मान्यवर कांशीरामजी कहते थे
"जब मैंने फुले शाहू आंबेडकर की विचारधारा को पढ़ा
और उनके बहुजन समाज के उन्नती के लिए संघर्ष
को जाना मेरी नींद उड़ गयी मै ठीक से सो नहीं
पा रहा था तभी मैंने फैसला किया की अपना पूरा
जिंवन बहुजन समाज के कल्याण के लिए
बहुजन समाज को स्वाभिमानी बनाने के लिए
बहुजन समाज को फिरसे इस देश का हुक्मरान
समाज बनानेके लिए
फुले शाहू आंबेडकर इन महापुरुषोंके सपनोको साकार
करने के लिए समर्पित करना है
मैंने काम शुरू कर दिया
4 से 5 साल समाज में जागृति का काम करने के बाद
मेरे समझ में आया की राजनितिक सत्ता की
माष्टर चाबी अगर अपने हाथ में ली जाए तो
हम हर किस्म का ताला खोल सकते है इसीलिए मै
पहले
फुले शाहू आंबेडकर की कर्मभूमी महाराष्ट्र में आया
और यहाँ आकर रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं से
मिला उनसे मिलकर मैंने उनको समझाया की
हम बहुजनो के बल पर अपनी सरकार बना सकते है
जिससे हम फुले शाहू आंबेडकर का सपना पूरा
कर सकते है लेकिन रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं ने
मेरी एक नहीं मानी वो नकारात्मक मानसिकता से
मुझे कहने लगे की,
" यह हो नही सकता " और मै
उनसे सकारात्मक मानसिकता से कहता रहा की,
"और यह हो सकता है"
मेरे बहुत समझाने के बाद भी उन्होंने मेरी
एक नहीं मानी और वो नेता उस कोंग्रेस को जा मिले
जिसको बाबासाहब बहुजनो के लिए
जलता हुआ घर कहते थे
इसीलिए मैंने
"बहुजन समाज पार्टी" की स्थापना कराकर
उत्तर प्रदेश में बहुजनो के बलपर अपनी सरकार
बनाली और महाराष्ट्रा के रिपब्लिकन पार्टी के
नेताओं को दिखा दिया की
"और यह हो सकता है "
अगर ये उत्तर प्रदेश में हो सकता है तो
भाई महाराष्ट्र तो फुले शाहू आंबेडकर की
भूमि है यहाँ क्यों नहीं हो सकता
इसीलिए साथियो हमें अपनी बहुजनो की
सरकार बनाने के लिए
फुले शाहू आंबेडकर के सपनो का भारत
बनाने के लिए
समाज में जागृति लाना है और
"यह हो सकता है" ये सकारात्मक सोच रखकर
काम करना है मै दावे से कहता हु हमें जरुर
कामयाबी मिलेगी और एक दिन बहुजन
समाज इस देश का हुक्मरान समाज होकर रहेगा..."
जय भीम जय भारत....!
बुध्द कहते हैं- ईश्वर कहीं भी नही हैं उसे ढूढ़ने में अपना वक़्त और ऊर्जा बर्बाद मत करों ।
धर्म और धम्म मेँ अंतर-
👉 धर्म में आप ईश्वर के खिलाफ नहीँ बोल सकते, धर्म ग्रंथो की अवेहलना नहीँ कर सकते, अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीँ कर सकते।
जबकि धम्म मेँ तो स्वयं को जाँचने परखने और अपनी बुद्धि का प्रयोग करने की शिक्षा हैँ।
👉 धर्म कहता हैँ कि तेरा भला करने तथाकथित ईश्वर जैसी कोई ताकत आयेगी।
जबकि धम्म कहता हैँ- अत्त दीप भवः अर्थात अपन दीपक स्वयं बनो।
👉 बुध्द भी कहते हैँ: "ना मैँ मुक्तिदाता हुँ, ना मैँ मोक्षदाता हुँ। मैँ सिर्फ मार्ग दिखाने वाला हूँ। धम्म अर्थात जीवन जीने का सर्वोतम मानवतावादी आधार ।
👉 बहुत से लोग मानते होँगे कि धर्म और धम्म एक ही हैँ। उनको विश्लेषण करने की जरुरत हैँ। धर्म मेँ जन्म लेना पङता हैँ, जबकि धम्म में (शिक्षा) प्राप्त करनी पङती हैँ। जिसे कोई भी प्राप्त कर सकता हैँ।
👉 बुद्ध ने अपने अनुयाइयोँ से कहा था कि धर्म में अतार्किक बातेँ हैँ। जैसे आत्मा, परमात्मा,भूत, ईश्वर, देवी-देवता आदि। जबकि धम्म वैज्ञानिक द्रष्टिकोण पर आधारित हैँ। धम्म तर्क और बुद्धि को प्राथमिकता देता है। इसलिये ईश्वर को नकारता हैँ।
👉 धर्म मेँ असामनता है, भेदभाव है, ऊँच-नीच है। जबकि धम्म मेँ सब एक है। सब बराबर हैँ। कोई भेदभाव नही है। धम्म एक शिक्षा है, एक ज्ञान है, जो सबके लिये है। धर्म मेँ विभाजन है। अधिकार वर्गोँ मेँ विभाजित है। जबकि धम्म मेँ वर्गहीनता है। अधिकार और ज्ञान सभी के लिये है।
👉 धर्म मेँ कोई ब्रम्हा को सृष्टि का रचयिता बताता है, तो कोई स्वयं को ईश्वर का दूत कहता है। जबकि धम्म की शिक्षा देने वाले ने खुद को ईश्वर का दूत ना बताकर खुद को एक सच्चा मार्ग दिखाने वाला मनुष्य बताया।
👉 तथागत गौतम बुध्द, ’बुध्द’ का अर्थ बताते हुए कहते हैँ: "बुध्द" एक’अवस्था अथवा स्थिति का नाम हैँ। एक ऐसी स्थिति जो मानवीय ज्ञान की चरम अवस्था है। जब मनुष्य अपने तर्क और ज्ञान से एक दुर्लभ अवस्था (बोधिसत्व) को प्राप्त कर लेता है वो ‘बुध्द’ कहलाता है।
👉 बाबा साहब डॉ. आम्बेडकर को भी बोधिसत्व का दर्जा दिया गया हैँ, जो कार्य तथागत गौतम बुध्द ने अपने ज्ञान की बदौलत किया, वैसा ही कार्य डॉ. आम्बेडकर ने अपने ज्ञान की बदौलत किया। अतः वो भी ‘बोधिसत्व’ हुए।
👉 धर्मोँ मेँ कानून की कठोरता है। जबकि धम्म को मानने या ना मानने मेँ आप पूर्णतया स्वतंन्त्र है।
👉 धम्म आप पर कोई कानून नहीँ थोपता। धर्म मेँ सब कुछ फिक्स होता है। जैसे: जो धर्म ग्रंथों मेँ लिखा है, वही सत्य है। उसका पालन किसी भी कीमत पर आवश्यक है। जबकि धम्म परिस्थितियों के आधार पर मानव हित के लिये परिवर्तन को मानता है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखता हैँ।
👉 धम्म ‘ज्ञान’ है। इसलिये इससे तर्क-वितर्क और शिक्षा मे बढोतरी हो सकती है। जबकि धर्म मानव निर्मित ‘कानून’ है। ये जो भी नीला -पीला हैँ वही धर्म है।
वैज्ञानिक तर्क वितर्क ही सफल जीवन का मूल आधार हैं !
👉प्रेम से बोलो।
बुद्धम शरणं गच्छामि..........
धम्मम शरणं गच्छामि.........
संघम शरणं गच्छामि..........
संसद में ऐसा स्वागत किसी प्रधानमंत्री का भी नही हुआ जो साहब कांशीराम का हुआ था
मान्यवर कांशीराम साहब ने 20 नवम्बर, 1991 को प्रात : 11 बजे संसद में उस समय पहला कदम रखा जब संसद में सभी सांसद सदस्य प्रवेश कर चुके थे. संसद के मुख्य द्वार पर जैसे ही मान्यवर पहुंचे तो सैकड़ों पत्रकार, फोटो ग्राफर आदि ने उन्हें घेर लिया. कुछ देर फोटोग्राफरों ने इतने फोटो खींचे की बिजली की सी चका- चौंध होती रही. इसके बाद संसद की सीढियाँ चढ़ते हुए भी फोटोग्राफरों के फोटो खींचें जाने के कारण उन्हें हर सीढ़ी पर रुक-रुक कर आगे बढ़ना पड़ रहा था. पत्रकारों की निगाह में भी अब तक सांसद तो बहुत जीत कर आते रहे किन्तु कांशीराम साहब की जीत के मायने ही कुछ और थे. इसलिए उनके इंतजार में आज पत्रकार 10 बजे से ही खड़े थे. इसके बाद आगे बढ़ते हुए
मान्यवर कांशीराम साहब ने जब संसद के मुख्य हाल में प्रवेश किया तो सबसे पहले लोकसभा अध्यक्ष श्री शिवराज पाटिल अपनी सीट छोडकर उन्हें लेने पहुंचे और उनसे हाथ मिलाया. मुख्य हाल में प्रवेश करते ही अन्दर बैठे सभी सांसदों ने अपने स्थान में खड़े होकर इस तरह स्वागत किया जैसे संसद में प्रधानमंत्री के स्वागत में खड़े हुए हों. प्रधानमंत्री श्री पी. वी. नरसिम्हाराव और अन्य पार्टियों के सभी बड़े नेता भी आगे बढ़कर मा. कांशीरामजी से हाथ मिलाये. शून्यकाल से पहले जब मान्यवर साहब को शपथ दिलायी गयी तो उस वक्त भी संसद तालियों से गूंज उठा. मान्यवर ने अंग्रेजी में "सत्यनिष्ठा" की शपथ ली थी. इस तरह उन्होंने न केवल शून्य से शिखर तक का रास्ता तय किया अपितु भारतीय राजनीति में उनकी इस आगाज ने देश की राजनीति की दिशा भी बदल दी.
"जब मैंने फुले शाहू आंबेडकर की विचारधारा को पढ़ा
और उनके बहुजन समाज के उन्नती के लिए संघर्ष
को जाना मेरी नींद उड़ गयी मै ठीक से सो नहीं
पा रहा था तभी मैंने फैसला किया की अपना पूरा
जिंवन बहुजन समाज के कल्याण के लिए
बहुजन समाज को स्वाभिमानी बनाने के लिए
बहुजन समाज को फिरसे इस देश का हुक्मरान
समाज बनानेके लिए
फुले शाहू आंबेडकर इन महापुरुषोंके सपनोको साकार
करने के लिए समर्पित करना है
मैंने काम शुरू कर दिया
4 से 5 साल समाज में जागृति का काम करने के बाद
मेरे समझ में आया की राजनितिक सत्ता की
माष्टर चाबी अगर अपने हाथ में ली जाए तो
हम हर किस्म का ताला खोल सकते है इसीलिए मै
पहले
फुले शाहू आंबेडकर की कर्मभूमी महाराष्ट्र में आया
और यहाँ आकर रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं से
मिला उनसे मिलकर मैंने उनको समझाया की
हम बहुजनो के बल पर अपनी सरकार बना सकते है
जिससे हम फुले शाहू आंबेडकर का सपना पूरा
कर सकते है लेकिन रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं ने
मेरी एक नहीं मानी वो नकारात्मक मानसिकता से
मुझे कहने लगे की,
" यह हो नही सकता " और मै
उनसे सकारात्मक मानसिकता से कहता रहा की,
"और यह हो सकता है"
मेरे बहुत समझाने के बाद भी उन्होंने मेरी
एक नहीं मानी और वो नेता उस कोंग्रेस को जा मिले
जिसको बाबासाहब बहुजनो के लिए
जलता हुआ घर कहते थे
इसीलिए मैंने
"बहुजन समाज पार्टी" की स्थापना कराकर
उत्तर प्रदेश में बहुजनो के बलपर अपनी सरकार
बनाली और महाराष्ट्रा के रिपब्लिकन पार्टी के
नेताओं को दिखा दिया की
"और यह हो सकता है "
अगर ये उत्तर प्रदेश में हो सकता है तो
भाई महाराष्ट्र तो फुले शाहू आंबेडकर की
भूमि है यहाँ क्यों नहीं हो सकता
इसीलिए साथियो हमें अपनी बहुजनो की
सरकार बनाने के लिए
फुले शाहू आंबेडकर के सपनो का भारत
बनाने के लिए
समाज में जागृति लाना है और
"यह हो सकता है" ये सकारात्मक सोच रखकर
काम करना है मै दावे से कहता हु हमें जरुर
कामयाबी मिलेगी और एक दिन बहुजन
समाज इस देश का हुक्मरान समाज होकर रहेगा..."
जय भीम जय भारत....!
बुध्द कहते हैं- ईश्वर कहीं भी नही हैं उसे ढूढ़ने में अपना वक़्त और ऊर्जा बर्बाद मत करों ।
धर्म और धम्म मेँ अंतर-
👉 धर्म में आप ईश्वर के खिलाफ नहीँ बोल सकते, धर्म ग्रंथो की अवेहलना नहीँ कर सकते, अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीँ कर सकते।
जबकि धम्म मेँ तो स्वयं को जाँचने परखने और अपनी बुद्धि का प्रयोग करने की शिक्षा हैँ।
👉 धर्म कहता हैँ कि तेरा भला करने तथाकथित ईश्वर जैसी कोई ताकत आयेगी।
जबकि धम्म कहता हैँ- अत्त दीप भवः अर्थात अपन दीपक स्वयं बनो।
👉 बुध्द भी कहते हैँ: "ना मैँ मुक्तिदाता हुँ, ना मैँ मोक्षदाता हुँ। मैँ सिर्फ मार्ग दिखाने वाला हूँ। धम्म अर्थात जीवन जीने का सर्वोतम मानवतावादी आधार ।
👉 बहुत से लोग मानते होँगे कि धर्म और धम्म एक ही हैँ। उनको विश्लेषण करने की जरुरत हैँ। धर्म मेँ जन्म लेना पङता हैँ, जबकि धम्म में (शिक्षा) प्राप्त करनी पङती हैँ। जिसे कोई भी प्राप्त कर सकता हैँ।
👉 बुद्ध ने अपने अनुयाइयोँ से कहा था कि धर्म में अतार्किक बातेँ हैँ। जैसे आत्मा, परमात्मा,भूत, ईश्वर, देवी-देवता आदि। जबकि धम्म वैज्ञानिक द्रष्टिकोण पर आधारित हैँ। धम्म तर्क और बुद्धि को प्राथमिकता देता है। इसलिये ईश्वर को नकारता हैँ।
👉 धर्म मेँ असामनता है, भेदभाव है, ऊँच-नीच है। जबकि धम्म मेँ सब एक है। सब बराबर हैँ। कोई भेदभाव नही है। धम्म एक शिक्षा है, एक ज्ञान है, जो सबके लिये है। धर्म मेँ विभाजन है। अधिकार वर्गोँ मेँ विभाजित है। जबकि धम्म मेँ वर्गहीनता है। अधिकार और ज्ञान सभी के लिये है।
👉 धर्म मेँ कोई ब्रम्हा को सृष्टि का रचयिता बताता है, तो कोई स्वयं को ईश्वर का दूत कहता है। जबकि धम्म की शिक्षा देने वाले ने खुद को ईश्वर का दूत ना बताकर खुद को एक सच्चा मार्ग दिखाने वाला मनुष्य बताया।
👉 तथागत गौतम बुध्द, ’बुध्द’ का अर्थ बताते हुए कहते हैँ: "बुध्द" एक’अवस्था अथवा स्थिति का नाम हैँ। एक ऐसी स्थिति जो मानवीय ज्ञान की चरम अवस्था है। जब मनुष्य अपने तर्क और ज्ञान से एक दुर्लभ अवस्था (बोधिसत्व) को प्राप्त कर लेता है वो ‘बुध्द’ कहलाता है।
👉 बाबा साहब डॉ. आम्बेडकर को भी बोधिसत्व का दर्जा दिया गया हैँ, जो कार्य तथागत गौतम बुध्द ने अपने ज्ञान की बदौलत किया, वैसा ही कार्य डॉ. आम्बेडकर ने अपने ज्ञान की बदौलत किया। अतः वो भी ‘बोधिसत्व’ हुए।
👉 धर्मोँ मेँ कानून की कठोरता है। जबकि धम्म को मानने या ना मानने मेँ आप पूर्णतया स्वतंन्त्र है।
👉 धम्म आप पर कोई कानून नहीँ थोपता। धर्म मेँ सब कुछ फिक्स होता है। जैसे: जो धर्म ग्रंथों मेँ लिखा है, वही सत्य है। उसका पालन किसी भी कीमत पर आवश्यक है। जबकि धम्म परिस्थितियों के आधार पर मानव हित के लिये परिवर्तन को मानता है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखता हैँ।
👉 धम्म ‘ज्ञान’ है। इसलिये इससे तर्क-वितर्क और शिक्षा मे बढोतरी हो सकती है। जबकि धर्म मानव निर्मित ‘कानून’ है। ये जो भी नीला -पीला हैँ वही धर्म है।
वैज्ञानिक तर्क वितर्क ही सफल जीवन का मूल आधार हैं !
👉प्रेम से बोलो।
बुद्धम शरणं गच्छामि..........
धम्मम शरणं गच्छामि.........
संघम शरणं गच्छामि..........
संसद में ऐसा स्वागत किसी प्रधानमंत्री का भी नही हुआ जो साहब कांशीराम का हुआ था
मान्यवर कांशीराम साहब ने 20 नवम्बर, 1991 को प्रात : 11 बजे संसद में उस समय पहला कदम रखा जब संसद में सभी सांसद सदस्य प्रवेश कर चुके थे. संसद के मुख्य द्वार पर जैसे ही मान्यवर पहुंचे तो सैकड़ों पत्रकार, फोटो ग्राफर आदि ने उन्हें घेर लिया. कुछ देर फोटोग्राफरों ने इतने फोटो खींचे की बिजली की सी चका- चौंध होती रही. इसके बाद संसद की सीढियाँ चढ़ते हुए भी फोटोग्राफरों के फोटो खींचें जाने के कारण उन्हें हर सीढ़ी पर रुक-रुक कर आगे बढ़ना पड़ रहा था. पत्रकारों की निगाह में भी अब तक सांसद तो बहुत जीत कर आते रहे किन्तु कांशीराम साहब की जीत के मायने ही कुछ और थे. इसलिए उनके इंतजार में आज पत्रकार 10 बजे से ही खड़े थे. इसके बाद आगे बढ़ते हुए
मान्यवर कांशीराम साहब ने जब संसद के मुख्य हाल में प्रवेश किया तो सबसे पहले लोकसभा अध्यक्ष श्री शिवराज पाटिल अपनी सीट छोडकर उन्हें लेने पहुंचे और उनसे हाथ मिलाया. मुख्य हाल में प्रवेश करते ही अन्दर बैठे सभी सांसदों ने अपने स्थान में खड़े होकर इस तरह स्वागत किया जैसे संसद में प्रधानमंत्री के स्वागत में खड़े हुए हों. प्रधानमंत्री श्री पी. वी. नरसिम्हाराव और अन्य पार्टियों के सभी बड़े नेता भी आगे बढ़कर मा. कांशीरामजी से हाथ मिलाये. शून्यकाल से पहले जब मान्यवर साहब को शपथ दिलायी गयी तो उस वक्त भी संसद तालियों से गूंज उठा. मान्यवर ने अंग्रेजी में "सत्यनिष्ठा" की शपथ ली थी. इस तरह उन्होंने न केवल शून्य से शिखर तक का रास्ता तय किया अपितु भारतीय राजनीति में उनकी इस आगाज ने देश की राजनीति की दिशा भी बदल दी.
https://youtu.be/RQJi3CwbMHg
ReplyDeleteअटल बिहारी जी ने साहब कांशीराम जी से कहा था।हम आपको राष्ट्रपती बनायेंगे।बस आप हमारी पार्टी मे शामिल हो जाओ।
तब साहब कांशीराम जी ने अटल बिहारी जी से कहा था।बनाना है तो प्रधानमंत्री बनाओ ताकि मै अपने लोगो का कुछ भला कर सकूं।राष्ट्रपति तो ऐक कुर्सी पे बैठा रहते है ।उसकी कोई नही सुनता।
और आज के नेता,पार्टी मे ऑफर मिलते ही अपने ही लोगो से गददारी कर जाते है ।