Saturday 28 October 2017

महिला क्रांति के मसीहा

:भारतीय महिला क्रांति के मसीहा थे
 '‘विश्वरत्न डाँ.बाबासाहेब आंबेडकर’'
डाँ. बाबासाहेब आंबेडकर यह बात समझते थे कि स्त्रियों की स्थिति सिर्फ ऊपर से उपदेश देकर नहीं सुधरने वाली, उसके लिए क़ानूनी व्यवस्था करनी होगी। इस संदर्भ में महाराष्ट्रीयन बहुजन लेखक बाबुराव बागुल कहते है, ‘हिंदू कोड बिल" महिला सशक्तिकरण का असली आविष्कार है। इसी कारण बाबासाहेब डाँ. भिमराव आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल अस्तित्व में लाया जिसकी प्रस्तुति के बिंदु निम्न थे –
• यह बिल हिंदू स्त्रियों की उन्नति के लिए प्रस्तुत किया गया था ।
• इस बिल में स्त्रियों को तलाक लेने का अधिकार था ।
• तलाक मिलने पर गुज़ारा भत्ता मिलने का अधिकार था ।
• एक पत्नी के होते हुए दूसरी शादी न करने का प्रावधान किया गया था ।
• गोद लेने का अधिकार था ।
• बाप-दादा की संपत्ति में हिस्से का अधिकार था।
• स्त्रियों को अपनी कमाई पर अधिकार दिया गया था ।
• लड़की को उत्तराधिकार का अधिकार था ।
• अंतरजातीय विवाह करने का अधिकार था ।
• अपना उत्तराधिकारी निश्चित करने की स्वतंत्रता थी ।
इन सभी बिंदुओं के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि ‘हिंदू कोड बिल’ भारतीय महिलाओं के लिए सभी मर्ज़ की दवा थी । क्योंकि बाबासाहेब आंबेडकर समझते थे कि असल में समाज की मानसिक सोच जब तक नहीं बदलेगी तब तक व्यावहारिक सोच विकसित नहीं हो सकेगी। पर अफ़सोस यह बिल संसद में पारित नहीं हो पाया और इसी कारण आंबेडकर ने विधि मंत्री पद का इस्तीफ़ा दे दिया । इस आधार पर बाबासाहेब आंबेडकर को भारतीय महिला क्रांति का ‘मसीहा’ कहना कहीं से भी अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा ।
‘समाज की जटिलताओं को नज़रअंदाज़ करना गुलामी की नई बेड़ियाँ गाड़ने जैसा है’
बाबासाहेब आंबेडकर के अवलोकन में स्त्री-प्रश्न भारत में किसी भी दूसरे विकसित या पिछड़े मुल्क की तुलना में अधिक जटिल था। यह जटिलता परिवार, समाज, संस्कृति, कानून, रोज़गार हर स्थल पर सैकड़ों रूपों में मौजूद था। वह समझते थे कि इस जटिलता को नज़रअंदाज़ करना देश की आधी आबादी के लिए नई गुलामी की बेड़ियाँ गाड़ने वालों जैसा था।  उनका दावा था कि इस विशाल और जटिल देश में स्त्रियों के संघर्ष आज भी कायम है। इन संघर्षों की सांस्कृतिक ज़मीन को पुख्ता करना स्त्री-स्वतंत्रता की प्राथमिक और अनिवार्य शर्त है ।
बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था – ‘मैं नहीं जानता कि इस दुनिया का क्या होगा, जब बेटियों का जन्म ही नहीं होगा|’ स्त्री सरोकारों के प्रति डॉ भीमराव आंबेडकर का समर्पण किसी जुनून से कम नहीं था। सामाजिक न्याय, सामाजिक पहचान, समान अवसर और संवैधानिक स्वतंत्रता के रूप में नारी सशक्तिकरण लिए उनका योगदान पीढ़ी-दर-पीढ़ी याद किया जायेगा ।
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जय संविधान !! जय भीम !! जय भारत !!

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