*मुझे एक सवाल था,
यह सनातनी और पुरोगामी ब्राम्हण 31 दिसम्बर को इतने धूम-धाम से क्यों मानते है ?
इस सवाल के जवाब में निकला सत्य, और इस ऐतिहासिक सत्य को जरूर पढ़े !*
यह सनातनी और पुरोगामी ब्राम्हण 31 दिसम्बर को इतने धूम-धाम से क्यों मानते है ?
इस सवाल के जवाब में निकला सत्य, और इस ऐतिहासिक सत्य को जरूर पढ़े !*
*1 जनवरी,1919* को ब्राम्हणो की पेशवाई को *शुद्र-अतिशूद्र* ने अर्थात आज के *मूलनिवासी बहुजन* के लोगो ने ख़त्म की इस शौर्य दिन को ध्यान में लेते हुवे राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले जी ने *1 जनवरी 1848* को *पहली स्कुल* बनाई ।
बच्चे शिक्षित हुवे उन्हें जैसे *ब्राम्हण-ब्रिटिश* ये दोनों *विदेशी* एक साथ साथ में मिलकर *शुद्र-अतिशूद्रों* पर राजकाज करते है वैसे ही अब *शुद्र-अतिशूद्र* बच्चे भी शिक्षित हो गए है । इसलिए हमें भी *लोकसंख्या के अनुपात में शासन-प्रशासन में हिस्सेदारी दो* ऐसा *मेमोरेंडम* राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले जीने *तारीख 19 अक्टूबर 1882* को ब्रिटिशोको दिया ।
ब्रिटिशोने सोचा अगर *शुद्र-अतिशूद्र* शासन-प्रशासन में आये तो वो हमारी *शस्र की गुलामी* और ब्राम्हणो की *बौद्धिक गुलामी* से आजादी का आंदोलन चलाएंगे तो बहुसंख्य होने के कारन *हमें याने ब्रिटिश और ब्राम्हण इन विदेशियो को जिन्दा बहार नहीं निकलने देंगे भिमा कोरेगांव की लड़ाई की तरह यह हमें इस देश में ही गाड़ देंगे* इसलिए ब्रिटिशोने फुलेजिको काउंटर करने के लिए *रिटायर्ड फौजी अफसर ऍलन व्यूम* को सामने रखकर *ब्राम्हणो के साथ मिलकर 28 दिसंबर 1985 को कांग्रेस की स्थापन हुवी* जिसका पहला अधिवेशन *पूना* में होना था लेकिन पूना में *कॉलरा* की बीमारी फैलने के कारन *बम्बई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज के सभा में सम्पन हुवा और कांग्रेस की स्थापना हुवी* कांग्रेस का निर्माण
*राष्ट्रपिता ज्योतिराव जी फुले द्वारा चल रहे शुद्र-अतिशुद्रो के आजादी के आंदोलन को काउंटर करने के लिए किया गया ।* और आगामी भारत में 1919 में स्तापित हो रहे *द्विदलीय जनतंत्र* को ध्यान में रखते हुवे *अपनेसेही कुछ लोगो को सनातनी करार देते हुवे अलग किया और आरएसएस का निर्माण किया ।*
*राष्ट्रपिता ज्योतिराव जी फुले द्वारा चल रहे शुद्र-अतिशुद्रो के आजादी के आंदोलन को काउंटर करने के लिए किया गया ।* और आगामी भारत में 1919 में स्तापित हो रहे *द्विदलीय जनतंत्र* को ध्यान में रखते हुवे *अपनेसेही कुछ लोगो को सनातनी करार देते हुवे अलग किया और आरएसएस का निर्माण किया ।*
इन्ही ब्राम्हनोने उनकी पेशवाई जिस दिन याने *31 दिसम्बर 1917 को खत्म हुवी थी ।* इस दिन को ध्यान में रखकर और *पेशवाई का पुनर्निर्माण करने के लिए क्या किया ?* तो जो ब्राम्हण जिस पाकिस्तान के नाम से कोंग्रेसी और संघी ब्राम्हण गालियाँ देते हैं । उन काँग्रेस के *ब्रम्हानोने आज के पाकिस्तान के लाहोर में रावी नदी के तटपर हुवे काँग्रेस के राष्ट्रिय अधिवेशन में 31 दिसम्बर 1929 को उनके आजादी का ठराव पारित किया*
*31 दिसम्बर 1917 को पेशवाई खत्म हुवी उस दिन से लेकर 31 दिसम्बर 1929 को 108 साल पुरे होने पर उन के पेशवाई का ठराव पारित किया ।* *यह है 108 साल*
*राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले जी* द्वारा पेशवाई खत्म होने और भिमा कोरेगांव विजय को सामने रखकर *तारीख 1 जनवरी 1848* में शुरू किया गया *शुद्र-अतिशूद्र* अर्थात *मूलनिवासी बहुजन* समाज का आजादी का आंदोलन फुले जी के बाद, *लोकराजा छत्रपति शाहूजी महाराज* ने चलाया और उनके बाद यह आंदोलन *डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी ने 6 दिसम्बर 1956 तक चलाया ।*
तो यह *शुद्र-अतिशूद्र* अर्थात *मूलनिवासी बहुजन* समाज का आजादी का आंदोलन *1 जनवरी 1848* से लेकर *6 दिसम्बर 1956* तक के साल होते है *108 साल*
ब्रम्हानोको को ब्रिटिशोसे आजादी मिलगयी लेकिन *ब्रम्हानोकि मानसिक और राजनैतिक गुलामी से आजादी का आंदोलन आज भी चल रहा हैं ।*
*भवदीय*
आनंद शिंदे
धुलिया जिला अध्यक्ष
राष्ट्रिय मूलनिवासी बहुजन कर्मचारी संघ
*पेशवाई के अंत के आन्दोलन में जरूर शामिल हो !*
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