वड़ोदरा नगरी व् ऐतिहासिक भीम संकल्प घटनाक्रम
( संक्षिप्त परिचय )
सर्व विदित है कि आज भी दुनियाँ के किसी न किसी भाग से समता के अभाव में हिंसात्मक अमानवीयता के खतरनाक परीणाम दिन प्रतिदिन आते ही रहते हैं, ऐसी ही एक घृणित अमानवीयता की घटना वडोदरा नगरी में घटी, ज्ञातव्य है कि आधुनिक भारत के निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर यहाँ वड़ोदरा नगरी के महाराजा श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड़ ( तृतीय ) द्वारा प्रदत्त उच्च शिक्षा के लिये ऋण शिष्यवृति अनुबंधनानुसार दी गई थी कि उच्चशिक्षा उपरांत कम से कम १० वर्ष की अवधि तक उन्हें अपनी सेवा वड़ोदरा रियासत को देनी होगी I शिक्षा उपरांत सितम्बर १९१७ में भारत के प्रथम दर्जे के विद्वान् बाबा साहब अपना कर्तव्य निभाने हेतु वडोदरा नगरी में पधारे, उन्हे यहाँ सैनिक सचिव के उच्च पद पर आसीन किया गया था लेकिन यहाँ के अधिकतर अधिकारी क्षुब्ध रह गये क्योंकि हिन्दू परम्परा के अनुसार वो एक अछूत व्यक्ति थे, अछूत को इतना बड़ा हौदा....? महाराजा के कृपापात्र व् भारत के प्रथम दर्जे के विद्वान् होने के बावजूद भी उन्हें यहाँ प्रति दिन भीषण मनुवादी मानसिकता से रोगग्रस्त सहयोगियों द्वारा जाति सूचक व् घृणित कटाक्षों की अति से अपमान की दुर्दशा का जहर पीना पड़ रहा था, उन्हें यहाँ रहने के लिए मकान तक नहीं मिला, एक पारसी की धर्मशाला में नाम बदल कर (एदल सोराबजी) रहना पड़ रहा था , लेकिन ये बात छुप नहीं सकी, मात्र ११ दिनों के अंदर ही अर्थात २३ सितम्बर १९१७ रविवार के दिन तो अति ही हो गई कि उनपर पारसी की धर्मशाला निवास पर लकड़ी डंडों से लेस लगभग दर्जन भर पार्सिओं ने क्षुब्ध अधिकारियों की सः से अतिअभद्रता के साथ आक्रामक हमला बोल दिया ... आरोप लगाते हुए कि तूने धर्मशाला को अपवित्र कर दिया . . . घोर अपमानित करते हुए उनका सामान भी बाहर फेंक दिया और
धर्मशाला को तुरंत ही खाली करने का फरमान भी सुना दिया I अब बाबा साहब इतने व्यथित हो चुके थे कि इस भयावह वातावरण से निकलकर वापिस मुंबई जाने के लिये निकले तो उस दिन मुंबई जाने वाली रेलगाड़ी भी लगभग ४ घंटे की देरी से चल रही थी, अतः इस भयावह वातावरण को ध्यान में रखते हुए बाबा साहब को इसी शहर से गुजरने वाली विश्वामित्री नदी के किनारे की पावन भूमि कमाटी बाग (पुराना नाम) - वर्तमान में “संकल्प भूमि सयाजी बाग” पर एक वट वृक्ष (संकल्प वृक्ष) के साये में शरण लेनी पड़ी, इन्ही पलों को व्यतीत करते हुए बाबा साहब असहनीय पीड़ा भरी सोच में डूब चुके थे कि मेरे ही देश जब मेरे जैसे भारत के प्रथम नंबर के महाशिक्षित विद्वान की ये दुर्दशा है तो शेष करोड़ों गुलामी भरा जीवन जीने वाले मानवों की दुर्दशा कितनी भयावह होगी . . . इस वक्त बाबासाहब की आँखों से अश्रुओं का झरना रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था . . . क्या ये अश्रु साधारण हो सकते थे ? इन्हीं अश्रुओं से भारत भाग्य विधाता बाबा साहेब के ज्ञान भंडार में, मष्तिष्क में उन करोड़ों-करोड़ों शोषितों, वंचितों . . . के रोते बिलखते चित्र उभरकर उनके मस्तिष्क में प्रतिबिम्बित हुए, आज उनकी मानवीय संवेदनाएँ कराह उठी थी – इसी वक्त एक दृढ संकल्प की चिंगारी उनके मष्तिस्क से निकली कि -“आज से मेरा परिवार वो समस्त करोड़ों करोड़ों शोषित-गुलामी भरा जीवन जीने वाले मानव हैं, मैं आज से जीवन पर्यंत सिर्फ समता के महान आदर्श के स्थापत्य व् मानवीय शोषण की भयंकर बीमारी के निर्मूलन के लिये अंतिम श्वास तक संघर्ष करूँगा” I
आज बाबा साहब ने वड़ोदरा नगरी तो छोड़ी, लेकिन ऋण मुक्त होने की जिज्ञासा अभी बाकी थी, आवास व्यस्था के लिए बडौदा विश्वविध्यालय के प्राध्यापक सेम्युअल लुक्श जोशी (विदेश में रहे सहपाठी व् घनिष्ट मित्र) के आश्वासन पर बाबा साहब का बडौदा रेलवे स्टेशन पर पुनः आगमन भी हुआ,लेकिन मित्र ने नौकर के हवाले से रेलवे स्टेशन पर ही पत्र भिजवा कर, पत्नी की तरफ से मनुवादी मानसिकता दर्शा दी..., आज फिर से मजबुरन यहाँ से ही लौटती रेलगाड़ी से वापिस लौटना पड़ा, इस वक्त भी फिर से कि –“अब मैं वड़ोदरा की धरा पर कभी भी कदम नहीं रखूँगा, केवल अपने दृढ संकल्प के लिये ही जीवन पर्यन्त संघर्ष व् कार्य करूँगा, मेरा दृढ संकल्प ही देश की एकता - अखंडता की मुख्य कड़ी होगा”I(ज्ञातव्य है कि उन दिनों देश के मानवों में असमानता की व्यापक भयंकर बीमारी के कारण ही देश में एकता - अखंडता की मुख्य कमी बनी हुई थी, परिणामतः देश गुलामी का जीवन जी रहा था I)
बाबा साहब ने फिर कभी वड़ोदरा की धरा पर कदम नहीं रखे अपितु उनकी अस्थियों को घोड़ा बग्गी में ससम्मान सुसज्जित कर, अस्थि सम्मान रैली के रूप में दर्शनार्थ हेतु संकल्प भूमि सयाजी बाग, वड़ोदरा पर दिनांक २४ दिसंबर २०११ को लाया गया I
इस तरह असंख्य आदर्श मानवतावादी संघर्षों की क्रांति इसी पावन भूमि पर लिये गए बाबासाहब के दृढ संकल्प से उद्गमित हुई, अनेको कष्ट भरी विषम परिस्थतियों को वो अपने दृढ संकल्प से कुचलते कुचलते, संविधान अंकुरण की इस प्रथमतः भूमि “संकल्प भूमि सयाजी बाग” से संविधान सभा के मुखिया बनकर पहुँचे और देश को दिया विश्व विख्यता-राष्ट्रीय ग्रन्थ - “भारत का संविधान” परिणामतः हमारा देश हुआ आधुनिक भारत > हमारा देश महान I
सच तो यह है कि न तो ये साधारण अश्रू थे न ही साधारण था संकल्प जहाँ अश्रु संविधान की स्याही थी वहीँ संकल्प एक सामाजिक न्याय की मानवीय संवेदनाओं की कलम I इस दिन से वो निजि परिवार तक सीमित नही रहे बल्कि समस्त भारत के करोड़ों-करोड़ों शोषितों, वंचितों को स्वीकारा अपना परिवार I
जरा सोचिये कि – (1)बाबा साहब अश्रू अपने गिराकर, खुशियाँ हमें बाँट कर चले गये . . .( 2) वड़ोदरा में वो प्यासे तक रहे पर हमारे लिए पानी पैदा कर गये I (3) एक दिन उनके पुत्र यशवंत राव ने जब बाबा साहब से ये प्रश्न किया कि आपने क्या दिया है हमें?. ... आपसे कम डिग्री धारियों के पास कई कई बंगले व् कारें हैं....बाबा साहब का उत्तर बड़ा ही ह्रदय स्पर्शी था - कि यशवंतराव तुम मेरे अकेले बेटे नहीं हो मेरी तो लाखों करोड़ों संतानें हैं,मैं लाखों करोड़ों संतानों के लिये घर बंगला व् कारों की व्यस्था के लिये संकल्पवद हूँI (4) संविधान से पहले केवल महारानियों की कोख से जन्मी संतानें ही शाशक, शाशिका बन सकते थे, लेकिंन बाबा साहब ने देश की हर महिला को महारानी होने का सम्मान व् अधिकार दिया, आज देश की कोई भी संतान इस देश के शाशक, शाशिका बनते हुए आप स्वतः परिणाम देख रहे हैं I (5) अनेकों विदेशी नोकरियों के अवसर सिर्फ अपने दृढ़ संकल्प को पुरा करने के लिये खोये, यही नहीं बाबा साहब ने अपनी चार चार संतानों को धन व् उपचार के अभाव में ही खो दिया, लेकिन दृढ़ संकल्प से पीछे नहीं हटे I (6) वड़ोदरा में उन्हें रहने का मकान तक नहीं मिला लेकिन करोड़ों उपेक्षित मानवों को देश की मुख्य धारा से जोड़कर महल, बंगला, मकान, दुकान व् कार लेने के समर्थ बना कर चले गये . . . .
क्या हमारा कर्तव्य नहीं बनता कि विश्व धरोहर दर्जे की पावन भूमि संकल्प भूमि सयाजी बाग पर सयुंक्त रूप से जुड़ कर इस महान पर्व के शताब्दी वर्ष पर २३ सितम्बर २०१७ को { देश विदेश के सभी मानवतावादी व् मानवतावादी संगठनो / विश्वशांति के संगठनो (सरकारी / गैर सरकारी ) अंतरराष्ट्रीय शताब्दी संकल्प दिवस महोत्सव के रूप में मनाकर महामानव, भारत भाग्य विधाता बाबा साहब के महान संकल्प को श्रद्धा सुमन के साथ इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज करायें I
( संक्षिप्त परिचय )
सर्व विदित है कि आज भी दुनियाँ के किसी न किसी भाग से समता के अभाव में हिंसात्मक अमानवीयता के खतरनाक परीणाम दिन प्रतिदिन आते ही रहते हैं, ऐसी ही एक घृणित अमानवीयता की घटना वडोदरा नगरी में घटी, ज्ञातव्य है कि आधुनिक भारत के निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर यहाँ वड़ोदरा नगरी के महाराजा श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड़ ( तृतीय ) द्वारा प्रदत्त उच्च शिक्षा के लिये ऋण शिष्यवृति अनुबंधनानुसार दी गई थी कि उच्चशिक्षा उपरांत कम से कम १० वर्ष की अवधि तक उन्हें अपनी सेवा वड़ोदरा रियासत को देनी होगी I शिक्षा उपरांत सितम्बर १९१७ में भारत के प्रथम दर्जे के विद्वान् बाबा साहब अपना कर्तव्य निभाने हेतु वडोदरा नगरी में पधारे, उन्हे यहाँ सैनिक सचिव के उच्च पद पर आसीन किया गया था लेकिन यहाँ के अधिकतर अधिकारी क्षुब्ध रह गये क्योंकि हिन्दू परम्परा के अनुसार वो एक अछूत व्यक्ति थे, अछूत को इतना बड़ा हौदा....? महाराजा के कृपापात्र व् भारत के प्रथम दर्जे के विद्वान् होने के बावजूद भी उन्हें यहाँ प्रति दिन भीषण मनुवादी मानसिकता से रोगग्रस्त सहयोगियों द्वारा जाति सूचक व् घृणित कटाक्षों की अति से अपमान की दुर्दशा का जहर पीना पड़ रहा था, उन्हें यहाँ रहने के लिए मकान तक नहीं मिला, एक पारसी की धर्मशाला में नाम बदल कर (एदल सोराबजी) रहना पड़ रहा था , लेकिन ये बात छुप नहीं सकी, मात्र ११ दिनों के अंदर ही अर्थात २३ सितम्बर १९१७ रविवार के दिन तो अति ही हो गई कि उनपर पारसी की धर्मशाला निवास पर लकड़ी डंडों से लेस लगभग दर्जन भर पार्सिओं ने क्षुब्ध अधिकारियों की सः से अतिअभद्रता के साथ आक्रामक हमला बोल दिया ... आरोप लगाते हुए कि तूने धर्मशाला को अपवित्र कर दिया . . . घोर अपमानित करते हुए उनका सामान भी बाहर फेंक दिया और
धर्मशाला को तुरंत ही खाली करने का फरमान भी सुना दिया I अब बाबा साहब इतने व्यथित हो चुके थे कि इस भयावह वातावरण से निकलकर वापिस मुंबई जाने के लिये निकले तो उस दिन मुंबई जाने वाली रेलगाड़ी भी लगभग ४ घंटे की देरी से चल रही थी, अतः इस भयावह वातावरण को ध्यान में रखते हुए बाबा साहब को इसी शहर से गुजरने वाली विश्वामित्री नदी के किनारे की पावन भूमि कमाटी बाग (पुराना नाम) - वर्तमान में “संकल्प भूमि सयाजी बाग” पर एक वट वृक्ष (संकल्प वृक्ष) के साये में शरण लेनी पड़ी, इन्ही पलों को व्यतीत करते हुए बाबा साहब असहनीय पीड़ा भरी सोच में डूब चुके थे कि मेरे ही देश जब मेरे जैसे भारत के प्रथम नंबर के महाशिक्षित विद्वान की ये दुर्दशा है तो शेष करोड़ों गुलामी भरा जीवन जीने वाले मानवों की दुर्दशा कितनी भयावह होगी . . . इस वक्त बाबासाहब की आँखों से अश्रुओं का झरना रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था . . . क्या ये अश्रु साधारण हो सकते थे ? इन्हीं अश्रुओं से भारत भाग्य विधाता बाबा साहेब के ज्ञान भंडार में, मष्तिष्क में उन करोड़ों-करोड़ों शोषितों, वंचितों . . . के रोते बिलखते चित्र उभरकर उनके मस्तिष्क में प्रतिबिम्बित हुए, आज उनकी मानवीय संवेदनाएँ कराह उठी थी – इसी वक्त एक दृढ संकल्प की चिंगारी उनके मष्तिस्क से निकली कि -“आज से मेरा परिवार वो समस्त करोड़ों करोड़ों शोषित-गुलामी भरा जीवन जीने वाले मानव हैं, मैं आज से जीवन पर्यंत सिर्फ समता के महान आदर्श के स्थापत्य व् मानवीय शोषण की भयंकर बीमारी के निर्मूलन के लिये अंतिम श्वास तक संघर्ष करूँगा” I
आज बाबा साहब ने वड़ोदरा नगरी तो छोड़ी, लेकिन ऋण मुक्त होने की जिज्ञासा अभी बाकी थी, आवास व्यस्था के लिए बडौदा विश्वविध्यालय के प्राध्यापक सेम्युअल लुक्श जोशी (विदेश में रहे सहपाठी व् घनिष्ट मित्र) के आश्वासन पर बाबा साहब का बडौदा रेलवे स्टेशन पर पुनः आगमन भी हुआ,लेकिन मित्र ने नौकर के हवाले से रेलवे स्टेशन पर ही पत्र भिजवा कर, पत्नी की तरफ से मनुवादी मानसिकता दर्शा दी..., आज फिर से मजबुरन यहाँ से ही लौटती रेलगाड़ी से वापिस लौटना पड़ा, इस वक्त भी फिर से कि –“अब मैं वड़ोदरा की धरा पर कभी भी कदम नहीं रखूँगा, केवल अपने दृढ संकल्प के लिये ही जीवन पर्यन्त संघर्ष व् कार्य करूँगा, मेरा दृढ संकल्प ही देश की एकता - अखंडता की मुख्य कड़ी होगा”I(ज्ञातव्य है कि उन दिनों देश के मानवों में असमानता की व्यापक भयंकर बीमारी के कारण ही देश में एकता - अखंडता की मुख्य कमी बनी हुई थी, परिणामतः देश गुलामी का जीवन जी रहा था I)
बाबा साहब ने फिर कभी वड़ोदरा की धरा पर कदम नहीं रखे अपितु उनकी अस्थियों को घोड़ा बग्गी में ससम्मान सुसज्जित कर, अस्थि सम्मान रैली के रूप में दर्शनार्थ हेतु संकल्प भूमि सयाजी बाग, वड़ोदरा पर दिनांक २४ दिसंबर २०११ को लाया गया I
इस तरह असंख्य आदर्श मानवतावादी संघर्षों की क्रांति इसी पावन भूमि पर लिये गए बाबासाहब के दृढ संकल्प से उद्गमित हुई, अनेको कष्ट भरी विषम परिस्थतियों को वो अपने दृढ संकल्प से कुचलते कुचलते, संविधान अंकुरण की इस प्रथमतः भूमि “संकल्प भूमि सयाजी बाग” से संविधान सभा के मुखिया बनकर पहुँचे और देश को दिया विश्व विख्यता-राष्ट्रीय ग्रन्थ - “भारत का संविधान” परिणामतः हमारा देश हुआ आधुनिक भारत > हमारा देश महान I
सच तो यह है कि न तो ये साधारण अश्रू थे न ही साधारण था संकल्प जहाँ अश्रु संविधान की स्याही थी वहीँ संकल्प एक सामाजिक न्याय की मानवीय संवेदनाओं की कलम I इस दिन से वो निजि परिवार तक सीमित नही रहे बल्कि समस्त भारत के करोड़ों-करोड़ों शोषितों, वंचितों को स्वीकारा अपना परिवार I
जरा सोचिये कि – (1)बाबा साहब अश्रू अपने गिराकर, खुशियाँ हमें बाँट कर चले गये . . .( 2) वड़ोदरा में वो प्यासे तक रहे पर हमारे लिए पानी पैदा कर गये I (3) एक दिन उनके पुत्र यशवंत राव ने जब बाबा साहब से ये प्रश्न किया कि आपने क्या दिया है हमें?. ... आपसे कम डिग्री धारियों के पास कई कई बंगले व् कारें हैं....बाबा साहब का उत्तर बड़ा ही ह्रदय स्पर्शी था - कि यशवंतराव तुम मेरे अकेले बेटे नहीं हो मेरी तो लाखों करोड़ों संतानें हैं,मैं लाखों करोड़ों संतानों के लिये घर बंगला व् कारों की व्यस्था के लिये संकल्पवद हूँI (4) संविधान से पहले केवल महारानियों की कोख से जन्मी संतानें ही शाशक, शाशिका बन सकते थे, लेकिंन बाबा साहब ने देश की हर महिला को महारानी होने का सम्मान व् अधिकार दिया, आज देश की कोई भी संतान इस देश के शाशक, शाशिका बनते हुए आप स्वतः परिणाम देख रहे हैं I (5) अनेकों विदेशी नोकरियों के अवसर सिर्फ अपने दृढ़ संकल्प को पुरा करने के लिये खोये, यही नहीं बाबा साहब ने अपनी चार चार संतानों को धन व् उपचार के अभाव में ही खो दिया, लेकिन दृढ़ संकल्प से पीछे नहीं हटे I (6) वड़ोदरा में उन्हें रहने का मकान तक नहीं मिला लेकिन करोड़ों उपेक्षित मानवों को देश की मुख्य धारा से जोड़कर महल, बंगला, मकान, दुकान व् कार लेने के समर्थ बना कर चले गये . . . .
क्या हमारा कर्तव्य नहीं बनता कि विश्व धरोहर दर्जे की पावन भूमि संकल्प भूमि सयाजी बाग पर सयुंक्त रूप से जुड़ कर इस महान पर्व के शताब्दी वर्ष पर २३ सितम्बर २०१७ को { देश विदेश के सभी मानवतावादी व् मानवतावादी संगठनो / विश्वशांति के संगठनो (सरकारी / गैर सरकारी ) अंतरराष्ट्रीय शताब्दी संकल्प दिवस महोत्सव के रूप में मनाकर महामानव, भारत भाग्य विधाता बाबा साहब के महान संकल्प को श्रद्धा सुमन के साथ इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज करायें I
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