मैँ अछुतो का एकलौता प्रतिनिधी हूँ| मैँ अछुतो को कोई
भी अधिकार दिये जाने के पक्ष मेँ नही हुँ|
इसमे तो हिँन्दू धर्म की आत्मा नष्ट हो जाएगी|
हॉ यदि वे धर्म बदलते है तो कोई बात नही
- गांधी.
मै अछुतो का प्रतिनिधी हुँ| अछुत हिन्दू नही है|
अछुतो को हिँन्दू मंदिर जाने नही देते| सार्वजनिक स्थलोँ से
पानी तक नही पीने देते| हिँन्दू
अछुतो को छुते तक नही| हिन्दू
अछुतो को कभी अधिकार नही देंगे| अछुतो को अलग
से स्वतंत्र अधिकार दिये जाने जाहिए
- डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर
"पुणे पैक्ट"
मै मर जांउगा लेकिन अछुतो को अधिकार नही दुंगा.
- गांधी
मुझे फांसी दे दो लेकिन मैँ गोलमेज से मिले
अधिकारोँ को छोडुंगा नही.
- डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर.
जय भीम साथियों.....
आपको ये जानना बहुत जरूरी है...👇
सन 1930, 1931, 1932, में लन्दन की गोलमेज कॉन्फ्रेंस में डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने अछूतो के हक के लिए ब्रिटिश सरकार के सामने वकालत की,,, उन्होंने कहा आप लोग 150 साल से भारत में राज कर रहे हो, फिर भी अछूतों पर होने वाले जुल्म में कोई कमी नही ला सके हो तथा ना ही आपने छुआ-छूत को ख़त्म करने के लिए कोई कदम उठाया है..!
बाबासाहेब ने ब्रिटिश सरकार के सामने यह स्पष्ट किया कि अछूतो का हिन्दुओं से अलग अस्तित्व है। वे गुलामों जैसा जीवन जीने के लिए मजबूर है, इनको न तो सार्वजानिक कुओं से पानी भरने की इज़ाज़त है न ही पढ़ने लिखने का अधिकार है और नाही संपत्ति रखने का अधिकार है! अछूत आखिर तरक्की करे तो कैसे करे?❓
बाबासाहेब ने गोलमेज कॉन्फ्रेंस में भारत में अछूतो की दुर्दशा की बात करते हुए उनकी सामाजिक, शैक्षणिक तथा राजनीतिक स्थिति में सुधार के लिए अछूतो के लिए पृथक निर्वाचन की मांग रखी। पृथक निर्वाचन में अछूतो को दो मत देना होता, जिसमें एक मत अछूत मतदाता केवल अछूत उम्मीदवार को देते और दूसरा मत वे समान्य उम्मीदवार को देते।
बाबासाहेब ने जो तर्क रखे वो इतने ठोस और अधिकारपूर्ण थे कि ब्रिटिश सरकार को बाबासाहेब के सामने झुकना पड़ा। तथा 1932 में अछूतो के लिए तत्कालीन योजना की घोषणा करते हुए पृथक निर्वाचन की माँग को स्वीकार कर लिया।
बाबासाहेब ने इस अधिकार के सम्बन्ध में कहा- पृथक निर्वाचन के अधिकार की मांग से हम हिन्दू धर्म का कोई अहित नहीं करने वाले है,... हम तो केवल उन सवर्ण हिन्दुओं के ऊपर अपने भाग्य निर्माण की निर्भरता से मुक्ति चाहते है।
लेकिन गांधी पृथक निर्वाचन के विरोध में थे.! वे नहीं चाहते थे, कि अछूत समाज हिन्दुओं से अलग हो... वे अछूत समाज को हिन्दुओं का एक अभिन्न अंग मानते थे।
बाबासाहेब ने गांधी जी से प्रश्न पूछा- अगर अछूत हिन्दुओं का अभिन्न अंग है, तो फिर उनके साथ जानवरों जैसा सलूक क्यों..? लेकिन गाँधी जी ने इसका कोई भी जवाब नही दे पाये। बाबासाहेब ने गांधी से कहा- मिस्टर मोहन दास करम चन्द गांधी, आप अछूतों की एक बहुत अच्छी नर्स हो सकते है! परन्तु मैं उनकी माँ हूँ! और माँ अपने बच्चों का अहित कभी नहीं होने देती है..!
फिर भी गांधी जी ने पृथक निर्वाचन के खिलाफ पूना के जेल में आमरण अनशन पर बैठ गए। और यही वह अधिकार था जिस से देश के करोड़ों अछूतों को एक नया जीवन मिलता और वे सदियों से चली आ रही गुलामी से मुक्त हो जाते... लेकिन गांधी जी के आमरण अनशन के कारण बाबासाहेब की उम्मीदों पर पानी फिर गया।
लंबे समय तक आमरण अनशन के कारण गांधी जी की दशा बिगड़ने लगी, गांधी जी और बाबासाहेब के समर्थको के बीच झड़पों की भी खबर आने लगी थी। तथा बाबासाहेब पर दबाव बढ़ाने लगा कि वे अपनी पृथक निर्वाचन की मांग को वापस ले लें। किन्तु वे अपनी मांग वापस न लेने पर कायम रहे। उधर गाँधी जी भी अपने अनशन पर अड़े रहे।
इन दोनों के बीच सर तेज बहादुर सप्रू बात करके कोई बीच का रास्ता निकालने का प्रयास कर रहे थे। 24 सितम्बर 1932 को सर तेज बहादुर सप्रू ने दोनों से मिलकर एक समझौते का फॉर्मूला तैयार किया जिसमें बाबासाहेब को पृथक निर्वाचन की मांग को वापस लेना था और गाँधी जी को केन्द्रीय और राज्यों की विधानसभाओं एवं स्थानीय संस्थाओं में अछूतो की जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व देने एवं सरकारी नौकरियों में भी प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था कराने का वादा करना था। इसके अलावा शैक्षिक संस्थाओं में अछूतो को विशेष सुविधाएं देने की बात भी इसमें शामिल थी। दोनों नेता इस समझौते पर सहमत हो गए।
24 सितम्बर 1932 को इस समझौते पर गाँधी जी और बाबासाहेब ने तथा इनके समर्थकों ने अपने हस्ताक्षर कर दिए। इस समझौते को पूना पैक्ट कहा गया।
पूना पैक्ट में पृथक निर्वाचन के बदले अछूतो को आरक्षण का प्रावधान जरूर रखा गया। जो की पृथक निर्वाचन के सामने बहोत ही नगण्य था।
लेकिन फिर भी गांधी की जान को बचाने के लिए करोड़ो अछूतो को उनको हक तत्काल दिलाने के बदले लंबे समय लटकना पड़ा,,, तथा आँखों में आंसू लिए हुए बाबासाहेब ने पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर किये इस संदर्भ में बाबासाहेब का नाम अमर रहेगा क्योंकि उन्होंने गांधी को जीवन दान दे दिया...
उसी दिन बाबासाहेब ने पूना पैक्ट का धिक्कार दिवस आयोजित किया। बाबासाहेब ने कहा कि "पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करके मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती की है.! मैं ऐसा करने को विवश था... मैं आपको तत्काल इस ऊँच निच की दीवारो से मुक्त करना चाहता था। लेकिन गांधी ने पूना पैक्ट में हस्ताक्षर करवाकर समय सीमा बड़ा दी है।"
💯बाबासाहेब ने अपने जीवन में कभी गांधी जी को महात्मा नहीं माना वे "ज्योतिबा फुले " जी को सच्चा महात्मा मानते थे।।।
*जय भीम-जय भारत-जय संविधान*
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