Sunday, 25 February 2018

धर्म की कट्टरता

मैं जानता हूँ आपको बहुत बुरा लगता है

जब कोई आपसे कहता है कि इस देश में रहने वाला
कोई भारत माता की जय नहीं बोलना चाहता
मानता हूँ कि आपका खून खौल जाता है
मैं भी पूरी जवानी भारत माता की जय के नारे लगाता रहा
आज भी लगा सकता हूँ उसमें कोई बुराई नहीं है
लेकिन अब नहीं लगाता
मैं अब जान बूझ कर भारत माता की जय बोलने से मना करता हूँ 

क्यों करूँगा मैं ऐसा ?
यह मत कहना कि मैं कम्युनिस्ट हूँ
या मैं विदेशी पैसा खाता हूँ
या मैं नक्सलवादी हूँ
या मैं मुसलमानों के तलवे चाटता हूँ
मेरा जन्म एक सवर्ण
हिंदू परिवार में हुआ

मुझे भी बताया गया कि हिंदू धर्म दुनिया का सबसे महान धर्म है
मुझे भी बताया गया कि हमारी जाति बहुत ऊंची है
मुझे भी बताया गया कि देश की एक खास राजनैतिक पार्टी
बिलकुल सही है

मैं भी सैनिकों की बहादुरी वाली फ़िल्में देखता था
और तालियाँ बजाता था
मैं भी पाकिस्तान से नफ़रत करता था

लेकिन फिर मुझे आदिवासी इलाके में जाकर
रहने का मौका मिला
मैंने वहाँ जाकर अनुभव किया
कि मेरी धारणाएं
काफी अधूरी और गलत हैं

मैं अपने धर्म को सबसे अच्छा मानता हूँ
लेकिन इसी तरह सभी लोग अपने धर्म को अच्छा मानते हैं
तो फिर यह बात सही नहीं हो सकती कि मेरा धर्म सबसे अच्छा है

मैंने दलितों की जली हुई बस्तियों का दौरा किया
मुझे समझ में आया
कि मेरे धर्म में बहुत सारी गलत बातें हैं

धीरे धीरे मैंने ध्यान दिया कि सभी धर्मों में गलत बातें हैं
लेकिन कोई भी धर्म वाला उन गलत बातों को स्वीकार करने और सुधारने के लिए तैयार नहीं है

इस तरह मुझे धर्म की कट्टरता समझ में आयी
इसके बात मैंने अपनी कट्टरता छोड़ने का फैसला किया
मैंने यह भी फैसला किया कि अब मैं किसी भी धर्म को अपना नहीं मानूंगा
क्योंकि सभी धर्म एक जैसी मूर्खता और कट्टरता से भरे हुए हैं

आदिवासियों के बीच रहते हुए मैंने
पुलिस की ज्यादतियां देखीं
मैंने उन् आदिवासी लड़कियों की मदद करी
जिनके साथ पुलिस वालों और सुरक्षा बलों के जवानों नें सामूहिक बलात्कार किये थे
मैंने उन् माओं को अपने घर में पनाह दी जिनके बेटों और पति को
सुरक्षा बलों नें मार डाला था
ताकि उनकी ज़मीनों को उद्योगपतियों को दिया जा सके

मैंने आदिवासियों के उन गाँव में रातें गुजारीं
जिन गाँव को सुरक्षा बलों नें जला दिया था

उन् जले हुए घरों में बैठ कर मुझे मैंने खुद से सवाल पूछे कि
आखिर इन निर्दोष आदिवासियों के मकान क्यों जलाये गए
घर जलने से किसका फायदा होगा
घर जलाने वाला कौन है

वहाँ मुझे समझ में आया
कि हम जो शहरों में मजे से बैठ कर
बिजली जलाते हैं
शॉपिंग माल में कार में बैठ कर जाते हैं
हम जो बारह सौ रूपये का पीज़ा खाते हैं
वह सब ऐशो आराम तभी संभव है
जब इन आदिवासियों की ज़मीनों पर उद्योगपतियों का कब्ज़ा हो
उद्योग लगेंगे तो हम शहरी पढ़े लिखे लोगों को नौकरी मिलेगी

हमारे विकास के लिए इन आदिवासियों की ज़मीनों पर कब्ज़ा
तो पुलिस और सुरक्षा बलों के जवान ही करेंगे
आदिवासी अपनी ज़मीन नहीं छोडना चाहता
इसलिए हमारे सिपाही आदिवासी का घर जलाते हैं

हम शहरी लोग इसीलिये इन सिपाहियों के गुण गाते हैं
इसीलिये आदिवासी मरता है
या उसके साथ बलात्कार होता है
या उसका घर जलता है तो
हमें बिलकुल भी बुरा नहीं लगता
लेकिन सिपाही के साथ कुछ भी होने पर
हम गाली गलौज करने लगते हैं

आदिवासियों के जले हुए गाँव में बैठ कर
मुझे भारतीय मिडिल क्लास की पूरी राजनीति समझ में
आ गई
मुझे राजनीति विज्ञान
भारतीय लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था के अध्यन के लिए किसी विश्वविद्यालय में नहीं जाना पड़ा
वो मैंने खुद अनुभव से सीखा

मुझे कश्मीरी दोस्तों से भी मिलने का मौका मिला
मैंने उनके परिवार के साथ भारतीय सेना और अर्ध सैनिक बलों के ज़ुल्मों के बारे में जाना
चूंकि तब तक मैं समझ चुका था
कि सरकारी फौजें किस तरह से ज़ुल्म करती हैं
इसलिए कश्मीरी जनता पर भारतीय सिपाहियों के ज़ुल्मों को मैं साफ़ दिल से समझ पाया
कश्मीर में सेना नें घरों से जिन नौजवानों को उठा कर मार डाला था
मैं उन बच्चों की माओं से मिला
जिन पुरुषों को सेना नें घरों से उठा लिया
और कई सालों तक जिनका फिर कुछ पता नहीं चला
उनकी पत्नियों से मिला
उन औरतों को कश्मीर में हाफ विडो कहा जाता है
यानी आधी विधवा
मैंने उन महिलाओं के बारे में भी जाना जिनके साथ हमारी सेना के सैनिकों नें बलात्कार किये

मैंने मुज़फ्फर नगर दंगों के बाद वहाँ रह कर काम किया
वहाँ एक फर्जी प्रचार के बाद दंगे किये गए थे
मैंने उस फर्ज़ी प्रचार की पूरी सच्चाई की खोज करी
दंगा अमित शाह ने करवाया था
इन दंगों में एक लाख गरीब मुसलमान बेघर हो गए थे
सर्दी में उन्हें खुले में तम्बुओं में रहना पड़ रहा
वहाँ ठण्ड से साठ से भी ज़्यादा बच्चों की मौत हो गयी थी

इस तरह मैंने देखा कि लव जिहाद के नाम पर
भाजपा नें हिदुओं में असुरक्षा की भावना भड़काई
और उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए सीटें जीतीं


मेरी बेचैनी बढ़ती गयी

मुझे लगने लगा कि हम शहरी लोग इतने स्वार्थी कैसे हो सकते हैं

कि हमारे फायदे के लिए करोड़ों आदिवासियों पर ज़ुल्म किये जाएँ

हम इतने स्वार्थी कैसे हो सकते हैं कि दलितों की बस्तियां जलाई जाएँ

और हम क्रिकेट देखते रहें

कश्मीर में हमारी सेना ज़ुल्म करे और हम उसका समर्थन करें

तभी भाजपा का शासन आ गया

मैंने देखा कि अब दलितों पर अत्याचार करने वाले

और भी ताकतवर हो गए हैं

कश्मीर के ऊपर आवाज़ उठाने के कारण 

दलित विद्यार्थियों को हास्टल से निकाला जा रहा है

इसके बाद इन्हें दलित छात्रों में से एक छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली

मुझे लगा यह आत्म हत्या नहीं एक तरह की हत्या ही है

साथ साथ सोनी सोरी नाम की आदिवासी महिला के ऊपर सरकार के अत्याचार बढते जा रहे थे

मैं बेचैन था कि आखिर इन मुद्दों पर कोई ध्यान क्यों नहीं देता

तभी सरकार में बैठे लोगों नें भारत माता का शगूफा छोड़ दिया

मुझे लगा कि भारत माता की जय बोलना तो कोई मुद्दा है ही नहीं

यह तो असली समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए

सरकारी चालाकी है

मैंने निश्चय किया

कि मैं भारत माता की जय नहीं बोलूँगा

जैसे मैं अब किसी भगवान की पूजा नहीं करता

लेकिन इंसानों के भले के लिए काम करने की कोशिश करता हूँ

इसी तरह मैं भाजपा के कहने से भारत माता की जय बिलकुल नहीं कहूँगा

अलबत्ता मैं देश के लोगों की सेवा पहले की तरह करता रहूँगा

इस समय भारत माता की जय को लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है

और मैंने बेवकूफ बनने से इनकार कर दिया हैl


 धंधे की समयसारणी


33 करोड़ देवी देवता नाम
सौ का भी नही पता?
सोमवार शंकर जी
मंगलवार हनुमान जी
बुद्धवार  गणेश जी
गुरुवार विष्णुजी
सुक्रवार सन्तोषी मा
शनिवार सनी देव
रविवार सूर्य देव

सात दिन सातों देवी देवताओं से सुरक्षित है ।
मन्दिर जाओ, घण्टा बजाओ,
चढ़ावा चढ़ाओ, चले आओ।।

भारत मे धर्मो के कारण मानव के सोचने समझने की क्षमता ही नष्ट कर दी गई है।
कोई ऐसा महीना नही होगा जब त्यौहार न हो
धर्मियो को मालूम है जब काम न रहे तो धर्म मे उलझाये रखो इंसान कभी नही समझेगा।
भक्ति अधिकतर गरीब तबका करता है घर मे खाने को हो या न हो भगवान के लिए नारियल अगरबत्ती जरूर चढ़ायेगा।
कृषि प्रधान देश मे 85%जनता खेती,मजदूरी में गुजर बसर करती है।
जब खेतो में काम कम रहता है तब इन पण्डा लोगो का त्यौहार,कीर्तन,भागवत,कथा चलती रहती है।

जुलाई के महीने से खेल चालू होता है
नागपंचमी, जन्माष्टमी,गणेश,दुर्गा आदि

चूंकि इन महीनों में खेतों में काम कम रहता है इसलिए इसमें लगे रहे।
Nov. के आस पास से लेकर फरबरी तक सादी का मौसम रहता उसमें धंधा चालू रहता है।
इसके बाद खेतों में काम आने लगता है कटाई  गहाई तब ये
धन्धा बन्द रहता है।

जैसे ही खेती से किसान फुरसत होता है मार्च अप्रैल से फिर सादी चालू 
और वो अनवरत जुलाई तक चलता रहता है।

यह एक योजनाबद्ध किया गया सुनियोजित खड़यँत्र है।

लग्न,त्यौहार,किसानी
कभी एक साथ नही पयोगे।

 ये इसलिए ऐसा बनाया गया है ताकि लोगो को सोचने समझने का समय ही न मिले
और मेरा धन्धा चलता रहे।
खेती से फुरसत तो त्यौहार
त्यौहार से फुरसत तो सादी
सादी से फुरसत तो फिर खेती

मतलब समय नही देना है
सोचने समझने का ।

जब इंसान के पास फुर्सत के पल होते है तो वो कुछ न कुछ
अपने जीवन के बारे में सोचता है।
लेकिन धर्म इसके विपरीत है।
सोचने की क्षमता क्षीण कर देता है मनगढ़ंत ,झूठ,फरेब  को बढ़ावा देता है।

धर्म हमसे है हम धर्म से नही।
जब इंसान इस फरेब को समझ जायेगा।

ये रेत का महल ढह जायेगा।

सोचिए
समझिये
तर्कशील बनिये

अपना दीपक स्वंय बनो

नमो बुद्धाय


 #बहका धर्म बहकी नीति

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मानव के कल्याण मात्र के लिए कदम उठाने का साहस करने वाले इस जगत में बहुत ही कम लोग होते है। अधिकतर मानवता का पाठ पढ़ाने वाले लोग आज के दौर में अपना उल्लू सीधा करने पर तुले हुए है। जिन लोगो को अपना स्वार्थ सिद्ध होता प्रतीत होता है वे किसी भी हद तक अपने चंचल स्वभाव का प्रयोग कर अपने सफल होने के लिए हर हथकंडे का प्रयोग करते है। धर्म के क्षेत्र में धार्मिक मठाधीश लोग अपने आजीविका के निर्वहन हेतु आडम्बर अंधविश्वास से पूर्ण रूप से बंधे हुए है। वे प्रकृति का अस्तित्व जानकर भी अंजान बने हुए है,क्योंकि उन्हें पता है कि यदि शांति और भाईचारे का पाठ बिना नमक मिर्च लगा कर पढ़ाया गया, तो उनकी धार्मिक दुकाने बन्द होने का खतरा मडराता नज़र आएगा।, इसलिए जितना भी हो सके उतना भय का आतंक फैलाओ, धार्मिक धंधा गतिमान रहेगा।
    अब के समय मे पहले से अधिक मनुष्य चतुर हो गया है। शब्दो के लच्छे अतीत की अपेक्षा अधिक मजेदार हो गए है। जिनके वर्णन की कोई सीमा नही रही है।इसलिए भोला भाला मनुष्य अब तक यथार्थ को समझने के लिए अपने बुद्धि विवेक का प्रयोग नही कर पाया।
       अन्धविश्वासी बातों में बड़े मजे होते है।जिनका दम्भ सिर्फ मृत्यु के बाद रहस्य में दफन हो जाता है।प्रकृति की वास्तविकता से कोई परिचय कराने का साहस अब तक नही कर पाया। क्योंकि पूर्व के समाज मे तमाम प्रकार की परम्पराये व्याप्त थी। उन परम्पराओ को तोड़ने का साहस सिर्फ तथागत बुद्ध जैसे लोगो ने जुटा पाया।क्योंकि उन्हें लकीर के फ़क़ीर बने रहने की कला से इतर सत्य की खोज के लिए अपना सब कुछ त्याग पर लगाना पड़ा।
आज के संत सब कुछ पाने के लिए सत्य का गला घोंटकर अपने संतई को बलिदान कर रहे है।
धर्म से मिलता हुआ राजनीति का अनोखा असत्य का संगम है।जहां लोगो के भलाई के असंख्य वादे किए जाते है,पर उन वादो के पीछे लोगों के हक़ पर ढांका डालने की योजना को बनाने के लिए चुनाव के समय हर झूठ का इस्तेमाल करते है। जैसा कि हम सभी जानते कि झूठ की बुनियाद हर समय पर झूठ का बाजार लगाती है, जहां हर मनुष्य हमें गुमराह करने की कोशिश करता दिखाई पड़ता है। क्योंकि चापलूसों की मंडी में सत्य की चमक सिर्फ तमाशा बन के रह जाती है।
धर्म और राजनीति हमारा मरते दम तक पीछा नही छोड़ती।अगर वक़्त रहते धर्म और राजनीति में शब्दों के खोखले तरीके प्रयोग होते रहे,तो हमारे  जागरूक होने का कोई महत्व नही रहेगा । हम सब पढ़े लिखे लोग है, पर व्यस्त जिंदगी में हम सबने अपने सार्थक निर्णय लेने की क्षमता का हास् कर दिया है।इसलिये हमको बुद्ध के धम्म का मार्ग अपना कर राजनीति में परमपूज्य बाबा सहेब डॉ बी0 आर0 अम्बेडकर के पद चिन्हों पर चलना चाहिए।लेकिन आज हम स्वयं धर्म और राजनीति की बेड़ियों में मजबूती से बंधे हुए है।जिनमें हमको स्वयं के बुद्धि विवेक का प्रयोग करने का अधिकार नही है। अलग मार्ग चुनने पर सामाजिक प्रताड़ना के अतिरिक्त जो बल हमारे ऊपर प्रयोग किया जाता है वह राजनैतिक बल होता है। सर्व शक्तिमान दोनो ताकते के संगम से मात्र वर्तमान की स्थितयों में विलय होकर सामाजिक एकता को मजबूत कर एक मिशन का उद्देश्य पूरा करने वाले को पहले अपनी धार्मिक एकता को मजबूत कर राजनीति के अखाड़े में उतर कर परिवर्तन के लिए एक युद्ध करना होगा।तभी एक नए सत्य बोध मार्ग का निर्माण हो सकता है। लेकिन हर जगह क्षणिक लालच के बशीभूत हो हर वर्ग के मनुष्य की श्रेणियां विभाजित है। बस उनको शब्दों के जाल में फ़साने की आवश्यकता है। उनको तोड़ने में देर नही लगेगी।
  यह सब अनुभवहीनता का परिणाम है। खुद मनुष्य धर्म और राजनीति में अपना गला स्वयं काट रहा है।
 सोंचकर एक सही निर्णय लेने की आवश्यकता बहुत जरूरी है। दोनों में अंधभक्ति अधिक प्रबल है।निजी स्वार्थ की बजह से गिरने के स्तर से भी ज्यादा मनुष्य अंध श्रद्धा में गिर रहा है।
     जिस दिन इस अंधश्रद्धा के गिरावट के स्तर में सुधार हो गया। उस दिन धर्म और नीति का एक नया अध्याय शुरू होगा।
 जिसमे एक सही धर्म और नीति के अंधे भविष्य में उजाले के  उम्मीदों की एक किरण फैलते नज़र आएगी।

  जय भीम! नमो बुद्धाय !जय भारत

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