भारतीय राजनीति में डॉ0 अम्बेडकर इन दिनों जितनी चर्चा में है, शायद ही कोई दूसरा है। डॉ0 अम्बेडकर को अपने पाले में करने की होड़ तमाम राजनीतिक दलों में देखी जा रही है। भारत के तमाम महापुरुषों की भीड़ में डॉ0 अम्बेडकर इकलौता ऐसा नाम है, जिनकी जयंती पूरे महीने तक चलती रहती है।
जहां ज्यादातर महापुरुषों की जयंती सरकार प्रायोजित होती है तो वहीं डॉ0 अम्बेडकर की जयंती को गांव-गांव में लोग अपने संसाधन से मनाते हैं। केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक में बाबासाहेब की जयंती मनाने की होड़ सी लगी है। लेकिन इस होड़ के बीच एक सवाल यह भी उठता है
कि आखिर क्या वजह रही कि अब तक की सरकारों ने डॉ0 अम्बेडकर को लगातार अनदेखा किया, और अब डॉ0 अम्बेडकर अचानक से क्यों उनके ‘प्रिय’ हो गए हैं।असल में आजादी के बाद से लेकर हाल तक सरकारी उपेक्षा का शिकार रहे अम्बेडकर को सोशल मीडिया के उभार ने बहुजनों के बीच चर्चा के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है। और अम्बेडकर की ऐसी आंधी चल पड़ी है कि तमाम सत्ताधारियों को डॉ0 अम्बेडकर के ऊपर पड़े सरकारी चादर को हटाना पड़ा।
एक और साजिश डॉ0 अम्बेडकर को सिर्फ संविधान निर्माता और दलितों का नेता कह कर रची जाती रही है। ऐसा कर उनके बहुआयामी और विराट व्यक्तित्व को छोटा करने की कोशिश की जाती है। लेकिन क्या सच में डॉ0 अम्बेडकर की भूमिका सिर्फ संविधान निर्माण और दलितों-पिछड़ों-अल्पसंख्यकों के अधिकार की वकालत तक ही सीमित थी, या फिर ऐसा एक साजिश के तहत किया गया?
असल में सच्चाई यह है कि भारत रत्न डॉ0 अम्बेडकर ने अपने जीवन काल में तमाम पदों पर रहते हुए देश के हर वर्ग के लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए अनेक काम किया। उन्होंने श्रमिकों के लिए कानून बनवाया, देशके किसानों की बेहतरी के लिए प्रयास किया, महिलाओं के हक की आवाज उठाई, नौकरी पेशा लोगों के सहूलियत की बात की और उनके अधिकारों के लिए लड़कर उन्हें अधिकार भी दिलवाया। लेकिन यह इस देश का दुर्भाग्य है कि डॉ0 अम्बेडकर जैसे महान व्यक्तित्व द्वारा किए गए इन कामों से लोग आज भी अंजान हैं।
डॉ0 अम्बेडकर के जीवन के कई आयाम थे, जिन्हें हर किसी को जानने की जरूरत है।मसलन रिजर्व बैंक स्थापना के पीछे डॉ0 अम्बेडकर की ही भूमिका थी। जैसा कि विदित है कि डॉ0 अम्बेडकर एक जाने माने अर्थशास्त्री थे। जून 1916 में अम्बेडकर ने पी0 एच0 डी0 के लिए थीसिस प्रस्तुत की जिसका शीर्षक था 'नेशनल डिविडेंड फॉर इंडिया; ए हिस्टोरीक एंड एनालिटिकल स्टडी'।
अर्थशास्त्र में डी0 एस0 सी0 के लिए मार्च 1923 में उन्होंने अपनी थीसिस 'द प्रोब्लेम ऑफ द रूपी–इट्स ऑरिजिन एंड इट्स सोल्यूशंस' प्रस्तुत किया। डॉ0 अम्बेडकर के अनुसार टकसाल बंद कर देने से मुद्रा स्फीति तथा आंतरिक मूल्य असंतुलन दूर हो सकता है। उनका कहना था कि सोना मूल्य का मापदंड होना चाहिए और इसी के अनुसार मुद्रा में लचीलापन होना चाहिए। डॉ0 अम्बेडकर का निष्कर्ष था कि भारत को स्वर्ण विनिमय मानक की मौद्रिक नीति अपनाने से बहुतनुकसान हुआ है।
उनका निष्कर्ष था कि भारत को अपनी मुद्रा विनिमय दर स्वर्ण विनिमय मानक की जगह स्वर्ण मानक अपनाना चाहिए जिस से की मुद्रा विनिमय दर में बहुत अधिक उतार चढ़ाव न हो और सट्टेबाजी को अधिक बढ़ावा न मिले।इसी तरह 2 जुलाई 1942 को वाइसरॉय की एक्जिक्यूटिव कौंसिल में डॉ0 अम्बेडकर को श्रम सदस्य (वर्तमान समय में लेबर मिनिस्टर)के रूप में शामिल किया गया। 7 मई 1943 को उन्होंने त्रिपक्षीय श्रम सम्मेलन द्वारा संस्थापित स्थायी श्रम समिति की अध्यक्षता की और संयुक्त श्रम समितियां और रोजगार कार्यालय स्थापित करने के लिए पहल किया। आज जो हम हर जिले में रोजगार कार्यालय (इम्प्लॉइमेंट एक्स्चेंज) देख रहे हैं, वो डॉ0 अम्बेडकर की ही देन है। श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के लिए उन्होंने भविष्य निधि योजना (प्रोविडेंट फ़ंड) लागू करवाया। उऩ्होंने नौकरीपेशा लोगों के लिए काम के घंटे तय करने में भी भूमिका निभाई। उनका मानना था कि एक व्यक्ति का काम करने का घंटा निश्चित रहना चाहिए।
सार्वजनिक निर्माण कार्य मंत्री के रूप में डॉ0 अम्बेडकर द्वारा किया गया काम उल्लेखनीय हैं। इसका फायदा विशेष कर देश के किसानों को मिला। वाइसरॉय की एक्जिक्यूटिव कौंसिल में डॉ0 अम्बेडकर को केंद्रीय सार्वजनिक निर्माण विभाग (सी.पी.डब्ल्यू.डी) का मंत्री बनाया गया। इस पद पर रहते हुए डॉ0 अम्बेडकर ने अगस्त 1945 में बंगाल और बिहार के लिए एक बहुउद्देशीय दामोदर घाटी विकास योजना प्रस्तुत की जो अमेरिका के तेन्नेसी वैली प्रोजेक्ट से मिलती जुलती थी। इस योजना के तहत सिंचाई के लिए पानी, जल मार्ग से यातायात,बिजली का उत्पादन आदि जैसे काम किए गए जिससे देश के करोड़ों लोगों को लाभ मिला।
नवंबर 1945 में उन्होंने उड़ीसा में वहां की नदियों के विकास के लिए एक बहुउद्देशीय योजना शुरू की जो अंतत: हीराकुंड बांध के रूपमें कारगर हुई।महिला हित के लिए भी डॉ. अम्बेडकर ने काफी काम किया। डॉ0 अम्बेडकर का मानना था कि भारत तभी सशक्त बन सकता है जब यहां कि महिलाएं भी सशक्त हों। तमाम सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं में महिला कर्मचारियों के लिए मैटरनिटी लीव यानी प्रसूति अवकाश होने के कारण महिला कर्मियों को जो सहूलियत होती है, असल में यह सोच डॉ0 अम्बेडकर की थी। सन् 1942 में डॉ0 अम्बेडकर को गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में श्रम सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया।
डॉ0 अम्बेडकर ने महिलाओं के लिए भारत के इतिहास में पहली बार प्रसूति अवकाश की व्यवस्था की। आगे चलकर जब डॉ0 अम्बेडकर को संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष चुना गया तो उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 14 और15 में ऐसा प्रावधान रखा कि लिंग के आधार पर महिलाओं के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा और इस तरह समानता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया। वह व्यस्क मताधिकार के समर्थक थे। 1928 में साइमन कमीशन के समक्ष दिए गए अपने साक्ष्य में डॉ0 अम्बेडकर ने वयस्क मताधिकार की जोरदार वकालत की और कहा कि इक्कीस वर्ष के ऊपर के सभी भारतीयों को चाहे वो महिला हो या पुरुष, मताधिकार का अधिकार मिलना चाहिए। आज युवा देश की राजनीति में सबसे ज्यादा मायने रखता है।
अगर तब डॉ. अम्बेडकर ने व्यस्क मताधिकार को लेकर जोर न दिया होता तो राजनीति में युवाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिल पाना आसान नहीं होता।डॉ0 अम्बेडकर अकेले ऐसे महापुरूष हैं जिनका जन्म महोत्सव समारोह पूरे महीने भर चलता है। इस दिन की खुशी सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, नेपाल, वर्मा, श्रीलंका आदि अनेक देशों में बहुत ही हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है। सरकारी उदासीनता के बावजूद देश के वंचित तबके ने डॉ0 अम्बेडकर को अपनी यादों में जिंदा रखा है। लेकिन डॉ0 अम्बेडकर ने सिर्फ दलितों के हित के लिए ही काम नहीं कियाबल्कि समाज के हर वर्ग के लिए काम किया।
राष्ट्रनिर्माण में उनकी बड़ी भूमिका रही। वह सबके नायक थे और सच्चे अर्थों में भारत रत्न। उनका आंकलन करते हुए तमाम लोग उनकी जाति तक आकर रुक जाते हैं। डॉ0 अम्बेडकर का आंकलन समग्रता में करने की जरूरत है। अगर आप उन्हें आंख से ‘जाति’ का पर्दा हटाकर देखेंगेतो जान पाएंगे कि डॉ0 अम्बेडकर सिर्फ एक वर्ग के नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के नायक हैं।
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