर्गत दलित प्रधानमन्त्री ही इसलिए नही बनाया गया है क्युकी दलित एक पक्ष के तौर पर अपने को पेश नही कर पाए. केवल मायावती ही दलितों को भारतीय राजनीती में एक पक्ष बनाने में कामयाब हुई है.
4.मायावती अगर व्यक्तिगत हित रखती तो हर सरकार में अपने वोट प्रतिशत के अनुसार केबिनेट मंत्री बन सकती है और साथ में अपनी पार्टी के दो या तीन को भी आसानी से मंत्री बनवा सकती है. लेकिन रामविलास पासवान, अठावले की तरह फिर चुपचाप दलित विरोधी कार्य होते हुए भी देखना पड़ता. इसलिए दलितों को एक पक्ष बनकर सत्ता में आने में फायदा है.
5.सत्ता की इतनी जल्दी दिखानी अपने सर पर पत्थर मारने के बराबर है. अरे भाई हद से हद क्या होगा दलित आरक्षण, अधिकार ही तो खत्म होंगे. हो जाने दीजिये, अभी भी कौन से सही उदेश्य में मिल रहे है. बल्कि इससे यह लाभ होगा की दलितों की सभी उपजातियो को अक्ल आयेगी जिसके बाद एक छतरी के नीचे जमा होंगे. अभी थोडा थोडा करके जो मिल रहा है उससे दलितों में एकता नही हो पा रही है. जब सभी कुछ छीन जायेगा तभी सभी कुछ पाने की इच्छा उत्पन्न होगी और तभी एकता होगी.
इसलिए स्वयघोषित बुद्धिजीवी, चिंतको, लेखको, और आजकल बाबा साहब के नाम पर गाने व नाचने वाले कविओ को यह समझ लेना चाहिए की "बाबा साहब ने जो यह स्लोगन की इस देश के शासक बनना है" तब तक पूरा नही होगा जब तक अपने को एक पक्ष के तौर पर भारतीय राजनीती में प्रस्तुत नही करेंगे. मायावती ने सफलतापुर्वक अपने आप को भारतीय राजनीती में एक पक्ष के तौर पर प्रस्तुत करा है. राजनीती में जीत-हार तो चलती ही रहती है. क्या फर्क पड़ेगा अगर अगले 20 साल भी एक भी शीट नही आयेगी. कम से कम एक पक्ष तो समझा जायेगा. अभी भी कौन सा रामविलास पासवान व अट्ठावले के मंत्री बन्ने से दलितों को लाभ हो रहा है. इसलिए सत्ता के लिए इतने उतावले मत बनिए. और अगर बन ही रहे है तो मायावती की जगह अपना आधार बनाए. किसने रोका है.
C/P. An Excellent Analysis.
*जानें मायावती ने राजद की पटना रैली में शामिल होने के लिए रखीं शर्तें*
पटना में 27 अगस्त को प्रस्तावित राष्ट्रीय जनता दल की रैली में शामिल होने से पूरी तरह किनारा कर बसपा प्रमुख मायावती ने विपक्षी एकता के प्रयासों को तगड़ा झटका दिया है। *आज गुरुवार* को पत्रकार वार्ता में मायावती ने स्पष्ट किया कि सीटों का सम्मानजनक बंटवारा न होने तक बसपा किसी स्थानीय या राष्ट्रीय दल के साथ मंच साझा नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि बसपा सेक्युलर ताकतों की एकजुटता की प्रबल पक्षधर रही है लेकिन, पिछले चुनावी अनुभव अच्छे नहीं रहे। टिकटों के बंटवारे के वक्त पीठ में छुरा भोंकने वाले दलों के कारनामे जनता को भी मायूस करने वाले रहे हैं।
पटना रैली से तीन दिन पहले मायावती ने गुरुवार दोपहर बाद अचानक पत्रकार वार्ता बुलाकर बसपा का रुख स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि पटना रैली में बसपा के शामिल कराने को राजद नेतृत्व द्वारा विशेष कोशिश की जाती रही है। रैली में बसपा के शामिल होने के सवाल पर सबकी निगाह लगी है। इसको लेकर तमाम भ्रांतियां फैलायी जा रही हैं। मायावती ने बताया कि इस बारे में राजद नेतृत्व को साफतौर पर बता दिया गया था कि बसपा अपने सिद्धांत, नीति और अलग कार्यशैली वाली पार्टी है। बाबा साहब का मिशन पूरा करने के लिए संघर्षरत रहती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ji को आने वाले चुनावों मे BJP हारती हुई नज़र आ रही ह - वो भी दलित वोटों की वजह से !!इसलिए मोदी दलितों को ही पार्टी का लीडर बनाने की वात कर रहा ह !!साथियों अवकी वार यदि BJP की सरकार केन्द्र मे बनती ह तो देश मे मनुस्मृति लागू हो जायेगी !!!सभी मूलनिवासियो से कहना ह BJP को तो सदा के लिये ही समाप्त करना होगा वरना अंजाम क्या होगा आप खुद जानते हो !!!!क्योंकि इनकी करतूत आप पिछले ३ साल से देख ही रहे हो --करोडो नौकरियो, किसानों की पैदा का न्यूनतम मूल्य दुगुना , सबको रोजगार , अच्छी शिक्षा ,कालाधन लाना ,भ्रष्टाचार ख़त्म करना, भ्रष्टनेता/मंत्रियों का जैल जाना , 100 वर्ल्ड सिटी बनाना , सबको १५ लाख, इनका एक भी जुमला पूरा नही हुआ !!!!इनके अलावा आये दिन देश मे हत्या ,बलात्कार ,लूट पाट ,चोरी,डकैती,अपहरण सब शीर्ष पर ह !!!# दलित या SC ,ST ,OBC ,minority के वोट BJP से हटे मोदी का जुमला ख़त्म हो जायेगा !!
ReplyDelete*सु्प्रीम कोर्ट का एक और ऐतिहासिक फैसला, मोदी सरकार को लगा सबसे बड़ा झटका*
ReplyDeleteराइट टू प्राइवेसी यानी निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं, इसपर सुप्रीम कोर्ट ने आज इसपर ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और यह संविधान के आर्टिकल 21 (जीने के अधिकार) के तहत आता है। इस ऐतिहासिक फैसले का प्रभाव देश के 134 करोड़ लोगों के जीवन पर पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने सर्वसम्मति से यह फैसला किया। कोर्ट ने 1954 में 8 जजों की संवैधानिक बेंच की एमपी शर्मा केस और 1961 में 6 जजों की बेंच के खड्ग सिंह केस में दिए फैसले को पलट दिया। इस फैसले की मुख्य बातें –
कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार माना है। नौ जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से ये फैसला लिया है।ये बेंच आधार कार्ड और सोशल मीडिया में दर्ज निजी जानकारियों के डेटा बैंक के बारे में फैसला लेगी।कोर्ट ने 1954 में 8 जजों की संवैधानिक बेंच की एमपी शर्मा केस और 1961 में 6 जजों की बेंच के खड्ग सिंह केस में दिए फैसले को पलट दिया।याचिकाकर्ता की मांग थी कि संविधान के अन्य मौलिक अधिकारों की तरह ही निजता के अधिकार को भी दर्जा मिले।आधार का मामला इस केस से अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा हुआ था। इस फैसले से आधार की किस्मत नहीं तय होगी। आधार पर अलग से सुनवाई होगी।चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम सप्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अब्दुल नजीर ने ये फैसला किया है।सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने इस मसले पर सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखा था। केंद्र का पक्ष रखते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि आज का दौर डिजिटल है, जिसमें राइट टू प्राइवेसी जैसा कुछ नहीं बचा है...