Tuesday, 2 October 2018

लार्ड मैकाले शूद्रों,अतिशूद्रों की शिक्षा के बेजोड़ स्तंभ

लार्ड मैकाले शूद्रों,अतिशूद्रों की शिक्षा के बेजोड़ स्तंभ
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भारत में ऐसे विद्धानों की कमी नहीं है जो प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति का गुणगान करते नहीं थकते और लॅार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति को पानी पी-पीकर गालियां देते हैं। लेकिन इन्हीं लार्ड मैकाले की वजह सेअतिशूद्रोंं के लिए शिक्षा का रास्ता खुला और उन्हें न्याय मिलने का मार्ग प्रशस्त हो सका। ब्रिटिश सरकार ने चार्टर ऐक्ट 1833 के अनुसार भारत के लिये प्रथम विधि आयोग का गठन किया, जिसके अध्यक्ष बन कर लॅार्ड मैकाले 10जून1834 को भारत में पहुंचे। इसी वर्ष लार्ड मैकाले ने भारत में नई शिक्षा नीति की नींव रखी। 06अक्टूबर1860 को लॅार्ड मैकाले द्वारा लिखी गई भारतीय दण्ड संहिता लागू हुई और मनुस्मृति का विधान खत्म हुआ। इसके पहले भारत में मनुस्मृति के काले कानून लागू थे, जिनके अनुसार अगर ब्राह्मण हत्या का आरोपी भी होता था तो उसे मृत्यु दण्ड नहीं दिया जाता था और वेद वाक्य सुन लेने मात्र के अपराध में शूद्रों के कानों में शीशा पिघलाकर डालने का प्रावधान था। वैसे तो अंग्रेज 23जून1757 प्लासी युद्ध के बाद लगभग आधे भारत पर शासन करने लग गये थे, परन्तु कानून तब भी मनुस्मृति के ही चलते थे। तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक द्वारा गठित सार्वजनिक शिक्षा समिति के अध्यक्ष के रूप में लार्ड मैकाले ने अपने विचार सुप्रसिद्ध स्मरणपत्र (Macaulay Minute) 02फरवरी1835 में दिए और उनके विचार ब्रिटिश सरकार द्वारा 07मार्च1835 को अनुमोदित किए गए। मैकाले ने यहां का सामाजिक भेदभाव, शिक्षण में भेदभाव और दण्ड संहिता में भेदभाव देखकर ही आधुनिक शिक्षा पद्धति की नींव रखी और भारतीय दण्ड संहिता लिखी। जहां आधुनिक शिक्षा पद्धति में सबके लिये शिक्षा के द्वार खुले थे, वहीं भारतीय दण्ड संहिता के कानून ब्राह्मण और अतिशूद्र सबके लिये समान बने। मनुस्मृति की व्यवस्था से ब्राह्मणों को इतनी महानता प्राप्त होती रही थी कि वे अपने आपको धरती का प्राणी होते हुए भी आसमानी पुरुष अर्थात देवताओं के भी देव समझा करते थे। लॅार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति से ब्राह्मणों को अपने सारे विषेषाधिकार छिनते नजर आये, इसी कारण से उन्होनें प्राणप्रण से इस नीति का विरोध किया। इनकी नजर में लॅार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति केवल बाबू बनाने की शिक्षा देती है, पर मेरा मानना है कि लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति से बाबू तो बन सकते हैं, प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति से तो वह भी नहीं बन सके। हां, ब्राह्मण सब कुछ बनते थे, चाहे वह पढ़ा-लिखा हो या नहीं, अन्य जातियों के लिये तो सारे रास्ते बन्द ही थे। प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति के समर्थक यह बताने का कष्ट करेंगे कि किस काल में किस राजा के यहां कोई अतिशूद्र वर्ग का व्यक्ति मंत्री, पेशकार, महामंत्री या सलाहकार रहा हो ? अतः इन जातियों के लिये तो यह शिक्षा पद्धति कोहनी पर लगा गुड़ ही साबित हुई। ऐसी पद्धति की लाख अच्छाईयां रही होंगी, पर यदि हमें पढ़ाया ही नहीं जाता हो, गुरुकुलों में प्रवेश ही नहीं होता हो, तो हमारे किस काम की ? सरसरी तौर पर इन दोनों शिक्षा पद्धतियों में तुलना करते हैं, फिर आप स्वयं ही निर्णय ले सकते है कि कौन सी शिक्षा पद्धति कैसी है ?
👉 प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति:-
(1) इसका आधार प्राचीन भारतीय धर्मग्रन्थ रहे।
(2) इसमें शिक्षा मात्र ब्राह्मणों द्वारा दी जाती थी।
(3) इसमें शिक्षा पाने के अधिकारी मात्र सवर्ण ही होते थे।
(4) इसमें धार्मिक पूजापाठ और कर्मकाण्ड का बोलबाला रहता था।
(5) इसमें धर्मिक ग्रन्थ, देवी-देवताओं की कहानियां, चिकित्सा, तंत्र, मंत्र, ज्योतिष, जादू टोना आदि शामिल रहे हैं।
(6) इसका माध्यम मुख्यतः संस्कृत रहता था।
(7) इसमें ज्ञान-विज्ञान, भूगोल, इतिहास और आधुनिक विषयों का अभाव रहता था अथवा अतिश्योक्तिपूर्ण ढंग से बात कही जाती थी। जैसेः-राम ने हजारों वर्ष राज किया, भारत जम्बू द्वीप में था, कुंभकर्ण का शरीर कई योजन था, कोटि-कोटि सेना लड़ी, आदि आदि।
(8) इस नीति के तहत कभी ऐसा कोई गुरुकुल या विद्यालय नहीं खोला गया, जिसमें सभी वर्णों और जातियों के बच्चे पढ़तें हों।
(9) इस शिक्षा नीति ने कोई अंदोलन खड़ा नहीं किया, बल्कि लोगों को अंधविश्वासी, धर्मप्राण, अतार्किक और सब कुछ भगवान पर छोड़ देने वाला ही बनाया।
(10)गुरुकुलों में प्रवेश से पूर्व छात्र का यज्ञोपवीत संस्कार अनिवार्य था। चूंकि हिन्दू धर्म शास्त्रों में शूद्रों का यज्ञोपवीत संस्कार वर्जित है, अतः शूद्र तो इसको ग्रहण ही नहीं कर सकते थे, अतः इनके लिये यह किसी काम की नहीं रही।
(11) इसमें तर्क का कोई स्थान नहीं था। धर्म और कर्मकाण्ड पर तर्क करने वाले को नास्तिक करार दिया जाता था। जैसे चार्वाक, तथागत बुद्ध और इसी तरह अन्य।
(12)  इस प्रणाली में चतुर्वर्ण समानता का सिद्धांत नहीं रहा।
(13) प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में शूद्र विरोधी भावनाएं प्रबलता से रही हैं। जैसे कि एकलव्य का अंगूठा काटना, शम्बूक की हत्या आदि।
(14) इससे हम विश्व से परिचित नहीं हो पाते थे। मात्र भारत और उसकी महिमा ही गायी जाती थी।
(15) इसमें वर्ण व्यवस्था का वर्चस्व था और इसमें व्रत, पूजा-पाठ, त्योहार, तीर्थ यात्राओं आदि का बहुत महत्त्व रहा।
👉 लार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति:-
(1) इसका आधार तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार उत्पन्न आवश्यकतायें रहीं।
(2) लॅार्ड मैकाले ने शिक्षक भर्ती की नई व्यवस्था की, जिसमें हर जाति व धर्म का व्यक्ति शिक्षक बन सकता था। तभी तो रामजी सकपाल (बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर के पिताजी) सेना में शिक्षक बने।
(3) जो भी शिक्षा को ग्रहण करने की इच्छा और क्षमता रखता है, वह इसे ग्रहण कर सकता है।
(4) इसमें धार्मिक पूजापाठ और कर्मकाण्ड के बजाय तार्किकता को महत्त्व दिया जाता है।
(5) इसमें इतिहास, कला, भूगोल, भाषा-विज्ञान, विज्ञान, अभियांत्रिकी, चिकित्सा, प्रबन्धन और अनेक आधुनिक विद्यायें शामिल हैं।
(6) इसका माध्यम प्रारम्भ में अंग्रेजी भाषा और बाद में इसके साथ-साथ सभी प्रमुख क्षेत्रीय भाषाएं हो गईं।
(7) इसमें ज्ञान-विज्ञान, भूगोल, इतिहास और आधुनिक विषयों की प्रचुरता रहती है और अतिश्योक्ति पूर्ण या अविश्वसनीय बातों का कोई स्थान नहीं होता है।
(8) इस नीति के तहत सर्व प्रथम 1835 से 1853 तक अधिकांश जिलों में स्कूल खोले गये। आज यही कार्य केंद्र और राज्य सरकारों के साथ ही निजी संस्थाएं भी शामिल हैं।
(9) भारत में स्वाधीनता आंदोलन खड़ा हुआ, उसमें लार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति का बहुत भारी योगदान रहा, क्योंकि जन सामान्य का पढ़ा-लिखा होने से उसे देश-विदेश की जानकारी मिलने लगी, जो इस आंदोलन में सहायक रही।
(10) यह विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में लागू होती आई है।
(11) इसको ग्रहण करने में किसी तरह की कोई पाबन्दी नहीं रही, अतः यह जन साधारण के लिये सर्व सुलभ रही। अगर शूद्रों और अतिशूद्रों का भला किसी शिक्षा से हुआ तो वह लार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा प्रणाली से ही हुआ। इसी से पढ़ लिख कर बाबासाहेब अंबेडकर डॉक्टर बने।
(12) इसमें तर्क को पूरा स्थान दिया गया है। धर्म अथवा आस्तिकता-नास्तिकता से इसका कोई वास्ता नहीं है।
(13) यह राजा और रंक सब के लिये सुलभ है।
(14) इसमें सर्व वर्ण व सर्व धर्म समान हैं। शूद्र और अतिशूद्र भी इसमें शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं, लेकिन जहां-जहां संकीर्ण मानसिकता वाले ब्राह्मणवादियों का वर्चस्व बढ़ा है, वहां वहां इन्होनें उनको शिक्षा से वंचित करने की भरपूर कोशिश की है।
(15) इससे हमआधुनिक विश्व से सरलता से परिचितहो रहे हैं।


हमारे लिए अंग्रेजो ने बहुत कुछ किया,
जिसका बदला हम कभी नहीं चूका सकते।
लेकिन मनुवादी समाज जानबूझ कर अंग्रेजो को हमारा दुश्मन बताता और अंग्रेजो को गाली देता है।
भारत को आज़ाद करने का सबसे बड़ा कारण था की दूसरे विश्व युद्ध में अंग्रेजों की स्थिति कमज़ोर हो गए थी और उनके लिए गुलाम देशों पर नियंत्रण करना मुश्किल हो गया था। आप तो समझदार हो की गांधी जी की लाठी या चरखे से आज़ादी नहीं मिली और न ही आरएसएस का कोई योगदान है।

लोहिया अपनी किताब, "हिन्दू बनाम हिन्दू" में लिखते हैं,
"मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, अंग्रेजों के समय का गुलामी काल, शूद्रों के लिये वरदान साबित हुआ है. हम प्राचीन काल की चाहे जितनी भी डींग हांक लें, लेकिन अगर अँग्रेजों का सम्पर्क न हुआ होता, तो हम बहुत पिछड़े रहते. भारतीय इतिहास के पांच हजार सालों में एक भी विद्वान शूद्रों में न हो सका, जबकि अँग्रेजों के लगभग 200 साल के गुलामी काल में डाक्टर अम्बेडकर, मेघनाथ साहा, राधा विनोद पाल, सुरेन्द्र नाथ शील और अन्य कितने ही नाम जिन्हें मैं नहीं जानता, शूद्रों ने पैदा किये हैं. यदि 1857 का विद्रोह सफल हो जाता तो निश्चय ही शूद्रों को सामाजिक उत्थान के इतने अवसर न मिलते, जितने की 1857 के बाद अंग्रेजों की गुलामी काल में मिले हैं. यह अंग्रेजों की गुलामी का काल था, जब एक ब्राह्मण चपरासी बना तथा चमार एक कलक्टर." इसलिये इस देश का मूल शासक ये खूब जानता है कि अगर अंग्रेज 20- 30 साल और रह गये होते तो देश का शूद्र फ़िर से देश का मूल शासक बन गया होता.".
बहुजनों के मसीहा लॉर्ड मैकाले

25 अक्टूबर बहुजन शिक्षा के क्रांति दूत (लार्ड मैकाले के जन्म दिवस) पर सभी साथियों को हार्दिक बधाई एवं शुभ कामनाएँ

लार्ड मैकाले का जन्म 25 अक्टूबर सन् 1800 ईस्वी को इंग्लैण्ड के लेस्टर शायर नामक स्थान पर हुआ था। सन् 1835 में कम्पनी शासन द्वारा गठित विधि आयोग के अध्यक्ष बनकर भारत आये। लार्ड मैकाले भारत के बहुजनों के लिए किसी फरिस्ते से कम नहीं थे। वे हजारों साल से शिक्षा के अधिकार से वंचित बहुजन समाज के लिए मुक्ति दूत बनकर भारत आये। उन्होंने शिक्षा पर ब्राह्मण वर्ग के एकाधिकार को समाप्त कर सभी को समान रूप से शिक्षा पाने का अधिकार प्रदान किया तथा पिछड़ों, दलितों व आदिवासियों की किस्मत के दरवाजे खोल दिए। लार्ड मैकाले अंग्रेजी के प्रकाण्ड विद्वान तथा समर्थक, सफल लेखक तथा धारा प्रवाह भाषण कर्ता थे। लार्ड मैकाले ने संस्कृत-साहित्य पर प्रहार करते हुए लिखा है कि -- 
क्या हम ऐसे चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन कराएं जिस पर अंग्रेजी पशु-चिकित्सा को भी लज्जा आ जाये... 
क्या हम ऐसे ज्योतिष को पढ़ायें जिस पर अंग्रेज बालिकाएं हँसें...
क्या हम ऐसे इतिहास का अध्ययन कराएं जिसमें तीस फुट के राजाओं का वर्णन हो...
क्या हम ऐसे भूगोल बालकों को पढ़ाने को दें जिसमें शीरा तथा मक्खन से भरे समुद्रों का वर्णन हो...

लार्ड मैकाले संस्कृत,  तथा फारसी भाषा पर धन व्यय करना मूर्खता समझते थे। उन्होंने अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया | अंग्रेजी भाषा ने ही भारत को पूरी दुनियाँ से जोड़ा। लार्ड मैकाले ने ब्राह्मणो की वर्णव्यवस्था के साम्राज्य को ध्वस्त किया तथा गैर बराबरी वाले ब्राह्मणवादी साम्राज्य की काली दीवार को उखाड़ फेंका। सच्चाई यह है कि लार्ड मैकाले ने आगे आने वाली पीढ़ी के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया जिसके कारण ज्योतिवा फुले, शाहु जी महाराज, रामा स्वामी नायकर और बाबा साहब आंबेडकर जैसी महान विभूतियों का उदय हुआ जिन्होंने भारत का नया इतिहास लिखा। मैकाले का भारत में एक मसीहा के रूप में आविर्भाव हुआ था जिसने चार हजार वर्ष पुरानी ब्राह्मण शाही व्यवस्था को ध्वस्त करके जाति और धर्म से ऊपर उठकर एक इंसानी समाज बनाने का आधार दिया 

मैकाले रचित भारतीय दंड संहिता (IPC) ब्राह्मनी साम्राज्यवाद पर करारा प्रहार है, जिसे 06 अक्टूबर 1860 को लागु किया गया. मेकाले ब्राह्मणवाद के विरुद्ध खुलकर बोलने वाले प्रथम ब्रिटिश कानूनविद और शिक्षाविद् थे. ब्राह्मणी दंड संहिता (Brahmin Penal Code अर्थात मनुस्मृती) यह असमानता का अद्भुत मिशाल थी.

भारतीय दंड संहिता (IPC) ने BPC और मनुवाद को ध्वस्त किया. मेकाले भारत में आधुनिक शिक्षा के जन्मदाता थे, जिन्होंने सदियों से बंद बहुजन शिक्षा का द्वार खोला. मेकलियन शिक्षा पद्धति के कारन ही भारत को विश्व ने और विश्व को भारत जाना है. भारत में स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी इन्ही की देंन है. आजीवन अविवाहित रहे मेकाले ने भारत में मात्र 4 वर्ष रह कर भारत का तक़दीर बदल दिया तथा हजारों वर्षो से चातुर्वर्ण पर आधारित समाज व्यवस्था को बदल कर कानून और शिक्षा के माध्यम से समतामूलक समाज स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया. यह अधुनिक भारत में सबसे बडी क्रान्ति है. आज ब्राह्मण लोग मेकाले की आलोचना करते हैं, क्योंकि मेकाले ने मनुवाद (BPC) को IPC से मिटाया.
          इस प्रकार शिक्षा और कानून के क्षेत्र में शूद्रों और अतिशूद्रों के लिए किये गये कार्यों के लिए लार्ड मैकाले बेजोड़ स्तंभ हैं और हमेशा रहेंगे।

ईश्वर चंद्र वर्मा-जिलामहासचिव-बामसेफ,जनपद-हरदोई,उ.प्र.
                जय भीम! जय मूलनिवासी!!

9 comments:

  1. लौर्ड मैकाले ने भारतीय संस्कृति और साहित्य का ध्वंश किया,चरित्रमूलक शिक्षा पद्धति का ध्वंश‌किया। समतामूलक मौलिक चरित्र वाली वर्णव्यवस्था में व्याप्त ब्राह्मणवाद के उपद्रव सामर्थ्य को कमकर शुद्रों की उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया,पर हमें हमारी वैदिक संस्कृति से दूर ले गया जिसका खामियाजा देश आज भी भोग रहा है,भौतिक समृद्धि बढ़ी है पर इसके साथ साथ चारित्रिक पतन भी हुआ है।जीवन के हरेक क्षेत्र में चारित्रिक पतन होता जा रहा है। इस पतन से बचने का कोई उपाय भी मैकाले साहब दे गये हैं तो बतावें

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  2. धन्यवाद महोदय इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए।

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  3. मैं मनुविधान का विरोध करता हूं लेकिन इतनी नकारात्मक सोच भी नहीं रखता कि प्रचीन इतिहास के पन्नों को जिसमें पूर्ववैदिक सभ्यता बौद्ध सभ्यता व मौर्यवंस की गौरवशाली सभ्यता को भुलाकर भारत के लिए नुकसानदायक अंग्रेजी सभ्यता,रीतिरिवाज और चिकित्सा जैसी विदेशी भारत के भविष्य के लिए हानिकारक चीजों को अंगीकार करूं। डा अंबेडकर ने मनुविधान का विकल्प दिया सूद्रों अछूतों व अन्य भारतीयों को लेकिन ये नहीं कहा था कि भारत की एकसमान गौरवशाली सभ्यता व संस्क्रिति को छोडकर भारत के लिए वैग्यानिक रूप से प्रतिकूल सभ्यता को अपना लेना। ये भी जान लो कि भारत अब भी ब्रिटिश से आजाद नहीं हुआ है

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  4. फिर क्यों लड़ा पूरा भारत अंग्रेजों के खिलाफ , अंग्रेजी के खिलाफ

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  5. लार्ड मैकाले ने हमारे वैदिक परंपरा को बहुत ठेस पहुचाई है वह हमारे भारत के वेद ,पुराण के महिमा, यंहा के कर्मकांड के बारे में जानता था वह सोचता था जिनकी खोज उस टाइम विदेशों में होते थे वह भारत मे हज़ारों साल पहले ही गयी थी ताकि भारत के लोग अगर गुलाम बनानां है अगर अंग्रेजों को राज करना है तो सबसे पहले इनकी संस्कृति पर चोट की जाए इज़लिये मैकाले ने अंग्रेजी शिक्षा पद्ति भारत में लाई लोग वैदिक संस्कृति को भूल कर पश्चिम सभ्यता का पालन कारण।रही बात शुद्र, और ब्राह्मण की तो रविदास, कबीरदास भी निम्न जाति से थे की उन्हीने वेद पुराण नहीं पढ़ी ये सब बातें हम भारतियों को तोड़ने की है बस 4 वर्ण का मतलब4 स्तंभ इसमें अगर एक भी उखड़ गए तो समझे की हमारी वैदिक संस्कृति खत्म
    इसलिए अपनी वैदिक परंपरा को जीवंत रखने के लिए प्रयाश करे
    जय भोलेनाथ

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  6. आपके इस ब्लॉग से काफी जानकारी मिली
    वैसे भी प्राचीन शिक्षा पद्धति में सिर्फ कल्पनाओ का भंडार था जिसे लार्ड मैकाले ने तोड़कर वास्तविकता का ज्ञान (इतिहास भूगोल विज्ञानं और तर्क करने की क्षमता ) पर बल दिया। ......... वैसे भी हमलोग आज भी अंग्रेजी शिक्षा पद्धति को ही फॉलो कर रहे है ताकि पुरे विश्व के साथ कंधे मिला कर चल सके
    धन्यवाद भाई।

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  7. हमें संस्कृत और हिन्दी से ज्यादा अब English भाषा पर ध्यान (पढ़ना, बोलना, समझना) देना होगा। क्योंकि किसी भी बड़े एक्जाम, बिजनेस के लिए, देश-विदेश में जाने-आने के लिए, उनकी मदद लेना और करने के लिए English भाषा की जरूरत पड़ेगी न कि गुलाम बनाने बाली भाषा संस्कृत!

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