Tuesday, 25 July 2017

अंबेडकर & जगजीवन राम

अंबेडकर चुनाव कभी जीते नहीं

और


जगजीवन राम चुनाव कभी हारे नहीं ।


फिरभी डॉ अम्बेडकर ज्यादा याद किये जाते है ।


नई पीढ़ी को तो मालूम ही नहीं की जगजीवन राम कौन थे ।


मतलब.....


वोट की राजनीतिक सफलता  सामाजिक प्रतिष्ठा निर्धारित नही करती ।


यकीन मानिए...


सामाजिक प्रतिष्ठा निर्धारित  करती है  विचारधारा और उन वैचारिक मूल्यों को स्थापित करने के लिए दिखाई  गई निष्ठा एवं समर्पण ।


याद रखिए....


कितने वोट लिए..

या कितनी बार चुनाव जीते...
या कितनी बार मंत्री संत्री बने...

यह आपकी प्रतिष्ठा का कारण नही बनेगा...


आप याद किये जायेंगे आपकी विचारधारा से... आप स्मरणीय रहेंगे आपके सामाजिक निष्ठा एवं समर्पण से ।



1-जिस समाज का अपना इतिहास नही होता हैं।वह समाज कभी भी शासक नही बन सकती हैं, क्योकि इतिहास से प्रेरणा मिलती हैं,प्रेरणा से जन जागृति आती हैं, जनजाग्रति से सोच बनती हैं।सोच से ताकत बनती हैं, ताकत से संगठन बनता हैं।संगठन से ही शासक बनता हैं।
2-जिस किसी भी समाज को मिटाना हो उस समाज के इतिहास को मिटा दो वह समाज अपने आप मिट जाएगी।
3-अखण्ड भारत के निर्माता चन्द्रगुप्त मौर्य चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान द्वारा स्थापित मौर्य साम्राज्य में शिक्षा एवं इतिहास का केंद्र नालन्दा विश्वविद्यालय  था मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहदत्त मौर्य की हत्या छल पूर्वक    
 पुष्पमित्र सुंग नामक धुर्त ने धोके से कर हमारे इतिहास को तहस नहस करदिया।नालन्दा विश्वविद्यालय को आग के हवाले कर दिया जो लगभग छः महीने तक धुंधूकर जलता रहा जिससे हमारा इतिहास जलकर खाक हो गया जो कुछ थोड़ा बहुत बचा बो आज हमारे सामने आ रहा हैं आज अशोक की लाट ओर अशोक चक्र रुपयों तिरंगे आदि पर अंकित देखकर गर्व की अनभूति होती हैं ।✍🙏🏻 मेरा अपने उन जागरूक पड़े लिखे भाई बन्धुओ से विशेष अनुरोध है।की अपने बुद्धिविवेक का उपयोग कर वास्तविक एव सही इतिहास को जानकर अपने लोगो को भी वताय जिससे वो भी गर्व महसूस कर सके कि हम भी चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य सम्राट अशोक महान जैसे सम्राटो के वंशज है जिन्होंने लगभग 138 वर्षों तक भारत पर शासन किया और अखण्ड भारत का निर्माण किया। ⚔⚔✍✍शिक्षा के जनक राष्ट्रपिता ज्योतिवा फुले व भारत की प्रथम महिला अध्यापिका राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले की ही देन है।की हम आज पढ़ लिख कर आगे बढ़ रहे हैं।इसके लिए हमारे इन महापुरुषो ने खुद घोर अपमान सहते हुये सारा जीवन कुर्बान कर 

दिया तव जाकर हम इस स्तिथि में है। मगर अफसोस हमारे अधिकतर पढे लिखे ग्रेजुएट लोग इनके वारे में जानते तक नही उन महापुरुषो की जयन्तिया मनाने के लिए समय नही हैं।या शर्म आती हैं। पता है अगर हमारे ये महापुरुष हमारे हक मान सम्मान शिक्षा अधिकार समानता की लड़ाई लड़ने में जरा भी शर्म करते तो आज हम उसी जिल्लत शोषण नाली के कीड़े जैसी जिंदगी जी रहे होते अतःदिमाग की बत्ती जलाओ ओर मानसिक गुलामी की जंजीरो को तोड़कर मनुवादी विचारधारा को छोड़कर वैज्ञानिक सोच पैदा करो और अत्त दीपो भवः के सिद्धांत को अपनाओ तभी हम अपना विकास कर अपनी भावी पीढ़ी को एक अच्छा प्लेटफार्म तैयार कर पायगे 

 https://youtu.be/9shUBBcxPlk

राम की नहीं बौध विहार है

अब हमें भी मैदान में आना चाहिए *
रामजन्म भूमि , राम की नहीं बौध विहार है जिसे ब्राह्मणों ने तोडा था : वीरू कौशिक
अयोध्या का प्राचीन नाम साकेत है। मौर्य शासनकाल तक इसका नाम साकेत ही था। यहाँ पर कोशल नरेश प्रसेनजित ने बावरी नाम के बौद्ध भिक्षु की मृत्य के पश्चात उसकी याद में "बावरी बौद्ध विहार" बनवाया था। राजा प्रसेनजित गौतम बुद्ध के समय में थे। इस बौद्ध विहार को ब्राह्मण राजा पुष्यमित्र शुंग(राम)ने ध्वस्त कर दिया था। यह स्थान बावरी नाम से विख्यात हो गया था।

बाद में राजा पुष्यमित्र शुंग (राम) ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से बदलकर साकेत किया और साकेत का नाम भी अयोध्या कर दिया । अयोध्या=बिना युद्ध के बनाई गयी राजधानी..


बाल्मीकि कवि ने अपने राजा पुष्यमित्र शुंग (राम) को खुश करने के लिए एक काव्य की रचना की जिसमे राम के रूप में पुष्यमित्र शुंग और रावण के रूप में मौर्य सम्राटो का वर्णन करके उसकी राजधानी अयोध्या का गुणगान किया।

बाद में राजा के निर्देश पर इस काव्य में कई दन्त कथाएं(बौद्ध धर्म की जातक कथाये) और काल्पनिक कथाएं,वंशावली आदि सम्मलित करके इसकी कथा में बदलाव किया और इसे धर्म ग्रन्थ बना लिया गया...

अयोध्या का बावरी नामक स्थान पर किसी मुस्लिम शासक ने मस्जिद का निर्माण कराया । यह मस्जिद बावरी नामक स्थान पर बनी होने के कारण बावरी मस्जिद कहलाती थी। कुछ दिनों में इसका नाम बिगड़कर बाबरी मस्जिद हो गया। यह मस्जिद बाबर ने नही बनवाई। अगर यह मस्जिद बाबर बनवाता तो मुगल काल में पैदा हुआ तुलसीदास भी अपनी रामचरित मानस में ज़रूर लिखते....


फिर unpaid police(अन्य पिछड़ा वर्ग) को आगे करके बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। इसके बाद केस हाई कोर्ट में गया। पुरातत्व विभाग द्वारा इस स्थान की खुदाई की गयी लेकिन राम मंदिर का कोई प्रमाण नही मिला क्योकि वहाँ राम मंदिर नही था। खुदाई में बौद्ध विहार के अवशेष प्राप्त हुए तो उस स्थान की खुदाई रुकवा दी। हाई कोर्ट के वकील ने फैसला सुनकर इस जमीन के तीन हिस्से कर दिए।


हाई कोर्ट के वकील mr. Agrawal ने अपनी रिपोर्ट में लिखा की यह स्थान मूलतः बौद्ध स्थल था।अब केस सुप्रीम कोर्ट में है।

इस बात की खबर बौद्ध धर्म के अनुयायियों को चली तो उन्होंने भी अपना दावा ठोक दिया। अब तीन लोग इस भूमि के दावेदार है।

मूलतः यह ज़मीन बौद्धों की है और अयोध्या में उस स्थान पर राम मंदिर नही बनेगा....

ये आरएसएस के लोग जानते है लेकिन हमारे लोग नही जानते है।

जय भिम, जय बुध्द, जय भारत


            जितेंद्र बौध्द

         सम्यक समाज संघ -(S3)
       प्रदेश प्रभारी (गुजरात),
भारत में आदिकाल से रहने वाला मुलनिवासी हो तो शेयर करों .विदेशी आर्यपुत तो डिलेट करने पर तुला है .     



 विद्रोही को भगवान बना देना ब्राह्मणवाद का ब्रह्मास्त्र है. यही बुद्ध के साथ हुआ. अब आम्बेडकर के साथ हो रहा है. अगर दलितों और आम्बेडकरवादियों ने पूरी ताक़त से इसका विरोध नहीं किया तो बाबासाहेब की मूर्तियां ही उनकी गुलामी का ज़रिया बन जाएंगी. Bhanwar Meghwanshi का आंखें खोलता लेख पढ़िए:



अम्बेडकरवाद का भक्तिकाल :

दलित गुलामी के नए दौर का प्रारम्भ  !


जयपुर में आज 13 अप्रैल 2o17 को अम्बेडकर के नाम पर "भक्ति संध्या" होगी। दो केंद्रीय मंत्री इस  अम्बेडकर विरोधी कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होंगे। अम्बेडकर जैसा तर्कवादी और भक्तिभाव जैसी मूर्खता ! इससे ज्यादा बेहूदा क्या बात होगी ?



भीलवाड़ा में बाबा साहब की जीवन भर विरोधी रही कांग्रेस पार्टी का एसी डिपार्टमेंट दूसरी मूर्खता करेगा। 126 किलो दूध से बाबा साहब की प्रतिमा का अभिषेक किया जायेगा। अभिषेक होगा तो पंडित भी आएंगे ,मंत्रोच्चार होगा,गाय के गोबर ,दूध ,दही ,मूत्र आदि का पंचामृत भी अभिषेक में काम में लिया ही जायेगा । अछूत अम्बेडकर कल भीलवाड़ा में पवित्र हो जायेंगे!



तीसरी वाहियात हरकत रायपुर में होगी 5100 कलश की यात्रा निकाली जाएगी। जिस औरत को अधिकार दिलाने के लिए बाबा साहब ने मंत्री पद खोया ,उस औरत के सर पर कलश,घर घर से एक एक नारियल लाया जाएगा। कलश का पानी और नारियल आंबेडकर की प्रतिमा पर चढ़ाये जायेंगे। हेलिकॉप्टर से फूल बरसाए जायेंगे। जिस अम्बेडकर के समाज को आज भी नरेगा ,आंगनवाड़ी और मिड डे मील का मटका छूने की आज़ादी नहीं है ,उनके नाम पर कलश यात्रा ! बेहद दुखद ! निंदनीय !



एक और जगह से बाबा साहब की जयंती की पूर्व संध्या पर भजन सत्संग किये जाने की खबर आयी है। एक शहर में लड्डुओं का भोग भगवान आंबेडकर को लगाया जायेगा।



बाबा साहब के अनुयायी जातियों के महाकुम्भ कर रहे है ,सामुहिक भोज कर रहे है,जिनके कार्डों पर गणेशाय नमः और जय भीम साथ साथ शोभायमान है।भक्तिकालीन अम्बेडकरवादियों के ललाट पर उन्नत किस्म के तिलक लगाएं जय भीम बोलने वाले मौसमी मेढकों की तो बहार ही आयी हुयी है।



बड़े बड़े अम्बेडकरवादी हाथों में तरह तरह की अंगूठियां फसाये हुए है,गले में पितर भैरू देवत भोमियाजी लटके पड़े है और हाथ कलवों के जलवों से गुलज़ार है,फिर भी ये सब अम्बेडकरवादी है।



राजस्थान में बाबा साहब की मूर्तियां दलित विरोधी बाबा रामदेव से चंदा ले के कर डोनेट की जा रही है।इन मूर्तियों को देख़ कर ही उबकाई आती है। कहीं डॉ आंबेडकर को किसी मारवाड़ी लाला की शक्ल दे दी गयी है ,कहीं हाथ नीचे लटका हुआ है तो कहीं अंगुली "सबका मालिक एक है " की भाव भंगिमा लिए हुए है।



 ये बाबा साहब है या साई बाबा ? मत लगाओ मूर्ति अगर पैसा नहीं है या समझ नही है तो।



 कहीं कहीं तो जमीन हड़पने के लिए सबसे गन्दी जगह पर बाबा साहब की घटिया सी मूर्ति रातों रात लगा दी जा रही है।



बाबा साहब की मूर्तियां बन रही है ,लग रही है ,जल्दी ही मंदिर बन जायेंगे ,पूजा होगी ,घंटे घड़ियाल बजेंगे,भक्तिभाव से अम्बेडकर के भजन गाये जायेंगे। भीम चालीसा रच दी गयी है,जपते रहियेगा।



गुलामी का नया दौर शुरू हो चुका है। जिन जिन चीजों के बाबा साहब सख्त खिलाफ थे ,वो सारे पाखण्ड किये जा रहे। बाबा साहब को अवतार कहा जा रहा है। भगवान बताया जा रहा है। यहाँ तक कि उन्हें ब्रह्मा विष्णु महेश कहा जा रहा है।



हम सब जानते है कि डॉ अम्बेडकर गौरी ,गणपति ,राम कृष्ण ,ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश ,भय ,भाग्य ,भगवान् तथा आत्मा व परमात्मा जैसी चीजों के सख्त खिलाफ थे।

वे व्यक्ति पूजा और भक्ति भाव के विरोधी थे। उन्होने इन कथित महात्माओं का भी विरोध किया ,उन्होंने कहा इन महात्माओं ने अछूतों की धूल ही उड़ाई है।


पर आज हम क्या कर रहे है बाबा साहब के नाम पर ? जो कर रहे है वह बेहद शर्मनाक है ,इससे डॉ अम्बेडकर और हमारे महापुरुषों एवम महस्त्रियों का कारवां हजार साल पीछे चला जायेगा। इसे रोकिये।



बाबा साहब का केवल गुणगान और मूर्तिपूजा मत कीजिये। उनके विचारों को दरकिनार करके उन्हें भगवान मत बनाइये । बाबा साहब की हत्या मत कीजिये।



आप गुलाम रहना चाहते है ,बेशक रहिये ,भारत का संविधान आपको यह आज़ादी देता है ,पर डॉ अम्बेडकर को प्रदूषित मत कीजिये।



आपका रास्ता लोकतंत्र और संविधान को खा जायेगा। फिर भेदभाव हो ,जूते पड़े,आपकी महिलाएं बेइज्जत की जाये और आरक्षण खत्म हो जाये तो किसी को दोष मत दीजिये।



 इन बेहूदा मूर्तियों और अपने वाहियात अम्बेडकरवाद के समक्ष सर फोड़ते रहिये।रोते रहिये और हज़ारो साल की गुलामी के रास्ते पर जाने के लिए अपनी नस्लों को धकेल दीजिये।गुलामों से इसके अलावा कोई और अपेक्षा भी तो नहीं की जा सकती है।



 जो बाबा साहब के सच्चे मिशनरी साथी है और  इस साजिश और संभावित खतरे को समझते है ,वो बाबा साहब के दैवीकरण और ब्राह्मणीकरण का पुरजोर विरोध करे।मनुवाद के इस स्वरुप का खुल कर विरोध करे।


अम्बेडकरवाद में भक्तिभाव  के लिए कोई जगह नहीं है ।   




 मित्रों आज एक और पाखंडवाद की पोल खोलते है... 

काल्पनिक पोथी  पुराणों के अनुसार जब लंका मे लक्ष्मण को शक्तिबाण लगा तब उनके प्राण बचाने के लिये सुषेन वैद्य के कहने पर हनुमान जी "संजीवनी बूटी" लेने द्रोणागिरि पर्वत की ओर उड़े! लंका से द्रोणागिरि पर्वत की दूरी लगभग 3 हजार किमी० है!
हनुमान जी आधी रात को उड़े थे और रास्ते मे थोड़ा समय कालनेमी ने बर्बाद किया, लौटते समय भरत ने भी बाण मारकर कुछ समय नष्ट किया!

हनुमान जी ने आने--जाने मे 6 हजार किमी० की यात्रा की, अगर ऐसा माना जाये कि उन्हे छः घन्टे लगे तब भी औसत चाल हुयी एक हजार किमी० प्रति घंटा,
अब पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 13 करोड़ 80 लाख किमी० है, तो हनुमान को बचपन मे कितना दिन लगेगा सूर्य तक पहुँचने मे,और फिर वापस पृथ्वी पर आने मे।

तुलसीदास जी फेकने मे तो आप माहिर थे, अब जरा यह भी बताओ कि जो हनुमान जवानी मे हजार किमी० प्रति घंटा की चाल से उड़े, तो बचपन मे किस चाल से सूर्य की तरफ उड़े थे!

बाबा तुलसी का झूठ देखो कि लिखते है कि हनुमान सूर्य को निगलकर धरती पर वापस आकर बैठे थे और देवतागण विनती कर रहे थे कि सूर्य को बाहर निकालो! सूर्य, पृथ्वी से दर्जनो लाख गुना बड़ा है और उसे खाकर हनुमान जी पृथ्वी पर ही बैठे थे!

दूसरी बात कोई भी बन्दर अगर केला भी खाता है तो उसे चबाकर खाता है, और हनुमान सूर्य को बिना चबाये ही निगल गये फिर देवताओं के कहने पर उसी स्थिति मे बाहर भी निकाल दिया!

भला यह सम्भव है कि जो चीज मुँह से खायी जाये उसे मुँह से ही सही-सलामत वापस भी निकाल दिया जाये!

तुलसी बाबा झूठ की झड़ी!!!!
मनुवाद के झुठ ओर पाखंड जिन पर हम आँख बंद करके विशवास् कर लेते हैं। 
आईये जानते है कुछ ऐसे ही झुठी कहानियों को।
1) भारत का ये सुपर मैन यानी हनुमैन जब ये  अपने हाथ पर इतना बड़ा पहाड़ उठाकर किसी और जगह ले जा सकता था तो बंदरों की फौज लंका ले जाने के लिए समुंदर में पत्थरों से रास्ता क्यों बनाना पड़ा.??? 
सीधा सबको हाथ पर बिठाकर उड़ा क्यों नही ले गया...??? 

2) जब हनुमान जी ने सूर्य को अपने मुह में दबा लिया था तब सिर्फ भारत में अंधेरा हुआ था या पूरे विश्व में।

3) कृष्ण जी की गेंद यमुना में कैसे डूब गई जबकि दुनिया की कोई गेंद पानी में नही डूब सकती। 
और गेंद का अविष्कार कब हुआ????

4) कहा जाता है कि भारत में 33 करोड़ देवी देवता हैं जबकि उस समय भारत की कुल जनसंख्या भी 33 करोड़ नही थी????

5) भारत के अलावा और किसी देश में इन 33 करोड़ देवताओ में से सिर्फ भगवान बुद्ध के अलावा किसी देवताओ को नही पूजा जाता???

6) आरक्षण से पहले इनके बंदर भी उड़ते थे , ओर न जाने किस किस विधि से बच्चों का जन्म हो जाता था, परंतु जबसे आरक्षण लागू हुआ है इनके सारे आविष्कार बन्द हो गए???

7) जब एक व्यक्ति का खून दूसरे व्यक्ति को बिना ग्रुप मिलाये हुए नही दिया जा सकता क्योंकि अगर A positive वाले व्यक्ति को सिर्फ  A positive वाले व्यक्ति का खून दिया जा सकता है अगर दूसरा खून दिया गया तो उस व्यक्ति की मौत हो सकती है। फिर इंसान के शरीर पर हाथी की गर्दन कैसे फिट हो गयी????

8) 33 करोड़ देवी देवताओं के होते हुए भी भारत हजारों साल कैसे गुलाम हो गया???

9) कोई भी देवता किसी शुद्र के घर पर पैदा क्यों नही हुआ???

10) इतने सारे देवी देवताओं के होते हुए भी शुद्र का विकास क्यों नही हुआ। उनके साथ भेदभाव क्यो हुआ..?? 

ये फेसबुक बनाने वाला मार्क जुकेबर्क को सारी दुनिया जानती है लेकिन दुनिया बनाने वाले ब्रम्हा को सिर्फ भारत देश ही क्यों जानता है.???? 

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  तिरुपति बालाजी मंदिर पहले बौद्ध विहार था...। 
सिर मुंडन💇 करने की प्रथा किसी भी हिन्दू मंदिर में नही है, ये प्रथा सिर्फ बौद्ध धम्म की है। बालाजी मंदिर में पहले जो भी भिक्खु बनने आता था उसका सर मुंडन किया जाता था। मुंडन की ये प्रथा आज भी चली आ रही है। 
तिरुपति बालाजी की जो मूर्ति है वो बुद्ध की ही है। समय के साथ ब्राह्मणों ने कब्जा करके बुद्ध को बालाजी बना दिया और अपना व्यसाय शुरू कर दिया।

उसी तरह पंडरपुर का मंदिर भी बौद्ध विहार था उसे भी ब्राह्मणों ने व्यसाय करने के लिए बुद्ध की मूर्ति को विट्ठल बना दिया। यदि मूर्ति का सभी कपडा हटा कर देखेंगे तो सच्चाई सामने आ जायेगी, तथा वहाँ के दिवालो में पाली भाषा में लिखा हुआ लेख भी बौद्ध विहार होने का पुष्टि करता है...

उसी तरह जगननाथ पूरी का मंदिर भी बौद्ध विहार था,,,
अब इसके आगे एक ही शब्द है की पहले पूरा भारत बौद्धमय था,,,
धीरे धीरे लोग समझदार होंगे और कर्मकांडो से दूर होंगे तथा भारत फिर से बौद्धमय होगा,,,
🌹जय भिम🌹

(बाबासाहेब आंबेडकर writing and speeches, volume 18. Part 3 page no 424)        

माओवाद की मानवीय पड़ताल

माओवाद की मानवीय पड़ताल

उत्तम कुमार के फेसबुक वाल से


जब भी राज्य में माओवादियों द्वारा बड़ी घटना को अंजाम दिया जाता है तो मुख्यमंत्री सुरक्षा कारणों में चूक जैसे जवाब देकर समस्या से अपना पीछा छुड़ा लेते है। लेकिन सच्चाई के धरातल में इस समस्या का समाधान जस का तस बना रहता है। इसके समाधान के लिए डॉ. डी बंदोपाध्याय जो कि 70 के दशक में पश्चिम बंगाल की नक्सली समस्या से रूबरू हो चुके हैं की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति ने नक्सली समस्या पर जो सुझाव दिए हैं वे यह सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि जिस मशीनरी को इस हेतु बार-बार लगाया जाता है वह पूर्णतया दिग्भ्रमित है। अतएव आवश्यक है कि बंदोपाध्याय समिति की अनुशंसाओं पर विचार कर नक्सली समूहों से बातचीत के द्वारा ही इस समस्या का निराकरण किया जाए।


2006 में नक्सली मामलों पर सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी डी बंधोपाध्याय की अध्यक्षता में गठित योजना आयोग की समिति की रपट में भूमि हस्तांतरण, आदिवासियों एवं दलितों में व्याप्त गरीबी और मूल वन उत्पादों तक उनकी पहुंच न होने को माओवाद के विकास का कारण माना है। ‘आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में विकास के लिए चुनौतियां’ नामक रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ के सलवा जुडूम को कटघरे में खड़ा किया गया था। साथ ही विशेष आर्थिक क्षेत्र की आलोचना करते हुए इसमें पंचायत राज (अनुसूचित क्षेत्र विस्तार कानून 1996 और वन (संरक्षण) कानून, 1980 जैसे शासकीय प्रावधानों की असफलता को भी रेखांकित किया गया है। यहां यह जोडऩा उचित होगा कि यदि 5 वीं अनुसूची को आदिवासी क्षेत्रों में लागू कर दिया जाए तो बहुत हद तक इस समस्या से निजाद पाया जा सकता है। लेकिन जानकारों का कहना है कि यह अनुसूची वास्तव में संविधान में बताए गए राज्यों में लागू ही नहीं है जो निश्चित रूप से भारतीय संविधान का उल्लंघन करता है।


रपट में पड़ताल के प्रमुख मुद्दों में अशांत क्षेत्रों में जारी तनाव, विस्थापन की प्रक्रिया एवं बड़े पैमाने पर विस्थापन, वन संबंधी मामले, असुरक्षा की भावना और शोषण के अन्य तरीकों, कारणों की पहचान एवं पेसा को लागू करने के लिए विशेष प्रावधानों की आवश्यकता बताई गई है। समिति के अन्य सदस्यों में उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिर्देशक प्रकाश सिंह, सतर्कता ब्यूरो के पूर्व निर्देशक अजित डोवाल, सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी बीडी शर्मा, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष सुखदेव थोरात व मानव अधिकार अधिवक्ता के बालगोपाल शामिल थे। अध्ययन सिर्फ आंतरिक सुरक्षा को लक्ष्य न करते हुए समस्या के प्रत्येक बिंदु पर अध्ययन के लिए लक्षित था। बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल व छत्तीसगढ़ जैसे अपेक्षाकृत कम सम्पन्न राज्य जहां अनुसूचित जाति व जनजाति की आबादी की बहुतायत है वहीं नक्सली आंदोलन के पनपने की ज्यादा संभावनाएं होती हैं। रपट एक महत्वपूर्ण आवश्यकता की अनुशंसा करती है जिसके अनुसार एक ऐसी सर्वमान्य रपट तैयार की जाए जो अधिकारियों, समाज और आमजन हेतु वस्तुस्थिति को न सिफ ठीक ढंग से प्रस्तुत करती हो बल्कि विगत 5 दशकों से भारत के ग्रामीण इलाकों में जारी हिंसा से निपटने के तरीकों की सिफारिश भी करती हो।


रपट के अनुसार माओवाद के बढऩे के पीछे भूमि संबंधित असंतोष प्रमुख वजह है। यह एक और बात रेखांकित करती है कि नक्सलियों ने भी निजी भूमि पर गरीबों के स्वामित्व की दिशा में कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल नहीं की है। हजारों एकड़ भूमि अब भी व्यर्थ पड़ी है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह कानूनी रूप से भूमिहीनों को ऐसी भूमि पर हक दिलाने के लिए कोई ठोस योजना तैयार करें।  इसके लिए वह विभिन्न कानूनों को सख्ती से लागू करें जिससे स्थानीय निवासियों को भूमि संबंधित और अन्य वाजिब हक मिल पाएं।


समिति ने अनुसूचित जाति-जनजाति के हितार्थ गठित विभिन्न आयोगों के बीच समन्वय और निगरानी की अनुशंसा की है। वह इन निकायों के बीच वैचारिक आदान-प्रदान और सहयोग से ऐसी कार्य योजना की सिफारिश की अनुशंसा भी करती है जिस पर अमल की बाध्यता राज्यों के मुख्य मंत्रियों पर भी हो।कमजोर तबके के आर्थिक उत्थान के लिए समिति ऐसे ऋणों, जिसमें मूलधन के बराबर चुकारा हो चुका हो अथवा जिस उद्देश्य से ऋण लिया गया था उसमें सफलता प्राप्त न हुई हो, को माफ किए जाने की भी सिफारिश करती है। रपट कहती है कि भूमिअर्जन कानून में सार्वजनिक प्रयोजन का तात्पर्य राष्ट्रीय सुरक्षा एवं जनहित मामलों तक ही सीमित कर दिया जाए एवं कम्पनियों, सहकारी संस्थाओं और पंजीकृत संस्थाओं के अर्जन मामलों को इससे पृथक रखा जाए।


रपट भूमि अर्जन (संशोधन) विधेयक 2007 के संशोधनों पर भी प्रश्रचिह्न लगाती है। यानी की रपट वर्तमान भूमि अधिग्रहण कानून 2014 पर भी सवाल उठाती? इन्सटीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एण्ड एनालिसिस के निहार नायक का कहना है कि अनुसूचित जातियों जनजातियों के द्वारा उपयोग में लाई जा रही कृषि भूमि के सर्वे का काम काफी समय से बाकी है, इसके सम्पन्न होने से उन्हें भूमि पर कानूनी हक दिलाया जा सकेगा। समिति ने सुझाव दिया है कि पीसा द्वारा विस्थापन को रोकने के लिए ग्राम सभाओं को दिए गए अधिकारों को अनुसूचित जाति-जनजाति तक बढ़ाना चाहिए। क्योंकि राजस्थान एवं मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में विभिन्न आयोगों ने इसके लिए अनुसूचित क्षेत्र का पैमाना निर्धारित किया है।


आलोचकों का मत भिन्न है उनका कहना है कि रपट आतंकवाद की उचित व्याख्या नहीं करती है। यह सिर्फ वापमंथी आतंकवाद पर ही ध्यान दे रही है। जबकि उत्तरपूर्व और जम्मू कश्मीर में भी समस्या का स्वरूप यही है। इन्सटीट्यूट फॉर कानफ्लिक्ट्स मैनेजमेंट दिल्ली के कार्यकारी निर्देशक अजय साहनी तो यहां तक कहते हैं कि इसमें सिर्फ पुराने समाधानों की पुनरावृत्ति है, जमीनी सच्चाई का इसमें भी ध्यान नहीं रखा गया है। लेकिन बंदोपाध्याय का कहना है कि माओवाद योजनाकारों की अदूरदर्शिता का परिणाम है। लगातार विस्थापन ने लोगों को हथियार उठाने पर मजबूर कर दिया है। मूलत: यह प्रशासनिक समस्या न होकर सामाजिक-आर्थिक समस्या है।


सोसायटी फॉर स्ट्डी ऑफ पीस एण्ड कॉन्फ्लिक्ट्स के कार्यकारी निर्देशक अनिमेश राओल कहते हैं कि रपट उस तथाकथित वैचारिक आंदोलन के बढ़ते आपराधिक स्वरूप में नक्सलियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के दुरूपयोग और बलप्रयोग पर कोई टिप्पणी नहीं करती। साथ ही यह स्थानीय कमजोर तबके की महिलाओं एवं बच्चों के शोषण की ओर ध्यान नहीं देती है। समिति के सदस्यों का मानना है कि नक्सलियों के साथ बातचीत की जानी चाहिए। जब उल्फा और कश्मीरी आतंकवादियों के साथ सरकार बातचीत कर सकती है तो इनके साथ क्यों नहीं? मई 2006 में गृह मंत्रालय द्वारा तैयार कराए गए दस्तावेज में स्पष्ट कहा गया है कि नक्सलवादियों से कोई बातचीत नहीं की जानी चाहिए। इस धारणा पर आज भी गृह मंत्रालय अडिग है।


एकता परिषद के रमेश शर्मा का कहना है कि जनजातीय और पारम्परिक वनवासी कानून का उचित क्रियान्वयन हो जिससे आतंकवाद प्रभावितों के पुनरोत्थान का मार्ग सुगम हो सके। समिति का मानना है कि ऐसी परिस्थिति में सलवा जुडूम को तर्क संगत नहीं ठहराया गया था। सलवा जुडूम के प्रवर्तक व कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा भी मृत्यु से पूर्व इस मामले को नियंत्रण से बाहर मानने लगे थे। छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री एवं पुलिस प्रमुख अलबत्ता भिन्न राय रखते हैं। उधर दूसरी ओर स्वतंत्र पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी के अनुसार शिविरों में परिस्थितयां न  सिर्फ अस्वास्थ्यकर हैं वरन उनके नैसर्गिक जीवन से काफी भिन्न भी हैं। एकता परिषद के शिवनारायण का मानना है कि सलवा जुडूम ने कुछ अच्छा करने के बजाए नुकसान ही ज्यादा किया है। ग्रामवासी अब वनों की ओर लौट रहे हैं जहां उन्हें नक्सलियों से खतरा है। हालात ये हैं कि शिविर सूनसान पड़े हैं और जो आदिवासी गांवों को लौट रहे हैं उन्हें सुरक्षाबल अपना निशाना बना रहे हैं।


समिति ने सलवा जुडूम को खत्म करने की सिफारिश की थी क्योंकि इससे राजनीति में अपराधीकरण, लोगों में मानवीयता की कमी, सुरक्षाकर्मियों के मनोबल में कमी और सबसे महत्वपूर्ण राज्यसत्ता को चुनौती जैसी बुराईयां पनपी हैं। समिति का कहना है कि जबरिया विस्थापन की वजह से रिक्त हुई भूमि पर उद्योग कब्जा कर लेते हैं। अत: रपट में लोगों के हितों की रक्षा एवं शिकायतों के निराकरण हेतु एक अधिकार सम्पन्न कार्यबल के स्थापना की सिफारिश की गई है और इसकी सहायता के लिए सरकारी स्तर पर ऐसे जनभागीदारी समूहों के गठन की अपेक्षा की गई है जो स्थानीय निवासियों से व्यक्तिगत रूप से परिचित हों और उनके साथ हमदर्दी रखता हो।


योजना आयोग ने उस समय आशा जताई थी कि चुनावी वर्ष होने से सरकार वार्ता शुरू करने की दिशा में कदम उठाएगी। वार्ता के समय इस बात का भी ख्याल रखा जाना होगा कि असंतोष की वजहें विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न हैं, जैसे आंध्र, बिहार और तमिलनाडु में भूमि से बेदखली और जातिगत वैमनस्य की समस्या है तो उड़ीसा व छत्तीसगढ़ में जनजातीय विस्थापन, जंगलों के घनत्व में कमी और वृहद स्तर का औद्योगिकरण समस्या है, वहीं महाराष्ट्र में कृषक आत्महत्या का मुद्दा प्रमुख है।


समिति के सदस्य तो माओवादियों को खनिज संपदा में हिस्सा देकर मुख्यधारा से जोडऩे की वकालत करते हैं। योजना आयोग के एक वरिष्ठ सदस्य का कहना है इससे वे अपनी भूमि की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो जाएंगे। हालांकि यह भी देखना होगा कि ऐसा होने पर वे भी ठेकेदारों की तरह भ्रष्ट न हो जाएं।




दक्षिण कोसल

मई-2015 से
उत्तम कुमार
संपादक                   

दलितों के प्रति घृणा क्यों

दलितों के प्रति घृणा क्यों कारण और निवारण

🔹यह मनुवादियों के शास्त्रों में लिखा हुआ है कि शूद्र जाति सेवा के लिए होती है, उनको धन नहीं रखना चाहिए, उनको अच्छे कपड़े नहीं पहनना चाहिए, वे हीन होते हैं, वे बिना पीटे सही काम नही करते।


🔹शूद्र जाति के लोग गंदे, अनपढ़, गवार, असभ्य, अछूत होते हैं, ये गंदा खाते हैं,  इनके शरीर से बदबू आती है; इन सब मान्यताओं के कारण इनसे घृणा की जाती है। शूद्रों में दो तरह के लोग होते हैं- शूद्र और अति-शूद्र। दलित अति शूद्रों में आते हैं।


🔹डॉ आंबेडकर ने कहा था कि मनुष्य के विकास के लिए धर्म अति आवश्यक है। इसलिए दलित को भी एक धर्म चाहिए। पहले वह वर्ण व्यवस्था से भी बाहर था। लेकिन फिल्मों, टीवी सीरियलों, पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से, त्यौहारों के माध्यम से उसको हिंदू धर्म ही परोसा गया। बौद्ध धर्म की किसी भी शिक्षाओं का कोई प्रचार नहीं हुआ, इसी कारण वह अपनी आध्यात्मिक उपलब्धियों के लिए हिंदू धर्म का ही सहारा लेता है। हालांकि शास्त्रों द्वारा उसका मंदिरों में प्रवेश वर्जित है भले ही वह मंदिरों में जाता हो क्योंकि मंदिरों में अच्छी वेशभूषा पहन कर जाने पर जाति नही पूछी जाती। हो सकता है कि एक समय आए कि इंट्री रजिस्टर में जाति भरी जाए। तब लोग झूठी जाति लिखकर ही मंदिर के अंदर जा पाएंगे।


🔹सरकारी स्कूलों में पढ़ने के कारण दलित समाज के लोग बहुत अधिक अच्छी शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाते हैं जिसके कारण प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले दूसरी जाति के लोग उनसे आगे निकल जाते हैं।


🔹गांवों में जब दलित लोग उन्नति करने लगते हैं, अच्छा पहने लगते हैं तो भी उनसे ईर्ष्या के कारण घृणा पैदा होने लगती है। यह घृणा राजनीतिक स्तर पर भी आ चुकी है। भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं को यह सुनते हुए पाया गया है कि जो लोग हमारे जूते साफ करते थे वे आज हमारे सिर पर आकर बैठ गए हैं।


🔹हमारे समाज के कई लोगों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है। वे क्रिश्चन मिशनरी स्कूलों में फादर, ब्रदर या प्रिंसिपल के पद पर तैनात हो गए हैं। उनसे कोई नहीं कहता कि ये कल हमारे जूते साफ करते थे आज प्रिंसिपल बन गए हैं।


🔹मुसलमानों के साथ भी यही हुआ। कोई नहीं कहता ये हमारी गंदगी साफ करते थे और आज अच्छी-अच्छी दुकानों के मालिक हैं, बिजनेसमैन है।


🔹धर्म परिवर्तन कर बने हुए सिखों को कोई नहीं कहता कि कल जो हमारे झाड़ू लगाते थे, अब गुरुद्वारों के संत बने बैठे हैं या विदेशों में जाकर अच्छा बिजनेस कर रहे हैं।


🔹धर्म बदलने का यही फायदा होता है कि एक पीढ़ी के बाद गाली या अपमान मिलना बन्द हो जाता है। आगे की पीढ़ियां सुख से रहती हैं।


🔹यह बात अलग है कि किन्ही धर्मों में कुछ आपसी भेदभाव रहता है जोकि तथाकथित उच्च वर्णों से धर्म परिवर्तन करके आने वालो की कोशिश के कारण है पर उनका धर्म ये भेदभाव नहीं मानता।


👺 घृणा को कैसे समाप्त किया जाए-

🥞🥙कुछ लोग कहते हैं कि खान-पान से यह घृणा समाप्त हो सकती है। ऐसा पाया गया है कि खानपान अपनी मर्जी से नहीं किया जाता। जब कोई दलितों का समूह अपमान के कारण धर्म परिवर्तन करना चाहता है तो उसको रोकने के लिए एक सामूहिक भोज रख दिया जाता है ताकि धर्म परिवर्तन को रोका जा सके।

👫यह भी कहा जाता है अंतर्जातीय विवाह से जाति पाति को खत्म किया जा सकता है। इस तरह के विवाहों के बाद ये भी यह पाया गया है कि तथाकथित उच्च जाति के लड़के या लड़की वाले अपना संबंध तोड़ लेते हैं तो इस प्रकार से संबंध जुड़ने की बजाए टूट जाता है और कटुता पैदा हो जाती है। इसी चक्कर में कई लोगों को मौत के घाट भी उतार दिया जाता है।


☠ सबसे पहले हमें जाति की निरर्थकता को साबित करना होगा, उसकी अवैज्ञानिकता को साबित करना होगा और जनता को इस बारे में सही जानकारी देनी होगी।


✊🏻 हमें अपने स्टैंडर्ड को बढ़ाना होगा, रहने, खाने पीने का एक उच्च स्तर बनाना होगा और ज्ञान में इन तथाकथित मेरिट वाले लोगों को भी पछाड़ देना होगा।


🐝साथ ही साथ अपनी आत्मशक्ति और साहस को बढ़ाना होगा। अपनी आत्मरक्षा के लिए अपने आप को तैयार करना होगा। अपने समाज को जोड़ना होगा। समय पड़ने पर एक दूसरे की मदद करनी होगी। कानून की जानकारी रखनी होगी।


❌अपनी मेहनत से कमाई हुई दौलत को शराब, बीड़ी, तमाखू, सिगरेट, मंदिरों में दान करके नहीं गवाना चाहिए। इससे अपने जीवन स्तर को सुधारने और बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाने में इस्तेमाल करना चाहिए।


👻हमें समझना चाहिए कि जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था काल्पनिक है। जाति व्यवस्था परिवारवाद का एक बड़ा रूप है। उदाहरण के तौर पर हम कह सकते हैं कि जैसे नेहरु का परिवारवाद पूरे देश में छाया रहा। अभी भी उनके परिवार के राजकुमार को क्षमता ना होने के बावजूद भी प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा है। ठीक इसी प्रकार मध्य एशिया से आए कुछ ब्राह्मणों ने अपने बढ़े हुए परिवार को जाति का नाम दे दिया। आज उसकी जाति में योग्यता हो या ना हो वह अपने आप को सभी जातियों से सर्वोपरि मानते हैं जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। मूलनिवासियों को हीन बनाये रखने के लिए उन्होंने नीचे के वर्णों और जातियों में डाल दिया। लोग समझते हैं ये भगवान के बनाए वर्ण हैं और उनको छोड़ना नहीं चाहते भले ही योग्यता में वे कितने ही बड़े और श्रेष्ठ क्यों ना हो। इसलिए ब्राह्मणों की बनाई हुई जातियों पर विश्वास करके उसी जगह बने रहना नासमझी और डर को दिखलाता है।


👹 लोगों ने बाबा साहब को तो माना लेकिन उनकी धर्म परिवर्तन की बात नहीं मानी। इसका एक मात्र कारण उनके मन में बैठा हुआ देवी देवताओं का डर है। उनको लगता है कि अगर वे देवी देवताओं को छोड़ देंगे तो उनका कोई नुकसान हो जाएगा।


👺कुछ लोगों ने अपनी जाति को ही कई प्रकार के गौरवशाली रूपों में बताना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि चमार सूर्यवंशी राजा की संतान है। मुझे अपनी जाति नहीं छुपानी चाहिए जो छिपाते हैं वे कायर हैं। मुझे चमार होने पर गर्व है आदि।


😡 इन चमारों को अगर कोई तथाकथित सवर्ण, चमार कह देता है तब वे नहीं कहते की कोई बात नहीं मुझे चमार होने पर गर्व है और मैं सूर्यवंशी हूं। उल्टा वे पुलिस स्टेशन की तरफ भागते हैं और एट्रोसिटी एक्ट में अपना मुकदमा करवाने की सिफारिश करते हैं। अगर चमार होने पर गर्व है तो चमार कहने पर अपमान क्यों महसूस करते हो। वास्तव में चमार शब्द और जाति इतनी बदनाम हो चुकी है कि इसके साथ जुड़ा रहना उचित नहीं है। चमार वास्तव में वे पहले बौद्ध ही थे। चमार / शूद्र थोपी हुई जाति / वर्ण हैं।


😐➡😊➡😀अगर सभी दलित बौद्ध हो जाते हैं तो दो तीन पीढ़ियों के बाद ब्राह्मणों को दलित कहने के लिए कोई आदमी नहीं मिलेगा। हमें बार-बार समझना पड़ेगा कि सभी मनुष्य बराबर हैं, उनकी बुद्धि बराबर है तो वे किसी दूसरे इंसान से नीचे क्यों रहे।


👻❌दलितों द्वारा इसाई धर्म में परिवर्तन होने से किसी देवी-देवताओं ने उनका घर नहीं जला दिया। सिखों द्वारा धर्म परिवर्तन करने से किसी भी देवी देवता ने उनको विकलांग नहीं बना दिया। देवी देवताओं का डर जब था जब मेडिकल साइंस एडवांस नहीं थी। मिर्गी जैसी बीमारी को लोग समझते थे उसके ऊपर देवी सवार हो गई है। इसलिए देवी देवताओं को त्यागकर बिना डरे, उच्च धर्म को अपनाना चाहिए जो कि बौद्ध धर्म है।


👉 धर्म की शिक्षा

धर्म की कोई शिक्षा होनी चाहिए।
हिंदू धर्म में ब्रह्मा के क्या उपदेश हैं?
रामचंद्र जी ने क्या शिक्षा दी?
शिव जी ने क्या शिक्षा दी?
गणेश जी के उपदेशों का वर्णन करो!
अगर सोचा जाए तो कुछ भी दिमाग में नहीं आता कि उन्होंने क्या शिक्षा दी।

🖐 पर अगर कोई कहे कि भगवान बुद्ध ने क्या शिक्षा दी तो हम तुरंत पंचशील के उपदेशों को बता सकते हैं, अष्ट मार्ग को बता सकते हैं। जीवन में होने वाले दुखों के कारण और निवारण को भी बता सकते हैं।


☺ वास्तव में बौद्ध धर्म में वे उपदेश हैं जो कि हमें एक अच्छा जीवन जीने के लिए शिक्षा देते हैं। अब साफ है कि हमें किस धर्म को अपनाना चाहिए जो हमें समानता दे या जो हमें नीच बताये।


🏠🏬यह माना जाता है कि शहरों में जातिवाद कम है, भेदभाव और छुआछूत काम है। वास्तव में शहरों में हम अच्छे नाम और टाइटल रखकर किराए का मकान  ढूंढते हैं या प्राइवेट सेक्टर में नौकरी पाते हैं। तो कोई हमारी अच्छी वेशभूषा या शक्ल देख कर शक नहीं करता है। लेकिन जैसे ही उसको हमारी जाति पता चलती है तो हमारे अच्छे काम क्षण भर में भुला दिए जाते हैं और हम नीच बना दिए जाते हैं। इससे यह सिद्ध होता है हम अपने कर्म और शक्ल व वेशभूषा से नीच नहीं है। उस जाति को अपनाए रखने के कारण ही हम नीच हैं। जब तक हम उस जाति को जोकि उन ब्राह्मणों की बनाई हुई है, मानते रहेंगे, तब तक हम ब्राह्मणवाद को जिंदा रखेंगे।


👞👟अगर हम चमार शब्द को चमड़े की चीज यानि कि  जूता बनाने से जोड़ लें तो यह आपके ऊपर हमेशा नहीं इस्तेमाल किया जा सकता। अगर आप पढ़ लिख कर डॉक्टर बन गए हैं और इंजीनियर बन गए हैं। तो फिर आप डॉक्टर या इंजीनियर की जाति के हो गए ना कि चमार जाति के।


😇 कभी-कभी हम मल्होत्रा, अग्रवाल, शर्मा, शुक्ला के जूतों के शोरूम में जाते हैं तब वहाँ कभी नहीं कहते कि अरे मोची जूते दिखाओ, अरे चमार उस जूते की कीमत कितनी है। जबकि ये लोग हमें अधिकारी होने पर भी ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं।


😢😫अगर आप लोग अपना धर्म बदलने से अभी भी डर रहे हैं तो अच्छे तरीके से रहिए, अच्छा खाइए, अच्छा पीएं (दारू नहीं), बहुत अच्छी पढ़ाई करें, अच्छी बातचीत की शैली अपनाई है और फिर भी अगर आपको कोई चमार , चूढा, अहीर कहता है तो आप उसको महा चमार , चूढा, अहिर कह कर पुकार सकते हैं।


👊अगर कोई कहे, "अरे चूढा-चमार के क्या कर रहा है?"

आप उत्तर दे सकते हैं, "अरे महा चूढा,महा चमार! अंधा है क्या? दिख नहीं रहा।" वह थोड़ा गरम जरूर होगा लेकिन वहां से भाग जाएगा। जैसे के साथ तैसा करने की हिम्मत करनी होगी।

🐝जयभीम, जय संविधान📘                  

तलाक के मामले

तलाक के मामले पर शबीना खान के पीएम मोदी जी से कूछ सवाल

शबाना खान ने तलाक पर कहा कि जो अपनी पत्नी को पत्नी का दर्जा नही दे सका उसके शासनकाल मॆ मुस्लिम महिलाओ के लए तलाक का मामला उठाना बहूत ही हास्यपद हे। जब ज़कीया फोन घुमाती रहि तब औरतो के अधिकार कहा थे?

जब बिलकीस का रेब हो रहा था तब औरतो के अधिकार कहा थे ?
जब जाहिरा शेख कि बेकरी जला दी गई तब औरतो के अधिकार कहा थे ?
जब गुजरात दंगो मॆ मुस्लिम महिलाओ के पेट चीर कर बच्चा निकाला था तब औरतो के अधिकार कहा थे ?
अपनी बीवी को छोड़ के भागने वाला भगोडा आज दूसरो के तलाक पे उपदेश दे रहा हे,
आज उनके वंशज महिलाओ के अधिकार कि बात कर रहे हे जिनके पूर्वज सती प्रथा मॆ औरतो को जिंदा जला देते थे।
चलिए मान लीया आपको मुस्लिम महिलाओ कि परवाह हे। तो बताईये झाकियां जाफरी और इशरत जहां  को इंसाफ कब दे रहे हो?
अपनी बेटी को कोख मॆ मारने वाले मुस्लिम औरतो के गर्भ चीर कर तलवार कि नोक पे बच्चो को मारने वाले मुस्लिम औरतो को इंसाफ दिलाने कि बात कर रहे हे।
लिव इन रिलेशन शीप कि आड़ मॆ अय्याशी करने वाले चड्डी धारी शरीअत पर ज्ञान दे रहे हे।दहेज कि लालच मॆ अपनी औरतो को जिंदा जलाने वाले तलाक पर ज्ञान दे रहे हे। मसला एक या तीन तलाक का नही हे, मसला ये हे के हमे हरगिज़ ये मंजूर नही के हमारी शरीयत के फ़ेसले  कोइ बाहर से आकर करे।
द्रौपदी ने भी पाँच पांडवों से शादी कि थी तब हमने कोइ दखल अंदाजि नही कि।
भगवान कृष्ण कि भी सोला हजार पत्नियां थी तब हमने कूछ नही कहा,
तो आप कौन होते हो हमारी शरीअत के फ़ेसले करने वाले???
तुम अपनी सगी दो टाग वाली मा का मूत नही पीते और गाय जो एक जानवर है उसको मा मान कर उसकी मूत पी जाते हो तुम्हे अपनी सगी अम्मा से ज्यादा एक जानवर प्यारा है;इस पर हमने तो कुछ नही कहा फिर तुम हमारी शरीयत पर क्यो आवाज उठाते हो| जिसकोे तुमने बनाया नही उसे बदलने को सोच कैसे लिए?
इस मेसेज को इतना फ़ेलाओ के मुस्लिम महिलाओ के लए झूटी हमदर्दी जताने वाले भगवा धारी और चड्डी धारियों  कि अकल ठिकाने आ जाए......
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प्रखर वक्ता एवं राजनेता, रुमाना सिद्दीकी बहुत अच्छा लिखती हैं।

रूमाना सिद्दीक़ी जी लिखती हैं कि, कब आँखे खोलोगे मुसलमानो ??


1. आप 1400 से ज्यादा सालोँ से अपने हक के लिए लड़े जा रहे है, अल्लाह जाने कौन सा हक़ है जो पूरी दुनियाँ आपको 1400 सालों से नही दे पा रही...


2. आप सिर्फ लड़ने के लिए ही पैदा हुए, जहाँ गैर मुस्लिम है वहां आप उनसे लड़ रहे है, जहाँ गैर मुस्लिम नही है वहां आप आपस में ही लड़ रहे है...


3. आप लड़ना बन्द नही कर सकते इसलिए कम से कम लड़ाई के तरीके बदलिए ताकि आप की हार जीत में बदल सके...


आप मेरे देखते देखते 2014 के बाद से भारत में लगातार राजनैतिक रूप से हार रहे है...


आप के योगदान के बिना सरकारें बन रही, आपकी मर्जी के खिलाफ पीएम और सीएम बन रहे है...


लोग आपको आपकी विचारधारा को नकार रहे हैं...


अपने खिलाफ ये नकारात्मक माहौल आपका खुद का बनाया हुआ है...


4. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कहती है मुसलमानो की हालात सबसे खराब है देश में, लाखो मुस्लिम बेघर है, शिक्षा के आभाव में पंचर बना रहे, न आप बड़े उद्योगपति है, न देश में होटल आपके, न मॉल, न हॉस्पिटल आपके, न आपके बैंक एकाउंट न एकाउंट में पैसा लेकिन नोटबन्दी के खिलाफ आप इतने मुखर थे जैसे सबसे बड़ा घाटा आपका ही हुआ, जैसे आपके लाखो करोड़ो के नोट बर्बाद हो गए, जैसे बेरोजगार सिर्फ मुस्लिम ही हुए हो...


5. आप खुद ही कहते रहे की बूचड़खाने भाजपा के हिन्दू नेताओ और जैनियों के है, सिर्फ 14% मांस मुस्लिम खाते है बाकी का हिन्दू खाते है...


और अवैध बूचड़खानों पर सबसे ज्यादा कपड़े आप ही फाड़ रहे...


तो आप खुद ही अपने झूठ का पर्दाफाश कर के अपने खिलाफ नकरात्मक माहौल बनाते है फिर इलज़ाम दूसरों पर क्यों लगाते है...


बूचड़खानों पर या तो आप कल झूठ बोल रहे थे या आज झूठ बोल रहे है...


6. एंटी रोमियो स्क्वाड पर भी आपकी आपत्ति बेवज़ह है...


आप अपनी बहू बेटियों को बुर्के में रखते है ताकि बुरी नज़र से बचाया जा सके, महिलाओं को अकेले बाहर जाने की इज़ाज़त नही इस्लाम में, आप पांच वक्त के नमाज़ी और ईमान वाले है, आपको भी नज़र के पर्दे का हुक्म है , चरित्रहीन महिला को संगसार करने की सज़ा है इस्लाम में , फिर एंटीरोमियो स्क्वाड का विरोध आप किस लॉजिक के आधार पर कर रहे...?


7. साल भर आप जय भीम जय मीम करते है, भीम भी आपके साथ ब्राह्मणों को गरियाता है और चुनाव के वक्त मीम को छोड़ के भगवा थाम लेता है। आपको ईवीएम टेम्परिंग का झुनझुना पकड़ा दिया जाता है और आप बजाते रह जाते हैं।"


8. देश का नाम भारत है, हिंदुस्तान है पहले आर्यव्रत, रीवा भी था मतलब संस्कृत और हिंदी नाम ही रहे, भारत में साधू संत देवी देवता जन्मे, विद्वान् महापुरुष जन्मे, कोई हिन्दू राजा शासक कभी इराक ईरान सीरिया सऊदी मिस्र नही गया राज़ करने युद्ध लड़ने अपनी धौस जमाने जैसे की यहाँ भारत में बाबर, हुमांयू, अकबर, ओरंगजेब, गजनबी सहित हजारो मुगल शासक आए! भारत भूमि का कण कण कहता है की ये राष्ट हिन्दुओ का था और मुस्लिम बाहरी थे फिर भी हिन्दुओ ने मुस्लिमो को स्वीकार किया!


हिन्दुओ के लाखो मन्दिर प्राचीन काल में मुगलो ने तोड़े उनमे से एक राम मन्दिर भी था जिसको बाबर ने मस्जिद का रूप दिया!


सीरिया पाक इराक ईरान तालिबान में हजारो मस्जिद बम से उड़ा दी जेहादियो आतंकियों ने उनके लिए कभी रोए नही और यहाँ राम मन्दिर की जंगह, एक मस्जिद के लिए लड़े मरे जा रहे हो!


- रूमाना सिद्दीक़ी


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हिन्दू शब्द की उत्पत्ति

प्राचीनकाल में संपूर्ण धरती में सिर्फ एशिया ही रहने लायक सबसे उत्तम जगह माना गया था। इस एशिया को हिन्दू पुराणों में जम्बूद्वीप कहा गया था। हालांकि इसमें योरप के कुछ हिस्से भी शामिल है।

हिन्दू शब्द की उत्पत्ति इंदु शब्द से हुई है यह इंदू ही इंडस हो गया। इंदु शब्द चंद्रमा का पर्यायवाची शब्द है। आर्य किसी जाती का नहीं बल्कि वैदिक विचारधारा मानने वाले लोगों का नाम था जिसमें सभी जाती के लोग सम्मलित थे जैसे दास, वानर, किन्नर, द्रविड़, सुर, असुर आदि। जो लोग यह कहते हैं कि आर्य बाहर से आए थे उनका ज्ञान सही नहीं है या कि उनमें नफरत और साजिश की भावना है।                   

''हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थान प्रचक्षते॥- (बृहस्पति आगम)
अर्थात : हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। इसका मतलब हिन्दुस्थान चंद्रगुप्त मौर्य के काल में था लेकिन आज जिसे हिन्दुस्थान कहते हैं वह क्या है? दरअसल यह हिन्दुस्थान का एक हिस्सा मात्र है।
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प्राचीन काल में संपूर्ण जम्बू द्वीप पर ही आर्य विचारधारा के लोगों का शासन था। जम्बू द्वीप के आसपास 6 द्वीप थे- प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। जम्बू द्वीप धरती के मध्य में स्थित है और इसके मध्य में इलावृत नामक देश है। इस इलावृत के मध्य में स्थित है सुमेरू पर्वत।
इलावृत के दक्षिण में कैलाश पर्वत के पास भारतवर्ष, पश्चिम में केतुमाल (ईरान के तेहरान से रूस के मॉस्को तक), पूर्व में हरिवर्ष (जावा से चीन तक का क्षेत्र) और भद्राश्चवर्ष (रूस), उत्तर में रम्यकवर्ष (रूस), हिरण्यमयवर्ष (रूस) और उत्तकुरुवर्ष (रूस) नामक देश हैं।
मिस्र, सऊदी अरब, ईरान, इराक, इसराइल, कजाकिस्तान, रूस, मंगोलिया, चीन, बर्मा, इंडोनेशिया, मलेशिया, जावा, सुमात्रा, हिन्दुस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान का संपूर्ण क्षेत्र जम्बू द्वीप था।
अगले पन्ने पर तीसरा रहस्य.                   

 हिन्दुस्थान बनने की कहानी महाभारत काल में ही लिख दी गई थी जबकि महाभारत हुई थी। महाभारत के बाद वेदों को मानने वाले लोग हमेशा से यवन और मलेच्छों से त्रस्त रहते थे। महाभारत काल के बाद भारतवर्ष पूर्णत: बिखर गया था। सत्ता का कोई ठोस केंद्र नहीं था। ऐसे में खंड-खंड हो चला आर्यखंड एक अराजक खंड बनकर रह गया था।

महाभारत के बाद : मलेच्छ और यवन लगातार आर्यों पर आक्रमण करते रहते थे। हालांकि ये दोनों ही आर्यों के कुल से ही थे। आर्यों में भरत, दास, दस्यु और अन्य जाति के लोग थे। गौरतलब है कि आर्य किसी जाति का नाम नहीं बल्कि वेदों के अनुसार जीवन-यापन करने वाले लोगों का नाम है। वेदों में उल्लेखित पंचनंद अर्थात पांच कुल के लोग ही यदु, कुरु, पुरु, द्रुहु और अनु थे। इन्हीं में से द्रहु और अनु के कुल के लोग ही आगे चलकर मलेच्छ और यवन कहलाए।

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बौद्धकाल में विचारधाराओं की लड़ाई अपने चरम पर चली गई। ऐसे में चाणक्य की बुद्धि से चंद्रगुप्त मौर्य ने एक बार फिर भारतवर्ष को फिर से एकजुट कर एकछत्र के नीचे ला खड़ा किया। बाद में सम्राट अशोक तक राज्य अच्छे से चला। अशोक के बाद भारत का पतन होना शुरू हुआ।
नए धर्म और संस्कृति के अस्तित्व में आने के बाद भारत पर पुन: आक्रमण का दौर शुरू हुआ और फिर कब उसके हाथ से सिंगापुर, मलेशिया, ईरान, अफगानिस्तान छूट गए पता नहीं चला और उसके बाद मध्यकाल में संपूर्ण क्षे‍त्र में हिन्दुओं का धर्मांतरण किया जाने लगा और अंतत: बच गया हिन्दुस्तान। धर्मांतरित हिन्दुओं ने ही भारतवर्ष को आपस में बांट लिया।        


           जल प्रलय ने बदला धरती का इतिहास :  जल प्रलय ने धरती की भाषा, संस्कृति, सभ्यता, धर्म, समाज और परंपरा की कहानी को नए सिरे से लिखा। इस जल प्रलय के कारण राजा मनु को एक नाव बनाना पड़ी और फिर वे उस नाव में लगभग 6 माह तक रहे और अंत में वे तिब्बत की धरती पर उतरे। वहीं से वे जैसे जैसे जल उतरने लगा उन्होने पुन: भारत की भूमि को रहने लायक बनाया।

राजा मनु को ही हजरत नूह माना जाता हैं? माना जाता है कि नूह ही यहूदी, ईसाई और इस्लाम के पैगंबर हैं। इस पर शोध भी हुए हैं। जल प्रलय की ऐतिहासिक घटना संसार की सभी सभ्‍यताओं में पाई जाती है। बदलती भाषा और लम्बे कालखंड के चलते इस घटना में कोई खास रद्दोबदल नहीं हुआ है। मनु की यह कहानी यहूदी, ईसाई और इस्लाम में ‘हजरत नूह की नौका’ नाम से वर्णित की जाती है।

इंडोनेशिया, जावा, मलेशिया, श्रीलंका आदि द्वीपों के लोगों ने अपनी लोक परम्पराओं में गीतों के माध्यम से इस घटना को आज भी जीवंत बनाए रखा है। इसी तरह धर्मग्रंथों से अलग भी इस घटना को हमें सभी देशों की लोक परम्पराओं के माध्यम से जानने को मिलता है।
नूह की कहानी- उस वक्त नूह की उम्र छह सौ वर्ष थी जब यहोवा (ईश्वर) ने उनसे कहा कि तू एक-जोड़ी सभी तरह के प्राणी समेत अपने सारे घराने को लेकर कश्ती पर सवार हो जा, क्योंकि मैं पृथ्वी पर जल प्रलय लाने वाला हूँ।
×
सात दिन के उपरान्त प्रलय का जल पृथ्वी पर आने लगा। धीरे-धीरे जल पृथ्वी पर अत्यन्त बढ़ गया। यहाँ तक कि सारी धरती पर जितने बड़े-बड़े पहाड़ थे, सब डूब गए। डूब गए वे सभी जो कश्ती से बाहर रह गए थे, इसलिए वे सब पृथ्वी पर से मिट गए। केवल हजरत नूह और जितने उनके साथ जहाज में थे, वे ही बच गए। जल ने पृथ्वी पर एक सौ पचास दिन तक पहाड़ को डुबोए रखा। फिर धीरे-धीरे जल उतरा तब पुन: धरती प्रकट हुई और कश्ती में जो बच गए थे उन्ही से दुनिया पुन: आबाद हो गई।
मनु की कहानी- द्रविड़ देश के राजर्षि स��       




एक दस साल का बच्चा पहली बार अपने पिता के साथ घूमने निकला । रास्ते में एक मंदिर मिला तो पिता जी ने कहा बेटा हाथ जोड़कर प्रणाम करो । बेटे ने पूछा किसको प्रणाम करूँ पापा ?



पापा : बेटा भगवान को प्रणाम करो । बेटा : लेकिन पापा भगवान है कहाँ ? पापा : बेटा वो मंदिर में हैं ? बेटा : पापा, मंदिर तो बंद है उसमे मोटा सा ताला लगा हुआ है । भगवान को किसने मंदिर में बंद कर दिया ? पापा : बेटा ये भगवान को मंदिर में बंद नही किया बल्कि मंदिर की सुरक्षा के लिए ताला लगाया हुआ है ।



बेटा : मंदिर में तो खुद भगवान रहते हैं, उनको किससे सुरक्षा की जरुरत है ? पापा : बेटा मंदिर में बहुत कीमती कीमती मूर्तियाँ रखी होते हैं और वो मूर्तियाँ कीमती गहने पहने होती है । चोर और तस्कर हमेशा उनको चोरी करने की फ़िराक में रहते हैं इसीलिए उनसे बचाने के लिए मंदिर को बंद किया जाता है ।



बेटा : लेकिन पापा वो तो खुद भगवान है । सब कुछ करने वाला है फिर कोई साधारण चोर उनको कैसे चुरा सकता है ? जब भगवान खुद को ही चोरी होने से नही बचा सकता है तो फिर मुझको या किसी और को क्या दे सकता है ? ऐसे भगवान को प्रणाम करने से क्या फायदा ?



पापा : बेटा ये बात तुम्हारे समझ में नही आएँगी । वैसे भी कोई जानवर जैसे कुत्ते बिल्ली आदि आकर गंदगी ना करें इसीलिए भी ताला लगाया जाता है । बेटा : पापा जब सभी जीव उसी की संतान हैं, तो उनको पता होना चाहिए कि यहाँ पर गंदगी नही करनी चाहिए । अगर वो ऐसा करते हैं तो ये झूठ है कि सभी प्राणी उसी के बनाये हुए है । अगर फिर भी उनको पता नही है तो भगवान को खुद उनको बताना चाहिए कि ऐसा नही करो या फिर उनको रोकना चाहिए लेकिन भगवान ऐसा भी नही कर सकता तो सीधा सा मतलब है भगवान ही नही है ।



पापा : बेटा अभी ये बाते तुम्हारी समझ में नही आएँगी और भगवान पर सवाल नही करते चुपचाप जैसे सुनते आये हो उसको ही सच मानो ।






बेटा : तो पापा हमको अपने दिमाग का इस्तेमाल करना बंद कर देना चाहिए और जानवरों जैसी जिन्दगी व्यतीत करनी चाहिए । अब पापा के गुस्से की हदें पार हो गयी । उसने बेटे के जोर का तमाचा मारते हुए कहा चुप कर भगवान पर सवाल उठाता है मेरा बाप बनने की कोशिश करता है नालायक । क्या यही कारण है…….. प्रश्न न पूछने का…….. क्या आप के पास है …उस बच्चे को जवाब देने लायक कोई उत्तर…..? नहीं……? 




BSP और 'भीम आर्मी (साजिशें)

🏹मुबारक हो RSS का उद्देश्य पूरा हुआ।

'भीम आर्मी' के प्रति शक पैदा करके RSS का उद्देश्य पूरा हो गया है।


'भीम आर्मी' के प्रति उमड़े समाज के उत्साह को RSS ने बड़ी चतुराई से दबा दिया है।🕹


दलित लोगों में अब 'भीम आर्मी' को लेकर शक पैदा हो गया है।

● लोगों को पता नहीं कि वो क्या खोने जा रहे हैं?
●वो खोने जा रहे हैं एक साहस, एक ताकत, एक सैलाब...
● जिसने अत्याचारियों में खौफ भर दिया था।
● शोषण और अत्याचार तो पहले से जो रहा है जैसे खैरलांजी, डांगावास, मिर्चपुर, गोहाना, दुलीना, ऊना, रोहित वेमुला, डेल्टा मेघवाल.....और न जाने कितने मामले हैं जहाँ दलित मारे गए, लेकिन पलटवार कहीं नहीं हुआ।
●सहारनपुर में ऐसा हुआ जैसा किसी ने सोचा न था।
●उसी कड़ी में बैगैर किसी नेता के, बगैर किसी पार्टी के जो 'दिल्ली' में हुजूम इक्कठा हुआ, उससे तो सभी दलित दमदार और गौरवशाली भविष्य के सपने देखने लगे।
● लेकिन इन सब घटनाओं पर RSS की भी नजर थी, वह नहीं चाहती की गुलाम खत्म हों, गुलाम अपनी आजादी के लिए 'वीर' की तरह उठ खड़े हों, वह चाहती है कि दलित सिर्फ शोषित हों, और उनपर कोई अत्याचार हो तो वे रोएं, गिड़गिड़ायें, थाने और कचहरी के चक्कर लगाते रहें, चक्कर काटते-काटते बूढ़े हो जाएं, जब तक उन्हें न्याय मिले तब तक कोई अत्याचार/हत्या हो जाये और फिर से वही चक्कर काटने की प्रकिया शुरू हो जाये।
●यही चलता आ रहा है ,चक्कर काटते रहो, लेकिन कोई प्रतिकार न करना , उल्टा जवाब न देना।
● करारा जवाब देने से दलितों की इज्जत बनती है। लोगों में यह डर बैठता की दलितों पर हमले करोगे, उनकी बहन-बेटियों पर बुरी नजर डालेगें, तो वे लोग भी पलटकर वार करेंगें।
● लेकिन जब ऐसा पिछले कई सालों में नहीं हुआ तो अब RSS वाले क्यों होने देंगे ??

उन्होंने जो साजिशें अपनाई-

(1) BSP और 'भीम आर्मी' को एक दूसरे का सहायक न दिखाकर, एक दूसरे के दुश्मन के तौर पर पेश करना।
(2) चंद्र शेखर की पुरानी फोटो, जिसमें कोई भी हिंदुओं वाली चीज पहने हो, उसे व्हात्सप्प के ग्रुप्स में भेजना। ऐसा ही बहन मायावती के साथ करते हैं, जब उनका कद बढ़ने लगता है तो, उसकी गणेश के साथ फोटो को भेजते हैं। और लोग उन पर भी शक करना शुरू कर देते हैं।
(3) चंद्रशेखर आजाद की किसी व्यक्ति के फोटो, और उस व्यक्ति की किसी भाजपा वाले के साथ फ़ोटो, सभी जगह भेजने लग जाते हैं। ऐसे ही बहन मायावती का मोदी के साथ फ़ोटो, वाजपेयी के साथ फोटो, सोनिया गांधी के साथ फोटो आदि भेज कर इमेज ख़राब करते हैं।
(4) कुल मिलाकर उनका उद्देश्य है कि दलितों में जो भी मजबूती से उभरे उसको सामाजिक रूप से खत्म कर दो।
●इसके लिए वे उस लीडर के बारे में ऐसा मेसज बनाकर खुद भेजते हैं, बातें उसमें दलित समाज को बांटने की होती हैं। लवकिन उसे लिखा इस तरह जायेगा जैसे किसी दलित ने ही लिखा हो। इस ऐसे मेसेज को दलितों के पास भेजा जाता है।
●दलित भाई-बहन भी दुश्मन की इस कुटिल चाल को समझे बिना ही उस मेसज को खूब फॉरवर्ड पर फोरवर्स करते हैं।
(5) नतीजा हमारे नेता की ईमेज ख़राब हो जाती है, उसकी ताकत कमजोर पड़ जाएगी, उसके प्रति शक पैदा हो जाता है। आपका आंदोलन जो बहुत तेज गति से बढ़ रहा था, धीरे-धीरे मृत्यु की तरफ बढ़ जाता है।

●आपका दुश्मन अपने उद्देश्य में कामयाब हो जाता है ।

वे सोचते हैं कि दलित लोग आज भी मंदबुद्धि ही हैं, उनमें आपस में फूट डाल बहुत आसान है।

(6)दुश्मन का उद्देश्य है कि- हमारे किसी भी आंदोलन को इतना मजबूत न होने देना कि जिससे हमारे दुश्मन के मन में खौफ़ पैदा हो, हमारी बहन -बेटी पर नजर डालने से पहले हजार बार सोचे!!

(7) जब नेता में शक पैदा हो जाता है तो उनपर अलग-अलग हमले होते हैं ।
(8) जैसा कि अभी दो लड़कों की वीडियो आयी जिसमें 'भीम आर्मी' और उसके नेता के साथ-साथ पूरे समाज को बुरा-भला कहा गया। और जैसा बहन मायावती के प्रोग्राम के तुरंत बाद हमारे लोगों पर जानलेवा हमला हुआ।

●ऐसी घटनाओं से समाज का मनोबल गिरता है।


(9) ये लोग झूठी वीडियो बना कर अपने समाज का मनोबल बढ़ाते हैं। किसी भी परिस्थिति में एकता बनाये रखते हैं।

हम सिर्फ एक दूरसे की कमियां निकलते रहते हैं, शक करते रहते हैं।

•सोचिये अगर आप या आपके परिवार पर जान लेवा हमला होगा तो...क्या आप क्या करेंगे??

•एक भीड़ आपको मारने दौड़ पड़ेगी तो क्या करेंगे??
•कोई है समाज की ताकत जिसके खौफ़ से आप पर हमला करने वाला हजार बार सोचे??

(10) कुछ लोग ही मिशनरी हैं। जी अपनी जान पर खेलकर समाज का भला करते हैं।

लेकिन आप उन पर ही शक करोगे!!

और जो दलित दूसरी पार्टीयों या संगठनों में हैं, या अन्य समाज के साथ रहते हैं, उनपर आप ज्यादा कुछ नहीं कहेंगे।

जो दलित आपके लिए कुछ करना चाहेगा उसका आप एक-एक पॉइंट पर टेस्ट लेगें । हद है आपकी।

•फिर एक दिन परेशान होकर मिशनरी भी सोच सकता है कि "मैं तो इतना रिस्क लेकर दलित समाज के लिया काम करता हूँ, लेकिन ये लोग मुझ पर ही विश्वास नहीं करते। इससे बेहतर होता कि मैं दूसरे समाज की पार्टियां, संग़ठन आदि में चला जाता मुझे धन, प्रतिष्टा और सुरक्षा सब मिल जाते। जैसे वहाँ बैठे अन्य दलितों को मिल रहा है।"


🙏🏼हमारी आपसे प्रार्थना है कि मिशनरियों को ऐसा सोचने पर मजबूर न करें। उन पर विश्वास करो।

उनके त्याग की कीमत समझो। उनका साथ दो। बदले में आपको आपकी और आपके परिवार की सुरक्षा मिलेगी।

■ आज कोई ऐसा संगठन या पार्टी नहीं है जिससे अत्याचारी के मन में खौफ़ पैदा हो। वरना किसी की हिम्मत न होती हमारे समाज की तरफ आँख उठा कर देख पाता ।


•हम शांति, प्रेम और सौहार्द से रहना चाहते हैं, लेकिन हमें रहने नहीं दिया जा रहा। आये दिन हमारे लोगों पर अत्याचार हो रहा है। शोषण की इंतहा बढ़ती जा रही है।


■ तो करना क्या है??

हमें हमारी सामाजिक जडें मजबूत करनी हैं, अर्थात हमें 'भीम आर्मी' को मजबूत करना है।

■ हमें हमारे नेताओं को, समाज को सुरक्षा देनी है। बदले में हमें भी वही मिलेगी।


🙏🏼🙏🏼           




 आज आभाषी अम्बेडकरवाद बहुजनों के सर चढ़ कर बोल रहा है जहां अम्बेडकरवाद की नीतियां और सिद्धांत पूरी तरह दम तोड़ता नजर आता है,सायद यही वजह है कि विरोधियों ने अम्बेडकरवाद का ब्राम्हणिकरण चालू कर दिया है और जिन बाबासाहब ने ब्राम्हणवाद को आग लगाई थी वही ब्राम्हणवाद आज बाबासाहब को दूध से नहलाकर भगवान बनाकर खतम करने में सफल होता दिखाई दे रहा है,क्योंकि विरोधियों को मालूम है कि इनके उद्धारक भीमराव अंबेडकर को भगवान बनाकर ही इन्हें गुलामी के दलदल में पुनःआसानी से धकेला जा सकता है,दुश्मन अपनें फायदे के लिए हर धूर्तता का स्तेमाल करता है,पर बहुजनों के लिए यह स्थिति अत्यंत भयावह विध्वंसकारी हो सकती है क्योंकि इसी पुष्यमित्रशुंगी ब्राम्हण ने सम्राट अशोक तथा तथागत बुद्ध के बौद्धमय भारत का साढ़े सत्यानास किया था जिसकी भरपाई आज तक हजारों महापुरुषों ने भी नही कर पाई है और जिसकी ही सजा आज समूचा भारत देश भुगत रहा है इसलिए आज जरूरत है कि बाबासाहब द्वारा की गई अनुसंसाओं का कड़ाई और अनुसासन से पालन कर ब्राम्हणवाद को करारा जवाब दिया जाय हमें ऐसे ब्राम्हणवाद के खिलाफ रक्षात्मक नहीं आक्रामक होना चाहिए ताकि अपने महापुरुषों और इतिहास का अनुसरण कर हम विकास का मार्ग प्रसस्त कर बाबासाहब के सपनों को पूरा कर सकें अन्यथा ब्राम्हणों के यहां दसवें (अवतार)भगवान की जगह लंबे समय से खाली पड़ी हुई है जिसमें बाबासाहब पूरी तरह फिट बैठते हैं,क्योंकि आधुनिक काल मे मनुवादियों के सबसे बड़े विरोधी बाबासाहब ही हैं जिन्हें भगवान बनाकर अपना वे उद्धार आसानी से कर सकते हैं और असली बाबासाहब को भगवान नामक भारी पत्थर के नीचे दफन भी करने का प्रयास करेंगे और अगर कभी ऐसा हुआ तो बहुजनों की आजादी का आखिरी रास्ता भी हमेसा के लिए बंद करने में ब्राम्हण पूरी तरह सफल हो जाएगा जिसे पुनः खोलना आसान नहीं होगा फलस्वरूप अगली पीढ़ी पुनः उस ब्राम्हणवाद के दलदल में समा जाएगी जिसमें से बाबासाहब अपने अथक प्रयासों से निकाल कर लाये थे.
   इसलिए अगर आप वाकई में बाबासाहब का सम्मान करते है और उनके द्वारा दी गई आजादी को बचाकर सुरक्षित रखना चाहते है तो आज समस्त बहुजन कौम को जरूरत है उनके बताए आदर्शों पर चलकर समाज के उद्धार की ,न कि उन्हें भगवान बनाकर पूजने की,क्योंकि जिसदिन बाबासाहब ब्राम्हणों के दसवें अवतार (भगवान), ,बनें उस दिन असली बाबासाहब भी ख़तम मतलब बहुजन भी खतम,फैसला आपकी मर्जी पर है जिसका इंतजार आगे आने वाली संताने करेंगी..
   धन्यवाद जय भीम जय बुद्ध
                 "मिशन अम्बेडकर"           

दलित मतलब दबाये हुये लोग

😇दलित शब्द प्रयोग और डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर 😇
👉दलित मतलब दबाये हुये लोग....
और हमारे लोग उस पर गर्व करते हे । क्या कोई समुदाय को दबाया गया हो तो वो गर्व करने की बात हे ?
🤔क्या बाबासाहेब ने कभी दलित शब्द को मान्यता दी ?
😇चलो थोड़ा इतिहास जानने का प्रयत्न करे ।
👉सन 1924 मे बाबासाहेब ने "बहिस्क्रुत हितकारिणि सभा "की रचना की और उसे अँग्रेजी मे "डिप्रेस्ड क्लास मिशन" कहा जाता ।
👉उनके द्वारा सबसे पहले मराठी समाचार पत्र का "मूकनायक" रखा गया था ।
मूकनायक का अर्थ जो समाज गूँगा हे जो अपनी भावनायें व्यक्त नही कर सकता और ऊन गूंगे लोगो की अभिव्यक्ति करने वाला नायक मतलब "मूकनायक" ।समय बीत जाने पर "बहिस्क्रुत भारत" नाम से समाचार पत्र शुरू किया ।
👉आज के समय मे हमने बहिन " बहुजन भारत , मुलनीवासी भारत, और मुलनीवासी नायक " की परिभाषा का प्रयोग किया हे ।
😇जिस शब्द का निर्माण आपने किया हे समय बदलते शब्द मे बदलाव बहिन लाना चाहिये क्योंकि लोकतंत्र मे शब्द ही हथियार हे ।
👉बाबासाहेब ने पहेले समाचार पत्र को मूकनायक बाद मे बहीस्क्रुत  नाम दिया ।जब बाबासाहेब ने डिप्रेस्ड क्लास परिभाषा का प्रयोग किया तो अंग्रेजों ने कहा की ये क्या हे ?
😇बाबासाहेब को लगा की ये डिप्रेस्ड क्लास शब्द हमारी सही पहचान नही कराता तो उन्होने अश्प्रूस्य शब्द का प्रयोग शुरू किया । बिहार की पटना की रेली मे बाबासाहेब ने चौथे वर्ण मे सामेल obc को शूद्र कहा और सछूत शूद्र , अछूत शूद्र परिभाषा का प्रयोग किया ।मतलब समय समय पर शब्द मे बदलाव किया ।
👉भारतीय संविधान मे बाबासाहेब ने अश्प्रुश्य लोगो को " अनुसूचित जाती " पहचान दी ।और ये अनुसूचित जाती कोई जाती नही बल्कि जातियों का समूह हे ।
👉बाबासाहेब ने अपने राजनीतिक संगठन का नाम भी "ऑल इंडिया शेड्यूल कास्ट फेडरेशन  " दिया ।जिस तरह आंदोलन बढ़ता गया शब्द के प्रयोग मे भी परिवर्तन आता गया ।
👉एक अहम बात बाबासाहेब ने "ऑल इंडिया शेड्यूल कास्ट फेडरेशन " बनाया उसके सामने गाँधीजी प्रेरित बाबू जगजीवन राम ने "दलित वर्ग संघ " बनाया था । जिस तरह गाँधीजी ने हमे हरिजन की पहचान दी उसी तरह दलित की पहचान बहिन दी ।
😇मतलब बाबासाहेब ने कभी दलित शब्द का प्रयोग नही किया ।
👉सन 1948 को शिडय़ूल कास्ट फेडरेशन के सम्मेलन मे बाबासाहेब ने कहा - "अनुसूचित जाती और जनजाति की तरह पछात जातियों ( obc ) को भी साथ लेकर कार्य करना होगा । अनुसूचित जाती के लोगो जो आँतरजातिय लग्न तथा आँतरजातिय भोजन समारँभो के लिये आग्रह न रखना चाहिये ।अनुसूचित जाती और जनजाति एवम पछात obc के लोग अगर एक मंच पर आकर एक संगठन का निर्माण करेंगे तो उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पन्त ,मुख्यमंत्री मीट जायेगा और वो आपके जूते की लेस बाँधेगा ।"
😇मतलब बाबासाहेब को पता था की दलित पहचान "अल्पसंख्यक " हे और भारत मे अनुसूचित जाती के लोग 15% हे ।अगर सभी इकट्ठा हो जाये तो बहिन चुनाव जीत नही सकते और चुनाव जीत नही सकते तो शासक केसे बनेंगे ?
👉जब हमने बहुसंख्यक बनने के लिये "बहुजन " विचार धारा का प्रचार किया तो लोगो ने विरोध किया की अपनी एक जाती को इकट्ठा नही कर सकते तो और क्या कर पाओगे ? लेकीन हम डटे रहे और समाज मे बहुजन संकल्पना प्रस्थापित की ।दुश्मन दर के मारे लगातार " दलित " शब्द का प्रचार कर रहा हे क्योंकि उसे दलित अल्पसंख्यक से कोई खतरा नही ।
👉हमने संगठन के माध्यम से "मुलनीवासी" विचारधारा को हथियार के तौर पर उपयोग किया और लोगो को बताया की दुश्मन विदेशी हे और हम भारत के मुलनीवासी हे । ये लड़ाई विदेशी और मुलनीवासी के बिच की लड़ाई हे ।और यही बाबासाहेब का सपना हे की हम sc st obc और मायनोरीटी के लोगो को अपनी आझादी के लिये लड़ना होगा और इस लड़ाई मे मुलनीवासी विचारधारा को हमे अपनाना होगा ।
👉समय की प्रासंगिकता को ध्यान मे रखते हुये ,विदेशियो की गुलामी की मुक्ति के लिये मुलनीवासी विचारधारा को अपना कर अमल करना होगा ।
🤔अब आपकी मर्जी आप को गाँधीजी का हरिजन दलित अल्पसंख्यक बनकर लड़ाई लड़नी हे या फ़िर 85% मुलनीवासी बहुजन बनकर ?   



🔹एक कहावत है कि "Give a dog bad name and kill him." इस तरह के हमले भीम आर्मी को उत्तेजित करने के लिए किए जा रहे हैं।

🔹इसको समझने की जरूरत है। अगर भीम आर्मी उत्तेजित होकर बदले की कार्रवाई करती है तो उत्तर प्रदेश में गुजरात जैसी वारदात हो सकती है। इस बार यह मुस्लिमों के साथ नहीं बल्कि दलितों के साथ होगी।


🔹इसके पीछे यह कारण है कि दलितों का मनोबल उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा बढ़ा हुआ है जिसको तोड़ने का यह एक बहुत ही बड़ा प्लान है। प्रभावशाली दलितों का अस्तित्व खत्म करना उनके लिए कोई बड़ी चीज नहीं है। पर दलितों को बिना कारण के बहुत अधिक नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता। उन्हें कोई ऐसा कारण चाहिए जिससे कि भीम आर्मी को नक्सलवादी घोषित किया जा सके। फिर उन को समाप्त करने में कोई अड़चन नहीं आएगी।


🔹भीम आर्मी के पदाधिकारियों का सुरक्षित रहना और अपनी शक्ति को और अधिक बढ़ाना आज की बहुत बड़ी आवश्यकता है।


🔹दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि दलित समाज ब्राह्मणवाद की चालाकी को समझ गया है और उसके खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है। इस वास्तविक लड़ाई से ध्यान भटकाने के लिए ठाकुर दलित के बीच लड़ाई शुरू करवा दी गई है। इसके अलावा दलितों के प्रति हर वर्ग के दिमाग में घृणा भरने का प्रयास जारी है।


💡यह समय ऐसा संवेदनशील है कि जोश की बजाय दिमाग से और सोच समझ से काम लेना होगा।


📣 हमारे पास संसाधनों का अभाव है। इसलिए जरूरी हो गया है कि हम अपने बचाव पर गम्भीरता से मनन करें।


🔹घरों से टोलियों में निकलें।


🔹सक्षम लोग शस्त्र लाइसेन्स खरीदें।


🔹सम्भव नहीं है तो एेसे हथियार जरूर खरीदें जिन पर लाइसेंस की बाध्यता नहीं हैं।


लाठी ,कान तक लम्बाई का मजबूत डण्डा। बल्लम , भाला , बर्छी , तीर - कमान तो घर में ही बना सकते हैं।

लुहार ,कुम्हार बढ़ई अपने हैं आसानी से बनवाये जा सकते हैं।

🔹धरना प्रदर्शन में  पंचशील का झण्डा तथा प्रत्येक चौथे हाथ में तिरंगा झण्डा जिसमें कान तक की लम्बाई का एक मजबूत डण्डा हो।

जिसे जरूरत पड़ने पर आत्म रक्षा करने के काम में लाएँ।

🔹बच्चों और जवान बहन बेटियों पर हमला हो सकते हैं ,वह भी टोलियों में जायें। खाली हाथ नहीं । लकड़ी की डण्डी वाले बाजारू तेज धारदार सब्जी काटने वाले चाकू साथ लेकर।


🔹चारा काटने के लिए जंगल में अकेले दुकेले न जाकर झुण्ड में जायें।जरूरत न होने पर भी तेज धार वाली "दरांती" साथ लेकर जायें। हौसला रखें।


🔹जिनके मर्द घरों पर खाली हैं ,ताश का खेल छोड़कर महिलाओं की सुरक्षा के लिए बल्लम भाला ,दरांती लेकर  जंगल में साथ जायें।


🔹घर की छतों पर ईंट पत्थर के टुकड़े रखें


बचाव के लिए खाली बोतलें छतों से सबसे ज्यादा कारगर हैं।


🔹बच्चों पर भी आक्रमण हो सकते हैं ,उनके लिए भी सुरक्षात्मक कदम उठायें।


और भी सुरक्षात्मक कदम उठाये जा सकते हैं।



🌹🙏🙏 जय भीम🙏🙏🌹                
   


मिशन---गर्व से कहो हम शूद्र है और उच्च है।

भाइयो और बहनों

ब्राह्मणों के भगवानो को नंगा करने की जरूरत क्यों पड़ी क्योकि यही भगवान जब आपके हक और अधिकार दिलाने की बात आती है तो ब्राह्मण इन भगवानो को आगे कर देता है।वो खुद तो किसी से लड़ नही सकता उल्टा रायबरेली में पिट के आ गया।मंडल कॉमिशन न लागू हो पाए उसके लिए राम मंदिर का मुद्दा उठाया।गाय लव जेहाद कश्मीर नोटबन्दी gst और अब लालू प्रसाद यादव तथा 2019 के आते आते दंगा या इमरजेंसी या पाकिस्तान से युद्ध वाली रणनीति आपको देखने को मिलेगी जिससे कि आपका ध्यान आपकी समस्यायों से ध्यान हटा सके।

संविधान का उद्देश्य ही जो सरकार पूरा न करे उसको गद्दार घोषित कर देना चाहिए वो कांग्रेस हो बीजेपी हो या आम आदमी पार्टी ।

ब्राह्मण हमेशा अपने को majority में आने के लिए आंदोलन करता है और हम जाति को पकड़कर माइनॉरिटी में आने के लिए लालायित है।ब्राह्मणों के भगवान इतने शक्तिशाली थे तो गौरी गजनवी और बाबर से क्यों नही लड़े बल्कि असुर शूद्र और राक्षस लोगों से ही क्यो लड़े।

1--श्रीकृष्ण जी को क्या मुसलमान ने मारा।

2--राजा बालि को क्या किसी मुसलमान ने मारा।

3--शंकर जी को जहर क्या किसी मुसलमान ने दिया।

4--रोहित बेमुला को क्या किसी मुसलमान ने मारा।

5--नरसिंह यादव जी का अंगूठा क्या किसी मुसलमान ने काटा।

6--तेज बहादुर यादव को क्या किसी मुसलमान ने नौकरी से हटाया।

7--एकलब्य का अंगूठा क्या किसी मुसलमान ने काटा।

8--बृहद्रथ मौर्य की हत्या क्या किसी मुसलमान ने किया।

9--गोपीनाथ मुंडे की हत्या क्या किसी मुसलमान ने किया।

10--छगन भुजबल और लालू प्रसाद जी को जेल में क्या किसी मुसलमान ने डाले।

11--ओबीसी sc st का हक क्या किसी मुसलमान ने छीना।

12--कार्यपालिका विधायिका न्यायपालिका और मीडिया पर कब्जा क्या किसी मुसलमान ने किया।

13--पत्थरों की मूर्ति बनाकर और उसमें प्राण प्रतिष्ठा करके 81 लाख करोड़ क्या मुसलमान वसूल रहा।

14--भगत सिंह सुभाष चंद्र बोस को क्या किसी मुसलमान ने मारा।

15--पूरे देश की 96% जमीन जायदाद क्या मुसलमान ने छीना।

16--CM आवास का शुद्धिकरण क्या किसी मुसलमान ने किया।

17--जातिगत जनगणना क्या किसी मुसलमान ने रोका।

18--सती प्रथा क्या मुसलमान ने बनाये।

19--देवदासी प्रथा क्या मुसलमान ने बनाये।

20--शिक्षा संपत्ति और वोट के अधिकार से आपको 2200 साल क्या मुसलमान ने वंचित किये।

21--सिक्ख ईसाई और नक्सली क्या मुसलमानों के आतंक से बने।

22--ऋषि संभूक की हत्या क्या किसी मुसलमान ने किए।

23--इस अखंड भारत को अब तक 7 टुकड़ो में क्या मुसलमानों ने किए।

24--6743 जाति क्या मुसलमानों ने बनाये।

25--सीबीआई आई बी और रॉ को हर साल अलग से लगभग 1900 करोड़ क्या किसी मुसलमान को दिया जा रहा जिसका चीफ ब्राह्मण ही होता।

26--तीनो सेना का अध्यक्ष राष्ट्रपति और सभी राज्यो के राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री RSS के रहते हुए पूरे देश मे बम क्या मुसलमान फोड़ रहा।

27--आपको अंग्रेजो द्वारा शिक्षा संपत्ति और वोट का अधिकार मिलने पर आजादी का फर्जी आंदोलन क्या मुसलमानों ने चलाये।

28--जगदेव बाबू कुशवाहा जी को क्या मुसलमानों ने 5 september 1974 को बिहार में गोली मारी जो कहते थे

दस का शाषन नब्वे पर नही चलेगा नही चलेगा।

सौ में 90 शोषित है
90 भाग हमारा है
धन धरती और राजपाट में
90 भाग हमारा है।

इसके बाद भी आपको ब्राह्मणों के भगवान और जाति प्यारी है तो अपने सीने से इनको चिपकाए रखे।


देवेंद्र यादव 7506679290