कौन है राम नाथ कोविन्द ???
पत्नी की मृत्यु के केवल 6 माह में
अपने से 15 साल छोटी शिष्या से विवाह किया।
33% महिला आरक्षण का विरोध किया
जाती से कोली है
देश में इनको कोई भी नही जानता
3 बार UPSC परीक्षा में फेल हुये
सांसद चुनाव हारे
विधायक हारे
रक्षा मामले में गिरफ्तार भाजपा नेता
"बंगारू लक्षमण" को बचाने के लिए झूठी गवाही दी,
फिर भी नहीं बचा पाये।
बार-बार मुस्लिम और ईसाइयो के लिए भड़काऊ "बयान" दिया और बाहरी बताया,
उपलब्धि सिर्फ रामनाथ कोविंद #RSS से हैं।
जब दलितो पर आत्याचार हो रहे थे तब रामनाथ कोविंद का कोई स्टेटमेंट आया था
इसके खिलाफ ? तो फिर राष्ट्रपति बनने के बाद दलित कैसे ?
यानि मोदी के लिये एक परफेक्ट रबड़ स्टम्प
गुजरात में 27% कोली जाति के लोग रहते है
चुनाव आने वाले हैं,
भाजपा ने एक तीर से काफी शिकार किये है।
रामनाथ कोविंद जी की राष्ट्रपति पद के लिए योग्यतायें-
-रामनाथ कोविंद जी के राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित होने के वाद से ही देश में एक बहस छिड़ गई है कि रामनाथ कोविंद की योग्यता क्या है क्या दलित होना ही उनकी एक मात्र योग्यता है। आइये हम उनकी योग्यताओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
[1 ] योग्यता नंबर एक, जब मान्यवर कांशीराम साहेब बामसेफ के माध्यम से समाज को संगठित कर सत्ता की चाबी का फार्मूला समाज और कर्मचारियों को समझा रहे थे तब रामनाथ कोविंद आर एस एस की दरियां उठा रहे थे।
[2 ] योग्यता नंबर दो जब मान्यवर कांशीराम साहेब बहुजनो को इकठ्ठे करके बहुजन समाज का कारवा आगे बढ़ा रहे थे और जातिगत संगठनों का विरोध कर उनको बहुजन बनने का पाठ पढ़ा रहे थे तब रामनाथ कोविंद बहुजन आंदोलन को छोड़कर कोरी जाति के जातिगत संगठन का नेतृत्व कर रहे थे। कोरी जाति कहीं बहुजन आंदोलन का हिस्सा न बन जाये इसके लिए काम कर रहे थे।
[3 ] योग्यता नंबर तीन जब मान्यवर कांशीराम साहेब अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए संघर्ष कर रहे थे तब रामनाथ कोविंद जी ने पिछड़ा वर्ग में अलग से महिलाओं के आरक्षण का विरोध किया था।
[4 ] योग्यता नंबर चार, जब माननीय बहिन कुमारी मायावती जी राज्यसभा में अनुसूचित जाति जनजाति के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए प्रोमोशन में आरक्षण के बिल के लिए संघर्ष कर रहीं थीं तब रामनाथ कोविंद जी राज्यसभा में मूकदर्शक बनकर बैठे थे।
[5 ] योग्यता नंबर पांच, जब माननीय बहिन कुमारी मायावती जी संसद में रोहित वेमुला हत्याकांड का मामला उठा रहीं थी तब रामनाथ कोविंद जी बिहार के राजभावन में चूड़ियां पहनकर चुपचाप तमाशा देख रहे थे।
[6 ] योग्यता नंबर छः, जब माननीय बहिन कुमारी मायावती जी संसद में ऊना हत्याकांड में संसद में दहाड़ रहीं थी तब रामनाथ कोविंद जी पटना के राजभवन में सत्ता का स्वादिष्ट लाभ उठा रहे थे।
[7 ] योग्यता नंबर सात, राष्ट्रीय और सामाजिक समस्याओं के निदान के लिए संत समाज की जिम्मेदारी मानते रामनाथ कोविंद जी, न कि सरकारों की जिम्मेदारी।
[8 ] योग्यता नंबर आठ, भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए लाए गए बिहार सरकार का लोकायुक्त बिल रोक दिया बिहार के गवर्नर रहते हुए।
[9 ] योग्यता नंबर नौ, भारतीय संभिधान जो धर्मनिरपेक्ष है लेकिन रामनाथ कोविंद जी ईसाई और मुस्लिम को बाहरी व्यक्ति मानते हैं।
[10 ] योग्यता नंबर 10, भक्ति जनता पार्टी और उसके आका और नागपुरी संतरों के जी हुजूरी के लिये दिन रात तैयार रहते हैं।
[ ] अब इनसे ज्यादा योग्य और कौन भक्ति जनता पार्टी और उनके भक्तों को मिलेगा। जो अपने ही समाज की गुलामी का दस्तावेज खुद अपने ही हाथ से लिखने को तैयार हो, अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए।
रामनाथ कोविंद जी के एस सी,एस टी ,ओबीसी समाज व उनकी धर्मनिरपेक्षता के कुछ कार्य-कल्पना करो कि आज कांग्रेस का राष्ट्रपति तब तो रोहित वेमुला,ऊना कांड,डेल्टा मेघवाल,केरल की एक बहन,सहारनपुर कांड,अम्बेडकर की मूर्तियो को तोड़ने व उनका अपमान करने का कीर्तिमान स्थापित होने के बावजूद आज तक कुछ भी न बोलना जबकि केंद्र सरकार निरर्थक कानूनों की आड़ में भारतीय संविधान को खत्म व कमजोर करने की साजिश में लगी हुई है ऐसे में आप लोग विचार करे क्या एक सिर्फ नाम का एस सी, आरएसएस भक्त राष्ट्रपति भारतीय संविधान की रक्षा व बहुजनो का भला कर पाने में समर्थ/सक्षम होगा।एक अत्यंत गम्भीर विषय है।
सिखों का क़त्ल हो रहा था और ब्राह्मणों ने ज्ञानी जैल सिंह (सिक्ख) को राष्ट्रपति बना दिया ।
2002
में गुजरात दंगे में मुसलमानों का क़त्ले आम हुआ, मामले को ठंडा करने के लिए ब्राह्मणों ने ए.पी.जे. अब्दुल कलाम कलाम (मुसलमान) राष्ट्रपति बना दिया ।
2017
दिन बदिन दलितों पर हो रहे हमलों के बाद का डैमेज कंट्रोल तो नहीं, ब्राह्मणों द्वारा रामनाथ कोविंदजी (दलित) को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना
ब्राह्मणों को कूटनीति मे कोई नहीं हरा सकता ।
दलितों की राजनीतिक अधिकारों की लड़ाई को समाप्त करने के लिये भाजपा ने बड़ा दांव चला है । यह दांव मा. कांशीराम साहब के साथ भी भाजपा ने चला था । उन्हें राष्ट्रपति बनाने को कहा था । मा. साहब ने मना कर दिया था । उन्होंने कहा कि मै बोलने वाला व्यक्ति हूं चुप रहने वाला नहीं । मुझे चुप रहने वाला पद नहीं चाहिये । मेरे समाज के लोग डीएम, सीएम और पीएम बने जो समाज के लिये कुछ कर सके, यह मै चाहता हूँ । इसलिये दलित समाज को बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है । यह उनकी राजनैतिक लड़ाई को समाप्त करने की एक साजिश है । इससे हमें सावधान रहना है । वर्तमान में दलितों ने देश के विभिन्न भागों में जो राजनैतिक चुनौती पेश किया है उससे शोषणकारी शक्तियां बौखला गई हैं । लगभग बीस पच्चीस सालो में दलितों ने मान, सम्मान और स्वाभिमान से जीना सीख लिया है और अपने बलबूते देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का चार बार मुख्यमंत्री तक बना लिया । इससे शोषणकारी शक्तियां उन पर अत्याचार नहीं कर पा रहीं थी । लेकिन धीरे धीरे वे दलितों में विध्वंसात्मक मानसिकता के तहत फूट डालने में सफल हो रहें हैं । बाबा साहब ने सभी अछूत जातियों को एक जंजीर में बांधा था । लेकिन खुद अछूत जातियां अपने अहंकार में उस जंजीर को तोड़ रहीं हैं । जिसका फायदा उठाकर शोषणकारी शक्तियां पुनः सक्रिय हो गई हैं और बाटो और राज्य करो की नीति पर चल रहीं हैं ।दलितों को इतिहास से सबक लेना चाहिये ।
खिचड़ी कुछ पर रही ऐसी
😇😇😇😇😇😇😇
कोविंद
जो गाए
राम-राम और गोविंद
नहीं है दलित हितैषी।
रटा रटाया तोता
बिल्कुल सोच है ऐसी।
ये है घोड़ा ऐसा जंगी
जिसको लाए ढूंढके संघी
जिसके ऐसी कसी लगाम
जो न खोले कभी जुबान
करेंगें ऐसी-तैसी।
ये रखें बनाकर मोहरा
देखा इनका चरित्र दोहरा
ये है छुआछूती लोग,
ये करें दलित प्रयोग
चाल है बगुले जैसी
बचकर रहना प्यारे कोविंद
इनके झूठे राम और गोविंद
मंदिर में घुसने न देंगें।
देश को सहारनपुर कर देंगें।
हम कैसे भूलें पिछले कांड
ये बनकर लूटें भांड
खिचड़ी कुछ पर रही ऐसी।
डॉ० फूलसिंह लुहानी
रामविलास पासवान वैचारिक दरिद्रता के शिकार हो गए मालूम पड़ते हैं। बोल रहे हैं कि जो कोविंद का विरोध करेगा, वो दलित विरोधी है।
भाई साहब भाजपा की ही प्रवक्तई करनी है, तो अपनी पार्टी लोजपा का सीधे विलय ही क्यों नहीं कर देते भाजपा में ? इतनी अतार्किक बातें कैसे कर लेते हैं आप ? आप अपना ही इतिहास क्यों भूल जाते हैं ?
84 के आमचुनाव के बाद 85 में बिजनौर सीट पर हुए उपचुनाव में आप ही थे न जिनको लोकदल से चरण सिंह ने मायावती जी और मीरा कुमार जी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़वाया था।
त्रिकोणीय संघर्ष में मीरा कुमार ने तक़रीबन 5 हज़ार वोटों से आपको हराया था।
बताइए, जब दो जुझारू, योग्य, कर्मठ व लगनशील दलित प्रत्याशी मैदान में थीं ही, तो आप क्या करने गए थे वहां ?
गर आपके कुतर्कों पर चला जाए, फिर तो आप घोर महिला विरोधी करार दिए जाएंगे। यही सब अलबल बोलना है, तो बेहतर हो कि आप चुप ही रहें। कम एक्सपोज होइएगा।
दु:ख इस बात का नहीं कि रामविलास पासवान भाजपा के साथ चले गये (पहले भी गये हैं), दु:ख इस बात का है कि उन्होंने पुत्रमोह व भ्रातृप्रेम में लब सिल लिए हैं।
दलितों के साथ कितना भी बड़ा अत्याचार हो जाए, उनका बयान तक नहीं आता। पासवान जी, एक वक़्त आपका क़द कैबिनेट मिनिस्टर से कहीं ज़्यादा बड़ा था.
याद करो कि वीपी सिंह के आप विश्वासपात्र रहे, आपकी कार्यकुशलता देख, मंडल कमीशन को ज़ल्दी लागू करने के लिए पूरे मामले को दूसरे मंत्रालय से हटाकर उन्होंने आपके मंत्रालय में डाल दिया था।
देवगौड़ा और गुजराल के समय आप लोकसभा में नेता, सदन थे, नेक्स्ट टू प्राइम मिनिस्टर का रुतबा हासिल था। क्या हाल बना लिया आपने अपना ? दलित सेना का गठन कर कभी हुंकार भरने वाला नेता आज ख़ामोशी ओढ़ने पर मजबूर है।
अगस्त 1982 में सदन में मंडल कमीशन पर आपकी निरुत्तर कर देने वाली धारदार बहस कोई पढ़ ले, तो क़ायल हो जाए। आपके तेवर हमने देखे और सुने हैं, इसलिए शायद बुरा लगता है।
यही सब अनापशनाप बोलना है, तो ख़ामोश रहने में क्या बुराई है.....
सन् 2002 मे डा० #अब्दुल_कलाम राष्ट्रपति पद के लिये चुनाव लड़ रहे थे, उनके चुनाव का काम-काज भाजपा नेता प्रमोद महाजन देंख रहे थे, क्योकि कलाम साहब को राजनैतिक अनुभव नही था!
एक दिन प्रमोद महाजन ने कलाम जी से पूँछा कि आपका नामांकन भरना हैं, मै किस दिन तस्तावेज लेकर आपके हस्ताक्षर लेने आऊँ, क्या आपका कोई शुभ दिन है!
कलाम जी ने कहा- "मै एक वैज्ञानिक हूँ, अतः मै यह जानता हूँ कि ये जितने भी ग्रह-नक्षत्र है, सब अपनी निरन्तर चाल से चल रहे हैं! इनकी चाल मे ना तो कभी परिवर्तन आता है और ना ही अवरोध, अतः कोई भी दिन-समय शुभ और अशुभ नही होता, आप जब भी आना मै हस्ताक्षर कर दूँगा"
ये क्रांतिकारी शब्द हमारे देश के महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डा० कलाम के थे! कलाम साहब ने बिना कोई शुभ-अशुभ समय के हस्ताक्षर किऐ और चुनाव भी जीते।
अब आप जरा विचार करो कि हमें शनि की साढ़े साती और मंगल की महादशा से डराया जाता है! पहले कुछ अनिष्ट होने का डर दिखाना फिर कुछ पैसे लेकर उसका निराकरण करना, यह बड़ी ताकतवर अर्थनीति का हिस्सा है!
आखिर जिस मंगल और चन्द्रमा तक पहुँचने के लिये सरकार अरबो रूपये खर्च करती है, उसकी चाल को मंत्र मारकर कैसे बदला जा सकता है! आखिर वो कौन सा मंत्र है जिससे शनि और मंगल अपनी चाल और दशा बदल देते है!
यह धूर्तनीति है, इस पोंगापंथ से बाहर निकलो और विज्ञानवाद की तरफ चलकर अपने पैसे किसी चतुर की ठगी से बचाओ!
पत्नी की मृत्यु के केवल 6 माह में
अपने से 15 साल छोटी शिष्या से विवाह किया।
33% महिला आरक्षण का विरोध किया
जाती से कोली है
देश में इनको कोई भी नही जानता
3 बार UPSC परीक्षा में फेल हुये
सांसद चुनाव हारे
विधायक हारे
रक्षा मामले में गिरफ्तार भाजपा नेता
"बंगारू लक्षमण" को बचाने के लिए झूठी गवाही दी,
फिर भी नहीं बचा पाये।
बार-बार मुस्लिम और ईसाइयो के लिए भड़काऊ "बयान" दिया और बाहरी बताया,
उपलब्धि सिर्फ रामनाथ कोविंद #RSS से हैं।
जब दलितो पर आत्याचार हो रहे थे तब रामनाथ कोविंद का कोई स्टेटमेंट आया था
इसके खिलाफ ? तो फिर राष्ट्रपति बनने के बाद दलित कैसे ?
यानि मोदी के लिये एक परफेक्ट रबड़ स्टम्प
गुजरात में 27% कोली जाति के लोग रहते है
चुनाव आने वाले हैं,
भाजपा ने एक तीर से काफी शिकार किये है।
रामनाथ कोविंद जी की राष्ट्रपति पद के लिए योग्यतायें-
-रामनाथ कोविंद जी के राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित होने के वाद से ही देश में एक बहस छिड़ गई है कि रामनाथ कोविंद की योग्यता क्या है क्या दलित होना ही उनकी एक मात्र योग्यता है। आइये हम उनकी योग्यताओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
[1 ] योग्यता नंबर एक, जब मान्यवर कांशीराम साहेब बामसेफ के माध्यम से समाज को संगठित कर सत्ता की चाबी का फार्मूला समाज और कर्मचारियों को समझा रहे थे तब रामनाथ कोविंद आर एस एस की दरियां उठा रहे थे।
[2 ] योग्यता नंबर दो जब मान्यवर कांशीराम साहेब बहुजनो को इकठ्ठे करके बहुजन समाज का कारवा आगे बढ़ा रहे थे और जातिगत संगठनों का विरोध कर उनको बहुजन बनने का पाठ पढ़ा रहे थे तब रामनाथ कोविंद बहुजन आंदोलन को छोड़कर कोरी जाति के जातिगत संगठन का नेतृत्व कर रहे थे। कोरी जाति कहीं बहुजन आंदोलन का हिस्सा न बन जाये इसके लिए काम कर रहे थे।
[3 ] योग्यता नंबर तीन जब मान्यवर कांशीराम साहेब अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए संघर्ष कर रहे थे तब रामनाथ कोविंद जी ने पिछड़ा वर्ग में अलग से महिलाओं के आरक्षण का विरोध किया था।
[4 ] योग्यता नंबर चार, जब माननीय बहिन कुमारी मायावती जी राज्यसभा में अनुसूचित जाति जनजाति के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए प्रोमोशन में आरक्षण के बिल के लिए संघर्ष कर रहीं थीं तब रामनाथ कोविंद जी राज्यसभा में मूकदर्शक बनकर बैठे थे।
[5 ] योग्यता नंबर पांच, जब माननीय बहिन कुमारी मायावती जी संसद में रोहित वेमुला हत्याकांड का मामला उठा रहीं थी तब रामनाथ कोविंद जी बिहार के राजभावन में चूड़ियां पहनकर चुपचाप तमाशा देख रहे थे।
[6 ] योग्यता नंबर छः, जब माननीय बहिन कुमारी मायावती जी संसद में ऊना हत्याकांड में संसद में दहाड़ रहीं थी तब रामनाथ कोविंद जी पटना के राजभवन में सत्ता का स्वादिष्ट लाभ उठा रहे थे।
[7 ] योग्यता नंबर सात, राष्ट्रीय और सामाजिक समस्याओं के निदान के लिए संत समाज की जिम्मेदारी मानते रामनाथ कोविंद जी, न कि सरकारों की जिम्मेदारी।
[8 ] योग्यता नंबर आठ, भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए लाए गए बिहार सरकार का लोकायुक्त बिल रोक दिया बिहार के गवर्नर रहते हुए।
[9 ] योग्यता नंबर नौ, भारतीय संभिधान जो धर्मनिरपेक्ष है लेकिन रामनाथ कोविंद जी ईसाई और मुस्लिम को बाहरी व्यक्ति मानते हैं।
[10 ] योग्यता नंबर 10, भक्ति जनता पार्टी और उसके आका और नागपुरी संतरों के जी हुजूरी के लिये दिन रात तैयार रहते हैं।
[ ] अब इनसे ज्यादा योग्य और कौन भक्ति जनता पार्टी और उनके भक्तों को मिलेगा। जो अपने ही समाज की गुलामी का दस्तावेज खुद अपने ही हाथ से लिखने को तैयार हो, अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए।
रामनाथ कोविंद जी के एस सी,एस टी ,ओबीसी समाज व उनकी धर्मनिरपेक्षता के कुछ कार्य-कल्पना करो कि आज कांग्रेस का राष्ट्रपति तब तो रोहित वेमुला,ऊना कांड,डेल्टा मेघवाल,केरल की एक बहन,सहारनपुर कांड,अम्बेडकर की मूर्तियो को तोड़ने व उनका अपमान करने का कीर्तिमान स्थापित होने के बावजूद आज तक कुछ भी न बोलना जबकि केंद्र सरकार निरर्थक कानूनों की आड़ में भारतीय संविधान को खत्म व कमजोर करने की साजिश में लगी हुई है ऐसे में आप लोग विचार करे क्या एक सिर्फ नाम का एस सी, आरएसएस भक्त राष्ट्रपति भारतीय संविधान की रक्षा व बहुजनो का भला कर पाने में समर्थ/सक्षम होगा।एक अत्यंत गम्भीर विषय है।
सिखों का क़त्ल हो रहा था और ब्राह्मणों ने ज्ञानी जैल सिंह (सिक्ख) को राष्ट्रपति बना दिया ।
2002
में गुजरात दंगे में मुसलमानों का क़त्ले आम हुआ, मामले को ठंडा करने के लिए ब्राह्मणों ने ए.पी.जे. अब्दुल कलाम कलाम (मुसलमान) राष्ट्रपति बना दिया ।
2017
दिन बदिन दलितों पर हो रहे हमलों के बाद का डैमेज कंट्रोल तो नहीं, ब्राह्मणों द्वारा रामनाथ कोविंदजी (दलित) को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना
ब्राह्मणों को कूटनीति मे कोई नहीं हरा सकता ।
दलितों की राजनीतिक अधिकारों की लड़ाई को समाप्त करने के लिये भाजपा ने बड़ा दांव चला है । यह दांव मा. कांशीराम साहब के साथ भी भाजपा ने चला था । उन्हें राष्ट्रपति बनाने को कहा था । मा. साहब ने मना कर दिया था । उन्होंने कहा कि मै बोलने वाला व्यक्ति हूं चुप रहने वाला नहीं । मुझे चुप रहने वाला पद नहीं चाहिये । मेरे समाज के लोग डीएम, सीएम और पीएम बने जो समाज के लिये कुछ कर सके, यह मै चाहता हूँ । इसलिये दलित समाज को बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है । यह उनकी राजनैतिक लड़ाई को समाप्त करने की एक साजिश है । इससे हमें सावधान रहना है । वर्तमान में दलितों ने देश के विभिन्न भागों में जो राजनैतिक चुनौती पेश किया है उससे शोषणकारी शक्तियां बौखला गई हैं । लगभग बीस पच्चीस सालो में दलितों ने मान, सम्मान और स्वाभिमान से जीना सीख लिया है और अपने बलबूते देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का चार बार मुख्यमंत्री तक बना लिया । इससे शोषणकारी शक्तियां उन पर अत्याचार नहीं कर पा रहीं थी । लेकिन धीरे धीरे वे दलितों में विध्वंसात्मक मानसिकता के तहत फूट डालने में सफल हो रहें हैं । बाबा साहब ने सभी अछूत जातियों को एक जंजीर में बांधा था । लेकिन खुद अछूत जातियां अपने अहंकार में उस जंजीर को तोड़ रहीं हैं । जिसका फायदा उठाकर शोषणकारी शक्तियां पुनः सक्रिय हो गई हैं और बाटो और राज्य करो की नीति पर चल रहीं हैं ।दलितों को इतिहास से सबक लेना चाहिये ।
खिचड़ी कुछ पर रही ऐसी
😇😇😇😇😇😇😇
कोविंद
जो गाए
राम-राम और गोविंद
नहीं है दलित हितैषी।
रटा रटाया तोता
बिल्कुल सोच है ऐसी।
ये है घोड़ा ऐसा जंगी
जिसको लाए ढूंढके संघी
जिसके ऐसी कसी लगाम
जो न खोले कभी जुबान
करेंगें ऐसी-तैसी।
ये रखें बनाकर मोहरा
देखा इनका चरित्र दोहरा
ये है छुआछूती लोग,
ये करें दलित प्रयोग
चाल है बगुले जैसी
बचकर रहना प्यारे कोविंद
इनके झूठे राम और गोविंद
मंदिर में घुसने न देंगें।
देश को सहारनपुर कर देंगें।
हम कैसे भूलें पिछले कांड
ये बनकर लूटें भांड
खिचड़ी कुछ पर रही ऐसी।
डॉ० फूलसिंह लुहानी
रामविलास पासवान वैचारिक दरिद्रता के शिकार हो गए मालूम पड़ते हैं। बोल रहे हैं कि जो कोविंद का विरोध करेगा, वो दलित विरोधी है।
भाई साहब भाजपा की ही प्रवक्तई करनी है, तो अपनी पार्टी लोजपा का सीधे विलय ही क्यों नहीं कर देते भाजपा में ? इतनी अतार्किक बातें कैसे कर लेते हैं आप ? आप अपना ही इतिहास क्यों भूल जाते हैं ?
84 के आमचुनाव के बाद 85 में बिजनौर सीट पर हुए उपचुनाव में आप ही थे न जिनको लोकदल से चरण सिंह ने मायावती जी और मीरा कुमार जी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़वाया था।
त्रिकोणीय संघर्ष में मीरा कुमार ने तक़रीबन 5 हज़ार वोटों से आपको हराया था।
बताइए, जब दो जुझारू, योग्य, कर्मठ व लगनशील दलित प्रत्याशी मैदान में थीं ही, तो आप क्या करने गए थे वहां ?
गर आपके कुतर्कों पर चला जाए, फिर तो आप घोर महिला विरोधी करार दिए जाएंगे। यही सब अलबल बोलना है, तो बेहतर हो कि आप चुप ही रहें। कम एक्सपोज होइएगा।
दु:ख इस बात का नहीं कि रामविलास पासवान भाजपा के साथ चले गये (पहले भी गये हैं), दु:ख इस बात का है कि उन्होंने पुत्रमोह व भ्रातृप्रेम में लब सिल लिए हैं।
दलितों के साथ कितना भी बड़ा अत्याचार हो जाए, उनका बयान तक नहीं आता। पासवान जी, एक वक़्त आपका क़द कैबिनेट मिनिस्टर से कहीं ज़्यादा बड़ा था.
याद करो कि वीपी सिंह के आप विश्वासपात्र रहे, आपकी कार्यकुशलता देख, मंडल कमीशन को ज़ल्दी लागू करने के लिए पूरे मामले को दूसरे मंत्रालय से हटाकर उन्होंने आपके मंत्रालय में डाल दिया था।
देवगौड़ा और गुजराल के समय आप लोकसभा में नेता, सदन थे, नेक्स्ट टू प्राइम मिनिस्टर का रुतबा हासिल था। क्या हाल बना लिया आपने अपना ? दलित सेना का गठन कर कभी हुंकार भरने वाला नेता आज ख़ामोशी ओढ़ने पर मजबूर है।
अगस्त 1982 में सदन में मंडल कमीशन पर आपकी निरुत्तर कर देने वाली धारदार बहस कोई पढ़ ले, तो क़ायल हो जाए। आपके तेवर हमने देखे और सुने हैं, इसलिए शायद बुरा लगता है।
यही सब अनापशनाप बोलना है, तो ख़ामोश रहने में क्या बुराई है.....
सन् 2002 मे डा० #अब्दुल_कलाम राष्ट्रपति पद के लिये चुनाव लड़ रहे थे, उनके चुनाव का काम-काज भाजपा नेता प्रमोद महाजन देंख रहे थे, क्योकि कलाम साहब को राजनैतिक अनुभव नही था!
एक दिन प्रमोद महाजन ने कलाम जी से पूँछा कि आपका नामांकन भरना हैं, मै किस दिन तस्तावेज लेकर आपके हस्ताक्षर लेने आऊँ, क्या आपका कोई शुभ दिन है!
कलाम जी ने कहा- "मै एक वैज्ञानिक हूँ, अतः मै यह जानता हूँ कि ये जितने भी ग्रह-नक्षत्र है, सब अपनी निरन्तर चाल से चल रहे हैं! इनकी चाल मे ना तो कभी परिवर्तन आता है और ना ही अवरोध, अतः कोई भी दिन-समय शुभ और अशुभ नही होता, आप जब भी आना मै हस्ताक्षर कर दूँगा"
ये क्रांतिकारी शब्द हमारे देश के महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डा० कलाम के थे! कलाम साहब ने बिना कोई शुभ-अशुभ समय के हस्ताक्षर किऐ और चुनाव भी जीते।
अब आप जरा विचार करो कि हमें शनि की साढ़े साती और मंगल की महादशा से डराया जाता है! पहले कुछ अनिष्ट होने का डर दिखाना फिर कुछ पैसे लेकर उसका निराकरण करना, यह बड़ी ताकतवर अर्थनीति का हिस्सा है!
आखिर जिस मंगल और चन्द्रमा तक पहुँचने के लिये सरकार अरबो रूपये खर्च करती है, उसकी चाल को मंत्र मारकर कैसे बदला जा सकता है! आखिर वो कौन सा मंत्र है जिससे शनि और मंगल अपनी चाल और दशा बदल देते है!
यह धूर्तनीति है, इस पोंगापंथ से बाहर निकलो और विज्ञानवाद की तरफ चलकर अपने पैसे किसी चतुर की ठगी से बचाओ!
https://www.facebook.com/groups/358190987529505/permalink/1644931368855454/
ReplyDeleteजिस *मुल्क* का *प्रथम नागरिक* ही *जाति* के *आधार* पर *चुना* जाए, उस *मुल्क* से *जातिवाद* को *खत्म* करने की हर बात *बेमानी* है !
ReplyDeleteमाननीय प्रणव मुखर्जी जी पॉच साल तक भारत के राष्ट्रपति रहे।लेकिन ९०% देशवासियो को उनकी जाति का पता नही लगा।
ReplyDeleteमाननीय रामनाथ कोविंद अभी राष्ट्रपति बने नही है।लेकिन उनकी जाति का ढोल पुरी दूनिया मे पिट दिया गया। जब कि वह जज रहे है
हमारा दुर्भाग्य तो देखिये देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद के चयन हेतु व्यक्ति की योग्यता से ज्यादा उसका दलित होना प्रचारित किया जा रहा है !
कोई उसकी योग्यता के लिए नही बोल या सोच रहा है कि क्यू उन्हें चुना गया है बस लोगो को दलित दिख रहा है कि वो दलित है तभी चुना गया है मीरा कुमारी भी विदेश सेवा से है उन्हें भी दलित प्रचारित किया जा रहा है
अगर यही सोच रहेगी की कोई व्यक्ति किसी उच्च पद पर पहुँचता है तो हम लोग यही देखेंगे कि वो दलित था इस वजह से पहुँच गया या आरक्षण की वजह से न की अपनी मेहनत से तो
माफ कीजिएगा ये सोच रखने से भारत कभी जाति मुक्त नही हो सकता है क्यू की हम जाती से ऊपर उठ कर सोचते ही नही है
राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवार दलित है।
ReplyDeleteएक सुप्रीम court में वकील , UNO में उच्च पद पर आसीन रहके सांसद व् राज्यपाल के पद पर आसीन हो जाने के बावजूद अभी भी दलित है।
दूसरी IFS अधिकारी बनकर,
ब्राह्मण से विवाह करके,
उपप्रधानमंत्री की पुत्री होकर,
5 बार सांसद रहकर भी,
केंद्रीय मंत्री बनकर भी,
लोकसभा स्पीकर बनकर भी,
देश की राजधानी के बड़े बंगले में रहकर भी,
दर्जनों विदेश यात्रा कर के भी,
करोडो की संपती होने के बाद भी दलित ही है।
अगर इसके बावजूद ये दोनों उम्मीदवार दलित ही है तो फिर दुनिया की कोनसी ताकत भारत के दलितों को दलित पन से बाहर निकाल पायेगी। बड़ा गंभीर प्रश्न है😳😳 ?