Sunday, 22 October 2017

रोहिंग्या समुदाय

 रोहिंग्या समुदाय


  यह बताने की जरूरत नहीं की बौद्ध मुख्यतः शान्तिप्रिय होते हैं ,भारत से बौद्धों को नष्ट करने में हिंसा का सहारा लिया गया था इस बात की पुष्टि शंकरदिग्गविजय जैसे ग्रन्थ करते हैं ।कहते हैं कि शंकराचार्य के गुरु कुल्लूक भट्ट के साथ राजा सुन्धवा की पूरी सेना चलती थी बौद्धों के संहार के लिए। उससे पहले बौद्ध उन्मूलन शुंग के राज से ही शुरू हो चुका था ।

अफगानिस्तान कभी बौद्ध बहुल था किंतु वँहा बौद्धों का संहार अरब से उठने वाली इस्लामिक आंधी ने किया ,आज अफगानिस्तान में बौद्ध खोजे नहीं मिलेंगे । बौद्धों के साथ साथ उनके प्रतीकों को भी ऐसा नष्ट किया गया आज कोई नाम लेवा नहीं बचा वँहा । इस्लाम के अनुयायियों में बौद्धों के प्रति नफरत इतनी की अंतिम बौद्ध  प्रतीक बामियान में बुद्ध की मूर्ति तोड़ के नष्ट कर दिया गया , सभी बौद्ध अनुयाई दुःख और पीड़ा लिए लाचार  देखते रहें । किसी भी इस्लामिक देश ने इसकी निंदा में जबान तक नहीं खोली।

आज म्यांमार में जो रोहिंग्या मुसलमानो के साथ हो रहा है वह बेहद दुःखद है और ऐसा नहीं होना चाहिए किन्तु ऐसा क्या हुआ की शान्तिप्रिय बौद्धों को इतना क्रूर और हिंसक होना पड़ा? 
दरसल वँहा के बौद्ध समझ गएँ हैं की केवल शांतिप्रियता से अपनी जान और अपनी धरोहर नहीं बचाई जा सकती है , यदि वे शांति से सब कुछ सहते रहे तो उनका वही हाल होगा जो अतीत में अफगानिस्तान या भारत में हुआ ।

रोहिंग्या मुसलानों ने वंहा वही सब करना शुरू कर दिया था जैसा कश्मीर या पाकिस्तान में हिन्दुओ के साथ किया गया था । रोहिंग्या मुसलमानो ने म्यांमार में अपने हराका अल याकिन जैसे कई आतंकी संगठन बना लिये सऊदी अरब की सरपरस्ती में, म्यांमार में आतंकी वारदातों को अंजाम दिया जाने लगा और इसके लिये सऊदी अरब से धन मिलता,म्यांमार में पूजा स्थलों पर हमले होने लगे और बौद्धिस्ट युवा भिक्षुओं को जान से मारा जाने लगा । बौद्ध महिलाओं का बलात्कार होने, उनका  जबरन धर्म परिवर्तन होने लगे , रोहिंग्या मुसलमानो द्वारा अलग देश की मांग होने लगी जैसा की अक्सर कश्मीरी मुस्लिम करते हैं।

रोहिंग्या संगठन की हिम्मत इतनी बढ़ गई की बिहार में महाबोधि वृक्ष पर जो हमला हुआ था उसमें उनके तार जुड़ने लगे । रोहिंग्या आतंकी संगठन एक बड़ा सरदर्द बन गया म्यांमारी बौद्धों के लिए, वे अपने ही देश में इनका शिकार होने लगे । विवश शांतिप्रिय म्यांमार के बौद्धिस्ट लोगो ने झुकने के वजाये इन रोहिंग्या मुसलमानों को अपने देश से भगाने का फैसला किया , अन्यथा शायद कश्मीरी पंडितों की तरह उन्हें ही भागना पड़ता । म्यांमार बौद्धों ने अपने देश को अफगानिस्तान नहीं बनने दिया।

रोहिंग्या लोगो के साथ जो हो रहा है वह मानवता के खिलाफ है किंतु  उन्हें दुनिया से शिकायत करने से पहले खुद अपने अपराधों को भी देखना चाहिए, कैसे तुम लोगो ने एक शान्तिप्रिय समुदाय को इतना हिंसक और क्रूर होने पर मजबूर कर दिया  ।
यह आत्मनिरक्षण करना चाहिए की आखिर क्या कारण है कि 56 मुस्लिम देश ' बंधुत्व ' का दम्भ भरते है उनमे से कोई भी उनको अपने यंहा शरण नहीं दे रहा ? 

भारत पहले ही बांग्लादेशी घुसपैठियों से परेशान है, संसाधनों पर उनका अवैध कब्जे है जिन पर भारतीयों का हक़ है । भारत का रोहिंग्या समुदाय को शरण देने का मतलब है हराका अल याकिन जैसे आतंकी संगठनो को  अपने घर में  पालना जिसका कोई भी भारतीय समर्थन नहीं करेगा।

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