Monday 1 October 2018

नारी मुक्ति दिन

मनुस्मृति दहन दिवस सह नारी मुक्ति दिन है 

 दिन 25 दिसम्बर 1927 ई० को बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर ने मनुस्मृति के काले पन्नो को जलाकर नारी मुक्ति क्रान्ति का आगाज किया था। आईए जानने का प्रयास करे कि मनु ने नारियों के लिए कैसे घृणित विधान समाज में लागू किए थे।
     बाबासाहब  के  विचारों  को  अपने  जीवन  मे  अपनायें  और  बाबासाहब  का  बौद्धमय  भारत बनाने  का  सपना  पुरा  करने  के  लिये  सारे  बहुजन  व  सम्स्त  देशवासी  एक  जुट  होकर  भारत  को  मनुवादियो  के  घिनोने  जाल  से  बचाये 
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼मनुस्मृति को क्यों जलाया गया था बाबासाहब द्वारा आओ जाने,
मनुस्मुर्ति" में क्या कहा हैं
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यह देखिये-
१- पुत्री,पत्नी,माता या कन्या,युवा,व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए. -मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक.

२- पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद(गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं. किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५

३- संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी "दास" हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति,पूत्र, या पिता हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६.

४- ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं....तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं-"ढोर,चमार और नारी, ताडन के अधिकारी."
- मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९

५- असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८.

६- स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यग्यकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती.(इसी लिए कहा जाता है-"नारी नर्क का द्वार") - मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७ .

७- यग्यकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियो से किसी ब्राह्मण भी ने भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो ने किए हुए सभी यग्य कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६ .

८- - मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो , स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली - अध्याय-२ श्लोक-२१४ .

९ - स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं. अध्याय-२ श्लोक-२१४

१० - स्त्री एकांत का दुरुप्योग करने वाली. अध्याय-२ श्लोक-२१५.

११. - स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपताको नही देखती. अध्याय-९ श्लोक-११४.

१२- स्त्री चंचल और हदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं. अध्याय-२ श्लोक-११५.

१३.- केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्षाखोर,दुराचारी हैं . अध्याय-९ श्लोक-१७.

१४.- सुखी संसार के लिए स्त्रीओ को कैसे रहना चाहिए? 


इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं-
(१). स्त्रीओ को जीवन भर पति की आग्या का पालन करना चाहिए. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-११५.

(२). पति सदाचारहीन हो,अन्य स्त्रीओ में आसक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसे देव की तरह पूजना चाहिए.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४.

जो इस प्रकार के उपर के ये प्रावधान वाले पाशविक रीति-नीति के विधान वाले पोस्टर क्यो नही छपवाये?

(१) वर्णानुसार करने के कार्यः -

- महातेजस्वी ब्रह्मा ने स्रुष्टी की रचना के लिए ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र को भिन्न-भिन्न कर्म करने को तै किया हैं -

- पढ्ना,पढाना,यग्य करना-कराना,दान लेना यह सब ब्राह्मण को कर्म करना हैं. अध्यायः१:श्लोक:८७

- प्रजा रक्षण , दान देना, यग्य करना, पढ्ना...यह सब क्षत्रिय को करने के कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:८९

- पशु-पालन , दान देना,यग्य करना, पढ्ना,सुद(ब्याज) लेना यह वैश्य को करने का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९०.

- द्वेष-भावना रहित, आंनदित होकर उपर्युक्त तीनो-वर्गो की नि:स्वार्थ सेवा करना, यह शूद्र का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९१.

(२) प्रत्येक वर्ण की व्यक्तिओके नाम कैसे हो?:-

- ब्राह्मण का नाम मंगलसूचक - उदा. शर्मा या शंकर
- क्षत्रिय का नाम शक्ति सूचक - उदा. सिंह
- वैश्य का नाम धनवाचक पुष्टियुक्त - उदा. शाह
- शूद्र का नाम निंदित या दास शब्द युक्त - उदा. मणिदास,देवीदास
- अध्यायः२:श्लोक:३१-३२.

(३) आचमन के लिए लेनेवाला जल:-

- ब्राह्मण को ह्रदय तक पहुचे उतना.
- क्षत्रिय को कंठ तक पहुचे उतना.
- वैश्य को मुहं में फ़ैले उतना.
- शूद्र को होठ भीग जाये उतना, आचमन लेना चाहिए.
- अध्यायः२:श्लोक:६२.

(४) व्यक्ति सामने मिले तो क्या पूछे?:-
- ब्राह्मण को कुशल विषयक पूछे.
- क्षत्रिय को स्वाश्थ्य विषयक पूछे.
- वैश्य को क्षेम विषयक पूछे.
- शूद्र को आरोग्य विषयक पूछे.
- अध्यायः२:श्लोक:१२७.
(५) वर्ण की श्रेष्ठा का अंकन :-
- ब्राह्मण को विद्या से.
- क्षत्रिय को बल से.
- वैश्य को धन से.
- शूद्र को जन्म से ही श्रेष्ठ मानना.(यानी वह जन्म से ही शूद्र हैं)
- अध्यायः२:श्लोक:१५५.
(६) विवाह के लिए कन्या का चयन:-
- ब्राह्मण सभी चार वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- क्षत्रिय - ब्राह्मण कन्या को छोडकर सभी तीनो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- वैश्य - वैश्य की और श- शूद्र को शूद्र वर्ण की ही कन्याये विवाह के लिए पंसद कर सकता हैं.- (अध्यायः३:श्लोक:१३) यानी शूद्र को ही वर्ण से बाहर अन्य वर्ण की कन्या से विवाह नही कर सकता.

(७) अतिथि विषयक:-
- ब्राह्मण के घर केवल ब्राह्मण ही अतिथि गीना जाता हैं,(और वर्ण की व्यक्ति नही)
- क्षत्रिय के घर ब्राह्मण और क्षत्रिय ही ऎसे दो ही अतिथि गीने जाते थे.
- वैश्य के घर ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य तीनो द्विज अतिथि हो सकते हैं, लेकिन ...

- शूद्र के घर केवल शूद्र ही अतिथि कहेलवाता हैं - (अध्यायः३:श्लोक:११०) और कोइ वर्ण का आ नही सकता...

(८) पके हुए अन्न का स्वरुप:-

- ब्राह्मण के घर का अन्न अम्रुतमय.
- क्षत्रिय के घर का अन्न पय(दुग्ध) रुप.
- वैश्य के घर का अन्न जो है यानी अन्नरुप में.
- शूद्र के घर का अन्न रक्तस्वरुप हैं यानी वह खाने योग्य ही नही हैं.
(अध्यायः४:श्लोक:१४)

(९) शव  को कौन से द्वार से ले जाए? :-
- ब्राह्मण के शव को नगर के पूर्व द्वार से ले जाए.
- क्षत्रिय के शव को नगर के उतर द्वार से ले जाए.
- वैश्य के शव को पश्र्चिम द्वार से ले जाए.
- शूद्र के शव को दक्षिण द्वार से ले जाए.
(अध्यायः५:श्लोक:९२)

(१०  किस  की सौगंध लेनी   चाहिए?:-
- ब्राह्मण को सत्य के.
- क्षत्रिय वाहन के.
- वैश्य को गाय, व्यापार या सुवर्ण के.
- शूद्र को अपने पापो के सोगन्ध दिलवाने चाहिए.
(अध्यायः८:श्लोक:११३)

(११) महिलाओ के साथ गैरकानूनी संभोग करने हेतू:-
- ब्राह्मण अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो सिर पे मुंडन करे.
- क्षत्रिय अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो १००० भी दंड करे.
- वैश्य अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये और १ साल के लिए कैद और बाद में देश निष्कासित.
- शूद्र अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये , उसका लिंग काट लिआ जाये.
- शूद्र अगर द्विज-जाती के साथ अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसका एक अंग काटके उसकी हत्या कर दे.
(अध्यायः८:श्लोक:३७४,३७५,३७
९)
(१२) हत्या के अपराध में कोन सी कार्यवाही हो?:-
- ब्राह्मण की हत्या यानी ब्रह्महत्या महापाप.(ब्रह्महत्या करने वालो को उसके पाप से कभी मुक्ति नही मिलती)
- क्षत्रिय की हत्या करने से ब्रह्महत्या का चौथे हिस्से का पाप लगता हैं.
- वैश्य की हत्या करने से ब्रह्महत्या का आठ्वे हिस्से का पाप लगता हैं.

- शूद्र की हत्या करने से ब्रह्महत्या का सोलह्वे हिस्से का पाप लगता हैं.(यानी शूद्र की जिन्दगी  बहुत  सस्ती हैं)
- (अध्यायः११:श्लोक:१२६)





*ब्राह्मणों  की राज्यघटना  मनुस्मृती  को विश्वरत्न  बाबा साहब डाँ. भीमराव आंबेडकरजीं  ने 25 दिसंबर 1927 को महाड , जिल्हा - रायगड , राज्य - महाराष्ट्र  में क्यों जलाई थी* !! 

1_मनुस्मृति में यह लिखा हुआ था, शुद्र अति शूद्र ( भारतीय जनता ) को पढ़ने का ,धन रखने का, अस्त्र ,शस्त्र रखने का व ब्राह्मणों की किसी भी धर्म ग्रंथ वेद शास्त्र  का उच्चारण करना घोर अपराध माना जाता था ,उसके लिए उसको अनेक यातनाएं दी जाती थी, जैसे कान में खोलता हुआ लोहा पिघलाकर डाला जाता था , उसकी आंखें फोड़ दी जाती थी, उसकी जीवा काट दी जाती थी !! 

2_ इस  मनुस्मृती  ग्रंथ में मानवता के दुश्मन  ब्राह्मणवाद के बढ़ावे के सिवाय कुछ नहीं था !

3_ इन ग्रंथों में तर्क के आधारित कुछ भी नहीं था !! 

3_ मनुस्मृति ग्रंथ मान्यताओं पर आधारित नहीं था !! 

4_ नारी को किसी भी तरीके से स्वतंत्र नहीं रखा गया था !

5_ मनुस्मृति के अनुसार महिलाओं को केवल उपभोग की वस्तु समझा जाता था,और पांव की जूती !! 

6_ ढोल , गवार , शुद्र पशु , नारी , यह सब ताड़न ( पीटने )  के अधिकारी !!

7_ ब्राह्मणों की मनुस्मृति घटना  के अनुसार शूद्रों ( भारतीय ) को केवल ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य की सेवा करने के लिए ही बनाया था !! 

8_ 6743 जातियां और उनके 72,000 सब गोत्र का निर्माण करना है मनुस्मृति की देन है_यानी " *फूट डालो  और  राज करो* "


9_ उपरोक्त सभी तथ्यों के पढ़ते हुए दुनिया के महा विद्वान विश्वरत्न  डॉ भीमराव अंबेडकर जी ने 25 दिसंबर 1927 को महाड , जिल्हा - रायगड , राज्य - महाराष्ट्र  में मनुस्मृती  को आग के हवाले कर दिया


स्मृतियो की रचना क्यो की गईं?इनमे दर्ज काले अमानवीय कानूनों,नियमो और प्रतिबंधों की जरूरत क्यों पड़ी?इन प्रश्नों का उपयुक्त उत्तर डॉ. अम्बेडकर की लेखनी में मिलता है।

डॉ. अम्बेडकर ने मनु स्मृति की रचना के उद्देश्य संबंधी इस प्रकार लिखा है-पुष्यमित्र द्वारा वृहद्रथ मौर्य की हत्या की ओऱ किसी का ध्यान नही गया अथवा उतना ध्यान आकर्षित नही हुआ। इतिहासज्ञों ने एसडीओ व्यक्तियो के व्यक्तिगत झगड़े का सा रूप देकर एक सामान्य सी घटना में लिया है।इसके परिणामो की ओर ध्यान दे तो यह युगान्तर कारी घटना थी।इस घटना का महत्व इस बात से नही मापा जा सकता कि यह दो राजवंशों का परिवर्तन था-शुंगों द्वारा मौर्यों का स्थान ग्रहण यह फ्रांस की राज्य क्रांति से भी,यदि बड़ी नही तो उतनी ही बड़ी राजनीतिक क्रान्ति थी।यह एक क्रांति थी-'लाल क्रांति'।इसका उद्देश्य था बौद्ध राजाओ का तख्ता उलट देना।इसके सूत्र संचालक थे ब्राह्मण।पुष्यमित्र द्वारा वृहद्रथ की हत्या इसी एक बात की घोतक है।
विजयी ब्राह्मणवाद को अनेक चीज़ों की आवश्यकता थी।स्वाभाविक तौर पर इसके लिए यह आवश्यक थी कि यह चातुर्वर्ण्य को देश का कानून बना दे ।बौद्ध इसे अस्वीकार करते ही थे।इसे इस बात की भी आवश्यकता थी कि जिस पशु-बलि को बौद्धों ने रोक दिया था,उसे कानून का रूप दे दिया जाये।लेकिन इसे इसके अतिरिक्त और भी कुछ चाहिए था।बौध्द-नरेशों के विरूद्ध यह क्रांति लाकर ब्राह्मणवाद ने देश के ऐसे दो प्रचलित नियमो का उल्लंघन कर दिया जिसको सभी लोग पवित्र और अनुल्लंघनीय मानते थे।पहला नियम तो यह था कि ब्राह्मण के लिए शस्त्र का स्पर्श भी पाप था।दूसरा नियम तो यह था कि राजा का शरीर पवित्र था और उसकी हत्या पाप।विजयी ब्राह्मणवाद को अपने पापों का समर्थन करने के लिए एक पवित्र ग्रंथ की आवश्यकता थी।जो सभी के लिए प्रमाण-स्वरूप हो।'मनु स्मृति'की एक ध्यान आकर्षित करने वाली विषेशता यह है कि यह न केवल चातुर्वर्ण्य को देश का कानून बनाती है।न केवल पशु-बलि को कानून की दृष्टी से उचित ठहराती है,किन्तु यह,यह भी बताती है कि ब्राह्मण को कब शस्त्र हाथ मे लेना चाहिए और कब वह राजा की हत्या करके भी अधर्म नही करता ।इस मामले में' मनु स्मृति ने वह काम किया है,जो पहले की किसी स्मृति ने नही किया।यह एकदम नया रास्ता है।यह एकदम नवीन सिद्धांत है।'मनु स्मृति'को ऐसा करने की क्या आवश्यकता पड़ीं?इसका केवल एक ही उत्तर है कि पुष्यमित्र ने जो राज्य क्राँति की थी,मनु स्मृति उसका दार्शनिक समर्थन करने के लिए रची गई थी
1.The untouchables,पृष्ठ 203-204,(bheem patrika publication,edition 1988)

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