😢 थिसिस चोर राधा कृष्णन😢
➡डा. राधाकृष्णन के जन्म दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाना गलत क्योंकि वे थिसिज चोर थे।😱
भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन की सारी प्रसिद्धि उनकी पुस्तक 'इंडियन फिलॉसॉफी' के कारण है। आपको यह जानकारी हैरानी होगी कि इस पुस्तक के दोनों भाग चुराए गए थे, राधाकृष्णन के अपने लिखे नहीं थे।
मूल रूप से वे एक छात्र जदुनाथ सिन्हा की थीसिस थी। राधाकृष्णन उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे। थीसिस उनके पास चेक होने आई थी। उन्होंने थीसिस पास करने में दो साल की देरी की। बड़े प्रोफेसर थे इसलिए किसी ने उन पर शक नहीं किया।
इन्हीं दो सालों में उन्होंने इंग्लैंड में अपनी किताब "इंडियन फिलॉसॉफी" प्रकाशित करवाई जो कि वह जदुनाथ सिन्हा की थीसिस ही थी। उस छात्र की थीसिस से राधाकृष्णन की किताब बिलकुल हूबहू मिलती है, एक कॉमा तक का अंतर नहीं है। जब उनकी किताब छप गई तभी उस छात्र को पीएचडी की डिग्री दी गई। यानी राधाकृष्णन की किताब पहले छपी। अब कोई यह नहीं कह सकता था कि उन्होंने चोरी की। अब तो चोरी का आरोप छात्र पर ही लगता।
हालांकि जदुनाथ सिन्हा ने हार नहीं मानी। उसने कलकत्ता हाईकोर्ट में केस कर दिया। छात्र का कहना था, “मैंने दो साल पहले विश्वविद्यालय में थीसिस जमा करा दी थी। विश्वविद्यालय में इसका प्रमाण है। अन्य प्रोफेसर भी गवाह हैं क्योंकि वह थीसिस तीन प्रोफेसरों से चेक होनी थी – दो अन्य एक्जामिनर भी गवाह हैं। वह थीसिस मेरी थी और इसलिए यह किताब भी मेरी है। मामला एकदम साफ है, इसे पढ़कर देखिए...."
राधाकृष्णन की किताब में अध्याय पूरे के पूरे वही हैं जो थीसिस में हैं। वे जल्दबाजी में थे, शायद इसलिए थोड़ी बहुत भी हेराफेरी नहीं कर पाए। किताब भी बहुत बड़ी थी- दो भागों में थी। कम से कम दो हजार पेज। इतनी जल्दी वे बदलाव नहीं कर पाए अन्यथा समय होता तो वे कुछ तो हेराफेरी कर ही देते।
मामला एकदम साफ था लेकिन छात्र जदुनाथ सिन्हा ने कोर्ट के निर्णय के पहले ही केस वापस ले लिया क्योंकि उसे पैसा दे दिया गया था। मामला वापस लेने के लिए छात्र को राधाकृष्णन ने उस समय दस हजार रुपए दिए थे। वह बहुत गरीब था और दस हजार रुपए उसके लिए बहुत मायने रखते थे। दूसरी बात, राधाकृष्णन इतने प्रभावशाली व्यक्ती थे कि कोई उनसे बुराई मोल नहीं लेना चाहता था। ऐसे में वास्तविक न्याय की उम्मीद जदुनाथ को नहीं रही।
राधाकृष्णन ने अपने छात्र की थीसिस चुराकर "इंडियन फिलॉसफी" नामक किताब छपवाई। इसमें कलकत्ता की मॉडर्न रिव्यू में छात्र जदुनाथ सिन्हा और उनके बीच लंबा पत्र व्यवहार छपा। राधाकृष्णन सिर्फ यह कहते रहे कि यह इत्तफाक है क्योंकि शोध का विषय एक ही था। राधाकृष्णन पर लिखी तमाम किताबों में इस विवाद का जिक्र है। एक अन्य प्रोफेसर बी एन सील के पास भी थीसिस भेजी गई थी। ब्रजेंद्रनाथ सील ने पूरे मामले से अपने को अलग कर लिया था। बहुत मुश्किल से राधाकृष्णन ने मामला सेट किया। जज को भी पटाया। जदुनाथ को समझाया। तब मामला निपटा। पहले तो ताव में उन्होंने भी मानहानि का केस कर दिया था पर समझ में आ गया कि अब फजीहत ही होनी है इसलिए कोर्ट के बाहर सेटलमेंट करने में जुट गए। बड़े बड़े लोगों से पैरवी कराई,मध्यस्थता कराई। मध्यस्थता कराने वाले एक बड़े दिग्गज श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी थे जो उस समय कलकत्ता यूनिवर्सिटी के कुलपति थे। इतने दबाव के बीच गरीब जदुनाथ सिन्हा कहां टिकते।
थीसिस चोरी के जवाब में राधाकृष्णन सिर्फ इतना ही कहते रहे कि इत्तफाक से जदु्नाथ की थीसिस और मेरी किताब की सामग्री मिलती है। तर्क वही कि स्रोत एक था, विषय एक था, आदि आदि। अपनी किताब को जदुनाथ की थीसिस से अलग साबित नहीं कर पाए। ये 'मॉडर्न रिव्यू' में छपे जदुनाथ के लेखों और राधाकृष्णन के प्रकाशित जवाबों से स्पष्ट होता है। अदालत के बाहर मामला निपटा लिया गया लेकिन जदुनाथ सिन्हा की थीसिस और राधाकृष्णन की किताब में पूरी पूरी समानता ऑन द रिकॉर्ड है। इससे वे इन्कार कर ही नहीं सकते थे। बाद में उन्होंने प्रकाशक से मिलकर (बहुत बाद में, एकदम शुरू में नहीं) यह शाबित कराने की कोशिश की कि किताब पहले छपने के लिए दे दी थी परन्तु प्रकाशक ने काम बाद में शुरू किया।
प्रोफेसर बी एन सील ने पूरे मामले से खुद को अलग इसलिए कर लिया कि राधाकृष्णन के पक्ष में बड़े बड़े लोग थे, सबसे दुश्मनी हो जाती और अंतरात्मा ने जदुनाथ के दावे का विरोध करने नहीं दिया। नववेदांत के दार्शनिक कृष्णचंद्र भट्टाचार्य भी जदुनाथ सिन्हा के रीडर थे परंतु राधाकृष्णन से कौन टकराए?
जदुनाथ के साथ तो अन्याय हुआ, परंतु जब वे खुद ही पीछे हट गए तो मामला खत्म। हमारी आपत्ति ऐसे व्यक्ति को भारत रत्न देने और उसके जन्मदिन पर शिक्षक दिवस मनाने पर है। थीसिस चोर डा. सर्वपल्ली जिस थिसिज चोर राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है उन्हें ब्रिटिश सरकार से 'सर' की उपाधि ठीक उसी वर्ष मिली थी जिस वर्ष भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सज़ा हुई थी। राष्ट्रीय आंदोलन में तो यह व्यक्ति पूरी तरह से नदारद था ही। 1892 में वीरभूम जिले में जन्मे जदुनाथ सिन्हा का देहांत 1979 में हुआ। (दलीप मंडल, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक)
➡डा. राधाकृष्णन के जन्म दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाना गलत क्योंकि वे थिसिज चोर थे।😱
भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन की सारी प्रसिद्धि उनकी पुस्तक 'इंडियन फिलॉसॉफी' के कारण है। आपको यह जानकारी हैरानी होगी कि इस पुस्तक के दोनों भाग चुराए गए थे, राधाकृष्णन के अपने लिखे नहीं थे।
मूल रूप से वे एक छात्र जदुनाथ सिन्हा की थीसिस थी। राधाकृष्णन उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे। थीसिस उनके पास चेक होने आई थी। उन्होंने थीसिस पास करने में दो साल की देरी की। बड़े प्रोफेसर थे इसलिए किसी ने उन पर शक नहीं किया।
इन्हीं दो सालों में उन्होंने इंग्लैंड में अपनी किताब "इंडियन फिलॉसॉफी" प्रकाशित करवाई जो कि वह जदुनाथ सिन्हा की थीसिस ही थी। उस छात्र की थीसिस से राधाकृष्णन की किताब बिलकुल हूबहू मिलती है, एक कॉमा तक का अंतर नहीं है। जब उनकी किताब छप गई तभी उस छात्र को पीएचडी की डिग्री दी गई। यानी राधाकृष्णन की किताब पहले छपी। अब कोई यह नहीं कह सकता था कि उन्होंने चोरी की। अब तो चोरी का आरोप छात्र पर ही लगता।
हालांकि जदुनाथ सिन्हा ने हार नहीं मानी। उसने कलकत्ता हाईकोर्ट में केस कर दिया। छात्र का कहना था, “मैंने दो साल पहले विश्वविद्यालय में थीसिस जमा करा दी थी। विश्वविद्यालय में इसका प्रमाण है। अन्य प्रोफेसर भी गवाह हैं क्योंकि वह थीसिस तीन प्रोफेसरों से चेक होनी थी – दो अन्य एक्जामिनर भी गवाह हैं। वह थीसिस मेरी थी और इसलिए यह किताब भी मेरी है। मामला एकदम साफ है, इसे पढ़कर देखिए...."
राधाकृष्णन की किताब में अध्याय पूरे के पूरे वही हैं जो थीसिस में हैं। वे जल्दबाजी में थे, शायद इसलिए थोड़ी बहुत भी हेराफेरी नहीं कर पाए। किताब भी बहुत बड़ी थी- दो भागों में थी। कम से कम दो हजार पेज। इतनी जल्दी वे बदलाव नहीं कर पाए अन्यथा समय होता तो वे कुछ तो हेराफेरी कर ही देते।
मामला एकदम साफ था लेकिन छात्र जदुनाथ सिन्हा ने कोर्ट के निर्णय के पहले ही केस वापस ले लिया क्योंकि उसे पैसा दे दिया गया था। मामला वापस लेने के लिए छात्र को राधाकृष्णन ने उस समय दस हजार रुपए दिए थे। वह बहुत गरीब था और दस हजार रुपए उसके लिए बहुत मायने रखते थे। दूसरी बात, राधाकृष्णन इतने प्रभावशाली व्यक्ती थे कि कोई उनसे बुराई मोल नहीं लेना चाहता था। ऐसे में वास्तविक न्याय की उम्मीद जदुनाथ को नहीं रही।
राधाकृष्णन ने अपने छात्र की थीसिस चुराकर "इंडियन फिलॉसफी" नामक किताब छपवाई। इसमें कलकत्ता की मॉडर्न रिव्यू में छात्र जदुनाथ सिन्हा और उनके बीच लंबा पत्र व्यवहार छपा। राधाकृष्णन सिर्फ यह कहते रहे कि यह इत्तफाक है क्योंकि शोध का विषय एक ही था। राधाकृष्णन पर लिखी तमाम किताबों में इस विवाद का जिक्र है। एक अन्य प्रोफेसर बी एन सील के पास भी थीसिस भेजी गई थी। ब्रजेंद्रनाथ सील ने पूरे मामले से अपने को अलग कर लिया था। बहुत मुश्किल से राधाकृष्णन ने मामला सेट किया। जज को भी पटाया। जदुनाथ को समझाया। तब मामला निपटा। पहले तो ताव में उन्होंने भी मानहानि का केस कर दिया था पर समझ में आ गया कि अब फजीहत ही होनी है इसलिए कोर्ट के बाहर सेटलमेंट करने में जुट गए। बड़े बड़े लोगों से पैरवी कराई,मध्यस्थता कराई। मध्यस्थता कराने वाले एक बड़े दिग्गज श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी थे जो उस समय कलकत्ता यूनिवर्सिटी के कुलपति थे। इतने दबाव के बीच गरीब जदुनाथ सिन्हा कहां टिकते।
थीसिस चोरी के जवाब में राधाकृष्णन सिर्फ इतना ही कहते रहे कि इत्तफाक से जदु्नाथ की थीसिस और मेरी किताब की सामग्री मिलती है। तर्क वही कि स्रोत एक था, विषय एक था, आदि आदि। अपनी किताब को जदुनाथ की थीसिस से अलग साबित नहीं कर पाए। ये 'मॉडर्न रिव्यू' में छपे जदुनाथ के लेखों और राधाकृष्णन के प्रकाशित जवाबों से स्पष्ट होता है। अदालत के बाहर मामला निपटा लिया गया लेकिन जदुनाथ सिन्हा की थीसिस और राधाकृष्णन की किताब में पूरी पूरी समानता ऑन द रिकॉर्ड है। इससे वे इन्कार कर ही नहीं सकते थे। बाद में उन्होंने प्रकाशक से मिलकर (बहुत बाद में, एकदम शुरू में नहीं) यह शाबित कराने की कोशिश की कि किताब पहले छपने के लिए दे दी थी परन्तु प्रकाशक ने काम बाद में शुरू किया।
प्रोफेसर बी एन सील ने पूरे मामले से खुद को अलग इसलिए कर लिया कि राधाकृष्णन के पक्ष में बड़े बड़े लोग थे, सबसे दुश्मनी हो जाती और अंतरात्मा ने जदुनाथ के दावे का विरोध करने नहीं दिया। नववेदांत के दार्शनिक कृष्णचंद्र भट्टाचार्य भी जदुनाथ सिन्हा के रीडर थे परंतु राधाकृष्णन से कौन टकराए?
जदुनाथ के साथ तो अन्याय हुआ, परंतु जब वे खुद ही पीछे हट गए तो मामला खत्म। हमारी आपत्ति ऐसे व्यक्ति को भारत रत्न देने और उसके जन्मदिन पर शिक्षक दिवस मनाने पर है। थीसिस चोर डा. सर्वपल्ली जिस थिसिज चोर राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है उन्हें ब्रिटिश सरकार से 'सर' की उपाधि ठीक उसी वर्ष मिली थी जिस वर्ष भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सज़ा हुई थी। राष्ट्रीय आंदोलन में तो यह व्यक्ति पूरी तरह से नदारद था ही। 1892 में वीरभूम जिले में जन्मे जदुनाथ सिन्हा का देहांत 1979 में हुआ। (दलीप मंडल, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक)
http://www.nationaldastak.com/opinion/when-radhakrishnan-stolen-his-students-thesis/
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