Sunday, 25 February 2018

भष्टाचार पर एक लेख

दुनिया के भ्रष्टाचार मुक्त देशों में शीर्ष पर गिने जाने वाले न्यूजीलैंण्ड के एक लेखक ब्रायन ने
भारत में व्यापक रूप से फैंलें भष्टाचार पर एक लेख लिखा है। ये लेख सोशल मीडि़या पर काफी वायरल हो रहा है। लेख की लोकप्रियता और प्रभाव को देखते हुए विनोद कुमार जी ने इसे हिन्दी भाषीय पाठ़कों के लिए अनुवादित किया है। –

  *न्यूजीलैंड से एक बेहद तल्ख आर्टिकिल।*


*भारतीय लोग  होब्स विचारधारा वाले है (सिर्फ अनियंत्रित असभ्य स्वार्थ की संस्कृति वाले)*

भारत मे भ्रष्टाचार का एक कल्चरल पहलू है। भारतीय भ्रष्टाचार मे बिलकुल असहज नही होते, भ्रष्टाचार यहाँ बेहद व्यापक है। भारतीय भ्रष्ट व्यक्ति का विरोध करने के बजाय उसे सहन करते है। कोई भी नस्ल इतनी जन्मजात भ्रष्ट नही होती

*ये जानने के लिये कि भारतीय इतने भ्रष्ट क्यो होते हैं उनके जीवनपद्धति और परम्पराये देखिये।*

भारत मे धर्म लेनेदेन वाले व्यवसाय जैसा है। भारतीय लोग भगवान को भी पैसा देते हैं इस उम्मीद मे कि वो बदले मे दूसरे के तुलना मे इन्हे वरीयता देकर फल देंगे। ये तर्क इस बात को दिमाग मे बिठाते हैं कि अयोग्य लोग को इच्छित चीज पाने के लिये कुछ देना पडता है। मंदिर चहारदीवारी के बाहर हम इसी लेनदेन को भ्रष्टाचार कहते हैं। धनी भारतीय कैश के बजाय स्वर्ण और अन्य आभूषण आदि देता है। वो अपने गिफ्ट गरीब को नही देता, भगवान को देता है। वो सोचता है कि किसी जरूरतमंद को देने से धन बरबाद होता है।

*जून 2009 मे द हिंदू ने कर्नाटक मंत्री जी जनार्दन रेड्डी द्वारा स्वर्ण और हीरो के 45 करोड मूल्य के आभूषण तिरुपति को चढाने की खबर छापी थी। भारत के मंदिर इतना ज्यादा धन प्राप्त कर लेते हैं कि वो ये भी नही जानते कि इसका करे क्या। अरबो की सम्पत्ति मंदिरो मे व्यर्थ पडी है।*


*जब यूरोपियन इंडिया आये तो उन्होने यहाँ स्कूल बनवाये। जब भारतीय यूरोप और अमेरिका जाते हैं तो वो वहाँ मंदिर बनाते हैं।*

*भारतीयो को लगता है कि अगर भगवान कुछ देने के लिये धन चाहते हैं तो फिर वही काम करने मे कुछ कुछ गलत नही है। इसीलिये भारतीय इतनी आसानी से भ्रष्ट बन जाते हैं।*


*भारतीय कल्चर इसीलिये इस तरह के व्यवहार को आसानी से आत्मसात कर लेती है, क्योंकि*

1 नैतिक तौर पर इसमे कोई नैतिक दाग नही आता। एक अति भ्रष्ट नेता जयललिता दुबारा सत्ता मे आ जाती है, जो आप पश्चिमी देशो मे सोच भी नही सकते ।

2 भारतीयो की भ्रष्टाचार के प्रति संशयात्मक स्थिति इतिहास मे स्पष्ट है। भारतीय इतिहास बताता है कि कई शहर और राजधानियो को रक्षको को गेट खोलने के लिये और कमांडरो को सरेंडर करने के लिये घूस देकर जीता गया। ये सिर्फ भारत मे है

भारतीयो के भ्रष्ट चरित्र का परिणाम है कि भारतीय उपमहाद्वीप मे बेहद सीमित युद्ध हुये। ये चकित करने वाला है कि भारतीयो ने प्राचीन यूनान और माडर्न यूरोप की तुलना मे कितने कम युद्ध लडे। नादिरशाह का तुर्को से युद्ध तो बेहद तीव्र और अंतिम सांस तक लडा गया था। भारत मे तो युद्ध की जरूरत ही नही थी, घूस देना ही ही सेना को रास्ते से हटाने के लिये काफी था।  कोई भी आक्रमणकारी जो पैसे खर्च करना चाहे भारतीय राजा को, चाहे उसके सेना मे लाखो सैनिक हो, हटा सकता था।

प्लासी के युद्ध मे भी भारतीय सैनिको ने मुश्किल से कोई मुकाबला किया। क्लाइव ने मीर जाफर को पैसे दिये और पूरी बंगाल सेना 3000 मे सिमट गई। भारतीय किलो को जीतने मे हमेशा पैसो के लेनदेन का प्रयोग हुआ। गोलकुंडा का किला 1687 मे पीछे का गुप्त द्वार खुलवाकर जीता गया। मुगलो ने मराठो और राजपूतो को मूलतः रिश्वत से जीता श्रीनगर के राजा ने दारा के पुत्र सुलेमान को औरंगजेब को पैसे के बदले सौंप दिया। ऐसे कई केसेज हैं जहाँ भारतीयो ने सिर्फ रिश्वत के लिये बडे पैमाने पर गद्दारी की।

सवाल है कि भारतीयो मे सौदेबाजी का ऐसा कल्चर क्यो है जबकि जहाँ तमाम सभ्य देशो मे ये  सौदेबाजी का कल्चर नही है

3- *भारतीय इस सिद्धांत मे विश्वास नही करते कि यदि वो सब नैतिक रूप से व्यवहार करेंगे तो सभी तरक्की करेंगे क्योंकि उनका “विश्वास/धर्म” ये शिक्षा नही देता।  उनका कास्ट सिस्टम उन्हे बांटता है। वो ये हरगिज नही मानते कि हर इंसान समान है। इसकी वजह से वो आपस मे बंटे और दूसरे धर्मो मे भी गये। कई हिंदुओ ने अपना अलग धर्म चलाया जैसे सिख, जैन बुद्ध, और कई लोग इसाई और इस्लाम अपनाये। परिणामतः भारतीय एक दूसरे पर विश्वास नही करते।  भारत मे कोई भारतीय नही है, वो हिंदू ईसाई मुस्लिम आदि हैं। भारतीय भूल चुके हैं कि 1400 साल पहले वो एक ही धर्म के थे। इस बंटवारे ने एक बीमार कल्चर को जन्म दिया। ये असमानता एक भ्रष्ट समाज मे परिणित हुई, जिसमे हर भारतीय दूसरे भारतीय के विरुद्ध है, सिवाय भगवान के जो उनके विश्वास मे खुद रिश्वतखोर है।*

लेखक-ब्रायन,
गाडजोन न्यूजीलैंड


 *आज तो इनका चश्मा उतारकर रहूंगा कसम से इनकी भक्ति का नशा उतर जाएगा*🔥
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केंद्र सरकार की संस्था CVC के सर्वे की रिपोर्ट में आया है कि केंद्र सरकार में 67% भ्रष्टाचार बढ़ा है और दिल्ली सरकार में 81% भ्रष्टाचार कम हुआ है । उसके बाद भी भक्त एक आधे अधूरे राज्य के मुख्यमंत्री को कोसते रहते है मुझे समझ नही आता क्यो❓कभी खांसी , कभी शर्ट कभी मफलर कभी चप्पल पर ही बात करेंगे.......

चलो दूसरी बात हम मध्यप्रदेश के संदर्भ में करते है....क्या आपको पता है मध्यप्रदेश बिजली का उत्पादन करता है और अपनी अतिरिक्त बिजली दूसरे राज्यो को बेचता है ....दिल्ली एक ऐसा राज्य है जो बिजली उत्पादन नही करता बल्कि दूसरे राज्यो से बिजली खरीदता है...उसी तारतम्य में दिल्ली मध्यप्रदेश से भी बिजली खरीदता है अब बताईये एक राज्य बेच रहा है और दूसरा राज्य बिजली खरीद रहा है तो प्रश्न ये खड़ा होता है कि किस राज्य के नागरिकों को सस्ती दर पर बिजली मिल रही होगी सोचिए और बताईये❓
*नही पता*❗
चलो हम बताये देते है मध्यप्रदेश जो खुद बिजली बनाता है और दूसरे राज्यो को भी बेचता है वो अपने मध्यप्रदेश के नागरिकों से 200 यूनिट का बिल 1400/- तक बसूलता है, जबकि दूसरी तरफ दिल्ली राज्य जो खुद बिजली नही बनाता वो मध्यप्रदेश से खरीदता है वो अपने दिल्ली राज्य के नागरिकों को 200 यूनिट केवल 400/- से भी दाम में उपलब्ध कराता है🎯
कुछ समझ मे आया ❓
 कैसे आएगा चश्मा जो चढ़ा है पहले चश्मा उतारिये और समझने की कोशिश कीजिये और डेटा आंकड़े जुटाइये तो पता चलेगा भारत के किसी भी राज्य में इतनी सस्ती बिजली कही नही है जितनी दिल्ली सरकार के द्वारा अपने उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराई जा रही है यही तो मूलभूत सुविधाएं होती है जो राज्यो को अपने नागरिकों को कम से कम दाम पर देनी चाहिए।।

याद रखना बिजली बनाकर बेचने वाले राज्य और खरीदने वाले राज्यो की नीयत में अंतर स्पस्ट दिखेगा पर कब ❓ जब चश्मा उतारोगे तब  ||


सनकतंत्र :-

भारतीय स्टेट बैंक की पूर्व चेयरपर्सन अरुंधती भट्टाचार्य ने सेवानिवृत्ति के बाद "नोटबंदी" के क्रियांवन के तरीके की आलोचना की है , यद्दपि वह पद पर रहते हुए इसकी प्रशंसा में कसीदे पढ़ रहीं थीं , रिज़र्व बैंक आफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी नोटबंदी के फैसले की तिव्र आलोचना कर रहे हैं।

इतने महत्वपुर्ण पदों पर रहे लोग यदि पद पर रहते हुए अपने विचार और राय से सरकार को सही दिशा और सुझाव न देकर सेवानिवृत्ति के बाद उस निर्णय की आलोचना करें जिसके क्रियांवन में वह खुद भागीदार रहे हैं तो उनकी मजबूरी समझी जा सकती है।

दरअसल मौजूदा सरकार सिस्टम में मौजूद विशेषज्ञों के फीडबैक से नहीं चलती बल्कि सर्वोच्च शक्तिशाली पुरूष की सनक से चलती है जिसे बिना सोचे समझे हर काम को "जल्दीबाजी" में करने की आदत है और यही आदत उसकी सनक को विध्वंसकारी बनाता है और उसका हर निर्णय उसके सनक और जल्दीबाजी का प्रतिबिंब होता है।

अपनी सनक को तुरंत पूरा करने के लिए देश का वह महा शक्तिशाली पदाधिकारी सभी महत्वपुर्ण पदों पर 14 साल में अपने चुने "यस बाॅस" चरित्र के अधिकारियों को बैठाता जा रहा है जिससे उसकी सनक पूरी करने में कोई विलंब ना हो।

रिज़र्व बैंक आफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन इस समय भारत ही नहीं दुनिया के सबसे योग्य अर्थशास्त्रियों में से एक हैं , इनको रिज़र्व बैंक आफ इंडिया के गवर्नर पद पर दूसरा कार्यकाल मिलना ही चाहिए था परन्तु रघुराम राजन "यस बाॅस" चरित्र वाले नहीं थे इसलिए एक अन्जान और कम योग्यता वाले अंबानी के एक पूर्व नौकर को रिज़र्व बैंक आफ इंडिया का गवर्नर बना दिया गया।

और रिज़र्व बैंक आफ इंडिया ही क्युँ ? हर पद पर चुन चुन कर "यस बाॅस" प्रवृत्ती वाले लोगों को बैठाया गया और बैठाया जा रहा है।

मुख्य चुनाव आयुक्त श्री जोती का ताजा उदाहरण सबके सामने है , गुजरात में तत्कालीन मुख्यमंत्री के तमाम विभागों का सचिव रहे इस व्यक्ति में इतना साहस नहीं कि गुजरात और हिमांचल प्रदेश के चुनाव की घोषणा वह एक साथ कर दे क्युँकि गुजरात के उनके आका के दो कार्यक्रम प्रस्तावित थे।

न्यायपालिका की स्थिति सबको पता ही है , एक मुख्य न्यायधीश जस्टिस ठाकुर का प्रधानमंत्री का सर्वाजनिक रूप से रोना न्यायपालिका की वास्तविक स्थिति को दर्शाता है।

पिछली सरकारों के समय में चुन चुन गाहे बगाहे कर उन पर आक्रमण करती अदालतें अब खामोश हो गयी हैं , बोलेंगी तो न्याय जी की पगार रोक ली जाएगी।

मीडिया के बारे में क्या कहने ? भाजपा शासित छत्तीसगढ़ की पुलिस गाज़ियाबाद से एक पत्रकार विनोद वर्मा को उठा ले जाती है और मीडिया अपनी बिरादरी के इस पत्रकार के साथ हो रहे आत्याचार को ना दिखा कर "बगदादी के प्लान" को दिखाता रहता है।

पिछले लगभग 4 सालों में देश के सभी संवैधानिक और महत्वपुर्ण पदों और सारी व्यवस्थाओं को बंधक और गुलाम बनाकर उनकी आवाज़ दबा दी गयी है।

देश में सिर्फ़ एक ही आवाज़ है जो रेडियो पर "मन की बात" से लेकर महीने में 50-50 जगह भाषणबाजी में सुनाई देती है और यहाँ तक कि सरकार के भी सारे महत्वपुर्ण मंत्री गूँगे हो चुके हैं।

देश का सारा सिस्टम अपने शोध और समझ से नहीं बल्कि एक व्यक्ति के सनक से चल रहा है।

नरेन्दूद्दीन तुगलक , इस व्यक्ति के सनक के आगे राजनाथ सिंह और सुषमा स्वराज जैसी तेज़ तर्रार आवाज़ें खामोश हो गयीं हैं।


दरअसल , देश में लोकतन्त्र नहीं "सनकतंत्र" है।

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