*प्रकृति पूजक को हिन्दू बनाने का सच?*
भारत के सामाजिक -सांस्कृतिक परिदृश्य का विवेचना करने पर स्प्ष्ट समझ में आती है कि यहाँ के लोग प्रकृति पूजक थे। अलग -अलग जगह एवं समाज में अनेकों परम्पराएं थी, जिसे little tradition कहा गया।
ये प्रकृति पूजक समाज की अपनी अलग आइडेन्टिटी थी। उस समय हिंदू कोई धर्म भी नहीं था।वास्तव में, मानव हमेशा अपनी पहचान देने के लिये अनेकों रिवाज बनाये हैं।
अगर सभी बड़े धर्म क्रिश्चन, मुस्लिम, बौद्ध इत्यादि पर नजर डालें तो इन धर्मों का एक पैगम्बर, एक किताब, शादी एवं सम्पत्ति उत्तराधिकार का कोड, अपने लीजेंड को भगवान बना उनकी पूजा, किसी खास दिन को पवित्र घोषित कर इसे फेस्टिवल बनाना, किसी जानवर को खाने पर प्रतिबन्ध या पूजा लायक बनाना, बाल-दाढ़ी रखने का कोड, ड्रेस डिफाइंड किये इत्यादि।
इनके मोरेल कोड को उस धर्म के सभी लोगों के लिये मैंडेटरी बना दी गई। यही कारण है कि मुस्लिम कुरान एवं मुहम्मद साहब का, वहीं क्रिश्चन बाईबल एवं ईशा मसीह का क्रिटिसिज्म बर्दाश्त नहीं कर पाता। पश्चिम देशों का कल्चर से वेस्टर्नाइजेशन में हम वेस्टर्न कल्चर को अडॉप्ट कर लॉजिकल एवं रेशनल बनें जिसे मोडर्नाइज़ेशन भी कहते हैं। वहीं संस्कृतिकरण द्वारा मानसिक स्लेव बनाये गये।
अब जिन प्रकृति पूजक भारतीय मूलनिवासियों को जबदरस्ती हिन्दू बना, इनपर संस्कृत थोप कर sanskritization द्वारा मनुस्मृति, रामायण, वेद, पुराण, गंगा एवं गाय को माता बना दिया गया। साथ हीं, इन थाईलैंडियों ने अपने को ब्राह्मण घोषित कर इन मूलनिवासियों को अपने में समाहित करने के लिये इन पर हिंदू का चस्पा लगा दी गयी अब ये सब साजिस का पर्दा उठ रहा है।
वास्तव में, हिंदू तो कोई धर्म है ही नहीं। ये तो यहाँ के मूलनिवासीयों के विभिन्न जीवन शैलियों को गायब कर ब्राह्मण संस्कृत एवं कर्मकांडीय आडम्बर संस्कृति थोप अपने ब्रह्मिनिज्म में समाहित कर हिन्दू नाम पर ब्राहमण अपना डोमेन बड़ा कर लिये ताकि बौद्ध,मुस्लिम, क्रिशचन, यहूदि एवं सिख से लड़ाई मजबूती से लड़ा जाय।
अब जब ये मुलभारतीय हकीकत समझ रहे हैं, वे पढ़कर अपने पूर्वजों की दासता समझ रहे हैं, अपने रोजगार पर इनके द्वारा कुठारागत देख ये मूलनिवासी वर्ग अपने को हिन्दू मानने में असहज महशुश कर रहे हैं।
ये 3% ब्राहमण के पूर्वज, जो यहाँ के लोगों को कत्लयाम, रेप एवं यातनाएं दी, जो अपने को सनातन एवं वैदिक कहते हैं। इनका मूल आधार थी- *सुरा - सुंदरी , सम्भोग, मांसाहार और युद्ध।*
जबकि यह भारतीय संस्कृति कभी भी नहीं थी। यहाँ के लोग प्राकृत एवं पाली भाषा में रेशनल, लॉजिकल डिबेट कर सत्य को खोजते थे। जिन पर संस्कृत भाषा थोपा गया।एम एन श्रीनिवास के शब्दों में संस्कृतिकरण द्वारा कर्मकांड एवं आडम्बर संस्कृति इम्पोज कर दी गयी।
यह विदेशी आर्यों की ब्राह्मणवादी अश्लील संस्कृति है, जिस संस्कृति को कुछ ब्राह्मणवादी अश्लील लोग शुभ बताकर देश में अश्लीलता फैला रहे हैं। जो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद - 19(2) के अधीन गैरकानूनी है।
ये जो संस्कृत की अश्लील बातें जिसे स्तुति, श्लोक या मंत्र बता हमें शुभ दिन बताकर पूरे धुन के साथ गाते हैं, जिसे प्राकृत एवं हिंदी भाषी नहीं समझते। जैसे कोई स्पेनिश भाषा में गाली को मन्त्र कह पेश करे तो हम क्या समझेंगे?
इनके सबसे पवित्र गायत्री मंत्र जो ब्रह्मा द्वारा गायत्री को सहवास के लिये तैयार करने वाली मंत्र है इसे समझें-
ॐ भू: भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् |
सरलार्थ:- हे देवी (गायत्री) , भू पर आसीन होते (लेटते) हुए , उस अग्निमय और कान्तियुक्त सवित देव के समान तेज भृगु (ब्राहमण) की भुजाओं में एकाकार होकर मन ही मन में उन्ही के प्रति भावमय होकर उनको धारण कर लो और पूर्ण क्षमता से अपनी योनि को संभोग (मैथुन) हेतु उन्हें समर्पित कर दो |
उसी तरह दूसरा मन्त्र जिसे ये रक्षा सूत्र कहते हैं।
- येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
यानि, मूलनिवासी महापराक्रमी महाबली राजा बलि को हमारे पूर्वज इंद्र जिस रस्सी से बांधे थे, उसी सूत्र से तुम्हें भी बांधता हूं। अब तुम चलयमान न हो। आज से तुम्हारा रक्षा करने का दायित्व मेरे ऊपर है। आज से तुम मेरा दास (slave) हो।
ये ब्राहमण आपको संस्कृतिकरण द्वारा स्लेव बनाते हैं। कोई विज्ञान, वैज्ञानिक सोंच के लिये कम्प्यूटर जैसे तकनीकी एवं तर्क नहीं देते।
जबकि हम बिना इनके मानसिकता एवं भाषा समझें खुशी से बंधवाते हैं। उसी तरह इनके सारे संस्कृत प्रदत मन्त्र घृणित एवं हमें मानसिक गुलाम बनाने की साजिस है।
इनके 'वीर गाथा एवं घटिया सोंच को आतंकवादी भाषा संस्कृत से मनुस्मृति, वेद एवं रामायण द्वारा मुलभारतीये लोगों को hindu model of universe में पेश कर इनके लिटिल ट्रेडिशन को ग्रेट ब्राह्मण या सनातन ट्रेडिशन बना कर पेश कर रहे हैं।
वास्तव में, मुगलों एवं बाद में क्रिश्चन अंग्रेजों के सुधारवादी शक्तिशाली सम्राज्य के आगे इन पैरासाईटिक ब्राहमण वर्ग की कुछ नहीं चल पा रही थी। इसीलिए मूलशंकर तिवारी (दयानंद सरस्वती) एवं तिलक इत्यादि शातिर ब्राह्मणों ने हिन्दू कन्सेप्ट पैदा कर पूरे मूलनिवासीयों को ब्राह्मण धर्म के अम्ब्रेला तहत हिन्दू धर्म बना इन 85% मूलनिवासी को अलग हिन्दू धर्म में समाहित करने का सफल प्रयास किया।
आज ब्राह्मणों के जाल में फंस कर यहां के मूलनिवासी अपनी ओरिजिनलिटी को लुप्त कर भारतीय डेमोक्रैसी के सभी पदों एवं मंदिरों पर इन थाईलैंडी ब्राह्मणों को बैठा कर हम गर्व कर, शाष्टांग दण्डवत करते हैं कि हमारे अपने हिंदू भाई हीं तो है।
यहाँ के मूलनिवासियों को हिन्दू डोमेन में लाकर पढ़ने के अधिकार से बंचित किया, फिर गलत इतिहास लेखन कर आज भी शोषण कर रहा है। यहाँ के मूलनिवासियों को साथ देने वाले अंग्रेजों एवं मुस्लिमों को पहले दुश्मन घोषित किया फिर आपके हीं द्वारा लड़वाकर इन्हें भगाने का प्रयास किया गया।
अब यहाँ के रीति रिवाज देखते हैं तो दक्षिण भारत के मूलनिवासी गाय मांस खाते हैं, शादी भी चचेरी, ममेरी, फुफेरी बहन से प्रिफेरेबल है। इनका अनेकों प्रयोजन, रिलिजियस कोड, खान पियन, किताबें, सांस्कृतिक संस्कार बिल्कुल उतर भारत से भिन्न है।
उतर भारत में हीं अलग जातियों का फूड हैबिट एवं रिवाज बिल्कुल अलग है जिसे बाद में ब्राह्मणिकरन या sanskritization द्वारा हिन्दू बनाया गया। जैसे की यहाँ के चमार मरे हुए गाय के मिट भी खाते थे। डोम सुअर तो मांझी वर्ग चूहा एवं कई गिलहरी, कछुआ, सांप एवं चींटी तक खाते हैं जो आम तौर पर ब्राह्मणों में नहीं देखी जाती है। फिर इन्हें हिन्दू धर्म में समाहित कर इनकी आइडेंटिटी को गायब कर हिन्दू का चादर ओढ़ा दिया गया।
सिर्फ हिन्दू इसीलिए बनाया गया कि ये 3% ब्राहमण अब 85% हिंदुओं का पुजारी एवं नेतृत्व कर्ता बन गये।
पर, मूलनिवासी जबतक अपनी पहचान नहीं बनायेंगे तबतक हिन्दू बनकर शोषित होते रहेंगे। यही कारण है कि अपनी पहचान पर जब रिजर्वेशन पाते हैं तो हिन्दू पहचान के बाबरी मस्जिद के कमण्डल अभियान में शामिल हो रिजर्वेशन के साथ सरकार भी गवाँ देते हैं। अपनी मूलनिवासी पहचान पर आप सत्ता पाएंगे तो हिन्दू पहचान पर ब्राह्मणों को सत्ता सुपुर्द करेंगे।
अब खुद निर्णय करें हिन्दू बनना है या मूलनिवासी पहचान देना है।
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