Tuesday, 2 October 2018

बाबा साहब की केवल एक किताब पढ़ कर पागल हो गया

 मान्यवर कांशी राम जी कहते थे कि मैं बाबा साहब की केवल एक किताब पढ़ कर पागल हो गया और घर बार छोड़कर बाबा साहेब के मिशन को पूरा करने में लग गया पता नहीं यह कैसे अंबेडकरवादी हैं जो बाबा साहेब की इतनी किताबें पढ़कर और उनके विचारों को सुनकर भी टस से मस नहीं होते आज तो और भी बुरी स्थिति है रोज WhatsApp पर बाबा साहब से संबंधित खबरें उनके विचार डाले जाते हैं और लोग अनेक किताबें भी खरीद कर ला कर पढ़ते हैं फिर भी जो परिवर्तन की लहर दिखनी चाहिए वह नहीं दिखती है लगता है या तो लोग ध्यान से पढ़ते नहीं हैं या अपनी सुख सुविधाओं में व्यस्त हैं उन्हें बाबासाहेब से और उनके विचारों से कुछ लेना देना नहीं है वह बाबासाहेब के नाम पर केवल दलाली करते हैं और समाज को गुमराह करते हैं अगर एक गांव में एक सच्चा अंबेडकरवादी हो जाए तो उस गांव में परिवर्तन हो जाना चाहिए इसी प्रकार से यदि देश में सच्चे अंबेडकरवादी हो जाएं तो परिवर्तन हो जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है इससे लगता है कि लोग केवल अंबेडकर के नाम पर अपनी रोटी सेक रहे हैं और राजनीति कर रहे है




" महार " नाम का अर्थ सबसे बेहतरीन तरीके से सिर्फ महत्मा फुले जी ने बताया है अपनी किताब " गुलामगिरी " में। ..... भारत में रहने वाले जो बौद्ध लोग थे  उनपर पुष्यमित्र शुंग ( परशुराम ) ने जब आक्रमण किया , तब बाकी के सब पुष्यमित्र शुंग ( परशुराम ) के सामने हार गए थे लेकिन बौद्ध लोगों में से कुछ लोग परशुराम के साथ २१ बार लडे थे। ... २१ बार लड़ने वाले वही शूरवीर लोगों को पुष्यमित्र शुंग ने नाम दिया था " महार " .....  " महा " मतलब बड़ा और " अरि " मतलब दुश्मन , महारी ( महार ) मतलब ब्राह्मणों का सबसे बड़ा दुश्मन। ....और महारों का मुख्य राज्य  " महार-रठ्ठा "  ( Now - महार-राष्ट्र  )  था ....... 
  इतना बड़ा इतिहास महात्मा फुले जी ने बताया है ..... 

महात्मा फुले जी को जब उनके पिता ने घर के बाहर निकाल दिया था , तब महात्मा फुले जी ने अपने पिता गोविंदराव से कहा था ,   " बाबा , इस देश का इतिहास अगर बदलने की हिम्मत किसी में है तो वो केवल  " महारों " में है। ... क्यों की वो एक ही समाज जागृत है ,  बाकी के सब सोये हुए है यहाँ। ... इसलिए भले ही आप मुझे घर के बाहर निकाल दे लेकिन मैं इन्हे पढ़ाऊंगा ही  "  
और जिस तरह से महत्मा फुले बोले थे , उसी तरह से इस देश का इतिहास एक महार ने ही बदला है  , जिनका नाम था बाबासाहब आंबेडकर। ..... 

" आरक्षण " मूवी में सैफ अली खान एक डायलॉग बोलता है , 
" हमारी quality क्या है आप अच्छी तरह से जानते है ,  हमे बस  एक chance चाहिए सर। ....  हमे एक chance अगर मिल जाए , तो हममे से एक देश का संविधान लिख देता है। .... "

singing के लिए अगर bollywood में chance मिल जाए तो हममे से एक सोनू निगम होता है ..... और अगर हीरो बनने के लिए chance मिल जाए , तो इन महारों में से एक सीधे " रजनीकांत " होता है , जो एक मूवी के लिए 140 करोड़ रुपये लेते है। .......
कहाँ रहे एक मूवी के 4.6 करोड़ लेने वाले अमिताभ बच्चन और कहाँ रहे एक मूवी के लिए 140 करोड़ रुपये लेने वाले रजनीकांत , 
 ये फरक है तुममे और हम में। .... ये है हमारी quality


 जो महार अपना मूल बौध्द धम्म और  उनका गौरव शाली इतिहास भूल गये थे ! जीन बौध्द राजा वों ने लगभग 1200 साल तक राज किया हो और चक्रवर्ती सम्राट अशोक जिसका राज ईरान, अफगानिस्तान,पाकिस्तान,नेपाल,बांग्लादेश और पूरा भारत( जम्बूद्वीप )पे रहा हो हम उनकी संतान है! 
बाबासाहाब ने १४ऑक्ट १९५६ को फिर से उन महारो को अपने मूल बौध्द धम्म मे ले आये जो अपना इतिहास भूल गये थे !

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https://www.forwardpress.in/2016/07/periyar-ki-drishti-me-ramkatha_suresh-pandit/

*अब तक का ज्ञात सबसे बड़ा बुद्ध स्थल सिरपुर।*

राजधानी रायपुर से 85 किलोमीटर दूर दक्षिण कोसल की प्राचीन राजधानी माना जाने वाला पुरातात्विक स्थल सिरपुर भारत में अब तक ज्ञात सबसे बड़ा बौद्ध स्थल है। यह स्थल नालंदा के बौद्ध स्थल से भी बड़ा है। राजधानी रायपुर से 85 किलोमीटर दूर दक्षिण कोसल की प्राचीन राजधानी माना जाने वाला पुरातात्विक स्थल सिरपुर भारत में अब तक ज्ञात सबसे बड़ा बौद्ध स्थल है। यह स्थल नालंदा के बौद्ध स्थल से भी बड़ा है।

यहां अब तक 10 बौद्ध विहार और 10,000 बौद्ध भिक्षुकों को पढ़ाने के पुख्ता प्रमाण के अलावा बौद्ध स्तूप और बौद्ध विद्वान नागार्जुन के सिरपुर आने के प्रमाण मिले हैं।

छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक सलाहकार अरुण कुमार शर्मा ने व्हेनसांग के यात्रा वृतांत के आधार पर खुदाई करते हुए यात्रा वृतांत में उल्लिखित सभी विशेषताएं सिरपुर के उत्खनन में पाई हैं।

उल्लेखनीय है कि ईसा पश्चात छठवीं शताब्दी के चीनी यात्री व्हेनसांग ने दक्षिण कोसल की राजधानी का जिक्र करते हुए लिखा है कि वहां सौ संघाराम थे जहां भगवान तथागत बुद्ध के आने की बात कही जाती है इसी स्थान पर बौद्ध विद्वान नागार्जुन ने एक गुफा में निवास किया था।

भारत के अधिकांश धार्मिक तीर्थ नदी के ईशान कोण पर मुड़ने के स्थान पर स्थापित किए गए हैं। जैसे बनारस में गंगा नदी 18 डिग्री पर, सरयू नदी पांच डिग्री और सिरपुर में भी महानदी 21 डिग्री के ईशान कोण पर मुड़ती है। सिरपुर की नगर संरचना एवं मंदिरों की बनावट मयामत के अनुसार पाई गई है।

शर्मा ने बताया कि नालंदा में चार बौद्ध विहार मिले हैं, जबकि सिरपुर में दस बौद्ध विहार पाए गए। इनमें छह-छह फिट की बुद्ध की मूर्तियां मिली हैं। सिरपुर के बौद्ध विहार दो मंजिलें हैं जबकि नालंदा के विहार एक मंजिला ही हैं। सिरपुर के बौद्ध विहारों में जातक कथाओं का अंकन है और पंचतंत्र की चित्रकथाएं भी अंकित हैं। इसमें से कुछ चित्र तो बुद्ध की किस कथा से संबंधित हैं, इसकी भी जानकारी नहीं मिल पा रही है।

शर्मा ने बताया कि सिरपुर में भगवान तथागत बुद्ध के आने के प्रमाण मिले हैं। भगवान तथागत ने यहां चौमासा बिताया है। उनके सिरपुर आगमन की याद को चिरस्थाई बनाने के लिए यहां ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक के द्वारा बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया गया था। उस स्तूप के अधिष्ठान को बाद में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में बड़ा किया गया है।

इस अधिष्ठान के पत्थरों में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के अक्षरों में बौद्ध भिक्षुकों के नाम तक खुदे प्राप्त हुए हैं। भगवान बुद्ध के समय गया से लाया गया वटवृक्ष अभी भी अपनी कायांतरित शाखा के साथ बाजार क्षेत्र में विद्यमान है।

सिरपुर में उत्खनन में विश्व का सबसे बड़ा सुव्यवस्थित बाजार भी मिला है, जहां से अष्टधातु की मूर्तियां बनाने के कारखाने के प्रमाण मिले हैं। इस कारखाने में धातुओं को गलाने की घरिया और मूर्तियों को बनाने में प्रयुक्त होने वाली धातुओं की ईंटें प्राप्त हुई हैं।

उनका दावा है कि छठी शताब्दी के चीनी यात्री व्हेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में जिस राजधानी का जिक्र किया है वह सिरपुर ही है। व्हेनसांग ने जिस गुफा का उल्लेख अपने यात्रा वृतांत में किया था वह सिरपुर के नजदीक स्थित सिंहवाधुर्वा के पहाड़ की गुफा है। [ जहां वर्तमान में जनजातियों द्वारा शिवलिंग स्थापित किया गया है और उस स्थान में मेला भी लगता है। ]

शर्मा ने कहा कि छठी-सातवीं शताब्दी में सिरपुर एक अति विकसित राजधानी थी जहां देश विदेश से व्यापार होता था। इस प्राचीन राजधानी में धातु गलाने के उपकरण, सोने के गहने बनाने की डाई से लेकर अंडर ग्राउंड अन्नागार तक मिले हैं।

सिरपुर में विदेश के बंदरगाह की बंदर-ए-मुबारक नाम की सील भी मिली है जिससे पता चलता है कि सिरपुर से विदेशों में महानदी के माध्यम से व्यापार होता था। सिरपुर के पास ही महानदी पर नदी बंदरगाह आज भी विद्यमान है। पहले महानदी में पानी की मात्रा ज्यादा होती थी और उसमें जहाज आया जाया करते थे।

सिरपुर में ढाई हजार लोगों के लिए एक साथ भोजन पकाने की सौ कढ़ाई राजा द्वारा दान किए जाने के उल्लेख वाले शिलालेख भी मिले हैं। 
इसके अलावा आयुर्वेदिक दस बिस्तरों वाला अस्पताल, शल्य क्रिया के औजार और हड्डी में धातु की छड़ लगी प्राप्त हुई है। पिछले दस वर्षों से सिरपुर का उत्खनन करने वाले शर्मा ने बताया कि सिरपुर का पतन वहां आए भूकंप और बाढ़ के कारण हुआ था। सातवीं शताब्दी के पश्चात इस क्षेत्र में जबरदस्त भूकंप आया था जिसके कारण पूरा सिरपुर डोलने लगा था इसके साथ ही महानदी का पानी महीनों तक नगर में भरा रहा।

उन्होंने कहा कि यही भूकंप और बाढ़ सिरपुर के विनाश का कारण बना। यहां के पुरातात्विक उत्खनन में इस बाढ़ और भूकंप के प्रमाण के रूप में सुरंग टीले के मंदिरों में सीढ़ियों के टेढ़े होने और मंदिरों व भवनों की दीवालों पर पानी के रूकने के साथ बाढ़ के महीन रेत युक्त मिट्टी दीवारों के एक निश्चित दूरी पर जमने के निशान मिलते हैं।

1 comment:

  1. पहली बात तो ये कि ऐसी किताब लिखनी ही चाहिए थी जिसको पढ़कर तुम जैसे जाहिल पागल हो गए।

    और जब पगला ही गये हो तो उस गांड़ू पेरियार की चाटने का प्रयास लगातार करते रहो। ताकि तुम जैसे जाहिल को कुछ तो हासिल हो

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