Sunday, 22 October 2017

गणपती का रहस्य और ब्राह्मणीकरण

गणपती का रहस्य और ब्राह्मणीकरण
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~~बुद्ध का मतलब ही अष्टविनायक है~~
पोस्ट जरा बड़ी है लेकिन आँखे खोलकर पढ़े...
🌹~लोकशाही व्यवस्था में देश का प्रमुख "राष्ट्रपति" होता है, उसी प्रकार प्राचीन भारत में गण व्यवस्था होती थी और उस गण व्यवस्था का प्रमुख "गणपति" होता था.
~~~"गणपति बाप्पा मोरया" अर्थात ~~~
मौर्य राजाओ में गणपती ~"चन्द्रगुप्त मोरया"~~~
🌹~:मूलनिवासी मौर्य राजाओ की सूची :~ 🌹
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मूलनिवासी मौर्य राजाओं का कार्यकाल ई.पू.
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🌹1~चन्द्रगुप्त मौर्य 323~299 ई.पू.
🌹2~बिन्दुसार 299~274 ई.पू.
🌹3~सम्राट अशोक 274~138 ई.पू.
🌹4~कृंणाल मौर्य। 238~231 ई.पू.
🌹5~दशरथ मौर्य 231~223 ई.पू.
🌹6~सम्प्रति मौर्य 223~215 ई.पू.
🌹7~शाली शुक्त 215~203 ई.पू.
🌹8~देव वर्मा मौर्य 203~196 ई.पू.
🌹9~सत्यधनु मौर्य 196~190 ई.पू.
🌹10~बृहद्रथ मौर्य 190~184 ई.पू.
🌹~और इस मौर्य शासन से पहले प्राचीन भारत में एक राजघराने में "सिद्धार्थ गौतम" नामक राजकुमार का जन्म हुआ। वही आगे चल कर "शाक्य गण "का प्रमुख हुआ. कालांतर में सिद्धार्थ ने बुद्धत्व प्राप्त किया ....।
🌹~अब सच्चे गणपति और काल्पनिक गणपति के बीच में का फर्क समझ लेते है... 👇👇
🌹~कूछ चालाक ब्राहमणों ने सच्चे गणपति को काल्पनिक गणपति बनाया। शाक्य गण का प्रमुख इस नाते से लोग "बुद्ध "को गण का पति अर्थात गणपति कहने लगे थे। उसी प्रकार-
🌹~जब बुद्ध लोगों को धर्म का सन्देश देते थे तब उनके संदेशों में दो शब्दों का मुलभुत रूप से उल्लेख होता था, वे शब्द है,
1~" चित्त " और 2 ~" मल्ल "
🌹~चित्त याने शरीर (मन) और मल्ल यानि मल (अशुद्धी). तुम्हारे शरीर व मन से मल निकाल देने पर तुम शुद्ध हो जाओगे और दुःख से मुक्त हो जाओगे, ऐसा बुद्ध कहते थे. इसी संकल्पना को विकृत कर, ब्राह्मणों ने काल्पनिक पार्वती के शरीर से मल निकालकर एक बालक (अर्थात गणपति) के जन्म की कहानी को प्रस्तुत कर दी।

🌹~ गौतम बुद्ध नागवंशी थे। पाली भाषा में "नाग "का अर्थ "हाथी "होता है. अर्थात बुद्ध  हाथी वंश के थे .... इसलिए इस नए जन्मे बालक (सिद्धार्थ) को हाथी के स्वरुप में बताया गया है।
🌹~ अर्थात, हाथी  बुद्ध के जन्म का प्रतीक है और हाथी बौद्ध धर्म का भी प्रतीक है। इस सत्य को छुपाने के लिए, ब्राहमणों ने काल्पनिक पार्वती के काल्पनिक पुत्र को हाथी की गर्दन लगाई, किसी अन्य प्राणी जैसे शेर, बैल, घोडा, चूहा की गर्दन नहीं लगाईं......!!!

🌹~ " अष्टविनायक का सत्य "👇
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🌹~ जगत में दुःख है, यह बात दुनिया में सबसे पहले बताने वाला बुद्ध ही था और दुःख को दूर कर सुखी होने के लिए अष्टांगिक मार्ग भी बुद्ध ने ही बताया. "अष्टांगिक" मार्ग का अवलम्ब करने से दुःख नष्ट होता है यह बुद्ध ने सिद्ध कर दिखाया। यह आठ नियम या सिद्धांत विनय से सम्बंधित है. इसलिए, बुद्ध को 'विनायक' कहा गया और " आठ मार्गो " पर विनयशील होने से "अष्टविनायक "भी बुद्ध को ही कहा गया. 
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🌹~ अर्थात, अष्टांगिक मार्ग से अष्टविनायक होकर दुःख को नष्ट कर सुख की प्राप्ति करवाने वाला बुद्ध था. इसलिए, बुद्ध को लोग 'सुखकर्ता और दुखहर्ता' कहने लगे.
🌹~ इस सत्य को दबाने के लिए ब्राहमणों ने काल्पनिक गणपति को अष्टविनायक भी कहा और सुखकर्ता दुखहर्ता भी कहा।
इसका मतलब यह है की, गणपति दूसरा तीसरा कोई नहीं है, बल्कि, तथागत बुद्ध ही गणपति है। ब्राहमणों ने बुद्ध अस्तित्व को नष्ट करने के लिए काल्पनिक गणपति का निर्माण किया। बोद्ध-ग्रंथों का ब्राह्मणीकरण करते समय ,उन्होंने कई गलतियां की, जिससे ब्राह्मणों की बदमाशी उजागर होती है। वे गलतियां इस प्रकार है :;-

(१) 🌹~ शिव शंकर जब देवों का देव है, तो उसे गणपति का सर धड से अलग करते समय उन्हें,  यह पता क्यों नहीं चला कि वह उसका ही पुत्र है?
(२) 🌹~ जब गणपति देव था, तो उसे यह कैसे पता नहीं चला की, जिसे वह रोक रहा है वह उसका ही बाप है?
(३) 🌹~ शंकर को यह कैसे पता नहीं चला की, बिना  उसकी अनुपस्थिति में उसकी   बीवी गर्भवती कैसे हो गयी, जब्कि वह नौकरों की सुरक्षा में थी:::::
(४) 🌹~ अगर पार्वती शरीर के मैल से बालक बना सकती है, तो वह उसी मैल से बालक का सिर क्यों नही बना पाई? 
(५) 🌹~ खैर ये कहें की पार्वती नहा कर आई थी। लेकिन, जीवन मृत्यु का शाप वरदान देने वाले शंकर की शक्ति कहाँ गई थी ? शंकर ने एक निष्पाप हाथी की जान क्यों ली ?
(६) 🌹~ और ये सोचे की क्या किसी छोटे से (बालक) की गर्दन में हाथी का सिर फिट कैसे बैठ गया ? अफसोस है कि परशुराम ने गणेश का दांत भी तौड दिया, मगर सभी जौडना भूल गये! !
(७) 🌹~ आगे कृतयुग में गणपति का वाहन सिंह था और उसके १० हाथ थे।
👉त्रेतायुग में उसका वाहन मोर था और छ: हाथ थे।
👉~ द्वापरयुग में उसका वाहन मूषक अर्थात चूहा था और चार हाथ थे..
अगर अलग अलग युग में वह हाथ और शरीर कम ज्यादा कर सकता था तो, उसने खुद के सिर का निर्माण क्यों नहीं किया ?
(७) 🌹~ प्राणी हत्या से जन्मे गणपति को सुखकर्ता, दुखहर्ता कैसे कहा जा सकता है ? जब्कि विघटन गणेश व शिव के बीच हो गया था- 
(८) 🌹~ "शिव पुराण "के अनुसार पार्वती ने बनाए मैल के गोले पर गंगा का पानी गिराया और गणेश  का जन्म हो गया  ..गणेश =गण+ईश यानी गण व मालकिन का अंश, गण के ईश्वर से गणपति कर दिया.....

~ ब्रम्हवैवर्त पुराण ने तो हद ही कर दिया है !!!👇
🌹~पार्वती वह मैल का गोला ब्रह्मदेव के पास ले जाती है और उसे जिन्दा करने के लिए विनती करती है, तब उसपर ब्रह्मदेव अपने वीर्य का छिडकाव करता है और उस गोले का सर्वप्रथम  "मलेश" नाम का  गणपति   बनता है...फिर.मल+ईश=मल,गन्दगी के ईश्वर कहलाता है।
🌹~ अब प्रश्न यह है कि, गणपती शंकर का पुत्र था या ब्रह्मदेव का...? या दोनों का? 
(९) 🌹~ गणपति विवाहित है, ऋद्धी और सिद्धी दो पत्नियाँ  थीं। यह ब्रह्मदेव की दोनों लड़कियां उसकी दो पत्नियाँ है। अर्थात, ब्रह्मदेव के वीर्य से जन्म लेने पर गणपती ने अपनी ही बहनों के साथ शादी क्यों की ..?
(१०)🌹~ "सौगन्धि का परिणय" इस संगीत सूत्र के तीसरे अध्याय में गणपति का उल्लेख काम वासना के असुरों में से छठवां असुर जैसा उल्लेख किया है ...
🌹~  चन्द्रगुप्त मोर्य के मोर्य वंश का गणपति हुआ था। इसलिए ब्राहमणों ने "गणपति बाप्पा मोरया"  की घोषणाएँ कर दी ...... मोर्या शब्द के बारे में ब्राह्मणों के इतिहास में कोई उत्तर नहीं .है...... कर्नाटक में चन्द्रगुप्त मोर्य ने जैन धर्म का प्रचार किया था। इसलिए उस क्षेत्र में कई लोग खुद के नाम के साथ  मोरया नाम लगाते हैं । .... महाराष्ट्र में मोरे सरनेम भी मोर्य वंश का ही अपभ्रंश है ...... संत तुकाराम  मोरे थे....इस सत्य को छुपाने के लिए ब्राह्मणों ने यह अफवाह फैलाई की १४ वीं सदी में, एक मोरया नामक गोसवि हुआ और उसके नाम पर से मोरया शब्द गणपती से जुड़ गया! ब्राह्मण लोग भी झूठ पर झूठ की सीमा लांघ देते हैं!!

🌹~संत तुकाराम महाराज , शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज की हत्या करने के बाद ब्राह्मणों ने शिवशाही को पेशवाई में बदल डाला ... और....बौद्ध लेणी (गुफाओं) और विहारो की जगह पर कब्जा क़र, वहां पर काल्पनिक देवी देवता को बिठाना शुरू किया ....... कार्ला की बुद्ध लेणी में बुद्ध माता महामाया को ब्राह्मणी "एकविरा देवी" का स्वरुप दिया,
जुन्नर के लेन्याद्रि बुद्ध लेणी में गणेश को बिठाकर उसे काल्पनिक अष्टविनायक गणपती का प्रमुख स्थल बता दिया, 
शेलारवाडी, पुणे की लेणी में शिवलिंग बिठाकर, कब्जा कर लिया ..आदि 
इसके प्रमाण हैं..

🌹~ सत्य इतिहास यह है कि, संपूर्ण प्राचीन भारत बौद्धमय था. अशोक सम्राट ने बुद्ध के बाद सारे भारत को बौद्धमय बनाया था. लेकिन ब्राम्हण समाज ने अशोक के वंश को ख़तम कर बौद्ध धर्म में मनुवादी ब्राह्मणों ने मनघडंत  विचार और इतिहास की मिलावट की और 33 कोटि देवताओं को अवतरित कर दिया.और एक दूसरे का अवतार घोषित कर दिया। 
🌹~ भारत महाद्वीप  में वास्तव में शाक्य गण के गणपति हुए हैं और, उसी गणपति शब्द का ब्राह्मणों ने ब्राह्मणीकरण करके, समाज में झूठे गणेश में  गणपती को जन्म दे दिया.है
🌹~और इस झूठे काल्पनिक गणेश उर्फ गणपती के नामपर सम्पूर्ण समाज को अन्धश्रद्धा में डूबो दिया. और त्यौहार उत्सव के नामपर ब्राह्मणों ने समाज से धन दौलत लूटना व अवतरित देवी देवताओं के मन्दिरों के नाम पर जगह-जगह भूमि पर कब्जे करना शुरु कर दिया.

🌹~शिवाजी महाराज महाराष्ट्र के कूर्मि अर्थात मराठा (शुद्र) मूलनिवासी राजा थे । शिवाजी महाराज की हत्या ब्राह्मणों ने ज़हर दे कर  की ।  जिसका बदला संभाजी महाराज ने अनेक ब्राह्मणों को हाथी के पैर के नीचे कूचलवा कर, मरवा  दिया था। इससे आहत होकर ब्राह्मणों ने छल-कपट  से संभाजी महाराज को औरंगज़ेब के हाथों में पकड़वा दिया और पूना शहर के चौराहे पर  मनुस्मृति के मुताबिक जीभ-सर कटवा कर उन्हें मार डाला। उस दिन ब्राह्मणों ने उनके पेशवा राज्य में, उत्सव के रूप में शक्कर बाटकर, उस दिन को "गुढीपाडवा त्यौहार" का नाम दिया । 
इस तरह ब्राह्मणों ने शिवाजी और संभाजी महाराज दोनों का क़त्ल किया और मराठा वंश को खत्म कर स्वयं पेशवा ब्राह्मण शासन करने लगे ।

🌹~शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद महात्मा ज्योतिराव फुले ने रायगढ़ में उनकी समाधि ढूंढ़ निकाली थी और जून 1869 में शिवाजी महाराज के शान में " पेवाडा "लिखा। महात्मा ज्योतिराव फूले ने 1874 में महाराष्ट्र के बहुजनो के लिए पहली बार शिवाजी जयंती (शिव जयंती) मनाई। बहुजनों को जागृत करने के लिए फुलेजी ने "शिवजयंती उत्सव" को, हर साल दस दिन तक मनाना चालू किया।
🌹 महाराष्ट्र में महात्मा ज्योतिराव फूले द्वारा बहुजन शुद्रो~अतिशुद्रों (sc~st~obc) में "शिव जयंती "के प्रभाव और जागृति के कारण ब्राह्मण डरने लगे। इसलिए, रत्नागिरी (महाराष्ट्र) के बाल गंगाधर तिलक नामक कट्टर ब्राह्मण ने "शिव जयंती" से बहुजनों में बढ़ती जागृति और प्रभाव को ख़त्म करने के लिए, विरोध स्वरूप  गंगाधर-तिलक ने सन् 1893-94 में गणपति महोत्सव का सार्वजानिक आयोजन किया ।

👉क्या 1893~94 से पहले महाराष्ट्र में गणोंत्सव मनाया जाता था.....??? उत्तर  बिलकुल नहीं!!!
~~ इसका कोई भी प्रमाण इतिहास में  उपलब्ध नहीं है .....!!!!
👉ब्राह्मणों के मुताबिक भगवान् शंकर का ठिकाना हिमालय मे उत्तर भारत के आसपास है, तो उन्होंने गणेश (शंकर पुत्र) को महाराष्ट्र में ज्यादा प्रचलित क्यों कारवाया....उत्तर भारत में क्यों नहीं .......?

🌹~इसका मुख्य कारण यह है कि, शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज की हत्या ब्राह्मणों ने की थी। इस बात का ब्राह्मणों को डर था की, अगर इस तथ्य का पता बहुजनो को चलेंगा तो ब्राह्मणों का अंत निश्चित् है । इसलिए, ब्राह्मणों ने महाराष्ट्र में महात्मा ज्योतिबा फूले के शिव जयंती उत्सव से जागृत हो रहेे बहुजन शुद्रो को शिवाजी व संभाजी महाराज की हत्या ब्राह्मणों द्वारा हुई है, यह पता ना चले, इसके लिए, उनका ध्यान डाइवर्ट करने के हेतु उन्होंने "शिवजयंती" महोत्सव के विरोध में गणपति महोत्सव को महाराष्ट्रा में सार्वजनिक कर दिया ।

इसी तरहं भारत के विभिन्न धर्मों, ग्रंथों व देवी देवताओं  का, मनुवादी ब्राह्मणों ने मनघडंत  ब्राह्मणीकरण कर दिया। भारत के अन्य धर्मों,  समुदायों के देवता, महात्माओं को विष्णु व शिव का अवतार और संत, ऋषि मुनियों को ब्राह्मण की औलाद बताकर प्रचार-प्रसार किया। जिस किसी व्यक्ति ने इनके ब्राह्मणीकरण का विरोध किया उन्हें संत तुकाराम, स्वामी दयानंद, कुलबर्गी, रैदास आदि की तरहं मरवा दिया गया।

हर मूलनिवासियों के त्यौहारों में  मनघडंत कथाएँ बनाकर, मनुवादी ब्राह्मणों ने काल्पनिक व अवतारवादी देवी देवता व त्यौहार घूसेड दिये । सामाजिक रुप से अमर्यादित,घृणित व अपमानित रिश्ते-नाते,  लोग व कुकृत्यों को ,मनुवादियों ने देवी देवता के नाम पर महिमा-मंडन कर पूजनीय बना दिया ।
व्हटस-एप की वॅाल से
बाबा-राजहंस

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