Sunday, 25 February 2018

क्या है छठ की पूजा* ?

(साभार मान्यवर  बोद्ध का ) संकलन :- 


छठ पूजा की सच्चाई जाने बिना अज्ञानी, अंध विश्वासी बिहारी लोग इसे धूम धूमधाम से मनाते हैं तथा धीरे - धीरे वोट के लिये राजनीतिज्ञों द्वारा पूरे देश में ये फैलाया जा रहा है. ब्राह्मण किस तरह से भोले भाले अंजान लोगों को बेवकूफ बना सकता है, ये एक वर्तमान उदाहरण है. 

असल में तथाकथित छठ माता, महाभारत के एक चरित्र कुंती की प्रतीक है जो कुंवारी होते हुये भी सूरज नाम के व्यक्ति से बच्चा पैदा करने की गुजारिश करती है  तथा कर्ण नाम का पुत्र पैदा करती है. इसी घटना को इस दिन मंचित किया जाता है. जो परम्परा का रुप ले लिया है.

 शुरू में केवल वो औरतें जिनको बच्चा नहीं होता था, वही छठ मनाती थी तथा कुंवारी लड़कियां नहीं मना सकती थीं क्योंकि इसमे औरत को बिना पेटिकोट ब्लाउज के ऐसी पतली साड़ी पहननी पड़ती है जो पानी में भीगने पर शरीर से चिपक जाय तथा पूरा शरीर सूरज को दिखायी दे जिससे कि वो आसानी से बच्चा पैदा करने का उपक्रम कर सके. सूरज को औरतों द्वारा अर्घ देना उसको अपने पास बुलाने की प्रक्रिया है जिससे उस औरत को बच्चा हो सके. 

ये अंधविश्वास की पराकाष्ठा है कि आज इसको त्योहार का रुप दे दिया गया है तथा आज कल अज्ञानी एवं अंध विश्वासी आदमी तथा कुंवारी लड़कियां भी इस भीड़ में शामिल हो गये हैं. 

ज्ञात हो कि ये बीमारी विहार से सटे यू पी के जिलों में भी बड़ी तेजी से फैल रही थीं लेकिन बौद्ध लोगों के जागरूकता अभियान के कारण एस सी /एस टी/ ओ बी सी में काफी हद तक कम होने लगा है. 

हम उन अम्बेडकर वादियों को धन्य वाद करते हैं जो इस कोढ़ की बीमारी को ख़तम करने में पिछले तीन दशकों से लगातार जागरूकता अभियान चला रखा हैं. आशा है कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद देश के दलित पिछड़े, इस बीमारी का शिकार होने से बचेंगे.'

आज भारत मे छठ् पूजा बड़े ही धूम-धाम से मनाया जायेगा और बहोत सारा फल व पैसा पंडित जी को अर्पण किया जायेगा
पर कभी सोचा है छठपूजा कूयों मनाते हैं....?
 *आज हम बताते है
क्या है छठ की पूजा* ? 
छठ पूजा की सच्चाई जाने बिना अज्ञानी, अंध विश्वासी लोग इसे धूम धूमधाम से मनाते हैं. 
तथा धीरे-धीरे वोट के लिये राजनीतिज्ञों द्वारा पूरे देश में ये फैलाया जा रहा है. 
ब्राह्मण किस तरह से भोले भाले अंजान लोगों को बेवकूफ बना सकता है, ये एक वर्तमान उदाहरण है. 
असल में तथाकथित छठ माता, महाभारत के एक चरित्र कुंती की प्रतीक है जो कुंवारी होते हुये भी सूरज नाम के व्यक्ति से शादी के पहले के सम्बन्ध से प्रेग्नेंट(पेट से) हो जाती है। 
सच ये है की, खुद प्रेग्नेंट है इस बात की कुंती को समझने में देरी हो जाने से, कर्ण नाम का पुत्र पैदा करती है। 
महाभारत की इस घटना ( सूर्य से वरदान वाली जूठी कहानी) को इस दिन मंचित किया जाता है. जो परम्परा का रुप ले लिया है.
शुरू में केवल वो औरतें जिनको बच्चा नहीं होता था, वही छठ मनाती थी तथा कुंवारी लड़कियां नहीं मना सकती थीं क्योंकि इसमे औरत को बिना पेटिकोट ब्लाउज के ऐसी पतली साड़ी पहननी पड़ती है जो पानी में भीगने पर शरीर से चिपक जाय तथा पूरा शरीर सूरज को दिखायी दे जिससे कि वो आसानी से बच्चा पैदा करने का उपक्रम कर सके. 
सूरज को औरतों द्वारा अर्घ देना उसको अपने पास बुलाने की प्रक्रिया है जिससे उस औरत को बच्चा हो सके. 
ये अंधविश्वास और अनीति की पराकाष्ठा है कि आज इसको त्योहार का रुप दे दिया गया है तथा आज कल अज्ञानी एवं अंध विश्वासी आदमी तथा कुंवारी लड़कियां भी इस भीड़ में शामिल हो गये हैं. 

ज्ञात हो कि ये बीमारी बिहार से लेकर यू पी के लगभग सभी जिलों में भी बड़ी तेजी से फैल गई है और इस अंधविश्वास मे हमारे देश के मूल निवासी यानि S.C.,S.T.,O.B.C. ही बर्बाद हो रहे हैं !

महाभारत की पात्र कुंती को सामाजिक प्रतिष्ठा दिलाने के लिए छठी मैया का पूजा शुरू कराया मिथलांचल के ब्राह्मणों ने,क्योंकि कुंती को कुँवारेपन में ही एक ब्राह्मणपुत्र सूर्यनारायण से मोहब्बत हो गया था और उसने कुंती को बिन ब्याही गर्भवती कर दिया।इस स्थिति से रूबरू होने पर राजा ने उस ब्राह्मण पुत्र को देश निकाला या मौत की सजा देकर यह अफवाह फैलाया गया कि राजकुमारी कुंती के रूप लावण्यता से मुग्ध होकर अर्घ्य देते समय सूर्यनारायण(सूर्य)ने उसे गर्भवती कर दिया है जिसके बाद कुंती से उतपन्न पुत्र कर्ण को सन्दूक में बंद कर गंगा में बहा दिया गया।अगर भगवान सूर्य से ही कर्ण पैदा हुआ तो फिर उसे गंगा में बहाने की क्या जरूरत थी।आज भी महिलाएं लोक गीत गाती है...इहे बलका जे तोहरो दिहलका अर्का देले जुठीयाय.....।कथित सूर्य से उतपन्न बालक कर्ण व पांच पांडवों को लेकर कुंती छठी मैया बन गयी और नाम कुंती का इल्जाम सूर्य पर और पूजन ब्राह्मण पुत्र सूर्यनारायण की।यही छठ पूजा ।

*​छ्ठ पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि जानिए*

​मगध देश बहुत सुखी और समृद्ध देश था। वहाँ वर्ष में दो फसल के सृजन का अच्छा तरीका है। वहाँ साल में छठी बरसात' के बाद नवम्बर-दिसम्बर जनवरी में थोड़ा अच्छा होने पर रबी फसल अच्छी तरह से होती है। छठ माई की पुजा का आधार अच्छी फसल मान कर करते हैं। जिस वर्ष फसल अच्छी होती, उस साल छठ माइ की पुजा अच्छी तरह मनाई जाती। फसल के लिए कार्तिक महीना छठ पुजा और रबी फसल अच्छी होगी तब चैत महीने छठ पूजा मनाते हैं।​
​बंगाल (कलकत्ता) में उत्तर भारत के लोग गंगा के किनारे छठ माई  कीे पुजा करते हैं। वैदिक मतों  या आर्यो के मत  में सूरज हुए पुरुष देवता। और चंद्रमा हुआ स्त्री देवता। लेकिन द्रबिड़ो अनार्यो के अनुसार सूरज है महिला देवता और चंद्रमा पुरुष देवता। उनका विश्वास था कि सूरज की कृपा से समुद्र के पानी वाष्प के रूप में ऊपर उठता है ऊपर उठकर बादल बनकर वर्षा होती है, इसलिए उन क्षेत्रों में फसलों अच्छी होती रही है। फिर सूर्य की कृपा से सर्दियों के समय में शीत की बरसा होती तो चैत बरसात अर्थात् रबी फसल अच्छी होती है।
यह फसल  सर्दियों के बिल्कुल अंत में  कटाइ होती है। मगध में साल में दो बार छठ पूजा होती है --- एक बार कार्तिक छठ और एक बार चैती छठ।
यह कहा गया कि छठ माई के पूजा में सूरज को पानी में खड़े  होकर पूजन सामग्री (सूपली में) अर्ध्य स्वरूप अर्पण करते हैं। विभिन्न प्रकार के सामान जैसे - गेहू से बना ठेकुआ, चावल के लड्डु वताबी नेबु (गागल), नारियल, गन्ना, पानी फल (सिंधाड़ा) सिजनल फल- अन्नादि। ये सब अनार्य के समय का प्रचलन है। इससे समझा जाता है कि वेद के साथ कोई संबंध नहीं है। मगध माने वेद बिरोधी देश। पटना गया हैं मगध देश। यहाँ छठ पूजा जल में खड़े होकर उगते और अस्त होते सूर्य की ओर देखते हुए छठ पुजा की  जाती है। छठ पुजा न होने पर प्रकृति कुपित हो बाधित कर सकती है, यह धारणा है। छठ माई असंतुष्ट हो तो कई खतरे बन जाएंगे, प्रकृति रुष्ट हो जाएगी यह माई भक्ति भय जनित भक्ति है। पूजा से ममत्व उमड़ेगा माई के दिल में और भला होगा सबका। सर्वप्रथम छठ पूजा मगध क्षेत्र में आरम्भ हुआ और क्रमशःअन्य क्षेत्रो में फैलता गया।
इस प्रकार छठ पूजा प्रकृति पूजा अर्थात जड़ पूजा है जो भय मानसिकता से प्रेरित होकर प्राचीन काल में लोग अपने से शक्तिशाली जड़सत्ता को पूजते थे। प्रकृति पूजा मन को स्थूल की ओर ले जाता है, जबकि परमचैतन्य अर्थात परमात्मा की साधना मन को सूक्ष्म से सुक्षतम की ओर ले जाता है। प्रकृति पूजा से व्यष्टि या समष्टि का आध्यात्मिक उन्नति नही हो सकता है।आध्यत्मिक उन्नति के लिए एक परम् सत्ता का अपने भीतर अनुभूति करना होगा जो भक्ति के द्वारा ही सम्भव है।

स्रोत.......

 श्री श्री आनन्दमूर्ति रचित पुस्तक से उद्धरित]

छठ पर्व का इतिहास

छठ पर्व का इतिहास कब का है इस बात का तो दावा नहीं किया जा सकता लेकिन हैं यह कुषाणकाल से पहले का मनाया जाने वाला पर्व है।कुषाण काल के बाद ही छठी मईया के साथ इस पर्व में सूर्य पूजा जुड़ गई।

छठी मईया कौन थी इस बात को पकड़ना आसान नहीं है


इसमें सूर्य और छठी मईया दोनों की पूजा की जाती है। चूंकी छठी मईया के नाम पर इस पर्व का नाम है इसलिए यह कहा जा सकता है कि सूर्य पूजा छठ पर्व में बाद में आई। कुषाण काल के राजा कनिष्क के समय में ‘मग’ लोग सूर्य की मूर्ति लाए, जो मूर्ति ‘मग’ लेकर आए वो घुटने तक जूता पहने हुए थी (कुषाण काल में राजा भी घुटनों तक जूता पहनते थे)। बिहार के औरंगाबाद जिलें में जो सूर्य मंदिर है उसमें भी सूर्य की मूर्ति घुटनों तक जूता पहने हुए है। यह परम्परा भारत में कुषाण काल में मग लेकर आए (मग लोग ईरान से आए और ईरान में सूर्य पूजा की मान्यता काफी है) और उन्हीं लोगों ने सूर्य की एक विशेष प्रकार की पूजा चलाई।


छठी मईया के नाम पर है छठ पर्व का नाम

इस पर्व का जो प्रसाद है उसमें सर्वाधिक प्रमुख है अगरौठा इसका संबंध अर्घ देने से है। अगरौठा की जो आकृति है, जिसका ठप्पा ठेकुए पर मारा जाता है आज भी उसमें दो प्रकार के चिन्ह मिलते हैं, पहला चिन्ह मिलता है पीपल के पत्ते का और दूसरा चिन्ह मिलता है चक्र का। यह कोई मामूली लॉजिक नहीं है क्योंकि हाशिए का इतिहास ऐसे ही लिखा गया है कहीं पत्थरों पर, कहीं दीवार में, कहीं ठेकुए पर ही जीवित है इतिहास। पीपल के पत्ते और चक्र का चिन्ह दोनों ही छठ को बौद्ध परम्परा से जोड़ते हैं। छठ का नामकरण मूलत: छठी मईया पर है। छठी मईया के कारण ही इस पर्व का नाम छठ है। छठी मईया जो लेयर है वो पुराना है इसलिए लोग छठ के गीतों में छठी मईया को याद करते हैं।

छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक पर्व है। यह पर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड पूर्वी यूपी और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व हिंदु धर्म के लोगों में मुख्य पर्व के तौर पर मनाया जाता है। इसमें छठ मईया और सूर्य की पूजा की जाती है। मध्यमार्ग से बातचीत के दौरान भाषा वैज्ञानिक राजेंद्र प्रसाद ने इस पर्व के संबंध में अपनी राय रखी और छठ के नए पहलुओं से अवगत कराया। आइए आपको बताते हैं राजेंद्र प्रसाद सिंह से मध्यमार्ग की बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश–

छठ पर्व की कुछ खास बातें

छठ प्राकृत भाषा का शब्द है। छठ के संबंध में सारा ध्यान हमारा जो जाता है वो इस बात पर जाता है कि छठ उन्हीं इलाकों में मनाया जाता है जहाँ गौतम बुद्ध प्रमण करते थे। समतामूलक समाज बनाने के लिए जिन–जिन इलाकों में उन्होंने भ्रमण कर अपने उपदेश दिए छठ मुख्यत: छठ की परम्परा बिहार, पूर्वी यूपी, नेपाल की तराई में मानाया जाता है। नेपाल की तराई, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में ही बुद्ध प्राय: घूमा करते थे। यह कोई मामूली लॉजिक नहीं है कि छठ केवल उन्हीं में मनाया जाता है जहाँ बुद्ध का अपना इलाका था, जहाँ से उनका लगाव था।

बौद्धिस्ट परम्परा का पर्व है छठ

इस पर्व में लोग घाट पर खासतौर से दक्षिण बिहार में जो वेदी बनाते हैं वो स्तूप के आकार का होता है। उत्तर बिहार में उस वेदी को सिरसौता कहा जाता है, सिरसौता का जो आकार–प्रकार है वो बिल्कुल मनौती स्तूप से मिलता–जुलता है। मनौती स्तूप बनाने का जो आर्ट है वो आज का नहीं है वो बहुत पुराना है, नवादा विश्वविद्यालय के खंडहरों को देखेंगे तो वहाँ आपको बहुत सारे मनौती स्तूप मिलेंगे। इसलिए मेरा मानना है कि छठ पर्व के पीछे बौद्धिज़्म की परंपरा छिपी हुई है और इस पर शोध करने की जरूरत है।

श्रमण सभ्यता और संस्कृति के इतिहास को इतिहासकारों ने बहुत ज़्यादा तवज्जो नहीं दिया, जिसकी वजह से बहुत सारा इतिहास पुस्तकों में दर्ज नहीं है, वो मौखिक, लोक परम्परा और लोककथाओं में है।

छठ पर्व में अगर सूर्य की पूजा होती है तो छठ मइया कहाँ से टपक पड़ी?????

सूर्य की चाहे पूजा करो या उसे जल चढ़ाओ या अर्ग दो उसतक कुछ भी पहुचने वाला नही है न ही उसके तापमान में परिवर्तन होने वाला है।हर जगह बराबर प्रकाश पहुँचेगा।जिस देश में सूर्य की पूजा नही होती वहां भी सूर्य की रौशनी पहुचती है।जिस ग्रह पर जिव नही है वहां भी पहुचती है।

फिर यहाँ इतना पाखण्ड क्यों?

*ब्राह्मण धर्म के पास ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसे संस्कारवान या नैतिकता कहा जाये। अतः उन्होंने बुद्ध की शिक्षाओं को चुराना शुरू किया और ब्राह्मण धर्म का ठप्पा (मुहर) लगाकर बाजार (समाज) में उतार दिया।* 📚

       
*कैसे ?* 

(1) *गुरु पूर्णिमा* :- गौतम बुद्ध ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन सारनाथ में प्रथम बार पांच परिज्रावको को दीक्षा दी थी। ये दिन बौद्धों के जीवन में गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता था। बौद्ध धर्म समाप्त करने के बाद ब्राह्मण धर्म के ठेकेदारो ने इस पर कब्ज़ा किया।
(2) *कुम्भ मेला* :- कुम्भ का मेला बौद्ध सम्राट हर्षवर्धन ने शुरू करवाया था जिसका उद्देश्य बुद्ध की विचारधारा को फैलाना था। इस मेले में दूर दूर से बौद्ध भिक्षु, श्रमण,राजा,प्रजा, सैनिक भाग लेते थे। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने इसको अपने धर्म में  लेकर *अन्धविश्वास* घुसा दिया।

(3) *चार धाम यात्रा* :- बौद्ध धर्म में चार धामों का विशेष महत्त्व था। ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म के चार धामो को अपने काल्पनिक देवी-देवताओ के मंदिरो में बदल दिया और अपने धर्म से जोड़ दिया।
(4) *जातक कथाएँ* :-  जातक कथाये बौद्ध धर्म में विशेष महत्त्व रखती है। इन कथाओ द्वारा बौद्धिस्ट की दस परमिताओं को समझाया जाता था। कुछ कथाये गौतम बुद्ध काल की और कुछ बाद की लिखी गयी है। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने इन कथाओ का ब्रह्मणीकरण करके अपने धर्म में लिया और इन कथाओ में कुछ काल्पनिक कथाये, कुछ ऐतिहासिक बौद्ध स्थलो को जोड़कर रामायण और महाभारत की रचना की गयी।

(5) *विजयादशमी (दशहरा)* :- सम्राट अशोक ने कलिंग विजय के पश्चात अश्विन दशमी के दिन बौद्ध धम्म स्वीकार किया था। ये दिन *अशोका विजयदशमी* के रूप में जाना जाता था।इसी दिन ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य वंश के 10वें सम्राट *वृहदर्थ मौर्य* की हत्या की थी। मौर्य सम्राट दस परमिताओं का रक्षक था। दस परमिताओं का रक्षक हार गया। प्रतिक के रूप में मौर्य वंश के 10 राजाओं के सिरों का दहन ही दशहरा था।
 बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने इस दिन को काल्पनिक कथा रामायण के राम-रावण से जोड़कर दशहरा बना दिया। तुलसीदास की रामचरितमानस के अनुसार रावण चैत्र के महीने में मारा गया था।
(6) *दीपदानोत्सव* :- गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात जब गौतम बुद्ध कपिलवस्तु आये थे तो उनके पिता ने उनके आने की ख़ुशी में नगर को दीपो से सजाया था। सम्राट अशोक ने 84000 बौद्ध स्तूप/चैत्य/ विहार बनवाये थे। इन स्तूप/चैत्य/विहारों का उदघाटन कार्तिक अमावस्य के दिन दीप जलाकर किया था और ये दिन *दीपदानोत्सव* के नाम से जाना जाता था। क्योंकि ये चैत्य/ विहार/स्तूप भारतवर्ष में ही थे इसलिए ये त्यौहार केवल भारत तक ही सिमित था। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मण धर्म ने इस त्यौहार को काल्पनिक कथा रामायण के पात्र राम से जोड़ दिया।

(7) *लिंग-योनि पूजा* :- पुष्यमित्र शुंग की प्रतिक्रांति के बाद प्रथम शताब्दी में शुरू हुई। ब्राह्मण धर्म ने बौद्धों से कहा कि ईश्वर है जिसने ये संसार बनाया है और तुम्हे भी बनाया है।
बौद्धों ने ब्राह्मणों से कहा कि ईश्वर कल्पनामात्र है। ये दुनिया लिंग-योनि की क्रिया के कारण पैदा हुई है और प्राकृतिक है। ब्राह्मणों ने प्रतिक्रिया स्वरूप बौद्धों से ताकत के बल पर लिंग-योनि की मूर्ती पुजवाई। बाद में इसको मनगढ़ंत कहानी द्वारा पुराणों में शिव से जोड़ दिया और अंधविश्वासी लोग लिंग-योनि को शिव-लिंग मानकर पूज रहे है।

(8) *ब्राह्मणों के व्यावसायिक केंद्र (मंदिर)* :- आज जहाँ-जहाँ पर ब्राह्मणों के काल्पनिक देवी-देवताओ के बड़े-बड़े मंदिर है वहाँ कभी बौद्ध धर्म के केंद्र होते थे,जैसे-अयोध्या, काशी, मथुरा,पुरी ,द्वारका, रामेश्वरम, केदारनाथ, बद्रीनाथ,तिरुपति, पंढरपुर , शबरिमला आदि। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने उन्हें मंदिरो में बदल दिया। आप जाकर देखिये वर्तमान में तिरुपति बालाजी के मंदिर में मूर्ति स्वयं गौतम बुद्ध की है। इस बौद्ध मंदिर पर ब्राह्मणों ने कब्ज़ा करके बुद्ध को आभूषण और कपडे पहना दिए और उसका नाम अलग-अलग रख दिया। कोई इसको बालाजी,कोई वेंकटेश्वर, कोई शिव,कोई हरिहर,कोई कृष्ण,कोई शक्ति बोलता है।

(9) *पीपल पूजा* :- भारत के मूलनिवासी प्रकृति पूजक थे। पीपल के पेड़ के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था इसलिए पीपल की पूजा का महत्त्व और भी बढ़ गया था। ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात पीपल के पेड़ के नीचे एक पत्थर गाड़ दिया और इसे पिपलेश्वर महादेव (ब्रह्म बाबा) बना दिया।
(10) *वट वृक्ष पूजा* :- गौतम बुद्ध ने पहला उपदेश सारनाथ में वट वृक्ष के नीचे दिया था इसलिए लोग वट वृक्ष को भी पूजने लगे थे।बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने इसेअपने धर्म में लेकर सत्यवान- सावित्री की काल्पनिक कथा से जोड़ दिया।
(11) *सिर का मुंडन* :- बौद्ध भिक्षु अपने सिर के बाल मुंडवाकर रखते थे। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म के प्रति नफरत फैलाने के लिए मृत्यु के पश्चात परिवार के लोगो का सिर मुड़वाने की प्रथा की शुरुआत की।
      ये लेख ब्राह्मणवाद की विकृति दर्शाता है इस पर विचार करें किन्तु अधिक तर्क/ प्रमाण से परहेज करें।




5 comments:

  1. सारगर्भित और अच्छी जानकारी

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  2. ऐतिहासिक व प्रमाणिक जानकारी के लिए साधुवाद...

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  3. Very good information for youth generation

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  4. Thanks for sharing this informative blog post about Chhath Puja. About Chhath puja Dates

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  5. English
    https://youtu.be/B14Zz681yAk

    Hindi
    https://youtu.be/rGXbR6r_8PQ

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