एक भाई ने मुझसे पूछा है " ब्राह्मणवाद का क्या अर्थ है ? मैं भी ब्राहमण हूँ इसलिये जानना चाहता हूँ ? "उस भाई की जिज्ञासा के प्रश्न का उत्तर अपनी समझ से देने की कोशिश कर रहा हूँ ၊भारत का समाज जातियों में बंटा हुआ समाज है ၊भारत में जाति व्यवस्था ने आबादी के बड़े हिस्से को हीन और नीच घोषित किया ,मनु द्वारा घोषित नियम के अनुसार इस नीच घोषित किये गये आबादी के हिस्से की ज़मीने छीन ली गईं ,आबादी के इस हिस्से पर धन कमाने की मनाही थोपी गई,आबादी के इस हिस्से को राजनैतिक तौर पर कमज़ोर रखा गया ၊यानी आज के दलितो को एक घोषित विधान के अनुसार गरीब , कमज़ोर और नीचा बनाया गया ၊आबादी के बड़े हिस्से को नीच घोषित करने का काम किया सनातन धर्म ने ၊सनातन धर्म का विधान बनाया वेद, शास्त्र और पुराण लिखने वाले ब्राह्मणों ने,तो जाति प्रथा का निर्माण किया ब्राह्मणों ने,तो ब्राह्मणवाद यानि जाति प्रथा,आज भी ब्राह्मणों द्वारा रचित सनातन धर्म को ही बढ़ाया जा रहा है,भारत की राजनीति भी सनातन धर्म के प्रतीकों की रक्षा के नाम पर चल रही है,राम मन्दिर, भारतीय संस्कृति, जो असल में ब्राहमणवादी संस्कृति है, की रक्षा का संकल्प के नाम पर चुनाव जीते जा रहे हैं ၊इसलिये आज शूद्र और दलित जातियाँ कहती हैं कि उनकी लड़ाई ब्राह्मण वाद के विरुद्ध है,अर्थात ब्राह्मणों द्वारा जिन करोड़ों लोगों को नीच, हीन और गरीब बनाया गया,वह खुद को हीन घोषित करने वाले नियम और वाद से मुक्ति चाहते हैं ၊तो यह बिल्कुल जायज़ बात है ၊खुद को बुरी स्थिति मे ले जाने वाली व्यवस्था से विद्रोह करना और उस व्यवस्था का नाश करना,हर मनुष्य का नैसर्गिक कर्तव्य है ,इसलिये करोड़ों इंसानों को बुरी स्थिति में धकेलने वाले ब्राह्मणवादी कानूनों का नाश करने की कोशिश करना,हर न्यायप्रिय व्यक्ति का कर्तव्य होना चाहिये,इसलिये अगर आज कोई व्यक्ति ब्राहमणवाद का समर्थन करता है तो इसका अर्थ है वह करोड़ों लोगों को नीच घोषित करने को सही कह रहा है ၊और यदि आज के दौर मे कोई करोड़ों लोगों को नीच घोषित करने का समर्थन कर रहा है,तो वह लोकतन्त्र, संविधान, कानून, नैतिकता और इंसानियत के विरुद्ध बात कर रहा है ၊इसके अलावा भारत मे ब्राह्मणों द्वारा पूर्व में नीच घोषित किये गये करोड़ों लोग आज भी व्यापार, प्रशासन, शासन, न्यायिक सेवा, विश्वविद्यालयों के उच्च पदों पर आरक्षण के बावजूद नहीं पहुंच पा रहे हैं,इसका यह कारण नहीं है कि यह दलित योग्य नहीं है,बल्कि इसका कारण यह है कि सैंकड़ों सालों से ऊंचे पदों पर कब्ज़ा किये बैठे ताकतवर ब्राह्मणों का वर्ग इन दलितों से आज भी नफरत करता है,और इन दलितों को इन पदों से दूर रखने की कोशिशें करता रहता है ၊इस तरह दलित युवा मानता है कि उसे हीन हालात से निकलने देने में ब्राह्मणवाद और ब्राह्मण वर्ग बाधा है,देश मे सामाजिक न्याय के पक्षधर भी मानते हैं कि ब्राह्मणवाद द्वारा रचित जातिवाद एक न्याय युक्त समाज बनाने मे बाधा है,इसलिये सभी न्यायप्रिय लोग ब्राह्मणवाद के खात्मे के पक्ष मे हैं,इसके अलावा ब्राह्मणवाद द्वारा निर्मित जातिवाद चूंकि यह मानता है कि जाति जन्म से मिलती है,और जाति कभी बदल नहीं सकती,ब्राह्मणवाद मानता है व्यक्ति जिस जाति मे जन्म लेता है , वह उसी जाति मे मरता है,इसलिये ब्राह्मणवाद के नाश का अर्थ है जाति को जन्म से जोड़ने वाले धर्म का नाश ,इसलिये जो ब्राहमण जाति के व्यक्ति जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवाद के नाश के द्वारा सामाजिक न्याय के लिये कोशिश कर रहे हैं,ऐसे लोगों को ब्राहमण मान कर उनसे नफरत करना भी ब्राह्मणवाद है,ज्ञान को श्रम से श्रेष्ठ मानना ब्राह्मणवाद है,यह मानना कि शरीर से श्रम करने वाला हीन होता है,और बुद्धि से काम करने वाला उच्च होता है, यह भी ब्राह्मणवाद है ၊यह मानना कि अंग्रेजी जानने वाले, ऊँची शिक्षा पा गये लोग, शहरों में रहने वाले लोग श्रेष्ठ हैं,यह मानना कि अंग्रेज़ी ना जानने वाले, ऊंची शिक्षा ना पा सके लोग, गांव के लोग हीन है, भी ब्राहमणवाद है,ब्राह्मण जाति के अलावा, अन्य जाति मे पैदा होने के बावजूद इंसानों को जन्म के स्थान, शिक्षा और आर्थिक स्थिति के आधार पर हीन या श्रेष्ठ मानने वाला व्यक्ति भी ब्राहमणवादी है ၊भारत का सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक बदलाव ब्राह्मणवाद के नाश के बिना संभव ही नहीं है ၊
Saturday, 28 October 2017
हिंदू धर्म के विरोध मे लिखोगे तो मरोगे
*हिंदू धर्म मे रहकर हिंदू धर्म के विरोध मे लिखोगे तो मरोगे |*
-✍🏻 हर्षवर्धन ढोके
आदमी के साथ विचारो की हत्या का ये सिलसिला *तुकाराम महाराज* के पहले से शुरु है; जो आज तक बना हुवा है | हिंदू धर्म मे रहकर हिंदू धर्म के खिलाफ जानेवालो को मौत के घाट उतारा जा रहा है | ब्राम्हणवाद के खिलाफ लिखने पर तुकाराम महाराज को जिस तरह मौत के घात उतारा उसी तरह वर्तमान परिस्थिती मे *दाभोलकर,पानसरे, कुलबर्गी और अभी गौरी लंकेश* को मौत के घाट उतार दिया गया |
हिंदू धर्म ये वर्णव्यवस्था, जात के आधार स्तंभ पर खडा है | हिंदू धर्म मे वर्ण और जात का यह आयाम आदमी मे रिड की हड्डी की तरह है | यदी ये रिड की हड्डी तुट जाये तो जिस तरह आदमी खडा नही हो सकता उसी तरह हिंदू धर्म से यदी वर्ण और जात नष्ट की जाये तो हिंदू धर्म नष्ट हो जायेगा | और RSS ये कभी नही होने देंगी | क्योकी उनकी सभी दुकानदारी इन्ही वर्ण और जात के आधार पर आधारीत है |
हिंदू धर्म का जो भी सुधारक इस वर्ण व्यवस्था को चॅलेंज देगा उसे उसी हिंदू धर्म के आंतकियो द्वारा मौत के घाट उतारा जायेगा | यही RSS की संहिता है | RSS किसी भी द्वारा उनके उद्देशो के आड आने वाले को छोडेंगे नही | मौत के घाट उतारने के बाद दाभोलकर,नेमार्डे, पानसरे, कुलबर्गी फॅमीली के किसी भी सदस्य ने कोर्ट मे इस षडयंत्र के पिछे कौन है ! इसकी याचीका दाखल करके न्यायपालिका मे न्याय की गुहार नही लगायी | ऐसा क्यु ?? क्योकी RSS ने इन फॅमीलो को भी चुप कर लिया है | यदी इनकी फॅमीली ज्यादा कुदेगी तो उन्ही के साथ भी शायद ऐसाही कुछ होगा | जहा प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे मिलते है ; वहा इन सामान्य लोगो के हत्यारो का एक भी सबूत (क्लू) नही मिलता ये सोचनी वाली बात है | जांच के सभी दरवाजे उपर से निचे तक बंद करवा दिये जाते है | इससे जुडे हुये मंत्री से लेकर निचली पोलीस स्टेशन तर हर जांच शिथील की जाती है | रोंक लगा दी जाती है | जो कुछ दिखता है वो सिर्फ दिखावा होता है |
चलो जहा सरकार नही वहा लोग रस्ते पे उतरे तो ऐसा भी नही है | कोई भी हिंदुत्ववादी संघटना इन लोगो के मौत के कारण रस्तेपर निषेध आंदोलन लेकर उतरी नही | सभी हिंदू भाईयोने इनके मौत पर शोक व्यक्त किया मगर इस शोक को लेकर रस्तेपर कॅंडल लेके खडे नही हुये | क्योकी उन्हे भी पता है इनकी हत्या करने वाले उन्ही के हिंदू धर्मीय ही है | हत्यारा यदी कोई गैर मुस्लीम, बौद्ध,ख्रिश्चन होता तो ये लोग हंगामा खडा कर देते | किसी भी हिंदू सांसद ने इस हत्या के खिलाफ संसद मे हंगामा खडा किया नही | *ये सभी बाते प्लॅनींग से चलती है |* होता इस तरह से है ; कोई हिंदू समाज सुधारक लिखता या बोलता है तो उसे हिंदूही द्वारा मारा जाता है | इसिलिये कोई भी हिंदुत्ववादी संघटना इसका निषेध नही करती | दातो तले जबान आ जाये तो ये दर्द बताये भी तो किसे ?
पत्रकार गौरी लंकेश ने एक सप्ताह पहले RSS के कुछ राज खोले थे | अब्रू नुकसान मे गौरी शंकर के खिलाप भाजपा के ही कुछ मंत्री कोर्ट मे गये थे | गौरी उन्ही के पत्रिका मे हरदम हिंदूत्व के विरोध मे लिखते थे | आज उनकी भी गोली मारकर हत्या हुयी | उसकी भी कोई जाच नही होगी और जिन्होने उन्हे गोलीया मारी वो भी नही पकडे जायेंगे | ना ही गौरी लंकेश की फॅमीली इसके खिलाप कोर्ट मे जायेंगे !
इन तिन - चार लोगो की हत्या गोली मारकर हुयी है | ये बात विशेष ! एक तो बात तय है की, जो भी ब्राम्हणवाद के खिलाफ जायेगा उसे उसी शुटर गॅंग से मार दिया जायेगा |
हिंदू धर्म मे रहकर हिंदू धर्म के विरोध मे बोलोगे,लिखोगे तो मरोगे | जिन्हे अपनी कलम से क्रांती करनी उन्होने पहले हिंदू धर्म को छोडकर बौद्ध धर्म स्विकार करके हिंदुत्व के खिलाफ लिखे | उससे धार्मिक संरक्षण प्राप्त होता है | किसी अन्य धर्म के विद्रोही लेखक के खिलाप जाने की RSS की हिम्मत नही होती |
बात चाहे कुछ भी हो; जहा इंसानियत की बात सामने आती है; वहा ना धर्म देखा जाता ना जात | इन सभी हत्या का THE REPUBLICAN निषेध करती है |
*हर्षवर्धन ढोके*
THE REPUBLICAN
6/9/17
-✍🏻 हर्षवर्धन ढोके
आदमी के साथ विचारो की हत्या का ये सिलसिला *तुकाराम महाराज* के पहले से शुरु है; जो आज तक बना हुवा है | हिंदू धर्म मे रहकर हिंदू धर्म के खिलाफ जानेवालो को मौत के घाट उतारा जा रहा है | ब्राम्हणवाद के खिलाफ लिखने पर तुकाराम महाराज को जिस तरह मौत के घात उतारा उसी तरह वर्तमान परिस्थिती मे *दाभोलकर,पानसरे, कुलबर्गी और अभी गौरी लंकेश* को मौत के घाट उतार दिया गया |
हिंदू धर्म ये वर्णव्यवस्था, जात के आधार स्तंभ पर खडा है | हिंदू धर्म मे वर्ण और जात का यह आयाम आदमी मे रिड की हड्डी की तरह है | यदी ये रिड की हड्डी तुट जाये तो जिस तरह आदमी खडा नही हो सकता उसी तरह हिंदू धर्म से यदी वर्ण और जात नष्ट की जाये तो हिंदू धर्म नष्ट हो जायेगा | और RSS ये कभी नही होने देंगी | क्योकी उनकी सभी दुकानदारी इन्ही वर्ण और जात के आधार पर आधारीत है |
हिंदू धर्म का जो भी सुधारक इस वर्ण व्यवस्था को चॅलेंज देगा उसे उसी हिंदू धर्म के आंतकियो द्वारा मौत के घाट उतारा जायेगा | यही RSS की संहिता है | RSS किसी भी द्वारा उनके उद्देशो के आड आने वाले को छोडेंगे नही | मौत के घाट उतारने के बाद दाभोलकर,नेमार्डे, पानसरे, कुलबर्गी फॅमीली के किसी भी सदस्य ने कोर्ट मे इस षडयंत्र के पिछे कौन है ! इसकी याचीका दाखल करके न्यायपालिका मे न्याय की गुहार नही लगायी | ऐसा क्यु ?? क्योकी RSS ने इन फॅमीलो को भी चुप कर लिया है | यदी इनकी फॅमीली ज्यादा कुदेगी तो उन्ही के साथ भी शायद ऐसाही कुछ होगा | जहा प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे मिलते है ; वहा इन सामान्य लोगो के हत्यारो का एक भी सबूत (क्लू) नही मिलता ये सोचनी वाली बात है | जांच के सभी दरवाजे उपर से निचे तक बंद करवा दिये जाते है | इससे जुडे हुये मंत्री से लेकर निचली पोलीस स्टेशन तर हर जांच शिथील की जाती है | रोंक लगा दी जाती है | जो कुछ दिखता है वो सिर्फ दिखावा होता है |
चलो जहा सरकार नही वहा लोग रस्ते पे उतरे तो ऐसा भी नही है | कोई भी हिंदुत्ववादी संघटना इन लोगो के मौत के कारण रस्तेपर निषेध आंदोलन लेकर उतरी नही | सभी हिंदू भाईयोने इनके मौत पर शोक व्यक्त किया मगर इस शोक को लेकर रस्तेपर कॅंडल लेके खडे नही हुये | क्योकी उन्हे भी पता है इनकी हत्या करने वाले उन्ही के हिंदू धर्मीय ही है | हत्यारा यदी कोई गैर मुस्लीम, बौद्ध,ख्रिश्चन होता तो ये लोग हंगामा खडा कर देते | किसी भी हिंदू सांसद ने इस हत्या के खिलाफ संसद मे हंगामा खडा किया नही | *ये सभी बाते प्लॅनींग से चलती है |* होता इस तरह से है ; कोई हिंदू समाज सुधारक लिखता या बोलता है तो उसे हिंदूही द्वारा मारा जाता है | इसिलिये कोई भी हिंदुत्ववादी संघटना इसका निषेध नही करती | दातो तले जबान आ जाये तो ये दर्द बताये भी तो किसे ?
पत्रकार गौरी लंकेश ने एक सप्ताह पहले RSS के कुछ राज खोले थे | अब्रू नुकसान मे गौरी शंकर के खिलाप भाजपा के ही कुछ मंत्री कोर्ट मे गये थे | गौरी उन्ही के पत्रिका मे हरदम हिंदूत्व के विरोध मे लिखते थे | आज उनकी भी गोली मारकर हत्या हुयी | उसकी भी कोई जाच नही होगी और जिन्होने उन्हे गोलीया मारी वो भी नही पकडे जायेंगे | ना ही गौरी लंकेश की फॅमीली इसके खिलाप कोर्ट मे जायेंगे !
इन तिन - चार लोगो की हत्या गोली मारकर हुयी है | ये बात विशेष ! एक तो बात तय है की, जो भी ब्राम्हणवाद के खिलाफ जायेगा उसे उसी शुटर गॅंग से मार दिया जायेगा |
हिंदू धर्म मे रहकर हिंदू धर्म के विरोध मे बोलोगे,लिखोगे तो मरोगे | जिन्हे अपनी कलम से क्रांती करनी उन्होने पहले हिंदू धर्म को छोडकर बौद्ध धर्म स्विकार करके हिंदुत्व के खिलाफ लिखे | उससे धार्मिक संरक्षण प्राप्त होता है | किसी अन्य धर्म के विद्रोही लेखक के खिलाप जाने की RSS की हिम्मत नही होती |
बात चाहे कुछ भी हो; जहा इंसानियत की बात सामने आती है; वहा ना धर्म देखा जाता ना जात | इन सभी हत्या का THE REPUBLICAN निषेध करती है |
*हर्षवर्धन ढोके*
THE REPUBLICAN
6/9/17
महिला क्रांति के मसीहा
:भारतीय महिला क्रांति के मसीहा थे
'‘विश्वरत्न डाँ.बाबासाहेब आंबेडकर’'
डाँ. बाबासाहेब आंबेडकर यह बात समझते थे कि स्त्रियों की स्थिति सिर्फ ऊपर से उपदेश देकर नहीं सुधरने वाली, उसके लिए क़ानूनी व्यवस्था करनी होगी। इस संदर्भ में महाराष्ट्रीयन बहुजन लेखक बाबुराव बागुल कहते है, ‘हिंदू कोड बिल" महिला सशक्तिकरण का असली आविष्कार है। इसी कारण बाबासाहेब डाँ. भिमराव आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल अस्तित्व में लाया जिसकी प्रस्तुति के बिंदु निम्न थे –
• यह बिल हिंदू स्त्रियों की उन्नति के लिए प्रस्तुत किया गया था ।
• इस बिल में स्त्रियों को तलाक लेने का अधिकार था ।
• तलाक मिलने पर गुज़ारा भत्ता मिलने का अधिकार था ।
• एक पत्नी के होते हुए दूसरी शादी न करने का प्रावधान किया गया था ।
• गोद लेने का अधिकार था ।
• बाप-दादा की संपत्ति में हिस्से का अधिकार था।
• स्त्रियों को अपनी कमाई पर अधिकार दिया गया था ।
• लड़की को उत्तराधिकार का अधिकार था ।
• अंतरजातीय विवाह करने का अधिकार था ।
• अपना उत्तराधिकारी निश्चित करने की स्वतंत्रता थी ।
इन सभी बिंदुओं के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि ‘हिंदू कोड बिल’ भारतीय महिलाओं के लिए सभी मर्ज़ की दवा थी । क्योंकि बाबासाहेब आंबेडकर समझते थे कि असल में समाज की मानसिक सोच जब तक नहीं बदलेगी तब तक व्यावहारिक सोच विकसित नहीं हो सकेगी। पर अफ़सोस यह बिल संसद में पारित नहीं हो पाया और इसी कारण आंबेडकर ने विधि मंत्री पद का इस्तीफ़ा दे दिया । इस आधार पर बाबासाहेब आंबेडकर को भारतीय महिला क्रांति का ‘मसीहा’ कहना कहीं से भी अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा ।
‘समाज की जटिलताओं को नज़रअंदाज़ करना गुलामी की नई बेड़ियाँ गाड़ने जैसा है’
बाबासाहेब आंबेडकर के अवलोकन में स्त्री-प्रश्न भारत में किसी भी दूसरे विकसित या पिछड़े मुल्क की तुलना में अधिक जटिल था। यह जटिलता परिवार, समाज, संस्कृति, कानून, रोज़गार हर स्थल पर सैकड़ों रूपों में मौजूद था। वह समझते थे कि इस जटिलता को नज़रअंदाज़ करना देश की आधी आबादी के लिए नई गुलामी की बेड़ियाँ गाड़ने वालों जैसा था। उनका दावा था कि इस विशाल और जटिल देश में स्त्रियों के संघर्ष आज भी कायम है। इन संघर्षों की सांस्कृतिक ज़मीन को पुख्ता करना स्त्री-स्वतंत्रता की प्राथमिक और अनिवार्य शर्त है ।
बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था – ‘मैं नहीं जानता कि इस दुनिया का क्या होगा, जब बेटियों का जन्म ही नहीं होगा|’ स्त्री सरोकारों के प्रति डॉ भीमराव आंबेडकर का समर्पण किसी जुनून से कम नहीं था। सामाजिक न्याय, सामाजिक पहचान, समान अवसर और संवैधानिक स्वतंत्रता के रूप में नारी सशक्तिकरण लिए उनका योगदान पीढ़ी-दर-पीढ़ी याद किया जायेगा ।
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जय संविधान !! जय भीम !! जय भारत !!
'‘विश्वरत्न डाँ.बाबासाहेब आंबेडकर’'
डाँ. बाबासाहेब आंबेडकर यह बात समझते थे कि स्त्रियों की स्थिति सिर्फ ऊपर से उपदेश देकर नहीं सुधरने वाली, उसके लिए क़ानूनी व्यवस्था करनी होगी। इस संदर्भ में महाराष्ट्रीयन बहुजन लेखक बाबुराव बागुल कहते है, ‘हिंदू कोड बिल" महिला सशक्तिकरण का असली आविष्कार है। इसी कारण बाबासाहेब डाँ. भिमराव आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल अस्तित्व में लाया जिसकी प्रस्तुति के बिंदु निम्न थे –
• यह बिल हिंदू स्त्रियों की उन्नति के लिए प्रस्तुत किया गया था ।
• इस बिल में स्त्रियों को तलाक लेने का अधिकार था ।
• तलाक मिलने पर गुज़ारा भत्ता मिलने का अधिकार था ।
• एक पत्नी के होते हुए दूसरी शादी न करने का प्रावधान किया गया था ।
• गोद लेने का अधिकार था ।
• बाप-दादा की संपत्ति में हिस्से का अधिकार था।
• स्त्रियों को अपनी कमाई पर अधिकार दिया गया था ।
• लड़की को उत्तराधिकार का अधिकार था ।
• अंतरजातीय विवाह करने का अधिकार था ।
• अपना उत्तराधिकारी निश्चित करने की स्वतंत्रता थी ।
इन सभी बिंदुओं के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि ‘हिंदू कोड बिल’ भारतीय महिलाओं के लिए सभी मर्ज़ की दवा थी । क्योंकि बाबासाहेब आंबेडकर समझते थे कि असल में समाज की मानसिक सोच जब तक नहीं बदलेगी तब तक व्यावहारिक सोच विकसित नहीं हो सकेगी। पर अफ़सोस यह बिल संसद में पारित नहीं हो पाया और इसी कारण आंबेडकर ने विधि मंत्री पद का इस्तीफ़ा दे दिया । इस आधार पर बाबासाहेब आंबेडकर को भारतीय महिला क्रांति का ‘मसीहा’ कहना कहीं से भी अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा ।
‘समाज की जटिलताओं को नज़रअंदाज़ करना गुलामी की नई बेड़ियाँ गाड़ने जैसा है’
बाबासाहेब आंबेडकर के अवलोकन में स्त्री-प्रश्न भारत में किसी भी दूसरे विकसित या पिछड़े मुल्क की तुलना में अधिक जटिल था। यह जटिलता परिवार, समाज, संस्कृति, कानून, रोज़गार हर स्थल पर सैकड़ों रूपों में मौजूद था। वह समझते थे कि इस जटिलता को नज़रअंदाज़ करना देश की आधी आबादी के लिए नई गुलामी की बेड़ियाँ गाड़ने वालों जैसा था। उनका दावा था कि इस विशाल और जटिल देश में स्त्रियों के संघर्ष आज भी कायम है। इन संघर्षों की सांस्कृतिक ज़मीन को पुख्ता करना स्त्री-स्वतंत्रता की प्राथमिक और अनिवार्य शर्त है ।
बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था – ‘मैं नहीं जानता कि इस दुनिया का क्या होगा, जब बेटियों का जन्म ही नहीं होगा|’ स्त्री सरोकारों के प्रति डॉ भीमराव आंबेडकर का समर्पण किसी जुनून से कम नहीं था। सामाजिक न्याय, सामाजिक पहचान, समान अवसर और संवैधानिक स्वतंत्रता के रूप में नारी सशक्तिकरण लिए उनका योगदान पीढ़ी-दर-पीढ़ी याद किया जायेगा ।
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जय संविधान !! जय भीम !! जय भारत !!
वड़ोदरा नगरी व् ऐतिहासिक भीम संकल्प घटनाक्रम
वड़ोदरा नगरी व् ऐतिहासिक भीम संकल्प घटनाक्रम
( संक्षिप्त परिचय )
सर्व विदित है कि आज भी दुनियाँ के किसी न किसी भाग से समता के अभाव में हिंसात्मक अमानवीयता के खतरनाक परीणाम दिन प्रतिदिन आते ही रहते हैं, ऐसी ही एक घृणित अमानवीयता की घटना वडोदरा नगरी में घटी, ज्ञातव्य है कि आधुनिक भारत के निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर यहाँ वड़ोदरा नगरी के महाराजा श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड़ ( तृतीय ) द्वारा प्रदत्त उच्च शिक्षा के लिये ऋण शिष्यवृति अनुबंधनानुसार दी गई थी कि उच्चशिक्षा उपरांत कम से कम १० वर्ष की अवधि तक उन्हें अपनी सेवा वड़ोदरा रियासत को देनी होगी I शिक्षा उपरांत सितम्बर १९१७ में भारत के प्रथम दर्जे के विद्वान् बाबा साहब अपना कर्तव्य निभाने हेतु वडोदरा नगरी में पधारे, उन्हे यहाँ सैनिक सचिव के उच्च पद पर आसीन किया गया था लेकिन यहाँ के अधिकतर अधिकारी क्षुब्ध रह गये क्योंकि हिन्दू परम्परा के अनुसार वो एक अछूत व्यक्ति थे, अछूत को इतना बड़ा हौदा....? महाराजा के कृपापात्र व् भारत के प्रथम दर्जे के विद्वान् होने के बावजूद भी उन्हें यहाँ प्रति दिन भीषण मनुवादी मानसिकता से रोगग्रस्त सहयोगियों द्वारा जाति सूचक व् घृणित कटाक्षों की अति से अपमान की दुर्दशा का जहर पीना पड़ रहा था, उन्हें यहाँ रहने के लिए मकान तक नहीं मिला, एक पारसी की धर्मशाला में नाम बदल कर (एदल सोराबजी) रहना पड़ रहा था , लेकिन ये बात छुप नहीं सकी, मात्र ११ दिनों के अंदर ही अर्थात २३ सितम्बर १९१७ रविवार के दिन तो अति ही हो गई कि उनपर पारसी की धर्मशाला निवास पर लकड़ी डंडों से लेस लगभग दर्जन भर पार्सिओं ने क्षुब्ध अधिकारियों की सः से अतिअभद्रता के साथ आक्रामक हमला बोल दिया ... आरोप लगाते हुए कि तूने धर्मशाला को अपवित्र कर दिया . . . घोर अपमानित करते हुए उनका सामान भी बाहर फेंक दिया और
धर्मशाला को तुरंत ही खाली करने का फरमान भी सुना दिया I अब बाबा साहब इतने व्यथित हो चुके थे कि इस भयावह वातावरण से निकलकर वापिस मुंबई जाने के लिये निकले तो उस दिन मुंबई जाने वाली रेलगाड़ी भी लगभग ४ घंटे की देरी से चल रही थी, अतः इस भयावह वातावरण को ध्यान में रखते हुए बाबा साहब को इसी शहर से गुजरने वाली विश्वामित्री नदी के किनारे की पावन भूमि कमाटी बाग (पुराना नाम) - वर्तमान में “संकल्प भूमि सयाजी बाग” पर एक वट वृक्ष (संकल्प वृक्ष) के साये में शरण लेनी पड़ी, इन्ही पलों को व्यतीत करते हुए बाबा साहब असहनीय पीड़ा भरी सोच में डूब चुके थे कि मेरे ही देश जब मेरे जैसे भारत के प्रथम नंबर के महाशिक्षित विद्वान की ये दुर्दशा है तो शेष करोड़ों गुलामी भरा जीवन जीने वाले मानवों की दुर्दशा कितनी भयावह होगी . . . इस वक्त बाबासाहब की आँखों से अश्रुओं का झरना रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था . . . क्या ये अश्रु साधारण हो सकते थे ? इन्हीं अश्रुओं से भारत भाग्य विधाता बाबा साहेब के ज्ञान भंडार में, मष्तिष्क में उन करोड़ों-करोड़ों शोषितों, वंचितों . . . के रोते बिलखते चित्र उभरकर उनके मस्तिष्क में प्रतिबिम्बित हुए, आज उनकी मानवीय संवेदनाएँ कराह उठी थी – इसी वक्त एक दृढ संकल्प की चिंगारी उनके मष्तिस्क से निकली कि -“आज से मेरा परिवार वो समस्त करोड़ों करोड़ों शोषित-गुलामी भरा जीवन जीने वाले मानव हैं, मैं आज से जीवन पर्यंत सिर्फ समता के महान आदर्श के स्थापत्य व् मानवीय शोषण की भयंकर बीमारी के निर्मूलन के लिये अंतिम श्वास तक संघर्ष करूँगा” I
आज बाबा साहब ने वड़ोदरा नगरी तो छोड़ी, लेकिन ऋण मुक्त होने की जिज्ञासा अभी बाकी थी, आवास व्यस्था के लिए बडौदा विश्वविध्यालय के प्राध्यापक सेम्युअल लुक्श जोशी (विदेश में रहे सहपाठी व् घनिष्ट मित्र) के आश्वासन पर बाबा साहब का बडौदा रेलवे स्टेशन पर पुनः आगमन भी हुआ,लेकिन मित्र ने नौकर के हवाले से रेलवे स्टेशन पर ही पत्र भिजवा कर, पत्नी की तरफ से मनुवादी मानसिकता दर्शा दी..., आज फिर से मजबुरन यहाँ से ही लौटती रेलगाड़ी से वापिस लौटना पड़ा, इस वक्त भी फिर से कि –“अब मैं वड़ोदरा की धरा पर कभी भी कदम नहीं रखूँगा, केवल अपने दृढ संकल्प के लिये ही जीवन पर्यन्त संघर्ष व् कार्य करूँगा, मेरा दृढ संकल्प ही देश की एकता - अखंडता की मुख्य कड़ी होगा”I(ज्ञातव्य है कि उन दिनों देश के मानवों में असमानता की व्यापक भयंकर बीमारी के कारण ही देश में एकता - अखंडता की मुख्य कमी बनी हुई थी, परिणामतः देश गुलामी का जीवन जी रहा था I)
बाबा साहब ने फिर कभी वड़ोदरा की धरा पर कदम नहीं रखे अपितु उनकी अस्थियों को घोड़ा बग्गी में ससम्मान सुसज्जित कर, अस्थि सम्मान रैली के रूप में दर्शनार्थ हेतु संकल्प भूमि सयाजी बाग, वड़ोदरा पर दिनांक २४ दिसंबर २०११ को लाया गया I
इस तरह असंख्य आदर्श मानवतावादी संघर्षों की क्रांति इसी पावन भूमि पर लिये गए बाबासाहब के दृढ संकल्प से उद्गमित हुई, अनेको कष्ट भरी विषम परिस्थतियों को वो अपने दृढ संकल्प से कुचलते कुचलते, संविधान अंकुरण की इस प्रथमतः भूमि “संकल्प भूमि सयाजी बाग” से संविधान सभा के मुखिया बनकर पहुँचे और देश को दिया विश्व विख्यता-राष्ट्रीय ग्रन्थ - “भारत का संविधान” परिणामतः हमारा देश हुआ आधुनिक भारत > हमारा देश महान I
सच तो यह है कि न तो ये साधारण अश्रू थे न ही साधारण था संकल्प जहाँ अश्रु संविधान की स्याही थी वहीँ संकल्प एक सामाजिक न्याय की मानवीय संवेदनाओं की कलम I इस दिन से वो निजि परिवार तक सीमित नही रहे बल्कि समस्त भारत के करोड़ों-करोड़ों शोषितों, वंचितों को स्वीकारा अपना परिवार I
जरा सोचिये कि – (1)बाबा साहब अश्रू अपने गिराकर, खुशियाँ हमें बाँट कर चले गये . . .( 2) वड़ोदरा में वो प्यासे तक रहे पर हमारे लिए पानी पैदा कर गये I (3) एक दिन उनके पुत्र यशवंत राव ने जब बाबा साहब से ये प्रश्न किया कि आपने क्या दिया है हमें?. ... आपसे कम डिग्री धारियों के पास कई कई बंगले व् कारें हैं....बाबा साहब का उत्तर बड़ा ही ह्रदय स्पर्शी था - कि यशवंतराव तुम मेरे अकेले बेटे नहीं हो मेरी तो लाखों करोड़ों संतानें हैं,मैं लाखों करोड़ों संतानों के लिये घर बंगला व् कारों की व्यस्था के लिये संकल्पवद हूँI (4) संविधान से पहले केवल महारानियों की कोख से जन्मी संतानें ही शाशक, शाशिका बन सकते थे, लेकिंन बाबा साहब ने देश की हर महिला को महारानी होने का सम्मान व् अधिकार दिया, आज देश की कोई भी संतान इस देश के शाशक, शाशिका बनते हुए आप स्वतः परिणाम देख रहे हैं I (5) अनेकों विदेशी नोकरियों के अवसर सिर्फ अपने दृढ़ संकल्प को पुरा करने के लिये खोये, यही नहीं बाबा साहब ने अपनी चार चार संतानों को धन व् उपचार के अभाव में ही खो दिया, लेकिन दृढ़ संकल्प से पीछे नहीं हटे I (6) वड़ोदरा में उन्हें रहने का मकान तक नहीं मिला लेकिन करोड़ों उपेक्षित मानवों को देश की मुख्य धारा से जोड़कर महल, बंगला, मकान, दुकान व् कार लेने के समर्थ बना कर चले गये . . . .
क्या हमारा कर्तव्य नहीं बनता कि विश्व धरोहर दर्जे की पावन भूमि संकल्प भूमि सयाजी बाग पर सयुंक्त रूप से जुड़ कर इस महान पर्व के शताब्दी वर्ष पर २३ सितम्बर २०१७ को { देश विदेश के सभी मानवतावादी व् मानवतावादी संगठनो / विश्वशांति के संगठनो (सरकारी / गैर सरकारी ) अंतरराष्ट्रीय शताब्दी संकल्प दिवस महोत्सव के रूप में मनाकर महामानव, भारत भाग्य विधाता बाबा साहब के महान संकल्प को श्रद्धा सुमन के साथ इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज करायें I
( संक्षिप्त परिचय )
सर्व विदित है कि आज भी दुनियाँ के किसी न किसी भाग से समता के अभाव में हिंसात्मक अमानवीयता के खतरनाक परीणाम दिन प्रतिदिन आते ही रहते हैं, ऐसी ही एक घृणित अमानवीयता की घटना वडोदरा नगरी में घटी, ज्ञातव्य है कि आधुनिक भारत के निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर यहाँ वड़ोदरा नगरी के महाराजा श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड़ ( तृतीय ) द्वारा प्रदत्त उच्च शिक्षा के लिये ऋण शिष्यवृति अनुबंधनानुसार दी गई थी कि उच्चशिक्षा उपरांत कम से कम १० वर्ष की अवधि तक उन्हें अपनी सेवा वड़ोदरा रियासत को देनी होगी I शिक्षा उपरांत सितम्बर १९१७ में भारत के प्रथम दर्जे के विद्वान् बाबा साहब अपना कर्तव्य निभाने हेतु वडोदरा नगरी में पधारे, उन्हे यहाँ सैनिक सचिव के उच्च पद पर आसीन किया गया था लेकिन यहाँ के अधिकतर अधिकारी क्षुब्ध रह गये क्योंकि हिन्दू परम्परा के अनुसार वो एक अछूत व्यक्ति थे, अछूत को इतना बड़ा हौदा....? महाराजा के कृपापात्र व् भारत के प्रथम दर्जे के विद्वान् होने के बावजूद भी उन्हें यहाँ प्रति दिन भीषण मनुवादी मानसिकता से रोगग्रस्त सहयोगियों द्वारा जाति सूचक व् घृणित कटाक्षों की अति से अपमान की दुर्दशा का जहर पीना पड़ रहा था, उन्हें यहाँ रहने के लिए मकान तक नहीं मिला, एक पारसी की धर्मशाला में नाम बदल कर (एदल सोराबजी) रहना पड़ रहा था , लेकिन ये बात छुप नहीं सकी, मात्र ११ दिनों के अंदर ही अर्थात २३ सितम्बर १९१७ रविवार के दिन तो अति ही हो गई कि उनपर पारसी की धर्मशाला निवास पर लकड़ी डंडों से लेस लगभग दर्जन भर पार्सिओं ने क्षुब्ध अधिकारियों की सः से अतिअभद्रता के साथ आक्रामक हमला बोल दिया ... आरोप लगाते हुए कि तूने धर्मशाला को अपवित्र कर दिया . . . घोर अपमानित करते हुए उनका सामान भी बाहर फेंक दिया और
धर्मशाला को तुरंत ही खाली करने का फरमान भी सुना दिया I अब बाबा साहब इतने व्यथित हो चुके थे कि इस भयावह वातावरण से निकलकर वापिस मुंबई जाने के लिये निकले तो उस दिन मुंबई जाने वाली रेलगाड़ी भी लगभग ४ घंटे की देरी से चल रही थी, अतः इस भयावह वातावरण को ध्यान में रखते हुए बाबा साहब को इसी शहर से गुजरने वाली विश्वामित्री नदी के किनारे की पावन भूमि कमाटी बाग (पुराना नाम) - वर्तमान में “संकल्प भूमि सयाजी बाग” पर एक वट वृक्ष (संकल्प वृक्ष) के साये में शरण लेनी पड़ी, इन्ही पलों को व्यतीत करते हुए बाबा साहब असहनीय पीड़ा भरी सोच में डूब चुके थे कि मेरे ही देश जब मेरे जैसे भारत के प्रथम नंबर के महाशिक्षित विद्वान की ये दुर्दशा है तो शेष करोड़ों गुलामी भरा जीवन जीने वाले मानवों की दुर्दशा कितनी भयावह होगी . . . इस वक्त बाबासाहब की आँखों से अश्रुओं का झरना रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था . . . क्या ये अश्रु साधारण हो सकते थे ? इन्हीं अश्रुओं से भारत भाग्य विधाता बाबा साहेब के ज्ञान भंडार में, मष्तिष्क में उन करोड़ों-करोड़ों शोषितों, वंचितों . . . के रोते बिलखते चित्र उभरकर उनके मस्तिष्क में प्रतिबिम्बित हुए, आज उनकी मानवीय संवेदनाएँ कराह उठी थी – इसी वक्त एक दृढ संकल्प की चिंगारी उनके मष्तिस्क से निकली कि -“आज से मेरा परिवार वो समस्त करोड़ों करोड़ों शोषित-गुलामी भरा जीवन जीने वाले मानव हैं, मैं आज से जीवन पर्यंत सिर्फ समता के महान आदर्श के स्थापत्य व् मानवीय शोषण की भयंकर बीमारी के निर्मूलन के लिये अंतिम श्वास तक संघर्ष करूँगा” I
आज बाबा साहब ने वड़ोदरा नगरी तो छोड़ी, लेकिन ऋण मुक्त होने की जिज्ञासा अभी बाकी थी, आवास व्यस्था के लिए बडौदा विश्वविध्यालय के प्राध्यापक सेम्युअल लुक्श जोशी (विदेश में रहे सहपाठी व् घनिष्ट मित्र) के आश्वासन पर बाबा साहब का बडौदा रेलवे स्टेशन पर पुनः आगमन भी हुआ,लेकिन मित्र ने नौकर के हवाले से रेलवे स्टेशन पर ही पत्र भिजवा कर, पत्नी की तरफ से मनुवादी मानसिकता दर्शा दी..., आज फिर से मजबुरन यहाँ से ही लौटती रेलगाड़ी से वापिस लौटना पड़ा, इस वक्त भी फिर से कि –“अब मैं वड़ोदरा की धरा पर कभी भी कदम नहीं रखूँगा, केवल अपने दृढ संकल्प के लिये ही जीवन पर्यन्त संघर्ष व् कार्य करूँगा, मेरा दृढ संकल्प ही देश की एकता - अखंडता की मुख्य कड़ी होगा”I(ज्ञातव्य है कि उन दिनों देश के मानवों में असमानता की व्यापक भयंकर बीमारी के कारण ही देश में एकता - अखंडता की मुख्य कमी बनी हुई थी, परिणामतः देश गुलामी का जीवन जी रहा था I)
बाबा साहब ने फिर कभी वड़ोदरा की धरा पर कदम नहीं रखे अपितु उनकी अस्थियों को घोड़ा बग्गी में ससम्मान सुसज्जित कर, अस्थि सम्मान रैली के रूप में दर्शनार्थ हेतु संकल्प भूमि सयाजी बाग, वड़ोदरा पर दिनांक २४ दिसंबर २०११ को लाया गया I
इस तरह असंख्य आदर्श मानवतावादी संघर्षों की क्रांति इसी पावन भूमि पर लिये गए बाबासाहब के दृढ संकल्प से उद्गमित हुई, अनेको कष्ट भरी विषम परिस्थतियों को वो अपने दृढ संकल्प से कुचलते कुचलते, संविधान अंकुरण की इस प्रथमतः भूमि “संकल्प भूमि सयाजी बाग” से संविधान सभा के मुखिया बनकर पहुँचे और देश को दिया विश्व विख्यता-राष्ट्रीय ग्रन्थ - “भारत का संविधान” परिणामतः हमारा देश हुआ आधुनिक भारत > हमारा देश महान I
सच तो यह है कि न तो ये साधारण अश्रू थे न ही साधारण था संकल्प जहाँ अश्रु संविधान की स्याही थी वहीँ संकल्प एक सामाजिक न्याय की मानवीय संवेदनाओं की कलम I इस दिन से वो निजि परिवार तक सीमित नही रहे बल्कि समस्त भारत के करोड़ों-करोड़ों शोषितों, वंचितों को स्वीकारा अपना परिवार I
जरा सोचिये कि – (1)बाबा साहब अश्रू अपने गिराकर, खुशियाँ हमें बाँट कर चले गये . . .( 2) वड़ोदरा में वो प्यासे तक रहे पर हमारे लिए पानी पैदा कर गये I (3) एक दिन उनके पुत्र यशवंत राव ने जब बाबा साहब से ये प्रश्न किया कि आपने क्या दिया है हमें?. ... आपसे कम डिग्री धारियों के पास कई कई बंगले व् कारें हैं....बाबा साहब का उत्तर बड़ा ही ह्रदय स्पर्शी था - कि यशवंतराव तुम मेरे अकेले बेटे नहीं हो मेरी तो लाखों करोड़ों संतानें हैं,मैं लाखों करोड़ों संतानों के लिये घर बंगला व् कारों की व्यस्था के लिये संकल्पवद हूँI (4) संविधान से पहले केवल महारानियों की कोख से जन्मी संतानें ही शाशक, शाशिका बन सकते थे, लेकिंन बाबा साहब ने देश की हर महिला को महारानी होने का सम्मान व् अधिकार दिया, आज देश की कोई भी संतान इस देश के शाशक, शाशिका बनते हुए आप स्वतः परिणाम देख रहे हैं I (5) अनेकों विदेशी नोकरियों के अवसर सिर्फ अपने दृढ़ संकल्प को पुरा करने के लिये खोये, यही नहीं बाबा साहब ने अपनी चार चार संतानों को धन व् उपचार के अभाव में ही खो दिया, लेकिन दृढ़ संकल्प से पीछे नहीं हटे I (6) वड़ोदरा में उन्हें रहने का मकान तक नहीं मिला लेकिन करोड़ों उपेक्षित मानवों को देश की मुख्य धारा से जोड़कर महल, बंगला, मकान, दुकान व् कार लेने के समर्थ बना कर चले गये . . . .
क्या हमारा कर्तव्य नहीं बनता कि विश्व धरोहर दर्जे की पावन भूमि संकल्प भूमि सयाजी बाग पर सयुंक्त रूप से जुड़ कर इस महान पर्व के शताब्दी वर्ष पर २३ सितम्बर २०१७ को { देश विदेश के सभी मानवतावादी व् मानवतावादी संगठनो / विश्वशांति के संगठनो (सरकारी / गैर सरकारी ) अंतरराष्ट्रीय शताब्दी संकल्प दिवस महोत्सव के रूप में मनाकर महामानव, भारत भाग्य विधाता बाबा साहब के महान संकल्प को श्रद्धा सुमन के साथ इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज करायें I
थोपी हुई नास्तिकता वंचित वर्गों की एकजुटता में बाधक
थोपी हुई नास्तिकता वंचित वर्गों की एकजुटता में बाधक
12 जुलाई, 2017 को मैंने * 'कुछ लोग डंडे के बल पर लोगों को बदलना चाहते हैं। ऐसे लोग मोस्ट वर्ग के सबसे बड़े दुश्मन हैं।'* शीर्षक से लिखे लेख में लिखा था कि-
1. हम सब को अभिव्यक्ति की आजादी है, लेकिन जमीनी सच्चाई को नकारना मेरी दृष्टि में बुद्धिमता नहीं। यद्यपि विचारणीय तथ्य यह है कि केवल और *केवल डिग्रीधारी या उच्च पद दिलाने वाली शिक्षा के अहंकार से संचालित लोगों की शैक्षिक ईगो (अहंकार) जीवन और समाज को दिशा देने के मामले में खतरनाक सिद्ध हो सकती है। बल्कि खतरनाक सिद्ध हो ही रही है।* मानव व्यवहार शास्त्र और मानव मनोविज्ञान का ज्ञान रखने वाले विश्वस्तरीय विद्वान्/मनीषी इस बात को जानते और मानते हैं कि *दुनिया केवल कानून, तर्क और तथ्यों से न कभी चली है और न कभी चल सकती। जीवन मानव के अवचेतन मन के गहरे तल पर हजारों सालों से स्थापित अच्छे-बुरे संस्कार, ज्ञान, अवधारणाओं, परम्पराओं और अनचाही आदतों से संचालित होता है।*
2. भारत के मोस्ट वर्ग में एक छोटा सा, बल्कि *मुठ्ठीभर लोगों का ऐसा समुदाय है, जो धर्म, अध्यात्म आदि को सीधे-सीधे ढोंग तथा अवैज्ञानिक करार देता है। ऐसे लोगों के समर्थन में भारत की एक फीसदी आबादी भी नहीं है।* जबकि यह वैज्ञानिक सत्य है कि अध्यात्म, प्रार्थना और मैडीटेशन का अवचेतन मन की शक्ति से सीधा जुड़ाव है। जिसे जाने और समझे बिना *अधिकतर आम आस्तिक लोग परमेश्वर, दैवीय शक्ति या अपने आराध्य की प्रार्थना करते हैं और आश्चर्यजनक रूप से उनको, उनकी प्रार्थनाओं के परिणाम भी मिलते हैं। जिसे मनोवैज्ञानिकों ने संसार के अनेक देशों, धर्मों और नस्लों के लोगों में बार-बार सत्य पाया है। यह अलग बात है कि प्रार्थनाओं से मिलने वाले परिणाम दैवीय शक्ति या आराध्य के ही कारण ही मिलते हैं, इसका आज तक कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है, लेकिन जिन आस्तिक लोगों को परिणाम मिलते हैं। उनकी आस्था को झुठलाना वैज्ञानिक रूप से इतना सरल नहीं है, जितना कि कुछ कथित कट्टरपंथी नास्तिक समझते हैं।*
3. कड़वा सच तो यह है कि *खुद को नास्तिक कहने और बोलने वाले सबसे बड़े/कट्टर आस्तिक होते हैं। इस विषय में, मेरी ओर से 23 अक्टूबर, 2016 को ''नास्तिकता और आस्तिकता दोनों ही मनोवैज्ञानिक और मानव व्यवहारशास्त्र से जुड़ी अवधारणाएं हैं'' शीर्षक से एक आलेख लिखा था। जिसमें मूलत: स्पष्ट किया गया था कि-
(1) मैं अनेक बार चाहकर भी अनेक (नास्तिकता और आस्तिकता से जुड़े) विषयों पर इस कारण से नहीं लिखता, क्योंकि अधिकांश लोग अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त हुए बिना किसी बात को महामानव बुद्ध की दृष्टि से समझने को सहमत ही नहीं होते हैं। ऐसे लोगों के पास अपना खुद का कोई चिन्तन, शोधन या परिष्कार नहीं होता है, बल्कि तोतारटन्त ज्ञान को अन्तिम ज्ञान मानकर विचार व्यक्त करते रहते हैं।
(2) नास्तिक और आस्तिक दोनों शब्द भी इसी कारण से समझने में दिक्कत पैदा करते हैं। हमारे यहां पर अधिसंख्य लोग और विशेषकर वे लोग जिनको मनुवादी कारणों से अस्पृश्यता और विभेद का दंश झेलना पड़ा है या झेल रहे हैं, जिनमें मैं भी एक हूं, उन में से अधिकाँश को हर एक बात धार्मिक चश्मे से ही दिखाई देती है।
(3) जबकि नास्तिकता और आस्तिकता दोनों ही मनोवैज्ञानिक और मानव व्यवहारशास्त्र से जुड़ी अवधारणाएं हैं, लेकिन मनुवाद विरोधी धर्म के चश्मे से देखने की उनकी आदत निष्पक्षता को छीन चुकी है।
(4) उदाहरण: एक भगवान को नहीं मानने वाला भारतीय व्यक्ति बेशक अपने आप को नास्तिक कहता रहे, लेकिन बीमार होने पर वह अपना उपचार उसी चिकित्सा पद्धति और उसी डॉक्टर से करवाता है। जिसके प्रति उसके मन में अनुराग, आस्था अर्थात् आस्तिकता होती है। इसी प्रकार रिश्तों, जाति, रंग, पूंजीवाद, समाजवाद या साम्यवाद आदि के प्रति अनुराग या आस्था होना भी मनोव्यवहारीय (मनोवैज्ञानिक) दृष्टिकोण से आस्तिकता का वैज्ञानिक प्रमाण है। मुझे पता है कि मनुवाद विरोधी चश्में से इन अवधारणाओं पर चिन्तन असम्भव है। अत: अनेक लोग कुतर्क और बहस कर सकते हैं, जबकि यह गहन चिन्तन और चर्चा का विषय है।
12 जुलाई, 2017 को लिखे लेख में मैंने आगे लिखा था कि-
4. जानने और समझने वाली बात यह है कि *इस संसार में ऐसी बहुत सी अज्ञात शक्तियां और ज्ञान की शाखाएं हैं, जिनके बारे में जाने बिना, उन विषयों पर (अन्तिम) निर्णय सुनाने वाले वास्तव में सबसे बड़े अमानवीय और अन्यायी हैं। वंचित/मोस्ट वर्ग में एक समुदाय ऐसे अन्यायी और नास्तिक लोगों की कट्टरपंथी फौज तैयार कर रहा है। जिसकी प्रतिक्रिया में वंचित वर्ग के एक तबके पर लगातार अत्याचार, व्यभिचार और अन्याय बढ़ते जा रहे हैं। जिसकी कीमत सम्पूर्ण मोस्ट वर्ग को चुकानी पड़ रही है। इस विषय में भी, मैं अनेक बार विस्तार से लिख चुका हूँ। फिर भी ऐसे लोगों की पूर्वाग्रही धारणाएं शिथिल नहीं हो रही हैं। जो मोस्ट वर्ग की एकता के लिये सबसे खतरनाक तथा भयावह स्थिति है।*
5. जिन लोगों को अवचेतन मन की शक्ति, मैडिटेशन (ध्यान की निश्छल नीरवता) और लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन का प्राथमिक ज्ञान भी रहा होता है, उनके द्वारा कभी भी धर्म, आध्यात्म और आस्तिकता का विरोध नहीं किया जा सकता। लेकिन *कट्टरपंथियों द्वारा ब्रेन वाश किया हुआ पूर्वाग्रही विचारों से ओतप्रोत तथा शाब्दिक ज्ञान की धारा पर तरंगित मन-अवचेतन मन की शक्ति, आकर्षण, न्याय, युक्तियुक्तता, ऋजु इत्यादि अवधारणाओं को न तो जान सकता है और न ही उसे दूसरों की आस्थाओं, विश्वासों, संवेदनाओं तथा सिद्धांतों की परवाह होती है।*
6. वजह साफ है, क्योंकि ऐसे ब्रेन वाश किये हुए कट्टरपंथी लोगों और आतंकवादियों के मानसिक स्तर में कोई अंतर नहीं होता। बल्कि दोनों में मौलिक समानता होती है। वजह वैचारिक रूप से दोनों ही कट्टरपंथी होते हैं। कट्टरपंथियों और आतंकियों के अवचेतन मन में मौलिक रूप से एक बात बिठायी जाती है- *मैं जो जानता हूँ, जो करता हूँ, जो बोलता हूँ, वही सच है। अतः इस सच को सारी दुनिया को जानना और मानना चाहिए। जो नहीं मानते वे मूर्ख, गद्दार, देशद्रोही और असामाजिक हैं। अतः ऐसे लोगों को बहिष्कृत किया जाए या तुरंत रास्ते से हटा दिया जाए। दुष्परिणाम हर दिन हत्याएं और बलात्कार हो रहे हैं!*
7. भारत 1947 में आजाद हुआ। भारत में 1950 से लोकतंत्र की गणतंत्रीय व्यवस्था का संचालक संविधान लागू हुआ। इसके बावजूद भी सामाजिक न्याय से वंचित लोगों को संविधान के प्रावधानों के होते हुए न्याय नहीं मिल रहा है। अन्याय और अत्याचार यथावत जारी रहे हैं। वंचित-मोस्ट वर्ग संख्यात्मक दृष्टि से बहुसंख्यक एवं सशक्त होते हुए भी सात दशक बाद भी बिखरा हुआ है और हर मुकाम पर अपमानित तथा शोषित होने को विवश है। *जिसका मूल कारण है-आपसी एकता का अभाव है। मोस्ट वर्ग की एकता में बाधक वही लोग हैं, जिनके हाथ में मोस्ट वर्ग की लगाम रही है। उनको इतनी समझ तक नहीं कि लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करके, उनका स्नेह, अपनापन, सम्मान, मत और समर्थन हासिल नहीं किया जा सकता।*
8. ऐसे लोग इस देश की सत्ता को किसी न किसी बहाने अपने कब्जे में लेने के सपने तो देखते रहते हैं, लेकिन मतदाता के मनोभाव को नहीं समझना चाहते। अत: इनके सपने पूरे होना कभी भी सम्भव नहीं है। जो कोई भी व्यक्ति आम लोगों की सुन नहीं सकता, वह कभी भी अच्छा वक्ता नहीं बन सकता। क्योंकि वक्ता होने के लिए श्रोताओं की जरूरत होती है और श्रोता उसी को सुनते हैं, जो उनकी आस्थाओं, विश्वासों, भावनाओं, आकांक्षाओं, इच्छाओं और जरूरतों का आदर करता हो। *क्या कोई नास्तिक कभी भारत में 99 फीसदी से अधिक आस्तिक मोस्ट वर्ग के लोगों की भावनाओं को धुत्कार कर, उनका चहेता बन सकता है? मेरी राय में कभी नहीं।*
9. याद रहे-*पाखण्ड और आस्थाओं में अंतर होता है। कोई भी व्यक्ति एक बार पाखण्ड को छोड़ने या त्यागने को सहमत किया भी जा सकता है, लेकिन वही व्यक्ति यकायक अपनी आस्थाओं और विश्वासों को नहीं त्याग सकता।* हमें इस बात को स्वीकारना होगा कि परिवर्तन सतत प्रक्रिया है। जिसमें समय लगता है। पीढियां गुजर जाती हैं। तब कहीं थोड़े-बहुत बदलाव दिखने लगते हैं। इस बात को जाने बिना कुछ लोग डंडे के बल पर लोगों को बदलना चाहते हैं। ऐसे लोग मोस्ट वर्ग के सबसे बड़े दुश्मन हैं। *दुःखद स्थिति यह कि मोस्ट की कमान ऐसे ही लोगों के ही हाथों में है। इससे भी दुःखद यह कि इन लोगों में भी अधिकाँश लोग ढोंगी हैं।*
उपरोक्त लेख का देश के अधिसंख्य अपूर्वाग्रही विद्वानों ने समर्थन किया जो लेख की मूल भावना तथा लेखक का सम्मान है। इसी विषय में मुझे आगे यह और कहना है कि-
10. नास्तिकता और आस्तिकता जैसे विषयों पर सोशल मीडिया पर या वाट्सएप पर चैटिंग के मार्फ़त वांछित परिणाम मिलना तो संदिग्ध है ही, साथ ही साथ, इस कारण नजदीकी लोगों में आपसी दूरियाँ भी बढ़ रही हैं। अतः नास्तिकता समर्थक विद्वानों को कम से कम वंचित/मोस्ट वर्ग के विद्वानों को इस विषय पर समसामयिक हालातों के अनुसार समग्र समाज के हित और अहित को ध्यान में रखकर चिंतन करना होगा। अन्यथा बाद में पछतावे के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।
11. मैं निजी तौर पर संविधान के अनुच्छेद 14, 21 एवं 25 के प्रकाश में धार्मिक मामलों को भारत के लोगों का निजी विषय मानकर, इन पर किसी के भी द्वारा, किसी पर भी अपने नास्तिकता के विचार थोपने या आस्तिकता का मजाक उड़ाने या नास्तिकता को स्थापित करने के लिये आस्तिकों को अपमानित करने के समर्थन में नहीं हूँ। हाँ पाखण्ड, ढोंग, अंधविश्वास आदि का आमजन के धार्मिक विश्वास और उस विश्वास के दैनिक जीवन में पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभावों का निष्पक्ष अध्ययन करने के बाद, इन पर अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ काम करने की जरूरत है। जिससे कि लोगों की भावनाओं को आहत किये बिना, उनको स्वेच्छा से इन्हें छोड़ने के लिए सहमत किया जा सके।
12. निःसन्देह धर्मांधता वंचित वर्गों के समग्र विकास में बाधक है, लेकिन थोपी हुई नास्तिकता वंचित वर्गों की एकजुटता में सबसे बड़ी बाधा है! नास्तिकता का आरोपण करोड़ों लोगों के जीवन जीने के आधार धर्म, आस्था तथा विश्वास को कुचलने के समान है। हम जिन वंचित लोगों को आगे बढाने के लिये काम करना चाहते हैं। हम जिन वंचित लोगों के समर्थन से राजनीतिक सत्ता पाना चाहते हैं। यदि वही लोग असहज या नाखुश अनुभव करके, हम से दूर जाने लगें तो ऐसी नास्तिकता किस काम की? समझने वाली महत्वूपर्ण बात यह है कि जैसे-जैसे लोगों को सत्य के ज्ञान के साथ-साथ, सत्य का अनुभव भी होगा, स्वत: ही बदलाव की बयार बहने लगेगी।
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'-राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल
(HRD Mission-90 For MOST) 9875066111, 11092017
http://hrd-newsletter.blogspot.in/2017/09/blog-post_11.html
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'-राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल
(HRD Mission-90 For MOST) 9875066111, 11092017
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ईरानी का चिठ्ठा!!
ईरानी का चिठ्ठा!!
कौन है स्मृति मल्होत्रा ईरानी -
● पंजाबी खत्री (बनिया) पिता व बंगाली ब्राह्मण (आसाम) माँ है.. 11 साल बड़े पारसी पति की दूसरी पत्नी है।
● 1997 में कक्षा-12 में फेल होने के बाद घर छोड़कर दिल्ली से मुंबई भागी..
● नौकरी न मिलने पर मैकडोनाल्ड में वेटर का काम किया.. और गलत कामो में लिप्त होने के कारण से निकाल दिया गया..
● मिस इन्डिया -1998 में भाग लिया और फेल हो गयी..
● फिर मीका सिंह ने आफर दिया (वही राखी सावन्त वाला)- एक म्यूजिक एलबम में इनको नचवाया और गाने के बोल थे- "सावन में लग गई आग"... यूट्यूब पर है।
● "सावन में आग लगने के बाद" 3/4 सीरियल मिले लेकिन सब टीवी सीरियल फ्लाप..
● भाजपा के एक बड़े नेता तत्कालीन प्रधानमंत्री के दाहिने हाथ PM की नजर, सन् 2000 में "सावन में लग गई आग" एलबम पर पड़ी, बुलवाया और बना दिया तुलसी..
● लोगों की नजर में बदनाम न हो जाऊँ इसलिए अपनी दोस्त (जिसने मानवता के आधार पर अपने पास रखा था) के पति 2001 में शादी कर ली..
● भाजपा के तत्कालीन महाराष्ट्र के शक्तिशाली नेता PM ने 2003 में भाजपा की सदस्यता दिला दी और 2004 में महाराष्ट्र महिला मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया..
● PM के कहने पर गुजरात दंगो पर, मुख्यमंत्री मोदी का खुलकर इस्तीफा माँगा लेकिन फेल हो गयी.. यूट्यूब पर वीडियो देखे।
● PM ने फिर 2004 में चाँदनी चौक से लोकसभा का चुनाव लड़वा दिया जहाँ वो बुरी तरह हार गयी व फेल हो गयी..
● खैर 2007 में PM की हत्या उनके छोटे भाई ने कर दी तो राजनीति में लगभग फेल हो गयी थी। फिर टीवी सीरियल में एक गुजराती सीरियल करने लगी, मुख्यमंत्री गुजरात की नजर पड़ी। सीरियल फेल लेकिन पुरस्कार दिलवा कर, अपनापन जाहिर कर दिया..
● मुख्यमंत्री गुजरात से संबंध इतने बढे कि 2011 में गुजरात से राज्यसभा सांसद बनवा दिया और फिर महिला मोर्चा की अध्यक्ष..
● 2014 में अंतिम क्षणों में अमेठी चुनाव लड़ने आयी और लाखों वोटो से पराजित होकर फेल हो गयी..
● अनपढ,12 वी फेल, येल विश्वविद्यालय, JNU, रोहित बेमूला, पाठ्यक्रम, मायावती जैसे रोज विवादो में रहने के कारण HRD मंत्रिमंडल छीन लिया गया..
● फिर लफड़ा मंत्री बनी और अब चूसना प्रसाधन मंत्री भी है.. और कृपादृष्टि से पुनः गुजरात से राज्यसभा सांसद चुन लिया गया।
कुल मिलाकर इनको राहुल गाँधी जी को छेड़ने के लिए रखा है भाजपा ने। महिला है, मंत्री है, नौटंकी में माहिर है, बंगाली हिन्दी अंग्रेजी में धारा प्रवाह है। रो गा भी लेती है। अमेठी हो या अमेरिका- इनका काम विलाप करना है। छाती पीट पीट कर राहुल राहुल- कांग्रेस कांग्रेस चिल्लाना है। राहुल गाँधी जी है ऐसे लोगों पर नजर उठा कर भी नहीं देखते। बेशर्मी की हद हो गयी है।
अब मोदी सरकार के मंत्री पूरी तरह से बेशर्मी पर उतर आए हैं
आज केन्द्रीय पर्यटन मंत्री अल्फोंज कन्ननाथनम ने कहा है कि जो लोग पेट्रोल डीजल खरीद रहे हैं वो गरीब नहीं है और ना ही वो भूखे मर रहे हैं, उनका कहना है कि सरकार को गरीबों का कल्याण करना है, और इसके लिए पैसे चाहिए
यानी देश के मध्यम वर्ग पर पेट्रोल डीजल के बढ़ते टैक्स का बोझ डाल कर कल्याणकारी योजनाओं का खर्च पूरा किया जा रहा है
कल धर्मेंद प्रधान नार्वे ओर आइसलैंड की पेट्रोल की कीमतों से भारत की कीमतों की तुलना कर रहे थे उन्हें भारत के पड़ोसी देशों श्रीलंका, नेपाल और पाकिस्तान की कीमतें नही दिखाई दी
यह लेख इसलिए लिखा गया है कि आप समझे कि मोदी सरकार बड़े कारपोरेट ओर उद्योगपतियो को टैक्स में कितनी सहूलियत देती है और कल्याणकारी योजनाओं का सारा बोझ मध्य वर्ग पर ही डाला जा रहा है
इस तथ्य को जानकर बहुत से लोगो को आश्चर्य होगा लेकिन सच यही है कि सरकार नोटबन्दी जैसे निर्णय कर हर व्यक्ति को आयकर के दायरे में खींच लेना चाहती हैं लेकिन बड़ी कम्पनियो को तरह तरह की टेक्स में छूट देती है
जानी-मानी अर्थशास्त्री जयंती घोष ने कल दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बड़े उद्योगपतियों को दी जाने वाली कर माफी सवाल उठाते हुये कहा कि, कर संग्रह और कर का दायरा बढ़ाने के लिए सरकार को नोटबंदी जैसे अर्थव्यवस्था को तबाह करने वाले कदम उठाने की जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा कि देश में कर की उच्चतम दर 30 प्रतिशत है जबकि अडानी अंबानी जैसे उद्योगपति 20 प्रतिशत कर दे रहे हैं
अंबानी जैसे बड़े उद्योगपतियों की कर माफी पर सवाल उठाते हुये उन्होंने कहा कि पिछले साल उद्योगों को दी गयी कर छूट सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6.7 प्रतिशत पर रही जबकि वित्तीय घाटा इससे काफी कम रहा था। यानी सिर्फ इसी रकम से पूरे वित्तीय घाटे की भरपाई हो सकती थी
आपको शायद जयंती घोष की इन बातों पर यकीन नही होगा लेकिन यह सच है इसकी पुष्टि अन्य स्रोतों से भी आप कर सकते है इंडिया स्पेंड ने यह आंकड़े पब्लिश किये हैं साल 2015-16 में मोदी सरकार ने कॉरपोरेट सेक्टर को लगभग 76 हजार 857 करोड़ 7 लाख रुपए का टैक्स छूट प्रदान की थी
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फरवरी 2015 में पेश बजट में कॉर्पोरेट कर दर को चार साल में 30% से घटाकर 25% करने की घोषणा की थी जबकि राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने एक बार कहा था कि कंपनी कर में 1% कटौती करने से राजस्व में 18,000 से 19,000 करोड़ रुपये की कमी आती है
इंडियास्पेंड की रिपोर्ट नेशनल टैक्स डाटा के अनुसार, वित्त वर्ष 2015-16 में मोदी सरकार ने 15 हजार 80 मुनाफा कमाने वाली कंपनियों से किसी प्रकार का भी टैक्स नहीं लिया है. सरकार ने ऐसा कर चुकाने वालों को प्रोत्साहित करने के नाम पर किया.
कुछ कंपनियों ने मुनाफा तो कमाया पर सरकार की ‘टैक्स इंसेंटिव पॉलिसी’ का फायदा उठा कर किसी प्रकार का टैक्स नहीं चुकाया. इतना ही नहीं सरकार ने निजी कंपनियों को 2 लाख 25 हजार 229 करोड़ रुपये का टैक्स छूट भी दिया. देश में 10 लाख ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने आज तक इनकम टैक्स रिटर्न नहीं भरा है.
केंद्र में मोदी सरकार के आए तीन साल से भी ज्यादा समय बीत गए हैं पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने इन विसंगतियों को अभी तक दूर नहीं किया है.
साल 2014-15 में 52 हजार 911 कंपनियां मुनाफ़े में थी, लेकिन किसी भी कंपनियों ने टैक्स का भुगतान नहीं किया. इसके साथ साल 2015-16 में बड़ी कंपनियों ने छोटी कंपनियों से भी कम टैक्स चुकाया
अब यह बड़ी कम्पनिया किस उद्योगपति की होगी आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता हैं
सरकार के आंकड़े के मुताबिक 46 फीसदी भारतीय कंपनियों ने 2015-16 में कोई मुनाफा नहीं कमाया. साल 2015-16 में कम से कम 43 फीसदी भारतीय कंपनियां घाटे में रही हैं. 47.7 फीसदी कंपनियों ने 1 करोड़ रुपए तक का मुनाफा कमाया है. टैक्स डेटा के अनुसार, करीब 6 फीसदी भारतीय कंपनियों ने 1 करोड़ रुपए से अधिक मुनाफा दर्ज कराया है.
पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और देश के जाने-माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी कहते हैं, ‘देखिए इससे साफ हो रहा है कि सरकार पावरफूल लोगों को रहत दे रही है. जो पावरफूल लोग नहीं हैं उन पर टैक्स का अतिरिक्त बोझ दे रही है.
यानी बड़े कारपोरेट को यह मोदी सरकार कर माफी के नाम पर बेजा फायदा पुहंचा रही है ओर उस कर माफी का पूरा भुगतान पेट्रोल डीजल पर बढ़ते हुए टेक्स द्वारा आम जनता से वसूला जा रहा है
इतना सब जान लेने के बाद भी आपके दिमाग की बंद खिड़की नही खुल रही है तो क्या कहा जा सकता है
यह लेख आज मीडिया विजिल में भी पब्लिश हुआ है
*मोदी के फार्मूले*
*लगभग 550 किलोमीटर की दूरी है अहमदाबाद से मुंबई*
*1 लाख 10 हजार करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट है बुलेट ट्रेन का*
*88000 करोड़ रुपए जापान देगा उधारी 0.1% ब्याज पर 50 साल के लिए*
*मतलब अपने लग रहे हैं 22 हजार करोड़ रुपए*
*रेल्वे का revenue है कुछ 1 लाख 68 हजार करोड़ रुपए सालाना*
*जिसमें से खर्चा काट कर कुल आय है लगभग 10 हजार 500 करोड़ रुपए*
*अब 88000 करोड़ रुपए की उधारी 0.1% ब्याज पर*
*मतलब*
*1800 करोड़ रुपए सालाना की हम उधारी चुकाएंगे*
*हमारे अपने जो 22000 करोड़ रुपए लगे हैं वो अलग है*
*तो*
*देखना यह है कि क्या 1800 करोड़ रुपए की कमाई भी हम कर पाएंगे इस प्रोजेक्ट से* ?
*मान लें एक ट्रेन में 16 डिब्बे हैं और एक डिब्बे में 72 सीट हैं तो एक बार में ट्रेन में कुल यात्रियों की संख्या हुई 72x16=1152*
*अब यही ट्रैन वापस आती है तो संख्या है 1152*
*मतलब कुल एक चक्कर में कुल यात्री हुए 2304*
*एक यात्री से सरकार ने अगर 1000 रू लिए तो एक दिन का हुआ 23,04,000*
*और एक साल का 84,09,60,000*
*कुल 84 करोड़ 09 लाख़ 6 हजार रू*
*अब अगर ट्रैन दिन में 4 चक्कर लगाती है मतलब दोनों जगह से ट्रेन सुबह भी चलेगी और शाम को भी तो कुल आय होती है*
*840960000x4=*
*336,38,40,000*
*मतलब 336 करोड़ 38 लाख 40 हजार रुपये, जिसमे उसके संचालन का खर्च अलग है, मसलन ड्राइवर और गार्ड की तनख्वाह, रखरखाव, मेंटेनेंस आदि का खर्च*।
*जिसमे ब्याज सिर्फ ब्याज के भरने हैं 1800 करोड़ रुपये और उसके बाद मूलधन और उसके बाद कमाई की सोचना*।
*और अपने जो 22000 करोड़ गायब हो गए उसे तो भूल ही जाना*।
*क्या आपको लगता है कि आप*
*साल भर में 336 करोड़ रू कमा कर 1800 करोड़ का ब्याज भर सकते हैं, और 88000 करोड़ का कर्ज उतार सकते हैं और उसके बाद कुछ कमा सकते हैं वो भी अगके 50 साल के बाद*,
*किराया अगर 3000 भी कर दे तब भी 1008 करोड़ ही इकट्ठा होगा* ।
*एक भारतीय की नजर से*🙏🙏
ध्यान दीजिये #भगोड़ा नम्बर 2 और 3 पर..
1. विजय माल्या : ₹ 9500 करोड़..लंदन में है..भागने से पहले अरुण बाबू से बातचीत कर रहा था...क्या बात किसीको नही मालूम..
2. जतिन मेहता : ₹ 6500 करोड़.. अडानी का समधी..मोदी PM बनने के बाद 2014 में भागा.. अब सेंट किट्स का नागरिक है और अभी UAE में रहता है..हिम्मत है मेहता को छूने की?
3. संजय भंडारी : ₹ 5 लाख करोड़ अनुमानित..शस्त्रो का दलाल..अप्रैल 2016 में इसके घर मे रेड हुई...अक्टूबर 2016 में भाग गया..लंदन में है..
सारी दुनिया को मालूम है कि ये नागपुर का खानदानी एजेन्ट है..गोदिमीडिया कभी इसका नाम नही लेता क्योंकि गोदिमीडिया में सारा पैसा इसी का लगा हुवा है..गोबर गोस्वामी का चैनल भी इसीके पैसे से चलता है...
4. महेश शाह : ₹ 13,860 करोड़..भागा , भगाया गया या जमीन निगल गयी ? तड़ीपार का पैसा है..कहा है किसीको नही मालूम..
5. हनीप्रीत : ₹ 25,000 करोड़ कैश..भाग गई या भगा दी गई? मिल जाती तो सबकी 'गुफा' बन्द हो जाती..
5 लोगो का जोड़ आया ₹ 5,54,860 करोड़...भारत के सारे म्यूच्यूअल फण्ड में 20 लाख करोड़ ₹ है..यानी म्यूच्यूअल फण्ड के 28% बराबर रुपये 5 लोग लेकर भाग गये!!!
और साहेब महाराज हरिश्चन्द्र की औलाद बने घूम रहे है..और भगत दमोदर दास मोदी जी पोते 😏😏😏
कौन है स्मृति मल्होत्रा ईरानी -
● पंजाबी खत्री (बनिया) पिता व बंगाली ब्राह्मण (आसाम) माँ है.. 11 साल बड़े पारसी पति की दूसरी पत्नी है।
● 1997 में कक्षा-12 में फेल होने के बाद घर छोड़कर दिल्ली से मुंबई भागी..
● नौकरी न मिलने पर मैकडोनाल्ड में वेटर का काम किया.. और गलत कामो में लिप्त होने के कारण से निकाल दिया गया..
● मिस इन्डिया -1998 में भाग लिया और फेल हो गयी..
● फिर मीका सिंह ने आफर दिया (वही राखी सावन्त वाला)- एक म्यूजिक एलबम में इनको नचवाया और गाने के बोल थे- "सावन में लग गई आग"... यूट्यूब पर है।
● "सावन में आग लगने के बाद" 3/4 सीरियल मिले लेकिन सब टीवी सीरियल फ्लाप..
● भाजपा के एक बड़े नेता तत्कालीन प्रधानमंत्री के दाहिने हाथ PM की नजर, सन् 2000 में "सावन में लग गई आग" एलबम पर पड़ी, बुलवाया और बना दिया तुलसी..
● लोगों की नजर में बदनाम न हो जाऊँ इसलिए अपनी दोस्त (जिसने मानवता के आधार पर अपने पास रखा था) के पति 2001 में शादी कर ली..
● भाजपा के तत्कालीन महाराष्ट्र के शक्तिशाली नेता PM ने 2003 में भाजपा की सदस्यता दिला दी और 2004 में महाराष्ट्र महिला मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया..
● PM के कहने पर गुजरात दंगो पर, मुख्यमंत्री मोदी का खुलकर इस्तीफा माँगा लेकिन फेल हो गयी.. यूट्यूब पर वीडियो देखे।
● PM ने फिर 2004 में चाँदनी चौक से लोकसभा का चुनाव लड़वा दिया जहाँ वो बुरी तरह हार गयी व फेल हो गयी..
● खैर 2007 में PM की हत्या उनके छोटे भाई ने कर दी तो राजनीति में लगभग फेल हो गयी थी। फिर टीवी सीरियल में एक गुजराती सीरियल करने लगी, मुख्यमंत्री गुजरात की नजर पड़ी। सीरियल फेल लेकिन पुरस्कार दिलवा कर, अपनापन जाहिर कर दिया..
● मुख्यमंत्री गुजरात से संबंध इतने बढे कि 2011 में गुजरात से राज्यसभा सांसद बनवा दिया और फिर महिला मोर्चा की अध्यक्ष..
● 2014 में अंतिम क्षणों में अमेठी चुनाव लड़ने आयी और लाखों वोटो से पराजित होकर फेल हो गयी..
● अनपढ,12 वी फेल, येल विश्वविद्यालय, JNU, रोहित बेमूला, पाठ्यक्रम, मायावती जैसे रोज विवादो में रहने के कारण HRD मंत्रिमंडल छीन लिया गया..
● फिर लफड़ा मंत्री बनी और अब चूसना प्रसाधन मंत्री भी है.. और कृपादृष्टि से पुनः गुजरात से राज्यसभा सांसद चुन लिया गया।
कुल मिलाकर इनको राहुल गाँधी जी को छेड़ने के लिए रखा है भाजपा ने। महिला है, मंत्री है, नौटंकी में माहिर है, बंगाली हिन्दी अंग्रेजी में धारा प्रवाह है। रो गा भी लेती है। अमेठी हो या अमेरिका- इनका काम विलाप करना है। छाती पीट पीट कर राहुल राहुल- कांग्रेस कांग्रेस चिल्लाना है। राहुल गाँधी जी है ऐसे लोगों पर नजर उठा कर भी नहीं देखते। बेशर्मी की हद हो गयी है।
अब मोदी सरकार के मंत्री पूरी तरह से बेशर्मी पर उतर आए हैं
आज केन्द्रीय पर्यटन मंत्री अल्फोंज कन्ननाथनम ने कहा है कि जो लोग पेट्रोल डीजल खरीद रहे हैं वो गरीब नहीं है और ना ही वो भूखे मर रहे हैं, उनका कहना है कि सरकार को गरीबों का कल्याण करना है, और इसके लिए पैसे चाहिए
यानी देश के मध्यम वर्ग पर पेट्रोल डीजल के बढ़ते टैक्स का बोझ डाल कर कल्याणकारी योजनाओं का खर्च पूरा किया जा रहा है
कल धर्मेंद प्रधान नार्वे ओर आइसलैंड की पेट्रोल की कीमतों से भारत की कीमतों की तुलना कर रहे थे उन्हें भारत के पड़ोसी देशों श्रीलंका, नेपाल और पाकिस्तान की कीमतें नही दिखाई दी
यह लेख इसलिए लिखा गया है कि आप समझे कि मोदी सरकार बड़े कारपोरेट ओर उद्योगपतियो को टैक्स में कितनी सहूलियत देती है और कल्याणकारी योजनाओं का सारा बोझ मध्य वर्ग पर ही डाला जा रहा है
इस तथ्य को जानकर बहुत से लोगो को आश्चर्य होगा लेकिन सच यही है कि सरकार नोटबन्दी जैसे निर्णय कर हर व्यक्ति को आयकर के दायरे में खींच लेना चाहती हैं लेकिन बड़ी कम्पनियो को तरह तरह की टेक्स में छूट देती है
जानी-मानी अर्थशास्त्री जयंती घोष ने कल दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बड़े उद्योगपतियों को दी जाने वाली कर माफी सवाल उठाते हुये कहा कि, कर संग्रह और कर का दायरा बढ़ाने के लिए सरकार को नोटबंदी जैसे अर्थव्यवस्था को तबाह करने वाले कदम उठाने की जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा कि देश में कर की उच्चतम दर 30 प्रतिशत है जबकि अडानी अंबानी जैसे उद्योगपति 20 प्रतिशत कर दे रहे हैं
अंबानी जैसे बड़े उद्योगपतियों की कर माफी पर सवाल उठाते हुये उन्होंने कहा कि पिछले साल उद्योगों को दी गयी कर छूट सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6.7 प्रतिशत पर रही जबकि वित्तीय घाटा इससे काफी कम रहा था। यानी सिर्फ इसी रकम से पूरे वित्तीय घाटे की भरपाई हो सकती थी
आपको शायद जयंती घोष की इन बातों पर यकीन नही होगा लेकिन यह सच है इसकी पुष्टि अन्य स्रोतों से भी आप कर सकते है इंडिया स्पेंड ने यह आंकड़े पब्लिश किये हैं साल 2015-16 में मोदी सरकार ने कॉरपोरेट सेक्टर को लगभग 76 हजार 857 करोड़ 7 लाख रुपए का टैक्स छूट प्रदान की थी
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फरवरी 2015 में पेश बजट में कॉर्पोरेट कर दर को चार साल में 30% से घटाकर 25% करने की घोषणा की थी जबकि राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने एक बार कहा था कि कंपनी कर में 1% कटौती करने से राजस्व में 18,000 से 19,000 करोड़ रुपये की कमी आती है
इंडियास्पेंड की रिपोर्ट नेशनल टैक्स डाटा के अनुसार, वित्त वर्ष 2015-16 में मोदी सरकार ने 15 हजार 80 मुनाफा कमाने वाली कंपनियों से किसी प्रकार का भी टैक्स नहीं लिया है. सरकार ने ऐसा कर चुकाने वालों को प्रोत्साहित करने के नाम पर किया.
कुछ कंपनियों ने मुनाफा तो कमाया पर सरकार की ‘टैक्स इंसेंटिव पॉलिसी’ का फायदा उठा कर किसी प्रकार का टैक्स नहीं चुकाया. इतना ही नहीं सरकार ने निजी कंपनियों को 2 लाख 25 हजार 229 करोड़ रुपये का टैक्स छूट भी दिया. देश में 10 लाख ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने आज तक इनकम टैक्स रिटर्न नहीं भरा है.
केंद्र में मोदी सरकार के आए तीन साल से भी ज्यादा समय बीत गए हैं पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने इन विसंगतियों को अभी तक दूर नहीं किया है.
साल 2014-15 में 52 हजार 911 कंपनियां मुनाफ़े में थी, लेकिन किसी भी कंपनियों ने टैक्स का भुगतान नहीं किया. इसके साथ साल 2015-16 में बड़ी कंपनियों ने छोटी कंपनियों से भी कम टैक्स चुकाया
अब यह बड़ी कम्पनिया किस उद्योगपति की होगी आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता हैं
सरकार के आंकड़े के मुताबिक 46 फीसदी भारतीय कंपनियों ने 2015-16 में कोई मुनाफा नहीं कमाया. साल 2015-16 में कम से कम 43 फीसदी भारतीय कंपनियां घाटे में रही हैं. 47.7 फीसदी कंपनियों ने 1 करोड़ रुपए तक का मुनाफा कमाया है. टैक्स डेटा के अनुसार, करीब 6 फीसदी भारतीय कंपनियों ने 1 करोड़ रुपए से अधिक मुनाफा दर्ज कराया है.
पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और देश के जाने-माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी कहते हैं, ‘देखिए इससे साफ हो रहा है कि सरकार पावरफूल लोगों को रहत दे रही है. जो पावरफूल लोग नहीं हैं उन पर टैक्स का अतिरिक्त बोझ दे रही है.
यानी बड़े कारपोरेट को यह मोदी सरकार कर माफी के नाम पर बेजा फायदा पुहंचा रही है ओर उस कर माफी का पूरा भुगतान पेट्रोल डीजल पर बढ़ते हुए टेक्स द्वारा आम जनता से वसूला जा रहा है
इतना सब जान लेने के बाद भी आपके दिमाग की बंद खिड़की नही खुल रही है तो क्या कहा जा सकता है
यह लेख आज मीडिया विजिल में भी पब्लिश हुआ है
*मोदी के फार्मूले*
*लगभग 550 किलोमीटर की दूरी है अहमदाबाद से मुंबई*
*1 लाख 10 हजार करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट है बुलेट ट्रेन का*
*88000 करोड़ रुपए जापान देगा उधारी 0.1% ब्याज पर 50 साल के लिए*
*मतलब अपने लग रहे हैं 22 हजार करोड़ रुपए*
*रेल्वे का revenue है कुछ 1 लाख 68 हजार करोड़ रुपए सालाना*
*जिसमें से खर्चा काट कर कुल आय है लगभग 10 हजार 500 करोड़ रुपए*
*अब 88000 करोड़ रुपए की उधारी 0.1% ब्याज पर*
*मतलब*
*1800 करोड़ रुपए सालाना की हम उधारी चुकाएंगे*
*हमारे अपने जो 22000 करोड़ रुपए लगे हैं वो अलग है*
*तो*
*देखना यह है कि क्या 1800 करोड़ रुपए की कमाई भी हम कर पाएंगे इस प्रोजेक्ट से* ?
*मान लें एक ट्रेन में 16 डिब्बे हैं और एक डिब्बे में 72 सीट हैं तो एक बार में ट्रेन में कुल यात्रियों की संख्या हुई 72x16=1152*
*अब यही ट्रैन वापस आती है तो संख्या है 1152*
*मतलब कुल एक चक्कर में कुल यात्री हुए 2304*
*एक यात्री से सरकार ने अगर 1000 रू लिए तो एक दिन का हुआ 23,04,000*
*और एक साल का 84,09,60,000*
*कुल 84 करोड़ 09 लाख़ 6 हजार रू*
*अब अगर ट्रैन दिन में 4 चक्कर लगाती है मतलब दोनों जगह से ट्रेन सुबह भी चलेगी और शाम को भी तो कुल आय होती है*
*840960000x4=*
*336,38,40,000*
*मतलब 336 करोड़ 38 लाख 40 हजार रुपये, जिसमे उसके संचालन का खर्च अलग है, मसलन ड्राइवर और गार्ड की तनख्वाह, रखरखाव, मेंटेनेंस आदि का खर्च*।
*जिसमे ब्याज सिर्फ ब्याज के भरने हैं 1800 करोड़ रुपये और उसके बाद मूलधन और उसके बाद कमाई की सोचना*।
*और अपने जो 22000 करोड़ गायब हो गए उसे तो भूल ही जाना*।
*क्या आपको लगता है कि आप*
*साल भर में 336 करोड़ रू कमा कर 1800 करोड़ का ब्याज भर सकते हैं, और 88000 करोड़ का कर्ज उतार सकते हैं और उसके बाद कुछ कमा सकते हैं वो भी अगके 50 साल के बाद*,
*किराया अगर 3000 भी कर दे तब भी 1008 करोड़ ही इकट्ठा होगा* ।
*एक भारतीय की नजर से*🙏🙏
ध्यान दीजिये #भगोड़ा नम्बर 2 और 3 पर..
1. विजय माल्या : ₹ 9500 करोड़..लंदन में है..भागने से पहले अरुण बाबू से बातचीत कर रहा था...क्या बात किसीको नही मालूम..
2. जतिन मेहता : ₹ 6500 करोड़.. अडानी का समधी..मोदी PM बनने के बाद 2014 में भागा.. अब सेंट किट्स का नागरिक है और अभी UAE में रहता है..हिम्मत है मेहता को छूने की?
3. संजय भंडारी : ₹ 5 लाख करोड़ अनुमानित..शस्त्रो का दलाल..अप्रैल 2016 में इसके घर मे रेड हुई...अक्टूबर 2016 में भाग गया..लंदन में है..
सारी दुनिया को मालूम है कि ये नागपुर का खानदानी एजेन्ट है..गोदिमीडिया कभी इसका नाम नही लेता क्योंकि गोदिमीडिया में सारा पैसा इसी का लगा हुवा है..गोबर गोस्वामी का चैनल भी इसीके पैसे से चलता है...
4. महेश शाह : ₹ 13,860 करोड़..भागा , भगाया गया या जमीन निगल गयी ? तड़ीपार का पैसा है..कहा है किसीको नही मालूम..
5. हनीप्रीत : ₹ 25,000 करोड़ कैश..भाग गई या भगा दी गई? मिल जाती तो सबकी 'गुफा' बन्द हो जाती..
5 लोगो का जोड़ आया ₹ 5,54,860 करोड़...भारत के सारे म्यूच्यूअल फण्ड में 20 लाख करोड़ ₹ है..यानी म्यूच्यूअल फण्ड के 28% बराबर रुपये 5 लोग लेकर भाग गये!!!
और साहेब महाराज हरिश्चन्द्र की औलाद बने घूम रहे है..और भगत दमोदर दास मोदी जी पोते 😏😏😏
आरक्षण क्यूँ ?
आरक्षण क्यूँ ?
नवभारत टाइम्स के ब्लॉग पर आरक्षण के विषय में कुछ लेख पढ़ने को मिले और उन्हीं लेखों ने मुझे ये लेख लिखने को प्रेरित किया , जब बात आरक्षण की होती है तो सब भारतीय संविधान द्वारा अनुसूचित-जाति, जनजाति एवं अतिपिछड़ा वर्ग को मिले उस आरक्षण या विशेष अधिकारों की ही बात करतें हैं जिन्हें लागू हुए मुश्किल से 60 वर्ष ही हुए हैं ,कोई उस आरक्षण की बात नहीं करता जो पिछले 3000 वर्षों से भारतीय समाज में लागू थी
जिसके कारण ही इस आरक्षण को लागू करने की आवश्यकता पड़ी आज ''भारतीय गणराज्य का संविधान'' नामक संविधान, जिसका हम पालन कर रहें है जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ उससे पहले जो संविधान इस देश में लागू था जिसका पालन सभी राजा-महाराजा बड़ी ईमानदारी से करते थे उस संविधान का नाम था ''मनुस्मृति''
आधुनिक संविधान के निर्माता अंबेडकर ने सबसे पहले 25 दिसंबर 1927 को हज़ारों लोगों के सामने इस ''मनुस्मृति'' नामक संविधान को जला दिया, क्योंकि अब इस संविधान की कोई आवश्यकता नही थी भारतीय संविधान में आरक्षण का प्रावधान इसलिए दिया गया क्यूंकि इस देश की 85 प्रतिशत शूद्र जनसंख्या को कोई भी मौलिक अधिकार तक प्राप्त नहीं था, सार्वजनिक जगहों पर ये नहीं जा सकते थे मंदिर में इनका प्रवेश निषिद्ध था सरकारी नौकरियाँ इनके लिए नहीं थी , ये कोई व्यापार नहीं कर सकते थे , पढ़ नहीं सकते थे , किसी पर मुक़दमा नही कर सकते थे , धन जमा करना इनके लिए अपराध था , ये लोग टूटी फूटी झोपड़ियों में, बदबूदार जगहों पर, किसी तरह अपनी जिंदगियों को घसीटते हुए काट रहे थे और यह सब ''मनुस्मृति'' और दूसरे हिंदू धर्मशास्त्रों के कारण ही हो रहा था कुछ उदाहरण देखिए-
1.संसार में जो कुछ भी है सब ब्राह्मणों के लिए ही है क्यूंकि वो जन्म से ही श्रेष्ठ है(मनुस्मृति 1/100)
2.स्वामी के द्वारा छोड़ा गया शूद्र भी दासत्व से मुक्त नहीं क्यूंकि यह उसका कर्म है जिससे उसे कोई नहीं छुड़ा सकता (8/413)
3.यदि कोई नीची जाति का व्यक्ति ऊँची जाति का कर्म अपना ले तो राजा उसे देश निकाला देदे (10/95)
4.बिल्ली, नेवला चिड़िया मेंढक, गधा, उल्लू, और कौवे की हत्या में जितना पाप लगता है उतना ही पाप शूद्र (अनुसूचित-जाति, जनजाति एवं अतिपिछड़ा वर्ग) की हत्या में है (मनुस्मृति 11/131)
5.शूद्र का धन ब्राह्मण निर्भीक होकर छीन सकता है क्यूंकि उसको धन रखने का अधिकार नहीँ (8/416)
6. सब वर्णों की सेवा करना ही शूद्रों का स्वाभाविक कर्तव्य है (गीता,18/44)
7. जो अच्छे कर्म करतें हैं वे ब्राह्मण ,क्षत्रिय वश्य, इन तीन अच्छी जातियों को प्राप्त होते हैं जो बुरे कर्म करते हैं वो कुत्ते, सूअर, या शूद्र जाति को प्राप्त होते हैं (छान्दोन्ग्य उपनिषद् ,5/10/7)
8. पूजिए विप्र ग्यान गुण हीना, शूद्र ना पूजिए ग्यान प्रवीना,(रामचरित मानस)
9.ब्राह्मण दुश्चरित्र भी पूज्यनीए है और शूद्र जितेन्द्रीए होने पर भी तरास्कार योग्य है (पराशर स्मृति 8/33)
10. धार्मिक मनुष्य इन नीच जाति वालों के साथ बातचीत ना करें उन्हें ना देखें (मनुस्मृति 10/52)
11. धोबी , नई, बढ़ई, कुम्हार, नट, चंडाल, दास चामर, भाट, भील, इन पर नज़र पड़ जाए तो सूर्य की ओर देखना चाहिए और इनसे बातचीत हो जाए तो स्नान करना चाहिए (व्यास स्मृति 1/11-13)
12. अगर कोई शूद्र वेद मंत्र सुन ले तो उसके कान में धातु पिघला कर डाल देना चाहिए- गौतम धर्म सूत्र 2/3/4....
ये उन असंख्य नियम क़ानूनों के उदाहरण मात्र थे, जो आज़ाद भारत से पहले देश में लागू थे ये अँग्रेज़ों के बनाए क़ानून नहीं थे ये हिंदू धर्म द्वारा बनाए क़ानून थे जिसका सभी हिंदू राजा पालन करते थे प्रारंभ में तो इन्हें सख्ती लागू करवाने के लिए सभी राजाओं के ब्राह्मणों की देख रेख में एक विशेष दल भी हुआ करता था
इन्ही नियमों के फलस्वरूप भारत में यहाँ की विशाल जनसमूह के लिए उन्नति के सभी दरवाजे बंद कर दिए गये या इनके कारण बंद हो गये, सभी अधिकार, या विशेष-अधिकार, संसाधन, एवं सुविधायें कुछ लोगों के हाथ में ही सिमट कर रह गईं, जिसके परिणाम स्वरूप भारत गुलाम हुआ।
भारत की इस गुलामी ने उन करोड़ों लोगों को आज़ादी का अवसर प्रदान किया जो यहाँ शूद्र बना दिए गये थे , इस तरह धर्मांतरण का सिलसिला शुरू हुआ , बड़ी संख्या में लोगों ने इस्लाम व ईसाइयत को अंगीकार किया , अंग्रेजों के शासन काल में उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ से यहाँ पुनर्जागरण काल का उदय हुआ जिसके नायक यहीं के उच्च वर्गिए लोग थे जो अँग्रेज़ी शिक्षा, संस्कृति से प्रभावित हो कर देश में बदलाव लाने को प्रयत्नशील हुए,
सती प्रथा को समाप्त किया गया स्त्री शिक्षा के द्वार खोले गये , शूद्रों को नौकरियों में स्थान दिया जाने लगा और कितनी ही क्रूर प्रथाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया ,कई परिवर्तनशील ,संगठनों का उदय हुआ ऐसे ही समय में अंबेडकर का जन्म हुआ , समाज में कई परिवर्तन हुए थे परंतु अभी भी शूद्रों के जीवन पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ।
अम्बेडकर का जीवन संघर्ष इस बात का उदहारण है , अम्बेडकर अपने समय के विश्व के पांच सबसे बड़े विद्वानों में से एक थे , अपने जीवन के कड़ें अनुभवों को ध्यान में रखकर उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन सदियों से हिन्दू धर्म द्वारा दलित, उत्पीडित बहुसंख्य जनों के उत्थान को समर्पित करते हुए लम्बे संघर्ष में लगा दिया , जिस कारण दुनिया को पहली बार भारत के इस महान अभिशाप का ज्ञान हुआ और पशुओं का जीवन व्यतीत कर रहे उन करोड़ों लोगों को स्वाभिमान से जीवन जीने की ललक पैदा हुई , उन्होंने अपने जीवन के कीमती कई वर्ष हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू धर्म शाश्त्रों के अध्यन में लगाये ,
अम्बेडकर के प्रयासों का ही नतीजा था की भारत के राजनैतिक और सामाजिक स्थिति का विश्लेषण करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सात सदस्यीय साइमन कमीशन को भारत भेजा जिसका अम्बेडकर ने स्वागत किया लेकिन कांग्रेस ने इसका बहिष्कार कर दिया, और कांग्रेस वर्किंग कमिटी द्वारा 1928 में नए संविधान की रूप रेखा तैयार की गई जिसके लिए सभी धर्मो एवं सम्प्रदायों को बुलाया गया लेकिन अम्बेडकर को इससे दूर रखा गया
12 से 19 जनवरी 1939 को गोलमेज की प्रथम कांफ्रेंस में पहली बार देश से बाहर अम्बेडकर ने अपने विचार रखे , और शूद्रों की सही तस्वीर पेश की। इसी कांफ्रेंस में उन्होंने कानून के शासन और शारीरिक ताकत की जगह संवैधानिक अनुशासन की प्रतिष्ठा का दावा किया , सम्मलेन में जो 9 सब-कमिटी बनी उन सभी में उन्हें सदस्य बना लिया गया , उनकी योग्यता उनके सारपूर्ण वक्तव्यों की वजह से यह संभव हो पाया, फ्रेंचाइजी कमिटी में उन्होंने दलितों के लिए अलग चुनाव क्षेत्र की मांग की और उनकी सभी मांगों को अंग्रेजी सरकार को मानना पड़ा।
अम्बेडकर की इस अभूतपूर्व सफलता ने कांग्रेस की नींद हराम कर दी क्यूंकि सवर्णों की इस पार्टी को डर हुआ की सदियों से जिन्हें लातों तले दबा के रखा , उनसे अपने सभी गंदे से गंदे काम करवाए, अगर उन्हें सत्ता मिल गई तब तो हमारी आने वाली पीडिया बर्बाद हो जाएँगी , हमारा धर्म जो इनसे छीन कर हमें सारी सुविधाएं सदियों से देता आया है वो संकट में पड जायेगा , यही सब सोच कर कांग्रेस के इशारों पर गाँधी ने अम्बेडकर को मिले अधिकारों के विरूद्ध आमरण अनशन की नौटंकी शुरू कर दी, जिसके कारण अंत में राष्ट्र के दबाव में आकर अम्बेडकर को "POONA - PACT " पर हस्ताक्षर करने पड़े जिसके अनुसार अग्रिम संविधान बनाने का मौका अम्बेडकर को दिया जाना तय हुआ बदले में अम्बेडकर को गोलमेज में मिले अपने सभी अधिकारों को छोड़ना पड़ा
इस तरह वर्तमान संविधान का जो की मजबूरी में बना आधारशिला तैयार हुई जिसमें उन्होंने आरक्षण का प्रावधान डाला और दलितों के लिए सभी कानून बनाये अब जरा थोड़ी देर के लिए यह कल्पना कीजिये की अगर अम्बेडकर दलितों के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण की मांग करते जो की उनका हक़ है तो क्या होता , परन्तु अम्बेडकर ने ऐसा नहीं किया ,
आज जब सरकारी नौकरियां वैश्वीकरण के नाम पर पूरे षड्यंत्रकारी तरीके से समाप्त की जा रहीं हैं , ऐसे में शूद्र एक बार फिर हाशिये पर आ गया है, ऐसे में ये कहना कि बचे खुचे आरक्षण को भी समाप्त कर दिया जाये, एक बार फिर से शूद्र को गुलाम बनाने की सोची समझी साजिश ही तो है।
आज जितने दलित अम्बेडकर के प्रावधानों के कारण सरकारी नौकरियों तक पहुचे हैं और सुख से दो जून की रोटी खा रहे हैं , उससे कहीं अधिक ब्राह्मण आज भी हिन्दू धर्म शास्त्रों के सदियों पुराने प्रावधानों के कारण देश के लाखों मंदिरों में पुजारी बन अरबों-खरबों के वारे न्यारे कर रहे हैं और देश की खरबों की संपत्ति पर कब्ज़ा जमाये बैठे हैं क्या किसी ने इस आरक्षण को समाप्त करने की बात की....?
क्या किसी ने आज भी दलितों पर होने वालें अत्याचारों को रोकने के लिए आमरण अनशन किया ? क्या किसी ने मिर्च पुर, गोहाना, खैरलांजी, झज्जर, के आरोपियों के लिए फांसी की मांग की ? क्यूँ नहीं पहले ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य अपने अपने जातीय पहचानों को समाप्त करते ? जाति स्वयं नष्ट हो जाएगी जाति नष्ट होते ही आरक्षण की समस्या सदा के लिए नष्ट हो जाएगी ,ऊपर की जाति वाले क्यूँ नहीं अपने बच्चों की शादियाँ दलितों के बच्चों संग करने की पहल करते ? लेकिन यहाँ तो बात ही दूसरी है इनके बच्चे अगर दलितों में प्रेम विवाह करना चाहें तो ये उनका क़त्ल कर देते हैं धन्य हैं
एक दलित मित्र अपने ब्लॉग में कहतें हैं कि अब तो ऐसा नहीं होता तो श्रीमान जी जरा अख़बार पढ़ा करो पता चल जायेगा आज भी इस देश में संविधान के इतने प्रावधानों के बावजूद प्रत्येक दिन तीन दलितों को उनकी जाति के कारण मार दिया जाता है प्रत्येक दिन एक दलित महिला से उसकी जाति के कारण बलात्कार होता है।
भारत की सवर्ण जातियों की शिकायत है कि
आरक्षण
की वजह से देश का विकास रुक गया है |
आरक्षण से पहले इन लोगो ने बहुत आविष्कार और खोजे
की
थी जो कि इस संसार में अन्य कहीं मिलना
नामुमकिन है |
आइए जानते है इनकी ऐसी ही कुछ खोजो
औरअविष्कारों
के बारे में
जिनसे इन्होने विश्व में देशका नाम रोशन किया हुआ
है ---
१. इनकी सबसे महत्त्वपूर्ण खोज वर्ण व्यवस्था और
जातियों की खोज थी | इन्होने मनुष्यों को ६७४३ से
अधिक जातियों में बाँट दिया | इतनी अधिक
जातियों
की खोज करना क्या कोई आसान काम है ?
सोचिये बेचारों को इतनी अधिक जातियों को खोजने में
कितना अधिक परिश्रम करना पड़ा होगा |
२. इनकी दूसरी महत्वपूर्ण खोज ३३ करोड़ देवी-
देवताओं की
खोज है | ये खोज इन्होने उस समय की, जब देश की
कुल
आबादी भी ३३ करोड़ नहीं थी|
सोचिये !!
इतने सारे देवी देवताओ की खोज में बेचारों को
कितना
पसीना बहाना पड़ा होगा ?
अजी रात दिन एक कर दिए होंगे बेचारों ने |
३. आज चाहे वैज्ञानिक अभी तक दूसरे ग्रहों पर
जीवन की
तलाश नहीं कर पाए लेकिन ये लोग बहुत पहले ही
ऐसे दो
लोकों की तलाश कर चुके हैं जहाँ पर जीवनमौजूद है
और वो
ग्रह
हैं --
स्वर्ग लोक जहाँ पर अलौकिक शक्तियों के
स्वामी देवता
निवास करते हैं |
३. विश्व के देशों ने चाहे कभी भी परमाणु
बम,हाइड्रोजन
बम जैसे विनाशकारी बमों का निर्माण किया हो
लेकिन
ये उससे बहुत पहले ही ऐसे ऐसे अस्त्र-शस्त्रों का
निर्माण कर
चुके थे जो पूरी सृष्टि का विनाश करने में सक्षम थे
| इन्होने
उसको नाम दिया ब्रह्मास्त्र |
इन्होने आज तक किसी आक्रमणकारी शत्रुओं के
खिलाफ
उसका प्रयोग क्यों नहीं किया ये अलग शोध का
विषय है|
बाहर से कुछ सौ हजारों की संख्या में आक्रमणकारी
आते
रहे और इनको ३३ करोड़ शस्त्रधारी देवताओं के साथ
धूल
चटाते रहे ये अलग बात है |
४. वैज्ञानिक बेशक आज तक मनुष्य की उम्र
बढ़ाने और
उसको अजर, अमर बनाने की औषधि नहीं खोज
पाए हो
लेकिन ये अब से कई युगों पहले मनुष्य को अमरता का
रसास्वादन करवा चुके है ये अलग बात है इनके
द्वारा अमर
किये गए अश्वत्थामा जैसे मानव कभी भी देखने
को नहीं
मिलते हैं |
५. बेशक विश्व में कभी भी आकाशवाणी का
प्रसारण
भारत से बाद में हुआ लेकिन ये उससे बहुत पहले ऐसी
व्यवस्था
का निर्माण कर चुके थे जिससे किसी युद्ध का
आँखों देखा
हाल बिना किसी भी कैमरा जैसे यंत्र की मदद
के
दिव्यदृष्टि के द्वारा किया जा सकता था
लेकिन उसके
बाद में उसका प्रयोग इन्होने क्यों नहीं किया ये
अलग एक
विचारणीय प्रश्न है.
६. विश्व का कोई भी देश आज तक सूर्य पर नहीं
पहुँच सका
है लेकिन ये अबसे पहले सूर्य पर होकर आ चुके हैं।
७. सूर्य को फल की तरह खाया भी जा सकता है ये
भी
अकेली इनकी ही खोज थी |
८. बेशक राईट बंधुओ को हवाई जहाज के अविष्कार
के
निर्माण के श्रेय दिया जाता हो लेकिन ये उससे
बहुत पहले
ही पुष्पक विमान का निर्माण कर चुके थे |
उसके बाद
इनकी वायुयान निर्माण कला को क्या हुआ ये आज
तक
रहस्य है |
९. संजीवनी बूटी जैसी चमत्कारिक औषधि भी
इन्हीं की
खोज थी जिससे किसी भी मृत मनुष्य को जीवित
किया
जा सकता था लेकिन आज वो औषधि कहाँ हैं ये इनको
भी
आज तक नहीं पता है |
१०.आज बेशक देश में सूखा पड़ता हो और और लोग
पानी को
तरसते हो लेकिन ये अब से युगों पहले आकाश में तीर
मारकर
बारिश करवा सकते थे आज ये उसका प्रयोग क्यों
नहीं करते
ये भी एक रहस्य है।
११. एक गर्दन पर दस-दस तक सिर और एक कंधे
पर हजारों
हाथ उग सकते हैं ये भी इनकी ही बुद्धिमता
की खोज है |
१२. समुन्द्र यात्रा से मनुष्य गल जाता है ये भी
इनकी ही
महत्वपूर्ण खोज है |
१३. पशु पक्षियों में भी मानवीय संवेदना होती है
और वो
भी मानव की भाषा बोल और समझ सकते हैं ये भी
इनकी
ही खोज है |
१४. मानव क्लोन बनाने की कला में तो ये सिद्धहस्त
थे|
अगर किसी मनुष्य के रक्त की बूंदे धरती पर
पड़ जाती थी
तो जितनी बूंदे धरती पर पड़ती थी उसके उतने
ही क्लोन
पैदा हो जाते थे |
१५. मानव रक्त भी कोल्ड ड्रिंक और चाय की
तरह पिया
जा सकता है ये भी इनकी ही महत्त्वपूर्ण खोज
थी |
१६. बच्चे बिना औरत मर्द के पैदा भी किये जा
सकते है ये
भी इनकी ही खोज थी |
ये मानव शिशु छींक कर,
शरीर के मैल द्वारा,
पशु पक्षियो के गर्भ द्वारा भी पैदा करवा सकते
थे |
१७. वानर-रीछ जैसे जीव भी बिना पंखो के उड़
सकते हैं ये
भी इनकी ही खोज थी |
१८. एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के स्पर्श से, उसकी
छाया से भी
भ्रष्ट हो सकता है ये भी इनकी ही खोज थी |
१९. पशु मानव
(एस0सी0/एस0टी0/ओ0बी0सी0)
से ज्यादा शुद्ध और पवित्र होता है ये भी इनकी
ही खोज
थी|
२०. मानव के स्पर्श
(एस0सी0/एस0टी0/ओ0बी0सी0) से भ्रष्ट से हुआ
मनुष्य
पशुओं का मूत्र पीकर, या मूत्र छिड़ककर पवित्र
हो सकता
है ये भी इन्ही की खोज थी |
२१. स्त्री और शूद्र दोयम दर्जे के नागरिक है
इनकी अपनी
कोई इच्छा नहीं होती | इनके कोई अधिकार नहीं
होते |
इनको अपनी इच्छा के अनुसार प्रयोग किया जा
सकता है
ये भी इन्ही की खोज थी |
२२. पूजा-अर्चना और हवन के द्वारा भी बारिश
करवाई
और रोकी जा सकती है ये भी इन्ही की खोज थी
|
२३. अगर किसी स्त्री को एक ही पुरुष में
उपयुक्त पति नहीं
मिलता है तो वो पांच या उससे अधिक भी आदमियों को
अपने पतियों के रूप में स्वीकार कर सकती है ये
भी इन्ही
की खोज थी|
२४. माता एक औरत को पांच भाइयो के बीच में
किसी
वस्तु की तरह बाँट सकती है ये भी इन्ही की
खोज थी |
२५. अगर किसी औरत का गर्भपात हो जाता है तो
उसका
भ्रूण नष्ट होने से बचाया जा सकता है और उस भ्रूण को
सौ
टुकडो में बांटकर सौ या उससे अधिक संताने पैदा
की जा
सकती हैं ये भी इनकी ही खोजथी |
२६. मानव और जानवर के सिर आपस में बदले जा
सकते हैं ये
भी इनकी ही खोज थी |
२७. मानव और हाथी का रक्त ग्रुप एक होता है ये
भी
इनकी ही खोज थी |
२८. चूहे पर बैठकर भी मनुष्य सवारी कर सकता है
ये भी
इनकी ही खोज थी|
२९. वैज्ञानिक बेशक आज तक किसी मनुष्य का
भविष्य
बताने में सक्षम न हो लेकिन ये किसी का भी
भूत,भविष्य
और वर्तमान बताने में सक्षम है |
३०. पृथ्वी, सूर्य,चन्द्र, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति,
शुक्र, शनि,सोम
जैसे गृह भी जीवित प्राणी ही नहीं देवता भी हैं
जो
किसी का शुभ और अशुभ कर सकते हैं | ये भी
इन्ही की
खोज थी |
कितनी महान खोजे है इनकी जिनसे विश्व में
भारतका
नाम रोशन हुआ है लेकिन आरक्षण वालों ने आकर
इनकी
योग्यता को रोक का रख दिया है|
बेचारे अब ऐसे अविष्कार और खोजें नहीं कर सकते
है |
नवभारत टाइम्स के ब्लॉग पर आरक्षण के विषय में कुछ लेख पढ़ने को मिले और उन्हीं लेखों ने मुझे ये लेख लिखने को प्रेरित किया , जब बात आरक्षण की होती है तो सब भारतीय संविधान द्वारा अनुसूचित-जाति, जनजाति एवं अतिपिछड़ा वर्ग को मिले उस आरक्षण या विशेष अधिकारों की ही बात करतें हैं जिन्हें लागू हुए मुश्किल से 60 वर्ष ही हुए हैं ,कोई उस आरक्षण की बात नहीं करता जो पिछले 3000 वर्षों से भारतीय समाज में लागू थी
जिसके कारण ही इस आरक्षण को लागू करने की आवश्यकता पड़ी आज ''भारतीय गणराज्य का संविधान'' नामक संविधान, जिसका हम पालन कर रहें है जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ उससे पहले जो संविधान इस देश में लागू था जिसका पालन सभी राजा-महाराजा बड़ी ईमानदारी से करते थे उस संविधान का नाम था ''मनुस्मृति''
आधुनिक संविधान के निर्माता अंबेडकर ने सबसे पहले 25 दिसंबर 1927 को हज़ारों लोगों के सामने इस ''मनुस्मृति'' नामक संविधान को जला दिया, क्योंकि अब इस संविधान की कोई आवश्यकता नही थी भारतीय संविधान में आरक्षण का प्रावधान इसलिए दिया गया क्यूंकि इस देश की 85 प्रतिशत शूद्र जनसंख्या को कोई भी मौलिक अधिकार तक प्राप्त नहीं था, सार्वजनिक जगहों पर ये नहीं जा सकते थे मंदिर में इनका प्रवेश निषिद्ध था सरकारी नौकरियाँ इनके लिए नहीं थी , ये कोई व्यापार नहीं कर सकते थे , पढ़ नहीं सकते थे , किसी पर मुक़दमा नही कर सकते थे , धन जमा करना इनके लिए अपराध था , ये लोग टूटी फूटी झोपड़ियों में, बदबूदार जगहों पर, किसी तरह अपनी जिंदगियों को घसीटते हुए काट रहे थे और यह सब ''मनुस्मृति'' और दूसरे हिंदू धर्मशास्त्रों के कारण ही हो रहा था कुछ उदाहरण देखिए-
1.संसार में जो कुछ भी है सब ब्राह्मणों के लिए ही है क्यूंकि वो जन्म से ही श्रेष्ठ है(मनुस्मृति 1/100)
2.स्वामी के द्वारा छोड़ा गया शूद्र भी दासत्व से मुक्त नहीं क्यूंकि यह उसका कर्म है जिससे उसे कोई नहीं छुड़ा सकता (8/413)
3.यदि कोई नीची जाति का व्यक्ति ऊँची जाति का कर्म अपना ले तो राजा उसे देश निकाला देदे (10/95)
4.बिल्ली, नेवला चिड़िया मेंढक, गधा, उल्लू, और कौवे की हत्या में जितना पाप लगता है उतना ही पाप शूद्र (अनुसूचित-जाति, जनजाति एवं अतिपिछड़ा वर्ग) की हत्या में है (मनुस्मृति 11/131)
5.शूद्र का धन ब्राह्मण निर्भीक होकर छीन सकता है क्यूंकि उसको धन रखने का अधिकार नहीँ (8/416)
6. सब वर्णों की सेवा करना ही शूद्रों का स्वाभाविक कर्तव्य है (गीता,18/44)
7. जो अच्छे कर्म करतें हैं वे ब्राह्मण ,क्षत्रिय वश्य, इन तीन अच्छी जातियों को प्राप्त होते हैं जो बुरे कर्म करते हैं वो कुत्ते, सूअर, या शूद्र जाति को प्राप्त होते हैं (छान्दोन्ग्य उपनिषद् ,5/10/7)
8. पूजिए विप्र ग्यान गुण हीना, शूद्र ना पूजिए ग्यान प्रवीना,(रामचरित मानस)
9.ब्राह्मण दुश्चरित्र भी पूज्यनीए है और शूद्र जितेन्द्रीए होने पर भी तरास्कार योग्य है (पराशर स्मृति 8/33)
10. धार्मिक मनुष्य इन नीच जाति वालों के साथ बातचीत ना करें उन्हें ना देखें (मनुस्मृति 10/52)
11. धोबी , नई, बढ़ई, कुम्हार, नट, चंडाल, दास चामर, भाट, भील, इन पर नज़र पड़ जाए तो सूर्य की ओर देखना चाहिए और इनसे बातचीत हो जाए तो स्नान करना चाहिए (व्यास स्मृति 1/11-13)
12. अगर कोई शूद्र वेद मंत्र सुन ले तो उसके कान में धातु पिघला कर डाल देना चाहिए- गौतम धर्म सूत्र 2/3/4....
ये उन असंख्य नियम क़ानूनों के उदाहरण मात्र थे, जो आज़ाद भारत से पहले देश में लागू थे ये अँग्रेज़ों के बनाए क़ानून नहीं थे ये हिंदू धर्म द्वारा बनाए क़ानून थे जिसका सभी हिंदू राजा पालन करते थे प्रारंभ में तो इन्हें सख्ती लागू करवाने के लिए सभी राजाओं के ब्राह्मणों की देख रेख में एक विशेष दल भी हुआ करता था
इन्ही नियमों के फलस्वरूप भारत में यहाँ की विशाल जनसमूह के लिए उन्नति के सभी दरवाजे बंद कर दिए गये या इनके कारण बंद हो गये, सभी अधिकार, या विशेष-अधिकार, संसाधन, एवं सुविधायें कुछ लोगों के हाथ में ही सिमट कर रह गईं, जिसके परिणाम स्वरूप भारत गुलाम हुआ।
भारत की इस गुलामी ने उन करोड़ों लोगों को आज़ादी का अवसर प्रदान किया जो यहाँ शूद्र बना दिए गये थे , इस तरह धर्मांतरण का सिलसिला शुरू हुआ , बड़ी संख्या में लोगों ने इस्लाम व ईसाइयत को अंगीकार किया , अंग्रेजों के शासन काल में उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ से यहाँ पुनर्जागरण काल का उदय हुआ जिसके नायक यहीं के उच्च वर्गिए लोग थे जो अँग्रेज़ी शिक्षा, संस्कृति से प्रभावित हो कर देश में बदलाव लाने को प्रयत्नशील हुए,
सती प्रथा को समाप्त किया गया स्त्री शिक्षा के द्वार खोले गये , शूद्रों को नौकरियों में स्थान दिया जाने लगा और कितनी ही क्रूर प्रथाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया ,कई परिवर्तनशील ,संगठनों का उदय हुआ ऐसे ही समय में अंबेडकर का जन्म हुआ , समाज में कई परिवर्तन हुए थे परंतु अभी भी शूद्रों के जीवन पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ।
अम्बेडकर का जीवन संघर्ष इस बात का उदहारण है , अम्बेडकर अपने समय के विश्व के पांच सबसे बड़े विद्वानों में से एक थे , अपने जीवन के कड़ें अनुभवों को ध्यान में रखकर उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन सदियों से हिन्दू धर्म द्वारा दलित, उत्पीडित बहुसंख्य जनों के उत्थान को समर्पित करते हुए लम्बे संघर्ष में लगा दिया , जिस कारण दुनिया को पहली बार भारत के इस महान अभिशाप का ज्ञान हुआ और पशुओं का जीवन व्यतीत कर रहे उन करोड़ों लोगों को स्वाभिमान से जीवन जीने की ललक पैदा हुई , उन्होंने अपने जीवन के कीमती कई वर्ष हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू धर्म शाश्त्रों के अध्यन में लगाये ,
अम्बेडकर के प्रयासों का ही नतीजा था की भारत के राजनैतिक और सामाजिक स्थिति का विश्लेषण करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सात सदस्यीय साइमन कमीशन को भारत भेजा जिसका अम्बेडकर ने स्वागत किया लेकिन कांग्रेस ने इसका बहिष्कार कर दिया, और कांग्रेस वर्किंग कमिटी द्वारा 1928 में नए संविधान की रूप रेखा तैयार की गई जिसके लिए सभी धर्मो एवं सम्प्रदायों को बुलाया गया लेकिन अम्बेडकर को इससे दूर रखा गया
12 से 19 जनवरी 1939 को गोलमेज की प्रथम कांफ्रेंस में पहली बार देश से बाहर अम्बेडकर ने अपने विचार रखे , और शूद्रों की सही तस्वीर पेश की। इसी कांफ्रेंस में उन्होंने कानून के शासन और शारीरिक ताकत की जगह संवैधानिक अनुशासन की प्रतिष्ठा का दावा किया , सम्मलेन में जो 9 सब-कमिटी बनी उन सभी में उन्हें सदस्य बना लिया गया , उनकी योग्यता उनके सारपूर्ण वक्तव्यों की वजह से यह संभव हो पाया, फ्रेंचाइजी कमिटी में उन्होंने दलितों के लिए अलग चुनाव क्षेत्र की मांग की और उनकी सभी मांगों को अंग्रेजी सरकार को मानना पड़ा।
अम्बेडकर की इस अभूतपूर्व सफलता ने कांग्रेस की नींद हराम कर दी क्यूंकि सवर्णों की इस पार्टी को डर हुआ की सदियों से जिन्हें लातों तले दबा के रखा , उनसे अपने सभी गंदे से गंदे काम करवाए, अगर उन्हें सत्ता मिल गई तब तो हमारी आने वाली पीडिया बर्बाद हो जाएँगी , हमारा धर्म जो इनसे छीन कर हमें सारी सुविधाएं सदियों से देता आया है वो संकट में पड जायेगा , यही सब सोच कर कांग्रेस के इशारों पर गाँधी ने अम्बेडकर को मिले अधिकारों के विरूद्ध आमरण अनशन की नौटंकी शुरू कर दी, जिसके कारण अंत में राष्ट्र के दबाव में आकर अम्बेडकर को "POONA - PACT " पर हस्ताक्षर करने पड़े जिसके अनुसार अग्रिम संविधान बनाने का मौका अम्बेडकर को दिया जाना तय हुआ बदले में अम्बेडकर को गोलमेज में मिले अपने सभी अधिकारों को छोड़ना पड़ा
इस तरह वर्तमान संविधान का जो की मजबूरी में बना आधारशिला तैयार हुई जिसमें उन्होंने आरक्षण का प्रावधान डाला और दलितों के लिए सभी कानून बनाये अब जरा थोड़ी देर के लिए यह कल्पना कीजिये की अगर अम्बेडकर दलितों के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण की मांग करते जो की उनका हक़ है तो क्या होता , परन्तु अम्बेडकर ने ऐसा नहीं किया ,
आज जब सरकारी नौकरियां वैश्वीकरण के नाम पर पूरे षड्यंत्रकारी तरीके से समाप्त की जा रहीं हैं , ऐसे में शूद्र एक बार फिर हाशिये पर आ गया है, ऐसे में ये कहना कि बचे खुचे आरक्षण को भी समाप्त कर दिया जाये, एक बार फिर से शूद्र को गुलाम बनाने की सोची समझी साजिश ही तो है।
आज जितने दलित अम्बेडकर के प्रावधानों के कारण सरकारी नौकरियों तक पहुचे हैं और सुख से दो जून की रोटी खा रहे हैं , उससे कहीं अधिक ब्राह्मण आज भी हिन्दू धर्म शास्त्रों के सदियों पुराने प्रावधानों के कारण देश के लाखों मंदिरों में पुजारी बन अरबों-खरबों के वारे न्यारे कर रहे हैं और देश की खरबों की संपत्ति पर कब्ज़ा जमाये बैठे हैं क्या किसी ने इस आरक्षण को समाप्त करने की बात की....?
क्या किसी ने आज भी दलितों पर होने वालें अत्याचारों को रोकने के लिए आमरण अनशन किया ? क्या किसी ने मिर्च पुर, गोहाना, खैरलांजी, झज्जर, के आरोपियों के लिए फांसी की मांग की ? क्यूँ नहीं पहले ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य अपने अपने जातीय पहचानों को समाप्त करते ? जाति स्वयं नष्ट हो जाएगी जाति नष्ट होते ही आरक्षण की समस्या सदा के लिए नष्ट हो जाएगी ,ऊपर की जाति वाले क्यूँ नहीं अपने बच्चों की शादियाँ दलितों के बच्चों संग करने की पहल करते ? लेकिन यहाँ तो बात ही दूसरी है इनके बच्चे अगर दलितों में प्रेम विवाह करना चाहें तो ये उनका क़त्ल कर देते हैं धन्य हैं
एक दलित मित्र अपने ब्लॉग में कहतें हैं कि अब तो ऐसा नहीं होता तो श्रीमान जी जरा अख़बार पढ़ा करो पता चल जायेगा आज भी इस देश में संविधान के इतने प्रावधानों के बावजूद प्रत्येक दिन तीन दलितों को उनकी जाति के कारण मार दिया जाता है प्रत्येक दिन एक दलित महिला से उसकी जाति के कारण बलात्कार होता है।
भारत की सवर्ण जातियों की शिकायत है कि
आरक्षण
की वजह से देश का विकास रुक गया है |
आरक्षण से पहले इन लोगो ने बहुत आविष्कार और खोजे
की
थी जो कि इस संसार में अन्य कहीं मिलना
नामुमकिन है |
आइए जानते है इनकी ऐसी ही कुछ खोजो
औरअविष्कारों
के बारे में
जिनसे इन्होने विश्व में देशका नाम रोशन किया हुआ
है ---
१. इनकी सबसे महत्त्वपूर्ण खोज वर्ण व्यवस्था और
जातियों की खोज थी | इन्होने मनुष्यों को ६७४३ से
अधिक जातियों में बाँट दिया | इतनी अधिक
जातियों
की खोज करना क्या कोई आसान काम है ?
सोचिये बेचारों को इतनी अधिक जातियों को खोजने में
कितना अधिक परिश्रम करना पड़ा होगा |
२. इनकी दूसरी महत्वपूर्ण खोज ३३ करोड़ देवी-
देवताओं की
खोज है | ये खोज इन्होने उस समय की, जब देश की
कुल
आबादी भी ३३ करोड़ नहीं थी|
सोचिये !!
इतने सारे देवी देवताओ की खोज में बेचारों को
कितना
पसीना बहाना पड़ा होगा ?
अजी रात दिन एक कर दिए होंगे बेचारों ने |
३. आज चाहे वैज्ञानिक अभी तक दूसरे ग्रहों पर
जीवन की
तलाश नहीं कर पाए लेकिन ये लोग बहुत पहले ही
ऐसे दो
लोकों की तलाश कर चुके हैं जहाँ पर जीवनमौजूद है
और वो
ग्रह
हैं --
स्वर्ग लोक जहाँ पर अलौकिक शक्तियों के
स्वामी देवता
निवास करते हैं |
३. विश्व के देशों ने चाहे कभी भी परमाणु
बम,हाइड्रोजन
बम जैसे विनाशकारी बमों का निर्माण किया हो
लेकिन
ये उससे बहुत पहले ही ऐसे ऐसे अस्त्र-शस्त्रों का
निर्माण कर
चुके थे जो पूरी सृष्टि का विनाश करने में सक्षम थे
| इन्होने
उसको नाम दिया ब्रह्मास्त्र |
इन्होने आज तक किसी आक्रमणकारी शत्रुओं के
खिलाफ
उसका प्रयोग क्यों नहीं किया ये अलग शोध का
विषय है|
बाहर से कुछ सौ हजारों की संख्या में आक्रमणकारी
आते
रहे और इनको ३३ करोड़ शस्त्रधारी देवताओं के साथ
धूल
चटाते रहे ये अलग बात है |
४. वैज्ञानिक बेशक आज तक मनुष्य की उम्र
बढ़ाने और
उसको अजर, अमर बनाने की औषधि नहीं खोज
पाए हो
लेकिन ये अब से कई युगों पहले मनुष्य को अमरता का
रसास्वादन करवा चुके है ये अलग बात है इनके
द्वारा अमर
किये गए अश्वत्थामा जैसे मानव कभी भी देखने
को नहीं
मिलते हैं |
५. बेशक विश्व में कभी भी आकाशवाणी का
प्रसारण
भारत से बाद में हुआ लेकिन ये उससे बहुत पहले ऐसी
व्यवस्था
का निर्माण कर चुके थे जिससे किसी युद्ध का
आँखों देखा
हाल बिना किसी भी कैमरा जैसे यंत्र की मदद
के
दिव्यदृष्टि के द्वारा किया जा सकता था
लेकिन उसके
बाद में उसका प्रयोग इन्होने क्यों नहीं किया ये
अलग एक
विचारणीय प्रश्न है.
६. विश्व का कोई भी देश आज तक सूर्य पर नहीं
पहुँच सका
है लेकिन ये अबसे पहले सूर्य पर होकर आ चुके हैं।
७. सूर्य को फल की तरह खाया भी जा सकता है ये
भी
अकेली इनकी ही खोज थी |
८. बेशक राईट बंधुओ को हवाई जहाज के अविष्कार
के
निर्माण के श्रेय दिया जाता हो लेकिन ये उससे
बहुत पहले
ही पुष्पक विमान का निर्माण कर चुके थे |
उसके बाद
इनकी वायुयान निर्माण कला को क्या हुआ ये आज
तक
रहस्य है |
९. संजीवनी बूटी जैसी चमत्कारिक औषधि भी
इन्हीं की
खोज थी जिससे किसी भी मृत मनुष्य को जीवित
किया
जा सकता था लेकिन आज वो औषधि कहाँ हैं ये इनको
भी
आज तक नहीं पता है |
१०.आज बेशक देश में सूखा पड़ता हो और और लोग
पानी को
तरसते हो लेकिन ये अब से युगों पहले आकाश में तीर
मारकर
बारिश करवा सकते थे आज ये उसका प्रयोग क्यों
नहीं करते
ये भी एक रहस्य है।
११. एक गर्दन पर दस-दस तक सिर और एक कंधे
पर हजारों
हाथ उग सकते हैं ये भी इनकी ही बुद्धिमता
की खोज है |
१२. समुन्द्र यात्रा से मनुष्य गल जाता है ये भी
इनकी ही
महत्वपूर्ण खोज है |
१३. पशु पक्षियों में भी मानवीय संवेदना होती है
और वो
भी मानव की भाषा बोल और समझ सकते हैं ये भी
इनकी
ही खोज है |
१४. मानव क्लोन बनाने की कला में तो ये सिद्धहस्त
थे|
अगर किसी मनुष्य के रक्त की बूंदे धरती पर
पड़ जाती थी
तो जितनी बूंदे धरती पर पड़ती थी उसके उतने
ही क्लोन
पैदा हो जाते थे |
१५. मानव रक्त भी कोल्ड ड्रिंक और चाय की
तरह पिया
जा सकता है ये भी इनकी ही महत्त्वपूर्ण खोज
थी |
१६. बच्चे बिना औरत मर्द के पैदा भी किये जा
सकते है ये
भी इनकी ही खोज थी |
ये मानव शिशु छींक कर,
शरीर के मैल द्वारा,
पशु पक्षियो के गर्भ द्वारा भी पैदा करवा सकते
थे |
१७. वानर-रीछ जैसे जीव भी बिना पंखो के उड़
सकते हैं ये
भी इनकी ही खोज थी |
१८. एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के स्पर्श से, उसकी
छाया से भी
भ्रष्ट हो सकता है ये भी इनकी ही खोज थी |
१९. पशु मानव
(एस0सी0/एस0टी0/ओ0बी0सी0)
से ज्यादा शुद्ध और पवित्र होता है ये भी इनकी
ही खोज
थी|
२०. मानव के स्पर्श
(एस0सी0/एस0टी0/ओ0बी0सी0) से भ्रष्ट से हुआ
मनुष्य
पशुओं का मूत्र पीकर, या मूत्र छिड़ककर पवित्र
हो सकता
है ये भी इन्ही की खोज थी |
२१. स्त्री और शूद्र दोयम दर्जे के नागरिक है
इनकी अपनी
कोई इच्छा नहीं होती | इनके कोई अधिकार नहीं
होते |
इनको अपनी इच्छा के अनुसार प्रयोग किया जा
सकता है
ये भी इन्ही की खोज थी |
२२. पूजा-अर्चना और हवन के द्वारा भी बारिश
करवाई
और रोकी जा सकती है ये भी इन्ही की खोज थी
|
२३. अगर किसी स्त्री को एक ही पुरुष में
उपयुक्त पति नहीं
मिलता है तो वो पांच या उससे अधिक भी आदमियों को
अपने पतियों के रूप में स्वीकार कर सकती है ये
भी इन्ही
की खोज थी|
२४. माता एक औरत को पांच भाइयो के बीच में
किसी
वस्तु की तरह बाँट सकती है ये भी इन्ही की
खोज थी |
२५. अगर किसी औरत का गर्भपात हो जाता है तो
उसका
भ्रूण नष्ट होने से बचाया जा सकता है और उस भ्रूण को
सौ
टुकडो में बांटकर सौ या उससे अधिक संताने पैदा
की जा
सकती हैं ये भी इनकी ही खोजथी |
२६. मानव और जानवर के सिर आपस में बदले जा
सकते हैं ये
भी इनकी ही खोज थी |
२७. मानव और हाथी का रक्त ग्रुप एक होता है ये
भी
इनकी ही खोज थी |
२८. चूहे पर बैठकर भी मनुष्य सवारी कर सकता है
ये भी
इनकी ही खोज थी|
२९. वैज्ञानिक बेशक आज तक किसी मनुष्य का
भविष्य
बताने में सक्षम न हो लेकिन ये किसी का भी
भूत,भविष्य
और वर्तमान बताने में सक्षम है |
३०. पृथ्वी, सूर्य,चन्द्र, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति,
शुक्र, शनि,सोम
जैसे गृह भी जीवित प्राणी ही नहीं देवता भी हैं
जो
किसी का शुभ और अशुभ कर सकते हैं | ये भी
इन्ही की
खोज थी |
कितनी महान खोजे है इनकी जिनसे विश्व में
भारतका
नाम रोशन हुआ है लेकिन आरक्षण वालों ने आकर
इनकी
योग्यता को रोक का रख दिया है|
बेचारे अब ऐसे अविष्कार और खोजें नहीं कर सकते
है |
भारत का इतिहास
भारत का संक्षिप्त इतिहास
भारत का इतिहास
▶ इंडस वैली ( सिन्धु घाटी ) की सभ्यता ( 3200 BC से पहले )
आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व ( 3200 BC से पहले ) भारत मे इंडस वैली ( सिन्धु घाटी ) की सभ्यता का इतिहास मिलता हैं और यह सभ्यता दुनिया के अग्रणी सभ्यताओं मे मानी जाती थी । यह सभ्यता महान नागवंशियों और द्रविड़ों द्वारा स्थापित की गयी थी जिनको आज एससी, एसटी, ओबीसी और आदिवासी कहा जाता हैं, यह लोग भारत के मूलनिवासी हैं । इंडस वैली ( सिन्धु घाटी ) की सभ्यता एक नगर सभ्यता थी जो कि आधुनिक नगरों की तरह पूर्णतः योजनाबद्ध एवं वैज्ञानिक ढंग से बसी हुयी थी ।
▶ विदेशी आर्य आक्रमण ( 3100BC-1500 )
विदेशी आर्य ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जोकि असभ्य, जंगली एवं ख़ानाबदोश थे और यूरेशिया से देश निकाले की सजा के द्वारा निकले गए लोग थे । इन युरेशियनों के आगमन से पूर्व हमारे समाज के लोग प्रजातान्त्रिक एवं स्वतंत्र सोच के थे एवं उनमे कोई भी जाति व्यवस्था नहीं थी । सब लोग मिलकर प्रेम एवं भाईचारे के साथ मिलजुल कर रहते थे । ऐसा इतिहास इंडस वैली ( सिन्धु घाटी ) की सभ्यता का मिलता हैं । फिर विदेशी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य लगभग 3100 ईसा पूर्व भारत आये और उनका यहाँ के मूलनिवासीयों के साथ संघर्ष हुआ ।
▶ वैदिक काल ( 1500-600BC )
युरेशियन लोग ( ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ) साम, दाम, दंड एवं भेद की नीत से किसी तरह संघर्ष में जीत गए । परन्तु युरेशियनों की समस्या थी कि बहुसंख्यक मूलनिवासी लोगों को हमेशा के लिए नियंत्रित कैसे रखा जाए । इसलिए उन्होंने मूलनिवासीयों को पहले वात्य-स्तोम ( धर्म परिवर्तन ) करवाके अपने धर्म में जोड़ा । फिर युरेशियनों ने मूलनिवासीयों को नीच साबित करने के लिए वर्ण व्यवस्था स्थापित की, जिसमें मूलनिवासीयों को चौथे वर्ण शूद्र में रख दिया गया । समय के साथ यूरेशियन ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों ने मूलनिवासियों को वर्ण पर आधारित कानून बना कर शिक्षा ( ज्ञान बल ), अस्त्र-शस्त्र रखने ( शस्त्र बल ), और संपत्ति ( धन बल ) के अधिकार से वंचित कर दिया गया । इस नियम को ऋग्वेद में डालकर और ऋग्वेद को ईश्वरीकृत घोषित कर दिया और इस तरह बहुसंख्यक आबादी को ( ज्ञान बल ), अस्त्र-शस्त्र रखने ( शस्त्र बल ), और संपत्ति रखने ( धन बल ), के अधिकार से वंचित कर मानसिक रूप से गुलाम और लाचार बना दिया गया । इसे वैदिक संस्कृति, आश्रम संस्कृति या ब्राह्मण संस्कृति कहते हैं जो श्रेणीबद्ध असमानता का सिद्धांत पर समाज को चारो वर्णो मे विभक्त करती हैं ।
▶ तथागत गौतम बुद्ध ( श्रमण संस्कृति का उत्थान ) 563 BC-483BC...
तथागत बुद्ध ने वैदिक संस्कृति के विरुद्ध आंदोलन किया और अनित्य, अनात्म एवं दुख का दर्शन देकर वेद के “ईश्वरी कृत” होने और “आत्मा” के सिधान्त को चुनौती दी । उन्होंने वैदिक संस्कृत के “जन्मना सिधान्त” को नकार “कर्मणा सिधान्त” का प्रतिपादन किया और वर्ण व्यवस्था के सिधान्त को नकार दिया और समतावादी और मानवतावादी दर्शन का प्रचार किया । वैदिक संस्कृति के यज्ञों मे पशुओं की बली दी जाती थी । इस तरह के कर्म कांड को भी तथागत गौतम बुध्द ने नकार दिया । तथागत गौतम बुद्ध के मानवीय शिक्षाओं के प्रसार के बाद ब्राह्मणों का वैदिक धर्म बुरी तरह हीन माना जाने लगा था । तथागत गौतम बुध्द ने अपने पुरे जीवन को इस दर्शन को स्थापित करने में लगाया और पुनः श्रमण संस्कृत को स्थापित किया । जो कि मूलनिवासीयों की संस्कृति थी । तब भारतीय इतिहास का सम्राट अशोक का स्वर्ण काल आया ।
▶ प्रथम बौद्ध संगीति’ का आयोजन ( 483BC )....
‘प्रथम बौद्ध संगीति’ का आयोजन 483 ई.पू. में राजगृह ( आधुनिक राजगिरि ), बिहार की ‘सप्तपर्णि गुफ़ा’ में किया गया था । तथागत गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तुरंत बाद ही इस संगीति का आयोजन हुआ था । इसमें बौद्ध स्थविरों ( थेरों ) ने भाग लिया और तथागत बुद्ध के प्रमुख शिष्य महाकाश्यप ने उसकी अध्यक्षता की । चूँकि तथागत बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं को लिपिबद्ध नहीं किया था, इसीलिए प्रथम संगीति में उनके तीन शिष्यों - ‘महापण्डित महाकाश्यप’, सबसे वयोवृद्ध ‘उपालि’ तथा सबसे प्रिय शिष्य ‘आनन्द’ ने उनकी शिक्षाओं का संगायन किया ।
▶ द्वितीय बौद्ध संगीति ( 383 BC )....
एक शताब्दी बाद बुद्धोपदिष्ट कुछ विनय-नियमों के सम्बन्ध में भिक्षुओं में विवाद उत्पन्न हो जाने पर वैशाली में दूसरी संगीति हुई । इस संगीति में विनय-नियमों को कठोर बनाया गया और जो बुद्धोपदिष्ट शिक्षाएँ अलिखित रूप में प्रचलित थीं, उनमें संशोधन किया गया ।
▶ तृतीय बौद्ध संगीति ( 249 BC )......
बौद्ध अनुश्रुतियों के अनुसार बुद्ध के परिनिर्वाण के 236 वर्ष बाद सम्राट अशोक के संरक्षण में तृतीय संगीति 249 ईसा पूर्व में पाटलीपुत्र में हुई थी । इसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ ‘कथावत्थु’ के रचयिता तिस्स मोग्गलीपुत्र ने की थी । विश्वास किया जाता हैं कि इस संगीति में त्रिपिटक को अन्तिम रूप प्रदान किया गया । यदि इसे सही मान लिया जाए कि अशोक ने अपना सारनाथ वाला स्तम्भ लेख इस संगीति के बाद उत्कीर्ण कराया था, तब यह मानना उचित होगा, कि इस संगीति के निर्णयों को इतने अधिक बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियों ने स्वीकार नहीं किया कि अशोक को धमकी देनी पड़ी कि संघ में फूट डालने वालों को कड़ा दण्ड दिया जायेगा ।
▶ चतुर्थ बौद्ध संगीति....
चतुर्थ और अंतिम बौद्ध संगीति कुषाण सम्राट कनिष्क के शासनकाल ( लगभग 120-144 ई. ) में हुई । यह संगीति कश्मीर के ‘कुण्डल वन’ में आयोजित की गई थी । इस संगीति के अध्यक्ष वसुमित्र एवं उपाध्यक्ष अश्वघोष थे । अश्वघोष कनिष्क का राजकवि था । इसी संगीति में बौद्ध धम्म दो शाखाओं में एक हीनयान और दुसरा महायान में विभाजित हो गया ।
हुएनसांग के मतानुसार सम्राट कनिष्क की संरक्षता तथा आदेशानुसार इस संगीति में 500 बौद्ध विद्वानों ने भाग लिया और त्रिपिटक का पुन: संकलन व संस्करण हुआ । इसके समय से बौद्ध ग्रंथों के लिए पाली भाषा का प्रयोग हुआ और महायान बौद्ध संप्रदाय का भी प्रादुर्भाव हुआ । इस संगीति में नागार्जुन भी शामिल हुए थे । इसी संगीति में तीनों पिटकों पर टीकायें लिखी गईं, जिनको ‘महाविभाषा’ नाम की पुस्तक में संकलित किया गया । इस पुस्तक को बौद्ध धम्म का ‘विश्वकोष’ भी कहा जाता हैं ।
सम्राट अशोक प्राचीन भारत के मौर्य सम्राट बिंदुसार का पुत्र था और चंद्रगुप्त का पौत्र था । जिसका जन्म लगभग 304 ईसा पूर्व में चैत्र शुक्ल अष्टमी को माना जाता हैं । 272 ईसा पूर्व अशोक को राजगद्दी मिली और 232 ई. पूर्व तक उसने शासन किया । अशोक ने 40 वर्ष राज्य किया । चंद्रगुप्त की सैनिक प्रसार की नीति ने वह स्थायी सफलता नहीं प्राप्त की, जो अशोक की धम्म विजय ने की थी । कलिंग के युद्ध के बाद अशोक ने व्यक्तिगत रूप से बौद्ध धम्म अपना लिया । अशोक के शासनकाल में ही पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता मोगाली पुत्र तिष्या ने की । इसी में अभिधम्मपिटक की रचना हुई और बौद्ध भिक्षु विभिन्न देशों में भेजे गये जिनमें अशोक के पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा गया । बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के फ़लस्वरुप अशोक द्वारा यज्ञों पर रोक लगा दिये जाने के बाद युरेशियन ब्राह्मणों ने “पुरोहित का कर्म त्यागकर” सैनिक वृत्ति को अपना लिया था । पुष्यमित्र शुंग नाम के एक ब्राह्मण ने घुसपैठ करके मौर्य वंश के 10 वे उत्तराधिकारी “बृहद्रथ” का सेनापति बनकर एक दिन सेना का निरिक्षण करते समय धोखे से उसका कत्ल कर दिया । उसने ‘सेनानी’ की उपाधि धारण की थी । दीर्घकाल तक मौर्यों की सेना का सेनापति होने के कारण पुष्यमित्र शुंग इसी रुप में विख्यात था तथा राजा बन जाने के बाद भी उसने अपनी यह उपाधि बनाये रखी । शुंग काल में संस्कृत भाषा का पुनरुत्थान हुआ तथा मनुस्मृति के वर्तमान स्वरुप की रचना इसी समय में हुई । वैदिक धर्म एवं आदेशों की जो अशोक के शासनकाल में अपेक्षित हो गये थे को पुनः कठोरता से लागू किया । इसी कारण इसका काल वैदिक प्रतिक्रांति अथवा वैदिक पुनर्जागरण का काल कहलाता हैं । पुष्यमित्र शुंग ने घोषणा किया जो बुद्धिस्ट भिख्खु ( Monk ) का सिर लाकर देगा वो उसे 100 सोने की सिक्के देगा । बौध्दों का बहुतही कत्ले आम हुआ ।
श्रमण संस्कृत के मानने वाले चार वर्ग मे विभक्त हो गए —
1 ) जो उनकी अधीनता स्वीकार कर लिए वो सछूत शूद्र बने अर्थात आज का ओबीसी ( OBC ) !
2 ) जो लड़ाई से दूर जंगल और पहाड़ मे चले गए अर्थात आज का अनुसूचित जन जाति ( ST ) !
3 ) जो ब्राह्मणवाद के सामने नहीं झुका वो है आज का अछूत अतिशूद्र अर्थात अनुसूचित जाति SC !
4 ) जो आज भी ब्राह्मणवाद के आगे नहीं झुके हैं और जंगलों में रहते हैं अर्थात आदिवासी !
मनुस्मृति की रचना के बाद ब्राह्मणों ने एक बहुत बड़ा जातिप्रथा नाम का षड्यंत्र रचा और फिर इस बार मूलनिवासीयों ( SC, ST, OBC ) को 6743 जातियों, टुकडों में तोड़ कर जन बल से भी वंचित कर दिया गया । ऐसा तंत्र तैयार किया गया कि इसको तोड़ना अत्यंत कठिन रहें । और उनमे श्रेणीबध्द असमानता का सिद्धांत अर्थात जातिव्यवस्था का सिद्धांत, लागु किया और उनको धर्म, वेदों एवं शास्त्रों के माध्यम से मानसिक रूप से गुलाम बनाया ।
उसके बाद समय समय पर ब्राह्मणों ने बहुत से धर्म शास्त्रों की रचना करके जो अंधश्रद्धा और अन्धविश्वास पर आधारित लिखें हैं और उनको मूलनिवासीयों पर जबरदस्ती धर्म के नाम पर थोप दिया गया हैं । इस प्रकार हम देखते है कि धर्म ही मूलनिवासीयों की गुलामी का मुख्य आधार हैं यही वो षड्यंत्र हैं जिसके कारण आज भी मूलनिवासी बहुजन समाज मानसिक तौर से गुलाम हैं । ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य आज भी इसी षड्यंत्र के माध्यम से देश पर राज कर रहे हैं ।
इतिहास में हजारों मूलनिवासी महापुरुष हुए जिन्होंने मानवता पर आधारित मानव जीवन की शिक्षा दी, लेकिन किसी भी महापुरुष ने ना तो कोई धर्म बनाया और ना ही किसी धर्म की कभी बात की । हमारे मूलनिवासी महापुरुष जानते थे कि धर्म का सही अर्थ सिर्फ शोषण हैं । रविदास, नानक, कबीर, ज्योतीराव फुले, नारायण गुरु, पेरियार, सावित्री बाई फुले और बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़कर ने कोई भी धर्म नहीं बनाया । मूलनिवासी महापुरुष जानते थे कि अगर हम कोई धर्म बनाते हैं तो यह वही बात हो जायेगी कि लोगों को एक अंधे कुए से निकल कर दूसरे अंधे कुए में धकेल देना । कोई भी महापुरुष मूलनिवासी लोगों को अंधश्रध्दा और अविश्वास के कुए में नहीं धकेलना चाहता था । बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी ने अपने जीवन काल में धर्म का त्याग करके धम्म को अपनाया क्योकि बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी जानते थे कि आडम्बरों, पाखंडों और ढोंगों पर आधारित धर्मों से कभी भी मूलनिवासीयों का भला नहीं हो सकता । इसीलिए बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी ने धर्म छोड़ कर बुद्धि और तर्क पर आधारित बौध्द धम्म को अपना कर सन्देश दिया ।
सभी मूलनिवासीयों से प्रार्थना हैं कि धर्म का त्याग करे और बौद्ध धम्म को अपनाये । शायद कुछ लोग यहाँ तर्क भी करेंगे कि हम बौध्द धम्म को ही क्यों अपनाये तो उन लोगों से प्रार्थना हैं कि फालतू में सोच कर या तर्क करके अपना समय और उर्जा खर्च ना करें । आप सभी को ज्ञात ही हैं कि जब तक हम ब्राह्मण निर्मित धर्म में रहेंगे हम शुद्र, नीच आदि कहलाते रहेंगे । आप सभी धर्म को छोड़ दे और मानवीय मूल्यों के आधार पर जीवन जीना शुरू कर दे । जब आप सभी लोग धर्म को त्याग कर मानवीय मूल्यों पर आधारित जीवन जीना शुरू करेंगे तो निश्चय से ही देश के मूलनिवासीयों का भला ही होगा ।
जागों मूलनिवासी बहुजनों जागों...!
1918 में पहली बार इस्तेमाल हुआ हिन्दू धर्म शब्द , ब्राह्मण नहीं इस देश का निवासी❗
तुलसीदास ने रामचरित मानस मुगलकाल में लिखी , पर मुगलों की बुराई मे एक भी चौपाई नही लिखी ?❗
क्यों ?❗
क्या उस समय हिंदू मुसलमान का मामला नहीं था ? हां उस समय हिंदू मुसलमान का मामला नहीं था❗
क्योंकि उस समय हिंदू नाम का कोई धर्म ही नहीं था
तो फिर उस समय कौनसा धर्म था ?❗
उस समय ब्राह्मण धर्म था और ब्राह्मण मुगलो के साथ मिलजुल कर यहाँ तक कि आपस में रिश्तेदार बनकर भारत पर राज कर रहे थे उस समय वर्ण व्यवस्था थी ❗वर्ण व्यवस्था में शुद्र अधिकार वंचित था कार्य सिर्फ सेवा करना था मतलब
सिधे शब्दों में गुलाम था
तो फिर हिंदू नाम का धर्म कब से आया ?❗
ब्राह्मण धर्म का नया नाम हिंदू तब आया जब वयस्क मताधिकार का मामला आया ,❗ जब इंग्लैंड में वयस्क मताधिकार का कानून लागू हुआ और इसको भारत में भी लागू करने की बात हुई ,❗
इसी पर तिलक ने बोला “ क्या ये तेली तम्बोली संसद में जा कर तेल बेचेगा क्या ?? इसलिए स्वराज इनका नहीं मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है , हिन्दू शब्द का प्रयोग पहली बार १९१८ में इस्तेमाल किया गया
तो ब्राह्मण धर्म खतरे में पड गया क्यों ?❗
क्योंकि भारत में उस समय अँगरेजों का राज था वहाँ वयस्क मताधिकार लागू हुआ तो फिर भारत में तो होना ही था❗
ब्राह्मण 3.5% है
अल्पसंख्यक है
राज कैसे करेगा ?❗
ब्राह्मण धर्म के सारे ग्रन्थ शुद्रों के विरोध में मतलब हक अधिकार छिन ने के लिए शुद्रों कि
मानसिकता बनाने के लिए षड्यंत्र के रूप में आज का ओबीसी ही ब्राह्मण धर्म का शुद्र है❗
SC (अनुसूचित जाति)) के लोगों को तो अछुत घोषित कर वर्ण व्यवस्था से बाहर रखा क्योंकि उन्होंने ही युरेशियन आर्यों से सबसे ज्यादा संघर्ष किया ,❗
ST (अनुसूचित जनजाति)के लोग तो जंगलों में थे उनसे ब्राह्मण धर्म को क्या खतरा उनको तो युरेशियन आर्यों के सिंधु घाटी सभ्यता से संघर्ष के समय से ही वन में जाने रहने को मजबूर कर दिया उनको वनवासी कह दिया❗
इसलिए ब्राह्मणों ने षड्यंत्र से हिंदू शब्द का इस्तेमाल किया जिससे सबको समानता का अहसास हो❗
परन्तू ब्राह्मणों ने समाज में व्यवस्था ब्राह्मण धर्म कि ही रखी उसमें जातियां रखी जातियां ब्राह्मण धर्म का प्राण तत्व है इसके बिना ब्राह्मण का वर्चस्व खत्म है❗
इसलिए उस समय हिंदू मुसलमान कि समस्या नहीं थी ब्राह्मण धर्म को जिंदा रखने के लिए वर्ण व्यवस्था थी
उसमें शुद्रों को गुलाम रखना था❗
इसलिए
तुलसीदास जी ने मुसलमानों के विरोध में नहीं शुद्रों के विरोध में गुलाम बनाए रखने के लिए लिखा❗
ढोल गवार शुद्र पशु नारी
सकल ताडन के अधिकारी
अब जब मुगल चले गये❗
देश में SC/ST/ OBC के लोग ब्राह्मण धर्म के विरोध में ब्राह्मण धर्म के अन्याय अत्याचार से दुखी होकर इस्लाम अपना लिया तो ब्राह्मण अगर मुसलमानों के विरोध में जाकर षड्यंत्र नहीं करेगा तो SC/ST/OBC के लोगों को प्रतिक्रिया से हिंदू बना कर
बहुसंख्यक लोगों का हिंदू के नाम पर ध्रूवीकरण करके अल्पसंख्यक ब्राह्मण बहुसंख्यक बनकर राज कैसे करेगा❗
इसलिए आज हिंदू मुसलमान कि समस्या देश में खडी कि गई तथा कथित हिंदू( SC ST OBC) मुसलमान लडे तथाकथित हिंदू (SC ST OBC )मरे या मुस्लिम दोनों तरफ मूलनिवासी का मरना तय है❗
क्या कभी सुना है की किसी दंगे में कोई ब्राह्मण मरा है जहर घोलनें वाले कभी जहर नहीं पिते हैं❗
इसलिए, युरेशियन सेफ का सेफ कोई दर्द नहीं कोई फर्क नहीं आराम से टीवी में डिबेट को तैयार❗
दुनिया के भ्रष्टाचार मुक्त देशों में शीर्ष पर गिने जाने वाले न्यूजीलैंण्ड के एक लेखक ब्रायन ने भारत में व्यापक रूप से फैंलें भष्टाचार पर एक लेख लिखा है। ये लेख सोशल मीडि़या पर काफी वायरल हो रहा है। लेख की लोकप्रियता और प्रभाव को देखते हुए विनोद कुमार जी ने इसे हिन्दी भाषीय पाठ़कों के लिए अनुवादित किया है। –
*न्यूजीलैंड से एक बेहद तल्ख आर्टिकिल।*
*भारतीय लोग होब्स विचारधारा वाले है (सिर्फ अनियंत्रित असभ्य स्वार्थ की संस्कृति वाले)*
भारत मे भ्रष्टाचार का एक कल्चरल पहलू है। भारतीय भ्रष्टाचार मे बिलकुल असहज नही होते, भ्रष्टाचार यहाँ बेहद व्यापक है। भारतीय भ्रष्ट व्यक्ति का विरोध करने के बजाय उसे सहन करते है। कोई भी नस्ल इतनी जन्मजात भ्रष्ट नही होती
*ये जानने के लिये कि भारतीय इतने भ्रष्ट क्यो होते हैं उनके जीवनपद्धति और परम्पराये देखिये।*
भारत मे धर्म लेनेदेन वाले व्यवसाय जैसा है। भारतीय लोग भगवान को भी पैसा देते हैं इस उम्मीद मे कि वो बदले मे दूसरे के तुलना मे इन्हे वरीयता देकर फल देंगे। ये तर्क इस बात को दिमाग मे बिठाते हैं कि अयोग्य लोग को इच्छित चीज पाने के लिये कुछ देना पडता है। मंदिर चहारदीवारी के बाहर हम इसी लेनदेन को भ्रष्टाचार कहते हैं। धनी भारतीय कैश के बजाय स्वर्ण और अन्य आभूषण आदि देता है। वो अपने गिफ्ट गरीब को नही देता, भगवान को देता है। वो सोचता है कि किसी जरूरतमंद को देने से धन बरबाद होता है।
*जून 2009 मे द हिंदू ने कर्नाटक मंत्री जी जनार्दन रेड्डी द्वारा स्वर्ण और हीरो के 45 करोड मूल्य के आभूषण तिरुपति को चढाने की खबर छापी थी। भारत के मंदिर इतना ज्यादा धन प्राप्त कर लेते हैं कि वो ये भी नही जानते कि इसका करे क्या। अरबो की सम्पत्ति मंदिरो मे व्यर्थ पडी है।*
*जब यूरोपियन इंडिया आये तो उन्होने यहाँ स्कूल बनवाये। जब भारतीय यूरोप और अमेरिका जाते हैं तो वो वहाँ मंदिर बनाते हैं।*
*भारतीयो को लगता है कि अगर भगवान कुछ देने के लिये धन चाहते हैं तो फिर वही काम करने मे कुछ कुछ गलत नही है। इसीलिये भारतीय इतनी आसानी से भ्रष्ट बन जाते हैं।*
*भारतीय कल्चर इसीलिये इस तरह के व्यवहार को आसानी से आत्मसात कर लेती है, क्योंकि*
1 नैतिक तौर पर इसमे कोई नैतिक दाग नही आता। एक अति भ्रष्ट नेता जयललिता दुबारा सत्ता मे आ जाती है, जो आप पश्चिमी देशो मे सोच भी नही सकते ।
2 भारतीयो की भ्रष्टाचार के प्रति संशयात्मक स्थिति इतिहास मे स्पष्ट है। भारतीय इतिहास बताता है कि कई शहर और राजधानियो को रक्षको को गेट खोलने के लिये और कमांडरो को सरेंडर करने के लिये घूस देकर जीता गया। ये सिर्फ भारत मे है
भारतीयो के भ्रष्ट चरित्र का परिणाम है कि भारतीय उपमहाद्वीप मे बेहद सीमित युद्ध हुये। ये चकित करने वाला है कि भारतीयो ने प्राचीन यूनान और माडर्न यूरोप की तुलना मे कितने कम युद्ध लडे। नादिरशाह का तुर्को से युद्ध तो बेहद तीव्र और अंतिम सांस तक लडा गया था। भारत मे तो युद्ध की जरूरत ही नही थी, घूस देना ही ही सेना को रास्ते से हटाने के लिये काफी था। कोई भी आक्रमणकारी जो पैसे खर्च करना चाहे भारतीय राजा को, चाहे उसके सेना मे लाखो सैनिक हो, हटा सकता था।
प्लासी के युद्ध मे भी भारतीय सैनिको ने मुश्किल से कोई मुकाबला किया। क्लाइव ने मीर जाफर को पैसे दिये और पूरी बंगाल सेना 3000 मे सिमट गई। भारतीय किलो को जीतने मे हमेशा पैसो के लेनदेन का प्रयोग हुआ। गोलकुंडा का किला 1687 मे पीछे का गुप्त द्वार खुलवाकर जीता गया। मुगलो ने मराठो और राजपूतो को मूलतः रिश्वत से जीता श्रीनगर के राजा ने दारा के पुत्र सुलेमान को औरंगजेब को पैसे के बदले सौंप दिया। ऐसे कई केसेज हैं जहाँ भारतीयो ने सिर्फ रिश्वत के लिये बडे पैमाने पर गद्दारी की।
सवाल है कि भारतीयो मे सौदेबाजी का ऐसा कल्चर क्यो है जबकि जहाँ तमाम सभ्य देशो मे ये सौदेबाजी का कल्चर नही है
3- *भारतीय इस सिद्धांत मे विश्वास नही करते कि यदि वो सब नैतिक रूप से व्यवहार करेंगे तो सभी तरक्की करेंगे क्योंकि उनका “विश्वास/धर्म” ये शिक्षा नही देता। उनका कास्ट सिस्टम उन्हे बांटता है। वो ये हरगिज नही मानते कि हर इंसान समान है। इसकी वजह से वो आपस मे बंटे और दूसरे धर्मो मे भी गये। कई हिंदुओ ने अपना अलग धर्म चलाया जैसे सिख, जैन बुद्ध, और कई लोग इसाई और इस्लाम अपनाये। परिणामतः भारतीय एक दूसरे पर विश्वास नही करते। भारत मे कोई भारतीय नही है, वो हिंदू ईसाई मुस्लिम आदि हैं। भारतीय भूल चुके हैं कि 1400 साल पहले वो एक ही धर्म के थे। इस बंटवारे ने एक बीमार कल्चर को जन्म दिया। ये असमानता एक भ्रष्ट समाज मे परिणित हुई, जिसमे हर भारतीय दूसरे भारतीय के विरुद्ध है, सिवाय भगवान के जो उनके विश्वास मे खुद रिश्वतखोर है।*
लेखक-ब्रायन,
गाडजोन न्यूजीलैंड
http://www.madhyamarg.com/mudde/article-of-brian-on-corruption/
👀👀सम्राट अशोक ने अपने राज्य में पशु हत्या पर पाबन्दी लगा दी थी, जिसके कारन ब्राह्मणों की रोजगार योजना बंद हो गई थी, उसके बाद सम्राट अशोक ने तीसरी धम्म संगती में ६०,००० ब्राह्मणों को बुद्ध धम्म से निकाल बाहर किया था, तो ब्राह्मण १४० सालों तक गरीबी रेखा के नीचे का जीवन जी रहे थे, उस वक़्त ब्राह्मण आर्थिक दुर्बल घटक बनके जी रहे थे, ब्राह्मणों का वर्चस्व और उनकी परंपरा खत्म हो गई थी, उसे वापस लाने के लिए ब्राह्मणों के पास बौद्ध धम्म के राज्य के विरोध में युद्ध करना यही एक मात्र विकल्प रह गया था, ब्राह्मणों ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस लाने के लिए
*👇👇 अखण्ड भारत में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में अखण्ड भारत के निर्माता चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक महान के पौत्र , मौर्य वंश के 10 वें न्यायप्रिय सम्राट राजा बृहद्रथ मौर्य की हत्या धोखे से उन्हीं के ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग के नेतृत्व में ईसा.पूर्व. १८५ में रक्त रंजिस साजिश के तहत प्रतिक्रांति की और खुद को मगध का राजा घोषित कर लिया था ।*
और इस प्रकार ब्राह्मणशाही का विजय हुआ।
👆🏻 *उसने राजा बनने पर पाटलिपुत्र से श्यालकोट तक सभी बौद्ध विहारों को ध्वस्त करवा दिया था तथा अनेक बौद्ध भिक्षुओ का खुलेआम कत्लेआम किया था। पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों व यहाँ की जनता पर बहुत अत्याचार करता था और ताकत के बल पर उनसे ब्राह्मणों द्वारा रचित मनुस्मृति अनुसार वर्ण (हिन्दू) धर्म कबूल करवाता था*।
👆🏻 *उत्तर-पश्चिम क्षेत्र पर यूनानी राजा मिलिंद का अधिकार था। राजा मिलिंद बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। जैसे ही राजा मिलिंद को पता चला कि पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों पर अत्याचार कर रहा है तो उसने पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। पाटलिपुत्र की जनता ने भी पुष्यमित्र शुंग के विरुद्ध विद्रोह खड़ा कर दिया, इसके बाद पुष्यमित्र शुंग जान बचाकर भागा और उज्जैनी में जैन धर्म के अनुयायियों की शरण ली*।
*जैसे ही इस घटना के बारे में कलिंग के राजा खारवेल को पता चला तो उसने अपनी स्वतंत्रता घोषित करके पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया*। *पाटलिपुत्र से यूनानी राजा मिलिंद को उत्तर पश्चिम की ओर धकेल दिया*।
👆🏻 *इसके बाद ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग राम ने अपने समर्थको के साथ मिलकर पाटलिपुत्र और श्यालकोट के मध्य क्षेत्र पर अधिकार किया और अपनी राजधानी साकेत को बनाया। पुष्यमित्र शुंग ने इसका नाम बदलकर अयोध्या कर दिया। अयोध्या अर्थात-बिना युद्ध के बनायीं गयी राजधानी*...
👆🏻 *राजधानी बनाने के बाद पुष्यमित्र शुंग राम ने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति, बौद्ध भिक्षुओं का सर (सिर) काट कर लायेगा, उसे 100 सोने की मुद्राएँ इनाम में दी जायेंगी। इस तरह सोने के सिक्कों के लालच में पूरे देश में बौद्ध भिक्षुओ का कत्लेआम हुआ। राजधानी में बौद्ध भिक्षुओ के सर आने लगे । इसके बाद कुछ चालक व्यक्ति अपने लाये सर को चुरा लेते थे और उसी सर को दुबारा राजा को दिखाकर स्वर्ण मुद्राए ले लेते थे। राजा को पता चला कि लोग ऐसा धोखा भी कर रहे है तो राजा ने एक बड़ा पत्थर रखवाया और राजा, बौद्ध भिक्षु का सर देखकर उस पत्थर पर मरवाकर उसका चेहरा बिगाड़ देता था । इसके बाद बौद्ध भिक्षु के सर को घाघरा नदी में फेंकवा दता था*।
*राजधानी अयोध्या में बौद्ध भिक्षुओ के इतने सर आ गये कि कटे हुये सरों से युक्त नदी का नाम सरयुक्त अर्थात वर्तमान में अपभ्रंश "सरयू" हो गया*।
👆🏻 *इसी "सरयू" नदी के तट पर पुष्यमित्र शुंग के राजकवि वाल्मीकि ने "रामायण" लिखी थी। जिसमें राम के रूप में पुष्यमित्र शुंग और "रावण" के रूप में मौर्य सम्राटों का वर्णन करते हुए उसकी राजधानी अयोध्या का गुणगान किया था और राजा से बहुत अधिक पुरस्कार पाया था। इतना ही नहीं, रामायण, महाभारत, स्मृतियां आदि बहुत से काल्पनिक ब्राह्मण धर्मग्रन्थों की रचना भी पुष्यमित्र शुंग की इसी अयोध्या में "सरयू" नदी के किनारे हुई*।
👆🏻 *बौद्ध भिक्षुओ के कत्लेआम के कारण सारे बौद्ध विहार खाली हो गए। तब आर्य ब्राह्मणों ने सोचा' कि इन बौद्ध विहारों का क्या करे की आने वाली पीढ़ियों को कभी पता ही नही लगे कि बीते वर्षो में यह क्या थे*
*तब उन्होंने इन सब बौद्ध विहारों को मन्दिरो में बदल दिया और इसमे अपने पूर्वजो व काल्पनिक पात्रों, देवी देवताओं को भगवान बनाकर स्थापित कर दिया और पूजा के नाम पर यह दुकाने खोल दी*।
साथियों, इसके बाद ब्राह्मणों ने मूलनिवासियो से बदला लेने के लिए षडयन्त्र पूर्वक (रंग-भेद) वर्णव्यवस्था का निर्माण किया गया, वर्णव्यवस्था के तहत, जाती व्यवस्था में ६००० जातीया बनाई, और उसमे ७२००० उप जातीया बनाई। और इसे ब्राह्मणों ने इश्वर निर्मित बताया ताकि इसे सहजता से स्वीकार कर ले। मूलनिवासियो को इतने छोटे-छोटे जातियों के टुकड़ो में बाँटा ताकि मूलनिवासी ब्राह्मणों से फिर से युद्ध न कर सके और ब्राह्मणों पर फिर से विजय प्राप्त न कर सके।
👆🏻 *ध्यान रहे उक्त बृहद्रथ मौर्य की हत्या से पूर्व भारत में मन्दिर शब्द ही नही था, ना ही इस तरह की संस्कृती थी। वर्तमान में ब्राह्मण धर्म में पत्थर पर मारकर नारियल फोड़ने की परंपरा है ये परम्परा पुष्यमित्र शुंग के बौद्ध भिक्षु के सर को पत्थर पर मारने का प्रतीक है*।
👆🏻 *पेरियार रामास्वामी नायकर ने भी " सच्ची रामायण" पुस्तक लिखी जिसका इलाहबाद हाई कोर्ट केस नम्बर* *412/1970 में वर्ष 1970-1971 व् सुप्रीम कोर्ट 1971 -1976 के बीच में केस अपील नम्बर 291/1971 चला* ।
*जिसमे सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस पी एन भगवती जस्टिस वी आर कृषणा अय्यर, जस्टिस मुतजा फाजिल अली ने दिनाक 16.9.1976 को निर्णय दिया की सच्ची रामायण पुस्तक सही है और इसके सारे तथ्य सही है। सच्ची रामायण पुस्तक यह सिद्ध करती है कि "रामायण" नामक देश में जितने भी ग्रन्थ है वे सभी काल्पनिक है और इनका पुरातात्विक कोई आधार नही है*।
👆🏻 *अथार्त् 100% फर्जी व काल्पनिक है*।
👆🏻 *एक ऐतिहासिक सत्य जो किसी किसी को पता है...*
जागो मुलनिवासियों, बहुजनों, अपने मुल इतिहास को जानों, पाखण्डि ब्राह्मणवादियों के बहकावे में न आयें। अन्यथा वो दिन जब हमें पानी पीने, तन में कपड़ा पहनने का, पढ़ने-लिखने, अधिकार नहीं था, एक जानवरों से भी बत्तर जिंदगी जीने पर मजबूर किया करते थे, ऐसा दिन आने में दूर नहीं। को दूसरे बाबासाहेब हमें बचाने नहीं आयेंगें।
👆🏻 *जागरूक रहें, जागरूक करें और अधिक से अधिक अधिक शेयर करें...*
भारत का इतिहास
▶ इंडस वैली ( सिन्धु घाटी ) की सभ्यता ( 3200 BC से पहले )
आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व ( 3200 BC से पहले ) भारत मे इंडस वैली ( सिन्धु घाटी ) की सभ्यता का इतिहास मिलता हैं और यह सभ्यता दुनिया के अग्रणी सभ्यताओं मे मानी जाती थी । यह सभ्यता महान नागवंशियों और द्रविड़ों द्वारा स्थापित की गयी थी जिनको आज एससी, एसटी, ओबीसी और आदिवासी कहा जाता हैं, यह लोग भारत के मूलनिवासी हैं । इंडस वैली ( सिन्धु घाटी ) की सभ्यता एक नगर सभ्यता थी जो कि आधुनिक नगरों की तरह पूर्णतः योजनाबद्ध एवं वैज्ञानिक ढंग से बसी हुयी थी ।
▶ विदेशी आर्य आक्रमण ( 3100BC-1500 )
विदेशी आर्य ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जोकि असभ्य, जंगली एवं ख़ानाबदोश थे और यूरेशिया से देश निकाले की सजा के द्वारा निकले गए लोग थे । इन युरेशियनों के आगमन से पूर्व हमारे समाज के लोग प्रजातान्त्रिक एवं स्वतंत्र सोच के थे एवं उनमे कोई भी जाति व्यवस्था नहीं थी । सब लोग मिलकर प्रेम एवं भाईचारे के साथ मिलजुल कर रहते थे । ऐसा इतिहास इंडस वैली ( सिन्धु घाटी ) की सभ्यता का मिलता हैं । फिर विदेशी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य लगभग 3100 ईसा पूर्व भारत आये और उनका यहाँ के मूलनिवासीयों के साथ संघर्ष हुआ ।
▶ वैदिक काल ( 1500-600BC )
युरेशियन लोग ( ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ) साम, दाम, दंड एवं भेद की नीत से किसी तरह संघर्ष में जीत गए । परन्तु युरेशियनों की समस्या थी कि बहुसंख्यक मूलनिवासी लोगों को हमेशा के लिए नियंत्रित कैसे रखा जाए । इसलिए उन्होंने मूलनिवासीयों को पहले वात्य-स्तोम ( धर्म परिवर्तन ) करवाके अपने धर्म में जोड़ा । फिर युरेशियनों ने मूलनिवासीयों को नीच साबित करने के लिए वर्ण व्यवस्था स्थापित की, जिसमें मूलनिवासीयों को चौथे वर्ण शूद्र में रख दिया गया । समय के साथ यूरेशियन ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों ने मूलनिवासियों को वर्ण पर आधारित कानून बना कर शिक्षा ( ज्ञान बल ), अस्त्र-शस्त्र रखने ( शस्त्र बल ), और संपत्ति ( धन बल ) के अधिकार से वंचित कर दिया गया । इस नियम को ऋग्वेद में डालकर और ऋग्वेद को ईश्वरीकृत घोषित कर दिया और इस तरह बहुसंख्यक आबादी को ( ज्ञान बल ), अस्त्र-शस्त्र रखने ( शस्त्र बल ), और संपत्ति रखने ( धन बल ), के अधिकार से वंचित कर मानसिक रूप से गुलाम और लाचार बना दिया गया । इसे वैदिक संस्कृति, आश्रम संस्कृति या ब्राह्मण संस्कृति कहते हैं जो श्रेणीबद्ध असमानता का सिद्धांत पर समाज को चारो वर्णो मे विभक्त करती हैं ।
▶ तथागत गौतम बुद्ध ( श्रमण संस्कृति का उत्थान ) 563 BC-483BC...
तथागत बुद्ध ने वैदिक संस्कृति के विरुद्ध आंदोलन किया और अनित्य, अनात्म एवं दुख का दर्शन देकर वेद के “ईश्वरी कृत” होने और “आत्मा” के सिधान्त को चुनौती दी । उन्होंने वैदिक संस्कृत के “जन्मना सिधान्त” को नकार “कर्मणा सिधान्त” का प्रतिपादन किया और वर्ण व्यवस्था के सिधान्त को नकार दिया और समतावादी और मानवतावादी दर्शन का प्रचार किया । वैदिक संस्कृति के यज्ञों मे पशुओं की बली दी जाती थी । इस तरह के कर्म कांड को भी तथागत गौतम बुध्द ने नकार दिया । तथागत गौतम बुद्ध के मानवीय शिक्षाओं के प्रसार के बाद ब्राह्मणों का वैदिक धर्म बुरी तरह हीन माना जाने लगा था । तथागत गौतम बुध्द ने अपने पुरे जीवन को इस दर्शन को स्थापित करने में लगाया और पुनः श्रमण संस्कृत को स्थापित किया । जो कि मूलनिवासीयों की संस्कृति थी । तब भारतीय इतिहास का सम्राट अशोक का स्वर्ण काल आया ।
▶ प्रथम बौद्ध संगीति’ का आयोजन ( 483BC )....
‘प्रथम बौद्ध संगीति’ का आयोजन 483 ई.पू. में राजगृह ( आधुनिक राजगिरि ), बिहार की ‘सप्तपर्णि गुफ़ा’ में किया गया था । तथागत गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तुरंत बाद ही इस संगीति का आयोजन हुआ था । इसमें बौद्ध स्थविरों ( थेरों ) ने भाग लिया और तथागत बुद्ध के प्रमुख शिष्य महाकाश्यप ने उसकी अध्यक्षता की । चूँकि तथागत बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं को लिपिबद्ध नहीं किया था, इसीलिए प्रथम संगीति में उनके तीन शिष्यों - ‘महापण्डित महाकाश्यप’, सबसे वयोवृद्ध ‘उपालि’ तथा सबसे प्रिय शिष्य ‘आनन्द’ ने उनकी शिक्षाओं का संगायन किया ।
▶ द्वितीय बौद्ध संगीति ( 383 BC )....
एक शताब्दी बाद बुद्धोपदिष्ट कुछ विनय-नियमों के सम्बन्ध में भिक्षुओं में विवाद उत्पन्न हो जाने पर वैशाली में दूसरी संगीति हुई । इस संगीति में विनय-नियमों को कठोर बनाया गया और जो बुद्धोपदिष्ट शिक्षाएँ अलिखित रूप में प्रचलित थीं, उनमें संशोधन किया गया ।
▶ तृतीय बौद्ध संगीति ( 249 BC )......
बौद्ध अनुश्रुतियों के अनुसार बुद्ध के परिनिर्वाण के 236 वर्ष बाद सम्राट अशोक के संरक्षण में तृतीय संगीति 249 ईसा पूर्व में पाटलीपुत्र में हुई थी । इसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ ‘कथावत्थु’ के रचयिता तिस्स मोग्गलीपुत्र ने की थी । विश्वास किया जाता हैं कि इस संगीति में त्रिपिटक को अन्तिम रूप प्रदान किया गया । यदि इसे सही मान लिया जाए कि अशोक ने अपना सारनाथ वाला स्तम्भ लेख इस संगीति के बाद उत्कीर्ण कराया था, तब यह मानना उचित होगा, कि इस संगीति के निर्णयों को इतने अधिक बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियों ने स्वीकार नहीं किया कि अशोक को धमकी देनी पड़ी कि संघ में फूट डालने वालों को कड़ा दण्ड दिया जायेगा ।
▶ चतुर्थ बौद्ध संगीति....
चतुर्थ और अंतिम बौद्ध संगीति कुषाण सम्राट कनिष्क के शासनकाल ( लगभग 120-144 ई. ) में हुई । यह संगीति कश्मीर के ‘कुण्डल वन’ में आयोजित की गई थी । इस संगीति के अध्यक्ष वसुमित्र एवं उपाध्यक्ष अश्वघोष थे । अश्वघोष कनिष्क का राजकवि था । इसी संगीति में बौद्ध धम्म दो शाखाओं में एक हीनयान और दुसरा महायान में विभाजित हो गया ।
हुएनसांग के मतानुसार सम्राट कनिष्क की संरक्षता तथा आदेशानुसार इस संगीति में 500 बौद्ध विद्वानों ने भाग लिया और त्रिपिटक का पुन: संकलन व संस्करण हुआ । इसके समय से बौद्ध ग्रंथों के लिए पाली भाषा का प्रयोग हुआ और महायान बौद्ध संप्रदाय का भी प्रादुर्भाव हुआ । इस संगीति में नागार्जुन भी शामिल हुए थे । इसी संगीति में तीनों पिटकों पर टीकायें लिखी गईं, जिनको ‘महाविभाषा’ नाम की पुस्तक में संकलित किया गया । इस पुस्तक को बौद्ध धम्म का ‘विश्वकोष’ भी कहा जाता हैं ।
सम्राट अशोक प्राचीन भारत के मौर्य सम्राट बिंदुसार का पुत्र था और चंद्रगुप्त का पौत्र था । जिसका जन्म लगभग 304 ईसा पूर्व में चैत्र शुक्ल अष्टमी को माना जाता हैं । 272 ईसा पूर्व अशोक को राजगद्दी मिली और 232 ई. पूर्व तक उसने शासन किया । अशोक ने 40 वर्ष राज्य किया । चंद्रगुप्त की सैनिक प्रसार की नीति ने वह स्थायी सफलता नहीं प्राप्त की, जो अशोक की धम्म विजय ने की थी । कलिंग के युद्ध के बाद अशोक ने व्यक्तिगत रूप से बौद्ध धम्म अपना लिया । अशोक के शासनकाल में ही पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता मोगाली पुत्र तिष्या ने की । इसी में अभिधम्मपिटक की रचना हुई और बौद्ध भिक्षु विभिन्न देशों में भेजे गये जिनमें अशोक के पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा गया । बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के फ़लस्वरुप अशोक द्वारा यज्ञों पर रोक लगा दिये जाने के बाद युरेशियन ब्राह्मणों ने “पुरोहित का कर्म त्यागकर” सैनिक वृत्ति को अपना लिया था । पुष्यमित्र शुंग नाम के एक ब्राह्मण ने घुसपैठ करके मौर्य वंश के 10 वे उत्तराधिकारी “बृहद्रथ” का सेनापति बनकर एक दिन सेना का निरिक्षण करते समय धोखे से उसका कत्ल कर दिया । उसने ‘सेनानी’ की उपाधि धारण की थी । दीर्घकाल तक मौर्यों की सेना का सेनापति होने के कारण पुष्यमित्र शुंग इसी रुप में विख्यात था तथा राजा बन जाने के बाद भी उसने अपनी यह उपाधि बनाये रखी । शुंग काल में संस्कृत भाषा का पुनरुत्थान हुआ तथा मनुस्मृति के वर्तमान स्वरुप की रचना इसी समय में हुई । वैदिक धर्म एवं आदेशों की जो अशोक के शासनकाल में अपेक्षित हो गये थे को पुनः कठोरता से लागू किया । इसी कारण इसका काल वैदिक प्रतिक्रांति अथवा वैदिक पुनर्जागरण का काल कहलाता हैं । पुष्यमित्र शुंग ने घोषणा किया जो बुद्धिस्ट भिख्खु ( Monk ) का सिर लाकर देगा वो उसे 100 सोने की सिक्के देगा । बौध्दों का बहुतही कत्ले आम हुआ ।
श्रमण संस्कृत के मानने वाले चार वर्ग मे विभक्त हो गए —
1 ) जो उनकी अधीनता स्वीकार कर लिए वो सछूत शूद्र बने अर्थात आज का ओबीसी ( OBC ) !
2 ) जो लड़ाई से दूर जंगल और पहाड़ मे चले गए अर्थात आज का अनुसूचित जन जाति ( ST ) !
3 ) जो ब्राह्मणवाद के सामने नहीं झुका वो है आज का अछूत अतिशूद्र अर्थात अनुसूचित जाति SC !
4 ) जो आज भी ब्राह्मणवाद के आगे नहीं झुके हैं और जंगलों में रहते हैं अर्थात आदिवासी !
मनुस्मृति की रचना के बाद ब्राह्मणों ने एक बहुत बड़ा जातिप्रथा नाम का षड्यंत्र रचा और फिर इस बार मूलनिवासीयों ( SC, ST, OBC ) को 6743 जातियों, टुकडों में तोड़ कर जन बल से भी वंचित कर दिया गया । ऐसा तंत्र तैयार किया गया कि इसको तोड़ना अत्यंत कठिन रहें । और उनमे श्रेणीबध्द असमानता का सिद्धांत अर्थात जातिव्यवस्था का सिद्धांत, लागु किया और उनको धर्म, वेदों एवं शास्त्रों के माध्यम से मानसिक रूप से गुलाम बनाया ।
उसके बाद समय समय पर ब्राह्मणों ने बहुत से धर्म शास्त्रों की रचना करके जो अंधश्रद्धा और अन्धविश्वास पर आधारित लिखें हैं और उनको मूलनिवासीयों पर जबरदस्ती धर्म के नाम पर थोप दिया गया हैं । इस प्रकार हम देखते है कि धर्म ही मूलनिवासीयों की गुलामी का मुख्य आधार हैं यही वो षड्यंत्र हैं जिसके कारण आज भी मूलनिवासी बहुजन समाज मानसिक तौर से गुलाम हैं । ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य आज भी इसी षड्यंत्र के माध्यम से देश पर राज कर रहे हैं ।
इतिहास में हजारों मूलनिवासी महापुरुष हुए जिन्होंने मानवता पर आधारित मानव जीवन की शिक्षा दी, लेकिन किसी भी महापुरुष ने ना तो कोई धर्म बनाया और ना ही किसी धर्म की कभी बात की । हमारे मूलनिवासी महापुरुष जानते थे कि धर्म का सही अर्थ सिर्फ शोषण हैं । रविदास, नानक, कबीर, ज्योतीराव फुले, नारायण गुरु, पेरियार, सावित्री बाई फुले और बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़कर ने कोई भी धर्म नहीं बनाया । मूलनिवासी महापुरुष जानते थे कि अगर हम कोई धर्म बनाते हैं तो यह वही बात हो जायेगी कि लोगों को एक अंधे कुए से निकल कर दूसरे अंधे कुए में धकेल देना । कोई भी महापुरुष मूलनिवासी लोगों को अंधश्रध्दा और अविश्वास के कुए में नहीं धकेलना चाहता था । बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी ने अपने जीवन काल में धर्म का त्याग करके धम्म को अपनाया क्योकि बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी जानते थे कि आडम्बरों, पाखंडों और ढोंगों पर आधारित धर्मों से कभी भी मूलनिवासीयों का भला नहीं हो सकता । इसीलिए बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी ने धर्म छोड़ कर बुद्धि और तर्क पर आधारित बौध्द धम्म को अपना कर सन्देश दिया ।
सभी मूलनिवासीयों से प्रार्थना हैं कि धर्म का त्याग करे और बौद्ध धम्म को अपनाये । शायद कुछ लोग यहाँ तर्क भी करेंगे कि हम बौध्द धम्म को ही क्यों अपनाये तो उन लोगों से प्रार्थना हैं कि फालतू में सोच कर या तर्क करके अपना समय और उर्जा खर्च ना करें । आप सभी को ज्ञात ही हैं कि जब तक हम ब्राह्मण निर्मित धर्म में रहेंगे हम शुद्र, नीच आदि कहलाते रहेंगे । आप सभी धर्म को छोड़ दे और मानवीय मूल्यों के आधार पर जीवन जीना शुरू कर दे । जब आप सभी लोग धर्म को त्याग कर मानवीय मूल्यों पर आधारित जीवन जीना शुरू करेंगे तो निश्चय से ही देश के मूलनिवासीयों का भला ही होगा ।
जागों मूलनिवासी बहुजनों जागों...!
1918 में पहली बार इस्तेमाल हुआ हिन्दू धर्म शब्द , ब्राह्मण नहीं इस देश का निवासी❗
तुलसीदास ने रामचरित मानस मुगलकाल में लिखी , पर मुगलों की बुराई मे एक भी चौपाई नही लिखी ?❗
क्यों ?❗
क्या उस समय हिंदू मुसलमान का मामला नहीं था ? हां उस समय हिंदू मुसलमान का मामला नहीं था❗
क्योंकि उस समय हिंदू नाम का कोई धर्म ही नहीं था
तो फिर उस समय कौनसा धर्म था ?❗
उस समय ब्राह्मण धर्म था और ब्राह्मण मुगलो के साथ मिलजुल कर यहाँ तक कि आपस में रिश्तेदार बनकर भारत पर राज कर रहे थे उस समय वर्ण व्यवस्था थी ❗वर्ण व्यवस्था में शुद्र अधिकार वंचित था कार्य सिर्फ सेवा करना था मतलब
सिधे शब्दों में गुलाम था
तो फिर हिंदू नाम का धर्म कब से आया ?❗
ब्राह्मण धर्म का नया नाम हिंदू तब आया जब वयस्क मताधिकार का मामला आया ,❗ जब इंग्लैंड में वयस्क मताधिकार का कानून लागू हुआ और इसको भारत में भी लागू करने की बात हुई ,❗
इसी पर तिलक ने बोला “ क्या ये तेली तम्बोली संसद में जा कर तेल बेचेगा क्या ?? इसलिए स्वराज इनका नहीं मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है , हिन्दू शब्द का प्रयोग पहली बार १९१८ में इस्तेमाल किया गया
तो ब्राह्मण धर्म खतरे में पड गया क्यों ?❗
क्योंकि भारत में उस समय अँगरेजों का राज था वहाँ वयस्क मताधिकार लागू हुआ तो फिर भारत में तो होना ही था❗
ब्राह्मण 3.5% है
अल्पसंख्यक है
राज कैसे करेगा ?❗
ब्राह्मण धर्म के सारे ग्रन्थ शुद्रों के विरोध में मतलब हक अधिकार छिन ने के लिए शुद्रों कि
मानसिकता बनाने के लिए षड्यंत्र के रूप में आज का ओबीसी ही ब्राह्मण धर्म का शुद्र है❗
SC (अनुसूचित जाति)) के लोगों को तो अछुत घोषित कर वर्ण व्यवस्था से बाहर रखा क्योंकि उन्होंने ही युरेशियन आर्यों से सबसे ज्यादा संघर्ष किया ,❗
ST (अनुसूचित जनजाति)के लोग तो जंगलों में थे उनसे ब्राह्मण धर्म को क्या खतरा उनको तो युरेशियन आर्यों के सिंधु घाटी सभ्यता से संघर्ष के समय से ही वन में जाने रहने को मजबूर कर दिया उनको वनवासी कह दिया❗
इसलिए ब्राह्मणों ने षड्यंत्र से हिंदू शब्द का इस्तेमाल किया जिससे सबको समानता का अहसास हो❗
परन्तू ब्राह्मणों ने समाज में व्यवस्था ब्राह्मण धर्म कि ही रखी उसमें जातियां रखी जातियां ब्राह्मण धर्म का प्राण तत्व है इसके बिना ब्राह्मण का वर्चस्व खत्म है❗
इसलिए उस समय हिंदू मुसलमान कि समस्या नहीं थी ब्राह्मण धर्म को जिंदा रखने के लिए वर्ण व्यवस्था थी
उसमें शुद्रों को गुलाम रखना था❗
इसलिए
तुलसीदास जी ने मुसलमानों के विरोध में नहीं शुद्रों के विरोध में गुलाम बनाए रखने के लिए लिखा❗
ढोल गवार शुद्र पशु नारी
सकल ताडन के अधिकारी
अब जब मुगल चले गये❗
देश में SC/ST/ OBC के लोग ब्राह्मण धर्म के विरोध में ब्राह्मण धर्म के अन्याय अत्याचार से दुखी होकर इस्लाम अपना लिया तो ब्राह्मण अगर मुसलमानों के विरोध में जाकर षड्यंत्र नहीं करेगा तो SC/ST/OBC के लोगों को प्रतिक्रिया से हिंदू बना कर
बहुसंख्यक लोगों का हिंदू के नाम पर ध्रूवीकरण करके अल्पसंख्यक ब्राह्मण बहुसंख्यक बनकर राज कैसे करेगा❗
इसलिए आज हिंदू मुसलमान कि समस्या देश में खडी कि गई तथा कथित हिंदू( SC ST OBC) मुसलमान लडे तथाकथित हिंदू (SC ST OBC )मरे या मुस्लिम दोनों तरफ मूलनिवासी का मरना तय है❗
क्या कभी सुना है की किसी दंगे में कोई ब्राह्मण मरा है जहर घोलनें वाले कभी जहर नहीं पिते हैं❗
इसलिए, युरेशियन सेफ का सेफ कोई दर्द नहीं कोई फर्क नहीं आराम से टीवी में डिबेट को तैयार❗
दुनिया के भ्रष्टाचार मुक्त देशों में शीर्ष पर गिने जाने वाले न्यूजीलैंण्ड के एक लेखक ब्रायन ने भारत में व्यापक रूप से फैंलें भष्टाचार पर एक लेख लिखा है। ये लेख सोशल मीडि़या पर काफी वायरल हो रहा है। लेख की लोकप्रियता और प्रभाव को देखते हुए विनोद कुमार जी ने इसे हिन्दी भाषीय पाठ़कों के लिए अनुवादित किया है। –
*न्यूजीलैंड से एक बेहद तल्ख आर्टिकिल।*
*भारतीय लोग होब्स विचारधारा वाले है (सिर्फ अनियंत्रित असभ्य स्वार्थ की संस्कृति वाले)*
भारत मे भ्रष्टाचार का एक कल्चरल पहलू है। भारतीय भ्रष्टाचार मे बिलकुल असहज नही होते, भ्रष्टाचार यहाँ बेहद व्यापक है। भारतीय भ्रष्ट व्यक्ति का विरोध करने के बजाय उसे सहन करते है। कोई भी नस्ल इतनी जन्मजात भ्रष्ट नही होती
*ये जानने के लिये कि भारतीय इतने भ्रष्ट क्यो होते हैं उनके जीवनपद्धति और परम्पराये देखिये।*
भारत मे धर्म लेनेदेन वाले व्यवसाय जैसा है। भारतीय लोग भगवान को भी पैसा देते हैं इस उम्मीद मे कि वो बदले मे दूसरे के तुलना मे इन्हे वरीयता देकर फल देंगे। ये तर्क इस बात को दिमाग मे बिठाते हैं कि अयोग्य लोग को इच्छित चीज पाने के लिये कुछ देना पडता है। मंदिर चहारदीवारी के बाहर हम इसी लेनदेन को भ्रष्टाचार कहते हैं। धनी भारतीय कैश के बजाय स्वर्ण और अन्य आभूषण आदि देता है। वो अपने गिफ्ट गरीब को नही देता, भगवान को देता है। वो सोचता है कि किसी जरूरतमंद को देने से धन बरबाद होता है।
*जून 2009 मे द हिंदू ने कर्नाटक मंत्री जी जनार्दन रेड्डी द्वारा स्वर्ण और हीरो के 45 करोड मूल्य के आभूषण तिरुपति को चढाने की खबर छापी थी। भारत के मंदिर इतना ज्यादा धन प्राप्त कर लेते हैं कि वो ये भी नही जानते कि इसका करे क्या। अरबो की सम्पत्ति मंदिरो मे व्यर्थ पडी है।*
*जब यूरोपियन इंडिया आये तो उन्होने यहाँ स्कूल बनवाये। जब भारतीय यूरोप और अमेरिका जाते हैं तो वो वहाँ मंदिर बनाते हैं।*
*भारतीयो को लगता है कि अगर भगवान कुछ देने के लिये धन चाहते हैं तो फिर वही काम करने मे कुछ कुछ गलत नही है। इसीलिये भारतीय इतनी आसानी से भ्रष्ट बन जाते हैं।*
*भारतीय कल्चर इसीलिये इस तरह के व्यवहार को आसानी से आत्मसात कर लेती है, क्योंकि*
1 नैतिक तौर पर इसमे कोई नैतिक दाग नही आता। एक अति भ्रष्ट नेता जयललिता दुबारा सत्ता मे आ जाती है, जो आप पश्चिमी देशो मे सोच भी नही सकते ।
2 भारतीयो की भ्रष्टाचार के प्रति संशयात्मक स्थिति इतिहास मे स्पष्ट है। भारतीय इतिहास बताता है कि कई शहर और राजधानियो को रक्षको को गेट खोलने के लिये और कमांडरो को सरेंडर करने के लिये घूस देकर जीता गया। ये सिर्फ भारत मे है
भारतीयो के भ्रष्ट चरित्र का परिणाम है कि भारतीय उपमहाद्वीप मे बेहद सीमित युद्ध हुये। ये चकित करने वाला है कि भारतीयो ने प्राचीन यूनान और माडर्न यूरोप की तुलना मे कितने कम युद्ध लडे। नादिरशाह का तुर्को से युद्ध तो बेहद तीव्र और अंतिम सांस तक लडा गया था। भारत मे तो युद्ध की जरूरत ही नही थी, घूस देना ही ही सेना को रास्ते से हटाने के लिये काफी था। कोई भी आक्रमणकारी जो पैसे खर्च करना चाहे भारतीय राजा को, चाहे उसके सेना मे लाखो सैनिक हो, हटा सकता था।
प्लासी के युद्ध मे भी भारतीय सैनिको ने मुश्किल से कोई मुकाबला किया। क्लाइव ने मीर जाफर को पैसे दिये और पूरी बंगाल सेना 3000 मे सिमट गई। भारतीय किलो को जीतने मे हमेशा पैसो के लेनदेन का प्रयोग हुआ। गोलकुंडा का किला 1687 मे पीछे का गुप्त द्वार खुलवाकर जीता गया। मुगलो ने मराठो और राजपूतो को मूलतः रिश्वत से जीता श्रीनगर के राजा ने दारा के पुत्र सुलेमान को औरंगजेब को पैसे के बदले सौंप दिया। ऐसे कई केसेज हैं जहाँ भारतीयो ने सिर्फ रिश्वत के लिये बडे पैमाने पर गद्दारी की।
सवाल है कि भारतीयो मे सौदेबाजी का ऐसा कल्चर क्यो है जबकि जहाँ तमाम सभ्य देशो मे ये सौदेबाजी का कल्चर नही है
3- *भारतीय इस सिद्धांत मे विश्वास नही करते कि यदि वो सब नैतिक रूप से व्यवहार करेंगे तो सभी तरक्की करेंगे क्योंकि उनका “विश्वास/धर्म” ये शिक्षा नही देता। उनका कास्ट सिस्टम उन्हे बांटता है। वो ये हरगिज नही मानते कि हर इंसान समान है। इसकी वजह से वो आपस मे बंटे और दूसरे धर्मो मे भी गये। कई हिंदुओ ने अपना अलग धर्म चलाया जैसे सिख, जैन बुद्ध, और कई लोग इसाई और इस्लाम अपनाये। परिणामतः भारतीय एक दूसरे पर विश्वास नही करते। भारत मे कोई भारतीय नही है, वो हिंदू ईसाई मुस्लिम आदि हैं। भारतीय भूल चुके हैं कि 1400 साल पहले वो एक ही धर्म के थे। इस बंटवारे ने एक बीमार कल्चर को जन्म दिया। ये असमानता एक भ्रष्ट समाज मे परिणित हुई, जिसमे हर भारतीय दूसरे भारतीय के विरुद्ध है, सिवाय भगवान के जो उनके विश्वास मे खुद रिश्वतखोर है।*
लेखक-ब्रायन,
गाडजोन न्यूजीलैंड
http://www.madhyamarg.com/mudde/article-of-brian-on-corruption/
👀👀सम्राट अशोक ने अपने राज्य में पशु हत्या पर पाबन्दी लगा दी थी, जिसके कारन ब्राह्मणों की रोजगार योजना बंद हो गई थी, उसके बाद सम्राट अशोक ने तीसरी धम्म संगती में ६०,००० ब्राह्मणों को बुद्ध धम्म से निकाल बाहर किया था, तो ब्राह्मण १४० सालों तक गरीबी रेखा के नीचे का जीवन जी रहे थे, उस वक़्त ब्राह्मण आर्थिक दुर्बल घटक बनके जी रहे थे, ब्राह्मणों का वर्चस्व और उनकी परंपरा खत्म हो गई थी, उसे वापस लाने के लिए ब्राह्मणों के पास बौद्ध धम्म के राज्य के विरोध में युद्ध करना यही एक मात्र विकल्प रह गया था, ब्राह्मणों ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस लाने के लिए
*👇👇 अखण्ड भारत में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में अखण्ड भारत के निर्माता चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक महान के पौत्र , मौर्य वंश के 10 वें न्यायप्रिय सम्राट राजा बृहद्रथ मौर्य की हत्या धोखे से उन्हीं के ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग के नेतृत्व में ईसा.पूर्व. १८५ में रक्त रंजिस साजिश के तहत प्रतिक्रांति की और खुद को मगध का राजा घोषित कर लिया था ।*
और इस प्रकार ब्राह्मणशाही का विजय हुआ।
👆🏻 *उसने राजा बनने पर पाटलिपुत्र से श्यालकोट तक सभी बौद्ध विहारों को ध्वस्त करवा दिया था तथा अनेक बौद्ध भिक्षुओ का खुलेआम कत्लेआम किया था। पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों व यहाँ की जनता पर बहुत अत्याचार करता था और ताकत के बल पर उनसे ब्राह्मणों द्वारा रचित मनुस्मृति अनुसार वर्ण (हिन्दू) धर्म कबूल करवाता था*।
👆🏻 *उत्तर-पश्चिम क्षेत्र पर यूनानी राजा मिलिंद का अधिकार था। राजा मिलिंद बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। जैसे ही राजा मिलिंद को पता चला कि पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों पर अत्याचार कर रहा है तो उसने पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। पाटलिपुत्र की जनता ने भी पुष्यमित्र शुंग के विरुद्ध विद्रोह खड़ा कर दिया, इसके बाद पुष्यमित्र शुंग जान बचाकर भागा और उज्जैनी में जैन धर्म के अनुयायियों की शरण ली*।
*जैसे ही इस घटना के बारे में कलिंग के राजा खारवेल को पता चला तो उसने अपनी स्वतंत्रता घोषित करके पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया*। *पाटलिपुत्र से यूनानी राजा मिलिंद को उत्तर पश्चिम की ओर धकेल दिया*।
👆🏻 *इसके बाद ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग राम ने अपने समर्थको के साथ मिलकर पाटलिपुत्र और श्यालकोट के मध्य क्षेत्र पर अधिकार किया और अपनी राजधानी साकेत को बनाया। पुष्यमित्र शुंग ने इसका नाम बदलकर अयोध्या कर दिया। अयोध्या अर्थात-बिना युद्ध के बनायीं गयी राजधानी*...
👆🏻 *राजधानी बनाने के बाद पुष्यमित्र शुंग राम ने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति, बौद्ध भिक्षुओं का सर (सिर) काट कर लायेगा, उसे 100 सोने की मुद्राएँ इनाम में दी जायेंगी। इस तरह सोने के सिक्कों के लालच में पूरे देश में बौद्ध भिक्षुओ का कत्लेआम हुआ। राजधानी में बौद्ध भिक्षुओ के सर आने लगे । इसके बाद कुछ चालक व्यक्ति अपने लाये सर को चुरा लेते थे और उसी सर को दुबारा राजा को दिखाकर स्वर्ण मुद्राए ले लेते थे। राजा को पता चला कि लोग ऐसा धोखा भी कर रहे है तो राजा ने एक बड़ा पत्थर रखवाया और राजा, बौद्ध भिक्षु का सर देखकर उस पत्थर पर मरवाकर उसका चेहरा बिगाड़ देता था । इसके बाद बौद्ध भिक्षु के सर को घाघरा नदी में फेंकवा दता था*।
*राजधानी अयोध्या में बौद्ध भिक्षुओ के इतने सर आ गये कि कटे हुये सरों से युक्त नदी का नाम सरयुक्त अर्थात वर्तमान में अपभ्रंश "सरयू" हो गया*।
👆🏻 *इसी "सरयू" नदी के तट पर पुष्यमित्र शुंग के राजकवि वाल्मीकि ने "रामायण" लिखी थी। जिसमें राम के रूप में पुष्यमित्र शुंग और "रावण" के रूप में मौर्य सम्राटों का वर्णन करते हुए उसकी राजधानी अयोध्या का गुणगान किया था और राजा से बहुत अधिक पुरस्कार पाया था। इतना ही नहीं, रामायण, महाभारत, स्मृतियां आदि बहुत से काल्पनिक ब्राह्मण धर्मग्रन्थों की रचना भी पुष्यमित्र शुंग की इसी अयोध्या में "सरयू" नदी के किनारे हुई*।
👆🏻 *बौद्ध भिक्षुओ के कत्लेआम के कारण सारे बौद्ध विहार खाली हो गए। तब आर्य ब्राह्मणों ने सोचा' कि इन बौद्ध विहारों का क्या करे की आने वाली पीढ़ियों को कभी पता ही नही लगे कि बीते वर्षो में यह क्या थे*
*तब उन्होंने इन सब बौद्ध विहारों को मन्दिरो में बदल दिया और इसमे अपने पूर्वजो व काल्पनिक पात्रों, देवी देवताओं को भगवान बनाकर स्थापित कर दिया और पूजा के नाम पर यह दुकाने खोल दी*।
साथियों, इसके बाद ब्राह्मणों ने मूलनिवासियो से बदला लेने के लिए षडयन्त्र पूर्वक (रंग-भेद) वर्णव्यवस्था का निर्माण किया गया, वर्णव्यवस्था के तहत, जाती व्यवस्था में ६००० जातीया बनाई, और उसमे ७२००० उप जातीया बनाई। और इसे ब्राह्मणों ने इश्वर निर्मित बताया ताकि इसे सहजता से स्वीकार कर ले। मूलनिवासियो को इतने छोटे-छोटे जातियों के टुकड़ो में बाँटा ताकि मूलनिवासी ब्राह्मणों से फिर से युद्ध न कर सके और ब्राह्मणों पर फिर से विजय प्राप्त न कर सके।
👆🏻 *ध्यान रहे उक्त बृहद्रथ मौर्य की हत्या से पूर्व भारत में मन्दिर शब्द ही नही था, ना ही इस तरह की संस्कृती थी। वर्तमान में ब्राह्मण धर्म में पत्थर पर मारकर नारियल फोड़ने की परंपरा है ये परम्परा पुष्यमित्र शुंग के बौद्ध भिक्षु के सर को पत्थर पर मारने का प्रतीक है*।
👆🏻 *पेरियार रामास्वामी नायकर ने भी " सच्ची रामायण" पुस्तक लिखी जिसका इलाहबाद हाई कोर्ट केस नम्बर* *412/1970 में वर्ष 1970-1971 व् सुप्रीम कोर्ट 1971 -1976 के बीच में केस अपील नम्बर 291/1971 चला* ।
*जिसमे सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस पी एन भगवती जस्टिस वी आर कृषणा अय्यर, जस्टिस मुतजा फाजिल अली ने दिनाक 16.9.1976 को निर्णय दिया की सच्ची रामायण पुस्तक सही है और इसके सारे तथ्य सही है। सच्ची रामायण पुस्तक यह सिद्ध करती है कि "रामायण" नामक देश में जितने भी ग्रन्थ है वे सभी काल्पनिक है और इनका पुरातात्विक कोई आधार नही है*।
👆🏻 *अथार्त् 100% फर्जी व काल्पनिक है*।
👆🏻 *एक ऐतिहासिक सत्य जो किसी किसी को पता है...*
जागो मुलनिवासियों, बहुजनों, अपने मुल इतिहास को जानों, पाखण्डि ब्राह्मणवादियों के बहकावे में न आयें। अन्यथा वो दिन जब हमें पानी पीने, तन में कपड़ा पहनने का, पढ़ने-लिखने, अधिकार नहीं था, एक जानवरों से भी बत्तर जिंदगी जीने पर मजबूर किया करते थे, ऐसा दिन आने में दूर नहीं। को दूसरे बाबासाहेब हमें बचाने नहीं आयेंगें।
👆🏻 *जागरूक रहें, जागरूक करें और अधिक से अधिक अधिक शेयर करें...*
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