Tuesday 2 October 2018

मानव उत्पत्ति और भगवान

 मानव उत्पत्ति और भगवान

विज्ञान के अनुसार अज़ोइक युग (मतलब जब कोई जीव नहीं था, लगभग 2.5 अरब वर्ष पूर्व) मे जीवन के प्रारम्भिक कण कोवेर्सेट अस्तित्व में आया, जिससे DNA का निर्माण हुवा जो एक अनुवांशिक इकाई है.....

इससे बैक्टीरिया बना और प्रोटोज़ोआ जैसे जीव बने। फिर नॉन कॉर्डेटा पेड़ हुए जिनमे रीड की हड्डी नहीं होती, नॉन कॉर्डेटा में बहुत से जीव संघ बने!

कॉर्डेटा जीव उद्विकास की प्रक्रिया से बना, इन जीवो में टेट्रापोड जीव मतलब 4 उपांग (2 हाथ,2 पैर या 4 पैर) वाले स्तनधारी जीव विकसित हुये, जिसका सर्वोच्च विकास मनुष्य के रूप में हुआ।

मनुष्य का विकास कपि से 20 लाख वर्ष पूर्व शुरू हुआ क्रम निम्न प्रकार है-
होमो हिबिलस मानव 20 लाख साल पूर्व!
होमो इरेक्टस (जावा) मानव 16 लाख साल पूर्व!
पैकिंग मानव 8 लाख साल पूर्व!
निएंडरथल मानव 1.5 लाख साल पूर्व!
होमो फेसिल्स 20-50 हजार साल पूर्व!
होमो सेपियन (आज का आधुनिक मानव मतलब हम लोग) 15-20 हजार साल पूर्व बने!
भाषा का आविष्कार भी मात्र हजारों साल पहले का ही है जबकि इनके देवी देवता तो बहुत अच्छी संस्कृत और हिंदी बोल लेते थे,यहां दाल में कुछ काला नही बल्कि पूरी दाल ही काली है,जिसे आंख बंद कर मान लेना अतार्किक और गुनाह है

जुरासिक समय (डायनासोर का काल) मे मनुष्य अस्तित्व मे नही था, बीस हजार साल पूर्व से दस हजार साल पूर्व तक आधुनिक मानव खानाबदोश था, न कोई भाषा थी ना कोई लिपि.... धर्म और भगवान तो दूर की बात है।
आठ हजार वर्ष पूर्व मनुष्य ने खेती वा पशुपालन शुरू किया, यही से सभ्यता की प्रारम्भिक शुरूआत हुई, जिसे विकसित होने में पाँच हजार साल लगे.....जैसे मोहनजोदड़ो हड़प्पा आदि! और यही से फर्ज़ी भगवान पैदा हुऐ इससे पूर्व कोई भगवान नहीं था सिर्फ प्रकृति थी।

अब सवाल यह उठता है कि सनातनी धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य 1अरब 96 करोड़ वर्ष पहले से है, उसी काल के वेद भी है, तो डायनासोर के समय मे मानव कहाँ थे?
दूसरी बात ब्रह्मा,विष्णु समेत हमारे तमाम देवता करोड़ो साल पहले सुन्दर आभूषण और कपड़े पहनते थे, क्या करोड़ो वर्ष पहले कपड़े का अविष्कार हुआ था?
आखिर वो कौन सी Textile फैक्ट्री थी जो देवताओं को रेशमी वस्त्र सप्लाई करती थी?
करोड़ो वर्ष पहले देवी-देवता नुकेले और धारदार हथियार रखते थे, जबकि आदिमानव बीस हजार साल पहले कंकड़-पत्थर से काम चलाते थे.....
आखिर वो कौन सी फैक्ट्री थी जो देवी-देवताओं को हथियार सप्लाई करती थी?
अगर हमारे देवी-देवता करोड़ो साल पहले इतने आधुनिक थे तो उन्होने खुद के चलने के लिये मोटर साइकिल या कार क्यो नही बनाई.... क्यो हाथी,घोड़े और बैल की सवारी करते थे?

यह बात साफ है कि धरती पर पहले इंसान आया फिर भगवान, और भगवान ने इंसान को नही, इंसान ने भगवान को बनाया!
दूसरी बात स्पष्ट है कि धर्म खड़ा करने के लिये झूठ बोला गया कि ये धर्म करोड़ो वर्षो से है.... ये सारे भगवान, देवी-देवता तो मात्र हजारों साल के अन्दर ही पैदा हुये है!
दिमाग की बत्ती जलाओ और खुद जान जाओ..

✔✔✔सत्य की खोज करो किसी को भ्रमित और गुमराह न करें जो सत्य है वह सदैव सत्य रहेगा बस शिक्षा और विग्यान के वास्तविक गहन व सूक्ष्म अध्ययन की जरूत है नही तो हमारा भारत आज बहुत पहले अमेरिका को पीछे छोड चुका होता |



मृत्युभोज --- से ऊर्जा नष्ट होती है

 महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि .....
मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
 जिस परिवार में मृत्यु जैसी विपदा आई हो उसके साथ इस संकट की घड़ी में जरूर खडे़ हों
 और तन, मन, धन से सहयोग करें 
 लेकिन......बारहवीं या तेरहवीं पर मृतक भोज का पुरजोर बहिष्कार करें।
 महाभारत का युद्ध होने को था, 
अतः श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जा कर युद्ध न करने के लिए संधि करने का आग्रह किया ।
 दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराए जाने पर श्री कृष्ण को कष्ट हुआ और वह चल पड़े, 
तो दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर कृष्ण ने कहा कि
🍁
’’सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’’
अर्थात्
"जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, 
तभी भोजन करना चाहिए।
🍁
लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के दिल में दर्द हो, वेदना हो,
तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए।"
🍁वैदिक धर्म में मुख्य 16 संस्कार बनाए गए है, 
जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अन्तिम तथा 16वाँ संस्कार अन्त्येष्टि है। 
 इस प्रकार जब सत्रहवाँ संस्कार बनाया ही नहीं गया 
 तो सत्रहवाँ संस्कार 
'तेरहवीं का भोज' 
कहाँ से आ टपका।
 किसी भी धर्म ग्रन्थ में मृत्युभोज का विधान नहीं है।
 बल्कि महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है। 
 लेकिन हमारे समाज का तो ईश्वर ही मालिक है।
 इसीलिए 
 ऋषि दयानन्द सरस्वती,
पण्डित श्रीराम शर्मा, 
स्वामी विवेकानन्द 
 जैसे महान मनीषियों ने मृत्युभोज का जोरदार ढंग से विरोध किया है।
 जिस भोजन बनाने का कृत्य....
रो रोकर हो रहा हो....
जैसे लकड़ी फाड़ी जाती तो रोकर....
आटा गूँथा जाता तो रोकर....
एवं पूड़ी बनाई जाती है तो रो रोकर....
यानि हर कृत्य आँसुओं से भीगा हुआ।
 ऐसे आँसुओं से भीगे निकृष्ट भोजन 
 अर्थात बारहवीं एवं तेरहवीं के भोज का पूर्ण रूपेण बहिष्कार कर समाज को एक सही दिशा दें।
 जानवरों से भी सीखें,
जिसका साथी बिछुड़ जाने पर वह उस दिन चारा नहीं खाता है।
 जबकि 84 लाख योनियों में श्रेष्ठ मानव,
जवान आदमी की मृत्यु पर 
 हलुवा पूड़ी पकवान खाकर शोक मनाने का ढ़ोंग रचता है।
 इससे बढ़कर निन्दनीय कोई दूसरा कृत्य हो नहीं सकता।
 यदि आप इस बात से
 सहमत हों, तो 
 आप आज से संकल्प लें कि आप किसी के मृत्यु भोज को ग्रहण नहीं करेंगे और मृत्युभोज प्रथा को रोकने का हर संभव प्रयास करेंगे 
 हमारे इस प्रयास से यह कुप्रथा धीरे धीरे एक दिन अवश्य ही पूर्णत: बंद हो जायेगी
🍁





तुलसीदास दुबे ने अपने नीचता भरे ग्रंथ में राम का बहाना दे कर खुद शूद्रों(obc, sc st)को गा कर गाली दिया और आज भी शूद्र यानी बहुजन(obc sc st) वही रामायण गा गा कर खुद को हो गाली देता है।कभी रामायण में लिखी नीचता का अर्थ नही समझता।।।।

चलिए आज आपको रामायण में लिखी नीचता को दिखाते हैं👇👇

🔴 *मौलिक जानकारी*🔴

 जानकारी के अभाव मे शूद्र(obc sc st)लोग अपने पूर्वज के हत्यारा का जाप करते है।
    जिस रामायण मे जात के नाम से गाली दिया गया है, उसी रामायण को शूद्र लोग रामधुन  ( अष्टयाम ) मे अखण्ड पाठ करते है, और अपने को गाली देते है । और मस्ती मे झाल बजाकर निम्न दोहा पढते है :-

*जे बरनाधम  तेलि  कुम्हारा,स्वपच किरात कोल कलवारा*।।

(तेली, कुम्हार, किरात, कोल, कलवार आदि सभी जातियां नीच 'अधम' वरन के होते हैं)

*नारी मुई गृह संपत्ति नासी, मूड़ मुड़ाई होहिं संयासा*
                (उ•का• 99ख  03)

 (घर की नारी 'पत्नी' मरे तो समझो एक सम्पत्ति का नाश हो गया, फिर दुबारा दूसरी पत्नी ले आना चाहिए, पर अगर पति की मृत्यु हो जाए तो पत्नी को सिर मुंड़वाकर घर में एक कोठरी में रहना चाहिए, रंगीन कपड़े व सिंगार से दूर तथा दूसरी शादी करने की शख्त मनाही होनी चाहिए)

*ते बिप्रन्ह सन आपको पुजावही,उभय लोक निज हाथ नसावही*

(जो लोग ब्रह्मण से सेवा/ काम लेते हैं, वे अपने ही हाथों स्वर्ग लोक का नाश करते हैं)


 *अधम जाति मै विद्दा पाए। भयऊँ जथा अहि दूध पिआएँ*
       (उ०का० 105 क 03)

(नीच जाति विद्या/ज्ञान प्राप्त करके वैसे ही जहरीले हो जाते हैं जैसे दूध पिलाने के बाद साँप)         

*आभीर(अहिर)जमन किरात खस,स्वपचादि अति अधरूप    जे*!!
           (उ• का• 129  छं•01 )

*काने खोरे कूबरे कुटिल कुचली जानि*।। 
(अ• का• दोहा 14) 

(दिव्यांग abnormal का घोर अपमान, जिन्हें भारतीय संविधान ने उन्हें तो एक विशेष इंसान का दर्जा दिया & विशेष हक-अधिकार भी दिये)

*सति हृदय अनुमान किय सबु जानेउ सर्वग्य,कीन्ह कपटु मै संभु सन नारी सहज अग्य* 
(बा • का• दोहा 57क)
 ( नारी स्वभाव से ही अज्ञानी)


*ढोल गवार शूद्र पशू नारी,सकल ताड़न के अधिकारी* ।।

(ढोल, गंवार और पशुओं की हीे तरह *शूद्र*(obc sc st) एव साथ-साथ *नारी* को भी पीटना चाहिए)
    ( सु•का•  दोहा 58/ 03)

*पुजिए बिप्र शील गुण हीना,शूद्र न पुजिए गुण ज्ञान प्रविना*

(ब्रह्मण चाहे शील-गुण वाला नहीं *है फिर भी पूजनीय हैं और शूद्र (SC,ST,OBCs)चाहे कितना भी शीलवान,गुणवान या ज्ञानवान हो मान-सम्मान नहीं देना चाहिए)

    इस प्रकार से अनेको जगह जाति एवं वर्ण के नाम रखकर अपशब्द बोला गया है ।पुरे रामचरितमानस व रामायण मे जाति के नाम से गाली दिया गया है।

     इसी रामायण मे बालकाण्ड के दोहा 62  के  श्लोक 04  मे कहा गया है, कि जाति अपमान सबसे बड़ा अपमान है 

 इतना अपशब्द लिखने के बाद भी हमारा समाज ( शूद्र , sc, st, obc ) रामायण को सीने से लगा कर रखे हुए है, और हजारो , लाखो रूपये खर्च कर रामधुन  ( अष्टयाम ) कराते है ।कर्ज मे डूबे रहते है ।बच्चे को सही शिक्षा नही देते है ।और कहते है कि भगवान के मर्जी है ।

 कुछ लोग पढ़ने-लिखने के पश्चात (बाबासाहब डाॅ भीमराव अंबेडकर जी के लिखे गए संविधान के आधार पर )नौकरी पाते है, और कहते है, कि ये सब राम जी के कृपा से हुआ है।।

    यदि आप राम  ( भगवान ) के कृपा से ही पढे लिखे और नौकरी पाए तो , आपके पिताजी ,दादाजी, परदादाजी ,लकरदादाजी & दादी, नानी, परदादी, परनानी इत्यादि भी पढे लिखे होते नौकरी पेशा मे होते!!  यदि सब राम  (भगवान )के  कृपा   से  ही  हुआ है, तो  आप बताइए कि  अंग्रेज़ के राज के पहले एक भी  शूद्र ( sc, st, obc and minority ) पढ़ा लिखा विद्वान बना हो? 

    मेरे प्यारों!! 
आप (शूद्र अर्थात मूलनिवासी sc, st, obc and minority ) जो भी कुछ है, भारतीय संविधान के बल पर ही है।

       *इसलिए हम सब का परम कर्तव्य बनता है कि भारतीय संविधान की रक्षा करें*

         क्योंकि    भारतीय    संविधान अभी    खतरे   मे है , इसे ब्राह्मणी  (सवर्णो का ) संगठन  (RSS)  ध्वस्त करने पर लगा हुआ है ।
और हमलोग हाथ पर हाथ रख कर सोय हुए है ।ब्राह्मणो के षडयंत्र मे फंसकर धर्म कार्य  (अंधभक्ति ) मे लगे हुए है ।

          

( विशेष जानकारी के लिए RSS दूसरे सर संचालक गोलवरकर द्वारा लिखित पुस्तक बंच आॅफ थाॅट्स की अध्ययन किया जाए, जिसमे लिखा है कि भारतीय संविधान जहरिला बीज है, इसे समाप्त कर देना चाहिए )

साथियो हमारा सबसे बड़ा धर्म  ( कर्तव्य ) है , भारतीय संविधान की रक्षा करना । 

(भारत की आधी आबादी  महिलाएँ भी स्वतंत्र अस्तित्त्व के इंसान हैं, पुरूषों की ही तरह)

अर्द्धनारीश्वर/अर्द्धांगिनी शब्द ही गलत है। किसी भी इंसान का शरीर आधा नारी का  & आधा पुरुष का हो ही नहीं सकता। अगर सही है तो एक पत्नी के मरते समय पति की भी मृत्यु हो जानी चाहिए।


*सविंधान की ताकत*


जो सबकी सुनता है। आज उसकी सुनवाई चल रही है मामला है *राम मंदिर* का
इससे साबित होता है कि राम को भी संविधान से ही न्याय मिल सकता है. आखिरकार राम को भी संविधान की शरण लेनी पड़ी. अब हमे सोचना है कि राम बड़ा है या अम्बेडकर. राम को भी अपने दरबार में न्याय नहीं मिला तो बाबा साहेब के दरबार में न्याय की गुहार लगानी पड़ी. आज हमे बहुत बहुत ही गर्व की अनुभूति हो रही है कि हम बाबा साहेब के संतान है. बाबा साहेब जैसे पूर्वजों पर हमे अभिमान है. ये है हमारे बाबा साहेब की सोच की ताकत. जिसने राम जैसे भगवान को भी संविधान के चरणों में झुका दिया. धन्य हैं हमारे बाबा साहेब. और आज के चापलूस नेता उस राम के तलवे चाटने में गर्व महसूस करते हैं, जिसे बाबा साहेब के आगे धूल फांकने पर मजबूर कर दिया. ये लोग भूल गये कि जिसके बदौलत एम. पी., मंत्री वगैरह बने हुए हैं वो राम नहीं बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर है.

*जय भारतीय संविधान*
*जय भीम*

2 comments:

  1. Teri maa ka bhosda lvde baba saheb ambedkr ne teri maa ko choda tha kya jo wo tera bap ho gya bhdve

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  2. अगर ये जात और धर्म ना बनाए होते तो कोई किसी को गाली नहीं देता कोई जमीन पर लकीरें नही खींचता और मानव ही मानव का दुश्मन नहीं होता भगवान सिर्फ आकाश धरती वायु अग्नि जल है क्योंकि हर जात हर धर्म के लोग इन्ही पंच तत्वों से मिलकर बनते है और इन्ही पंच तत्वों से जीवन जीते है और इन्ही पंच तत्वों में विलीन हो जातें है क्या आकाश धरती वायु अग्नि और जल किसी भी धर्म और जाति से नफरत करते है चाहे कोई भी जीव निर्जीव हो सब इनके लिए समान है ये ही भगवान का प्रत्यक्ष रूप है

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