Wednesday, 27 September 2017

कौन हम पर राज कर रहा है

🔥 🙏 !! वास्तव में कौन हम पर राज कर रहा है:  
 मुद्राराक्षस से बातचीत के प्रस्तुत हैं कुछ अंश.. 🙏 🔥

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रमेश भारती Cont.. 9226480007,
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!!  हमें देखना होगा कि भारत पर कौन राज करता है। हम जानते हैं कि लोग जो हम पर राज करते हैं वे हिंदू हैं जिनको आकार और संस्कार देने वाले ब्राह्मण हैं, एक ऐसा कुल जिसके मन में मानव मूल्यों का कोई महत्त्व नहीं। .......!!

👉 मुद्राराक्षस जाने-माने हिंदी लेखक हैं जिनके नाटक, लघुकथाएं और अन्य कृतियां क्रांतिकारी रूप में बहुजन सशक्तिकरण के मुद्दे उठाती हैं। स्वयं एक ओबीसी लेखक, मुद्राराक्षस ने भारत के स्वतंत्रता दिवस पर फॉरवर्ड प्रेस से बातचीत की। प्रस्तुत हैं कुछ अंश:

!! इस महीने भारत अपना 63वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। आपके इस बारे में क्या विचार हैं? क्या हम अपने समाज में प्रजातांत्रिक और मानवतावादी मूल्यों का प्रसार करने में सफल रहे हैं? !!

👉15 अगस्त 2010 के इस दिन हमें देखना होगा कि आज भारत पर राज कौन कर रहा है। हम जानते हैं कि लोग जो हम पर राज करते हैं वे हिंदू हैं जिनको आकार और संस्कार देने वाले ब्राह्मण हैं, एक ऐसा कुल जिसके मन में मानव मूल्यों का कोई महत्त्व नहीं।
19 वीं सदी के एक क्राँतिकारी समाजशास्त्री थोस्रटीन वेबलेन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द थ्योरी ऑफ़ द लिबरल’ क्लास में उचित ही कहा है कि ब्राह्मण विलासी वर्ग का हिस्सा हैं, जिन्होंने मानव इतिहास में कोई सृजनात्मक भूमिका नहीं निभाई।
भारत में सत्तासीन वर्ग के साथ सांठगांठ करके उन्होंने हमारे समाज के बहुसंख्यक वर्ग को मान न देकर ”पिछड़ा’’ बनाए रखा है, बिना किसी सामाजिक, सांस्कृतिक या आर्थिक अधिकार के।

👉 आप हिंदू बौद्धिक उपलब्धियों की काफी निराशाजनक तस्वीर पेश कर रहे हैं। अक्सर यह दावा किया जाता है कि ब्राह्मणवादी विचारधारा ही सच्ची भारतीय विचारधारा है। ब्राह्मणवादी लेखकों ने भारतीय राष्ट्रवाद में काफी योगदान दिया है: वे तो मातृभूमि की भी पूजा करते हैं, भारत माता की जय बोलकर

👉भारत में हिंदू मनुष्य को छोड़ हर वस्तु को आदर्श बनाता और उसकी पूजा करता है।
 हिंदू एक विचित्र समुदाय है जो जानवरों के मल की भी पूजा करता लेकिन मनुष्य से घृणा करता है। केवल यहीं नहीं, हिंदू सीखने से और किसी भी प्रकार के ज्ञान और वैज्ञानिक खोज से भी घृणा करता है।

!! शंकराचार्य जैसे महान दार्शनिकों के बारे में आपका क्या कहना है? !!

👉यदि हम भारतीय इतिहास को देखें तो हम पाते हैं कि शंकराचार्य के भक्ति आंदोलन के आने के बाद हिंदू धर्म ने बौद्ध धर्म का दमन किया।
यह जानना दिलचस्प है कि इस हिंदू विचारक ने दार्शनिक विचार पर एक भी पुस्तक नहीं लिखी। वह न तो मौलिक चिंतक थे और न ही दार्शनिक।
उन्होंने किन्हीं प्राचीन कृतियों की विवेचना मात्र ही की है, जैसे कि गीता, ब्रह्मसूत्र और उपनिषद।    भारत में मौलिक दार्शनिक कृतियाँ बौद्ध विचारकों ने रची थीं न कि हिंदू ब्राह्मणों ने।

!! ब्राह्मण भारत के शिक्षक रहे हैं  फिर भी आप कहते हैं कि उन्होंने मानवतावादी मूल्यों का प्रसार नहीं किया। !!

👉यह गलत प्रचार किया गया है कि भारत में ब्राह्मणों का काम शिक्षा देना और शिक्षा लेना था। उपनिषद हमें साफ बताते हैं कि ब्राह्मण मात्र अपनी धार्मिक पुस्तकों की शिक्षा ब्राह्मण छात्रों को देते थे जिसका एकमात्र उद्देश्य था उन्हें हिंदू कर्मकांडों में कुशल बनाना।
प्रत्येक उपनिषद साफ-साफ कहता है कि सीखने का वास्तविक लक्ष्य था ब्रह्म को जानना, अर्थात्, ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त करना, और जो कुछ एक ब्राह्मण जानता है ब्रह्म ज्ञान वही है। इसका अर्थ यह हुआ कि किसी ब्राह्मण की मूर्खता भी ब्रह्म ज्ञान है।

!! यह तो घुमावदार तर्क हुआ। !!

👉गौर करने वाली दिलचस्प बात यह है कि किसी भी ब्राह्मण के लिए ज्ञान का सर्वोच्च रूप ब्रह्म का ज्ञान है लेकिन कोई ब्राह्मण पुस्तक हमें यह नहीं बताती कि ब्रह्म क्या है।
ब्राह्मण पुस्तकें केवल यह कहती हैं कि ब्रह्म वह है जो केवल एक ब्राह्मण को पता है।
यदि एक ब्राह्मण मूर्खता को भी ब्रह्म कहे तो उस पर विवाद नहीं करना चाहिए क्योंकि ब्राह्मण से न तो सवाल किया जा सकता है और न उसका विरोध किया जा सकता है।
महाभारत का भीष्म पर्व, [ वह अध्याय जो भीष्म से संबंधित है,]  कहता है कि वह जो ब्राह्मण को अपने तर्क से पराजित करता है उसे दुष्ट माना जाए और डंडों से उसकी पिटाई की जाए।

!! कई आधुनिक राष्ट्रीय नेता, जैसे कि गांधी, इस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल नहीं करते। क्या उन पर भी आरोप लगाएंगे? !!

👉 दु:ख की बात है कि गांधी ने भी जाति-आधारित हिंदू धर्म की इस मानव विरोधी सामाजिक व्यवस्था को समर्थन दिया।
हमारी लगभग आधी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रहती है
और इस सारे तबके — दलित, ओबीसी या फिर अनुसूचित जनजाति — की नियति धरती के बदकिस्मत लोग बन कर ही रहने की होगी यदि हिंदू धर्म राज करना जारी रखता है।

!! आप बहुजन के लिए आशा कहां देखते हैं? समकालीन, स्वतंत्र भारत में उनके लिए क्या सकारात्मक होता दिखता है? !!

👉 जब तक ब्राह्मणवाद पराजित नहीं होता तबतक कोई आशा नहीं है।
ब्राह्मणवादी धार्मिक विचारों और कृतियों की आलोचनात्मक रीति से समीक्षा करनी होगी ताकि लोग समझ पाएँ कि किसने उन्हें गुलाम बना रखा है और किस प्रकार।
भारतीय मनस पर ब्राह्मणवादी परछाई छाई हुई है और जब तक यह परछाई मिट नहीं जाती कोई भी सकारात्मक विचार उभरने वाला नहीं।
यदि गरीबों और निस्सहायों की वर्तमान स्थिति को बदलना है तो वह तभी होगा जब हम सबसे पहले प्रचलित ब्राह्मणवादी विचारों की आलोचना करें।

ब्राह्मणवादी धार्मिक पुस्तकों को आलोचनात्मक ढंग से जांचना होगा और ऐसे लोग हैं जो यह काम कर रहे हैं। लेकिन उनमें से कई संस्कृत नहीं जानते, इसलिए यह काम अभी आधा ही हुआ है।

 !!  मेरे बहुजन मूलनिवासी भाईयो ब्राह्मणवाद के नियमो को अपने समाज तक पहुचावो, साथ ही अपने सभी भाईयो को इससे अवगत करावो। की आखिर ये ब्राह्मणवाद क्या है??
 जिस के कारण हमारे पूर्वज से लेकर आज भी हम इनके गुलाम है....

💐 बहुजन हिताए बहुजन सुखाये।।। 💐


यह रमेश भंगी की फ़ेसबुक से प्राप्त हुआ है। हमारी सोच को मूर्त रूप दिया है ब्रायन ने। मैं पहले से कहता रहा हूँ कि हमारी हर समस्या की जड़ हमारी तथाकथित संस्कृति में ही है।हर अपराध और समस्या के लिए धर्म और संस्कृति जिम्म्मेदार है और आज इसे बढ़ावा देने वाले अधिक जिम्मेदार हैंAn eye opener for us Indians.
दुनिया के भ्रष्टाचार मुक्त देशों में शीर्ष पर गिने जाने वाले न्यूजीलैंण्ड के एक लेखक ब्रायन ने भारत में व्यापक रूप से फैंलें भष्टाचार पर एक लेख लिखा है। ये लेख सोशल मीडि़या पर काफी वायरल हो रहा है। लेख की लोकप्रियता और प्रभाव को देखते हुए विनोद कुमार जी ने इसे हिन्दी भाषीय पाठ़कों के लिए अनुवादित किया है।
*न्यूजीलैंड से एक बेहद तल्ख आर्टिकिल।*
*भारतीय लोग  होब्स विचारधारा वाले है (सिर्फ अनियंत्रित असभ्य स्वार्थ की संस्कृति वाले)*
भारत मे भ्रष्टाचार का एक कल्चरल पहलू है। भारतीय भ्रष्टाचार मे बिलकुल असहज नही होते, भ्रष्टाचार यहाँ बेहद व्यापक है। भारतीय भ्रष्ट व्यक्ति का विरोध करने के बजाय उसे सहन करते है। कोई भी नस्ल इतनी जन्मजात भ्रष्ट नही होती।
*ये जानने के लिये कि भारतीय इतने भ्रष्ट क्यो होते हैं उनके जीवनपद्धति और परम्पराये देखिये।*
भारत मे धर्म लेनेदेन वाले व्यवसाय जैसा है। भारतीय लोग भगवान को भी पैसा देते हैं इस उम्मीद मे कि वो बदले मे दूसरे के तुलना मे इन्हे वरीयता देकर फल देंगे। ये तर्क इस बात को दिमाग मे बिठाते हैं कि अयोग्य लोग को इच्छित चीज पाने के लिये कुछ देना पडता है। मंदिर चहारदीवारी के बाहर हम इसी लेनदेन को भ्रष्टाचार कहते हैं। धनी भारतीय कैश के बजाय स्वर्ण और अन्य आभूषण आदि देता है। वो अपने गिफ्ट गरीब को नही देता, भगवान को देता है। वो सोचता है कि किसी जरूरतमंद को देने से धन बरबाद होता है।
*जून 2009 मे द हिंदू ने कर्नाटक मंत्री जी जनार्दन रेड्डी द्वारा स्वर्ण और हीरो के 45 करोड मूल्य के आभूषण तिरुपति को चढाने की खबर छापी थी। भारत के मंदिर इतना ज्यादा धन प्राप्त कर लेते हैं कि वो ये भी नही जानते कि इसका करे क्या। अरबो की सम्पत्ति मंदिरो मे व्यर्थ पडी है।*
*जब यूरोपियन इंडिया आये तो उन्होने यहाँ स्कूल बनवाये। जब भारतीय यूरोप और अमेरिका जाते हैं तो वो वहाँ मंदिर बनाते हैं।*
*भारतीयो को लगता है कि अगर भगवान कुछ देने के लिये धन चाहते हैं तो फिर वही काम करने मे कुछ कुछ गलत नही है। इसीलिये भारतीय इतनी आसानी से भ्रष्ट बन जाते हैं।*
*भारतीय कल्चर इसीलिये इस तरह के व्यवहार को आसानी से आत्मसात कर लेती है, क्योंकि*
1 नैतिक तौर पर इसमे कोई नैतिक दाग नही आता। एक अति भ्रष्ट नेता जयललिता दुबारा सत्ता मे आ जाती है, जो आप पश्चिमी देशो मे सोच भी नही सकते ।
2 भारतीयो की भ्रष्टाचार के प्रति संशयात्मक स्थिति इतिहास मे स्पष्ट है। भारतीय इतिहास बताता है कि कई शहर और राजधानियो को रक्षको को गेट खोलने के लिये और कमांडरो को सरेंडर करने के लिये घूस देकर जीता गया। ये सिर्फ भारत मे है
भारतीयो के भ्रष्ट चरित्र का परिणाम है कि भारतीय उपमहाद्वीप मे बेहद सीमित युद्ध हुये। ये चकित करने वाला है कि भारतीयो ने प्राचीन यूनान और माडर्न यूरोप की तुलना मे कितने कम युद्ध लडे। नादिरशाह का तुर्को से युद्ध तो बेहद तीव्र और अंतिम सांस तक लडा गया था। भारत मे तो युद्ध की जरूरत ही नही थी, घूस देना ही ही सेना को रास्ते से हटाने के लिये काफी था।  कोई भी आक्रमणकारी जो पैसे खर्च करना चाहे भारतीय राजा को, चाहे उसके सेना मे लाखो सैनिक हो, हटा सकता था।
प्लासी के युद्ध मे भी भारतीय सैनिको ने मुश्किल से कोई मुकाबला किया। क्लाइव ने मीर जाफर को पैसे दिये और पूरी बंगाल सेना 3000 मे सिमट गई। भारतीय किलो को जीतने मे हमेशा पैसो के लेनदेन का प्रयोग हुआ। गोलकुंडा का किला 1687 मे पीछे का गुप्त द्वार खुलवाकर जीता गया। मुगलो ने मराठो और राजपूतो को मूलतः रिश्वत से जीता श्रीनगर के राजा ने दारा के पुत्र सुलेमान को औरंगजेब को पैसे के बदले सौंप दिया। ऐसे कई केसेज हैं जहाँ भारतीयो ने सिर्फ रिश्वत के लिये बडे पैमाने पर गद्दारी की।
सवाल है कि भारतीयो मे सौदेबाजी का ऐसा कल्चर क्यो है जबकि जहाँ तमाम सभ्य देशो मे ये  सौदेबाजी का कल्चर नही है
3- *भारतीय इस सिद्धांत मे विश्वास नही करते कि यदि वो सब नैतिक रूप से व्यवहार करेंगे तो सभी तरक्की करेंगे क्योंकि उनका “विश्वास/धर्म” ये शिक्षा नही देता।  उनका कास्ट सिस्टम उन्हे बांटता है। वो ये हरगिज नही मानते कि हर इंसान समान है। इसकी वजह से वो आपस मे बंटे और दूसरे धर्मो मे भी गये। कई हिंदुओ ने अपना अलग धर्म चलाया जैसे सिख, जैन बुद्ध, और कई लोग इसाई और इस्लाम अपनाये। परिणामतः भारतीय एक दूसरे पर विश्वास नही करते।  भारत मे कोई भारतीय नही है, वो हिंदू ईसाई मुस्लिम आदि हैं। भारतीय भूल चुके हैं कि 1400 साल पहले वो एक ही धर्म के थे। इस बंटवारे ने एक बीमार कल्चर को जन्म दिया। ये असमानता एक भ्रष्ट समाज मे परिणित हुई, जिसमे हर भारतीय दूसरे भारतीय के विरुद्ध है, सिवाय भगवान के जो उनके विश्वास मे खुद रिश्वतखोर है।*"
【लेखक-ब्रायन】 



 सदियों के चली आ रही मानसिक गुलामी को बेड़ियों को तोड़कर पिछड़े वर्ग के विभिन्न समुदाय अब ब्राह्रणवादी संस्कृति से बाहर निकलने के लिए छटपटा रहे हैं। महात्मा ज्योतिबा फुले ने बहुचर्चित ‘गुलामगिरी’ पुस्तक में लिखा भी है कि जब तक गुलाम को अपनी गुलामी का अहसास ही नहीं होगा वो अपनी आजादी के लिए प्रयास भी नहीं करेगा।

बाबा साहेब को मानने वाले अनुसुचित जाति को इस गुलामी का अहसास बहुत पहले हो गया था लेकिन अब समय के साथ खेती-किसानी कम होने और नौकरी को समाज में सम्मानित स्थान मिलने की वजह से क्षत्रित्व का लवादा ओढ़े पिछड़ों को भी अहसास हो रहा है कि कि शारीरिक रूप से ना सही लेकिन मानसिक रूप से वो ब्राह्मणवादी सिस्टम में फंसकर अपना बहुत कुछ गवां चुके हैं।

आदर्श जाट महासभा राजस्थान व वीर तेजा सेना के तत्वाधान में 23-24 सितंबर को पुष्कर अजमेर में आयोजित राष्ट्रीय जाट चिंतन शिविर में जो प्रस्ताव पारित किए गए हैं। वो इसी जागरूकता और सामाजिक न्याय के बढ़ते दायरे का एक उदाहरण नजर आता है-

महत्वपूर्ण प्रस्ताव-

1-.ब्राह्मणवादी तीर्थ यात्राओं को बंद करेंगे व वीर तेजाजी धाम खरनाल, धन्ना भगत, सांपला व सिरसौली की यात्रा करेंगे व जाट के युवाओं को इन चारों धाम के इतिहास से रूबरू होने के लिए प्रेरित करेंगे एक जाट पर्यटन सर्किट विकसित करेंगे।

2-सिख, विश्नोई बंधुओं की तरह ब्राह्मणवादियों के लिए घर के दरवाजे बंद करने की मुहिम चलाएंगे व हर जाट को इसके लिए समझाकर राजी करेंगे।

3-कांग्रेस-बीजेपी के टिकट पर जो भी जाट चुनाव के मैदान में उतरेगा उसको हम वोट नहीं देंगे।जब किसानों की जमीन छिनने का SIR कानून पास हुआ तो एक भी विधायक ने मुंह नहीं खोला।

4.पाखंड व अंधविश्वास को छोड़ने से जो भी बचत होगी वो कौम के गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए तेजा फाउंडेशन में जमा करवाएंगे।

5.कौम की बेटियों की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

https://www.nationaljanmat.com/adarsh-jat-mahasabha-no-vote-bjp-congress-rajsthan-ajmer/



*🇮🇳बाबा साहब द्वारा लिखीत बुक्स जात-पात का विनाश (Annihilation of Caste) नामक बुक्स से लिया गया है।🙏*

*नोट: मान्यवर कांशी राम साहब ने यही एक बुक्स को पढ़कर देश में इतनी बड़ी क्रांति ला दिए थे कि भारत के सबसे बड़े प्रदेश में अस्पृश्यों का शासन आ गया था।*

*_👉बाबा साहब लिखते है महाराष्ट्र में पेशवाओ के शासनकाल में यदि कोई सवर्ण हिन्दू सड़क पर चल रहा होता था तो अछूतो को वहाँ चलने की आज्ञा नही होती थी। यह ब्राह्मण धर्म की मान्यता थी कि अछूत की छाया किसी हिन्दू पर पड़ जाने से वह उसे अपवित्र हो जाएगा। अछूत को अपनी कलाई पर या गले में निशानी के तौर पर एक काला डोरा बाधना पड़ता था। (जो कि आजकल नौजवान फैसन में बांध कर अपने आपको अछूत का प्रमाण देते है) ताकि हिन्दू भूल से उसे छूकर अपवित्र न हो जाए। पेशवाओं की राजधानी पूना में अछूतों को कमर में एक झाड़ू भी बांध कर चलना पड़ता था। क्योंकि उनके चलने से पैरों के द्वारा जमीन पर जो निशान बने वह कमर में बंधे झाड़ू से मिटता जाए। ताकि कोई हिन्दू अछूत के पैरों के निशानों पर अपने पैर रखने से अपवित्र न हो जाए।_*
*_👉पेशवा के राज्य में अछूत कही भी जाए उनको अपने गले मे मिट्टी की हांडी लटका कर चलना पड़ता था ताकि उसे थूकना हो तो उसी हांडी में ही थूके क्योंकि जमीन पर थूकने से यदि उसके थूकने पर किसी हिन्दू का पैर पड़ गया तो वह अपवित्र हो जाएगा। बाबा साहब लिखते है कि मैं हालही की कुछ घटनाओं को साक्ष्य के रूप में बता रहा हूँ।➡_*
*_सेंट्रल भारत में बलाई नाम की एक अछूत जाति रहती है। हिंदुओं द्वारा उन पर किए गए अत्याचार मेरी बात स्पष्ट कर देंगे। 4⃣ जनवरी 1⃣9⃣2⃣8⃣ के टाइम्स आफ इंडिया अखबार में इन जुर्मों की रिपोर्ट छपी है। इस रिपोर्ट में लिखा है कि हिन्दूओ ने अर्थात कटोलिया, राजपूत, और ब्राह्मणों ने जिसमें लगभग 15 से बीस गाओं हिंदुओं ने अपने-अपने गांव के अछूतों को धमकी दी कि यदि तुम हमारे सहारे जिंदा रहना चाहते हो तो तुम्हे हमारी यह आज्ञाएं माननी पड़ेगी।_*
*1⃣ अछूत जाति के लोग सुनहरी गोटा की किनारी वाली पगड़ी नहीं पहनेंगे।*
*2⃣ अछूत जाति के लोग रंगीन या सुंदर किनारे वाली फैशनेबल धोती नहीं पहनेंगे।*
*3⃣ वे किसी भी हिन्दू की मौत की खबर उसके कितने ही दूर रिस्तेदारों को जरूर पहुचायेंगे।*
*4⃣ वे सभी हिंदुओं के विवाह समारोह में बारात में बाजा बजाते हुवे चलेंगे।*
*5⃣ अछूत (बलाई, चमार, धोबी, पासी, वाल्मीकि, सोनकर, खटिक, चमार जो आजकल जाटव लिखने लगे है, डोम, धरकार आदि) की स्त्रियां सोने चांदी के गहने व सुंदर गोटे व फैशनदार कपड़े भी नही पहनेंगी।*
*6⃣आछूट जाति की औरतें हिन्दू औरतों के बच्चों के जन्म के समय प्रसूति में उनकी सेवा करेंगी।*
*7⃣ अछूत लोग हिंदुओं की सेवा करने की एवज में कोई मेहनताना नही मांगेंगे तथा हिन्दू उन्हें अपनी इच्छा से जो कुछ भी देंगे वे उसे स्वीकार कर संतुष्ट हो जाएंगे।*
*8⃣ यदि अछूत लोगों को यह शर्त स्वीकार नहीं हो तो वे गांव छोड़कर निकल जाए।*
*_👉 अछूतों ने इन आज्ञाओं को मनाने से इन्कार कर दिया तो हिंदुओं ने उनके खिलाफ सामाजिक कार्यवाही शुरु कर दी। अछूतों को गांव के कुओ से पानी भरने और अपने पशु चराने से रोक दिया (ऐसी घटनाएं आज के डेट में भी भारत में हो रही है।) अछूतों को हिंदुओं के जमीन से होकर जाने से भी रोक दिया। ताकि यदि अछूतों के खेत के आस-पास हिंदुओ के खेत हो तो अछूत अपने खेत मे न जा सके। हिंदुओं ने अछूतों के खेतों में अपने पशु चरने के लिए छोड़ दिए। अछूतों ने इस अत्याचार के खिलाफ इंदौर दरबार में अर्जी दाखिल की लेकिन उचित समय पर मदद नही मिल सकने और जुर्म जारी रखने के कारण सैकड़ो अछूत परिवार अपने बीबी-बच्चो सहित अपनी पुस्तैनी जगह व जमीन छोड़ने पर मजबूर हो गए जिनमें उनके बाप दादा पीढ़ियों से रहते आए। अछूत लोग उस इलाके के आस पास की रियासतों  के गांवों में चले जाने के लिए मजबूर हो गए। उनके नए घरों में उनके साथ क्या बीती इसका वर्णन करना बाबा साहब को बहुत कठिन लगा।_*
*_👉 सन 1935 के आस-पास की घटना है जो गुजरात के कविथा गांव में हुई एक घटना इस गांव के हिंदुओ ने अछूतों को आदेश दिया कि वे गांव के सरकारी स्कूल में अपने बच्चों को भेजने के लिए हाथा-जोड़ी नही करे। हिंदुओं के इच्छा के खिलाफ अपने नागरिक अधिकारों के उपयोग करने का साहस करने के लिए बेचारे अछूतों को कितना जुर्म सहन करना पड़ा, यह लगभग हर कोई जानता है। इसको ज्यादा वर्णन करने की जरूरत नही है। जब आज के डेट में ऊना जैसी घटना हो रही है तो सन 1928 व 1935 व उसके आस-पास क्या स्थिति रही होगी आप खुद समझ सकते है।_*
*_👉 गुजरात की एक घटना और हुई थी गुजरात के अहमदाबाद जिले के जुहू नामक गांव की नवम्बर 1935 में कुछ सम्पन्न अछूत परिवारों की औरतों ने धातु के बर्तनों में पानी लाना शुरू कर दिया । हिंदुओं ने अछूतों द्वारा धातु के बर्तनों का प्रयोग करना अपनी शान के खिलाफ अपना अपमान समझा। इन गुस्ताखी के लिए अछूत औरतों को हमला करके निर्दयता से मारा पीटा। जिससे कि परिवार की बहुत छति हुई।_*

*नोट: बाबा साहब के विचार को पढ़िये जागरूक होइए और समाज को जागरूक करिये।*
 


2 comments:

  1. संकल्प दिवस के मौके पर बसपा के कार्यक्रम को बिगाड़ने में जुटी भाजपा
    https://www.youtube.com/watch?v=HGf4yWJI1o8&feature=youtu.be
    https://www.youtube.com/watch?v=5-TMQgSoWrE

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  2. आरक्षण से नौकरी लेने वालों का कड़वा सच, देख कर खून खौल जायेगा- प्रो. भगवान दीन का जोरदार भाषण
    https://www.youtube.com/watch?v=UsZcERWGYTg&feature=youtu.be

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