Tuesday 25 July 2017

अंबेडकर & जगजीवन राम

अंबेडकर चुनाव कभी जीते नहीं

और


जगजीवन राम चुनाव कभी हारे नहीं ।


फिरभी डॉ अम्बेडकर ज्यादा याद किये जाते है ।


नई पीढ़ी को तो मालूम ही नहीं की जगजीवन राम कौन थे ।


मतलब.....


वोट की राजनीतिक सफलता  सामाजिक प्रतिष्ठा निर्धारित नही करती ।


यकीन मानिए...


सामाजिक प्रतिष्ठा निर्धारित  करती है  विचारधारा और उन वैचारिक मूल्यों को स्थापित करने के लिए दिखाई  गई निष्ठा एवं समर्पण ।


याद रखिए....


कितने वोट लिए..

या कितनी बार चुनाव जीते...
या कितनी बार मंत्री संत्री बने...

यह आपकी प्रतिष्ठा का कारण नही बनेगा...


आप याद किये जायेंगे आपकी विचारधारा से... आप स्मरणीय रहेंगे आपके सामाजिक निष्ठा एवं समर्पण से ।



1-जिस समाज का अपना इतिहास नही होता हैं।वह समाज कभी भी शासक नही बन सकती हैं, क्योकि इतिहास से प्रेरणा मिलती हैं,प्रेरणा से जन जागृति आती हैं, जनजाग्रति से सोच बनती हैं।सोच से ताकत बनती हैं, ताकत से संगठन बनता हैं।संगठन से ही शासक बनता हैं।
2-जिस किसी भी समाज को मिटाना हो उस समाज के इतिहास को मिटा दो वह समाज अपने आप मिट जाएगी।
3-अखण्ड भारत के निर्माता चन्द्रगुप्त मौर्य चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान द्वारा स्थापित मौर्य साम्राज्य में शिक्षा एवं इतिहास का केंद्र नालन्दा विश्वविद्यालय  था मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहदत्त मौर्य की हत्या छल पूर्वक    
 पुष्पमित्र सुंग नामक धुर्त ने धोके से कर हमारे इतिहास को तहस नहस करदिया।नालन्दा विश्वविद्यालय को आग के हवाले कर दिया जो लगभग छः महीने तक धुंधूकर जलता रहा जिससे हमारा इतिहास जलकर खाक हो गया जो कुछ थोड़ा बहुत बचा बो आज हमारे सामने आ रहा हैं आज अशोक की लाट ओर अशोक चक्र रुपयों तिरंगे आदि पर अंकित देखकर गर्व की अनभूति होती हैं ।✍🙏🏻 मेरा अपने उन जागरूक पड़े लिखे भाई बन्धुओ से विशेष अनुरोध है।की अपने बुद्धिविवेक का उपयोग कर वास्तविक एव सही इतिहास को जानकर अपने लोगो को भी वताय जिससे वो भी गर्व महसूस कर सके कि हम भी चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य सम्राट अशोक महान जैसे सम्राटो के वंशज है जिन्होंने लगभग 138 वर्षों तक भारत पर शासन किया और अखण्ड भारत का निर्माण किया। ⚔⚔✍✍शिक्षा के जनक राष्ट्रपिता ज्योतिवा फुले व भारत की प्रथम महिला अध्यापिका राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले की ही देन है।की हम आज पढ़ लिख कर आगे बढ़ रहे हैं।इसके लिए हमारे इन महापुरुषो ने खुद घोर अपमान सहते हुये सारा जीवन कुर्बान कर 

दिया तव जाकर हम इस स्तिथि में है। मगर अफसोस हमारे अधिकतर पढे लिखे ग्रेजुएट लोग इनके वारे में जानते तक नही उन महापुरुषो की जयन्तिया मनाने के लिए समय नही हैं।या शर्म आती हैं। पता है अगर हमारे ये महापुरुष हमारे हक मान सम्मान शिक्षा अधिकार समानता की लड़ाई लड़ने में जरा भी शर्म करते तो आज हम उसी जिल्लत शोषण नाली के कीड़े जैसी जिंदगी जी रहे होते अतःदिमाग की बत्ती जलाओ ओर मानसिक गुलामी की जंजीरो को तोड़कर मनुवादी विचारधारा को छोड़कर वैज्ञानिक सोच पैदा करो और अत्त दीपो भवः के सिद्धांत को अपनाओ तभी हम अपना विकास कर अपनी भावी पीढ़ी को एक अच्छा प्लेटफार्म तैयार कर पायगे 

 https://youtu.be/9shUBBcxPlk

3 comments:

  1. *बाबासाहेब डॉ अंबेडकर में हिन्दुत्व से बुद्ध की ओर तथा वंचित समाज का विकास*
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    डॉ0 अम्‍बेडकर का स्‍पष्‍ट मानना था कि व्‍यापक अर्थों में हिन्‍दुत्‍व की रक्षा तभी सम्‍भव है जब ब्राह्मणवाद का खात्‍मा कर दिया जाय, क्‍योंकि ब्राह्मणवाद की आड़ में ही लोकतांत्रिक मूल्‍यों-समता, स्‍वतंत्रता और बन्‍धुत्‍व का गला घोंटा जा रहा है। अपने एक लेख *‘हिन्‍दू एण्‍ड वाण्‍ट ऑफ पब्‍लिक कांसस’ में डॉ0 अम्‍बेडकर लिखते हैं* कि- ‘‘दूसरे देशों में जाति की व्‍यवस्‍था सामाजिक और आर्थिक कसौटियों पर टिकी हुई है। गुलामी और दमन को धार्मिक आधार नहीं प्रदान किया गया है, किन्‍तु हिन्‍दू धर्म में छुआछूत के रूप में उत्‍पन्‍न गुलामी को धार्मिक स्‍वीकृति प्राप्‍त है। ऐसे में गुलामी खत्‍म भी हो जाये तो छुआछूत नहीं खत्‍म होगा। यह तभी खत्‍म होगा जब समग्र हिन्‍दू सामाजिक व्‍यवस्‍था विश्‍ोषकर जाति व्‍यवस्‍था को भस्‍म कर दिया जाये। प्रत्‍येक संस्‍था को कोई-न-कोई धार्मिक स्‍वीकृति मिली हुई है और इस प्रकार वह एक पवित्र व्‍यवस्‍था बन जाती है। यह स्‍थापित व्‍यवस्‍था मात्र इसलिए चल रही है क्‍योंकि उसे सवर्ण अधिकारियों का वरदहस्‍त प्राप्‍त है।

    उनका सिद्धान्‍त सभी को समान न्‍याय का वितरण नहीं है अपितु स्‍थापित मान्‍यता के अनुसार न्‍याय वितरण है।” यही कारण था कि 1935 में नासिक में आयोजित एक सम्‍मलेन में डॉ0 अम्‍बेडकर ने हिन्‍दू धर्म को त्‍याग देने की घोषणा कर दी। अपने सम्‍बोधन में उन्‍होंने कहा कि- ‘‘सभी धर्मो का निकट से अध्‍ययन करने के पश्‍चात हिन्‍दू धर्म में उनकी आस्‍था समाप्‍त हो गई। वह धर्म, जो अपने में आस्‍था रखने वाले दो व्‍यक्‍तियों में भेदभाव करे तथा अपने करोड़ोंं समर्थकों को कुत्‍ते और अपराधी से बद्‌तर समझे, अपने ही अनुयायियों को घृणित जीवन व्‍यतीत करने के लिए मजबूर करे, वह धर्म नहीं है। धर्म तो आध्‍यात्‍मिक शक्‍ति है जो व्‍यक्‍ति और काल से ऊपर उठकर निरन्‍तर भाव से सभी पर, सभी नस्‍लों और देशों में शाश्‍वत रूप से एक जैसा रमा रहे। धर्म नियमों पर नहीं, वरन्‌ सिद्धान्‍तों पर आधारित होना चाहिये।”

    *यहाँ स्‍पष्‍ट करना जरूरी है कि डॉ0 अम्‍बेडकर ने आखिर बौद्ध धर्म ही क्‍यों चुना?*
    वस्‍तुतः यह एक विवादित तथ्‍य भी रहा है कि क्‍या जीवन के लिए धर्म जरूरी है? डॉ0 अम्‍बेडकर ने धर्म को व्‍यापक परिप्रेक्ष्‍य में देखा था। उनका मानना था कि धर्म का तात्त्विक आधार जो भी हो, नैतिक सिद्धान्‍त और सामाजिक व्‍यवहार ही उसकी सही नींव होते हैं। यद्यपि बौद्ध धर्म अपनाने से पूर्व उन्‍होंने इस्‍लाम और ईसाई धर्म में भी सम्‍भावनाओं को टटोला पर अन्‍ततः उन्‍होंने बौद्ध धर्म को ही अपनाया क्‍योंकि यह एक ऐसा धर्म है जो मानव को मानव के रूप में देखता है किसी जाति के खाँचे में नहीं। एक ऐसा धर्म जो धम्‍म अर्थात नैतिक आधारों पर अवलम्‍बित है न कि किन्‍हीं पौराणिक मान्‍यताओं और अन्‍धविश्‍वास पर।

    डॉ0 अम्‍बेडकर बौद्ध धम्म के *‘आत्‍मदीपोभव’* से काफी प्रभावित थे और मूलनिवासीों व अछूतों की प्रगति के लिये इसे जरूरी समझते थे। डॉ0 अम्‍बेडकर इस तथ्‍य को भलीभांति जानते थे कि सवर्णोंं के वर्चस्‍व वाली इस व्‍यवस्‍था में कोई भी बात आसानी से नहीं स्‍वीकारी जाती वरन्‌ उसके लिए काफी दबाव बनाना पड़ता है।

    स्‍वयं भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू ने डॉ0 अम्‍बेडकर के निधन पश्‍चात उन्‍हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि *–‘‘डॉ0 अम्‍बेडकर हमारे संविधान निर्माताओं में थे। इस बात में कोई संदेह नहीं कि संविधान को बनाने में उन्‍होंने जितना कष्‍ट उठाया और ध्‍यान दिया उतना किसी अन्‍य ने नहीं दिया। वे हिन्‍दू समाज के सभी दमनात्‍मक संकेतों के विरूद्ध विद्रोह के प्रतीक थे। बहुत मामलों में उनके जबरदस्‍त दबाव बनाने तथा मजबूत विरोध खड़ा करने से हम मजबूरन उन चीजों के प्रति जागरूक और सावधान हो जाते थे तथा सदियों से दलित वर्ग की उन्‍नति के लिये तैयार हो जाते थे।”*

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  2. इसलिए समय रहते सचेत हो जाओ तथा जागो और जगाओ मनुवाद ब्राह्मणवाद स्वर्ण वाद भगवा आतंक भगाओ समाज को जागरूक करो शिक्षित करो संगठित करो और अपनी सत्ता स्थापित करो*

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  3. यह बात उन दिनों की है जब बाबासाहेब दिन-रात संविधान लिखने के काम में लगे हुए थे। *लेखक (बौद्धाचार्य शांति स्वरूप बौद्ध ) के दादा चौधरी देवीदास जी* इस रात अन्य लोगों के साथ बाबासाहेब की कोठी पर ठहरे हुए थे। रात को जब उनकी आंखें खुली तो उन्होंने देखा की *बाबासाहेब के अध्ययन कक्ष की लाइट जली हुई है* , खिड़की से झांक कर देखा तो पता चला कि *बाबासाहेब ने अपनी बाई टांग छत के पंखे से बांधकर लटका रखी है* यह देखकर चौधरी साहब की समझ में कुछ नहीं आया। सुबह होने पर चौधरी साहब ने साहस जुटाकर अचरज भरे स्वर में बाबासाहेब से पूछा "बाबासाहेब रात को हमने देखा कि आपने अपनी एक टांग पंखे से बांध कर लटका रखी है" । *बाबासाहेब बीच में ही तुरंत हंस पड़े और बोले* " *अरे हमारी टांग में बहुत दर्द होता था* और *हमको नींद भी बहुत जोर से आ रही थी टांग पंखे से बांधकर लटकाने से दर्द भी भाग गया और नींद भी* अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो संविधान के जरिए आपको कुछ भी नहीं दे पाएंगे" *वास्तव में बाबा साहेब प्राकृतिक नियमों को भी ताक पर रखकर सविधान का कार्य पूरा करते रहे*
    *ना कभी दर्द की परवाह की*
    *ना नींद की*
    *ना भूख की*
    *और ना ही प्यास की*
    संविधान बनाने जैसे कठिन काम के करने से बाबा साहेब का स्वास्थ्य दिन-ब-दिन और अधिक बिगड़ता चला गया। *यह सब बाबासाहेब हमारे गौरव वर्धन के लिए ही सहना पड़ा*।
    😢 *ऐसे थे हमारे बाबा साहेब*

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