*📮 महिषासुर की हत्या पर जश्न 📮*
*क्यों❓*
कौन है अनादिकाल से गाय और भैंस के सेवक ?????
*महिषासुर से इस देश के शोषित लोगों का खून का रिश्ता है,
वे हमारे पूर्वज हैंं*
*❣महिषासुर और दुर्गा का ❣*
*मिथक*
महिषासुर बंग प्रदेश के महाप्रतापी राजा थे. बंग प्रदेश अर्थात गंगा युमुना के दोआबा में बसा हुआ उपजाऊ मैदान जिसे आज बंगाल, बिहार और उड़ीसा मैसूर के नाम से जाना जाता है. आर्यों ने जब बाहर से आक्रमण किया तो उनका सबसे पहला निशाना उपजाऊ जमीन ही थी. आर्यों में भंडारण की प्रवृति सबसे ज्यादा थी. कृषि आधारित समाज में भूमि का वही महत्व था जो आज ऊर्जा के स्रोतों का है. आर्य इस प्रदेश पर कब्जा जमाना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने कई बार हमले किए परंतु प्रत्येक बार उन्हें राजा महिषासुर की संगठित सेना से हारना पड़ा था.
*तब आर्यों ने छल कपट से “दुर्गा” नामक एक नृत्यागंना को राजा के दुर्ग में प्रवेश करा दिया*
महिषासुर का प्रण था कि वह महिलाओं पर हाथ नहीं उठाएंगे और पशुओं का वध नहीं करेंगे क्योंकि वे स्वयं पशुपालक समाज से थे. परंतु यही मानवीय गुण ही महिषासुर की कमजोरी बन गया.
*दुर्गा को राजा महिषासुर की हत्या करने में नौ दिन लगे. इन दिनों में देवता/ आर्य महिषासुर के किले के चारों तरफ जंगलों में भूखे-प्यासे छिपे रहे. जिसके कारण दुर्गा को मानने वाले लोगों में आठ दिनों के व्रत-उपवास का प्रचलन है. आठ दिनों तक दुर्गा महिषासुर के किला में रही और और नौवे दिन उसने द्वार खोल दिये जिससे सारे आर्य उनके किला में प्रवेश करने में सफल हो गए और सबों ने मिलकर महिषासुर की हत्या कर दी. महिषासुर की हत्या को आज तक वध कह कर न्यायसंगत ठहराया जाता रहा परंतु वह एक प्रतापी राजा की नृशंस हत्या थी.*
*असुर कौन थे ???????❓*
असुर शब्द से भयानक और विकराल मनुष्येत्तर तस्वीर सामने आती है.
असुर, राक्षस, दानव ,दाना ,दैत्य आदि उपनामों से जाने वाले असुर भी मनुष्य ही थे. इस सत्य को आज तक छुपाया जाता रहा है. ‘असुर यानी जो सुर नहीं हैं.
सुर अर्थात कामचोर जो काम नहीं करते थे और असुर अर्थात जो सुर नहीं थे और काम करके अपना भरण पोषण करते थे और करते हैं, देश के श्रमजीवी लोग.
*दरअसल इस देश के शोषित वर्ग जिन्हें संवैधानिक भाषा में एसटी, एससी और ओबीसी कहा जाता है और जिन्हें हिन्दू धर्म ने शूद्र और अछूत की संज्ञा दी है, इन सभी लोगों का पौराणिक नाम असुर है.*
झारखंड में आज भी असुर नाम की एक आदिवासी जाति पाई जाती है जो आज भी महिषासुर और अन्य असुरों को अपना पूर्वज मानते हुए उनकी पूजा करती है.
*दरअसल महिषासुर की हत्या के पीछे संसाधनों की लड़ाई ही है. उनकी हत्या के बाद बंग प्रदेश के उपजाऊ भूमि पर आर्यों का कब्जा हो गया और उनकी प्रजा को गुलाम बना लिया गया. आज पिछड़ों की दीनदशा का कारण ही उनके नायक की हत्या के परिणामस्वरूप उनकी गुलामी ही है.*
❣👉 कर्नाटक में मैसूर से 15 KM दूर चामुन्डा हिल पर महाराजा *महिषासुर* की विशाल प्रतिमा आज भी प्रतिष्ठापित है,जिसके दर्शन करने दूर दूर से लोग उमड़ते हैं. 👇👇👇👇
*महा पुरूष महिषासुर को*
*🌹🙏कोटि कोटि नमन🙏🌹*
जिन 9 देवियों के लिए नवरात्रा मनाये जाते हैं उनके बारे में क्या जानते हैं आप ?
अब ध्यान देने वाली बात यह है कि आखिर ये 9 देवियों का राज क्या है ?
विदेशी आर्यों का सन 2001 में डी एन ए जाँच हुआ था एवं इनका डी एन ए 99.99 प्रतिशत मूल निवासियों से मिलान नहीं किया बल्कि यूरेशियन लोगों से मैच किया लेकिन इन विदेशी लोगों के घरों में जो महिलाएं हैं उनका डी एन ए 100 प्रतिशत मूल निवासियों के डी एन ए से मैच कर गया, इसका सीधा सा अर्थ यह है कि विदेशी आर्य लोग अपने साथ में सिर्फ 9 महिलाओं को लेकर आये थे, यह एक लड़ाकू कोम थी और इन्होंने तलवार के बल पर हमारी महिलाओं को हमसें छिना था, तभी तो यह लोग अपने घरों की महिलाओं को पढ़ने का अधिकार नहीं दिया बल्कि उनकी तुलना भी ढोल, शुद्र और पशु के साथ की है।
इन 9 देवियों के हाथों में हथियार दिखाये गये हैं और कई देवियों के गले में नर मुंडियों की माला पहनी हुई दिखाई गई है और कई देवियों को राक्षशों का वध करते हुए दिखाया गया है, इन सब का राज यह है कि ये विदेशी आर्य लोग जिन 9 महिलाओं को अपने साथ लेकर आए थे वे कि हथियार चलाने और लड़ाई लड़ने में निपुण थी उन्होंने मूल निवासियों की रक्षा करने वाले रक्षकों को मौत के घाट उतारने में कोई कोर कसर नहीं रखी थी, हमारे उन रक्षकों को इन विदेशियों ने राक्षस नाम देकर नफरत फैलाने का काम किया, जबकि पूरी दुनिया में कहीं भी राक्षस नाम का कोई जीव नहीं पाया जाता है, कहने का तात्पर्य यह कि जिनकी ये देवियाँ तलवार और खंजरों से हत्या कर रही हैं वे कोई और नहीं बल्कि हमारे रक्षक मूल निवासी पूर्वज ही हैं।
इन 9 हत्यारिणी विदेशी आर्य महिलाओं को इन लोगों ने विद्या की मालकिन अर्थार्त विद्या की देवी, धन की मालकिन अर्थार्त धन की देवी, अन्न की देवी, सुख स्मृद्धि की देवी इत्यादि के नाम से पूजवाया गया है।
इन आर्यो का पूरा ध्यान इन 9 विदेशी लड़ाकू महिलाओं के इर्द गिर्द ही घूमता रहता है और इन्हीं के जगह जगह मंदिर बनाये गये हैं, जबकि वास्तविक विधा की देवी मूल निवासी महिला सावित्री बाई फुले का ये लोग नाम तक लेना पसन्द नहीं करते हैं लेकिन लोग अपना दिमाग लगाने को तैयार नहीं हैं और अपने ही पूर्वजों की हत्यारिनों की पूजा अर्चना कर रहे हैं और नवरात्रा मना रहे है
��महिषासुरमर्दिनी दुर्गा का इसली इतिहास हमसे क्यों छिपाया जाता है????��
��महिषासुर यादव वंश के राजा थे । जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी दिल्ली (JNU) में वर्ष 2011 से महिषासुर परिनिर्वाण दिवस मनाने का क्रम जारी होने से
देशभर में एक बहस की शुरूआत हुई है।
HYDERABAD UNIVERSITY में भी BAHUJAN STUDENT FRONT (BSF) महिषासुर परिनिर्वाण दिवस मनाता है।
��महिषासुर से बरसों लड़ने
के बाद जब आर्य(ब्राम्हण) राजा इंद्र परास्त कर पाने के बजाय परास्त होकर भाग खड़ा हुआ तो आर्यो ने छल बल का सहारा लिया और आर्य(ब्राम्हण-विषकन्या)कन्या दुर्गा को महिषासुर के पास भेजकर महिषासुर का दिल जीतकर उसे मारने की रणनीति बनाई इसी रणनीति के तहत आर्य(ब्राम्हण) कन्या दुर्गा ने भिन्न मोहक रूपों एवं अदाओं से महिषासुर (मूलनिवासी बहुजन राजा) जैसे प्रतापी राजा को अपनी रणनीति के तहत फँसाया और दिल जीतकर एवं इतिहासकार डी॰डी॰ कौशम्बी के मतानुसार गवलियों (यादवों) के पुरूष देवता महिषासुर एवं खाद्य संकलन कर्ताओं की मातृदेवी (दुर्गा) का विवाह हो गया। गवलियों से आशय यादवों एवं अनार्यो (मूलनिवासी बहुजन)से है। जबकि खाद्य संकलन कर्ता से आशय आर्यो (ब्राम्हणों)से है। इतिहासकार भगवत शरण उपाध्याय ने कहा है कि हम ब्राह्मण(आर्य) भारत भूख से आहार की तलाश में चले थे इसी प्रक्रिया के तहत दुर्गा ने महिषासुर का विश्वास जीतकर महज दस दिनों में धोखे से मार ड़ाला।
��इस देश के मूलनिवासी असुर यादव राजा के कुल खानदान, माता-पिता का नाम, ब्राह्मण एवं आर्य इतिहासकारों केही मुताबिक ज्ञात है लेकिन आर्य इतिहास में दुर्गा की
उत्पत्ति बड़ा दिलचस्प है।
दुर्गा के माता-पिता, कुल-खानदान का कोई अता-पता नहीं है। दुर्गा को शिव, यमराज, विष्णु, इन्द्र, चन्द्रमा, वरूण,पृथ्वी, सूर्य, ब्रह्मा वसुओं कुबेर, प्रजापति, अग्नि,सन्ध्या, एवं वायु आदि के विभिन्न अंशों से उत्पन्न कर अन्यान्य देवताओ से अस्त्र-शस्त्र दिलवाया गया है।
कोई धर्म भीरू अवैज्ञानिक सोंच का व्यक्ति ही इन बातों को स्वीकार कर सकता है।
��दुर्गा पूजा का जोरदार चलन कोलकाता एवं पश्चिम बंगाल में है। मै 1977 से 1982 तक कोलकाता में ही रहा और पढ़ा हूँ। मैने कोलकाता का दुर्गापूजा बारीकी से देखा है। कोलकाता में दुर्गा प्रतिमा बनाने वाले कारीगर वेश्यालय से थोड़ी मिट्टी जरूर लाते है। इस प्रक्रिया का सजीव चित्रण ”देवदास“ फिल्म में भी किया गया है।
वेश्याऐं दुर्गा को अपनी कुल देवी मानती हैं।�� इसलिए दुर्गा प्रतिमा बनाने में वेश्यालयों से मिट्टी लाने का चलन है।
(कोलकाता,पश्चिम बंगाल विदेशी ब्राम्हणों का प्रतिक्रांति का केंद्र भी था। सत्य शोधक आंदोलन से भी बड़ा मतुआ धर्म आंदोलन यहीं से नष्ट कर दिया गया था। हमें महात्मा फुले जी सत्यशोधक आंदोलन पता है लेकिन हम मतुआ धर्म आंदोलन के बारे में आज भी नहीं जानते.ब्राम्हणों ने कितनी सफाई से इसे नष्ट किया.किसी को खबर तक नहीं...सबको ब्राम्हण दुर्गा बराबर पता है��
यह दुर्गा etc कहाँ से आ टपकी? कहीं ये ब्राम्हणीकरण इसलिए तो नहीं किया गया था ना???
मूलनिवासी बहुजनों के ये दोनों आंदोलन विदेशी ब्राम्हणों और उनकी व्यवस्था के विरुद्ध किये गए आंदोलन थे।)
��असुर होने एवं आर्यो द्वारा इतिहास लिखने के बावजूद महिषासुर के कुल-खानदान का पता चलता है लेकिन आर्यपुत्री(ब्राम्हण) होने के बावजूद दुर्गा के कुल-खानदान का पता नहीं है। गुण एवं लक्षण के आधार पर मेरे जैसा दो-दो विषयों से परास्नातक शिक्षक महिषासुर को यादव मान रहा है तो निश्चय ही वेश्याओं द्वारा दुर्गा को कुल देवी मानने के पीछे एक बहुत बड़ा राज छिपा होगा जो सदियों से चला आ रहा है। ��
दुर्गा और महिषासुर की गाथा आर्यो द्वारा हजारों वर्ष पूर्व छल पूर्वक अपनी संस्कृति थोपकर हमें गुलाम बनाने की कहानी का एक हिस्सा है जिस पर पढ़े-लिखे पिछड़े(OBC) एवं दलितों को व्यापक पैमाने पर शोध करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए तथा परम्परावादी बनकर सड़ी लाश को कंधे पर ढ़ोने की बजाय उसे दफन कर एक नई सभ्यता और संस्कृति विकसित करनी चाहिए जो कमेरों की पक्षधर हो।
��भारत में ब्राम्हणों के नवरात्री उत्सव में कंडोम की बिक्री सबसे जादा होती है। ऐसा मिडिया के कुछ सर्वे द्वारा सामने आया है।
�� महिषासुर अगर इतना ही बलवान था तो एक औरत के हाथों कैसे मारा गया ????
पुरूषों की सबसे बड़ी कमजोरी औरत ही होती है ,अतः औरत चाहे तो बड़े -बड़े महाबली को क्षणभर में ही काल के गाल में भेज सकती है ।ये अलग बात है
कि महिषासुर को मारने में नौव दिनों या दस दिनों का समय लगा । राजा शंकर,महिषासुर जैसे और भी मूलनिवासी महापुरुषों को मारने के लिये ब्राम्हणों ने औरतों याने "विषकन्याओं" का सफल उपयोग/प्रयोग किया है और करते हैं।
��मूलनिवासी बहुजन राजा महिषासुर विनाशनी ब्राम्हण दुर्गा के प्रचंड भक्त हैं। ये पिछड़े(OBC) दलित नौ दिन नवरात्र व्रत से लेकर हवन, पूजन बलि दुर्गा मूर्ति स्थापना आदि में लाखों-लाख रुपयों का वारा-न्यारा कर रहें हैं। ये कमजोर वर्ग के लोग दुर्गा को शक्तिशाली मानकर नवरात्र में पूरे मनोयोग से पूजा कर रहें हैं और ये उम्मीद लगाते हैं कि महान बलशाली महिषासुर को मारने वाली दुर्गा प्रसन्न होकर इन्हें प्रतापी बना देगी।��(जो राजा इनका ही पूर्वज है।)इसी उम्मीद में देश का सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा(OBC) तबका अपना पेट काटकर शक्ति की प्रतीक दुर्गा(ब्राम्हण विषकन्या) की आराधना में लगा हुआ हैं। वह इस पर विचार नहीं करता है कि सुर-असुर संग्राम(ब्राम्हण-राक्षस/मूलनिवासी बहुजन) अर्थात आर्य-अनार्य संग्राम में आर्य संस्कृति (ब्राह्मणवाद) के घोर विरोधी महिषासुर का वध करने वाली दुर्गा ने प्रकारान्त से हम पिछड़ो को अपना सामाजिक एवं सांस्कृतिक गुलाम बनाने के लिए हमारे पूर्वज महिषासुर की हत्या छल पूर्वक किया था..
ब्राम्हणों की मूलनिवासी बहुजनों से आमने सामने की लढाई छोड़ ही दो,उनकी छल-कपट तक ही मर्दानंगी रहती है। आखिर में वो ब्राम्हण विषकन्याओं का ही प्रयोग करतें है
जागरूकता अभियान
*आकाश महिषासुर*
ऐतिहासिक दृष्टि में #दुर्गापूजा ।
#दुर्गापूजा पठान युग में आरम्भ हुआ।
पठान युग के आरंभिक काल में बरेंद्रभूमि अर्थात उत्तरी बंगाल में राजशाही जिले के राजा थे ।उनका नाम था कंसनारायन राय।वे बहुत बड़े जमींदार थे ।उन्होंने अपने समय के पंडितो को बुलाकर कहा कि मै राजसूय या अश्वमेध यज्ञ करना चाहता हूँ ,ताकि लोगो को पता चले कि मेरे पास कितना धन व ऐश्वर्य है और मैं दोनों हाथो से दान करूँगा ।यह सुनकर पंडितों ने कहा कि "इस कलयुग में अश्वमेध ,राजसूय यज्ञ नहीं हो सकते इस कारण #मार्कण्डेय पुराण में जो #दुर्गापूजा की कहानी है ; #दुर्गोत्सव की कहानी है , उसमे भी बहुत खर्च किया जाता है । आप भी #मार्कण्डेय पुराण की ही दुर्गा पूजा कीजिए ।
उस समय राजा कंसनारायन राय ने #सात लाख स्वर्ण मुद्राओ का व्यय करके पहली बार #दुर्गापूजा की थी ।
उसके बाद रंगपुर जिला के एकताकिया के राजा जगद्बल्लभ ने साढ़े आठ लाख स्वर्णमुद्राओं व्यय करके और भी बड़ी धूम के साथ #दुर्गापूजा की ।
उन्हें देखकर भी अन्य जमीदारो ने भी अपने बड़ी धूम -धाम से #दुर्गा पूजा आरम्भ किया ।इस तरह हर-एक जमींदार के घर में दुर्गापूजा का आरम्भ हुआ ।उसी समय में हुगली जिले के बालगढ़ थाने में बारह मित्रो ने मिलकर पूजा किया जिसे 'बारह यारी ' पूजा कहा गया । इस प्रकार यह सार्वजनिक रूप से मानाने लगा ।
#दुर्गा एक पौराणिक देवी है ।जो काल्पनिक है। इसकी कहानी #मार्कण्डेय पुराण में है ,जिसकी रचना तेरह सौ वर्ष पूर्व पौराणिक शाक्ताचार के समय हुआ ।
श्री श्री Anandmurti ji की पुस्तक 'नमः शिवाय शान्ताय " से ।
*क्यों❓*
कौन है अनादिकाल से गाय और भैंस के सेवक ?????
*महिषासुर से इस देश के शोषित लोगों का खून का रिश्ता है,
वे हमारे पूर्वज हैंं*
*❣महिषासुर और दुर्गा का ❣*
*मिथक*
महिषासुर बंग प्रदेश के महाप्रतापी राजा थे. बंग प्रदेश अर्थात गंगा युमुना के दोआबा में बसा हुआ उपजाऊ मैदान जिसे आज बंगाल, बिहार और उड़ीसा मैसूर के नाम से जाना जाता है. आर्यों ने जब बाहर से आक्रमण किया तो उनका सबसे पहला निशाना उपजाऊ जमीन ही थी. आर्यों में भंडारण की प्रवृति सबसे ज्यादा थी. कृषि आधारित समाज में भूमि का वही महत्व था जो आज ऊर्जा के स्रोतों का है. आर्य इस प्रदेश पर कब्जा जमाना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने कई बार हमले किए परंतु प्रत्येक बार उन्हें राजा महिषासुर की संगठित सेना से हारना पड़ा था.
*तब आर्यों ने छल कपट से “दुर्गा” नामक एक नृत्यागंना को राजा के दुर्ग में प्रवेश करा दिया*
महिषासुर का प्रण था कि वह महिलाओं पर हाथ नहीं उठाएंगे और पशुओं का वध नहीं करेंगे क्योंकि वे स्वयं पशुपालक समाज से थे. परंतु यही मानवीय गुण ही महिषासुर की कमजोरी बन गया.
*दुर्गा को राजा महिषासुर की हत्या करने में नौ दिन लगे. इन दिनों में देवता/ आर्य महिषासुर के किले के चारों तरफ जंगलों में भूखे-प्यासे छिपे रहे. जिसके कारण दुर्गा को मानने वाले लोगों में आठ दिनों के व्रत-उपवास का प्रचलन है. आठ दिनों तक दुर्गा महिषासुर के किला में रही और और नौवे दिन उसने द्वार खोल दिये जिससे सारे आर्य उनके किला में प्रवेश करने में सफल हो गए और सबों ने मिलकर महिषासुर की हत्या कर दी. महिषासुर की हत्या को आज तक वध कह कर न्यायसंगत ठहराया जाता रहा परंतु वह एक प्रतापी राजा की नृशंस हत्या थी.*
*असुर कौन थे ???????❓*
असुर शब्द से भयानक और विकराल मनुष्येत्तर तस्वीर सामने आती है.
असुर, राक्षस, दानव ,दाना ,दैत्य आदि उपनामों से जाने वाले असुर भी मनुष्य ही थे. इस सत्य को आज तक छुपाया जाता रहा है. ‘असुर यानी जो सुर नहीं हैं.
सुर अर्थात कामचोर जो काम नहीं करते थे और असुर अर्थात जो सुर नहीं थे और काम करके अपना भरण पोषण करते थे और करते हैं, देश के श्रमजीवी लोग.
*दरअसल इस देश के शोषित वर्ग जिन्हें संवैधानिक भाषा में एसटी, एससी और ओबीसी कहा जाता है और जिन्हें हिन्दू धर्म ने शूद्र और अछूत की संज्ञा दी है, इन सभी लोगों का पौराणिक नाम असुर है.*
झारखंड में आज भी असुर नाम की एक आदिवासी जाति पाई जाती है जो आज भी महिषासुर और अन्य असुरों को अपना पूर्वज मानते हुए उनकी पूजा करती है.
*दरअसल महिषासुर की हत्या के पीछे संसाधनों की लड़ाई ही है. उनकी हत्या के बाद बंग प्रदेश के उपजाऊ भूमि पर आर्यों का कब्जा हो गया और उनकी प्रजा को गुलाम बना लिया गया. आज पिछड़ों की दीनदशा का कारण ही उनके नायक की हत्या के परिणामस्वरूप उनकी गुलामी ही है.*
❣👉 कर्नाटक में मैसूर से 15 KM दूर चामुन्डा हिल पर महाराजा *महिषासुर* की विशाल प्रतिमा आज भी प्रतिष्ठापित है,जिसके दर्शन करने दूर दूर से लोग उमड़ते हैं. 👇👇👇👇
*महा पुरूष महिषासुर को*
*🌹🙏कोटि कोटि नमन🙏🌹*
जिन 9 देवियों के लिए नवरात्रा मनाये जाते हैं उनके बारे में क्या जानते हैं आप ?
अब ध्यान देने वाली बात यह है कि आखिर ये 9 देवियों का राज क्या है ?
विदेशी आर्यों का सन 2001 में डी एन ए जाँच हुआ था एवं इनका डी एन ए 99.99 प्रतिशत मूल निवासियों से मिलान नहीं किया बल्कि यूरेशियन लोगों से मैच किया लेकिन इन विदेशी लोगों के घरों में जो महिलाएं हैं उनका डी एन ए 100 प्रतिशत मूल निवासियों के डी एन ए से मैच कर गया, इसका सीधा सा अर्थ यह है कि विदेशी आर्य लोग अपने साथ में सिर्फ 9 महिलाओं को लेकर आये थे, यह एक लड़ाकू कोम थी और इन्होंने तलवार के बल पर हमारी महिलाओं को हमसें छिना था, तभी तो यह लोग अपने घरों की महिलाओं को पढ़ने का अधिकार नहीं दिया बल्कि उनकी तुलना भी ढोल, शुद्र और पशु के साथ की है।
इन 9 देवियों के हाथों में हथियार दिखाये गये हैं और कई देवियों के गले में नर मुंडियों की माला पहनी हुई दिखाई गई है और कई देवियों को राक्षशों का वध करते हुए दिखाया गया है, इन सब का राज यह है कि ये विदेशी आर्य लोग जिन 9 महिलाओं को अपने साथ लेकर आए थे वे कि हथियार चलाने और लड़ाई लड़ने में निपुण थी उन्होंने मूल निवासियों की रक्षा करने वाले रक्षकों को मौत के घाट उतारने में कोई कोर कसर नहीं रखी थी, हमारे उन रक्षकों को इन विदेशियों ने राक्षस नाम देकर नफरत फैलाने का काम किया, जबकि पूरी दुनिया में कहीं भी राक्षस नाम का कोई जीव नहीं पाया जाता है, कहने का तात्पर्य यह कि जिनकी ये देवियाँ तलवार और खंजरों से हत्या कर रही हैं वे कोई और नहीं बल्कि हमारे रक्षक मूल निवासी पूर्वज ही हैं।
इन 9 हत्यारिणी विदेशी आर्य महिलाओं को इन लोगों ने विद्या की मालकिन अर्थार्त विद्या की देवी, धन की मालकिन अर्थार्त धन की देवी, अन्न की देवी, सुख स्मृद्धि की देवी इत्यादि के नाम से पूजवाया गया है।
इन आर्यो का पूरा ध्यान इन 9 विदेशी लड़ाकू महिलाओं के इर्द गिर्द ही घूमता रहता है और इन्हीं के जगह जगह मंदिर बनाये गये हैं, जबकि वास्तविक विधा की देवी मूल निवासी महिला सावित्री बाई फुले का ये लोग नाम तक लेना पसन्द नहीं करते हैं लेकिन लोग अपना दिमाग लगाने को तैयार नहीं हैं और अपने ही पूर्वजों की हत्यारिनों की पूजा अर्चना कर रहे हैं और नवरात्रा मना रहे है
��महिषासुरमर्दिनी दुर्गा का इसली इतिहास हमसे क्यों छिपाया जाता है????��
��महिषासुर यादव वंश के राजा थे । जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी दिल्ली (JNU) में वर्ष 2011 से महिषासुर परिनिर्वाण दिवस मनाने का क्रम जारी होने से
देशभर में एक बहस की शुरूआत हुई है।
HYDERABAD UNIVERSITY में भी BAHUJAN STUDENT FRONT (BSF) महिषासुर परिनिर्वाण दिवस मनाता है।
��महिषासुर से बरसों लड़ने
के बाद जब आर्य(ब्राम्हण) राजा इंद्र परास्त कर पाने के बजाय परास्त होकर भाग खड़ा हुआ तो आर्यो ने छल बल का सहारा लिया और आर्य(ब्राम्हण-विषकन्या)कन्या दुर्गा को महिषासुर के पास भेजकर महिषासुर का दिल जीतकर उसे मारने की रणनीति बनाई इसी रणनीति के तहत आर्य(ब्राम्हण) कन्या दुर्गा ने भिन्न मोहक रूपों एवं अदाओं से महिषासुर (मूलनिवासी बहुजन राजा) जैसे प्रतापी राजा को अपनी रणनीति के तहत फँसाया और दिल जीतकर एवं इतिहासकार डी॰डी॰ कौशम्बी के मतानुसार गवलियों (यादवों) के पुरूष देवता महिषासुर एवं खाद्य संकलन कर्ताओं की मातृदेवी (दुर्गा) का विवाह हो गया। गवलियों से आशय यादवों एवं अनार्यो (मूलनिवासी बहुजन)से है। जबकि खाद्य संकलन कर्ता से आशय आर्यो (ब्राम्हणों)से है। इतिहासकार भगवत शरण उपाध्याय ने कहा है कि हम ब्राह्मण(आर्य) भारत भूख से आहार की तलाश में चले थे इसी प्रक्रिया के तहत दुर्गा ने महिषासुर का विश्वास जीतकर महज दस दिनों में धोखे से मार ड़ाला।
��इस देश के मूलनिवासी असुर यादव राजा के कुल खानदान, माता-पिता का नाम, ब्राह्मण एवं आर्य इतिहासकारों केही मुताबिक ज्ञात है लेकिन आर्य इतिहास में दुर्गा की
उत्पत्ति बड़ा दिलचस्प है।
दुर्गा के माता-पिता, कुल-खानदान का कोई अता-पता नहीं है। दुर्गा को शिव, यमराज, विष्णु, इन्द्र, चन्द्रमा, वरूण,पृथ्वी, सूर्य, ब्रह्मा वसुओं कुबेर, प्रजापति, अग्नि,सन्ध्या, एवं वायु आदि के विभिन्न अंशों से उत्पन्न कर अन्यान्य देवताओ से अस्त्र-शस्त्र दिलवाया गया है।
कोई धर्म भीरू अवैज्ञानिक सोंच का व्यक्ति ही इन बातों को स्वीकार कर सकता है।
��दुर्गा पूजा का जोरदार चलन कोलकाता एवं पश्चिम बंगाल में है। मै 1977 से 1982 तक कोलकाता में ही रहा और पढ़ा हूँ। मैने कोलकाता का दुर्गापूजा बारीकी से देखा है। कोलकाता में दुर्गा प्रतिमा बनाने वाले कारीगर वेश्यालय से थोड़ी मिट्टी जरूर लाते है। इस प्रक्रिया का सजीव चित्रण ”देवदास“ फिल्म में भी किया गया है।
वेश्याऐं दुर्गा को अपनी कुल देवी मानती हैं।�� इसलिए दुर्गा प्रतिमा बनाने में वेश्यालयों से मिट्टी लाने का चलन है।
(कोलकाता,पश्चिम बंगाल विदेशी ब्राम्हणों का प्रतिक्रांति का केंद्र भी था। सत्य शोधक आंदोलन से भी बड़ा मतुआ धर्म आंदोलन यहीं से नष्ट कर दिया गया था। हमें महात्मा फुले जी सत्यशोधक आंदोलन पता है लेकिन हम मतुआ धर्म आंदोलन के बारे में आज भी नहीं जानते.ब्राम्हणों ने कितनी सफाई से इसे नष्ट किया.किसी को खबर तक नहीं...सबको ब्राम्हण दुर्गा बराबर पता है��
यह दुर्गा etc कहाँ से आ टपकी? कहीं ये ब्राम्हणीकरण इसलिए तो नहीं किया गया था ना???
मूलनिवासी बहुजनों के ये दोनों आंदोलन विदेशी ब्राम्हणों और उनकी व्यवस्था के विरुद्ध किये गए आंदोलन थे।)
��असुर होने एवं आर्यो द्वारा इतिहास लिखने के बावजूद महिषासुर के कुल-खानदान का पता चलता है लेकिन आर्यपुत्री(ब्राम्हण) होने के बावजूद दुर्गा के कुल-खानदान का पता नहीं है। गुण एवं लक्षण के आधार पर मेरे जैसा दो-दो विषयों से परास्नातक शिक्षक महिषासुर को यादव मान रहा है तो निश्चय ही वेश्याओं द्वारा दुर्गा को कुल देवी मानने के पीछे एक बहुत बड़ा राज छिपा होगा जो सदियों से चला आ रहा है। ��
दुर्गा और महिषासुर की गाथा आर्यो द्वारा हजारों वर्ष पूर्व छल पूर्वक अपनी संस्कृति थोपकर हमें गुलाम बनाने की कहानी का एक हिस्सा है जिस पर पढ़े-लिखे पिछड़े(OBC) एवं दलितों को व्यापक पैमाने पर शोध करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए तथा परम्परावादी बनकर सड़ी लाश को कंधे पर ढ़ोने की बजाय उसे दफन कर एक नई सभ्यता और संस्कृति विकसित करनी चाहिए जो कमेरों की पक्षधर हो।
��भारत में ब्राम्हणों के नवरात्री उत्सव में कंडोम की बिक्री सबसे जादा होती है। ऐसा मिडिया के कुछ सर्वे द्वारा सामने आया है।
�� महिषासुर अगर इतना ही बलवान था तो एक औरत के हाथों कैसे मारा गया ????
पुरूषों की सबसे बड़ी कमजोरी औरत ही होती है ,अतः औरत चाहे तो बड़े -बड़े महाबली को क्षणभर में ही काल के गाल में भेज सकती है ।ये अलग बात है
कि महिषासुर को मारने में नौव दिनों या दस दिनों का समय लगा । राजा शंकर,महिषासुर जैसे और भी मूलनिवासी महापुरुषों को मारने के लिये ब्राम्हणों ने औरतों याने "विषकन्याओं" का सफल उपयोग/प्रयोग किया है और करते हैं।
��मूलनिवासी बहुजन राजा महिषासुर विनाशनी ब्राम्हण दुर्गा के प्रचंड भक्त हैं। ये पिछड़े(OBC) दलित नौ दिन नवरात्र व्रत से लेकर हवन, पूजन बलि दुर्गा मूर्ति स्थापना आदि में लाखों-लाख रुपयों का वारा-न्यारा कर रहें हैं। ये कमजोर वर्ग के लोग दुर्गा को शक्तिशाली मानकर नवरात्र में पूरे मनोयोग से पूजा कर रहें हैं और ये उम्मीद लगाते हैं कि महान बलशाली महिषासुर को मारने वाली दुर्गा प्रसन्न होकर इन्हें प्रतापी बना देगी।��(जो राजा इनका ही पूर्वज है।)इसी उम्मीद में देश का सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा(OBC) तबका अपना पेट काटकर शक्ति की प्रतीक दुर्गा(ब्राम्हण विषकन्या) की आराधना में लगा हुआ हैं। वह इस पर विचार नहीं करता है कि सुर-असुर संग्राम(ब्राम्हण-राक्षस/मूलनिवासी बहुजन) अर्थात आर्य-अनार्य संग्राम में आर्य संस्कृति (ब्राह्मणवाद) के घोर विरोधी महिषासुर का वध करने वाली दुर्गा ने प्रकारान्त से हम पिछड़ो को अपना सामाजिक एवं सांस्कृतिक गुलाम बनाने के लिए हमारे पूर्वज महिषासुर की हत्या छल पूर्वक किया था..
ब्राम्हणों की मूलनिवासी बहुजनों से आमने सामने की लढाई छोड़ ही दो,उनकी छल-कपट तक ही मर्दानंगी रहती है। आखिर में वो ब्राम्हण विषकन्याओं का ही प्रयोग करतें है
जागरूकता अभियान
*आकाश महिषासुर*
ऐतिहासिक दृष्टि में #दुर्गापूजा ।
#दुर्गापूजा पठान युग में आरम्भ हुआ।
पठान युग के आरंभिक काल में बरेंद्रभूमि अर्थात उत्तरी बंगाल में राजशाही जिले के राजा थे ।उनका नाम था कंसनारायन राय।वे बहुत बड़े जमींदार थे ।उन्होंने अपने समय के पंडितो को बुलाकर कहा कि मै राजसूय या अश्वमेध यज्ञ करना चाहता हूँ ,ताकि लोगो को पता चले कि मेरे पास कितना धन व ऐश्वर्य है और मैं दोनों हाथो से दान करूँगा ।यह सुनकर पंडितों ने कहा कि "इस कलयुग में अश्वमेध ,राजसूय यज्ञ नहीं हो सकते इस कारण #मार्कण्डेय पुराण में जो #दुर्गापूजा की कहानी है ; #दुर्गोत्सव की कहानी है , उसमे भी बहुत खर्च किया जाता है । आप भी #मार्कण्डेय पुराण की ही दुर्गा पूजा कीजिए ।
उस समय राजा कंसनारायन राय ने #सात लाख स्वर्ण मुद्राओ का व्यय करके पहली बार #दुर्गापूजा की थी ।
उसके बाद रंगपुर जिला के एकताकिया के राजा जगद्बल्लभ ने साढ़े आठ लाख स्वर्णमुद्राओं व्यय करके और भी बड़ी धूम के साथ #दुर्गापूजा की ।
उन्हें देखकर भी अन्य जमीदारो ने भी अपने बड़ी धूम -धाम से #दुर्गा पूजा आरम्भ किया ।इस तरह हर-एक जमींदार के घर में दुर्गापूजा का आरम्भ हुआ ।उसी समय में हुगली जिले के बालगढ़ थाने में बारह मित्रो ने मिलकर पूजा किया जिसे 'बारह यारी ' पूजा कहा गया । इस प्रकार यह सार्वजनिक रूप से मानाने लगा ।
#दुर्गा एक पौराणिक देवी है ।जो काल्पनिक है। इसकी कहानी #मार्कण्डेय पुराण में है ,जिसकी रचना तेरह सौ वर्ष पूर्व पौराणिक शाक्ताचार के समय हुआ ।
श्री श्री Anandmurti ji की पुस्तक 'नमः शिवाय शान्ताय " से ।
https://bheemsangh.files.wordpress.com/2015/03/e0a4ace0a581e0a4a6e0a58de0a4a7-e0a4a7e0a4b0e0a58de0a4ae-e0a495e0a4be-e0a4b8e0a4bee0a4b0.pdf
ReplyDelete*रावण-महिषासुर को जलाया तो चलेगा देशद्रोह का मुकदमा...!!*
ReplyDelete- एफपी डेस्क्
*झारखंड के आदिवासियों में अपनी संस्कृति को लेकर चेतना अब नया विस्तार पा रही है। उन्होंने एलान किया है कि अब यदि कोई *रावण_या_महिषासुर का पुतला जलायेगा तो उसके खिलाफ वे मुकदमा चलायेंगे।* रांची से प्रकाशित आईनेक्स्ट के 27 अगस्त अंक के प्रथम पृष्ठ पर प्रमुखता से छापी गयी खबर के मुताबिक वहां के आदिवासी अपने सांस्कृतिक अस्तित्व की लड़ाई को लेकर आक्रोश में हैं। खूंटी जिले के मुरही पंचायत के कांके में दो दिन पूर्व एसपी- डीएसपी सहित 80 अधिकारी- कर्मियों को 14 घंटे तक बंधक बनाए जाने के बाद से ही ग्रामसभा का मनोबल ऊंचा है।
प्रकाशित खबर के मुताबिक का
कांके (झारखण्ड) की *पारंपरिक_रूढि़या_प्रथा_प्राकृतिक_ग्रामसभा' के एक नए बयान के बाद से ही हड़कंप है। अब ग्रामसभा का नया आदेश सामने आया है, जिसमें बताया गया है कि *रावण_व_महिषासुर (महेषा मुर्मू) आदिवासियों के राजा सह पूर्वज हैं। उन्हें दशहरा में जलाना या राक्षस कहना सांस्कृतिक द्रोह ही नहीं, बल्कि देशद्रोह है।*
*यदि पांचवी_अनुसूचित क्षेत्र के जिलों में महाराजा रावण व महेषा मुर्मू (महिषासुर) को राक्षस कहकर जलाया गया, तो जिलों के उपायुक्तों पर देशद्रोह का मुकदमा चलेगा। ग्रामसभा ने केंद्र व राज्य सरकार सह भारत में रहनेवाले ब्राह्माण व हिंदुओं को आदेश दिया है। आदेश में कहा है कि उनके राजा सह पूर्वज रावण व महेषा मुर्मू (महिषासुर) हैं, इसलिए उनका सख्त आदेश है कि कोई भी समुदाय रावण व महिषासुर को राक्षस कहना व जलाना बंद करें।*
ऐसा करने पर संबंधित जिलों के उपायुक्तों पर देश द्रोह का मुकदमा चलेगा। यह मुकदमा *एट्रोसिटी एक्ट व* *आइपीसी124ए के तहत चलेगा। इसमें ऐसे अधिकारियों को बर्खास्त करने का भी प्रावधान है।*
बहरहाल फारवर्ड प्रेस के साथ बातचीत में अपने मुख्यमंत्रित्व काल में शिबू सोरेन ने भी रावण को अपना पूर्वज मानते हुए उनके पुतले को आग लगाने से इन्कार कर दिया था।
उल्लेखनीय है कि *दक्षिण_के_राज्यों में रावण और महिषासुर की पूजा की जाती है।*
इसके अलावा
*झारखंड के गुमला जिले में कई आदिम आदिवासी जनजातियां हैं जिनमें एक असुर आदिम जनजाति भी है। असुर जाति के लोग भी रावण और महिषासुर को अपना पूर्वज मानते है !!*
दुर्गा शादी शुदा है या कुंआरी
ReplyDeleteयदि शादी शुदा है और लोग इन्हें माता कहते है तो इनके पति का नाम क्या है।
माता तो कह दिया पिता जी किसको कहेंगे।
यदि ये कुमारी है तो सोलह स्रंगार इनपे क्यों चढ़ता है।
क्योकि हिंदु धर्म में कोई कुवारी लड़की स्रंगार नहीं करती है।
यदि किसी की माँ हो और बाप का पता ही न हो ऐसे संतानो को आप क्या कहेंगे ।
और हा इन्हें समाज भी स्वीकार नहीं करता है।
। अन्धविश्वास पाखण्ड से दूर रहो ।
जो पढ लिखकर भी अन्धविश्वास मे है , तो पुरे संसार मे उससे बड़ा पागल कोई नही है।
सम्भल जाओ वैज्ञानिक युग ,बुध्द।
कितना अच्छा हो की दशहरे पर जनता रावण का पुतला फूंकने के बजाय, रामरहीम,आशाराम,रामपाल और इसी तरह के दूसरे बाबाओ के पुतले बना कर देश के कोने -कोने में जलाये। मुझे लगता हैं ऐसा करने से पब्लिक में अच्छा ही सन्देश जाएगा।
ReplyDeleteरावण ने जो सीता को उठाकर ले गया था ससम्मान तो रखा बलात्कार तो नही किया? फिर भी हर साल उसका पुतला जलाया जलाया जाता है ,लेकिन इन बाबाओं ने तो महिलाओ की मर्यादाओं को तार- तार किया है।इन्होंने बलात्कार किया है,ये बलात्कारी है फिर भी इनके प्रति लोगो में इतना सॉफ्ट कॉर्नर क्यों? क्या और इंतजार इनके दुष्कृत्यों का? अगर नही तो हिम्मत करे ,आगे बढे,अपनी बहन -बेटियों की मर्यादाओं रक्षा के लिए इस तरह के सब बाबाओ के पुतले बनाकर इसी दशहरे पर जलाइये। रामलीला करने वालो के पास भी सन्देश भिजवाये।
अंधविश्वास भगाओ
20 हज़ार आदिवासियों की कुर्बानी से शुरू हुई थी आजादी की कहानी, 1855 में जगे थे हिन्दुस्तानी 2
ReplyDeletehttps://www.youtube.com/watch?v=41_7vf2i5OE&feature=youtu.be