Saturday, 28 October 2017

धर्म भ्रष्ट कर डाला विधवा ने

ब्राह्मण वैज्ञानिक डॉ मेधा विनायक खोले का धर्म भ्रष्ट कर डाला विधवा कुक निर्मला यादव ने ....
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       यादव जी! आप खुद को क्षत्रिय समझे या कृष्ण का वंशज या यह रटते रहें कि "यदोरबंशः नरः श्रुत्वा,सर्व पापयै प्रमुच्यते"(यदुवंश का इतिहास सुनने से सारे पापों का विनाश हो जाता है) लेकिन आपकी मान्यता तुलसी दास मुताबिक "आभीर,यवन,किरात,खल,स्वपचादि अति अध रूपजे"(अहीर....अत्यंत अधम/नीच है।),ब्यास स्मृति के मुताबिक "बर्द्धिको, नापितो, गोपः, आशापः,कुम्भकारकः,.....ऐते अंत्यणाः समारण्याता ए चान्ये च गवासनाः।एसाम संभाषानात्मानम  दर्शनाद के बृक्षणम।"(बढ़ई,नाई, ग्वाला,चमार,कुम्भकार,बनिया,चिड़ीमार,कायस्थ,माली,कुर्मी,भंगी, कोल और चांडाल,ये सभी अपवित्र हैं।इनमें से एक पर भी दृष्टि पड़ जाय तो सूर्य दर्शन करने चाहिए तब द्विजाति का व्यक्ति पवित्र होता है।)
        यादव जी!आप चाहे जितनी तरक्की कर जांय पर जाति आपका पीछा नही छोड़ेगी तभी तो कथित त्रेता में राम ने समुद्र के यह कहने पर कि "हे राम! हमारे बगल में स्थित पवित्र राज्य द्रुमकुल्य निवासी पापी व नीच अहीरों के स्पर्श से हमे बड़ी पीड़ा होती है,आप अपने अमोघ व अशनि बाण को उन्ही पर छोड़ दीजिए",राम ने अपना बाण उन पर छोड़कर के अहिरो को मार डाला था।(देखें- बाल्मीकि रामायण-युद्ध कांड के 22 वें अध्याय का राम-समुद्र संवाद देखें।)
         यादव जी! आप चाहें कथित त्रेता के अहीर कृष्ण को भगवान कहें,वैज्ञानिक कहें,गणतंत्र के महान रचयिता कहें लेकिन आर्यो का ऋग्वेद उन्हें असुर,दानव कहता है और उनका वध इंद्र के हाथों उनकी गर्भिणी पत्नियों सहित करवा देता है।(ऋग्वेद मण्डन-1के सूक्त 101का पहला मन्त्र,मण्डन-1,सूक्त-130 का आठवां मन्त्र,मण्डन -8,सूक्त-96 के मंत्र -13,14,15,17 को देखें।)
          यादव जी!कथित कलियुग में आप मुलायम,लालू,शरद,अखिलेश,तेजश्वी या और भी अन्यान्य क्षेत्रो के महारथी यादवो का नाम लेकर खुद को गौरवान्वित महसूस करते रहे पर पढ़ी-लिखी,शोधार्थी,वैज्ञानिक,आईएएस ब्राह्मण महिला डॉ मेधा विनायक खोले की नजर में आप नीच,शूद्र, अधम और तिरस्कार योग्य ही हैं।
            दक्षिण भारत मे ब्राह्मणवाद के मजबूत किले के रूप में विद्यमान पुणे की मौसम वैज्ञानिक डॉ मेधा विनायक खोले को खाना बनाने हेतु ब्राह्मण महिला कुक चाहिए थी।निर्मला नाम की एक विधवा ने इस वैज्ञानिक ब्राह्मणी के वहां खाना बनाने हेतु सारी तहकीकात के बाद  नौकरी कर लिया।एक वर्ष बाद जब इस ब्राह्मण वैज्ञानिक को पता चला कि उसकी रसोइया निर्मला ब्राह्मण न होकर यादव है तो इस आधुनिक भारत के वैज्ञानिक मेधा की मेधा ने मनुवाद के समक्ष घुटने टेक दिया और इस वैज्ञानिक महिला ने उस विधवा निर्मला यादव के बिरुद्ध धार्मिक भावना भड़काने सहित 419,352,504 आईपीसी के तहत सिंहगढ़ रोड पुलिस स्टेशन पुणे में मुकदमा लिखवा दिया है।
          मामला बड़ा पेचीदा है।देश का कानून अस्पृश्यता को अपराध मानता है लेकिन अहीर(यादव) अस्पृश्य नही है इसलिए अस्पृश्यता निवारण कानून अहीर से अस्पृश्यता करने पर प्रभावी नही होगा।अहीर स्वयंभू क्षत्रिय है लेकिन कोई उसे क्षत्रिय मानता नही।बड़ी पेशोपेश में स्थिति है क्योंकि अहीर न शूद्र/अस्पृश्य है और न क्षत्रिय,अहीर खुद को चाहे जो समझे पर उसे इस आधुनिक और तरक्की कर रहे भारत मे डॉ मेधा विनायक खोले ने खोल करके रख दिया है और इसमें थाना ने विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर एक नए विमर्श का दरवाजा खोल दिया है।
            निश्चित तौर पर हम सवाल कर सकते हैं कि इस आधुनिक भारत मे हम किस तरह का समाज बनाने जा रहे हैं?पढ़ने-लिखने के बावजूद हमारा दकियानूस स्वभाव  क्यो हमे जातीय दम्भ से निकलने नही दे रहा है?इस वैज्ञानिक महिला को आप किस नजरिये से देखेंगे?
          यादव जी! सुनिए,गुनिये,धुनिये और आगे का निष्कर्ष निकालते रहिए कि आप हैं क्या-85% वाले शोषित या 15% वाले शोषक?लड़ाई श्रमजीवी और परजीवी के बीच है पर यह परजीवी है बहुत चालाक जिसे हमारे विभाजन का लाभ मिल रहा है।
*चंद्रभूषण सिंह यादव*



 अछूत हिन्दुओं की ( जो दलित नाम से आमजनता जानती हैं)  = 
हमारी समस्या आर्थिक नहीं है !

जमीन मिल जाने से या रोटी, कपड़ा और मकान मिल जाने से क्या हमारा सामाजिक स्तर सुधर सकता है ???
बिलकुल नही...
आज गांव में हमारे कई ऐसे लोग है जिनके पास खेतों के खेत है, गाड़ी-बंगला और अच्छा खाना भी है फिर भी वह कहलाता तो दलित ही है ! उनका सामाजिक स्तर में क्या सुधार हुआ है ???

बाबासाहब की लड़ाई जमीन, रोटी, कपड़ा और मकान की नहीं है... बाबासाहब की लड़ाई स्वमान की लड़ाई है, सामाजिक समानता की लड़ाई है, जातिवाद के खिलाफ की लड़ाई है, ब्राह्मणवाद के खिलाफ की लड़ाई है, राजकीय सत्ता प्राप्त करने की लड़ाई है तो कृपया इसे रोटी, कपड़ा, मकान और दो गज जमीन में भुलाओ मत... यह अस्तित्व की लड़ाई है, यह सामाजिक लड़ाई है, यह वैचारिक लड़ाई है...
कोई अत्याचार के पीछे गंदा खेल खेलने की और स्व-प्रसस्ति प्राप्त करने की बिल्कुल नही।

भारत का इतिहास उठा के देख लो और बाबासाहब ने भी कहा है कि भारत का इतिहास ओर कुछ नही किन्तु ब्राह्मणवाद और बौद्धवाद की लड़ाई है... यह सदियों से चली आ रही है और आज भी चल रही है... इसमें आज का युवाधन वामपंथी और नास्तीकवाद में घुस कर हमारे महापुरुषों और बाबासाहब ने जो संघर्ष किया है उसे लाल सलाम, इन्क़िलाब और आझादी के नारों से भुला और भटका रहा है... ऐसी चेष्टा मत कीजिए... अभी आंबेडकरवादी लोग जिंदा है, हमें गीता का कृष्ण या आपके कनैया की जरूरत नहीं है !
जैसे ब्राह्मणवाद और बौद्धवाद कभी भी एक साथ नही चल सकते वैसे ही लाल सलाम और नीला सलाम एक साथ नही चल सकते...

समाज के युवा वर्ग और वामपंथीयो को अपील है कि अगर लड़ना ही है तो बाबासाहब ने जो 22 प्रतिज्ञा दी है उसे लेकर लड़ो... बाबासाहेब ने जो धम्म का रास्ता दिया है उसे लेकर आगे चलो... बाबासाहेब ने जो राजसत्ता हांसिल करने की लड़ाई कही है वो लड़ाई लड़ो... हमें जमीन, रोटी, कपड़ा और मकान की भीख नहीं चाहिए ।

हमे बाबासाहेब के ऊपर पूरा भरोसा है कि उनके दिखाए रास्ते पे चलने से हमारा और सर्वहारा समाज का विकास होगा नहीं कि लाल सलाम और हमें चाहिए आझादी के नारे से... अरे मूर्ख लोगों इतना तो सोचिए कि बाबासाहेब ने संविधान की रचना से हमे गांधीनगर और दिल्ली में बैठने के रास्ते खोल दिये है तो हमारी कूच दिल्ली या गांधीनगर की ओर होनी चाहिए और बाबासाहेब ने बौद्ध धम्म और 22 प्रतिज्ञा देकर मनुवाद, ब्राह्मणवाद, आरएसएस, हिंदूवाद इस सब वाद से आझाद करा दिया है तो फिर क्यों हम गला फाड़ फाड़ के मनुवाद से आझादी मांग रहे है ?
किसने कहा है आपको की आप मनुवाद और ब्राह्मणवाद की रस्सी अपने गले मे लेकर घूमो... निकालकर फेंक दो और स्वीकार कर लो दुनिया का सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक धर्म... मिल जाएगी सब चीज से आझादी...
बाबासाहेब के नाम पर गंदा खेल जल्द ही बंद होना चाहिए और बाबासाहेब के बताए हुवे रास्ते पे चलना चाहिए तो हम हर कदम में आपके साथ है !

जय भीम👏🌻👏

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