#6_दिसम्बर_एक_दर्द_भरी_कहानी✍🏻✍🏻✍🏻
बाबासाहब के अनुयाई हो तो इस पोस्ट को जरुर पढ़े ।
?आँसु जरूर बह जायेगा!!!
6 दिसम्बर 1956 बाबासाहब भीमराव अंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस ।।
जय भीम जयभीम जयभीम
राजधानी दिल्ली रात के 12 बजे थे!
रात का सन्नाटा और अचानक दिल्ली, मुम्बई, नागपुर मे चारो और फोन की घंटीया बज उठी!
राजभवन मौन था, संसद मौन थी, राष्ट्रपती भवन मौन था, हर कोई कस्म कस्म मे था!
शायद कोई बडा हादसा हुआ था, या किसी बड़े हादसे या आपदा से कम नही था!!! कोई अचानक हमें छोडकर चला गया था! जिसके जाने से करोडो लोग दुःख भरे आँसुओं से विलाप कर रहे थे, देखते ही देखते मुम्बई की सारे सड़के भीड से भर गयी पैर रखने की भी जगह नही बची थी मुम्बई की सड़को पर क्योंकि पार्थिव शरीर मुम्बई लाया जाना था! और अंतिम संस्कार भी मुम्बई मे ही होना था!!!
नागपुर, कानपुर, दिल्ली, चेन्नाई, मद्रास, बेंगलौर, पुणे, नाशीक और पुरे देश से मुम्बई आने वाली रैलगाडीयो और बसो मे बैठने को जगह नही थी! सब जल्द से जल्द मुम्बई पहोंचना चाहते थे और देखते ही देखते अरब सागर वाली मुम्बई जनसागर से भर गयी!!!
कौन था ये शख्स??? जिसके अंतीम दर्शन की लालचा मे जन शैलाब रोते बिलखते मुम्बईकी ओर बढ़ रहा था! देश मे ये पहला प्रसंग था जब बड़े बुजुर्ग छोटे छोटे बच्चो जैसे छाती पीट पीट कर रो रहे थे! महिलाएँ आक्रोश कर रही थी और कह रही थी मेरे पिता चले गये, मेरा बाप चला गया अब कौन है हमारा यहां???
चंदन की चीता पर जब उसे रखा गया तो लाखो दील रुदन से जल रहे थे! अरब सागर अपनी लहरों के साथ किनारों पर थपकता और लौट जाता फिर थपकता फिर लौट जाता शायद अंतिम दर्शन के लिये वह भी जोर लगा रहा था!!!
चीता जली और करोडो लोगो की आंखे बरसने लगी! किसके लिये बरस रही थी ये आंखे??? कौनथा ईन सबका पिता??? किसकी जलती चीता को देखकर जल रहे थे करोडो दिलो के अग्निकुन्ड??? कौनथा यहां जो छोड गया था इनके दिलोमे आंधिया, कौनथा वह जिसके नाम मात्र लेने से गरज उठती थी बिजलीया, मन से मस्तिष्क तक दौड जाता था ऊर्जा का प्रवाह, कौनथा वह शख्स जिसने छीन लिये थे खाली कासीन के हाथो से और थमा दी थी कलम लिखने के लिये ऐक नया इतिहास! आंखो मे बसादीये थे नये सपने, होठो पे सजा दिये थे नये तराने, धन्यौ से प्रवाहीत किया था स्वाभिमान!!! अभिमान को दास्यता की ज़ंजीरें तोड़ने के लिये दिया प्रज्ञा का शस्त्र!!!
चीता जल रही थी अरब सागर के किनारे और देश के हर गांव के किनारे मे जल रहा था ऐक श्मशान, हर ऐक शख्स मे और दील मे भी! जो नही पहोंच सका था अरब सागर के किनारे ऐक टक देख रहा था वह, उसकी प्रतिमा या गांव के उस ज़न्डे को जिसमे नीला चक्र लहरा रहा था, या बैठाथा भुख, प्यास भूलकर अपने समूह के साथ उस जगह जिसे वह बौद्ध विहार कहता था!!!
क्यों गांव, शहर मे सारे समूह भूखे प्यासे बैठे थे??? उसकी चीता की आग ठंडी होने का इंतजार करते हुये, कौनसी आग थी जो वह लगाकर चला गया था??? क्या विद्रोह की आग थी??? या थी वह संघर्ष की आग भूखे, नंगे बदनो को कपडो से ढकने की थी आग??? आसमानता की धजीया उड़ाकर समानता प्रस्थापित करने की आग???
चवदार तालाब पर जलाई हुई आग अब बुजने का नाम नही ले रही थी!!! धू - धू जलती मनुस्मृति धुंवे के साथ खतम हुई थी!!!
क्या यह वह आग थी??? जो जलाकर चला गया था!!!
वह सारे ज्ञानपीठ, स्कूल, कोलेज मरभूमी जैसे लग रहे थे!!!
युवा, युवतियों की कलकलाहट आज मौन थी जिन्होंने हाथ मे कलम थमाई, शिक्षा का महत्व समजाया, जीने का मकसद दिया, राष्ट्रप्रेम की ओत प्रोत भावना जगाई वह युगंधर, प्रज्ञासूर्य काल के कपाल से ढल गया था!!!
जिस प्रज्ञातेज ने चहरे पर रोशनीया बिखेरी थी क्या वह अंधेरे मे गुम हो रहा था???
बडी अजीब कस्म कस थी भारत का महान पत्रकार, अर्थशास्त्री, दुरद्रष्टा क्या द्रष्टि से ओजल हो जायेगा???
सारे मिलों पर ऐसा लग रहा था जैसे हड़ताल चल रही हो सुबह शाम आवाज़ देकर जगाने वाली धुंवा भरी चीमनीया भी आज चुप चाप थी, खेतों मे हल नही चला पाया किसान क्यों???
सारे ऑफीस, सारे कोर्ट, सारी कचहरीया सुनी हो गयी थी जैसे सुना हो जाता है बेटी के बिदा होने के बाद बाप का आँगन!!!
सारे खेतीहर, मजदूर, किसान असमंजस मे थे ये क्या हुआ??? उनके सिर का सत्र छीन गया!!!
वह जो चंदन की चीता पर जल रहा है उसने ही तो जलाई थी जबरान ज्योत, मजदूर आंदोलन का वही तो था आधुनिक भारत मे मसीहा, सारी मिलों पर होती थी जो हड़ताले, आंदोलन अपने अधिकारो के लिये उसकी प्रेरणा भी तो वही था!!!
जिसने मजदूरो को अपना स्वतंत्र पक्ष दिया और संविधान मे लिख दी वह सभी बाते जिन्होंने किसानो, खेतीहारो, मज़दूरो के जीवन मे खुशियां बिखेरी थी!!!
इधर नागपुर की दीक्षाभूमी पर मातम बस रहा था, लोगो की चीखे सुनाई दे रही थी "बाबा चले गये", "हमारे बाबा चले गये " आधुनिक भारत का वह सुपुत्र जिसने भारत मे लोकतंत्र का बिजारोपण किया था, जिसने भारत के संविधान को रचकर भारत को लोकतांत्रिक गणराज्य बनाया था! हर नागरीक को समानता, स्वतंत्रता और न्याय का अधिकार दिया था, वोट देने का अधिकार देकर देश का मालिक बनाया था, क्या सचमुच वह शख्स नही रहा???
कोई भी विश्वास करने को तैयार नही था! लोग कह रहे थे "अभी तो यहां बाबा की सफेद गाडी रुकी थी", "बाबा गाडी से उतरे थे सफेद पोशाक मे", "देखो अभी तो बाबा ने पंचशील दिये थे" "22 प्रतिज्ञाओ की गूंज अभी आसमान मे ही तो गूंज रही थी" वो शांत होने से पहले बाबा शांत नही हो सकते!!!
भारत के इतिहास ने नयी करवट ली थी जन सैलाब मुम्बई की सड़को पर बह रहा था!
भारतीय संस्क्रुति मे तुच्छ कहलाने वाली नारी जिसे हिन्दु कोड बिल का सहारा बाबा ने देना चाहा और फिर संविधान मे उसके हक आरक्षित किये ऐसी माँ बहने लाखो की तादाद मे श्मशान भूमी पर थी!!! यह भारतीय सड़ी गली धर्म परम्पराओ पर ऐक जोरदार तमाचा था क्योंकि जिन महिलाओ को श्मशान जाने का अधिकार भी नही था ऐसी "3 लाख" महिलाएँ बाबा के अंतिम दर्शन को पहोंची थी जो अपने आप मे ऐक विक्रम था!!!
भारत का यह युगंधर, संविधान निर्माता, प्रज्ञातेज, प्रज्ञासूर्य, महासूर्य, कल्प पुरुष नव भारत को नव चेतना देकर चला गया, ऐक ऊर्जा स्त्रोत देकर समानता, स्वतंत्रता, न्याय, बंधुता का पाठ पढाकर!!!
उस प्रज्ञासूर्य की प्रज्ञा किरणो से रोशन होगा हमारा देश, हमारा समाज और पुरे विश्वास के साथ हम आगे बढ़ेंगे हाथो मे हाथ लिये मानवता के रास्ते पर जहां कभी सूर्यास्त नही होंगा, जहां कभी सूर्यास्त नही होंगा, जहां कभी सूर्यास्त नही होगा!!!
जय भीम जय भीम जय भीम और केवल जय भीम
शत् शत् नमन धन्यवाद
Jayant Jigyasu भाई की क़लम से..
30 जनवरी यदि राष्ट्रीय शोक का दिवस है, तो 6 दिसम्बर राष्ट्रीय शर्म का दिवस होना चाहिए": लालू प्रसाद यादव -1992
जिस बाबरी मस्जिद को ढहाने जा रहे आडवाणी को लालू प्रसाद ने अपने राजनीतिक मेंटर कर्पूरी ठाकुर के गृह ज़िले समस्तीपुर में 29 अक्टूबर 1990 को गिरफ़्तार किया था, उस मस्जिद को भाजपा के तीन धरोहर, अटल-आडवाणी-मुरली मनोहर के साथ कल्याण सिंह, अशोक सिंघल, उमा भारती, आदि की अगलगुआ टोली ने 6 दिसंबर 1992 को गिरा दिया।
आडवाणी की गिरफ़्तारी की कहानी भी दिलचस्प है। इसके पहले लालू प्रसाद आडवाणी के दिल्ली आवास पर चलकर देशहित में रथयात्रा को स्थगित करने का आग्रह किया। पर वो नहीं माने। जब उनका रथ बिहार पहुंचा और झारखंड के इलाक़े में घुसा, तो लालू प्रसाद ने धनबाद के उपायुक्त अमानुल्लाह और एसपी रंजीत वर्मा को आडवाणी की गिरफ़्तारी के लिए कहा। पर, दोनों अधिकारियों ने कथित तौर पर सांप्रदायिक हिंसा के अंदेशे से हाथ खड़े कर दिए।
फिर जब आडवाणी वहां से 28 अक्टूबर को देर रात पटना आए और फिर रथ लेके समस्तीपुर पहुंचे, तो लालू जी ने योजनाबद्ध तरीक़े से मुख्य सचिव कमला प्रसाद को भरोसे में लेकर सहकारिता सचिव आरके सिन्हा और डीआईजी रामेश्वर उरांव को टेलीफ़ोन कर 29 अक्टूबर की सुबह स्टेट गवर्नमेंट हेलीकॉप्टर से समस्तीपुर भेजकर सर्किट हाउस से आडवाणी को गिरफ़्तार कराया। दरभंगा के आईजी आर.आर. प्रसाद को मुख्यमंत्री ने रात में ही सारा प्लान समझा दिया, वो भी सीनियर अफ़सरान के साथ समस्तीपुर के डीएम-एसपी को तैयार रहने का संदेश देकर रात में ही चल पड़े थे। आडवाणी को अरेस्ट वारंट दिखाया गया, उन्होंने वहीं वीपी सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार से समर्थन वापसी का पत्र राष्ट्रपति के नाम लिखा। प्रमोद महाजन को साथ ले जाने के आग्रह को मानते हुए लालू जी ने हेलीकॉप्टर में बिठा के आडवाणी जी को बिहार-बंगाल के बॉर्डर पर मसानजोड़ के रेस्ट हाउस में पहुंचा दिया।
30 अक्टूबर 1990 को लालूजी ने सांप्रदायिक एकता के लिए 12 घंटे का उपवास रखा, और बड़ी सूझबूझ से बहुत कम बलप्रयोग के साथ बिना किसी फ़साद के सूबे के हालात को क़ाबू में रखा। आडवाणी की गिरफ़्तारी पर बिहार में एक चिड़िया को भी चूं नहीं करने दिया।
पटना की रैली में लालू जी ने शुरू में ही कड़े शब्दों में संदेश दिया था, "चाहे सरकार रहे कि राज चला जाए, हम अपने राज्य में दंगा-फसाद को फैलने नहीं देंगे। जहां बावेला खड़ा करने की कोशिश हुई, तो सख्ती से निपटा जाएगा। 24 घंटे नज़र रखे हुए हूँ। जितनी एक प्रधानमंत्री की जान की क़ीमत है, उतनी ही एक आम इंसान की जान की क़ीमत है। जब इंसान ही नहीं रहेगा, तो मंदिर में घंटी कौन बजाएगा, जब इंसान ही नहीं रहेगा, तो मस्जिद में इबादत देने कौन जाएगा ?"
पर, जब बाबरी मस्जिद को ढाह कर नफ़रतगर्दों ने गंगा-जमुनी तहज़ीब और क़ौमी एकता को तहसनहस करने की कोशिश की, तो पूरे मुल्क के अमनपसंद लोगों ने उसकी निंदा की। 6 दिसम्बर 92 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने आरएसएस की मजम्मत करते हुए कहा था, "बाबरी मस्जिद को गिराकर साम्प्रदायिक शक्तियों ने पूरे विश्व में भारत को कलंकित किया है, 30 जनवरी यदि राष्ट्रीय शोक का दिवस है, तो 6 दिसम्बर राष्ट्रीय शर्म का दिवस होना चाहिए"।
लालू प्रसाद ने 7 दिसम्बर 1992 को बाक़ायदा आकाशवाणी और दूरदर्शन के ज़रिये सूबे की जनता को सामाजिक सौहार्द बनाए रखने की अपील की जिसके कुछ अहम अंश यूं हैं :
बिहारवासी भाइयो एवं बहनो!
आप सभी जानते हैं कि वर्षों की गुलामी को काटने के लिए हमारे नेताओं ने, हमारे पुरखों ने, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, बाबा साहब अम्बेडकर, डॉ. लोहिया, जयप्रकाश नारायण, युसफ़ मेहर अली और देश की जनता चाहे कश्मीर की हो या कन्याकुमारी की, सभी जात, सभी धर्मों के लोगों ने भारत को आज़ाद कराने के लिए बड़ी भारी क़ुर्बानी देने का काम किया था, और आपसी एकता और हमारे पुरखों की क़ुर्बानी की वजह से देश आज़ाद हुआ।
अपने संविधान में जो पिछड़े भाई हैं, दबे-कुचले लोग हैं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लोग हैं, उनके लिए व्यवस्था की थी हमारे पुरखों ने कि हम इनको सेवाओं में विशेष अवसर देंगे, आरक्षण की व्यवस्था दी थी। यह देश सबों का देश है, यह धर्मनिरपेक्ष देश है, अलग भाषा, अलग बोली, हर मजहब का समान आदर किया जाएगा। लेकिन, 45 साल की आज़ादी और हमारी क़ुर्बानी को इस देश में भाजपा, आरएसएस, वीएचपी ने राम रहीम का बखेड़ा उठाकर, धर्म को राजनीति से जोड़कर अयोध्या में जो करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक था बाबरी मस्जिद, उसे ढाहने का काम किया। इससे न केवल करोड़ों अक़्लियत के लोगों के, धर्मनिरपेक्ष जनता के मन में दुःख और शोक, भय की लहर फैल गई, बल्कि हम भारत के लोग दुनिया में कोई उत्तर देने की स्थिति में नहीं हैं।
बाबरी मस्जिद पर किया गया प्रहार देश के लोकतंत्र एवं धर्मनिरपेक्षता पर किया गया प्रहार है। हम सभी मर्माहत हैं और कभी भी इसे चुपचाप देखते नहीं रह सकते। भारत की जनता में वह ताक़त है जिनसे बेमिसाल ताक़त वाली ब्रितानी हुकूमत को उखाड़ फेंका। इमर्जेंसी लागू करने वाली ताक़त को धूल चटा दी, और शिलान्यास करने की छूट देनी वाली सरकार के पाए ढाह दिए। हम इस मामले को देश की अमनपसंद जनता की अदालत में ले जा रहे हैं और जिन लोगों ने हमारी उम्मीदों पर पानी फेरा है, उनके मंसूबों को भी हम सत्य और अहिंसा के बल पर चकनाचूर कर देंगे। मैं आपलोगों को पूरा यक़ीन दिलाता हूं कि फ़िरक़ापरस्त लोगों को किसी क़ीमत पर क़ामयाब नहीं होने दिया जाएगा।
आपसे हमारी अपील है हर गाँव, शहर, गली और मुहल्ले, खेत और खलिहान में शांति और सद्भावना, दोस्ती और भाईचारा का माहौल बनाए रखें। बिहार से ही सद्भावना का संदेश पूरे देश में फैला। पूरे देश को एकजुट होकर माला में गूंथने की जिम्मेवारी आप सभी के कंधों पर है।हम आपसे आपका सहयोग चाहते हैं। सरकार ने हर जगह निगरानी रखी है, शासन को हिदायत दी गई है कि जहाँ भी कोई बलवाई हो, चाहे वो किसी धर्म, किसी मजहब का मानने वाला हो, उससे सख़्ती बरती जाय। दंगा-फ़साद को हम बर्दाश्त नही करेंगे।
इन्हीं शब्दों के साथ हम सभी भाइयों-बहनों को इकट्ठे नमस्कार, जय हिंद, आदाब-सलाम करके अपनी बात को समाप्त करते हैं।
ज़ाहिर है कि आज तक बाबरी का मसला सुलझा नहीं और जो राष्ट्रीय एकता व सांप्रदायिक सौहार्द को क्षति पहुंची, परस्पर अविश्वास की खाई बढ़ी, उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। वसीम बरेलवी ने ठीक ही कहा :
तुम गिराने में लगे थे तुमने सोचा भी नहीं
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊंगा।
जयंत जिज्ञासु, वाया सबरंग इंडिया।।
जय भीम
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