ब्राह्मणी खडयंत्र के चलते कुर्मी छोटूराम चंद्राकर मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री नहीं बन सके थे :-
मध्यप्रदेश का प्रथम मुख्यमंत्री छोटूराम चंद्राकर को बनना था . छोटूराम चंद्राकर जाति से कुर्मी थे .लन्दन में जवाहरलाल नेहरु के क्लासफेलो रह चुके थे .भारत में वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे .
तीन ब्राह्मण नेता दिल्ली पहुंचे , ब्राह्मण उमाशंकर दीक्षित , ब्राह्मण शम्भुनाथ शुक्ल , और ब्राह्मण द्वारका प्रसाद मिश्र , जवाहरलाल नेहरु से मिलने . इन तीनों ने जवाहरलाल नेहरु से जानना चाहा की मध्यप्रदेश का प्रथम मुख्यमंत्री कौन बनेगा ? जवाहरलाल नेहरु ने उत्तर दिया -- मैंने छोटूराम चंद्राकर का नाम तय कर दिया है . उन तीनों ने जवाहरलाल नेहरु को धन्यवाद् दिया और बाहर निकले .
तीनों ब्राह्मण नेताओं ने बाहर आकर तय किया कि किसी भी कीमत पर कुर्मी छोटूराम चंद्राकर को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे , हर कीमत पर मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री ब्राह्मण को बनायेंगे .
इन तीनों ब्राह्मण नेताओं ने दिल्ली से ही ब्राह्मण नेता रविशंकर शुक्ल को फ़ोन लगाया , और कहा कि -- रविशंकर , कल हम तीनों ब्राह्मण नेता रायपुर आ रहे हैं , तुम रेलवे स्टेशन पर कार लेकर हमारा इन्तजार करना . हम लोग तुझे मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बना सकते हैं , हम लोग जो -जो कहें , तुम वही करो .
अगले दिन तीनों ब्राह्मण नेता रायपुर पहुंचे .रेलवे स्टेशन पर रविशंकर शुक्ल कार लेकर इन्तजार करता मिला .चारों ब्राह्मण नेता छोटूराम चंद्राकर के घर पहुंचे .( तय प्लानिंग के अनुसार ).
उस वक्त छोटूराम चंद्राकर गंजी -जांघिया पहने अपनी गाय -भैंसों को सानी -भूसा करा रहे थे .उनका हाथ गीले भूसे से सना था . छोटूराम चंद्राकर कार की तरफ बढे . रविशंकर शुक्ल ने तय प्लानिंग के अनुसार तुरंत छोटूराम चंद्राकर का पैर पकड़ लिया . छोटूराम चंद्राकर ने कहा --' रविशंकर तुम ब्राह्मण होकर मेरा पैर क्यों पकड़ रहे हो ? यह अधर्म है , पैर छोड़ो." छोटूराम चंद्राकर हाथ भी नहीं लगा सकते थे ,क्योंकि उनके हाथ में गीला भूसा लगा हुआ था .भूसे से ब्राह्मण रविशंकर शुक्ल का कपड़ा ख़राब हो जाता .
ब्राह्मण द्वारिका प्रसाद मिश्र ने कहा कि --" छोटूराम जी , जब तक आप रविशंकर को आशीर्वाद नहीं देंगे , ये आपका पैर नहीं छोड़ेगा ." छोटूराम चंद्राकर ने कहा -- " कैसा आशीर्वाद ?" ब्राह्मण द्वारिका प्रसाद मिश्र बोला -- " क्या आप नहीं चाहते कि रविशंकर मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बने ?" छोटूराम चंद्राकर ने कहा --" मैं क्यों नहीं चाहूँगा ? मैं तो चाहता हूँ कि रविशंकर मुख्यमंत्री बने , मुझे ख़ुशी होगी (छोटूराम चंद्राकर घटना से अनजान थे ).
द्वारिका प्रसाद मिश्र ने छोटूराम चंद्राकर से कहा --" तो फिर चलिए , और जवाहरलाल जी को फोन करिए , और बोलिए कि रविशंकर शुक्ल को मुख्यमंत्री बना दीजिये , हमें कोई आपत्ति नहीं ."
चारों ब्राह्मण नेता छोटूराम चंद्राकर को रायपुर ले गए , ब्राह्मण उमाशंकर दीक्षित ने जवाहरलाल नेहरु को फोन लगाया , और नेहरु से बोला -- पंडित जी , मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल को बना दीजिये , छोटूराम चंद्राकर जी को कोई आपत्ति नहीं है , छोटूराम जी रविशंकर का नाम प्रस्तावित कर चुके हैं , लीजिये -छोटूराम जी से बात कर लीजिये ."
छोटूराम जी ने फोन लिया और जवाहरलाल से कहा -- " रविशंकर शुक्ल को मुख्यमंत्री बना दीजिये , मुझे कोई आपत्ति नहीं ." जवाहरलाल नेहरु ने कहा --" जब आपको कोई आपत्ति नहीं , तो मुझे क्या आपत्ति होगी ?" इतना कहकर जवाहरलाल नेहरु ने फोन काट दिया .
ब्राह्मण रविशंकर शुक्ल मुख्यमंत्री बन गया . मुख्यमंत्री बनते ही छोटूराम चंद्राकर पर तीस से ज्यादा फर्जी मुकदमे लगाकर जेल में डाल दिया . छोटूराम चंद्राकर जीवन भर के लिए राजनीति और समाजसेवा भूल गए .
भारत में रूलिंग व्यवस्था को देखें तो समझ में आएगी कि भारत democratic state कम, पर theological स्टेट ज्यादा है। विज्ञान और तर्क पर धर्म एवं परम्परा भारी नजर आता है।
दुनिया में sceintific स्टेट हीं विकसित हुई है। ऑर्थोडॉक्स, थियोलॉजिकल व्यवस्था में जबरदस्त मार काट एवं रेसियल स्ट्रगल के कारण त्रास्दी देखी जा रही है। जिसका परफेक्ट उदाहरण सीरिया जैसे मध्य एशिया के अनेकों स्टेट हैं।
भारत के संदर्भ में डेमोक्रेटिक व्यवस्था में गवर्नेंस चेंज प्रत्येक पाँच वर्षों में तय है, जो देश का कानून बनाने के साथ रूलिंग करती है।
यहाँ वोट के द्वारा नेतृत्व मिलती है, जिसमें बंशवाद के बेस पर नेशनल पार्टी के साथ अधिकाँश स्टेट पार्टी है। इन अधिकांश दलों का एस्पिरेशन धर्म, जाति, रीजन एवं कोई इमोशनल मुद्दा है। कई ईमानदार लेजिस्लेचर मेम्बर्स जो कुछ देश का भला चाहते हैं, वे पार्टी लाइन पर बंधे रहने के कारण बंधुआ लेजिस्लेचर बन कर असमर्थ हैं। फिर भी ये पांच साल में लोगों के इच्छा से चेंज हो जाते हैं।
पर, लोकतंत्र का शेष तीनों अंग ब्यूरोक्रेसी, ज्यूडिशियरी एवं मीडिया मेम्बर्स वही रह जाते हैं।
यानि, वोट के द्वारा लोकतंत्र का पाँच साल में सिर्फ पोलिटिकल स्ट्रक्चर बदलता है, शेष सभी अंग मेंबर्स वही रह जाते हैं।
भारतीय रूलिंग प्रणाली में लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ कॉरपोरेट व्यवस्था, सामाजिक सांस्कृतिक एवं धार्मिक व्यवस्था भी है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था से ज्यादा मजबूत है।
रूरल एरिया में तो सांस्कृतिक व्यवस्था हीं सिर्फ नजर आती है, लोकतांत्रिक व्यवस्था तो बिल्कुल नजर नहीं आती।
इनका दैनिक से लेकर सलाना कार्य हीं सांस्कृतिक धार्मिक व्यवस्था द्वारा गवर्न होती है। इस व्यवस्था का प्राइम मिनिस्टर ब्राहमण होते हैं, जो पाँच सालों में नहीं बल्कि कई जेनेरेशन तक चेंज नहीं होते। इस व्यवस्था में वोट की कोई भूमिका नहीं है। यानि पूरी तरह से ये जातिवादी एवं बंशवादी व्यवस्था है।
इस व्यवस्था से वे पञ्चाङ्ग एवं कई धार्मिक किताबें से निर्णय करते हैं, किसके साथ, किस दिन, क्या खाना है? किस दिन क्या पहनना है, किससे छूत करना है। किस दिन शादी करनी है, किस दिन गृहप्रवेश एवं इसके रिचुअल्स के रॉ मटेरियलस
क्या होगा इत्यादि?
तो फिर भारत थियोलॉजिकल स्टेट है कि डेमोक्रेटिक स्टेट आप खुद डिसाइड कर सकते हैं?
अब डेमोक्रेटिक व्यवस्था के तीन अंगों में ज्यूडिशियरी बिल्कुल हीं जातिवादी एवं बंशवादी व्यवस्था है, जिसे वोट के द्वारा पाँच साल में नहीं बदल सकते, नहीं कई सालों में भी बदल सकते।
मीडिया हाउस के साथ कॉरपोरेट भी पूरी तरह से जातिवादी एवं बंशवादी व्यवस्था है, जिसे कई सालों में भी नहीं बदल सकते, नहीं जनता मीडिया द्वारा अनर्गल चीजें थोपने के बावजूद अंकुश लगा सकती है।
ब्यूरोक्रेटिक व्यवस्था जिसे मेरिटोक्रेसी बनाया गया है, यह 60 से 65 की उम्र तक कायम रहता है, इसमें भी जबरदस्त जातिवाद देख सकते हैं। इस व्यवस्था में भी खास जाति का वर्चस्व है, जबकि मेजोरिटी हाशिये वर्ग के लोग का प्रतिनिधित्व बहुत ही कम है। ये भी जनता के प्रति जबाबदेह नहीं है। क्योंकि जनता के वोट से इसका कोई तालुकात नहीं है।
यानि, कुल मिलाकर भारत के सिर्फ पोलिटिकल स्ट्रक्चर ही थोड़ा ट्रांसपेरेंट, रिप्रिजेंटेटिव एवं डेमोक्रेटिक है। निस्संदेह भारतीय व्यवस्था का मुश्किल से 10% पोलिटिकल हिसा को छोड़ अधिकांशतः थियोलॉजिकल एवं ग़ैरवैज्ञानिक है।
अगर भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है, तो सांस्कृतिक -धार्मिक ग़ैरवैज्ञानिक व्यवस्था को शून्य कर लोकतांत्रिक व्यवस्था को रिप्रिजेंटेटिव बनाना होगा।
यानि, सिर्फ लेजिस्लेचर मेम्बर्स को ही नहीं, बल्कि खास योग्यता फिक्स कर जज, कॉरपोरेट मालिक, मीडिया प्रमुख एवं ब्यूरोक्रेट को भी समय निर्धारित कर वोट द्वारा रिप्रिजेंटेटिव बना ही बदलाव कर सकते हैं।
भारत को वास्तविक डेमोक्रेटिक एवं विकसित राष्ट्र सभी वर्ग के नागरिकों को मेनस्ट्रीम में लाकर हीं बना सकते हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो भारत सिर्फ कहने को तो डेमोक्रेटिक स्टेट रहेगा, पर वास्तव में ये थियोलॉजिकल स्टेट ही बना रहेगा।
मध्यप्रदेश का प्रथम मुख्यमंत्री छोटूराम चंद्राकर को बनना था . छोटूराम चंद्राकर जाति से कुर्मी थे .लन्दन में जवाहरलाल नेहरु के क्लासफेलो रह चुके थे .भारत में वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे .
तीन ब्राह्मण नेता दिल्ली पहुंचे , ब्राह्मण उमाशंकर दीक्षित , ब्राह्मण शम्भुनाथ शुक्ल , और ब्राह्मण द्वारका प्रसाद मिश्र , जवाहरलाल नेहरु से मिलने . इन तीनों ने जवाहरलाल नेहरु से जानना चाहा की मध्यप्रदेश का प्रथम मुख्यमंत्री कौन बनेगा ? जवाहरलाल नेहरु ने उत्तर दिया -- मैंने छोटूराम चंद्राकर का नाम तय कर दिया है . उन तीनों ने जवाहरलाल नेहरु को धन्यवाद् दिया और बाहर निकले .
तीनों ब्राह्मण नेताओं ने बाहर आकर तय किया कि किसी भी कीमत पर कुर्मी छोटूराम चंद्राकर को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे , हर कीमत पर मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री ब्राह्मण को बनायेंगे .
इन तीनों ब्राह्मण नेताओं ने दिल्ली से ही ब्राह्मण नेता रविशंकर शुक्ल को फ़ोन लगाया , और कहा कि -- रविशंकर , कल हम तीनों ब्राह्मण नेता रायपुर आ रहे हैं , तुम रेलवे स्टेशन पर कार लेकर हमारा इन्तजार करना . हम लोग तुझे मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बना सकते हैं , हम लोग जो -जो कहें , तुम वही करो .
अगले दिन तीनों ब्राह्मण नेता रायपुर पहुंचे .रेलवे स्टेशन पर रविशंकर शुक्ल कार लेकर इन्तजार करता मिला .चारों ब्राह्मण नेता छोटूराम चंद्राकर के घर पहुंचे .( तय प्लानिंग के अनुसार ).
उस वक्त छोटूराम चंद्राकर गंजी -जांघिया पहने अपनी गाय -भैंसों को सानी -भूसा करा रहे थे .उनका हाथ गीले भूसे से सना था . छोटूराम चंद्राकर कार की तरफ बढे . रविशंकर शुक्ल ने तय प्लानिंग के अनुसार तुरंत छोटूराम चंद्राकर का पैर पकड़ लिया . छोटूराम चंद्राकर ने कहा --' रविशंकर तुम ब्राह्मण होकर मेरा पैर क्यों पकड़ रहे हो ? यह अधर्म है , पैर छोड़ो." छोटूराम चंद्राकर हाथ भी नहीं लगा सकते थे ,क्योंकि उनके हाथ में गीला भूसा लगा हुआ था .भूसे से ब्राह्मण रविशंकर शुक्ल का कपड़ा ख़राब हो जाता .
ब्राह्मण द्वारिका प्रसाद मिश्र ने कहा कि --" छोटूराम जी , जब तक आप रविशंकर को आशीर्वाद नहीं देंगे , ये आपका पैर नहीं छोड़ेगा ." छोटूराम चंद्राकर ने कहा -- " कैसा आशीर्वाद ?" ब्राह्मण द्वारिका प्रसाद मिश्र बोला -- " क्या आप नहीं चाहते कि रविशंकर मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बने ?" छोटूराम चंद्राकर ने कहा --" मैं क्यों नहीं चाहूँगा ? मैं तो चाहता हूँ कि रविशंकर मुख्यमंत्री बने , मुझे ख़ुशी होगी (छोटूराम चंद्राकर घटना से अनजान थे ).
द्वारिका प्रसाद मिश्र ने छोटूराम चंद्राकर से कहा --" तो फिर चलिए , और जवाहरलाल जी को फोन करिए , और बोलिए कि रविशंकर शुक्ल को मुख्यमंत्री बना दीजिये , हमें कोई आपत्ति नहीं ."
चारों ब्राह्मण नेता छोटूराम चंद्राकर को रायपुर ले गए , ब्राह्मण उमाशंकर दीक्षित ने जवाहरलाल नेहरु को फोन लगाया , और नेहरु से बोला -- पंडित जी , मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल को बना दीजिये , छोटूराम चंद्राकर जी को कोई आपत्ति नहीं है , छोटूराम जी रविशंकर का नाम प्रस्तावित कर चुके हैं , लीजिये -छोटूराम जी से बात कर लीजिये ."
छोटूराम जी ने फोन लिया और जवाहरलाल से कहा -- " रविशंकर शुक्ल को मुख्यमंत्री बना दीजिये , मुझे कोई आपत्ति नहीं ." जवाहरलाल नेहरु ने कहा --" जब आपको कोई आपत्ति नहीं , तो मुझे क्या आपत्ति होगी ?" इतना कहकर जवाहरलाल नेहरु ने फोन काट दिया .
ब्राह्मण रविशंकर शुक्ल मुख्यमंत्री बन गया . मुख्यमंत्री बनते ही छोटूराम चंद्राकर पर तीस से ज्यादा फर्जी मुकदमे लगाकर जेल में डाल दिया . छोटूराम चंद्राकर जीवन भर के लिए राजनीति और समाजसेवा भूल गए .
भारत में रूलिंग व्यवस्था को देखें तो समझ में आएगी कि भारत democratic state कम, पर theological स्टेट ज्यादा है। विज्ञान और तर्क पर धर्म एवं परम्परा भारी नजर आता है।
दुनिया में sceintific स्टेट हीं विकसित हुई है। ऑर्थोडॉक्स, थियोलॉजिकल व्यवस्था में जबरदस्त मार काट एवं रेसियल स्ट्रगल के कारण त्रास्दी देखी जा रही है। जिसका परफेक्ट उदाहरण सीरिया जैसे मध्य एशिया के अनेकों स्टेट हैं।
भारत के संदर्भ में डेमोक्रेटिक व्यवस्था में गवर्नेंस चेंज प्रत्येक पाँच वर्षों में तय है, जो देश का कानून बनाने के साथ रूलिंग करती है।
यहाँ वोट के द्वारा नेतृत्व मिलती है, जिसमें बंशवाद के बेस पर नेशनल पार्टी के साथ अधिकाँश स्टेट पार्टी है। इन अधिकांश दलों का एस्पिरेशन धर्म, जाति, रीजन एवं कोई इमोशनल मुद्दा है। कई ईमानदार लेजिस्लेचर मेम्बर्स जो कुछ देश का भला चाहते हैं, वे पार्टी लाइन पर बंधे रहने के कारण बंधुआ लेजिस्लेचर बन कर असमर्थ हैं। फिर भी ये पांच साल में लोगों के इच्छा से चेंज हो जाते हैं।
पर, लोकतंत्र का शेष तीनों अंग ब्यूरोक्रेसी, ज्यूडिशियरी एवं मीडिया मेम्बर्स वही रह जाते हैं।
यानि, वोट के द्वारा लोकतंत्र का पाँच साल में सिर्फ पोलिटिकल स्ट्रक्चर बदलता है, शेष सभी अंग मेंबर्स वही रह जाते हैं।
भारतीय रूलिंग प्रणाली में लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ कॉरपोरेट व्यवस्था, सामाजिक सांस्कृतिक एवं धार्मिक व्यवस्था भी है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था से ज्यादा मजबूत है।
रूरल एरिया में तो सांस्कृतिक व्यवस्था हीं सिर्फ नजर आती है, लोकतांत्रिक व्यवस्था तो बिल्कुल नजर नहीं आती।
इनका दैनिक से लेकर सलाना कार्य हीं सांस्कृतिक धार्मिक व्यवस्था द्वारा गवर्न होती है। इस व्यवस्था का प्राइम मिनिस्टर ब्राहमण होते हैं, जो पाँच सालों में नहीं बल्कि कई जेनेरेशन तक चेंज नहीं होते। इस व्यवस्था में वोट की कोई भूमिका नहीं है। यानि पूरी तरह से ये जातिवादी एवं बंशवादी व्यवस्था है।
इस व्यवस्था से वे पञ्चाङ्ग एवं कई धार्मिक किताबें से निर्णय करते हैं, किसके साथ, किस दिन, क्या खाना है? किस दिन क्या पहनना है, किससे छूत करना है। किस दिन शादी करनी है, किस दिन गृहप्रवेश एवं इसके रिचुअल्स के रॉ मटेरियलस
क्या होगा इत्यादि?
तो फिर भारत थियोलॉजिकल स्टेट है कि डेमोक्रेटिक स्टेट आप खुद डिसाइड कर सकते हैं?
अब डेमोक्रेटिक व्यवस्था के तीन अंगों में ज्यूडिशियरी बिल्कुल हीं जातिवादी एवं बंशवादी व्यवस्था है, जिसे वोट के द्वारा पाँच साल में नहीं बदल सकते, नहीं कई सालों में भी बदल सकते।
मीडिया हाउस के साथ कॉरपोरेट भी पूरी तरह से जातिवादी एवं बंशवादी व्यवस्था है, जिसे कई सालों में भी नहीं बदल सकते, नहीं जनता मीडिया द्वारा अनर्गल चीजें थोपने के बावजूद अंकुश लगा सकती है।
ब्यूरोक्रेटिक व्यवस्था जिसे मेरिटोक्रेसी बनाया गया है, यह 60 से 65 की उम्र तक कायम रहता है, इसमें भी जबरदस्त जातिवाद देख सकते हैं। इस व्यवस्था में भी खास जाति का वर्चस्व है, जबकि मेजोरिटी हाशिये वर्ग के लोग का प्रतिनिधित्व बहुत ही कम है। ये भी जनता के प्रति जबाबदेह नहीं है। क्योंकि जनता के वोट से इसका कोई तालुकात नहीं है।
यानि, कुल मिलाकर भारत के सिर्फ पोलिटिकल स्ट्रक्चर ही थोड़ा ट्रांसपेरेंट, रिप्रिजेंटेटिव एवं डेमोक्रेटिक है। निस्संदेह भारतीय व्यवस्था का मुश्किल से 10% पोलिटिकल हिसा को छोड़ अधिकांशतः थियोलॉजिकल एवं ग़ैरवैज्ञानिक है।
अगर भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है, तो सांस्कृतिक -धार्मिक ग़ैरवैज्ञानिक व्यवस्था को शून्य कर लोकतांत्रिक व्यवस्था को रिप्रिजेंटेटिव बनाना होगा।
यानि, सिर्फ लेजिस्लेचर मेम्बर्स को ही नहीं, बल्कि खास योग्यता फिक्स कर जज, कॉरपोरेट मालिक, मीडिया प्रमुख एवं ब्यूरोक्रेट को भी समय निर्धारित कर वोट द्वारा रिप्रिजेंटेटिव बना ही बदलाव कर सकते हैं।
भारत को वास्तविक डेमोक्रेटिक एवं विकसित राष्ट्र सभी वर्ग के नागरिकों को मेनस्ट्रीम में लाकर हीं बना सकते हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो भारत सिर्फ कहने को तो डेमोक्रेटिक स्टेट रहेगा, पर वास्तव में ये थियोलॉजिकल स्टेट ही बना रहेगा।
शुद्र चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाये जाने के कारण ब्राह्मणों ने इसका विरोध किया था..
ReplyDeletehttps://www.youtube.com/watch?v=6b1voh8sTHU&feature=youtu.be
भारत आजाद नही हुआ है क्या यह सच है? दिखिये जबरदस्त भाषण एक बार अवश्य देखिये
ReplyDeletehttps://www.youtube.com/watch?v=Yb071a76d_g&feature=youtu.be
Kurmi suryavanshi kshatriya hai .
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