🌄 शूद्र एकता मंच 🌄
आप सभी शूद्र भाइयों से अनुरोध है और जैसा कि नाम से ही काम की अनुभूति हो जाती है , इस उद्देश्य प्राप्ती के लिए आप का तन-मन-धन से सहयोग अपेक्छित है और तहे दिल से स्वागत भी है। इस सामाजिक मंच का मुख्य उद्देश्य हजारो साल से विना किसी कारण,शूद्र समाज के दिलो मे हीन भावना ब्राह्मणो द्वारा भर दी गइ है और दुर्भाग्य से शूद्रो ने उसे भाज्ञ, भगवान् और नीयत समझकर अज्ञानता के कारण स्वीकार भी कर लिया। इस थोपी गई नीचता को निकालकर एक गौरवशाली समाज बनाकर खोया हुआ सम्मान और अधिकार प्राप्त करना है। आप अपने अंतहकरण से विचार करे कि, आप की आज की स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है।
हिन्दू-धर्म, चार-वर्ण और उनके कर्म
किसी भी मानव, जाति, उपजाति, वर्ग या वर्ण का नाम महान या आदर के साथ तभी लिया जाता है, जब यह देखा जाता है कि उसने देश मे या विश्व मे समाज के कल्याण, उत्थान या प्रगति के लिए कितना योगदान किया है। यहां हम हिन्दू समाज के चारो वर्णो की समीक्छा करेगें और देखेंगे कि ब्राह्मण वर्ण ईश्वर से भी ऊंचा, महान, पुज्यनीय स्थान हिन्दू समाज में कैसे प्राप्त कर लिया?
🔔 ब्राह्मण 🔔
ब्रह्मा के मुख से पैदा होने वाले; ब्रह्म को जानने वाले महान;बुद्धिमान; ईश्वर से भी ऊँचा दर्जा पाने वाले ब्राह्मण की बुद्धि पर आज तरस आता है की हजारो वर्ष से लेकर आज तक अस्तित्व की सभी वस्तुएं इस विश्व में सुई से लेकर अंतरिक्ष तक की खोज पश्चिमी सभ्यता के विदेशियों द्वारा की गई है। हजारो वर्षो से लेकर आज तक इस वर्ण ने किसी भी प्रकार से बुद्धि के रूप में भारत भूमि को कोई योगदान नहीं दिया है। कर्म करना तो ब्राह्मण के लिए अधर्म व् पाप माना जाता है। यहाँ तक की खुद की रक्षा भी चाहते है की दूसरा कोई करे। क्यों नही काश्मीर मे हथियार उठा लिए, कायर, बुझदिल और डरपोक की तरह क्यो भागे और आश्चर्य है कि उनका श्वागत भी हुआ। भारत देश और भारतवासियों का नुकसान और अपमान इस ब्राह्मण वर्ग ने जितना किया है; उसकी क्षति पूर्ति करना एक सपना है। इनका योगदान कुबुद्धि के रूप में जरुर है। कोई भी प्राचीन कहानी पढ़िए उसमे शुरू में ही लिखा होगा एक गरीब ब्राह्मण था-;----आदि। क्या कोई पिछड़ी जाति; दलित; शुद्र गरीब नहीं था? उसकी कहानी क्यों नहीं मिलती है?कृष्ण और सुदामा की कहानी भी मनगढ़ंत षड़यंत्रकारी यादवो को मुर्ख बनाकर जनमानस को लूटने के लिए रची गयी है।क्या श्रीकृष्ण की दोस्ती किसी यादव पिछड़ी जाति दलित गरीब या असहाय इन्सान से नहीं थी? सिर्फ ब्राह्मण से ही थी वह भी स्वार्थ से कुछ लेने के लिए; कुछ देने के लिए नहीं। भारत की 85% जनमानस को अंधविश्वास और नकली भगवान का मंत्र पढ़ाकर छलकपट एवं धोखे से उन्हें मुर्ख बनाकर उनके तन मन धन को लूटकर बचा हुआ सभी दूध दही घी मक्खन नदियों पहाड़ो और आग के हवाले करके उन्हें कंगाल बनाने में काफी योगदान दिया है। फिर भी आज हिन्दू समाज में ऊँचा स्थान पाकर पूज्यमान बना हुआ है।
| 🔫क्षत्रिय 🔫 ।
हिन्दू समाज में क्षत्रिय वर्ण को देश की रक्षा करने का कार्य सौपा गया था। क्या किया; सामने है; भारत का इतिहास पढ़ते हुए किसी भी आत्मसम्मानी भारतवासी का शिर शर्म से झुक जाता है। मुट्ठी भर विदेशी हमलावर आये; इन्ही की जमीन पर घर में सभी क्षत्रिय राजाओ सेनापतियो और सैनिको को मारा पिटा बेइज्जत किया गुलाम बनाया तथा उन्ही की बहु बेटिओ से शादी रचाई। हिन्दू समाज के सभी क्षत्रिय राजा महाराजा मारे पिटे और घर से खदेड़े गए है। फिर भी उनका गुणगान और बहादुरी के लिए क्षत्रियो का इतिहास भरा पड़ा है। दुसरो की जमीन पर बहादुरी दिखाकर एक इंच भी कब्ज़ा करना तो दूर की बात रही अपने ही देश में सब कुछ लुटाकर हिन्दू समाज में इज्जत का स्थान प्राप्त किया है।
👿 वैश्य 👿
भारतदेश एवं भारतवासियों के लिए वैश्यों का भी योगदान स्मरणीय है। इन्ही की देन है की एक अंग्रेज कंपनी भारत में ब्यापार करने आई और पुरे देश पर कब्ज़ा कर लिया। सब कुछ त्यागकर अपना पेट और धन बढ़ाना ही इनका मुख्य धर्म होता है। इनके योगदान का उदाहरण आज भी है की हिमाचल प्रदेश में जो किसान सेब पैदा करता है उसे 10-20 रूपये किलो मिलता है और जब वैश्य अपने पवित्र हाथ का स्पर्श कर देता है तो वही सेब मुंबई में 100 रुपया किलो हो जाता है।
👍🙏शुद्र🙏👍
इस पृथ्वी के भारत भूमि पर हजारो सालो से आज तक चारो दिशाओ में जल थल में उठाकर देखिये जो भी अस्तित्व में है वह शुद्रो के कर्मो का फल है। सड़क, रेल ,नदी ,पहाड़ ,जंगल ,खेत - खलिहान ,मकान -दुकान मंदिर- मस्जिद, नदी -नाले ,बिजली, उद्योग -धंधे ,कल -कारखाने तथा भारत देश की हरी-भरी गोद भी शूद्रो के कारण ही लहराती है। शूद्र ही भारत-देश की हृदयरूपी धड़कन है। शुद्र जिस दिन धडकना (काम करना) बंद कर देगा ,सोचिये उस दिन क्या स्थिति होगी? हृदय काम करना बंद कर देता है तो शरीर का अंत हो जाता है। कर्म ही नही बुद्धि- विवेक त्याग व् बलिदान में भी शुद्रो के योगदान का इतिहास भरा पड़ा है। फिर भी इस देश का दुर्भाग्य है की भारत-देश का ह्रदय ही नीच दुष्ट और अछूत के रूप में जाना पहचाना जाता है। इस भारत देश के असली सपूत शुद्र है जो यहाँ के मूलनिवासी है। उन्ही को इसे अपना कहने का अधिकार है। दुसरो ने तो इसे अपमानित किया है। इसलिए इस पर रहने राज्य करने और इसकी सेवा का अधिकार केवल शुद्रो को ही होना चाहिए।
जरा गौर करे!
****************************
शुद्र देश व् समाज का दाता है।
शुद्र सत्यनिष्ट व कर्तव्यं निष्ट होता है।
शुद्र ढोंगी पाखंडी नहीं होता है।
शुद्र भगवान की दलाली नहीं करता है।
शुद्र सभी कार्य करने वाले मूलनिवासी है।
शुद्र भारत देश की ह्रदय रूपी धड़कन है।
✊गर्व से कहो हम शुद्र है।✊
****************************
क्या यह सत्य नहीं है, ? बाबा साहेब अम्बेडकर जी ने हिन्दू धर्म मे शुद्धता लाने के लिए जीवन भर संघर्ष किए , यह सभी को पता है। कांशी राम जी ने भी 15-85का नारा देते हुए , शूद्र समाज (दूषितहोने के कारण) को बहुजन समाज बनाया, लेकिन आज बहुजन समाज , सर्व- जन समाज होने के कारण दूषित हो गया है। बिना सान्षिकृतिक और सामाजिक परिवर्तन के , राजिनीतिक परिवर्तन स्थाई नही हो सकता है।
✊ गर्व से कहो हम शूद्र हैं✊
विचार मे क्यो आया ?
मैं सुनते आ रहा था और अनुभव भी किया हूं कि शूद्र समाज के लोग जब बड़े ओहदे या पद पर पहुच जाते है तो, अपने समाज से दूरी बनाए रखते हुए , अपनी पहचान भी छिपाने की कोशिस करते है , जो आज भी जारी है। ५०-६० साल पहले जीविका चलाने के लिए कुछ परिस्थितियों में सही भी था। बाबा साहब अम्बेडकर ने भी अपने समाज को उद्वेलित करते हुए कहा था कि जिस समाज मे, जिस गांव में, जिस जिले मे, तुम्हे मान-सम्मान नही मिलता है, वहां से बाहर निकलो और शहरों की तरह कूच करो। पढ़ो-पढ़ाओ और इसके लिए मान-सम्मान से, मजदूरी, नौकरी, ब्यवसाय हासिल करो। मंत्र दिया:- शिक्छित करो, संघटित रहो, संघर्ष करो।
इस मंन्त्र का परिणाम है कि,आज महाराष्ट्रा में 85% शूद्र समाज से सिर्फ 4% महार, बाबा साहब की बात मानकर , हिन्दू धर्म छोड़कर, बौद्ध धर्म अपना लिया और दूसरे लोग मनुवाद के खड़यन्त्र का शिकार हो गए। आज गर्व से कह रहा हूं कि , महाराष्ट्रा मे सिर्फ 4%महार (बौद्ध), नौकरी मे, प्रशासनिक व्यवस्था मे, शिक्छा मे, विदेश मे, सामाजिक, आर्थिक, सान्षिकृतिक और राजीनितिक सोच में ब्राह्मण के बाद दूसरे स्थान पर वर्चश्व बनाए हुए है। आज शूद्र समाज अपने आप को ठगा और छला हुआ महशूस कर रहा है। स्थिति आज भी जैसी की तैसी है।
दिनांक -28-01-2015 को मैने अपने एक एस् सी, सहकर्मी मित्र जो 1989 से BAMCEF मे सहयोगी भी रहे है, D. G. M. ( MTNL) पोष्ट पर कार्यरत है । अपने ही कम्प्लेक्श मे फ्लैट बिकत दिलवा दिया था, गृह-प्रवेश मे गया, चकित रह गया। द्वार का डेकोरेशन (गणपति मंदिर के साथ) ऐसा लगे, जैसे किसी ब्राह्मण का घर है और अन्दर काफी खर्च करके खान-पान के साथ " ब्राह्मणो द्वारा सत्यनारायण "की पूजा कथा। मेरी गुप्त प्रतिकृया को समझकर , अकेले मे कहा , मजबूरी मे पिता जी के ----.। प्रसाद तो नही लिया , लेकिन खाना इसलिए खाया कि कहीं परिवार हमें ही अन्यथा गलत न समझ बैठे।
मै उस रात सो नही पाया, ऐसा क्यो?BAMCEF मिशनरी, क्या मजबूरी है? उसके पास पैसा, दौलत, पद, होहदा , माान-सन्मान सभी है लेकिन डर किस बात की, अपनेआाप से तर्क पर तर्क और मंथन करते -करते बिना नींद के रात बीत गई।
विष्कर्ष- मेरे दोष्त का कोई दोष नही है, व्यवस्था का दोष है। शूद्र नाम को ही, बिना किसी कारण , सैकड़ो सालों ,से , वर्ण व्यवस्था ने इतना दूषित कर दिया है कि , इसे समझने और जानने की अब मेरे लिए पहली प्राथमिकता बन गई। मै जहां भी जाता, ब्राह्मण से भी तथा छत्रिय, वैश्य, पिछड़ी जातियां, दलितो, यहां तक कि मुसलमानो,इसाइयो और बुद्धिष्टो से भी सवाल -जबाब, तर्क-वितर्क करता रहा। तथ्य यह भी सामने आया कि धर्म परिवर्तन करने के बाद भी इस बिमारी से पूरी तरह छुटकारा नही मिल पा रहा है ।
निष्कर्ष - सिर्फ दो-तीन बेवकूफी भरे कारण सामने आया।
पहला- हिन्दू धर्म के वेदो, पुराणो और स्मृतियो मे शूद्र को नींच, दुष्ट, पापी आदि गालियो से सम्बोधित कर तथा उसे भाग्य और भगवान् से मान्यता बताकर, शूद्रो के दिलो -दिमाग मे ऐसी आस्था भर दी गई कि वह बेचारा खुद भी इस घृणित बुराई को बिरोध के बजाय, स्वीकार कर लिया ।
दूसरा - मरे हुए पशुओ के मांस खाते थे!
तर्क-वितर्क- अरे भाइ ! उस समय तो ब्राह्मण गाय,घोड़ो को जिन्दा काटकर खाते थे।
दोनो मे बड़ा अपराधी और नींच-दुष्ट कौन है? अहिन्सावादी मरे हुए पशुओं के मांस खाने वाला या हिन्सावादी ब्राह्मण जिन्दा गायो को काटकर खाने वाला ।
तीसरा- छोटे -छोटे काम और गंदगी साफ करते थे।
निष्कर्ष- क्या काम करना नीचता और अपराध है, या ढोंग और पाखंड करना ? गन्दगी करने वाला नींच-दुष्ट या महान है कि उसे साफ करने वाला!
तर्क-वितर्क मे यह भी सामने आया कि, शूद्र समाज सभी तरह के कर्म करके देश और समाज को हजारो साल से सबकुछ दिया है और ब्राह्मण बिना कर्म किए बेवकूफ बनाकर, देश व शूद्र समाज से सिर्फ लिया है।
तो महान कौन है, लेने वाला या देने वाला!
सही जबाब और असलियत मालूम होने पर सभी के सर शर्म से झुक जाते थे। यहां तक कि ब्राह्मणो के भी ।
मुझे उत्साह और मनोबल मिला। अच्छे कामो से ही किसी के अच्छे नाम होते है । शूद्र नाम पर लगे कलंक को धोने का संकल्प लिया । अपने कुछ बामसेफ के साथियो के साथ बिचार -विमर्श किया । परिणाम के रूप मे एक "मिशन"
आप सभी शूद्र भाइयों से अनुरोध है और जैसा कि नाम से ही काम की अनुभूति हो जाती है , इस उद्देश्य प्राप्ती के लिए आप का तन-मन-धन से सहयोग अपेक्छित है और तहे दिल से स्वागत भी है। इस सामाजिक मंच का मुख्य उद्देश्य हजारो साल से विना किसी कारण,शूद्र समाज के दिलो मे हीन भावना ब्राह्मणो द्वारा भर दी गइ है और दुर्भाग्य से शूद्रो ने उसे भाज्ञ, भगवान् और नीयत समझकर अज्ञानता के कारण स्वीकार भी कर लिया। इस थोपी गई नीचता को निकालकर एक गौरवशाली समाज बनाकर खोया हुआ सम्मान और अधिकार प्राप्त करना है। आप अपने अंतहकरण से विचार करे कि, आप की आज की स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है।
हिन्दू-धर्म, चार-वर्ण और उनके कर्म
किसी भी मानव, जाति, उपजाति, वर्ग या वर्ण का नाम महान या आदर के साथ तभी लिया जाता है, जब यह देखा जाता है कि उसने देश मे या विश्व मे समाज के कल्याण, उत्थान या प्रगति के लिए कितना योगदान किया है। यहां हम हिन्दू समाज के चारो वर्णो की समीक्छा करेगें और देखेंगे कि ब्राह्मण वर्ण ईश्वर से भी ऊंचा, महान, पुज्यनीय स्थान हिन्दू समाज में कैसे प्राप्त कर लिया?
🔔 ब्राह्मण 🔔
ब्रह्मा के मुख से पैदा होने वाले; ब्रह्म को जानने वाले महान;बुद्धिमान; ईश्वर से भी ऊँचा दर्जा पाने वाले ब्राह्मण की बुद्धि पर आज तरस आता है की हजारो वर्ष से लेकर आज तक अस्तित्व की सभी वस्तुएं इस विश्व में सुई से लेकर अंतरिक्ष तक की खोज पश्चिमी सभ्यता के विदेशियों द्वारा की गई है। हजारो वर्षो से लेकर आज तक इस वर्ण ने किसी भी प्रकार से बुद्धि के रूप में भारत भूमि को कोई योगदान नहीं दिया है। कर्म करना तो ब्राह्मण के लिए अधर्म व् पाप माना जाता है। यहाँ तक की खुद की रक्षा भी चाहते है की दूसरा कोई करे। क्यों नही काश्मीर मे हथियार उठा लिए, कायर, बुझदिल और डरपोक की तरह क्यो भागे और आश्चर्य है कि उनका श्वागत भी हुआ। भारत देश और भारतवासियों का नुकसान और अपमान इस ब्राह्मण वर्ग ने जितना किया है; उसकी क्षति पूर्ति करना एक सपना है। इनका योगदान कुबुद्धि के रूप में जरुर है। कोई भी प्राचीन कहानी पढ़िए उसमे शुरू में ही लिखा होगा एक गरीब ब्राह्मण था-;----आदि। क्या कोई पिछड़ी जाति; दलित; शुद्र गरीब नहीं था? उसकी कहानी क्यों नहीं मिलती है?कृष्ण और सुदामा की कहानी भी मनगढ़ंत षड़यंत्रकारी यादवो को मुर्ख बनाकर जनमानस को लूटने के लिए रची गयी है।क्या श्रीकृष्ण की दोस्ती किसी यादव पिछड़ी जाति दलित गरीब या असहाय इन्सान से नहीं थी? सिर्फ ब्राह्मण से ही थी वह भी स्वार्थ से कुछ लेने के लिए; कुछ देने के लिए नहीं। भारत की 85% जनमानस को अंधविश्वास और नकली भगवान का मंत्र पढ़ाकर छलकपट एवं धोखे से उन्हें मुर्ख बनाकर उनके तन मन धन को लूटकर बचा हुआ सभी दूध दही घी मक्खन नदियों पहाड़ो और आग के हवाले करके उन्हें कंगाल बनाने में काफी योगदान दिया है। फिर भी आज हिन्दू समाज में ऊँचा स्थान पाकर पूज्यमान बना हुआ है।
| 🔫क्षत्रिय 🔫 ।
हिन्दू समाज में क्षत्रिय वर्ण को देश की रक्षा करने का कार्य सौपा गया था। क्या किया; सामने है; भारत का इतिहास पढ़ते हुए किसी भी आत्मसम्मानी भारतवासी का शिर शर्म से झुक जाता है। मुट्ठी भर विदेशी हमलावर आये; इन्ही की जमीन पर घर में सभी क्षत्रिय राजाओ सेनापतियो और सैनिको को मारा पिटा बेइज्जत किया गुलाम बनाया तथा उन्ही की बहु बेटिओ से शादी रचाई। हिन्दू समाज के सभी क्षत्रिय राजा महाराजा मारे पिटे और घर से खदेड़े गए है। फिर भी उनका गुणगान और बहादुरी के लिए क्षत्रियो का इतिहास भरा पड़ा है। दुसरो की जमीन पर बहादुरी दिखाकर एक इंच भी कब्ज़ा करना तो दूर की बात रही अपने ही देश में सब कुछ लुटाकर हिन्दू समाज में इज्जत का स्थान प्राप्त किया है।
👿 वैश्य 👿
भारतदेश एवं भारतवासियों के लिए वैश्यों का भी योगदान स्मरणीय है। इन्ही की देन है की एक अंग्रेज कंपनी भारत में ब्यापार करने आई और पुरे देश पर कब्ज़ा कर लिया। सब कुछ त्यागकर अपना पेट और धन बढ़ाना ही इनका मुख्य धर्म होता है। इनके योगदान का उदाहरण आज भी है की हिमाचल प्रदेश में जो किसान सेब पैदा करता है उसे 10-20 रूपये किलो मिलता है और जब वैश्य अपने पवित्र हाथ का स्पर्श कर देता है तो वही सेब मुंबई में 100 रुपया किलो हो जाता है।
👍🙏शुद्र🙏👍
इस पृथ्वी के भारत भूमि पर हजारो सालो से आज तक चारो दिशाओ में जल थल में उठाकर देखिये जो भी अस्तित्व में है वह शुद्रो के कर्मो का फल है। सड़क, रेल ,नदी ,पहाड़ ,जंगल ,खेत - खलिहान ,मकान -दुकान मंदिर- मस्जिद, नदी -नाले ,बिजली, उद्योग -धंधे ,कल -कारखाने तथा भारत देश की हरी-भरी गोद भी शूद्रो के कारण ही लहराती है। शूद्र ही भारत-देश की हृदयरूपी धड़कन है। शुद्र जिस दिन धडकना (काम करना) बंद कर देगा ,सोचिये उस दिन क्या स्थिति होगी? हृदय काम करना बंद कर देता है तो शरीर का अंत हो जाता है। कर्म ही नही बुद्धि- विवेक त्याग व् बलिदान में भी शुद्रो के योगदान का इतिहास भरा पड़ा है। फिर भी इस देश का दुर्भाग्य है की भारत-देश का ह्रदय ही नीच दुष्ट और अछूत के रूप में जाना पहचाना जाता है। इस भारत देश के असली सपूत शुद्र है जो यहाँ के मूलनिवासी है। उन्ही को इसे अपना कहने का अधिकार है। दुसरो ने तो इसे अपमानित किया है। इसलिए इस पर रहने राज्य करने और इसकी सेवा का अधिकार केवल शुद्रो को ही होना चाहिए।
जरा गौर करे!
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शुद्र देश व् समाज का दाता है।
शुद्र सत्यनिष्ट व कर्तव्यं निष्ट होता है।
शुद्र ढोंगी पाखंडी नहीं होता है।
शुद्र भगवान की दलाली नहीं करता है।
शुद्र सभी कार्य करने वाले मूलनिवासी है।
शुद्र भारत देश की ह्रदय रूपी धड़कन है।
✊गर्व से कहो हम शुद्र है।✊
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क्या यह सत्य नहीं है, ? बाबा साहेब अम्बेडकर जी ने हिन्दू धर्म मे शुद्धता लाने के लिए जीवन भर संघर्ष किए , यह सभी को पता है। कांशी राम जी ने भी 15-85का नारा देते हुए , शूद्र समाज (दूषितहोने के कारण) को बहुजन समाज बनाया, लेकिन आज बहुजन समाज , सर्व- जन समाज होने के कारण दूषित हो गया है। बिना सान्षिकृतिक और सामाजिक परिवर्तन के , राजिनीतिक परिवर्तन स्थाई नही हो सकता है।
✊ गर्व से कहो हम शूद्र हैं✊
विचार मे क्यो आया ?
मैं सुनते आ रहा था और अनुभव भी किया हूं कि शूद्र समाज के लोग जब बड़े ओहदे या पद पर पहुच जाते है तो, अपने समाज से दूरी बनाए रखते हुए , अपनी पहचान भी छिपाने की कोशिस करते है , जो आज भी जारी है। ५०-६० साल पहले जीविका चलाने के लिए कुछ परिस्थितियों में सही भी था। बाबा साहब अम्बेडकर ने भी अपने समाज को उद्वेलित करते हुए कहा था कि जिस समाज मे, जिस गांव में, जिस जिले मे, तुम्हे मान-सम्मान नही मिलता है, वहां से बाहर निकलो और शहरों की तरह कूच करो। पढ़ो-पढ़ाओ और इसके लिए मान-सम्मान से, मजदूरी, नौकरी, ब्यवसाय हासिल करो। मंत्र दिया:- शिक्छित करो, संघटित रहो, संघर्ष करो।
इस मंन्त्र का परिणाम है कि,आज महाराष्ट्रा में 85% शूद्र समाज से सिर्फ 4% महार, बाबा साहब की बात मानकर , हिन्दू धर्म छोड़कर, बौद्ध धर्म अपना लिया और दूसरे लोग मनुवाद के खड़यन्त्र का शिकार हो गए। आज गर्व से कह रहा हूं कि , महाराष्ट्रा मे सिर्फ 4%महार (बौद्ध), नौकरी मे, प्रशासनिक व्यवस्था मे, शिक्छा मे, विदेश मे, सामाजिक, आर्थिक, सान्षिकृतिक और राजीनितिक सोच में ब्राह्मण के बाद दूसरे स्थान पर वर्चश्व बनाए हुए है। आज शूद्र समाज अपने आप को ठगा और छला हुआ महशूस कर रहा है। स्थिति आज भी जैसी की तैसी है।
दिनांक -28-01-2015 को मैने अपने एक एस् सी, सहकर्मी मित्र जो 1989 से BAMCEF मे सहयोगी भी रहे है, D. G. M. ( MTNL) पोष्ट पर कार्यरत है । अपने ही कम्प्लेक्श मे फ्लैट बिकत दिलवा दिया था, गृह-प्रवेश मे गया, चकित रह गया। द्वार का डेकोरेशन (गणपति मंदिर के साथ) ऐसा लगे, जैसे किसी ब्राह्मण का घर है और अन्दर काफी खर्च करके खान-पान के साथ " ब्राह्मणो द्वारा सत्यनारायण "की पूजा कथा। मेरी गुप्त प्रतिकृया को समझकर , अकेले मे कहा , मजबूरी मे पिता जी के ----.। प्रसाद तो नही लिया , लेकिन खाना इसलिए खाया कि कहीं परिवार हमें ही अन्यथा गलत न समझ बैठे।
मै उस रात सो नही पाया, ऐसा क्यो?BAMCEF मिशनरी, क्या मजबूरी है? उसके पास पैसा, दौलत, पद, होहदा , माान-सन्मान सभी है लेकिन डर किस बात की, अपनेआाप से तर्क पर तर्क और मंथन करते -करते बिना नींद के रात बीत गई।
विष्कर्ष- मेरे दोष्त का कोई दोष नही है, व्यवस्था का दोष है। शूद्र नाम को ही, बिना किसी कारण , सैकड़ो सालों ,से , वर्ण व्यवस्था ने इतना दूषित कर दिया है कि , इसे समझने और जानने की अब मेरे लिए पहली प्राथमिकता बन गई। मै जहां भी जाता, ब्राह्मण से भी तथा छत्रिय, वैश्य, पिछड़ी जातियां, दलितो, यहां तक कि मुसलमानो,इसाइयो और बुद्धिष्टो से भी सवाल -जबाब, तर्क-वितर्क करता रहा। तथ्य यह भी सामने आया कि धर्म परिवर्तन करने के बाद भी इस बिमारी से पूरी तरह छुटकारा नही मिल पा रहा है ।
निष्कर्ष - सिर्फ दो-तीन बेवकूफी भरे कारण सामने आया।
पहला- हिन्दू धर्म के वेदो, पुराणो और स्मृतियो मे शूद्र को नींच, दुष्ट, पापी आदि गालियो से सम्बोधित कर तथा उसे भाग्य और भगवान् से मान्यता बताकर, शूद्रो के दिलो -दिमाग मे ऐसी आस्था भर दी गई कि वह बेचारा खुद भी इस घृणित बुराई को बिरोध के बजाय, स्वीकार कर लिया ।
दूसरा - मरे हुए पशुओ के मांस खाते थे!
तर्क-वितर्क- अरे भाइ ! उस समय तो ब्राह्मण गाय,घोड़ो को जिन्दा काटकर खाते थे।
दोनो मे बड़ा अपराधी और नींच-दुष्ट कौन है? अहिन्सावादी मरे हुए पशुओं के मांस खाने वाला या हिन्सावादी ब्राह्मण जिन्दा गायो को काटकर खाने वाला ।
तीसरा- छोटे -छोटे काम और गंदगी साफ करते थे।
निष्कर्ष- क्या काम करना नीचता और अपराध है, या ढोंग और पाखंड करना ? गन्दगी करने वाला नींच-दुष्ट या महान है कि उसे साफ करने वाला!
तर्क-वितर्क मे यह भी सामने आया कि, शूद्र समाज सभी तरह के कर्म करके देश और समाज को हजारो साल से सबकुछ दिया है और ब्राह्मण बिना कर्म किए बेवकूफ बनाकर, देश व शूद्र समाज से सिर्फ लिया है।
तो महान कौन है, लेने वाला या देने वाला!
सही जबाब और असलियत मालूम होने पर सभी के सर शर्म से झुक जाते थे। यहां तक कि ब्राह्मणो के भी ।
मुझे उत्साह और मनोबल मिला। अच्छे कामो से ही किसी के अच्छे नाम होते है । शूद्र नाम पर लगे कलंक को धोने का संकल्प लिया । अपने कुछ बामसेफ के साथियो के साथ बिचार -विमर्श किया । परिणाम के रूप मे एक "मिशन"
*बिरसा-अम्बेडकर और संविधान पर ऐसा भाषण आपने कभी नही सुना होगा। एक बार देखिये यह मात्र 6 मिनट का वीडियो*
ReplyDeletehttps://youtu.be/VKGIIv51wog
बहुत अच्छी पोस्ट है दुश्मन को जानना जरूरी हैसन 1910 की जनगणना के आधार पर हिन्दू तथा गैर हिन्दू तथा पूना पैक्ट
ReplyDeletejai bhim
DeleteNice and great thought on dalit and shudraes..
ReplyDeleteबहुत सुंदर सर
ReplyDeleteकहो गर्व से हम शूद्र है
सभी शुभचिन्तको को शुक्रिया व धन्यवाद.
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